पहले मम्मी को, फिर बहन को अपनी पत्नी बनाया (Full Pariwar/Family Sex)

हाय, मेरा नाम राज है और आज मैं अपनी एक कहानी आपके सामने लेकर आया हूँ।
जब मैं जवान हुआ, तब से ही मेरे अंदर ना जाने कैसा जोश उमड़ आया। हमेशा मेरा मन करता था कि कोई सुंदर सी लड़की का साथ मिले, उसके साथ बातचीत हो, उसके संग रहने का मौका मिले। पर शायद ये मेरे नसीब में नहीं लिखा था। मैंने बहुत कोशिश की कि कोई लड़की पट जाए, किसी के साथ तो चक्कर चल जाए, पर ऐसा हो ना सका। जब भी किसी से बात करता था, तो वो किसी ना किसी कारण से मुझे नापसंद कर देती थी। मेरे अंदर शारीरिक तौर पर कुछ भी ऐसा नहीं था, जिस पर लड़कियाँ मरती हों। मैं एक बिल्कुल सीधा-सादा सा लड़का था। एकदम मामूली। ना तो मेरे पास बहुत सारे पैसे थे, ना ही कोई और प्रतिभा थी, जिस कारण कोई मुझ पर मर मिटती। ना ही मेरा भाग्य हमेशा मेरा साथ देता था।

पर कहते हैं ना कि हर किसी के दिन ज़रूर आते हैं। हर एक को मौका मिलता है, भले ही वो एक बार ही मिले। कुदरत कभी इतना निष्ठुर नहीं होता कि आपको कुछ भी ना दे, और वो चीज़ तो वो और नहीं छीन सकता, जिसकी चाहत आपको अपने जीवन में सबसे ज्यादा हो। किसी को पैसे की चाह होती है, किसी को खाने की, किसी को घूमने की, किसी को पावर की, तो किसी को प्रतिष्ठा की और किसी को काम की। मेरी भी एक ही चाहत थी, जिसका मैं भूखा-प्यासा था। उसकी चाहत ने मुझे पागल कर दिया था। और शायद यही पागलपन था, जिसने मेरे लिए एक करिश्मा कर दिया। मैं जो चाहता था, वो मुझे मिल गया। और वो मुझे इतना मिला कि मेरी वो चाहत इस तरह से पूरी हुई, जैसे कि मेरी पूरी जिंदगी ही धन्य हो गई। मैं अपनी जिंदगी में उसे पाकर सब कुछ जैसे पा लिया हो, ऐसा महसूस करने लगा। सुख, शांति, समृद्धि, सब कुछ का मैं स्वामी बन गया। क्या गज़ब का पलटा खाया था मेरे भाग्य ने, जिसने मुझे लकीर का फ़कीर से अपनी दुनिया का बादशाह बना दिया था।

मेरी आपबीती, जो आज आपके सामने मैं रख रहा हूँ, वो गज़ब की है। एकदम अकल्पनीय। और ये एकदम मेरी असल जिंदगी में घटने वाली दास्तान है। तो सुनिए मेरी जीवन गाथा। उस समय मैं ग्रेजुएशन ख़त्म कर चुका था। पढ़ाई में दिल ना लगने के कारण मुझे ना तो कोई नौकरी मिल पाई, ना ही कहीं मास्टर्स में एडमिशन हो पाया। मैं अब घर पर बैठ सा गया था। दिन भर बस समय काटने के उपाय खोजता रहता था। कभी-कभी मैगज़ीन या न्यूज़पेपर पढ़ लिया करता था।

