मैं अनिल, पूना का रहने वाला हूँ। ये मेरी सच्ची कहानी है, जो मैं आपको सुना रहा हूँ। कृपया मुझे गलत न समझना। मैं दिखने में इतना सेक्सी हूँ कि गाँव की औरतें मुझे कामुक नजरों से ताड़ती हैं। मेरा गाँव छोटा सा है, मुश्किल से एक हजार लोग रहते हैं। दिन में सब खेतों में या काम पर चले जाते हैं, गाँव में सन्नाटा पसर जाता है।
उस वक्त मैं कॉलेज में पढ़ता था। सुबह जाता, और दोपहर तक घर लौट आता। कॉलेज में मेरी एक गर्लफ्रेंड थी, जिसके साथ मेरा अफेयर था। मैंने उसे कई बार किस किया, उसकी कमर सहलाई, लेकिन जब बात चुदाई की आती, वो टाल देती। मैंने भी उसे ज्यादा फोर्स नहीं किया। कॉलेज की और लड़कियाँ मुझे घूर-घूर कर देखतीं, अपनी आँखों से मुझे नंगा करतीं, पर मैं उन्हें उस नजर से नहीं देखता था।
मेरी चचेरी भाभियाँ मुझसे खुलकर बातें करतीं। कभी-कभी मजाक में मेरे सीने पर हाथ फेर देतीं, मेरे लंड की तारीफ करतीं, और हँसकर ताने मारतीं। मेरी चार भाभियाँ तो मेरे पीछे पड़ी थीं कि मैं उनकी चुदाई करूँ। मैं चुप रहता, पर उनके ताने मेरे दिल में आग लगा देते। एक बार गीता भाभी ने सारी हदें पार कर दीं। घर में कोई नहीं था, उसने मुझे दीवार से सटा लिया, मेरे होंठों पर अपने गर्म होंठ रखे, और गीली चुम्मी लेकर हँसती हुई चली गई। उसकी वो कामुक हँसी और नशीली आँखें मेरे दिमाग में अटक गईं। बस, उसी दिन से गीता भाभी मेरे ख्वाबों की रानी बन गई।
गीता भाभी थी ही इतनी सेक्सी कि कोई भी पागल हो जाए। वो मेरे चाचा की इकलौती औलाद की बीवी थी, और अपने पति के साथ गाँव के किनारे बने अलग घर में रहती थी। मेरा भाई सेल्स मैनेजर था, उसे हफ्ते में एक-दो बार शहर से बाहर जाना पड़ता। दिन में वो घर पर होता ही नहीं। भाभी की उस चुम्मी के बाद मैं रोज उनके नाम की मुठ मारता। उनकी गोरी कमर, भरे हुए मम्मे, और गोल, उभरी हुई गाण्ड मेरे दिमाग में दिन-रात नाचती। जब भी मौका मिलता, मैं उनकी गली से गुजरता, उनकी एक झलक पाने को तरसता।
एक दिन वो मौका आ ही गया, जिसका मुझे बरसों इंतजार था। गर्मी का मौसम था, रातें इतनी उमस भरी कि नींद नहीं आती थी। मैं सोने के लिए छत पर जाता, छत का दरवाजा बाहर से था, तो कोई शक नहीं करता। उस दिन मेरा भाई चार दिन के लिए मुंबई गया था। गीता भाभी घर में अकेली थी। मैं दोपहर में उनकी गली से गुजर रहा था, मन में हलचल मची थी। मैंने हिम्मत जुटाई और उनके घर में घुस गया। भाभी अपनी साड़ी बदल रही थी। वो सिर्फ लाल पेटीकोट और टाइट ब्लाउज में थी। उनकी गोरी पीठ चमक रही थी, उनकी कमर की लचक देखकर मेरा लंड पैंट में उछलने लगा। भाभी को पता चल गया कि मैं आ गया हूँ, पर उन्होंने मुझे अनदेखा किया। वो आईने के सामने खड़ी थी, अपनी चूचियों को ब्लाउज में ठीक कर रही थी। उनकी फिगर 36-24-34 की थी, मानो कोई हुस्न की मल्लिका हो।
