बहकती बहू-24

Bahakti bahu – कहानी(Bahkti bahu) का पिछला भाग: बहकती बहू-23

कुछ देर की चुप्पी के बाद मदनलाल ने निर्णायक कदम उठाया। वो मर्द था, और इन मामलों में पहल उसे ही करनी थी। उसने काम्या को अपनी बाहों में कस लिया। उसके होंठ काम्या के रसभरे होंठों से जा टकराए। काम्या ने भी मदनलाल को जकड़ लिया, आखिर कई दिनों से उसकी जवानी प्यासी थी। मदनलाल के हाथ अपने चिरपरिचित अंदाज में काम्या के जिस्म के भूगोल को मापने लगे। वो कभी उसकी चूचियों को मसलता, कभी उसकी मांसल गांड को सहलाता, तो कभी उसकी चिकनी जाँघों पर हाथ फेरता।
ज्यों-ज्यों समय बीतता गया, ससुर-बहू का मिलन और कामुक होता गया। मदनलाल काम्या के हर नाजुक अंग को छू रहा था, और जहाँ जितना दबाव देना था, उतना ही दे रहा था। उसकी हरकतों से काम्या की जवानी में वासना के शोले भड़कने लगे। दोनों धीरे-धीरे बहकते जा रहे थे, मगर दोनों खामोश थे। कब दोनों निर्वस्त्र हो गए, उन्हें पता ही नहीं चला। ऐसा लग रहा था मानो कोई नवविवाहित जोड़ा सुहागरात मना रहा हो। नई दुल्हन अक्सर हिचकती है, थोड़ा ना-नुकुर करती है, मगर काम्या और मदनलाल का रिश्ता पुराना था। वो बाबूजी के इशारों को समझती थी। जैसे ही मदनलाल ने उसका सिर नीचे की ओर किया, काम्या ने बाबूजी की मंशा भाँप ली। उसने उनके तने हुए लंड को अपने गर्म मुँह में ले लिया।
कमरे में फिर से वासना का तूफान मच गया। दोनों भूल गए कि कुछ दिन पहले तक वो किस गम में डूबे थे। मदनलाल की सिसकारियाँ गूँज रही थीं, “आआह… बहू…” जब मदनलाल ज्यादा उत्तेजित हो गया, तो उसने काम्या को चित लिटाया और उसकी टाँगों के बीच आ गया। टाँगों के बीच आते ही मदनलाल का धैर्य जवाब दे गया। उसने बिना वक्त गँवाए अपने 8 इंच के लंड को काम्या की चूत के मुँह पर रखा और धीरे से पुश किया। काम्या के मुँह से कामुक सिसकारी निकल गई, “उउह…” कई दिन बाद उसे खुराक मिल रही थी। मदनलाल ने अगले दो-तीन धक्कों में पूरा लंड जड़ तक ठूँस दिया।
पूरा औजार अंदर जाने के बाद मदनलाल ने एक गहरी साँस ली और अपना इंजन चालू कर दिया। उसका लंड किसी पिस्टन की तरह काम्या की चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। हर स्ट्रोक के साथ काम्या की चूत में आग भड़क रही थी। उसकी जवानी अपने चरम पर थी, और वो नीचे से मदनलाल का साथ देने लगी। मदनलाल जितना जोर लगाता, काम्या उतनी ही ताकत से अपनी गांड उछालती। कमरा ससुर-बहू की साँसों और ठप-ठप की आवाजों से गूँज उठा। मदनलाल ने करीब पाँच मिनट तक काम्या को एक ही आसन में पेला। आज उसने कोई नया प्रयोग नहीं किया, बस मशीन की तरह उसका जिस्म चलता रहा।
फिर उसे एकरसता महसूस हुई। उसने लंड बाहर निकाला और काम्या को घोड़ी बनने को कहा। मगर दवाइयों का असर और कई दिनों की तड़प ने उसके अंडकोषों में उबाल ला दिया। इससे पहले कि काम्या घोड़ी बन पाती, मदनलाल ने एक लंबी साँस के साथ अपना सारा वीर्य काम्या की चूचियों पर उड़ेल दिया। वो कुछ देर तक काम्या के ऊपर पड़ा रहा, फिर चुपचाप उठकर चला गया।
इसके बाद मदनलाल और काम्या के रिश्ते में जोश कम होने लगा। मदनलाल को अब ज्यादा इच्छा नहीं रहती थी, मगर दवाइयों का असर और शारीरिक तनाव उसे काम्या के पास ले जाता। पहले जहाँ वो रोज काम्या के कमरे में जाता था, अब हफ्ते में दो बार, फिर एक बार जाने लगा। मदनलाल का तो इतने में भी काम चल जाता, मगर काम्या की जवानी उसे तड़पाती थी। वो समय के आगे हार मान चुकी थी। “मदनलाल निकेतन” का माहौल शांत हो गया। काम्या फिर माहवारी से हो गई। दो महीने बीत गए, और फिर से वही हुआ। एक रात, जब मदनलाल काम्या के ऊपर से उठकर जाने लगा, तो काम्या बोली, “बाबूजी, हमसे एक बात पूछनी है।”
मदनलाल: कहो, क्या बात है?
