स्निग्धा की ज़िंदगी उस चमक-दमक वाली दुनिया में फंस चुकी थी, जहाँ हर कोई बस एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में था। हर लड़की का बॉयफ्रेंड, हर लड़के की गर्लफ्रेंड—ये सब स्टेटस का हिस्सा बन चुका था। अगर तुम्हारे पास कोई “स्पेशल” नहीं था, तो दोस्तों के बीच तुम्हारी इज्ज़त कुछ कम-सी हो जाती थी। स्निग्धा भी उसी दलदल में फंस गई थी, और उसकी ये कहानी उसी की ज़ुबानी है—कैसे उसकी पहली चुदाई ने उसकी छोटी सी चूत को तहस-नहस कर दिया, और कैसे वो दो लड़कों के हवस का शिकार बनी।
स्निग्धा एक साधारण परिवार से थी। पापा एक कंपनी में नौकरी करते थे, माँ भी काम करती थी, ताकि घर का खर्चा चल सके। वो उनकी इकलौती बेटी थी, लाड-प्यार से पली थी। अठारह साल की थी, बी.ए. सेकंड ईयर में पढ़ती थी, और देखने में इतनी खूबसूरत कि लड़के उस पर मर-मिटते थे। कॉलेज में हर दूसरा लड़का उसे प्रपोज़ करता, पर स्निग्धा किसी को भाव नहीं देती थी। माँ-पापा की सीख हमेशा उसके दिमाग में गूंजती थी, “बेटी, ज़माना खराब है। लड़के सिर्फ़ गलत काम के लिए लड़कियों को फंसाते हैं। मन भर गया, तो छोड़ देते हैं। किसी से दोस्ती मत करना।”
स्निग्धा ने तीन साल तक इस सीख को माना। लेकिन कॉलेज की सहेलियों को देखकर उसका मन डोलने लगा। हर किसी का बॉयफ्रेंड था, और वो सब अपनी लव-लाइफ की बातें ऐसे करती थीं जैसे दुनिया का सबसे बड़ा सुख वही हो। “फ्रेंडशिप में मज़ा है, स्निग्धा! तू भी ट्राई कर,” उनकी बातें सुन-सुनकर स्निग्धा का दिल मचलने लगा। आखिरकार, उसने एक लड़के का प्रपोज़ल एक्सेप्ट कर लिया।
पहले तो सब कुछ सपनों जैसा था। उसका बॉयफ्रेंड, राहुल, उसे दुनिया की सबसे खास लड़की समझता था। फोन पर घंटों बातें, कॉलेज के बाद साथ में चाय पीना, चुपके-चुपके मिलना—स्निग्धा को लगने लगा कि माँ-पापा गलत थे। राहुल उसे प्यार करता था, उसका ख्याल रखता था। लेकिन ये ख़ुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी। एक दिन राहुल ने फोन करके बताया, “स्निग्धा, मैं बैंगलोर जा रहा हूँ, पढ़ाई के लिए। अब हम फोन या व्हाट्सएप पर बात करेंगे।” और वो चला गया। स्निग्धा अकेली रह गई। कॉलेज जाना, घर आना—ज़िंदगी एकदम नीरस हो गई। सहेलियों के बॉयफ्रेंड्स की कहानियाँ सुनकर वो जल-बिन-मछली सी तड़पने लगी।
इसी बीच, एक नया लड़का उसकी ज़िंदगी में आया—विकास। रोज़ सुबह जब वो घर से कॉलेज के लिए निकलती, विकास उसे घूरता। पहले तो स्निग्धा को ये अच्छा नहीं लगा, लेकिन उसका पीछा करना, चुपके से मुस्कुराना, धीरे-धीरे बातें शुरू करना—ये सब उसे अंदर ही अंदर अच्छा लगने लगा। विकास कॉलेज के बाहर उसका इंतज़ार करता, मेट्रो में साथ चलता। स्निग्धा ने किसी को भनक नहीं लगने दी—न अपने पुराने बॉयफ्रेंड को, न घरवालों को। विकास के साथ वो पूरी तरह घुल-मिल गई।
बस 10-15 दिन ही हुए थे, और स्निग्धा उसके लिए पागल हो चुकी थी। एक दिन विकास ने कहा, “स्निग्धा, आज मेरा बर्थडे है। मैं तुझे पार्टी देना चाहता हूँ। चल, मेरे साथ।” स्निग्धा को लगा, ठीक है, क्या बुराई है। वो उसके साथ एक फ्लैट पर चली गई। फ्लैट खाली था, सुनसान। वहाँ विकास का दोस्त, अजय, भी था। स्निग्धा को कुछ गड़बड़ लगी। उसका दिल धक-धक करने लगा, लेकिन विकास के प्यार में वो इतनी अंधी थी कि उसने अपनी हिचक को दबा दिया।
