हेल्लो दोस्तों, मेरा नाम रिया शर्मा है। मैं दिल्ली की रहने वाली हूँ। मेरी उम्र 29 साल की है, और मेरी शादी को कई साल हो चुके हैं। शादी से पहले मैं इतनी हॉट और सेक्सी थी कि कोई भी मर्द मुझे देखकर बस पागल हो जाता था। मेरी कातिलाना आँखें, गुलाबी गाल, और रसीले होंठ किसी का भी दिल चुरा लेते थे। मेरी चूचियाँ तो मानो तरबूज की तरह गोल और मुलायम थीं, जिन्हें देखकर हर लड़का बस उन्हें दबाने की सोचता था। मेरी चूत? वो तो बिल्कुल मखमली थी, जिसे छूने की चाहत हर किसी के मन में उठती थी। शादी से पहले मैंने एक बार अपने बॉयफ्रेंड के साथ चुदाई की थी। उसकी पहली ठोकाई ने मेरी चूत की सील तोड़ दी थी, और खून भी निकला था। उसने मुझे समझाया कि पहली बार ऐसा होता है। उसके बाद मैंने किसी और को मौका नहीं दिया, हालाँकि मेरे पीछे लड़कों की लाइन लगी रहती थी। कई बार तो मेरे पापा उन लड़कों को डाँटते थे, जो मेरे घर के आसपास चक्कर काटते थे। वो सब बहाने बनाते, “दोस्त का इंतज़ार कर रहा हूँ,” लेकिन मैं जानती थी कि उनका असली मकसद क्या था।
मेरी शादी को सात साल हो चुके हैं। मेरे पति ने शुरुआती दो साल तक मेरी चूत की ऐसी चुदाई की कि मेरी सारी प्यास बुझ गई। हर रात वो अपने लंड से मेरी चूत को रगड़ते, और मैं मजे में सिसकियाँ लेती। फिर मैं प्रेग्नेंट हो गई, और नौ महीने बाद मेरे बेटे का जन्म हुआ। मैंने उसका नाम रॉनी रखा। समय बीतता गया, और अब रॉनी पाँच साल का हो गया। अब उसकी पढ़ाई का समय था। मैं चाहती थी कि मेरा बेटा दिल्ली के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़े, ताकि वो बड़ा होकर कुछ बन सके। मैं नहीं चाहती थी कि उसे जिंदगी में भटकना पड़े।
कुछ दिन पहले की बात है। मैंने रॉनी के दाखिले के लिए दिल्ली के टॉप स्कूलों में, जैसे कि वसंत विहार के श्री राम स्कूल और पाँच अन्य स्कूलों में फॉर्म भरे। लेकिन कहीं भी उसका नाम नहीं आया। मैं परेशान हो गई। फिर मेरे पति के एक दोस्त ने मुझे एक दलाल से मिलवाया। उसने कहा, “ये आपकी मदद कर देगा। कोई और काम हो तो मुझे बताना।” मैंने कहा, “ठीक है।” पति का दोस्त चला गया, और मैं अपने बेटे के साथ उस दलाल के पास बैठी थी। वो मुझे घूर रहा था। मैंने नोटिस किया कि वो बार-बार मेरी चूचियों को ताड़ रहा था और अपने लंड को पैंट के ऊपर से सहला रहा था। मुझे अंदाज़ा हो गया कि वो मेरे साथ चुदाई की सोच रहा है।
मैंने उससे पूछा, “आप मेरे बेटे का दाखिला तो करवा देंगे न?” उसने जवाब दिया, “हाँ मैडम, हमारा यही काम है। लेकिन आपको भी मेरे साथ थोड़ी मेहनत करनी होगी।” मैंने कहा, “आप जो कहेंगे, मैं करूँगी। बस मेरा बेटा स्कूल में चला जाए।” उसने फिर कहा, “देखिए, मैं सबसे पैसे लेता हूँ, लेकिन आप मुझे बहुत पसंद आई हैं। मैं आपसे पैसे नहीं लूँगा, बस आपको मेरे बिस्तर पर आना होगा। आपका दाखिला भी हो जाएगा।” उसकी बात सुनकर मेरा खून खौल गया। मैंने गुस्से में कहा, “तुमने मुझे क्या समझ रखा है? मैं कोई रंडी नहीं हूँ जो तुम्हारे कहने पर बिस्तर पर चली जाऊँ। दाखिले की बात है, मैं खुद देख लूँगी।”