काम्या: सुनील का तो समझ आता है, वो इन मामलों में कमजोर है। मगर आप से तो हमें गर्भवती हो जाना चाहिए था ना? फिर भगवान हमारे साथ ऐसा क्यों कर रहा है?
मदनलाल: बहू, मैं इस बारे में क्या कहूँ? हो सकता है, मेरी उम्र की वजह से बीज कम बन रहे हों।
काम्या: तो इसका कोई इलाज तो होगा? आप कुछ लेते क्यों नहीं?
इलाज की बात सुनकर मदनलाल के दिमाग की बत्ती जल गई। अगले दिन वो बाजार से आयुर्वेदिक नुस्खे ले आया—बसंत कुसमाकर रस, मकरध्वज वटी, शुक्र वल्लभ चूर्ण। उसने सारा सामान काम्या के कमरे में रख दिया और बोला, “बहू, हम कई तरह के योग ले आए हैं। अब तुम भी भगवान से प्रार्थना करो कि सब ठीक हो जाए।”
दवाइयों का असर ये हुआ कि मदनलाल की नसों में फिर से जान आ गई। जहाँ उसका इंटरेस्ट खत्म हो रहा था, वहाँ दवाइयाँ उसे काम्या के पास खींच ले जातीं। मगर हफ्ते-दर-हफ्ते बीतते गए, और कोई खुशखबरी नहीं आई। काम्या फिर माहवारी से हो गई। मदनलाल हफ्ते भर से उससे दूर था, और आज जब उसका मूड बन रहा था, तभी एक नई आफत आ गई—कंचन, मदनलाल की इकलौती बेटी।
कंचन अपने दो बच्चों के साथ हफ्ते भर के लिए आई थी। वो शहर में दो घंटे की दूरी पर रहती थी। आते ही उसके बच्चे “मामी-मामी” चिल्लाते हुए काम्या के कमरे में डेरा जमाने लगे। मजबूरन कंचन को भी वहीं रहना पड़ा। अब मदनलाल को एक हफ्ते तक काम्या से दूर रहना था, क्योंकि कंचन तेज-तर्रार और चालू थी। उसने कुंवारेपन में ही करतब दिखाए थे। कंचन के रहते मदनलाल ने काम्या को छुआ तक नहीं।
जिस दिन कंचन अपने घर लौटी, मदनलाल और काम्या का मिलन दो हफ्ते बाद होने वाला था। मदनलाल की उम्र के हिसाब से दो हफ्ते कोई मायने नहीं रखते थे, मगर दवाइयों का असर और बच्चा पैदा करने की चाहत उसे जोश से भर देती थी। लंच के बाद कंचन चली गई, और काम्या का परिवार सोने चला गया। शाम पाँच बजे काम्या उठी। उसका जिस्म मदनलाल की माँग कर रहा था। आज रात उसे हर हाल में बाबूजी चाहिए थे। उसने सजना-संवरना शुरू किया। उसने वो खूबसूरत साड़ी पहनी, जो मदनलाल ने उसकी शादी की सालगिरह पर लाई थी। स्लीवलेस ब्लाउस, गहरा मेकअप, और बन-ठनकर वो कमरे से निकली। वो इतनी सेक्सी लग रही थी, मानो कोई कत्ल की मशीन हो। मदनलाल ने उसे देखते ही साँस रोकी। काम्या ने उसे नशीली नजरों से देखा और किचन की ओर चल दी।
