बैगन से शांत नहीं हुई तो भाई से चूत चुदवाई

मैं, अनन्या शर्मा, 24 साल की हूँ, एम.ए. की पढ़ाई कर रही हूँ। मेरी चूत में हमेशा एक अजीब सी खुजली रहती है, ऐसा लगता है जैसे कोई लंड ही इसे शांत कर सकता है। पहले मैं बैगन से अपनी आग बुझा लेती थी, लेकिन अब वो भी काम नहीं करता। अब मेरे छोटे भाई गीतेश ने मेरी इस आग को बुझाने का जिम्मा लिया है। कैसे? वो मैं आपको पूरी कहानी बताती हूँ। आप दिल थामकर और लंड हाथ में लेकर पढ़िए, क्योंकि ये कहानी है ही इतनी गर्म।

एक दिन की बात है, मम्मी-पापा किसी शादी में गए थे। घर में सिर्फ चार लोग हैं—मैं, मेरा भाई गीतेश, मम्मी और पापा। उस रात सिर्फ मैं और गीतेश घर पर थे। हमने खाना खाया और अपने-अपने कमरे में सोने चले गए। मेरा और गीतेश का कमरा अलग-अलग है। मेरी एक आदत है, या कहें तो बीमारी—जब तक मैं आधा घंटा अपने बूब्स को न दबाऊँ, अपनी चूत में उंगली न करूँ और उसे पानी-पानी न कर दूँ, मुझे नींद ही नहीं आती। उस रात मैं बहुत कामुक हो गई थी। मेरी चूत में खुजली इतनी थी कि मैं बेचैन हो रही थी। मैंने धीरे-धीरे अपनी चूत को सहलाना शुरू किया, लेकिन बेचैनी और बढ़ती गई। “आह… उह…” मेरे मुँह से हल्की-हल्की सिसकारियाँ निकलने लगीं।

मैं उठी और रसोई में गई। वहाँ एक बैगन पड़ा था। मैंने सोचा, “बस, यही मेरी आग बुझाएगा।” मैंने बैगन लिया और अपनी चूत में धीरे-धीरे घुसाने की कोशिश की। “आह… हाँ…” मैंने आँखें बंद कर लीं, लेकिन तभी किस्मत ने धोखा दिया। बैगन टूट गया, दो टुकड़े हो गए। मैं गुस्से और निराशा से भर गई। रात के 12 बज चुके थे। मेरी चूत में आग लगी थी, और मैं चुदने के लिए तड़प रही थी। मैंने सब कुछ आज़मा लिया, लेकिन कुछ काम नहीं आया।

बेचैनी में मैं गीतेश के कमरे में चली गई। वो गहरी नींद में था, सिर्फ जाँघिया पहने हुए। मैंने हल्के से पुकारा, “गीतेश… गीतेश…” वो हड़बड़ाकर उठा और बोला, “दीदी? आप? इस वक्त?” उसकी आँखें नींद से भारी थीं, लेकिन मेरी हालत देखकर वो चौंक गया। मैं काँपते हुए बोली, “हाँ गीतेश, मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा।” वो घबराकर बोला, “क्या हुआ दीदी? तबीयत खराब है?” मैंने धीरे से कहा, “हाँ, एक अजीब सी बीमारी है।” वो बोला, “चलो, डॉक्टर के पास चलते हैं।” मैंने हिम्मत जुटाकर कहा, “नहीं गीतेश, ये डॉक्टर नहीं, सिर्फ तू ही ठीक कर सकता है।” वो हैरान होकर बोला, “मैं? कैसे दीदी? बताओ ना, क्या मदद करूँ?”

इसे भी पढ़ें   मेरी चुचियों पर पडोसी भैया का कब्ज़ा हो गया

मैंने होंठ काटते हुए, धीरे से कहा, “क्या… क्या तू मेरा दूध पी सकता है?” गीतेश का मुँह खुला रह गया। वो बोला, “दूध? आपका? मतलब?” मैंने कहा, “हाँ, मेरा दूध। मुझे नहीं पता क्या हो गया है, लेकिन अगर तूने मेरी मदद नहीं की तो मैं पागल हो जाऊँगी।” वो चुप हो गया, मुझे घूरने लगा। मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। मैं डर रही थी कि कहीं वो मना कर दे, या मम्मी को बता दे। मैंने सोचा, अगर ऐसा हुआ तो मैं जीते जी मर जाऊँगी। डर के मारे मैं अपने कमरे में भाग आई।

लेकिन मेरी चूत की आग मुझे चैन से बैठने नहीं दे रही थी। मैं फिर से गीतेश के कमरे में गई। इस बार मैंने सीधे पूछा, “बता, तूने क्या सोचा?” गीतेश ने धीरे से कहा, “दीदी, अगर किसी को पता चल गया तो?” मैं समझ गई कि उसका मन तो कर रहा है, बस डर रहा है। मैंने कहा, “अरे, मैं किसी को नहीं बताऊँगी, तू भी मत बताना। किसी को कैसे पता चलेगा?” वो थोड़ा हिचकिचाया, फिर बोला, “ठीक है, दीदी।”

इतना सुनते ही मेरे अंदर की आग और भड़क गई। मैंने धीरे-धीरे अपनी नाइटी उतारी। अब मैं सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी। मेरी जवानी चुदने के लिए तड़प रही थी। गीतेश ने तौलिया लपेट रखा था, लेकिन मैंने देखा कि उसका लंड जाँघिया में तनकर फनफना रहा था। मैं उसके पलंग पर बैठ गई और धीरे से अपनी ब्रा का हुक खोल दिया। मेरी 36 साइज़ की चूचियाँ आज़ाद होकर हवा में लहराने लगीं। मैंने गीतेश को पास बुलाया और अपनी एक चूची उसके मुँह में दे दी। वो हल्का सा काँप रहा था। मैंने कहा, “पी ले मेरे भाई, अपनी बहन का दूध पी ले।”

