मेरी माँ की चूत की चुदाई नाना जी के दोस्त ने की

दोस्तो, मेरा नाम चीनू है। आज मैं इंजीनियरिंग का छात्र हूँ, लेकिन जो बात मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ, वो मेरे बचपन की है, जब उदयपुर की तंग गलियों और धूल भरी हवा में मेरी दुनिया बस मेरी माँ और उनके आसपास घूमती थी। उस वक्त मैं छोटा था, शायद सात-आठ साल का, और “संभोग” जैसे शब्द मेरे लिए कोरे थे। लेकिन उस दिन, नानाजी के घर में जो कुछ मैंने देखा, वो मेरे नन्हे दिमाग में एक तूफान की तरह उमड़ पड़ा। ये कहानी मेरी माँ और नानाजी के दोस्त गोपाल अंकल की है—एक ऐसी चुदाई की, जिसके पल आज भी मेरी आँखों में जस के तस बने हुए हैं।

मेरी माँ एक साधारण घरेलू औरत थीं, लेकिन उनकी खूबसूरती ऐसी कि गली के मर्द आहें भरते थे। गोरा रंग, भरा हुआ बदन, और 26 साल की उम्र में वो किसी अप्सरा से कम नहीं थीं। उनका कद 5 फुट 2 इंच, कमर पतली, और स्तन इतने भरे हुए कि साड़ी का पल्लू भी उन्हें ढकने में शरमा जाए। उनकी पायल की छनछन और चूड़ियों की खनक हर कदम पर एक राग छेड़ती थी। गोपाल अंकल, नानाजी के पुराने दोस्त, 50-55 साल के थे। सांवला रंग, मजबूत कद-काठी, और आँखों में एक ऐसी चमक, जैसे वो हर पल किसी शिकार की तलाश में हों। वो माँ को सालों से जानते थे, और माँ भी उनसे खुलकर हँसती-बोलती थीं। नानाजी के घर पर उनकी मुलाकातें आम थीं, लेकिन मुझे क्या पता था कि उनकी नजरों में कितनी गहरी वासना छुपी थी।

उस दिन गर्मी अपने चरम पर थी। उदयपुर की हवा में सूखी मिट्टी की गंध तैर रही थी, और सूरज आसमान से आग बरसा रहा था। माँ ने हल्की हरी साड़ी पहनी थी, जो उनके गोरे बदन पर चमक रही थी। उनका पल्लू बार-बार सरक रहा था, और उनका नंगा पेट मेरी नजरों में चमक रहा था। “चीनू, चल, नानाजी से मिलने चलते हैं,” माँ ने नरम आवाज में कहा। मैं खुश हो गया। नानाजी का घर मुझे पसंद था—वो टेढ़ी-मेढ़ी पहाड़ी पर बने कच्चे-पक्के मकानों के बीच, जहाँ गलियाँ तंग थीं और बच्चे गुल्ली-डंडा खेलते थे। माँ के पीछे-पीछे चलते हुए मैं उनकी पायल की आवाज सुन रहा था, बिना ये जाने कि आज का दिन मेरे लिए क्या लेकर आया था।

नानाजी के घर का दरवाजा गोपाल अंकल ने खोला। उनकी आँखें माँ को देखते ही चमक उठीं, और एक हल्की सी मुस्कान उनके होंठों पर तैर गई। “अरे, चीनू, तू भी आया!” कहकर उन्होंने मुझे गोद में उठा लिया। उनकी मजबूत बाँहों में मुझे थोड़ा डर सा लगा, लेकिन मैं चुप रहा। माँ ने पूछा, “नानाजी कहाँ हैं?” “किसी काम से बाहर गए हैं, बस थोड़ी देर में आएँगे,” गोपाल अंकल ने जवाब दिया। उनकी आवाज में एक अजीब सी गर्मी थी, जो मुझे उस वक्त समझ नहीं आई। हम अंदर चले गए।