दिवाली नज़दीक थी। बाज़ार में हर तरह की चीज़ें मिलने लगी थीं। बाज़ार बस चीज़ों से भर गया था। एक दिन मैं अपने एक दोस्त के साथ घूमने निकला। मुझे घर के लिए कुछ सामान भी लेना था। मैं और मेरा दोस्त सामान लेकर घर लौटने लगे, तो मेरे दोस्त का उसके घर से फोन आ गया। वो मुझे सामान देकर घर चला गया। मैं भी अपने घर को हो लिया। रास्ते में घूमते-फिरते मैं घर आ रहा था कि मेरी नज़र एक स्टॉल पर पड़ी। वो स्टॉल लॉटरी का था। धनतेरस का दिन था, शायद इसलिए ये स्टॉल भी लगा था। मैं ना चाहते हुए भी उस स्टॉल के पास चला गया। स्टॉल वाला चिल्ला-चिल्ला के कह रहा था कि किस्मत बदलने का मौका है ये लॉटरी, एक खरीदो और भर लो दौलत से अपनी कोठारी। राह चलते हुए लोग वहाँ आ रहे थे। लोग लॉटरी वाले की बातों को सुनते। कुछ उससे प्रभावित होकर एक-दो लॉटरी खरीद कर ले भी जा रहे थे। पर अधिकतर लोग देखकर ही वापस लौट जाते थे। मैं वहाँ दस-पाँच मिनट तक खड़ा रहा और सब कुछ सुनता रहा। लॉटरी वाला कहने लगा कि साहब, एक लॉटरी ले लो, दुनिया बदल जाएगी। एक बार अपने भाग्य को आज़मा लो। तो मैं मन ही मन सोचने लगा कि आज तक तो यही भाग्य आज़माता आया हूँ। 15 सालों में तो कभी भी मेरे भाग्य ने मेरे लिए कुछ भी नहीं किया। मैं चलने को हुआ, तो लॉटरी वाले ने एक लॉटरी मुझे देते हुए कहा कि रख लो, कौन जाने लग ही जाए। मैंने कहा कि मेरे पास इसके लिए पैसे नहीं हैं। तो वो कहने लगा कि जो चाहे वो दे दो, धंधा बहुत ही मंदा चल रहा है। तो मैंने उसे जेब से एक 20 का नोट थमा दिया। अब 20 के नोट की जगह वो लॉटरी थी मेरे जेब में।

घर पहुँचकर मैंने सारा सामान माँ को दे दिया। माँ सामान लेकर अपना काम करने लगीं। मेरी माँ का नाम रति है। वो एक आम भारतीय नारी की तरह ही थीं। उम्र लगभग 45 होगी उनकी। मेरे पिताजी लगभग 5 साल पहले ही एक बस एक्सीडेंट में गुज़र चुके थे। तब से माँ ही घर संभालती आ रही थीं। पापा की जगह पर माँ को नौकरी मिल गई। उसी सरकारी ऑफिस में, जहाँ पापा काम करते थे। सैलरी ज़्यादा नहीं थी, पर माँ बखूबी घर चला लेती थीं। सामान देकर मैं अपने भाई-बहन के पास चला गया और उनसे बातें करने लगा। मेरा भाई मुझसे 5 साल छोटा था और बहन 8 साल छोटी थी। मैं लगभग 23 का था उस वक्त।

दिवाली हमने बहुत अच्छे से मनाई। ज़्यादा पैसे ना होने पर भी हमने सब कुछ खरीदा, भले ही थोड़ा सा ही खरीदा हो। दो-तीन तरह की मिठाई, भाई-बहन के लिए कपड़े और माँ के लिए एक अच्छी सी साड़ी खरीदी थी हमने। जीवन ठीक से बीत रहा था। दिवाली को बीते 10 दिन ही हुए थे कि एक दिन अखबार पढ़ते हुए एक विज्ञापन पर मेरी नज़र चली गई। वो किसी लॉटरी का ही विज्ञापन था। गौर से देखने पर मालूम हुआ कि ये तो मेरी लॉटरी का ही रिजल्ट था। मैं उत्सुकता वश लॉटरी ढूँढने लगा। कुछ वक्त बाद लौटा, तो लॉटरी का नंबर मिलाया मैंने। अखबार में जो नंबर था, वही नंबर मेरी लॉटरी का भी था। मेरी लॉटरी को बम्पर प्राइज़ मिला था, जो कि पूरे 5 करोड़ का था। मुझे लगा कि सच में मेरा भाग्य आज चमक गया है। लॉटरी वाले की बात सच साबित हो गई थी।

