गोद में बैठाकर भतीजी को चोदा बस में

मेरा नाम नरेंद्र है, और मैं दिल्ली में रहता हूँ। ये कहानी उस रात की है जब मैं अपनी भाभी, भतीजी रिंकी, और भतीजे मयंक के साथ दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे से आजमगढ़ के लिए बस में सवार हुआ था। बात पिछले साल दिवाली से ठीक एक दिन पहले की है। उस रात का माहौल, बस की भीड़, और उस अनजाने रोमांच ने मेरी जिंदगी को एक नया मोड़ दे दिया। ये कहानी मेरी और मेरी भतीजी रिंकी के बीच उस बस यात्रा में घटी एक ऐसी घटना की है, जिसे मैं आज भी याद करके गर्म हो जाता हूँ।

दिवाली का समय था, और गांव जाने की जल्दी में मैंने ट्रेन की टिकट बुक करने की कोशिश की थी, लेकिन सीट नहीं मिली। आखिरकार, बस ही एकमात्र रास्ता बचा था। मेरे भैया ने कहा, “नरेंद्र, भाभी को और बच्चों को लेकर गांव चले जाओ। दिवाली साथ में मनाएंगे।” मैं, भाभी, रिंकी (जो 19 साल की थी), और मयंक (जो 10 साल का था) बस अड्डे पर पहुंचे। बस खचाखच भरी थी। न कोई खाली सीट, न कोई आराम। लोग ठूंस-ठूंस कर भरे थे। कुछ खड़े थे, कुछ सीटों पर लदे हुए। आनंद विहार का बस अड्डा उस रात किसी मेले से कम नहीं था। हॉर्न की आवाज़, लोगों की चिल्ल-पों, और सामान की धक्का-मुक्की ने माहौल को और तनावपूर्ण बना दिया था।

किसी तरह हमें एक डबल सीट मिली, जिस पर मैं और भाभी बैठ गए। लेकिन रिंकी और मयंक के लिए कोई जगह नहीं थी। भाभी ने मयंक को अपनी गोद में बिठा लिया, और रिंकी को हमने बीच में इस तरह adjust किया कि उसका आधा चूतड़ मेरी जांघ पर था और आधा भाभी की जांघ पर। रिंकी की मुलायम जांघ मेरी जांघ से टच हो रही थी, और उसका हल्का-सा वजन मेरे शरीर में एक अजीब-सी गर्मी पैदा कर रहा था। मैंने खुद को समझाया, “ये गलत है, वो तेरी भतीजी है,” लेकिन उस भीड़भरी बस में, जहाँ हर कोई एक-दूसरे से सटकर बैठा था, मन को काबू करना आसान नहीं था।

बस जैसे ही चली, अंदर का माहौल और भारी हो गया। बस की लाइट्स धीमी थीं, और बाहर सड़क की आवाज़ के अलावा सिर्फ लोगों की खर्राटों की आवाज़ थी। रात के 11 बज चुके थे, और थकान की वजह से भाभी और मयंक जल्दी ही सो गए। मयंक भाभी की गोद में सिर टिकाए खर्राटे ले रहा था, और भाभी का सिर बस की खिड़की से टिका हुआ था। लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी। रिंकी भी जाग रही थी। उसकी साँसें तेज थीं, और वो बार-बार अपनी पोजीशन बदल रही थी। उसका चूतड़ मेरी जांघ पर बार-बार रगड़ खा रहा था, और हर बार वो रगड़ मेरे शरीर में एक करंट-सा दौड़ा रही थी।

मैंने रिंकी से धीरे से कहा, “क्या हुआ, रिंकी? नींद नहीं आ रही?”
वो बोली, “नहीं चाचा, इस तरह बैठने में तकलीफ हो रही है। जगह ही नहीं बन रही।”
उसकी आवाज़ में थकान थी, लेकिन उसका शरीर मेरे इतने करीब था कि मैं उसकी गर्म साँसों को अपनी गर्दन पर महसूस कर रहा था। मैंने कहा, “एक काम कर, तू मेरी गोद में आराम से बैठ जा। बीच में adjust करने से अच्छा है। भाभी भी सो गई है, और मयंक को भी कोई दिक्कत नहीं होगी।”

