मेरा पति मुझे शांत करने के लिए अपने बड़े भाई को बुलाकर लाया और चुदवाया

मेरी शादी को अभी तीन महीने ही हुए थे, और मेरी उम्र 21 साल है। मेरा पति 26 साल का है, और मैं, जैसा कि लोग कहते हैं, एक हॉट और सेक्सी औरत हूँ। मुझे सेक्स कहानियाँ पढ़ना हमेशा से पसंद रहा है। जब मैं जवान हुई, यानी जब मेरी चूचियाँ नन्हे नींबुओं की तरह उभरने लगीं, तब से मैं रातों को चुपके से मोबाइल पर सेक्सी कहानियाँ पढ़ती थी। अपनी उंगलियों को चूत में डालकर, चूचियों को मसलकर मैं अपनी वासना को शांत करती थी। इस आदत ने मुझे एक ऐसी कामुक और चुदक्कड़ औरत बना दिया, जिसके अंदर की आग आसानी से बुझती नहीं थी।

शादी से पहले मैंने कभी किसी मर्द का लंड नहीं देखा था। लेकिन शादी के बाद, जब मेरे पति ने पहली बार मुझे चोदा, तो मेरे अंदर की ज्वाला और भड़क उठी। पहले महीने में ही मैं इतनी चुदक्कड़ हो गई कि मेरे पति का लंड मेरी प्यास को शांत करने में कम पड़ने लगा। जब वो मेरी चूत में लंड डालते, मैं पागल सी हो जाती। मेरी गांड अपने आप ऊपर-नीचे होने लगती, और मैं जोर-जोर से चुदवाती। लेकिन मेरा पति जल्दी थक जाता था। उसका वीर्य गिर जाता, और मैं अधूरी रह जाती। मैं उससे कहती, “और चोदो, मुझे शांत करो!” पर वो लाचार हो जाता। उसका लंड ढीला पड़ जाता, और मेरी चूत की आग वैसे ही धधकती रहती।

पिछले चार दिन से तो हद हो गई थी। मैं खुद उसके ऊपर चढ़ जाती, उसका लंड अपनी चूत में लेकर पेलने लगती। मेरी वासना इतनी भड़कती कि मैं कभी उसके सीने पर नाखून गड़ा देती, कभी उसके होंठ काट लेती। जब उसका वीर्य गिर जाता, तब भी मैं रुकती नहीं थी। अपनी गांड को गोल-गोल घुमाकर, झटके मारकर मैं चुदाई जारी रखती। लेकिन फिर भी मेरी प्यास बुझती नहीं थी। मेरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन रहती, और मैं बेचैन हो उठती।

कल रात तो मेरी वासना ने सारी हदें पार कर दीं। जैसे ही मेरा पति मेरे ऊपर चढ़ा और उसका लंड मेरी चूत में गया, मैंने तुरंत उससे कहा, “जोर से पेलो, मुझे चोद डालो!” मेरी चूचियाँ तनकर बड़ी हो गई थीं, मेरे होंठ गुलाबी और रसीले हो गए थे। मेरी चूत से गरम-गरम पानी टपकने लगा था, और मेरा पूरा शरीर सिहर रहा था। लेकिन मेरा पति मेरी आग को बुझा नहीं पा रहा था। मैं पागल सी हो गई थी। उसका लंड मेरी चूत में था, पर मुझे कुछ महसूस नहीं हो रहा था। मैंने उसका जिस्म टटोला, उसके होंठ काटे, उसे अपनी तरफ खींचा, और अपनी गांड को गोल-गोल घुमाकर उसके लंड को और अंदर लेने की कोशिश की। लेकिन जल्दी ही उसका वीर्य गिर गया, और वो शांत होकर बगल में लेट गया।

मैं हिलने लगी, मेरा शरीर थरथराने लगा। मेरे होंठ काँप रहे थे, और मैं बेकाबू होकर झटके देने लगी। मेरा पूरा जिस्म काँप रहा था, और मैं बुदबुदाने लगी, “मुझे चोदो, मेरी आग बुझाओ! मुझे शांत करो!” लेकिन मेरा पति लाचार था। उसका लंड ढीला पड़ चुका था, और वो कुछ नहीं कर पा रहा था। अचानक वो घबराकर बिस्तर से उठा, कपड़े पहने, और घर से बाहर भाग गया। मैं समझ नहीं पाई कि वो कहाँ गया, लेकिन मेरी हालत बद से बदतर हो रही थी। मैं नंगी ही बिस्तर पर थी, अपनी चूचियों को मसल रही थी, अपनी गांड को हवा में उठाकर झटके दे रही थी, और अपनी चूत को उंगलियों से सहला रही थी।

