नाज़ बाजी की चुदाई

हैलो दोस्तों, मेरा नाम शाहिद है। अब मैं 31 साल का हूँ, पर ये कहानी उस वक़्त की है जब मैं 14 साल का था—8वीं क्लास का नटखट लड़का। मेरी बाजी, नाज़, तब 17 की थीं, 11वीं में पढ़ती थीं। बाजी की खूबसूरती का क्या कहना—गोरा-चिट्टा रंग, हाइट 5 फुट 2 इंच, मीडियम फिगर, चूचे गोल-गोल, जैसे पके हुए आम, कमर पतली, और गांड इतनी भरी कि चलते वक़्त लहराती थी। उनके गाल गुलाबी, आँखें कजरारी, और होंठ रसीले—हर लड़का उनकी एक झलक के लिए तरसता। अब उनकी शादी हो चुकी है, बच्चे हैं, पर तब वो जवानी की आग थीं, और उस आग ने पड़ोस के प्रवीन भैया को भी जला डाला था।

हमारा घर छोटा-सा था, पर प्यार से भरा। पापा का देहांत हो चुका था। मम्मी नगर निगम में नौकरी करती थीं—सुबह 8 बजे निकलतीं, शाम 6 बजे लौटतीं। दिन का वक़्त हमारा था। पड़ोस में एक मारवाड़ी परिवार रहता था। उसमें प्रवीन भैया—साँवला रंग, हाइट 5 फुट 8 इंच, मीडियम बॉडी, चौड़ी छाती, और मर्दाना अंदाज़। वो कॉलेज के सेकंड ईयर में थे, 20-21 के होंगे। उनका छोटा भाई अतुल मेरी क्लास में था—मेरा जिगरी दोस्त। दोपहर में प्रवीन भैया और अतुल हमारे घर आ जाते। बाजी और प्रवीन भैया बातों में मशगूल—हँसी-ठिठोली, नज़रों का खेल। मैं और अतुल खेलते—कभी कैरम, कभी लूडो, कभी छुपन-छुपाई। लेकिन मुझे क्या पता था कि बाजी और प्रवीन भैया की बातें सिर्फ़ बातें नहीं थीं—उनमें हवस की चिंगारी सुलग रही थी।

एक दिन की बात है। गर्मी की दोपहर थी। आसमान में बादल छाए थे, हल्की-हल्की ठंडी हवा चल रही थी। मैं और अतुल छुपन-छुपाई खेल रहे थे। अतुल की बारी थी मुझे ढूँढने की। मैं भागा, अंदर वाले हॉल में घुसा। हॉल में पुराना फर्नीचर, कुछ बक्से, और एक छज्जा था—जहाँ हम टूटी-फूटी चीज़ें, पुराने कपड़े, और सामान रखते थे। छज्जे के आगे मोटा, लाल पर्दा लटकता था, जो हवा में हल्का-हल्का हिल रहा था। मैं चुपके से छज्जे पर चढ़ गया, पर्दे के पीछे छुपा। पर्दे की झिरी से बाहर झाँक सकता था। मैंने साँस रोकी, हँसी दबाई—अतुल को बेवकूफ बनाने का मज़ा ही अलग था।

अतुल ढूँढने आया। “शाहिद, कहाँ है?” वो चिल्लाया। उसने हॉल में हर जगह देखा—अलमारी खोली, पलंग के नीचे झाँका, खिड़की के पास गया। मैं न मिला। वो गुस्से में बड़बड़ाया, “शाहिद, बाहर आ, वरना मैं जा रहा हूँ!” मैं चुप रहा, छज्जे पर सटकर बैठा। तभी नाज़ बाजी और प्रवीन भैया हॉल में आए। बाजी ने नीली कुर्ती और सफेद सलवार पहनी थी—कुर्ती इतनी फिट कि उनके चूचे उभर रहे थे। प्रवीन भैया ने सफेद टी-शर्ट और काला लोअर—उनकी छाती टी-शर्ट में कसी हुई, बाँहों की मांसपेशियाँ साफ दिख रही थीं। बाजी ने आधा दरवाज़ा बंद किया, दरवाज़े को पकड़कर बाहर झाँकने लगीं, जैसे अतुल को देख रही हों। उनकी कमर का कर्व, सलवार में उभरी गांड—मैं छज्जे पर बैठा, नज़रें टिकीं।

