कोमल का डिल्डो

आज मेरे पास कोई काम नहीं था। मैं बोर हो रही थी, तो सोचा अपनी सहेली कोमल से मिलने चली जाऊँ, जो पड़ोस में ही रहती थी। कोमल मेरी सबसे प्यारी दोस्त थी, और उसकी शादी को अभी पाँच महीने ही हुए थे। उसका घर मेरे लिए दूसरा आशियाना था, जहाँ मैं बिना किसी झिझक के चली जाती थी। सुबह-सुबह मैं उसके घर पहुँची। कोमल और उसके पति रमेश ने मेरा गर्मजोशी से स्वागत किया। हम तीनों ने मिलकर सुबह का नाश्ता किया—गर्मा-गर्म पराठे, दही, और चाय के साथ ढेर सारी गपशप। बातों-बातों में कोमल ने बताया कि रमेश को तीन दिन के लिए दिल्ली जाना है, ऑफिस के किसी काम से। उसने मुझे अपने साथ रुकने के लिए कहा, ताकि उसका अकेलापन दूर हो। मुझे उसकी बात अच्छी लगी, और मैंने तुरंत हामी भर दी।

शाम को साढ़े आठ बजे रमेश की ट्रेन थी। मैं और कोमल उसे स्टेशन छोड़ने गए। रमेश ने हमें ढेर सारी हिदायतें दीं, जैसे कि दरवाज़ा अच्छे से बंद करना, और फिर वो ट्रेन में चढ़ गया। हम दोनों रात साढ़े नौ बजे तक घर लौट आए। घर पहुँचते ही हमने अपने रात के कपड़े पहने। मैंने एक ढीला-सा पजामा और टॉप पहना, और कोमल ने भी अपनी सिल्की नाइटी डाल ली। हमने बिस्तर ठीक किया और लेट गए। कोमल ने अपनी शादी के बाद की बातें शुरू कीं। उसने बताया कि कैसे उसकी और रमेश की सुहागरात थी—कैसे रमेश ने उसे प्यार किया, कैसे वो दोनों रातभर एक-दूसरे में खोए रहे। उसकी आँखों में चमक थी, और वो हर बात को इतने रसीले अंदाज़ में बता रही थी कि मैं सुनते-सुनते रोमांचित हो रही थी।

मुझे सेक्स का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन कोमल की बातें सुनकर मेरे मन में एक अजीब-सी हलचल होने लगी। मैं सोचने लगी कि ये सब कितना सुखद होगा, कितना मादक होगा। कोमल की आवाज़ में एक उत्तेजना थी, जैसे वो खुद उन पलों को फिर से जी रही हो। उसकी बातें सुनते-सुनते मेरी आँखें भारी होने लगीं, और मैं कब नींद की आगोश में चली गई, पता ही नहीं चला।

रात को अचानक मेरी नींद टूटी। मुझे लगा कि कोई मेरे बदन को छू रहा है। मैंने आँखें खोलीं, लेकिन अंधेरे में कुछ साफ नहीं दिखा। फिर मुझे एहसास हुआ कि ये कोमल का हाथ था, जो मेरे टॉप के ऊपर से मेरे शरीर पर फिसल रहा था। मैं उसे हटाने ही वाली थी कि अचानक एक सिहरन-सी मेरे पूरे बदन में दौड़ गई। उसका स्पर्श इतना नरम और मादक था कि मैं खुद को रोक न सकी। मैं चुपचाप लेटी रही, साँसें रोककर यह जानने की कोशिश करने लगी कि वो क्या कर रही है। मैं रात को सोते वक्त न तो ब्रा पहनती हूँ, न पैंटी, तो मेरे ढीले कपड़ों के नीचे मेरा नंगा बदन उसके हाथों के हवाले था।

कोमल का हाथ धीरे-धीरे मेरी चूचियों पर आ गया। उसने हल्के-हल्के उन्हें सहलाना शुरू किया, जैसे कोई नाज़ुक फूल को छू रहा हो। मेरे बदन में बिजली-सी दौड़ने लगी। मेरी साँसें तेज़ हो गईं, लेकिन मैंने कोई हरकत नहीं की। फिर उसका हाथ नीचे की ओर बढ़ा, मेरे पजामे के ऊपर से मेरी चूत को छूने लगा। मैंने अनजाने में अपनी टाँगें थोड़ी और फैला दीं, ताकि उसे और आसानी हो। उसका हाथ मेरी चूत पर फिसल रहा था, और मैं आनंद की लहरों में डूबने लगी। अचानक उसने बिस्तर पर हल्का-सा हिलकर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए। उसका चुम्बन इतना गर्म और गीला था कि मेरे बदन में आग-सी लग गई। उसका हाथ अब मेरी चूत को और ज़ोर से सहलाने लगा, जैसे वो मेरे अंदर की सारी उत्तेजना को बाहर निकालना चाहती हो।