काम्या चाय बना रही थी, तभी मदनलाल बहाने से किचन में आया। वो काम्या के यौवन को आँखों से पी रहा था—उसकी नशीली आँखें, कजरारे गाल, रसभरे होंठ, सुराहीदार गर्दन, संगमरमरी बाहें, डीप-कट ब्लाउस से झाँकती चूचियाँ, बलखाती कमर, और नीचे बंधी साड़ी से शुरू होने वाला नितंबों का उठान। काम्या का शृंगार बता रहा था कि वो मिलन चाहती है। मदनलाल धीरे से आगे बढ़ा और पीछे से उसकी चूचियों को पकड़ लिया। काम्या के मुँह से सिसकारी निकल गई, “आआह…” मदनलाल हल्के-हल्के उन्हें दबाने लगा।
काम्या: बाबूजी, प्लीज जाइए! मम्मी हॉल में बैठी हैं। जो करना है, रात को कर लेना।
मदनलाल: रात को मना तो नहीं करोगी?
काम्या: हमने कब मना किया? आप ही आजकल नहीं आते।
मदनलाल: आज जरूर आएँगे। आज रुकना मुश्किल है।
काम्या: क्यों, आज क्या खास बात है?
मदनलाल: आज तुम आग लगा रही हो। आज तो आना ही पड़ेगा।
काम्या: देखते हैं क्या होता है।
मदनलाल: अरे, आज तो आना ही है। ये वचन है हमारा।
उसने काम्या की गांड को सहलाया और बाहर निकल गया। तीनों ने चाय पी और बातें करने लगे। तभी दरवाजे पर ठक-ठक हुई। काम्या ने दरवाजा खोला, तो बाहर एक छह फुट का हैंडसम युवक खड़ा था। गोरा, चौड़ा सीना, विशाल कंधे, और बाहों में फड़कती मछलियाँ—वो जिम-क्रेजी लग रहा था। उसकी हल्की मूँछें और रोबीला लुक काम्या को अपलक देखने पर मजबूर कर रहा था। युवक भी काम्या को घूर रहा था। उसकी ट्रांसपेरेंट लाल साड़ी में वो किसी हीरोइन सी लग रही थी। उसकी नजरें काम्या के चेहरे से नीचे उसकी चूचियों पर अटक गईं, फिर उसके चिकने पेट और भारी जाँघों पर टिक गईं। काम्या लजा रही थी, मगर उसकी आँखों में नशा था।
अचानक उसे समझ आया कि ये कौन है। उसका चेहरा खुशी से खिल उठा, “सन्नी! तुम सन्नी ही हो ना?”
सन्नी: हाँ, मैं सन्नी ही हूँ।
काम्या: अरे, तो अंदर आओ ना! बाहर क्यों खड़े हो?
सन्नी: अंदर आने को बोलोगी, तभी तो चलूँगा।
काम्या उसे अंदर ले आई और परिचय कराने लगी, “सन्नी, ये मम्मी हैं, और ये पापा।” सन्नी ने दोनों के पैर छुए।
काम्या: मम्मी, आपने इसे पहचाना?
शांति: नहीं, मुझे तो कुछ याद नहीं।
काम्या: पापा, आपने पहचाना?
मदनलाल: नहीं, बहू, मुझे भी कुछ याद नहीं।
काम्या: याद करने की कोशिश कीजिए। आप इसके पापा को जानते हैं। उनके साथ कॉकटेल पार्टी भी हुई थी।
मदनलाल: ऐसा कौन है, जो मुझे याद नहीं?