रिंकी ने थोड़ा हिचकिचाया, लेकिन फिर मान गई। उसने धीरे से अपनी पोजीशन बदली और मेरी गोद में बैठ गई। उसका पूरा वजन अब मेरे ऊपर था। उसकी मुलायम गांड मेरी जांघों पर टिकी थी, और उसका पेट मेरे सीने से सटा हुआ था। मैंने उसे स्थिर करने के लिए अपने हाथ उसके कमर पर रखे। उसका दुपट्टा मेरे चेहरे पर आ रहा था, और उसकी खुशबू मेरे होश उड़ा रही थी। बस की हल्की-हल्की हिचकोले और अंधेरा माहौल कुछ ऐसा बना रहा था कि मेरे मन में गलत ख्याल आने लगे।

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धीरे-धीरे मेरा हाथ उसकी कमर से ऊपर की ओर सरकने लगा। मैंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया था, लेकिन बस की रफ्तार और ब्रेक के झटकों ने मेरे हाथ को उसकी चुचियों के पास पहुंचा दिया। उसकी चुचियाँ छोटी लेकिन सख्त थीं, जैसे दो पके हुए संतरे। मेरे हाथ ने हल्के से उन्हें छुआ, और मैंने देखा कि रिंकी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। शायद उसे लगा कि ये बस की वजह से हुआ। मैंने हिम्मत करके फिर से अपने हाथ को हल्का-सा दबाया। इस बार उसकी साँसें थोड़ी तेज हो गईं, लेकिन वो चुप रही।

रात के 12:30 बज चुके थे। बस में सन्नाटा था, सिर्फ इंजन की आवाज़ और कुछ लोगों के खर्राटे सुनाई दे रहे थे। भाभी और मयंक गहरी नींद में थे। मैंने रिंकी के कान के पास धीरे से कहा, “रिंकी, तू ठीक है ना?”
वो बोली, “हाँ, चाचा। बस थोड़ा अजीब लग रहा है।”
उसकी आवाज़ में एक हल्की-सी कांप थी, जो मुझे और उकसा रही थी। मैंने अपने पैर थोड़े और फैलाए, ताकि रिंकी की गांड मेरे लंड के ठीक ऊपर आ जाए। मेरा लंड अब धीरे-धीरे खड़ा होने लगा था, और मुझे लग रहा था कि रिंकी को भी इसका अहसास हो रहा है। उसकी गांड की गर्मी मेरे लंड को और सख्त कर रही थी।

मैंने हिम्मत करके अपने हाथ को उसकी चुचियों पर पूरी तरह रख दिया। इस बार मैंने हल्के से उन्हें दबाया। रिंकी ने एक हल्की-सी सिसकारी भरी, लेकिन उसने मेरा हाथ नहीं हटाया। मैं समझ गया कि वो भी इस पल में खो रही है। मैंने धीरे-धीरे उसकी चुचियों को मसलना शुरू किया। उसकी सलवार-कुर्ती के ऊपर से ही मैं उसके निप्पल को अपनी उंगलियों से सहलाने लगा। वो और ज्यादा सटकर मेरे सीने से चिपक गई। उसकी साँसें अब तेज और गर्म हो रही थीं।

अब मेरा लंड पूरी तरह खड़ा हो चुका था। रिंकी की गांड की दरार में मेरा लंड सेट हो गया था, और हर बार जब बस में झटका लगता, वो मेरे लंड पर रगड़ खा रही थी। मैंने उसके कंधे के पास अपना मुँह ले जाकर उसके गाल को हल्के से चूमा। उसने अपना चेहरा थोड़ा और मेरी ओर कर दिया, जैसे वो चाहती थी कि मैं उसे और चूमूँ। मैंने उसके होंठों को हल्के से चूसा, और उसने मेरे होंठों का जवाब दिया। उसका मुँह गर्म और नम था, और उसकी जीभ मेरी जीभ से टकरा रही थी।