नानाजी का घर छोटा और सादा था। एक कमरा, जिसमें एक पुरानी खटिया, कुछ कुर्सियाँ, और दीवार पर टँगी एक पुरानी तस्वीर थी। खिड़की से हल्की धूप आ रही थी, और बाहर बच्चों के शोर की आवाज कमरे में गूंज रही थी। माँ और गोपाल अंकल खटिया पर बैठ गए, और मैं इधर-उधर टहलने लगा। वो धीरे-धीरे बातें करने लगे। माँ की आवाज में एक नरमी थी, और गोपाल अंकल की नजरें बार-बार माँ के पल्लू पर अटक रही थीं। मैं छोटा था, मुझे उनकी बातों से कोई मतलब नहीं था, लेकिन उनकी आँखों का खेल मुझे अजीब सा लग रहा था।

थोड़ी देर बाद गोपाल अंकल ने मुझसे कहा, “चीनू, जरा बाहर जाकर खेल ना, देख गलियों में कितने बच्चे मस्ती कर रहे हैं।” मैंने माँ की तरफ देखा। उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी, लेकिन उनकी आँखें नीची थीं, जैसे वो कुछ छुपा रही हों। “बेटा, जा, थोड़ी देर बाहर खेल ले, मैं तुझे बुला लूँगी,” माँ ने कहा। मैं जिद्दी था, और मुझे बाहर जाने का मन नहीं था। लेकिन माँ की बात मानकर मैं दरवाजे की ओर बढ़ा। बाहर पूरी तरह नहीं गया, बस दरवाजे के पास खड़ा हो गया, गलियों में उड़ती धूल को देखने का बहाना बनाकर।

इसे भी पढ़ें   ओह... चोद शोना चोद... मुझे चोद

अंदर माँ खटिया पर लेट गई थीं। उनकी साड़ी का पल्लू सरक गया था, और उनका गोरा पेट धूप में चमक रहा था। गोपाल अंकल की नजरें माँ के बदन पर जम गई थीं, जैसे कोई भूखा भेड़िया अपने शिकार को निहार रहा हो। माँ ने धीरे से अपनी साड़ी को ऊपर खींचा, और उनकी गोरी, गदराई जाँघें खुल गईं। उनकी पायल की छनछन ने सन्नाटे को तोड़ा, और मेरी नजरें अनायास उनकी ओर चली गईं। गोपाल अंकल के होंठ सूख रहे थे, और वो अपनी जीभ से उन्हें गीला कर रहे थे। माँ की जाँघें इतनी गोरी थीं कि बाहर की धूप में भी वो चमक रही थीं। मैं हैरान था—माँ की टाँगें इतनी गोरी कैसे हो सकती हैं, जो साड़ी के नीचे कभी दिखती ही नहीं थीं।

माँ ने अपनी साड़ी को और ऊपर किया, और उनकी पैंटी की किनारी दिखने लगी। गोपाल अंकल की साँसें तेज हो गईं। माँ ने धीरे से अपनी पैंटी को एक तरफ सरकाया, और उनकी चूत की हल्की सी झलक दिखी। वो गीली थी, और धूप में उसकी चमक साफ नजर आ रही थी। मैं छोटा था, लेकिन उस नजारे ने मुझे स्तब्ध कर दिया। गोपाल अंकल ने अपनी पैंट का हुक खोला, जिप नीचे की, और अंडरवीयर से अपना लंड बाहर निकाला। वो काला, मोटा, और कम से कम दस इंच लंबा था, जिसकी नसें फूली हुई थीं। वो तनकर खड़ा था, जैसे माँ की चूत को भेदने को बेताब हो।

अब अंकल धीरे-धीरे माँ के ऊपर लेटने लगे। माँ ने अपनी टाँगें फैलाईं, और उनकी चूत पूरी तरह खुल गई। उनकी साँसें तेज थीं, और उनके सीने का उभार ब्लाउज को फाड़ने को तैयार था। अंकल ने माँ की कमर को अपनी मजबूत बाँहों में जकड़ लिया, जैसे कोई खजाना उनके हाथ लग गया हो। उनकी नजरें एक-दूसरे में डूबी थीं, और कमरे में एक भारी सन्नाटा छा गया। तभी अंकल ने अपना लंड माँ की चूत पर रगड़ा, और माँ की सिसकारी निकल गई, “आह… गोपाल… धीरे…” उनकी आवाज में एक अजीब सी कशिश थी।