विकास ने बाहर से खाना मंगवाया। खाना खाते-खाते वो स्निग्धा के करीब आने लगा। कभी उसकी जांघों पर हाथ फेरता, कभी पीठ सहलाता, तो कभी गाल पर एक चुम्मा दे देता। स्निग्धा का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। उसका शरीर सिहर रहा था, लेकिन उसे ये सब अच्छा भी लग रहा था। फिर विकास ने उसका हाथ पकड़ा और बोला, “स्निग्धा, आज तू मुझे खुश कर दे।” स्निग्धा ने हिचकते हुए पूछा, “खुश कर दे? मतलब?” विकास ने आँखों में आँखें डालकर कहा, “आज मुझे तुझसे सेक्स करना है।”
स्निग्धा का दिमाग सुन्न हो गया। “नहीं, विकास, मैं ये नहीं कर सकती। मैं अभी इसके लिए तैयार नहीं हूँ।” उसने मना कर दिया। लेकिन विकास ने उसका हाथ कसकर पकड़ा और कहा, “स्निग्धा, मैं तुझसे सच्चा प्यार करता हूँ। तू मेरी कसम खा, बस एक बार। तुझे बहुत मज़ा आएगा, और तेरी जवानी और भी निखर जाएगी।” वो बार-बार यही बातें दोहराता रहा। स्निग्धा का मन डोलने लगा। उसने डरते-डरते कहा, “ठीक है, लेकिन अजय? वो यहाँ क्यों है?” विकास ने हँसते हुए कहा, “अरे, वो अभी चला जाएगा।”
विकास ने अजय को कुछ इशारा किया, और अजय बाहर चला गया। विकास ने दरवाज़ा बंद किया और स्निग्धा के पास आया। उसने धीरे-धीरे स्निग्धा की सलवार उतारी, फिर उसकी कमीज़। स्निग्धा की साँसें तेज़ हो रही थीं। वो शरमा रही थी, लेकिन उसका शरीर अब वासना की आग में जल रहा था। विकास ने उसकी ब्रा खोली और उसके नर्म, गोल बूब्स को अपने हाथों में लिया। “क्या मस्त माल है तू, स्निग्धा,” उसने कहा और उसके निप्पल्स को मुँह में लेकर चूसने लगा। स्निग्धा के मुँह से एक हल्की सी सिसकारी निकली, “आह्ह…” उसका शरीर कांप रहा था।
विकास ने अब स्निग्धा की पैंटी भी उतार दी। वो उसकी चूत को देखकर पागल हो गया। “इतनी टाइट चूत, स्निग्धा, आज तो मज़ा आ जाएगा,” उसने कहा। स्निग्धा शरम से लाल हो रही थी, लेकिन उसकी चूत अब गीली हो चुकी थी। विकास ने अपना लंड निकाला—मोटा, लंबा, और सख्त। स्निग्धा ने उसे देखा और डर गई। “विकास, ये… ये बहुत बड़ा है। मैं नहीं ले पाऊँगी,” उसने कांपती आवाज़ में कहा।
“अरे, कुछ नहीं होगा, मेरी जान,” विकास ने उसे लिटाया और उसकी टांगें चौड़ी कर दीं। उसने स्निग्धा की चूत पर अपनी जीभ रखी और चाटने लगा। स्निग्धा तड़प उठी। “आह्ह… विकास… ये क्या कर रहा है… आह्ह…” उसकी सिसकारियाँ कमरे में गूंज रही थीं। विकास ने अपनी जीभ को और तेज़ी से चलाया, स्निग्धा की चूत का रस चाटते हुए। “तेरी चूत का स्वाद तो शहद से भी मीठा है,” उसने कहा। स्निग्धा अब पूरी तरह वासना में डूब चुकी थी। “विकास… अब डाल दे… जल्दी कर… मुझे और मत तड़पा,” उसने कहा।
विकास ने अपने लंड पर थूक लगाया और स्निग्धा की चूत के छेद पर रखा। उसने एक जोरदार धक्का मारा, लेकिन लंड अंदर नहीं गया। स्निग्धा की चीख निकल गई, “आह्ह… दर्द हो रहा है!” विकास ने फिर कोशिश की, इस बार और जोर से। आधा लंड स्निग्धा की टाइट चूत में घुस गया। “उफ्फ… स्निग्धा, तेरी चूत तो सचमुच कुंवारी है,” उसने कहा और एक और धक्का मारा। इस बार पूरा लंड अंदर चला गया। स्निग्धा की आँखों में आँसू आ गए। “विकास… धीरे… मैं मर जाऊँगी,” वो चिल्लाई।