अगले दिन मुझे पता चला कि श्री राम स्कूल का प्रिंसिपल घूसखोर है और पैसे लेकर दाखिला करता है। मैंने सोचा, यही मौका है। मैं अगले दिन उसके ऑफिस पहुँच गई। मैंने उससे कहा, “सर, आप जितने पैसे कहेंगे, मैं दूँगी। बस मेरे बेटे का दाखिला कर दीजिए।” प्रिंसिपल जवान और हट्टा-कट्टा था। मैंने देखा कि वो मुझे भूखी नजरों से घूर रहा था, जैसे मेरा जिस्म नाप रहा हो। मैंने फिर कहा, “सर, अगर ये हो गया तो मैं आपकी बहुत आभारी रहूँगी। मैं बड़ी उम्मीद लेकर आई हूँ।”
उसने जवाब दिया, “चिंता मत करो। तुम बस अपने बच्चे को यहाँ पढ़ने की तैयारी करो। लेकिन मैं बता दूँ, मैं सबसे तीन लाख रुपये लेता हूँ। तुम्हारे लिए मैं कुछ छूट दे सकता हूँ। तुम मुझे सिर्फ एक लाख दो, और साथ में मुझे तुम्हारे जिस्म के साथ समय बिताने दो। ये मेरा ऑफर है। चाहो तो पैसे दो और दाखिला करवाओ, नहीं तो घर जाओ। सोचने के लिए एक दिन का समय ले लो, लेकिन कल तक जवाब दे देना।” उसकी बात सुनकर मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर था, लेकिन मैं चुपचाप वहाँ से निकल आई।
रात भर मैंने उसके बारे में सोचा। अगर कहीं और मौका न मिला तो क्या होगा? मेरे बेटे का भविष्य दाँव पर था। आखिरकार, मैंने फैसला कर लिया कि मैं रॉनी के लिए कुछ भी करूँगी। सुबह मैंने प्रिंसिपल को फोन किया और कहा, “मैं तैयार हूँ।” उसने जवाब दिया, “ठीक है, आज स्कूल आ जाओ।” मैंने कहा, “बच्चे को अकेले कहाँ छोड़ूँ?” उसने कहा, “कोई बात नहीं, उसे भी साथ ले आना।” मैंने हामी भर दी।
मैं रॉनी के साथ उसके ऑफिस पहुँची। मैंने फॉर्म भरा और जमा कर दिया। फिर प्रिंसिपल, जिसका नाम अर्जुन मेहरा था, ने कहा, “चलो, मेरे फार्महाउस पर चलते हैं। वहीं सब कुछ करेंगे।” मैं अपने बेटे के साथ उसके फार्महाउस पहुँची। उसने रॉनी को कुछ खिलौने दे दिए, और वो बाहर हॉल में खेलने में व्यस्त हो गया। फिर अर्जुन मुझे अपने बेडरूम में ले गया।
उसने बिना वक्त गँवाए अपने कपड़े उतार दिए। उसका जिस्म पत्थर की तरह सख्त था, और उसका लंड पहले से ही तना हुआ था। उसने मुझे बिस्तर पर धकेल दिया और मेरी साड़ी का पल्लू हटाया। उसका हाथ मेरी चूचियों पर पड़ा, और वो उन्हें धीरे-धीरे सहलाने लगा। उसकी उंगलियाँ मेरी मुलायम चूचियों को दबा रही थीं, जैसे वो उनका रस निचोड़ना चाहता हो। फिर उसने मेरी कमर को चूमा, मेरे पेट पर अपनी जीभ फेरी, और मेरी नाभि में अपनी जीभ डाल दी। मुझे गुदगुदी हुई, लेकिन साथ ही एक अजीब सी गर्मी भी मेरे जिस्म में दौड़ने लगी। मैं जानती थी कि ये गलत है, लेकिन अपने बेटे के लिए मैंने खुद को रोक लिया।
अर्जुन का मूड अब पूरी तरह बन चुका था। उसने मेरे ब्लाउस के बटन खोले और मेरी काली ब्रा को एक झटके में उतार फेंका। मेरी गोरी चूचियाँ आजाद हो गईं। उसने उन्हें देखकर कहा, “क्या माल है तू, रिया! तेरी चूचियाँ तो मानो दूध की कटोरी हैं!” उसने मेरी चूचियों को दोनों हाथों से मसला, जैसे कोई आटा गूँथ रहा हो। दर्द के साथ मज़ा भी आ रहा था। मैं सिसक रही थी, “आह… धीरे करो…” लेकिन वो कहाँ सुनने वाला था। उसने मेरी एक चूची को अपने मुँह में लिया और चूसने cristallized। उसकी जीभ मेरे निप्पल को चाट रही थी, और वो बार-बार उन्हें काट रहा था। मेरी सिसकियाँ तेज हो गईं, “उफ्फ… अर्जुन… आह…!” मेरे निप्पल सख्त हो चुके थे, और मेरी चूत में एक अजीब सी हलचल शुरू हो गई थी।