अंकल ने एक जोरदार झटका मारा, और उनका मूसल जैसा लंड माँ की चूत में पूरा घुस गया। खटिया चरमराई, और माँ की चीख कमरे में गूंजी, “उई… मर गई!” लेकिन उनकी चीख में दर्द के साथ-साथ मजे की लहर भी थी। अंकल ने माँ के होंठों को अपने होंठों से बंद कर दिया, और उनकी जीभ माँ के मुँह में चली गई। माँ ने अपने हाथ अंकल की पीठ पर रखे, और उनकी उँगलियाँ अंकल की त्वचा में धंस गईं। हर धक्के के साथ माँ की पायल खनक रही थी, और फच-फच की आवाज कमरे में ताल दे रही थी।

तभी माँ की नजर मुझ पर पड़ी। उनके चेहरे पर घबराहट छा गई। “चीनू, बाहर जा, बेटा!” उन्होंने हड़बड़ाते हुए कहा। गोपाल अंकल ने मुझे देखा, और उनकी आँखों में गुस्सा था। “जा, बाहर जा, तुझे कहा ना!” वो थोड़े रूखे लहजे में बोले। मैं गुस्से और शर्मिंदगी में बाहर चला गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि माँ और अंकल ऐसा क्यों कर रहे हैं। मैं बाहर गलियों में खड़ा रहा, लेकिन मेरा मन बार-बार अंदर की ओर खींच रहा था। मैंने सोचा, छुपकर देखता हूँ। दरवाजे में एक छोटा सा छेद था, जिससे मैंने अंदर झाँका।

अंदर का नजारा मेरे लिए किसी जादू से कम नहीं था। गोपाल अंकल माँ के ऊपर चढ़े थे, और उनका लंड माँ की चूत में बार-बार अंदर-बाहर हो रहा था। हर धक्के के साथ खटिया चरमरा रही थी, और माँ की सिसकारियाँ कमरे को भर रही थीं। “आह… गोपाल… और जोर से… मेरी चूत को फाड़ दो!” माँ की आवाज में वासना थी। अंकल ने जवाब दिया, “तेरी चूत इतनी गर्म है, जैसे भट्टी में आग जल रही हो!” उनकी बातें सुनकर मेरा दिमाग सुन्न था, लेकिन मैं उस छेद से सब कुछ देखता रहा।

इसे भी पढ़ें   ट्रेन में लेडीज कोच में मौसी के साथ

अंकल ने माँ की साड़ी को पूरी तरह ऊपर कर दिया, और उनकी गोरी जाँघें धूप में चमक रही थीं। माँ की चूत गीली थी, और हर धक्के के साथ उसका पानी अंकल के लंड पर लिपट रहा था। अंकल ने माँ की टाँगें अपने कंधों पर रख लीं, जिससे उनकी चूत और गहरी हो गई। “देख, तेरी भोसड़ी कितनी टाइट है!” अंकल ने हाँफते हुए कहा। माँ ने सिसकारी ली, “हाय… तुम्हारा मूसल मेरी बच्चेदानी तक जा रहा है!” अंकल हर चार-पाँच धक्कों के बाद एक जोरदार झटका मारते, जिससे माँ की चूड़ियाँ और पायल एक साथ खनक उठतीं।

अब अंकल ने माँ को पलट दिया और उन्हें घोड़ी की तरह झुका दिया। माँ की गोल, मुलायम गाँड हवा में थी, और अंकल ने उस पर एक जोरदार चपत मारी। “क्या मस्त पिछवाड़ा है तेरा!” अंकल ने कहा और अपनी उँगली माँ की गीली चूत में डाल दी। माँ की सिसकारी गूंजी, “उई… अब लंड डाल दो… मेरी चूत प्यासी है!” अंकल ने अपना लंड माँ की चूत पर रगड़ा, और फिर एक जोरदार धक्के में पूरा लंड पेल दिया। माँ की चीख निकल गई, “हाय माँ… फट गई!” लेकिन अंकल रुके नहीं। वो माँ की कमर पकड़कर जोर-जोर से धक्के मारने लगे।