गीतेश ने धीरे से मेरी चूची को मुँह में लिया और चूसने लगा। “आह…” मैं सिसकारी। उसका एक हाथ मेरी दूसरी चूची को दबाने लगा। मैंने उसके बालों में उंगलियाँ फिराते हुए पूछा, “कुछ निकल रहा है, मेरे भाई?” वो हँसकर बोला, “नहीं दीदी, आज तो कुछ नहीं निकल रहा। लेकिन कोई बात नहीं, 9 महीने बाद ज़रूर निकलेगा।” मैं हँस पड़ी और बोली, “तू तो बड़ा हरामी है! तू तो समझ गया कि मैं क्या चाहती हूँ।”

इसे भी पढ़ें   आंटी ने अपनी चूत बजवाई जवान लड़के से

वो बोला, “दीदी, मैं तो रोज़ छुपकर देखता हूँ। जब आप अपनी चूत में उंगली डालकर गाँड उठा-उठाकर ‘आह… आह…’ करती हो, मैं आपको देखकर मूठ मारता हूँ।” मैं हैरान रह गई। सोचा, “अरे, ये तो पहले से मेरे पीछे पड़ा था। मुझे तो पहले ही ये सब कर लेना चाहिए था।” मैंने कहा, “अब देर मत कर, गीतेश।” मैं बिस्तर पर लेट गई। उसने धीरे से मेरी पैंटी उतारी और मेरी चूत को देखकर बोला, “दीदी, ये क्या! बैगन से तुमने अपनी चूत का क्या हाल कर दिया! लेकिन अंदर से कितनी पिंक और रसीली लग रही है।”

मैंने कहा, “अब और मत तड़पा। चाट डाल अपनी बहन की चूत को।” वो मेरी चूत पर टूट पड़ा। उसकी जीभ मेरी चूत के दाने को चाट रही थी। “आआह… उउह… गीतेश… हाँ…” मैं सिसकारियाँ ले रही थी। मैंने कहा, “रुक, 69 की पोजीशन में आ। मैं भी तेरा लंड चूसना चाहती हूँ।” हम दोनों 69 में आ गए। मैंने उसका लंड मुँह में लिया। उसका 7 इंच का लंड मेरे मुँह में फनफना रहा था। “उम्म… ह्म्म…” मैं उसके लंड को चूस रही थी, और वो मेरी चूत को चाट रहा था। “चप… चप…” मेरी चूत बार-बार पानी छोड़ रही थी, और गीतेश उसे पी रहा था।

मेरी चूत की खुजली अब और बढ़ गई। मैंने कहा, “गीतेश, अब और नहीं। अपनी बहन की चूत को लंड दे दे।” वो बोला, “दीदी, तुम इतनी गंदी बातें कैसे करती हो? तुम्हारी चूत देखकर मेरा लंड तो फटने को तैयार है।” मैंने कहा, “तो फाड़ दे मेरी चूत को, भाई। आज अपनी बहन को चोदकर उसकी आग बुझा दे।”

उसने अपना लंड मेरी चूत के मुँह पर रखा। मैंने अपनी टाँगें फैलाईं। वो धीरे-धीरे लंड को मेरी चूत में घुसाने लगा। “आआह्ह… उउह्ह…” मैं चिल्लाई। उसका लंड मेरी टाइट चूत में धीरे-धीरे समा रहा था। “दीदी, तुम्हारी चूत कितनी टाइट है… आह…” वो बोला। मैंने कहा, “हाँ भाई, और अंदर डाल… पूरी चूत भर दे… आआह्ह…” वो ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगा। “चटाक… चटाक… फच… फच…” मेरी चूत और उसके लंड की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी।

इसे भी पढ़ें   आंटी की 40 इंच की गाँड

मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया। उसकी छाती मेरी चूचियों से चिपक गई थी। मैं चिल्ला रही थी, “आआह… गीतेश… और ज़ोर से… मेरी चूत को फाड़ दे… ऊऊह्ह…” वो बोला, “दीदी, तुम्हारी चूत इतनी गर्म है… मज़ा आ रहा है… आह…” हम दोनों पसीने से तर थे। मैं बार-बार पानी छोड़ रही थी। “फच… फच… चट… चट…” उसका लंड मेरी चूत को चोद रहा था। करीब एक घंटे तक वो मुझे चोदता रहा। मैं सिसकारियाँ ले रही थी, “आआह्ह… उउह्ह… हाँ भाई… चोद मुझे… और ज़ोर से…”

आखिरकार उसने कहा, “दीदी, मेरा निकलने वाला है।” मैंने कहा, “अंदर मत छोड़ना, बाहर निकाल दे।” उसने लंड बाहर निकाला और मेरे पेट पर सारा माल छोड़ दिया। मैं हाँफ रही थी, मेरी चूत की आग आखिरकार शांत हो गई थी।

उस रात के बाद 8 महीने बीत चुके हैं। अब हम रोज़ चुदाई करते हैं। मम्मी-पापा नीचे सोते हैं, और ऊपर के दोनों कमरे हमारे हैं। लेकिन रात हम एक ही कमरे में बिताते हैं।

क्या आपको मेरी, Bhai bahan की ये इन्सेस्ट चुदाई की कहानी पसंद आई? नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए कि आपको सबसे ज़्यादा क्या मज़ा आया और अगली बार कैसी कहानी पढ़ना चाहेंगे!

Related Posts

Report this post

Leave a Comment