वो मेरी चूचियों को चूसता रहा, कभी बायीं, कभी दायीं। उसका एक हाथ मेरी कमर पर था, जो धीरे-धीरे नीचे सरक रहा था। उसने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींचा और उसे उतार फेंका। अब मैं सिर्फ लाल पैंटी में थी। उसने मेरी पैंटी के ऊपर से मेरी चूत को सहलाया। उसकी उंगलियाँ मेरी चूत की दरार पर रगड़ रही थीं, और मैं तड़प रही थी। फिर उसने एक झटके में मेरी पैंटी भी उतार दी। मेरी चूत, जो हल्की झांटों से सजी थी, अब उसके सामने थी। उसने मेरी चूत को देखकर कहा, “क्या गुलाबी फूल है ये! आज इसका रस पीना है मुझे।”
उसने मेरी टाँगें चौड़ी कीं और अपनी जीभ मेरी चूत पर रख दी। उसकी गर्म जीभ मेरी चूत की पंखुड़ियों को चाट रही थी, और मैं पागल हो रही थी। वो मेरी चूत के दाने को चूस रहा था, और उसकी जीभ मेरी चूत के अंदर तक जा रही थी। मैं चीख रही थी, “आह… अर्जुन… उफ्फ… ये क्या कर रहे हो… ओह… मर गई!” मेरी चूत गीली हो चुकी थी, और मेरा पानी निकलने वाला था। तभी मुझे बाहर से रॉनी की आवाज़ सुनाई दी, “मम्मी, आप कहाँ हो?” मेरा दिल धक् से रह गया। मैंने अर्जुन को इशारा किया, लेकिन वो रुका नहीं। उसने मेरी चूत को और तेजी से चाटना शुरू किया। मैं सिसकते हुए बोली, “रॉनी, बेटा, वहीं खेलो… मम्मी यहाँ है!”
अर्जुन ने मेरी चूत में अपनी जीभ डाल दी, और मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया। मैंने सिसकी लेते हुए अपने मुँह को दबाया, ताकि मेरी चीख बाहर न जाए। रॉनी की आवाज़ फिर आई, “मम्मी, मैं अंदर आऊँ?” मैं घबरा गई। मैंने जल्दी से कहा, “नहीं बेटा, बस दो मिनट, मम्मी आ रही है!” अर्जुन हँसते हुए बोला, “शांत रहो, रिया। उसे खेलने दे।” उसने मेरी चूत को चाटना बंद किया और अपनी दो उंगलियाँ मेरी चूत में डाल दीं। उसकी उंगलियाँ मेरी चूत की दीवारों को रगड़ रही थीं, और मैं तड़प रही थी। “आह… बस करो… उफ्फ… रॉनी सुन लेगा… ओह!” मैं चिल्ला रही थी, लेकिन मेरे जिस्म में एक आग सी लगी थी।
उसने अपनी उंगलियों को और तेजी से चलाया, और मेरी चूत ने फिर से पानी छोड़ दिया। मेरा पूरा बदन काँप रहा था, जैसे कोई करंट दौड़ रहा हो। तभी दरवाजे पर रॉनी ने दस्तक दी, “मम्मी, ये क्या शोर है?” मैंने जल्दी से चादर खींची और अपने जिस्म को ढक लिया। अर्जुन ने हँसते हुए कहा, “रिया, टेंशन मत लो। मैं देखता हूँ।” वो उठा, अपनी पैंट पहनी, और दरवाजा खोलकर रॉनी से बोला, “बेटा, मम्मी थोड़ा काम कर रही हैं। तुम ये नया खिलौना लो और बाहर खेलो।” रॉनी खुश होकर खिलौना लेकर चला गया। मैंने राहत की साँस ली, लेकिन मेरा दिल अभी भी धड़क रहा था।
अर्जुन वापस आया और बोला, “अब कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा।” उसने अपना लंड पकड़ा। उसका लंड 8 इंच लंबा और मोटा था, जैसे कोई लोहे का डंडा। उसने उसे मेरी चूत के मुँह पर रखा और हल्के से रगड़ा। मैं सिहर उठी। फिर उसने एक जोरदार धक्का मारा, और उसका आधा लंड मेरी चूत में घुस गया। मैं चीख पड़ी, “आह… माँ… धीरे… फट जाएगी मेरी चूत!” लेकिन वो कहाँ रुकने वाला था। उसने एक और धक्का मारा, और उसका पूरा लंड मेरी चूत में समा गया। मेरी चूत उसकी ठोकाई से थरथरा रही थी। वो तेजी से धक्के मारने लगा। उसकी कमर मेरी कमर से टकरा रही थी, और “चट-चट-चट” की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी।