मैंने धीरे से उसकी सलवार का नाड़ा खोलने की कोशिश की। रिंकी ने मेरे हाथ को पकड़ लिया, और डरते हुए बोली, “चाचा, कोई देख लेगा। मम्मी जाग गई तो?”
मैंने कहा, “कोई नहीं देखेगा। सब सो रहे हैं। तू बस चुप रह।”
मैंने उसका दुपट्टा और फैलाया, ताकि हमारी हरकतें छिप जाएँ। उसने धीरे से अपनी गांड को थोड़ा ऊपर उठाया, और मैंने उसकी सलवार और पैंटी को एक साथ नीचे खींच दिया। उसकी नंगी गांड अब मेरे लंड पर टिकी थी, और उसकी गर्मी मेरे पूरे शरीर में आग लगा रही थी।

मैंने अपनी पैंट का बटन खोला और लंड को बाहर निकाला। मेरा लंड अब पूरी तरह सख्त था, और उसकी चूत के छेद के पास टच हो रहा था। मैंने उससे कहा, “रिंकी, धीरे से बैठ।”
वो डर रही थी, लेकिन उसने मेरी बात मानी। उसने अपनी गांड को हल्के से नीचे किया, लेकिन मेरा लंड उसकी चूत में नहीं गया। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि लंड का टोपा भी अंदर नहीं जा रहा था। मैंने थोड़ा थूक अपनी उंगलियों पर लगाया और उसकी चूत को गीला किया। उसकी चूत की गर्मी और नमी ने मुझे पागल कर दिया। मैंने फिर से उसकी गांड को पकड़कर धीरे से नीचे दबाया। इस बार मेरा लंड का टोपा उसकी चूत में घुस गया।

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रिंकी ने एक हल्की-सी चीख मारी, लेकिन मैंने तुरंत उसके मुँह पर हाथ रख दिया। मैंने धीरे से कहा, “चुप रह, कोई सुन लेगा।”
उसकी आँखों में दर्द और डर था, लेकिन वो मेरे ऊपर बैठी रही। मैंने धीरे-धीरे अपने लंड को और अंदर धकेला। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि हर इंच घुसने में मुझे मेहनत करनी पड़ रही थी। अचानक मेरा लंड उसकी सील से टकराया, और एक हल्के से झटके के साथ उसकी सील टूट गई। रिंकी ने अपने होंठ काट लिए, और उसकी आँखों में आँसू आ गए। मैंने उसे अपने सीने से लगाकर सहलाया और कहा, “बस थोड़ा दर्द होगा, फिर मज़ा आएगा।”

मैंने धीरे-धीरे अपने लंड को उसकी चूत में आगे-पीछे करना शुरू किया। उसकी चूत इतनी गर्म और टाइट थी कि मेरा लंड हर बार और सख्त होता जा रहा था। रिंकी अब धीरे-धीरे मेरे साथ ताल मिलाने लगी थी। वो अपनी गांड को हल्के-हल्के गोल-गोल घुमा रही थी, और मेरे लंड को और गहराई तक ले रही थी। मैंने उसके कुर्ते के अंदर हाथ डाला और उसकी चुचियों को पकड़ लिया। उसके निप्पल सख्त हो चुके थे, और जैसे ही मैंने उन्हें अपनी उंगलियों से मसला, रिंकी ने एक लंबी सिसकारी भरी।

बस का हर झटका हमारे लिए एक नया रोमांच ला रहा था। मैं नीचे से धीरे-धीरे धक्के दे रहा था, और रिंकी ऊपर से अपनी गांड को मेरे लंड पर रगड़ रही थी। उसकी चूत से हल्का-हल्का खून निकल रहा था, लेकिन वो अब दर्द से ज्यादा मज़े में थी। मैंने उसके होंठों को फिर से चूसा, और उसकी जीभ को अपने मुँह में खींच लिया। उसका पूरा शरीर गर्म हो चुका था, और उसकी साँसें मेरे चेहरे पर आग बरसा रही थीं।

अचानक बस ने एक जोरदार ब्रेक मारा, और रिंकी मेरे लंड पर पूरी तरह बैठ गई। मेरा पूरा लंड उसकी चूत की गहराई में समा गया। उसने अपने मुँह को मेरे कंधे पर दबा लिया, ताकि उसकी चीख बाहर न आए। मैंने भी अपने हाथों से उसकी कमर को कसकर पकड़ लिया। उस पल में मुझे डर भी लगा कि कहीं भाभी जाग न जाए, लेकिन वो गहरी नींद में थी। मैंने आसपास नज़र दौड़ाई—सब सो रहे थे। बस का ड्राइवर शायद रास्ते में किसी टोल प्लाज़ा पर रुका था, लेकिन अंधेरे की वजह से कोई कुछ देख नहीं पा रहा था।