मैंने झट से लॉटरी वाले ऑफिस में फोन करके पता किया। लॉटरी वालों ने 5 दिन बाद अपने दफ्तर में ही इनाम देने की बात कही। शाम को घर में जब माँ आ गईं, तो मैंने उन्हें ये बात बता दी। सब लोग खुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे। 5 दिन बाद मैं और मेरी माँ लॉटरी के ऑफिस इनाम की रकम लेने गए। उन्होंने हमें बहुत सम्मानित किया। मेरी तरह और भी विजेता लोग आए हुए थे। सभी को उनका इनाम दे दिया गया। मेरी माँ को इनाम का चेक दिया गया। वो बहुत खुश हुईं और मुझे गले लगा लिया। फिर कहने लगीं कि आज तुमने, राज, ये साबित कर दिया कि तुम असफल नहीं हुए हो मेरे बेटे, मेरे जिगर के टुकड़े। तूने अपनी माँ को इतनी खुशी दी है कि मत पूछ। बोल मेरे लाल, तेरे लिए मैं क्या करूँ, जिससे तुझे खुशी मिले। मैंने कहा, छोड़ो ना माँ इन नाटकों को। अगर तुम खुश हो, तो मुझे और कुछ नहीं चाहिए। तुम्हारी खुशी ही मेरी खुशी है। मेरी माँ की नज़रों में मेरी इज़्ज़त बढ़ गई थी। हम घर आ गए। मैंने चेक को माँ के बैंक अकाउंट में जमा करवा दिया। और फिर हमारी जिंदगी बदल गई।

मैंने माँ का काम बंद करवा दिया। मैंने उन्हें रिटायरमेंट दिलवा दी। अपने भाई को एक बहुत ही अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिट करवा दिया, जो कि चेन्नई में था। बहन को एक नामी बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया। अब घर पर मैं और माँ रह गए। मैंने अपने लिए एक बहुत ही बढ़िया सा डिपार्टमेंटल स्टोर खोल लिया और मन लगाकर काम करने लगा। मैं चाहता था कि माँ बस आराम करें। उन्हें किसी प्रकार की कोई तकलीफ ना हो। और अब माँ चाहती थीं कि मेरी शादी हो जाए। पर मैं अभी शादी करना नहीं चाहता था, क्योंकि मुझे अब अपना बिजनेस अच्छी तरह से स्थापित करने का भूत सवार हो गया था। ऐसा नहीं था कि मेरी काम भावना मर गई थी, पर मैं अब उस ओर कम ध्यान देने लगा था। मेरा पूरा फोकस अब बिजनेस पर आ गया था। इसलिए मैंने माँ से कह दिया कि मुझे अभी काम कर लेने दो, शादी तो हो ही जाएगी। माँ मेरी काफी पढ़ी-लिखी समझदार स्त्री थीं। उन्होंने मुझ पर अधिक दबाव डालना उचित नहीं समझा।

इसी तरह से एक साल बीत गया। भाई-बहन अच्छी तरह से पढ़ रहे थे। मैं भी अपने काम में तरक्की कर रहा था। मेरा काम बढ़ गया था, सो मैंने एक कंप्यूटर ले लिया, साथ में नेट कनेक्शन भी। और दो लोगों को भी काम पर रख लिया। अब मुझे कम काम करना पड़ता था। उन दिनों मैं इंटरनेट में मशगूल हो गया। एक दिन यूँ ही कुछ सर्च कर रहा था कि मुझे अश्लील वेबसाइटों के बारे में पता चला। मैंने एक साइट खोली। वहाँ पर हर तरह की सेक्सी कहानी थी। एक कहानी का टाइटल था “माँ और बेटा”। मैं उत्सुकता वश उस टाइटल पर क्लिक किया, तो कहानी का पेज खुल गया। मैंने पूरी कहानी ध्यान से पढ़ी। उसमें लिखा था कि कैसे एक 17-18 साल के लड़के ने अपनी माँ के साथ सेक्स किया। उस कहानी को पढ़कर मुझे बड़ा अजीब भी लगा और मज़ा भी आया। मैं सोचने लगा कि ये कैसे हो सकता है। एक माँ अपने बेटे को अपना सब कुछ कैसे सौंप सकती है। मैंने आज तक ना तो कहीं ऐसा पढ़ा था और ना ही इसके बारे में सुना था। फिर मैंने सोचा कि इस संसार में ही तो सब कुछ होता है। ये भी हो ही सकता है। उस कहानी को पढ़कर मेरे अंदर कुछ अजीब हलचल हुई, जैसे कोई अनोखी अनुभूति हुई हो मुझे। उस कहानी को पढ़कर रिश्तों के प्रति मेरा नज़रिया ही बदल गया। मैंने जिज्ञासा वश ऐसी और ढेरों कहानियाँ पढ़ीं, जिनमें रिश्तेदारों के बीच सेक्स संबंधों का वर्णन था। अब मैं पूरी तरह से उत्तेजना से भर चुका था। उन कहानियों को पढ़कर, उनके बारे में कल्पना करके मेरा लिंग भी खड़ा हो गया।