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कुछ देर बाद मेरे पति वापस आए, और उनके साथ उनके बड़े भाई, यानी मेरे जेठ जी, थे। जेठ जी मेरे पति से सिर्फ दो साल बड़े हैं, और उनकी पत्नी की पिछले साल बीमारी में मृत्यु हो गई थी। वो अकेले रहते थे, और शायद इसीलिए मेरे पति ने उन्हें बुलाया था। जैसे ही जेठ जी कमरे में आए, उनकी नजर मुझ पर पड़ी। मैं पूरी नंगी थी, मेरी बड़ी-बड़ी चूचियाँ हवा में तनी हुई थीं, मेरी चूत गीली और चमक रही थी, और मैं बेकाबू होकर अपनी गांड हिला रही थी। जेठ जी ने एक पल में सब समझ लिया। उन्होंने मेरे पति से कहा, “भाई, बहू को चुदाई की लत लग गई है। इसे शांत करना जरूरी है, नहीं तो इसका दिमाग खराब हो सकता है।” मेरा पति घबराया हुआ था। उसने कहा, “जो करना है, करो, बस इसे शांत कर दो!”

जेठ जी ने एक पल भी बर्बाद नहीं किया। उन्होंने तुरंत अपनी शर्ट उतारी, पैंट खोली, और जांघिया नीचे सरका दिया। उनका लंड बाहर आया—लंबा, मोटा, और पूरी तरह तना हुआ। मैं उसे देखकर और बेकाबू हो गई। मेरा पति कमरे के कोने में खड़ा था, सब कुछ देख रहा था, लेकिन कुछ बोल नहीं रहा था। जेठ जी बिस्तर पर चढ़े और मेरे पास आए। उन्होंने पहले मेरी दोनों टाँगों को पकड़कर चौड़ा किया, और मेरे पैरों के बीच में बैठ गए। उनकी आँखें मेरी चूत पर टिकी थीं, जो गीली थी और सफ़ेद क्रीम जैसा रस टपका रही थी। उन्होंने अपनी नाक मेरी चूत के पास लाई और गहरी साँस ली। मेरी चूत की खुशबू ने उन्हें और उत्तेजित कर दिया। वो “ओह्ह… आह्ह…” करते हुए मेरी चूत को चाटने लगे। उनकी जीभ मेरी चूत के होंठों पर फिसल रही थी, और वो बार-बार मेरे रस को चूस रहे थे। मैं सिहर उठी, मेरे मुँह से “आह्ह… उफ्फ…” की आवाजें निकलने लगीं।

जेठ जी ने मेरी चूत को चाटते हुए मेरी चूचियों को दोनों हाथों से दबोच लिया। मेरे निप्पल सख्त हो चुके थे, और उन्होंने उन्हें अपने दाँतों के बीच दबाकर हल्के से काटा। मैं चीख पड़ी, “आह्ह… जेठ जी!” दर्द और मजा एक साथ मेरे शरीर में दौड़ रहा था। वो मेरे होंठों तक आए और अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी। मैंने भी उनकी जीभ को चूसा, और हम दोनों एक-दूसरे के मुँह में जीभ घुमाने लगे। मैंने उनसे इशारा किया कि मुझे उनका लंड चूसना है। उन्होंने तुरंत अपना मोटा, नौ इंच का लंड मेरे मुँह के पास लाया। मैंने उसे अपने होंठों में लिया और जोर-जोर से चूसने लगी। उनका लंड मेरे गले तक जा रहा था, और मैं उनकी चूचियों को दबाते हुए उनके लंड को चूस रही थी। “उम्म… आह्ह…” मेरी आवाजें कमरे में गूँज रही थीं। जेठ जी मेरे बाल पकड़कर मेरे मुँह में लंड को और गहरा धकेल रहे थे। मैं उनके लंड के स्वाद में खो गई थी।

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कुछ देर बाद जेठ जी मेरे पैरों के बीच वापस आए। उन्होंने अपना लंड मेरी चूत के छेद पर रखा। मेरी चूत इतनी गीली थी कि लंड आसानी से फिसल सकता था, लेकिन उन्होंने जानबूझकर धीरे-धीरे उसे अंदर डाला। पहले सिर्फ लंड का सुपारा मेरी चूत में गया, और मैं सिहर उठी। फिर उन्होंने एक जोरदार धक्का मारा, और उनका पूरा नौ इंच का लंड मेरी चूत की गहराई में उतर गया। मैं चीख पड़ी, “आह्ह… जेठ जी… उफ्फ!” उनका लंड मेरी चूत की दीवारों को रगड़ रहा था, और हर धक्के के साथ मेरा पूरा शरीर हिल रहा था। उन्होंने मेरी चूचियों को पकड़ लिया और उन्हें मसलते हुए जोर-जोर से धक्के मारने लगे। उनका हर धक्का इतना ताकतवर था कि बिस्तर चरमराने लगा। मैं भी उनकी कमर को पकड़कर अपनी गांड को गोल-गोल घुमाने लगी, ताकि उनका लंड मेरी चूत के हर कोने को छू ले।