काम्या: बाबूजी, ये मेरे मामाजी का लड़का है, सन्नी!
मदनलाल: ओह, तो ये यशवंत का लड़का है! अरे, ये तो कितना बड़ा हो गया। शादी के वक्त तो खजूर जैसा दुबला-पतला था।
काम्या: बाबूजी, इसलिए तो मैं भी इसे तुरंत नहीं पहचान पाई।
मदनलाल: अच्छा, बेटा, यशवंत कैसा है? उसकी नेतागिरी कैसी चल रही है? शादी के बाद तो मिलना ही नहीं हुआ।
दरअसल, काम्या की शादी की बात चल रही थी, तब हर बार यशवंत को बुलाया जाता था, और मदनलाल और यशवंत की पियक्कड़ी जमती थी।
सन्नी: पापा बिल्कुल बढ़िया हैं। उन्होंने कहा था कि मेरी तरफ से मेजर साहब को नमस्ते कह देना।
मदनलाल: अरे, बेटा, कैसा मेजर-वेजर? नेताओं के सामने हम कहाँ ठहरते हैं!
काम्या: अच्छा, सन्नी, तू ये बता, अचानक यहाँ कैसे आया?
सन्नी: दीदी, आजकल दुकान की खरीदारी मैं करता हूँ। बुआ के शहर में हड़ताल थी, तो पापा ने यहाँ की मंडी से माल लेने को कहा। बुआ ने आपका पता और नंबर देकर कहा कि दीदी से जरूर मिलना। सुबह से खरीदारी कर रहा था, अब आपके पास आ गया, एक-दो घंटे के लिए।
काम्या: क्या, सन्नी! तू सुबह से यहाँ है, और अब आया?
शांति: अरे, बहू, अब डाँटना छोड़। आ तो गया ना। चल, इसे गेस्ट रूम में ले जा और सामान रखवा। आज इसे लौटने मत देना।
काम्या: नही-नही, आज कैसे लौट पाएगा!
काम्या उसका बैग लेकर चली, और सन्नी उसकी थिरकती गांड को घूरता रहा। कमरे में काम्या सन्नी के लिए बिस्तर तैयार करने लगी। सन्नी उसे ही घूर रहा था। जब वो झुकी, तो साड़ी से उसकी गांड की दरार दिखने लगी। सन्नी की नजरें वहीं चिपक गईं। उसका लंड पैंट में तंबू बना रहा था। काम्या पलटी, तो उसने सन्नी की नजरें और उसका तंबू देख लिया। उसने मुँह फेरते हुए कहा, “सन्नी, तुम आराम करो। मैं चाय लेकर आती हूँ।”
सन्नी: जी, दीदी।
मगर सन्नी को अब कहाँ आराम था! वो बचपन से काम्या को अपने ख्वाबों में देखता था, मगर इतनी गदराई जवानी की कल्पना नहीं की थी। सन्नी 22 साल का जवान था और अपने बाप की तरह लंपट। उसके बाप की जमींदारी की वजह से पैसे की कमी नहीं थी। वो अब तक 22 से ज्यादा औरतों को निपटा चुका था—खेतों की मजदूरनियाँ, मोहल्ले की अतृप्त भाभियाँ, और धंधे वाली औरतें। उनके खेत में बने कमरे उनकी एशगाह थे। मगर काम्या जैसा माल उसने कभी नहीं चखा था। जब तक काम्या किचन में नहीं गई, सन्नी उसकी गांड घूरता रहा।
काम्या को भी पता था कि सन्नी की नजरें उस पर हैं। वो चाय बनाने लगी, मगर उसका दिमाग अटक गया। वो सोचने लगी, “पता नहीं, ये लड़के बड़े होते ही ऐसे क्यों हो जाते हैं? मैं उसकी बहन हूँ, फिर भी मुझ पर फिदा हो रहा है!” फिर उसने अपनी गांड पर हाथ फेरा और बुदबुदाई, “सब कसूर इसका है। ये निगोड़ी सबको पागल बना देती है। जब बाबूजी जैसे बूढ़े नहीं बचे, तो ये कुँवारा क्या संभालेगा!”