शाम को जब मैं घर लौटा, तो भी मेरा मूड सेक्स से भरा हुआ था। उस पर मैं हमेशा सेक्स के बारे में ही सोचा करता था, जिसका स्वाद मैंने आज तक नहीं लिया था। मैं पूरी तरह से उत्तेजना में डूबा हुआ था। घर में मैंने किसी तरह अपनी उत्तेजना को काबू में किया। फ्रेश होकर कुछ देर आराम किया। तब चाय लेकर माँ कमरे में आ गईं। मैंने माँ को देखा, तो मेरा नज़रिया बदल गया उन्हें देखने का। मैंने आज माँ को माँ की तरह नहीं, बल्कि एक औरत की तरह देखा था। देखने में वो बुरी नहीं लगती थीं। बस उनके कुछ बाल सफेद हो गए थे और चेहरे पर थोड़ी झुर्रियाँ आ गई थीं। वो चाय देकर सामने कुर्सी पर बैठ गईं। मैं शांत रहा और चाय पीने लगा। चाय की चुस्की लेकर मैं माँ के शरीर का निरीक्षण करने लगा। मैंने देखा कि वो अभी भी अपनी उम्र से कम ही लगती थीं। जब मैंने गौर से देखा, तो पाया कि उनके वक्ष बहुत छोटे से, सूखे से और लटके हुए थे। मैं उन्हें देखकर सोचने लगा कि अगर मेरी माँ जवान होतीं, तो मैं उन्हें पटा सकता था, फिर उनके साथ सुख पा सकता था। पर मुझे लगा कि ऐसा संभव नहीं हो पाएगा। मेरी आशाओं पर पानी फिर रहा था। मैंने सोचना बंद कर दिया।

अगले दिन मैं जल्दी स्टोर पर चला गया। आज भी मैं उन सेक्सी कहानियों को पढ़ने लगा। कुछ देर एक-आध कहानी पढ़ने के बाद मुझे एक ऐसी कहानी मिली, जिसने मेरी आशाओं को फिर से ज़िंदा कर दिया। ये कहानी भी एक माँ-बेटे की ही थी। इस कहानी में माँ-बेटे की परिस्थिति भी हम माँ-बेटे जैसी ही थी। पर बेटे ने बड़ी बुद्धिमानी से रास्ता निकाला था और अपनी माँ के साथ संबंध स्थापित किया था। उस लड़के की माँ भी मेरी माँ जैसी ही थी। उस औरत के स्तन भी मेरी माँ की तरह ही छोटे और लटके से थे। वो भी पूरी प्रौढ़ थी। पर उसके बेटे ने अपनी माँ का इलाज किसी नामी सेक्सोलॉजिस्ट से कराकर अपनी माँ को यौवन प्राप्त करवाया था, फिर माँ को पटाकर, उनके अंदर कामुक भावनाएँ पैदा करके उनके साथ विषय सुख प्राप्त किया था। इस कहानी को पढ़कर मुझे भी रास्ता दिखने लगा था। मैंने भी नेट पर पता किया कि दुनिया का सबसे अच्छा सेक्सोलॉजिस्ट कौन है और क्या वो दोबारा किसी औरत को फिर से जवानी दिलवा सकता है। गूगल पर खोजने पर पता चला कि यूएसए में ऐसे बहुत से डॉक्टर हैं, जो बूढ़े लोगों को नई जवानी, नया जीवन और नई सेक्स लाइफ प्रदान करवाते हैं। ऐसे ही एक डॉक्टर के क्लिनिक पर फोन करके मैंने पता किया। उन्होंने आश्वासन दिया कि ऐसा हो सकता है और वो भी 100 फीसदी। मैंने सोच लिया कि मैं माँ को यूएसए ले जाऊँगा और उन्हें नया यौवन ज़रूर दिलवाऊँगा।