प्रवीन भैया चुपके से पीछे आए। उनकी आँखों में हवस चमक रही थी। उन्होंने बाजी की कमर में बाँहें डालीं, कसकर जकड़ा, और पागलों सा चूमने लगे। पहले गले पर—धीरे-धीरे, फिर गालों पर, कान की लौ को मुँह में लिया। बाजी की साँसें तेज़ हुईं—वो हल्का सा कसमसाईं, पर विरोध न किया। प्रवीन भैया के होंठ उनकी गर्दन पर फिसले, कंधों पर चूमते हुए नीचे आए। बाजी की आँखें आधी बंद, होंठ काँप रहे थे। मैं सन्न—ये क्या हो रहा था? मेरी सगी बाजी, जिन्हें मैं मासूम समझता था, प्रवीन भैया के साथ ये सब? मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़का, पर मैं चुप रहा—डर था कहीं पकड़ा न जाऊँ।

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बाहर से अतुल की आवाज़ गूँजी, “ठीक है, शाहिद! मैं जा रहा हूँ, बाय!” ये सुनते ही बाजी ने फट से दरवाज़े की कुंडी चढ़ाई। प्रवीन भैया ने बाजी को पलटाया, सीने से लगाया। उनकी आँखें बाजी के चूचों पर टिकीं—कुर्ती में उभरे हुए, साँसों के साथ हिल रहे। उन्होंने बाजी के होंठ चूसने शुरू किए—ज़ोर-ज़ोर से, जैसे भूखे शेर। बाजी भी उनकी पीठ कसकर पकड़ी, नाखून गड़ाते हुए। वो प्रवीन भैया के होंठ चूमने लगीं, फिर गले पर मुँह लगाया, जीभ से चाटने लगीं। दोनों की साँसें मिल रही थीं, कमरा गर्म हो गया। मैं छज्जे पर बैठा, पर्दे की झिरी से सब देख रहा था—मेरा गला सूख रहा था, शरीर में सिहरन सी दौड़ रही थी।

प्रवीन भैया ने बाजी को बाँहों में उठाया, पलंग पर ले गए। दोनों बिस्तर पर गिरे, एक-दूसरे से लिपटे। प्रवीन भैया ने बाजी की कुर्ती ऊपर की—उनका गोरा, चिकना पेट चमक रहा था। वो पेट पर चूमने लगे, जीभ से नाभि के आसपास गोल-गोल चाटने लगे। बाजी सिसकारी, “स्स… आह…” उनकी उंगलियाँ प्रवीन भैया के बालों में उलझीं। प्रवीन भैया ऊपर बढ़े, कुर्ती और ऊँची की। बाजी ने ब्रा नहीं पहनी थी—उनके गोरे-गोरे चूचे आज़ाद। गोल, टाइट, काले निप्पल सख्त—जैसे दो पके आम। मैंने कभी ऐसा नज़ारा न देखा। मेरा दिमाग़ सुन्न, पर आँखें हट न सकीं। प्रवीन भैया की आँखें चमकीं—वो चूचों पर टूट पड़े। पहले धीरे-धीरे चूमा—हर तरफ, नरम-नरम। फिर जीभ निकाली, निप्पल के आसपास चाटने लगे। बाजी की सिसकारियाँ तेज़ हुईं, “आह… हूँ…” वो प्रवीन भैया का सिर दबाने लगीं।

प्रवीन भैया ने एक निप्पल मुँह में लिया, ज़ोर से चूसा। बाजी की पीठ तनी, “उफ्फ… स्स…” दूसरा निप्पल चूसा—धीरे-धीरे, फिर तेज़। बाजी का चेहरा लाल, आँखें बंद, होंठ काट रही थीं। प्रवीन भैया ने दोनों चूचे बारी-बारी चूसे, दबाए, जीभ से खेला। मैं छज्जे पर बैठा, पसीना छूट रहा था। मेरा शरीर गर्म, गला सूखा—कुछ समझ न आया, पर नज़ारा छोड़ना नामुमकिन था। प्रवीन भैया ने बाजी को इशारा किया। बाजी उठीं, कुर्ती उतार फेंकी। उनका गोरा बदन चाँदनी सा चमका। प्रवीन भैया ने टी-शर्ट उतारी—उनकी चौड़ी, बालों वाली छाती, पसीने से भीगी। वो बाजी के ऊपर आए, अपनी छाती उनके चूचों पर रगड़ते हुए होंठ चूसने लगे। बाजी की सिसकारियाँ, प्रवीन भैया की भारी साँसें—कमरा हवस से भर गया।