मुझसे रहा नहीं गया। मैंने बाहर झाँका, गली सूनी थी। मैं भाभी की तरफ बढ़ा, मेरे कदम काँप रहे थे। अचानक मुझे लगा, कोई आ रहा है। मैं बाहर निकला, तो देखा चाचा गली से गुजर रहे थे। मेरा दिल धक-धक करने लगा। मैं जल्दी से छत पर चला गया, और बिस्तर पर लेट गया। नींद तो जैसे मेरी दुश्मन बन गई थी। भाभी का वो गुलाबी बदन, उनकी गीली चूत की खुशबू, और उनकी कामुक आवाज मेरे दिमाग में गूंज रही थी। मेरा लंड पैंट में तंबू बना रहा था, मैंने उसे सहलाया, पर तड़प कम नहीं हुई।
रात के एक बजे मेरी हवस ने मुझे बेकाबू कर दिया। गाँव में सन्नाटा था, कुत्तों की भौंकने की आवाज भी बंद हो चुकी थी। मैं दबे पाँव भाभी के घर की ओर चल पड़ा। उनके दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया, वो अंदर से खुला था। मैं समझ गया, भाभी ने मेरे लिए रास्ता छोड़ा है। मैं अंदर घुसा, कमरे में हल्की रौशनी थी। भाभी बिस्तर पर चित्त लेटी थी, उनकी साड़ी ढीली थी, पेटीकोट में उनकी गोरी जाँघें चाँदनी में चमक रही थीं। उनकी साँसें तेज थी, मानो वो भी मेरे इंतजार में तड़प रही थी। मैं सीधा उनके ऊपर लेट गया, मेरा सख्त लंड उनकी जाँघों से टकराया।
भाभी ने मेरे कान में फुसफुसाया, “आइए देवर जी… मैं जानती थी कि आप जरूर आयेंगे… आओ मेरे आशिक…” उनकी आवाज में वही कामुकता थी, जो मुझे पागल कर देती थी। मैं जोश में था, मेरा लंड पत्थर की तरह सख्त था। मैंने भाभी की साड़ी खींच कर फेंक दी, उनका ब्लाउज फाड़ा, और पेटीकोट नीचे सरका दिया। वो मेरे सामने पूरी नंगी थी। उनका गोरा बदन चाँदनी में दूध की तरह चमक रहा था। उनकी चूचियाँ भरी हुई, गुलाबी निप्पल सख्त, और चूत पर हल्की झांटें थीं। मैं उनका बदन सूंघने लगा, उनकी चूत की नमकीन खुशबू मेरे होश उड़ा रही थी। मैंने उनकी गर्दन चूमी, उनके कानों को काटा, और उनकी चूचियों पर टूट पड़ा।
भाभी सिसक रही थी, “अनिल, चूस लो मेरी चूचियाँ, पी लो इन्हें।” मैंने उनकी चूचियाँ मुँह में भरी, जोर-जोर से चूसा। उनके निप्पल काटे, तो वो चिहुंक उठी, “हाय, अनिल, और जोर से दबा, फाड़ दे मेरी चूचियाँ।” मैंने उनके मम्मों को इतना मसला कि वो कराहने लगी। उनकी चूचियाँ लाल हो गई थीं, पर वो और मांग रही थी। मैं उनकी चूत की तरफ बढ़ा, उनकी टाँगें फैलाईं, और चूत चाटने लगा। उनकी चूत गीली थी, उसका नमकीन पानी मेरे मुँह में घुल रहा था। मैंने जीभ अंदर डाली, उनकी चूत की दीवारों को चाटा। भाभी चिल्ला रही थी, “हाय, अनिल, मेरी चूत फाड़ दो, चाट लो इसे।”
वो मेरी चड्डी में हाथ डाल चुकी थी। मेरा लंड, 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा, नाग की तरह फुंफकार रहा था। भाभी ने उसे देखा और बोली, “हाय, इतना बड़ा लंड! इससे तो मेरी चूत और गाण्ड दोनों फट जाएगी।” वो मेरे लंड को सहलाने लगी, फिर मुँह में ले लिया। उनका गर्म मुँह मैने उनके मुँह में मेरा लंड चूस रही थी, मेरे टट्टों को चाट रही थी। मैं जोश में चिल्लाया, “भाभी, और चूसो, मेरा लंड तुम्हारा है।”