काम ख़त्म करके मैं घर आ गया और मैंने माँ से बात की कि हमें अमेरिका चलना है उनके इलाज के लिए। तो माँ कहने लगीं कि उन्हें क्या बीमारी है? भली-चंगी तो हैं वो। फिर क्यों जाना अमेरिका बिना बात के। मैंने माँ को समझाया कि उनकी उम्र बहुत हो गई है और स्वस्थ रहने के लिए उनका ऑपरेशन या फिर डॉक्टरी सलाह बहुत ज़रूरी है। मैंने ये भी कहा कि मैं उन्हें बूढ़ी होते हुए नहीं देखना चाहता, तो वो मान गईं। हमें अमेरिका में डेढ़-दो महीने रहना था, जैसा कि डॉक्टर ने बताया था। मैंने भाई-बहन को फोन करके ये बता दिया कि माँ के इलाज के लिए हमें अमेरिका जाना है और हम डेढ़-दो महीने वहाँ पर ही रहेंगे। तो भाई-बहन ने कहा कि ठीक ही तो है। वैसे भी माँ के हेल्थ के लिए ये ज़रूरी है। स्टोर की जिम्मेदारी मैंने अपने विश्वसनीय नौकर को सौंप दी और वीज़ा-पासपोर्ट बनाकर मैं और माँ अमेरिका आ गए।

अमेरिका पहुँचते ही हम डॉ. स्मिथ से मिले। उन्होंने माँ का एग्ज़ामिनेशन किया। उनके कई टेस्ट लिए। फिर डीप एनालिसिस के बाद उन्होंने कहा कि माँ को 3 दिन के लिए हॉस्पिटल में एडमिट करना होगा। मैंने माँ को हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया। पैसे वगैरह भी जमा करवा दिए। फिर अकेले में मेरी बात डॉ. स्मिथ से हुई। उन्होंने कहा कि आपकी माँ की हल्की प्लास्टिक सर्जरी करनी पड़ेगी, जिससे उनका चेहरा फिर से 20-25 साल में जैसा रहा होगा, वैसा हो जाए। उनका ब्रेस्ट ट्रीटमेंट भी होगा, ताकि वो फिर से सुडौल, मांसल व गठीले हो सकें। साथ ही साथ माँ के शरीर के पूर्ण परिवर्तन के लिए 2 महीने तक बहुत सी दवाएँ व इंजेक्शन देनी होंगी, जिससे उनके अंदर चमत्कारिक परिवर्तन हो सके। माँ के ऑपरेशन होने के तीन दिन बाद मैं माँ से मिला। उन्हें कम्पलीट बेड रेस्ट दिया गया था। मैं जब माँ से मिला, तो उनकी हालत ठीक नहीं थी, फिर मैं पूरे मन से उनकी देखभाल में जुट गया। पूरी तरह से मैं उनकी सेवा करने लगा। डॉक्टर और नर्स भी समय-समय पर हालत में हो रहे सुधार को देखने के लिए आते रहते थे। धीरे-धीरे माँ ठीक होने लगीं। 1 महीना होते-होते माँ पूरी तरह से ठीक हो गईं। फिर मैं माँ को होटल में ले आया। लेकिन हमें 10-15 दिन वहाँ और रुकना था। इन 10-15 दिन में इलाज का आखिरी दौर चल रहा था। जब ये 15 दिन गुज़र गए, तो डॉ. स्मिथ के पास हम गए। उन्होंने माँ का फिर से एग्ज़ामिनेशन किया। एग्ज़ामिनेशन के बाद उन्होंने मुझसे बात की। उन्होंने बताया कि अब आपकी माँ पूरी तरह से ठीक हो गई हैं। और अब वो अपने यौवन को बस कुछ दिनों में प्राप्त कर लेंगी। मैं बहुत खुश हुआ। मैं माँ को वापस हमारे घर ले आया।

अब तक माँ में काफी परिवर्तन भी आ गए थे। उनके सफेद बाल काले हो गए थे, चेहरे की झुर्रियाँ गायब हो चुकी थीं। वो एकदम से किसी 21 साल की लड़की की तरह लगने लगी थीं। उनके स्तन और नितंब भी लगभग 36” के आकार के हो गए थे। माँ फिर से एक बार पूर्ण विकसित युवती बन चुकी थीं। और तो और, उनकी सोच और चाहत में भी परिवर्तन आने लगा था। शायद डॉक्टर ने उन्हें बाहरी तौर पर ही नहीं, बल्कि आंतरिक तौर पर भी पूरी तरह से परिवर्तित कर दिया था। मैं इन सब परिवर्तनों से बहुत खुश था।

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