चाय लेकर काम्या सन्नी के पास पहुँची। सन्नी चाय पीने लगा, और काम्या वहीं बैठ गई। सन्नी बार-बार उसके जिस्म को घूर रहा था।
काम्या: सन्नी, क्या बात है?
सन्नी: दीदी, कुछ नहीं।
काम्या: फिर ऐसे मुझे घूर क्यों रहा है?
सन्नी: दीदी, साड़ी में आप बहुत हॉट लग रही हो!
काम्या: चुप, बदमाश! अपनी दीदी को हॉट बोलता है।
सन्नी: दीदी, क्या करूँ? जो सच है, वही बोल दिया।
काम्या: चुप कर! तेरी यही आदत है। पहले भी जब मैं पूछती थी, ‘सन्नी, कैसी लग रही हूँ?’ तू कभी नहीं बोला कि सुंदर लग रही हो। हमेशा यही कहता था, ‘दीदी, बहुत हॉट लग रही हो।’
सन्नी: दीदी, मेरी यही आदत है। सच छुपता नहीं।
काम्या: ज्यादा पागल मत बन। ये मेरी ससुराल है। किसी ने सुन लिया कि भाई बहन को हॉट कह रहा है, तो शक करेंगे।
सन्नी: कैसा शक, दीदी?
काम्या: यही कि भाई-बहन के बीच कुछ…
काम्या अचानक चुप हो गई और बाहर चली गई। सन्नी उसकी अधूरी बात से खुश हो गया। बात उसी दिशा में जा रही थी, जहाँ वो ले जाना चाहता था। वो काम्या का दीवाना हो चुका था, मगर उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे कैसे पटाए। काम्या अपने कमरे में गई और खाना बनाने के लिए मैक्सी पहन ली। ये मैक्सी इतनी पारदर्शी थी कि उसकी ब्रा और पैंटी के डिजाइन तक दिख रहे थे। मदनलाल और शांति सामान लेने बाजार गए थे। सन्नी का लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था। वो काम्या की गंध से बावला हो चुका था। काफी देर सोचने के बाद उसने फैसला किया कि रिस्क लेना पड़ेगा। अगर बात बिगड़ गई, तो भविष्य में यहाँ नहीं आएगा। उसे दो बातें प्रोत्साहित कर रही थीं—पहली, हर लड़की अपनी तारीफ सुनना पसंद करती है, और दूसरी, काम्या अपने पति से दूर थी, तो वो विरह की आग में जल रही होगी।
सन्नी कमरे से निकला और किचन में पहुँचा। काम्या मामा-मामी के बारे में बात करने लगी। सन्नी हाँ-हूँ करता रहा, मगर उसकी नजरें काम्या की जाँघों पर टिक गईं। औरतों की गोरी, चिकनी, गदराई जाँघें उसकी कमजोरी थीं। काम्या को भी पता था कि सन्नी की नजरें उस पर हैं, मगर वो सोच रही थी, “हटाओ, बेचारा देखने के अलावा कर भी क्या सकता है?” सन्नी ने चारा फेंका।
सन्नी: दीदी, आप नाराज तो नहीं हैं?
काम्या: किस बात पर?
सन्नी: वो मैंने आपको हॉट कह दिया था।
काम्या: नहीं, भाई, मैं नाराज नहीं हूँ। पर मैं कहाँ से हॉट लगने लगी?
सन्नी: जी, वो आप शादी से पहले स्लिम थीं, पर अब काफी भर गई हैं। इसलिए हॉट लग रही हैं।
सन्नी ने “भर गई” पर जोर दिया।
काम्या: समझ गई, सीधे बोल, मोटी हो गई हूँ।
सन्नी: नहीं, दीदी, मोटी कहाँ हुईं? मोटी क्यों बोलूँ?
काम्या: तो ये भर गई मतलब क्या?