मैंने रिंकी के कान में कहा, “थोड़ा और मज़ा लेते हैं।”
उसने शर्माते हुए हल्के से हाँ में सिर हिलाया। मैंने अब अपने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी। उसकी चूत अब गीली हो चुकी थी, और मेरा लंड आसानी से अंदर-बाहर हो रहा था। हर धक्के के साथ उसकी चुचियाँ मेरे सीने पर उछल रही थीं। मैंने उसके निप्पलों को अपनी उंगलियों से कसकर मसला, और वो कामुकता की चरम सीमा पर पहुंच गई। उसने मेरे लंड को अपनी चूत में और गहराई तक लेने के लिए अपनी गांड को तेजी से हिलाना शुरू कर दिया।

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मैंने उसके गाल, गर्दन, और कंधों को चूमना शुरू किया। उसकी त्वचा इतनी मुलायम थी कि मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था। मैंने उसके कुर्ते को थोड़ा और ऊपर किया और उसकी चुचियों को अपने मुँह में ले लिया। मैंने उसके निप्पल को अपनी जीभ से चाटा और हल्के से काटा। रिंकी ने अपने मुँह को मेरे कंधे पर दबा लिया और सिसकारियाँ लेने लगी। उसकी सिसकारियाँ इतनी मादक थीं कि मेरा लंड और सख्त हो गया।

करीब 40 मिनट तक हम दोनों उस बस में एक-दूसरे में खोए रहे। मैंने उसे अलग-अलग तरीकों से चोदा—कभी धीरे-धीरे, कभी तेज। उसकी चूत की गर्मी और टाइटनेस ने मुझे पागल कर दिया था। लेकिन मुझे ये भी डर था कि कहीं कोई जाग न जाए। हर बार जब बस रुकती या कोई हलचल होती, मेरा दिल धक-धक करने लगता। एक बार तो मुझे लगा कि भाभी की नींद टूट रही है, लेकिन वो सिर्फ करवट बदलकर फिर सो गई। उस पल में जो रिस्क था, उसने इस चुदाई को और रोमांचक बना दिया।

अचानक मुझे लगा कि मेरा माल निकलने वाला है। मैंने रिंकी से कहा, “रिंकी, मेरा होने वाला है।”
वो बोली, “चाचा, बाहर निकालो।”
मैंने तुरंत उसे अपनी गोद से हटाया और अपने लंड को उसकी चूत से बाहर निकाला। मैंने अपने रुमाल में सारा माल निकाल दिया। रिंकी की साँसें अभी भी तेज थीं, और उसका चेहरा शर्म और मज़े के मिश्रण से लाल हो गया था। उसने जल्दी से अपनी सलवार और पैंटी ऊपर की, और मैंने भी अपनी पैंट ठीक की।

हम दोनों थककर एक-दूसरे से चिपककर बैठ गए। रिंकी ने अपना सिर मेरे कंधे पर टिका लिया, और मैंने उसे अपने बाजुओं में भर लिया। उसकी गर्म साँसें मेरे सीने पर लग रही थीं। कुछ देर बाद वो भी सो गई। सुबह जब भाभी जगी, रिंकी फिर से उसी पोजीशन में बैठ गई, जैसे कुछ हुआ ही न हो। भाभी को जरा भी शक नहीं हुआ कि उसकी बेटी की चूत की सील रात में उसके चाचा ने तोड़ दी थी।

गांव पहुंचने के बाद रिंकी और मैंने एक-दूसरे को देखकर सिर्फ मुस्कुराया। उस रात की बात हम दोनों के बीच एक राज बनकर रह गई। मैं अब दिल्ली वापस आ चुका हूँ, लेकिन रिंकी अभी भी गांव में है। हर रात मैं उस बस की चुदाई को याद करके मुठ मारता हूँ। मैं इंतज़ार कर रहा हूँ कि कब रिंकी दिल्ली आए, और मैं उसे फिर से अपनी बाहों में भरकर चोद सकूँ। उस दिन का मज़ा मैं फिर से लूँगा, और वो कहानी भी मैं जरूर सुनाऊंगा।

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