प्रवीन भैया ने बाजी की सलवार खींची। पैंटी के साथ नीचे सरकी—बाजी पूरी नंगी। उनकी चूत पर हल्के-हल्के बाल, गुलाबी चूत चमक रही थी। प्रवीन भैया ने उनके पैरों पर चूमा—टखनों से शुरू, धीरे-धीरे ऊपर। जाँघों पर जीभ फेरी, बाजी कसमसाईं। वो चूत के पास रुके, बाजी की साँसें रुकीं। फिर प्रवीन भैया ने अपना लोअर उतारा—उनका मोटा, काला लंड तना हुआ, टोपा गीला। दोनों नंगे—एक-दूसरे को भूखी नज़रों से देख रहे थे।

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प्रवीन भैया ने बाजी की गोरी जाँघें चूमीं, जीभ से चाटते हुए चूत तक पहुँचे। बाजी के पैर खोले, जीभ चूत पर लगाई। बाजी चीखी, “आह… हाय…” उनकी आँखें बंद, हाथ मुठ्ठियाँ बाँधे। प्रवीन भैया पागल सा चूत चाटने लगे—ज़ोर-ज़ोर से, जैसे शहद चूस रहे हों। बाजी की कमर हिलने लगी, “उफ्फ… स्स… और…” वो प्रवीन भैया का सिर चूत पर दबाने लगीं। प्रवीन भैया ने जीभ अंदर डाली, चूत का रस चाटा। बाजी का जिस्म सिकुड़ा, वो झड़ गईं—चूत गीली, चमक रही थी। प्रवीन भैया रुके नहीं—चाटते हुए पेट, चूचे, निप्पल, गले, होंठ तक गए। बाजी की साँसें थम सी गई थीं।

फिर प्रवीन भैया ने बाजी के होंठों की ओर अपनी छाती लाई। बाजी ने सिर उठाया, उनकी बालों वाली छाती चूमी—धीरे-धीरे, जीभ से चाटा। प्रवीन भैया ऊपर सरके, बाजी ने उनके पेट पर चूमा। वो और ऊपर गए। आखिर वो पल—प्रवीन भैया ने अपना तना हुआ, मोटा, काला लंड बाजी के होंठों पर रखा। टोपा गीला, चमक रहा था। बाजी ने जीभ निकाली, टोपा चाटा—धीरे-धीरे, फिर ज़ोर से। लंड मुँह में लिया, लॉलीपॉप सा चूसने लगीं। प्रवीन भैया की सिसकारी, “आह… हा…” वो हल्के-हल्के ऊपर-नीचे होने लगे, मानो बाजी का मुँह चोद रहे हों। लंड लंबा था—पूरा मुँह में न समाया। बाजी का थूक लंड पर लगा, चमक रहा था। वो प्रवीन भैया की कमर पकड़कर लंड अंदर-बाहर कर रही थीं। मैंने गौर किया—बाजी की बगल में हल्के-हल्के बाल, जो लंड के साथ हिल रहे थे। उनका गोरा बदन, पसीने से भीगा, चमक रहा था।

काफी देर चूसने के बाद प्रवीन भैया ने बाजी को बाँहों में भरा, फिर से होंठ चूसे। बाजी की आँखें हवस से लाल। प्रवीन भैया ने उनके पैर उठाए, लंड पर थूक लगाया। वो लम्हा आया—नाज़ बाजी की चुदाई। दोनों इसके लिए तड़प रहे थे। प्रवीन भैया ने धीरे-धीरे मोटा लंड चूत में डाला। बाजी ने ज़ोर से “उम्म्ह्ह… आह…” चीखी, आँखें तन गईं, मुँह खुला रहा। प्रवीन भैया ने आधा लंड डाला, रुके, फिर धीरे से पूरा पेल दिया। बाजी की सिसकारी, “हाय… स्स…” मैं छज्जे पर बैठा—मुझे कुछ समझ न आया, पर साफ था, बाजी का ये पहला मौका नहीं। प्रवीन भैया बाजी के ऊपर लेटे, लंड चूत में डाले, होंठ चूसते हुए धक्के मारने लगे—धीरे-धीरे, फिर तेज़। बाजी के चूचे हिल रहे थे, उनके हाथ प्रवीन भैया की पीठ पर—नाखून गड़ाते, पकड़ने की कोशिश में। उनकी चिकनी, मर्दाना पीठ फिसल रही थी।