सन्नी: भर गई मतलब, आपका फिगर अब मस्त हो गया है।
काम्या शरमा गई। वो नोट कर रही थी कि सन्नी की पैंट में तंबू अभी भी बना हुआ था। पता नहीं क्या नशा चढ़ा कि वो बिना सोचे बोल पड़ी, “चल, पगले, कुछ भी बोलता रहता है। बता, कहाँ से भर गई हूँ?”
सन्नी को ऐसा मौका चाहिए था। वो जानता था कि इस उम्र की लड़की को मर्द का स्पर्श गनगना देता है। वो एक कदम आगे बढ़ा और काम्या की गांड पर हाथ फेरते हुए बोला, “देखो, दीदी, यहाँ कितना मस्त फिगर बन गया है।” सन्नी पूरा कमीना था। अपनी बहन की गांड सहलाते हुए भी दीदी बोल रहा था। काम्या के जिस्म में झुरझुरी दौड़ गई। सन्नी ने उस कंपन को महसूस किया।
काम्या: चल, हट, झूठे! कुछ नहीं भरा, वो पहले भी ऐसे ही थे।
सन्नी ने देखा कि काम्या की साँसें तेज हो गई हैं, और वो नॉर्मल बनने की कोशिश कर रही है। उसने हिम्मत करके अपना हाथ नीचे उसकी जाँघों पर रख दिया और सहलाते हुए बोला, “दीदी, सच बोल रहा हूँ। आपकी थाइस भी भर गई हैं। बेट लगा सकता हूँ, अब आपकी पुरानी जीन्स फिट नहीं होगी।”
सन्नी को अचानक पुरानी बात याद आ गई। कई साल पहले, जब वो दसवीं में था, काम्या उसके पास टॉप और अल्ट्रा-शॉर्ट जीन्स में आई थी। उसकी जाँघें दो-तिहाई बाहर थीं। काम्या उसे बच्चा समझती थी। उसने पूछा था, “भाई, कैसी लग रही हूँ?” और सन्नी ने कहा था, “दीदी, बड़ी हॉट लग रही हो!”
काम्या की जाँघ पर हाथ लगते ही वो काँपने लगी। सन्नी ने अब अंदरूनी जाँघ पर हाथ फिराना शुरू किया। काम्या को डर था कि अगर सन्नी का हाथ और ऊपर गया, तो उसे गीलापन महसूस हो जाएगा। उसने कहा, “सन्नी, हाथ हटा, गुदगुदी लग रही है।” सन्नी ने जाँघ से हाथ हटाकर फिर उसकी चूचियों पर रख दिया और सहलाने लगा। दोनों इधर-उधर की बातें करने लगे। सन्नी ने काम्या की पैंटी की लाइनिंग में उंगली फिरानी शुरू की, बीच-बीच में इलास्टिक उठा देता। काम्या को लगा कि अगर वो ऐसे ही सहलाता रहा, तो वो झड़ जाएगी। उसने कहा, “सन्नी, वहीं पर पकड़े रहेगा क्या? जितना भर गई हूँ, उतना निकालने का इरादा है?”
सन्नी ने हाथ हटाकर उसकी नंगी कमर पर रख दिया। उसकी चिकनी त्वचा सन्नी को मदहोश कर रही थी। काम्या ने पूछा, “एक बात पूछूँ?”
सन्नी: बोलो, दीदी।
काम्या: तेरी कोई गर्लफ्रेंड है?
सन्नी: नहीं, दीदी, कोई नहीं।
काम्या: सन्नी, झूठ मत बोल।
सन्नी: दीदी, सच कह रहा हूँ।
काम्या क्या जानती थी कि सन्नी गर्लफ्रेंड नहीं, फक-फ्रेंड बनाता था।
काम्या: मैं नहीं मानती। तेरी बातों से पक्का है कि तेरी कोई जीएफ होगी।
सन्नी: क्यों, मैंने ऐसी कौन सी बात की?