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कमरा हमारी सिस्कारियों से गूंज रहा था। भाभी एक बार झड़ चुकी थी, उनकी चूत का पानी मेरे मुँह में था। मैंने उनकी चूत को और चाटा, वो मेरे लंड को काटने लगी। फिर भाभी ने मेरा लंड अपनी चूत पर रखा और बोली, “चोद लो… मुझे… मेरी प्यास बुझाओ… कितने दिन से मैं इस वक्त की प्रतीक्षा कर रही हूँ… मुझे चोद दो… अपनी भाभी की चूत फाड़ दो और मुझे एक बच्चा दे दो…” वो सिसक रही थी। मैंने एक जोरदार धक्का मारा, मेरा आधा लंड उनकी चूत में घुस गया। भाभी चिल्लाई, “हाय मैं मर गई… इतना बड़ा लंड…” मैंने उनके मुँह पर मुँह रखा, उन्हें चूमा, और एक और धक्का मारा। मेरा पूरा लंड उनकी चूत में था।
भाभी तड़प रही थी, “हाय, अनिल, मेरी चूत फट गई। धीरे करो।” लेकिन मैं रुका नहीं। मैंने उनकी चूत में बेरहमी से धक्के मारे। उनकी चूत टाइट थी, मेरा लंड उसमें रगड़ खा रहा था। धीरे-धीरे उनका दर्द कम हुआ, और वो भी गाण्ड उछालने लगी। वो चिल्ला रही थी, “चोदो, अनिल, मेरी चूत फाड़ दो। मुझे अपना माल दो, मुझे माँ बना दो।” मैं और तेज हो गया, मेरे धक्कों से बिस्तर हिल रहा था। मैंने उनकी चूचियाँ दबाई, उनके निप्पल काटे, और उनकी चूत में गहरे धक्के मारे। आधे घंटे तक मैंने उनकी चुदाई की, फिर वो फिर से झड़ गई। उनकी चूत का पानी मेरे लंड को भिगो रहा था।
मैं भी झड़ने वाला था। भाभी ने कहा, “मेरे प्यारे आशिक… अपना माल मेरे अंदर ही छोड़ दो और अपनी भाभी को अपने बच्चे की माँ बना दो।” मैंने और जोर से धक्के मारे, और फिर उनकी चूत में झड़ गया। 5-6 पिचकारी मारी, उनकी चूत भर गई। हम दस मिनट तक वैसे ही लेटे रहे, मेरे लंड का पानी उनकी चूत से टपक रहा था।
लेकिन मेरी हवस अभी बुझी नहीं थी। भाभी ने मेरे लंड को फिर से सहलाया, और बोली, “अनिल, अब मेरी गाण्ड मारो।” मैंने उनकी गोल, टाइट गाण्ड की तरफ देखा। मैंने उनकी गाण्ड पर थूक लगाया, उंगली डाली, और फिर लंड सेट किया। भाभी चिल्लाई, “हाय, धीरे, मेरी गाण्ड फट जाएगी।” मैंने धीरे-धीरे लंड डाला, और फिर जोर से धक्का मारा। भाभी कराह रही थी, “हाय, अनिल, मेरी गाण्ड में आग लग रही है।” मैंने उनकी गाण्ड में धक्के मारे, और वो भी मजे लेने लगी। मैंने उनकी चूचियाँ दबाई, उनकी कमर पकड़ी, और उनकी गाण्ड में गहरे धक्के मारे। आधे घंटे तक उनकी गाण्ड मारी, और फिर उनकी गाण्ड में ही झड़ गया।
उस रात हमने चार बार चुदाई की। हर बार भाभी और मैं नए तरीके से एक-दूसरे को चोदा। एक बार मैंने भाभी को दीवार के सहारे खड़ा करके उनकी चूत मारी, उनकी टाँगें मेरी कमर पर थीं। दूसरी बार भाभी मेरे लंड पर उछल रही थी, उनकी चूचियाँ मेरे मुँह में थीं। सुबह चार बजे हम बाथरूम गए, शावर के नीचे नंगे खड़े होकर फिर से चुदाई की। ठंडा पानी हमारे बदन पर गिर रहा था, और भाभी मेरे लंड को अपनी चूत में ले रही थी। उनकी चूत और गाण्ड दोनों मेरे लंड से थक चुकी थी, पर उनकी आँखों में वही हवस थी।
उसके बाद मैं भाभी को बार-बार चोदता रहा। हमारा रिश्ता गाँव के सन्नाटे में छुपा रहा। आज भाभी का दो साल का बच्चा है, और गाँव वाले उसे मेरे भाई का बेटा समझते हैं। मैं और भाभी अपने राज को दिल में छुपाए जीते हैं।
दोस्तो, ये थी मेरी कहानी। उम्मीद है आपको मजा आया।