मैं चिल्ला रही थी, “आह… अर्जुन… उफ्फ… कितना मोटा है तेरा… ओह… धीरे कर… मर गई!” लेकिन उसे मेरी चीखों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वो मेरी चूचियों को मसलते हुए मेरी चूत को पेल रहा था। उसका लंड मेरी चूत की गहराइयों को नाप रहा था, और हर धक्के के साथ मेरी चूत में एक मीठा दर्द उठ रहा था। मैंने अपनी टाँगें और चौड़ी कर दीं, ताकि वो और गहराई तक जाए। वो मेरे ऊपर झुका और मेरे होंठों को चूसने लगा। उसकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मैं भी उसका साथ दे रही थी।
कुछ देर बाद उसने मुझे पलटा और घोड़ी बना दिया। उसने मेरी गांड को थपथपाया और कहा, “क्या मस्त गांड है तेरी, रिया। आज इसे भी चखूँगा।” मैं डर गई, लेकिन मेरी चूत की आग इतनी थी कि मैंने कुछ नहीं कहा। उसने मेरी गांड के छेद पर थूक लगाया और अपनी उंगली डाल दी। मैं सिहर उठी। फिर उसने अपना लंड मेरी गांड पर सेट किया और धीरे-धीरे दबाव डाला। उसका मोटा लंड मेरी गांड में घुसने लगा, और मैं दर्द से चीख पड़ी, “आह… नहीं… बस कर… फट जाएगी!” लेकिन उसने मेरी कमर पकड़ी और एक जोरदार धक्का मारा। उसका लंड मेरी गांड में आधा घुस गया। मैं रोने लगी, लेकिन वो रुका नहीं। उसने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए, और कुछ देर बाद दर्द कम होने लगा।
अब वो मेरी गांड को तेजी से चोद रहा था। उसका लंड मेरी गांड को रगड़ रहा था, और मैं सिसक रही थी, “आह… उफ्फ… कितना मज़ा… ओह… और कर!” वो मेरी चूचियों को पीछे से मसल रहा था, और उसकी उंगलियाँ मेरी चूत के दाने को सहला रही थीं। मैं फिर से पानी छोड़ने वाली थी। तभी मुझे फिर से रॉनी की आवाज़ सुनाई दी, “मम्मी, मैं थक गया!” मैं घबरा गई। अर्जुन ने मेरी गांड में धक्के मारते हुए कहा, “शांत रहो, मैं हूँ ना।” उसने अपनी स्पीड कम की और मेरी चूत में उंगली डाल दी, ताकि मैं चीख न सकूँ। मैंने सिसकते हुए कहा, “रॉनी, बेटा, बस दो मिनट… मम्मी आ रही है!”
अर्जुन ने अपनी स्पीड बढ़ा दी, और मेरी चूत ने फिर से रस छोड़ दिया। लेकिन वो अभी भी मेरी गांड को पेल रहा था। फिर उसने मुझे पलटा और मेरे मुँह के पास अपना लंड लाया। “चूस इसे, रिया,” उसने कहा। मैंने उसका लंड अपने मुँह में लिया। उसका स्वाद नमकीन था, और मैं उसे चूसने लगी। वो मेरे बाल पकड़कर मेरे मुँह को चोदने लगा। उसका लंड मेरे गले तक जा रहा था, और मैं गों-गों की आवाज़ निकाल रही थी। कुछ देर बाद उसने अपना लंड निकाला और मेरी चूचियों के बीच रख दिया। उसने मेरी चूचियों को दबाकर एक टनल बनाया और उसमें अपना लंड पेलने लगा। मैं उसकी ठोकाई से मचल रही थी।
आखिरकार, उसका लंड फट पड़ा। उसका गर्म माल मेरी चूचियों, गले, और मुँह पर गिरा। मैं घिन से मुँह फेरने लगी, लेकिन उसने मेरे मुँह में अपना लंड डाल दिया और कहा, “चाट इसे।” मैंने मजबूरी में उसका माल चाटा। इसका स्वाद अजीब लेकिन उत्तेजक था। मैंने उसका सारा माल निगल लिया।
चुदाई के बाद वो मेरी चूचियों और चूत से खेलता रहा। उसने मेरे निप्पल को चूसा, मेरी चूत को सहलाया, और मेरी गांड को थपथपाया। फिर उसने कहा, “रिया, अगर तुम हर हफ्ते मेरे बिस्तर पर आई, तो मैं तुमसे एक भी पैसा नहीं लूँगा।” मैंने मना कर दिया। मैंने कहा, “मैं पैसे दे दूँगी। अगर मेरे पति को पता चला, तो वो मुझे घर से निकाल देंगे।”
इस तरह मैंने अपने बेटे के दाखिले के लिए प्रिंसिपल से चुदाई करवाई। मेरे बेटे का भविष्य मेरे लिए सबसे जरूरी था, और इसके लिए मैंने अपने जिस्म का सौदा कर लिया।