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मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती थी। मेरे बदन के रोंगटे खड़े हो गए थे, और मेरी चूत गीली होने लगी थी। कोमल ने मेरी चूत को हल्के-हल्के दबाना शुरू किया, और मेरे मुँह से एक सिसकारी निकल पड़ी। उसने मेरी सिसकारी सुन ली और समझ गई कि मैं जाग चुकी हूँ। लेकिन मेरे चुप रहने से उसकी हिम्मत और बढ़ गई। उसने मेरा टॉप ऊपर खींचा और मेरी नंगी चूचियों को अपने हाथों में ले लिया। वो उन्हें ज़ोर-ज़ोर से मसलने लगी, मेरे निप्पलों को अपनी उंगलियों से कुरेदने लगी। मेरे मुँह से फिर सिसकारी निकली, “कोमल… ये क्या कर रही है… सो जा ना…”

वो हल्के से हँसी और बोली, “नहीं नेहा… मुझे तो रोज़ चुदवाने की आदत हो गई है… करने दे ना… प्लीज़, मज़ा आएगा…” उसकी आवाज़ में एक मादक पुकार थी, जैसे वो मुझे अपने साथ उस आनंद की दुनिया में ले जाना चाहती हो।

मेरा मन भी अब पूरी तरह उसके साथ था। मैंने उसे अपनी ओर खींच लिया और कहा, “कोमल… मुझे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ… लेकिन ये बहुत अच्छा लग रहा है…”

वो मुस्कुराई और बोली, “हाँ… ये स्वर्ग का सुख है… तू भी तो कुछ कर ना, नेहा…”

मैं उससे लिपट गई। मेरे हाथ उसकी चूचियों पर चले गए, और मैं उन्हें दबाने लगी। उसकी चूचियाँ मुलायम और भारी थीं, जैसे रस से भरे फल। मैंने उसके निप्पलों को अपनी उंगलियों से मसला, और वो सिसकारी भरने लगी। उसने मेरे होंठों को फिर से चूम लिया, इस बार और ज़ोर से। वो मेरे निचले होंठ को चूस रही थी, हल्के-हल्के काट रही थी। फिर उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी, और मैं भी उसका साथ देने लगी। हमारी जीभें एक-दूसरे से उलझ रही थीं, जैसे कोई कामुक नृत्य हो रहा हो। मेरी चूत अब पूरी तरह गीली हो चुकी थी, और मेरे बदन में एक अजीब-सी बेचैनी बढ़ रही थी।

कोमल ने मेरा टॉप पूरी तरह उतार दिया। फिर उसने मेरा पजामा भी नीचे खींच लिया। मैंने हल्का-सा विरोध किया, “कोमल… रुक ना…” लेकिन मेरे दिल में विरोध की कोई इच्छा नहीं थी। मुझे नंगी होने का वो रोमांच चाहिए था, वो आज़ादी जो मैंने पहले कभी महसूस नहीं की थी। कोमल ने मेरे कपड़े फेंक दिए और फिर अपने कपड़े भी उतार दिए। अब हम दोनों बिस्तर पर पूरी तरह नंगी थीं। मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो गई थीं। मेरे स्तनों की नोकें कड़ी हो चुकी थीं, और मेरी चूत में एक मीठा-सा दर्द उठ रहा था।

कोमल बिस्तर पर लेट गई और अपनी टाँगें ऊपर उठा लीं। उसकी चूत पूरी तरह खुली थी, गीली और चमक रही थी। वो बोली, “नेहा… अपनी उंगलियाँ मेरी चूत में डाल… मुझे मस्त कर दे…” उसकी आवाज़ में एक भूख थी, जो मुझे और उत्तेजित कर रही थी।

मैंने हल्के-हल्के उसकी चूत को छुआ। वो इतनी गीली थी कि मेरी उंगली आसानी से अंदर चली गई। मुझे लगा कि उसकी चूत इतनी खुली है कि दो उंगलियाँ तो आसानी से समा जाएँगी। मैंने अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत में डाल दीं और गोल-गोल घुमाने लगी। कोमल सिसकारियाँ भरने लगी, “हाय… नेहा… और कर… हाय…” उसकी आवाज़ मेरे अंदर की आग को और भड़का रही थी। मैंने अपने दूसरे हाथ की उंगली उसकी गाँड के छेद पर रखी और हल्के-हल्के सहलाने लगी।

वो चिल्ला उठी, “नेहा… हाय राम… गाँड में घुसा दे… मज़ा आ जाएगा!”