हर धक्के के साथ माँ की गाँड हिल रही थी, और उनकी पायल की आवाज कमरे में एक राग की तरह बज रही थी। अंकल ने माँ के बाल पकड़े और उन्हें और जोर से चोदने लगे। “ले, मेरी रानी… तेरी चूत को आज चैन नहीं मिलेगा!” अंकल की आवाज में जुनून था। माँ ने जवाब दिया, “हाँ… चोदो मुझे… मेरी चूत को अपने लंड से भर दो!” उनकी बातें सुनकर कमरा वासना से भर गया था। माँ की साड़ी अब उनके पेट तक सिमट गई थी, और उनका ब्लाउज उनके उभरे हुए स्तनों को मुश्किल से ढक रहा था।

अंकल ने माँ के ब्लाउज के हुक खोल दिए, और उनकी ब्रा को एक झटके में उतार फेंका। माँ के गोरे, गोल स्तन बाहर आ गए, जिनके निप्पल गुलाबी और तने हुए थे। अंकल ने एक निप्पल को मुँह में लिया और जोर-जोर से चूसने लगे। “आह… गोपाल… धीरे… दुखता है!” माँ ने सिसकारी, लेकिन उनकी आवाज में मजे की लहर थी। अंकल ने दूसरे स्तन को अपने हाथ से मसला, और माँ की सिसकारियाँ चीखों में बदल गईं। “तेरे मम्मे ऐसे हैं, जैसे पके हुए अनार!” अंकल ने कहा और माँ के निप्पल को हल्के से काट लिया। माँ चीखी, “उई… धीरे, जान ले लोगे क्या!”

अंकल ने माँ को फिर से लिटाया और उनकी टाँगें फैलाईं। अब वो माँ की चूत को चाटने लगे। उनकी जीभ माँ की चूत के हर कोने को चूम रही थी, और माँ की सिसकारियाँ कमरे में गूंज रही थीं। “आह… गोपाल… ये क्या कर रहे हो… मेरी चूत पिघल रही है!” माँ ने हाँफते हुए कहा। अंकल ने जवाब दिया, “तेरी चूत का रस अमृत है, आज इसे पूरा पी जाऊँगा!” माँ की चूत अब पूरी तरह गीली थी, और उसकी खुशबू कमरे में फैल रही थी।

करीब 25 मिनट तक अंकल माँ को अलग-अलग तरीकों से चोदते रहे। कभी माँ को अपनी गोद में बिठाकर, कभी उन्हें खटिया पर लिटाकर, और कभी उनकी गाँड को हवा में उठाकर। माँ की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल चुकी थीं, और उनका बदन पसीने से चमक रहा था। अंकल का शरीर भी अकड़ने लगा था। “आह… मेरा निकलने वाला है!” अंकल ने हाँफते हुए कहा। माँ ने जल्दी से कहा, “बाहर निकालो… अंदर नहीं!” लेकिन अंकल ने एक आखिरी जोरदार झटका मारा, और उनका गर्म माल माँ की चूत में छूट गया। माँ की सिसकारी रुक गई, और वो हाँफते हुए खटिया पर ढह गईं।

दोनों पसीने से तरबतर थे। अंकल माँ के स्तनों पर लेट गए और उनके निप्पल को धीरे-धीरे चूसने लगे। माँ ने उनके बालों में उँगलियाँ फेरीं और उनकी पीठ सहलाई। “गोपाल, तुमने आज मुझे स्वर्ग दिखा दिया,” माँ ने धीमी आवाज में कहा। अंकल ने जवाब दिया, “तेरी चूत का जादू ऐसा है, इसे भूलना मुश्किल है।” दोनों हल्के से हँसे, और फिर चुप हो गए।