विकास ने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। हर धक्के के साथ स्निग्धा की चूत में दर्द और मज़ा दोनों मिल रहे थे। “आह्ह… उह्ह… विकास… थोड़ा धीरे…” वो सिसक रही थी। लेकिन विकास अब रुकने वाला नहीं था। “ले साली, अब तो तू मेरी रंडी बन चुकी है,” उसने कहा और अपने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी। स्निग्धा की चूत अब खून और रस से गीली हो चुकी थी।
अचानक दरवाज़ा खुला और अजय अंदर आ गया। स्निग्धा ने चौंककर कहा, “ये क्या? अजय, तू यहाँ?” विकास ने हँसते हुए कहा, “चुप साली! जब मैं इसकी गर्लफ्रेंड को चोदता हूँ, तो क्या ये मेरा हक़ नहीं कि मैं भी तुझे चोदूँ?” स्निग्धा के होश उड़ गए। वो विरोध करना चाहती थी, लेकिन उसका शरीर अब वासना की आग में जल रहा था। अजय ने अपना लंड निकाला—विकास से भी मोटा और सख्त। उसने स्निग्धा का मुँह पकड़ा और अपना लंड उसके मुँह में ठूंस दिया। “चूस, रंडी!” उसने कहा।
स्निग्धा के पास अब कोई चारा नहीं था। नीचे विकास उसकी चूत को चोद रहा था, और ऊपर अजय उसके मुँह को। “उम्म… ग्लक… ग्लक…” स्निग्धा के मुँह से अजीब सी आवाज़ें निकल रही थीं। अजय ने उसके बाल पकड़कर अपना लंड और गहराई तक ठूंस दिया। “हाँ, ऐसे चूस, स्निग्धा। तू तो जन्मी ही चुदने के लिए है,” उसने कहा।
विकास ने अब स्निग्धा को उल्टा किया और उसकी गांड को सहलाने लगा। “क्या मस्त गांड है तेरी, स्निग्धा,” उसने कहा और उसकी गांड पर एक चपत मारी। स्निग्धा की सिसकारी निकल गई, “आह्ह… विकास, ये क्या कर रहा है?” विकास ने उसकी गांड के छेद पर थूक लगाया और अपना लंड वहाँ रगड़ने लगा। “नहीं… वहाँ नहीं… मैं मर जाऊँगी,” स्निग्धा ने गिड़गिड़ाई। लेकिन विकास ने उसकी एक न सुनी। उसने एक जोरदार धक्का मारा और अपना लंड स्निग्धा की गांड में घुसा दिया।
“आह्ह… मम्मी… मैं मर गई!” स्निग्धा चीख पड़ी। दर्द इतना था कि उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। लेकिन विकास और अजय अब पूरी तरह बेकाबू हो चुके थे। विकास उसकी गांड चोद रहा था, और अजय उसके मुँह को। फिर दोनों ने जगह बदली। अजय ने स्निग्धा की चूत में अपना मोटा लंड घुसाया, और विकास ने उसका मुँह पकड़ लिया। “ले, स्निग्धा, अब तू हम दोनों की रंडी है,” विकास ने कहा।
लगभग दो घंटे तक दोनों ने स्निग्धा को चोदा। कभी चूत, कभी गांड, कभी मुँह—स्निग्धा का शरीर अब पूरी तरह थक चुका था। उसकी चूत और गांड लाल हो चुकी थीं, खून और रस से सनी हुई थीं। आखिरकार, दोनों ने एक साथ स्निग्धा के मुँह और चूत में अपना माल छोड़ा। स्निग्धा बेहाल होकर बिस्तर पर पड़ी रही। “बस… अब और नहीं…” उसने सुबकते हुए कहा।
विकास और अजय हँसते हुए उठे और अपने कपड़े पहनने लगे। “मज़ा आया, स्निग्धा। फिर मिलेंगे,” विकास ने कहा और दोनों चले गए। स्निग्धा अकेली पड़ी रही, अपने शरीर के दर्द और मन की शर्मिंदगी के साथ। उसकी छोटी सी चूत और गांड को उन दोनों ने तहस-नहस कर दिया था। वो उस रात को आज तक नहीं भूल पाई।
स्निग्धा ने ठान लिया कि अब वो कभी किसी लड़के पर भरोसा नहीं करेगी। “अब चुदाई करनी होगी, तो सिर्फ़ अपने पति के साथ,” उसने मन ही मन कहा।