मैंने उसकी गाँड में अपनी उंगली धीरे-धीरे डाली। उसका छेद टाइट था, लेकिन गीला होने की वजह से उंगली आसानी से अंदर चली गई। अब मेरे दोनों हाथ चल रहे थे—एक उसकी चूत में, दूसरा उसकी गाँड में। कोमल बिस्तर पर तड़प रही थी, उसकी सिसकारियाँ पूरे कमरे में गूँज रही थीं। मेरा हाल भी बुरा था। मेरी चूत इतनी गीली हो चुकी थी कि मुझे लग रहा था कि मैं अभी झड़ जाऊँगी। मैं कोमल के हर अंग को मसल रही थी, जैसे मैं उसे पूरी तरह अपने वश में करना चाहती थी।

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कोमल अचानक बोली, “बस… अब रुक जा… अब तेरी बारी है… लेट जा… मैं तुझे मस्त करती हूँ…”

उसके ये शब्द सुनते ही मेरी चूत में जैसे बाढ़ आ गई। मैंने कभी ऐसा अनुभव नहीं किया था, और ये पहला मौका इतना रोमांचक था कि मैं अपने आप को रोक नहीं पा रही थी। मैं बिस्तर पर लेट गई। कोमल मेरे ऊपर झुक गई और मेरी चूचियों को अपने हाथों में ले लिया। उसका मसलना इतना अनुभवी था कि मैं तुरंत सिसकारियाँ भरने लगी। वो मेरे निप्पलों को अपनी उंगलियों से कुरेद रही थी, हल्के-हल्के चुटकी काट रही थी। फिर उसने मेरी गाँड को सहलाना शुरू किया। उसने अपनी उंगली पर थूक लगाया और मेरी गाँड के छेद को चिकना किया। धीरे-धीरे उसने अपनी उंगली अंदर डाल दी। पहले मुझे अजीब-सा लगा, लेकिन जैसे ही उसने उंगली को अंदर-बाहर करना शुरू किया, मुझे एक मीठा-सा दर्द और मज़ा दोनों मिलने लगे।

अब उसने मेरी गाँड में दो उंगलियाँ डाल दीं। वो मेरे छेद को घुमा-घुमा कर चोद रही थी, और मैं आँखें बंद करके उस आनंद में डूब गई। मेरी साँसें तेज़ थीं, और मेरी चूत से पानी टपक रहा था। अचानक मुझे लगा कि मेरी गाँड में कुछ बड़ा-सा घुस रहा है। मैंने चौंककर आँखें खोलीं और देखा कि कोमल के हाथ में एक मोटा-सा डिल्डो था, जो उसने मेरी गाँड में डालना शुरू कर दिया था। मैं घबरा गई, “कोमल… ये क्या… दर्द हो रहा है… निकाल दे!”

वो हँसी और बोली, “अरे रानी… लेटी रह… ये लंड नहीं, डिल्डो है… इसका मज़ा ले… अभी दर्द जाएगा और मज़ा आएगा…”

उसने मेरी गाँड में और थूक लगाया, जिससे डिल्डो आसानी से अंदर-बाहर होने लगा। पहले तो दर्द हुआ, लेकिन धीरे-धीरे वो दर्द एक मादक सुख में बदल गया। कोमल ने डिल्डो को मेरी गाँड में गहरे तक डाला, और फिर उसे धीरे-धीरे घुमाने लगी। मेरी सिसकारियाँ तेज़ हो गईं, “हाय… कोमल… ये क्या कर दिया… हाय… मज़ा आ रहा है…”

वो बोली, “नेहा… तेरी चूत तो देख… पूरी भीग गई है… पानी की नदी बह रही है…”

मैंने अपनी टाँगें और ऊँची कर लीं, जैसे मैं उसे और गहराई तक बुला रही थी। कोमल ने अब डिल्डो मेरी गाँड से निकाला और मेरी चूत पर रख दिया। वो उसे मेरी चूत के मुँह पर ऊपर-नीचे घिसने लगी। मैंने उसका हाथ पकड़ा और डिल्डो को अपनी चूत में घुसा लिया। जैसे ही वो अंदर गया, मेरे मुँह से चीख निकल गई, “हाय… कोमल… ये तो बहुत मोटा है… दर्द हो रहा है…”

वो हँस पड़ी, “अरे, गाँड में तो झेल लिया… चूत में क्या हुआ? बस थोड़ा सा और… फिर मज़ा आएगा…”