“आह्ह… जेठ जी… और जोर से… चोदो मुझे!” मैं चिल्ला रही थी। वो जानवर की तरह मेरी चूत को पेल रहे थे। उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मैं हिल भी नहीं पा रही थी। मैंने अपनी टाँगें उनकी कमर पर लपेट दीं, और हर धक्के के साथ अपनी गांड को ऊपर उठाकर उनका साथ देने लगी। मेरी चूत से गीला रस टपक रहा था, और हर धक्के के साथ “पच-पच” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। मैं पूरी तरह वाइल्ड हो गई थी। मेरे मुँह से “ओह्ह… आह्ह… उफ्फ… चोद डालो!” की आवाजें निकल रही थीं। जेठ जी ने मेरी चूचियों को छोड़कर मेरे होंठों को चूमना शुरू किया। उनकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मैं उनके होंठों को काट रही थी। हम दोनों एक-दूसरे में खो गए थे।

करीब बीस मिनट तक उन्होंने मुझे उसी पोजीशन में चोदा। फिर उन्होंने मुझे पलटा और घोड़ी बना दिया। मेरी गांड हवा में थी, और मेरी चूत पूरी तरह खुली हुई थी। उन्होंने मेरी कमर पकड़ी और अपना लंड मेरी चूत में फिर से पेल दिया। इस बार उनके धक्के और तेज थे। हर धक्के के साथ मेरी चूचियाँ हवा में लटक रही थीं, और मेरा पूरा शरीर आगे-पीछे हिल रहा था। “आह्ह… जेठ जी… मेरी चूत फाड़ दो!” मैं चिल्ला रही थी। उन्होंने मेरी गांड पर एक हल्का सा थप्पड़ मारा, और मैं और उत्तेजित हो गई। उनकी उंगलियाँ मेरी चूत के होंठों को सहला रही थीं, और उनका लंड मेरी चूत की गहराई को चीर रहा था। मैंने अपनी उंगलियों से अपनी चूचियों को मसलना शुरू किया, और मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं।

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कुछ देर बाद जेठ जी ने मुझे फिर से सीधा किया और मेरे ऊपर चढ़ गए। इस बार उन्होंने मेरी टाँगें अपने कंधों पर रखीं, ताकि उनका लंड मेरी चूत में और गहरा जाए। हर धक्के के साथ मैं सिहर रही थी। मेरी चूत से सफ़ेद क्रीम जैसा रस बह रहा था, और मेरे पूरे शरीर में झुरझुरी सी हो रही थी। “आह्ह… जेठ जी… मैं झड़ने वाली हूँ!” मैंने चिल्लाकर कहा। उन्होंने अपनी स्पीड और बढ़ा दी। उनके धक्के इतने तेज थे कि मुझे लगा मेरी चूत फट जाएगी। अचानक मेरे शरीर में एक तेज झटका सा लगा, और मैं जोर-जोर से झड़ने लगी। मेरी चूत से गरम-गरम रस निकल रहा था, और मैं थरथराने लगी। जेठ जी ने मेरी चूचियों को जोर से दबाया और अपने धक्के जारी रखे।

करीब चालीस मिनट की इस धमाकेदार चुदाई के बाद जेठ जी भी झड़ने वाले थे। उन्होंने अपना लंड मेरी चूत से निकाला और अपने वीर्य को मेरे पूरे शरीर पर बिखेर दिया। कुछ मेरे चेहरे पर गिरा, कुछ मेरी चूचियों पर, कुछ मेरे पेट पर, और कुछ मेरी जाँघों पर। मैं पूरी तरह संतुष्ट थी। मेरे चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान थी, और मेरी आँखें बंद थीं। जेठ जी ने मेरे होंठों को चूमा, मेरी चूचियों को हल्के से सहलाया, और फिर बिस्तर से उतर गए। उन्होंने अपने कपड़े पहने और मेरे पति से कहा, “जब भी जरूरत पड़े, बुला लेना। मैं हाजिर हो जाऊँगा।” इतना कहकर वो बाहर चले गए।

मेरा पति मेरे पास आया और मुझे अपनी बाहों में लिया। मैंने उसकी आँखों में देखा, और वो समझ गया कि मैं अब शांत हो चुकी हूँ। हम दोनों एक-दूसरे को पकड़कर बिस्तर पर लेट गए, और जल्दी ही मुझे नींद आ गई। मेरे दिल में एक अजीब सा सुकून था, और मैं जानती थी कि मेरी वासना की आग, कम से कम आज के लिए, बुझ चुकी थी।

मैं जल्द ही अपनी अगली कहानी आपके सामने लाऊँगी। तब तक मेरे प्यारे पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार। धन्यवाद।

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