काम्या: ये जो तू हॉट और मस्त फिगर वाली बात कर रहा था। ये सब तेरी उम्र के लड़के तभी सीखते हैं, जब उनकी कोई लड़की से दोस्ती हो।
सन्नी: दीदी, आपको तो मालूम है, छोटे कस्बों में गर्लफ्रेंड मिलना मुश्किल है।
काम्या: रहने दे, आजकल गाँव की लड़कियाँ ज्यादा आगे निकल गई हैं। पक्का तेरी कोई गर्लफ्रेंड होगी, जिसने तुझे ये सब सिखाया।
इसी दौरान सन्नी ने अपना हाथ काम्या के पेट पर रख दिया और उंगलियाँ ऐसे चलाने लगा जैसे हारमोनियम बजा रहा हो।
काम्या: सन्नी, सच बता! मुझसे शर्मा क्यों रहा है? मैं तुझे डाँटने थोड़े जा रही हूँ।
सन्नी: दीदी, सच कह रहा हूँ। मैं लड़कियों से बात ही नहीं करता। बस आप हो, जिनसे मैं बात करता था।
काम्या: झूठ बोल रहा है ना?
सन्नी: नहीं, दीदी। बल्कि मुझे तो लगता है कि…
काम्या: क्या लगता है?
सन्नी: आप ही मेरी दीदी भी हो, और मेरी गर्लफ्रेंड भी।
काम्या: क्या, सन्नी! तू पागल हो गया है? मैं तेरी बहन हूँ!
सन्नी: तो क्या हुआ? गर्लफ्रेंड तो बस इंग्लिश नाम है। जैसे लड़का दोस्त हो, तो फ्रेंड, और लड़की दोस्त हो, तो गर्लफ्रेंड। क्या आप मेरी दोस्त नहीं हो सकती?
काम्या सोच में पड़ गई। क्या सन्नी को गर्लफ्रेंड का मतलब नहीं पता? क्या वो सचमुच इतना सीधा है? लेकिन इतना जवान होकर ऐसा कैसे हो सकता है? वो सोचने लगी, “लगता है, जिम-अखाड़े ने इसका दिमाग भट कर दिया। इसे नहीं पता कि फ्रेंड और गर्लफ्रेंड में फर्क होता है।” तभी सन्नी ने उसे पीछे से बाहों में कस लिया और उसके कान के पास जीभ लाकर बोला, “बोलो ना, दीदी, बनोगी ना मेरी गर्लफ्रेंड?”
काम्या: ठीक है, बनूँगी। मगर किसी और को मत कहना।
सन्नी ने खुश होने का नाटक किया और उसे जोर से भींच लिया। उसके हाथ काम्या की चूचियों के करीब पहुँच गए। काम्या घबरा गई और पीछे हटी, तो सन्नी का तना हुआ लंड उसकी गांड की दरार में धँस गया। काम्या का जिस्म पसीने से तर हो गया। तभी गेट खुलने की आवाज आई। उसने खुद को छुड़ाया और बोली, “चल, तू जा यहाँ से, और मुझे खाना बनाने दे।” सन्नी वक्त की नजाकत समझकर अपने रूम में चला गया।
शांति हॉल में बैठ गई, और मदनलाल सामान लेकर किचन में आया। काम्या को पारदर्शी मैक्सी में देखकर उसका खून खौलने लगा। वो समझ गया कि बहू हीट में है। वो सोचने लगा, “पहले सेक्सी साड़ी, और अब ये अधनंगी मैक्सी। आज रात इसकी गर्मी शांत करनी पड़ेगी, वरना कल ये नंगी ही घूमने लगेगी।” उसने थैला रखा और काम्या की गांड पर हाथ फेरते हुए बोला, “क्या बात है, जान? आज कुछ ज्यादा उतावली हो?”
काम्या: क्या मतलब? हम समझे नहीं।
मदनलाल: ये क्या पहनी है? सब कुछ दिख रहा है। छुप तो कुछ नहीं रहा। लगता है, आज कुछ करना पड़ेगा।
काम्या: चुप रहिए और जाइए। घर में कई लोग हैं, समझे!
मदनलाल: ठीक है, जा रहे हैं।
जाते-जाते उसने काम्या की गांड में उंगली डाल दी। काम्या के मुँह से सिसकारी निकल गई, “आआह…”

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