उसने डिल्डो को मेरी चूत में अंदर-बाहर करना शुरू किया। उसका हर धक्का मेरे बदन में बिजली-सी दौड़ा रहा था। मैं कमर उछाल-उछाल कर उसका साथ दे रही थी। कोमल का हाथ तेज़ी से चल रहा था, और डिल्डो मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था। मेरी सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं, “हाय… कोमल… और कर… हाय… मज़ा आ रहा है… चोद दे मुझे…”

वो मेरे ऊपर झुकी और मेरे होंठों को चूमने लगी। उसकी जीभ मेरे मुँह में थी, और उसका हाथ डिल्डो को मेरी चूत में और तेज़ी से चला रहा था। मैं आनंद की चरम सीमा पर थी। मेरी चूत बार-बार सिकुड़ रही थी, जैसे वो डिल्डो को और गहरे अंदर खींचना चाहती हो। मैंने कोमल के कंधों को ज़ोर से पकड़ लिया और चिल्लाई, “हाय… कोमल… मैं झड़ने वाली हूँ… हाय… मेरा निकल रहा है… हाय… आह… मैं गई… मर गई…”

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मेरा पूरा बदन काँपने लगा, और मेरी चूत से पानी की धार निकल पड़ी। मैं पूरी तरह झड़ गई थी। कोमल ने डिल्डो को धीरे-धीरे बाहर निकाला, और मेरी चूत अभी भी सिकुड़ रही थी। मैं हाँफ रही थी, मेरी आँखें बंद थीं, और मेरा बदन सुस्त पड़ गया था। लेकिन कोमल का मन अभी भरा नहीं था।

वो बिस्तर पर उल्टा लेट गई और अपनी गाँड ऊपर उठा दी, जैसे घोड़ी बन गई हो। वो बोली, “नेहा… अब तू मुझे चोद… मुझे भी वही मज़ा दे…”

मैंने डिल्डो उठाया और उसकी गाँड के छेद पर रखा। मैंने थोड़ा-सा थूक लगाकर छेद को चिकना किया और डिल्डो को धीरे-धीरे अंदर डाला। कोमल की गाँड इतनी खुली थी कि डिल्डो आसानी से अंदर चला गया। वो सिसकारी भरने लगी, “हाय… नेहा… और अंदर… चोद मुझे…”

मैंने डिल्डो को उसकी गाँड में तेज़ी से अंदर-बाहर करना शुरू किया। कोमल की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। मैंने उसकी कमर पकड़ ली और पूरी ताकत से डिल्डो को उसकी गाँड में पेलने लगी। वो बिस्तर पर तड़प रही थी, और उसकी चूत से भी पानी टपक रहा था। फिर मैंने डिल्डो को उसकी गाँड से निकाला और उसकी चूत में डाल दिया। मैंने उसे उसी तरह चोदा, जैसे उसने मुझे चोदा था। डिल्डो उसकी चूत में गहरे तक जा रहा था, और कोमल की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं, “हाय… नेहा… और ज़ोर से… चोद दे… हाय… मैं झड़ने वाली हूँ…”

कुछ ही देर में कोमल का बदन अकड़ गया, और वो ज़ोर से चिल्लाई, “हाय… मैं गई… मेरा निकल गया…” उसकी चूत से पानी की धार निकली, और वो बिस्तर पर ढह गई। हम दोनों हाँफते हुए एक-दूसरे के बगल में लेट गए। मैंने कोमल को गले लगाया और उसके माथे पर एक प्यार-भरा चुम्बन दिया।

उस रात हम दोनों ने एक-दूसरे को बार-बार प्यार किया। कोमल ने मुझे डिल्डो से कई बार चोदा, और मैंने भी उसे उसी तरह मस्त किया। हर बार नया मज़ा था, नया रोमांच था। सुबह होने तक हम दोनों थककर चूर हो चुकी थीं, लेकिन हमारे चेहरों पर संतुष्टि की चमक थी।

अगले दो दिन भी हमने ऐसे ही बिताए। दिन में हम गपशप करतीं, हँसती-खेलतीं, और रात होते ही एक-दूसरे की बाहों में खो जातीं। कोमल ने मुझे वो सुख दिया, जो मैंने पहले कभी नहीं जाना था। और मैंने भी उसे पूरी तरह संतुष्ट किया। जब रमेश वापस आया, तो हम दोनों फिर से अपनी सामान्य ज़िंदगी में लौट आए, लेकिन वो तीन रातें मेरे लिए हमेशा यादगार रहेंगी।

पाठकों, आपको मेरी कहानी कैसी लगी, अपने विचार ज़रूर भेजें।

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