इसे भी पढ़ें   मामा जी के बेटी की सील तोड़ चुदाई | Sexy Sister Porn Kahani

थोड़ी देर बाद अंकल माँ के बगल में लेट गए। माँ ने अपनी साड़ी ठीक की और ब्लाउज के हुक बंद करने लगीं। लेकिन अंकल ने उन्हें रोक लिया। “रुक, अभी एक बार और,” अंकल ने कहा और माँ के स्तनों को फिर से मुँह में लिया। माँ ने हल्का सा विरोध किया, “बस करो, गोपाल… अब और नहीं!” लेकिन उनकी आवाज में मना करने की ताकत नहीं थी। अंकल ने माँ के एक निप्पल को जोर से काटा, और माँ चीख पड़ी, “आह… धीरे, दुखता है!” लेकिन अंकल नहीं रुके। वो माँ के स्तनों को चूसते रहे, जैसे कोई बच्चा अपनी माँ का दूध पी रहा हो। माँ की आँखें आनंद से बंद थीं, और उनकी साँसें तेज थीं।

करीब 20 मिनट तक अंकल माँ के स्तनों को चूसते रहे। माँ के निप्पल अब लाल हो चुके थे, और उनके ब्लाउज पर गीले दाग थे, क्योंकि उनके स्तनों से दूध रिस रहा था। “तेरे मम्मों का दूध इतना मीठा है, जैसे शहद,” अंकल ने कहा। माँ ने उनके बाल सहलाए और बोली, “तुम तो बिल्कुल बच्चे हो।” दोनों हँसे, और माँ ने आखिरकार अपने कपड़े ठीक किए।

माँ दरवाजे की ओर बढ़ीं, और मैं जल्दी से छेद से हटकर सीढ़ियों पर खड़ा हो गया। मैंने गलियों में गाड़ियों को देखने का बहाना बनाया। माँ ने मुझे आवाज दी, “चीनू, अंदर आ!” लेकिन मैं चुप रहा। मुझे गुस्सा था, क्योंकि मुझे बाहर भेजा गया था। माँ मेरे पास आईं और मेरे गाल को सहलाया। “क्या हुआ, मेरे राजा?” उन्होंने पूछा। मैंने गुस्से में कहा, “अंकल ने मुझे डाँटा, और तुमने भी कुछ नहीं कहा!” माँ की आँखें नम हो गईं। उन्होंने मुझे अपने सीने से लगाया, और मैंने महसूस किया कि उनका ब्लाउज गीला था। “बेटा, अब कोई नहीं डाँटेगा। मेरी जान, तू मेरे साथ है,” माँ ने कहा और मुझे प्यार से चूमा।

माँ मुझे अंदर ले गईं। गोपाल अंकल अब अपनी पैंट ठीक कर चुके थे, और वो मुझे देखकर मुस्कुराए। माँ ने मुझे खाने के लिए कुछ बिस्किट और पानी दिया, और मैं थोड़ा शांत हुआ। लेकिन मेरे दिमाग में वो नजारा बार-बार घूम रहा था। माँ का गोरा बदन, उनकी गीली चूत, अंकल का मूसल जैसा लंड, और उनकी सिसकारियाँ—ये सब मेरे लिए नया था। मैं छोटा था, लेकिन उस दिन की गर्मी, वो पसीने की गंध, और खटिया की चरमराहट मेरे दिमाग में हमेशा के लिए बस गई।

उस दिन के बाद मैं कई बार नानाजी के घर गया। गोपाल अंकल हमेशा वहाँ होते थे, और उनकी और माँ की नजरें कुछ न कुछ कहती थीं। माँ की मुस्कान में एक अजीब सी शरारत होती थी, और अंकल की आँखों में वही भूख। मैं छोटा था, सो ज्यादा समझ नहीं पाया। लेकिन आज, जब मैं बड़ा हो गया हूँ, मुझे समझ आता है कि माँ और गोपाल अंकल के बीच सिर्फ दोस्ती नहीं थी। उनकी वासना ने उन्हें एक-दूसरे के करीब ला दिया था, और उस दिन मैंने उनकी चुदाई का वो खेल देखा, जो मेरे बचपन को हमेशा के लिए बदल गया।

दोस्तो, ये मेरी कहानी है। उस दिन की गर्मी, माँ की सिसकारियाँ, और गोपाल अंकल का जुनून—सब कुछ मेरी आँखों के सामने है। आप लोग मुझे बताएँ कि आपको मेरी कहानी कैसी लगी।

Related Posts

Report this post

Leave a Comment