प्रवीन भैया ने बाजी के होंठ छोड़े, उनकी कलाइयाँ पकड़कर ऊपर कीं। गले, कंधे, बगल को जीभ से चाटने लगे—पसीने की खुशबू, बाजी की मादक सिसकारियाँ। वो ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगे। चप-चप की आवाज़ गूँजी—बाजी की जाँघें उनकी जाँघों से टकरा रही थीं। बाजी की चूत गीली, लंड हर धक्के में चमक रहा था। मैं सब भूलकर देख रहा था—मेरी सगी बहन की चुदाई। अब मुझे मज़ा आने लगा था—शर्म थी, पर सिहरन ज़्यादा। प्रवीन भैया की साँसें तेज़, पसीना टपक रहा था। बाजी की सिसकारियाँ, “आह… और… तेज़…” कमरा हवस की आग में जल रहा था।

थोड़ी देर बाद प्रवीन भैया उठे, बाजी को कमर से पलटाया। बाजी हँसने लगीं—उनकी हँसी में शरारत, जैसे कह रही हों, “और करो।” उनकी गोरी, मोटी गांड ऊपर थी—चिकनी, भरी-भरी। पीठ पर कुछ शॉल, गोरे बदन पर और निखर रहे थे। प्रवीन भैया ने लंड गांड के ऊपर रखा, पीठ चूमने लगे—गले से कमर तक, जीभ से चाटते हुए। बाजी सिसकारी, “उफ्फ… हा…” प्रवीन भैया ने मस्ती में जीभ फेरी, बाजी की गांड सहलाई। फिर कमर पकड़कर ऊपर उठाया। बाजी घुटनों पर झुकीं, सिर नीचे, बाल आगे लटके। उनकी चूत पीछे से खुली—गुलाबी, गीली। प्रवीन भैया ने अँगूठों से चूत फैलाई, लंड सेट किया, और ज़ोर से पेल दिया।

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बाजी चीखी, “आह… धीरे…” पर प्रवीन भैया रुके नहीं। कमर पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से ठोकने लगे। बाजी घोड़ी बनी थीं—उनकी गांड हर धक्के में हिल रही थी, चप-चप की आवाज़ तेज़। बाजी की सिसकारियाँ, “आह… हाय… और…” उनका सिर बार-बार ऊपर उठता, बाल इधर-उधर बिखरे। प्रवीन भैया का लंड चूत में अंदर-बाहर, चमक रहा था। बाजी की चूत रस छोड़ रही थी—गीली, लाल। प्रवीन भैया ने एक हाथ से बाजी का चूचा पकड़ा, ज़ोर से दबाया। बाजी की चीख, “उफ्फ… हा…” कमरा उनकी चुदाई की गूँज से भर गया। मैं छज्जे पर बैठा—दिल धड़क रहा था, शरीर में आग सी लगी थी।

प्रवीन भैया की स्पीड बढ़ी। बाजी की सिसकारियाँ चीखों में बदलीं, “आह… तेज़… हाय…” वो कमर हिलाकर साथ दे रही थीं। प्रवीन भैया का चेहरा लाल, पसीना टपक रहा था। अचानक उनका शरीर अकड़ा—वो निकलने वाले थे। उन्होंने जल्दी से लंड निकाला, सारा माल बाजी की पीठ पर छोड़ा—गाढ़ा, सफेद, गर्म। बाजी की पीठ चमक उठी। जो बचा, बाजी पलटीं। प्रवीन भैया ने उनका सिर पकड़ा, लंड मुँह में डाला। बाजी ने बाकी माल चूसा—जीभ से लंड साफ किया, टोपा चाटा। दोनों की साँसें थम सी गई थीं।

फिर दोनों उठे। बाजी ने अलमारी से पुराना कपड़ा निकाला, अपनी पीठ, कमर, गांड साफ की। कपड़ा प्रवीन भैया को फेंका—उन्होंने लंड पोंछा। दोनों नंगे खड़े होकर फिर चूमने लगे—लंबा, गहरा किस। बाजी के चूचे प्रवीन भैया की छाती से दबे, उनके हाथ बाजी की गांड सहला रहे थे। फिर खिड़की से झाँका—शायद डर था मैं बाहर न होऊँ। उन्हें नहीं पता था मैं छज्जे पर छुपा, सब देख रहा था। धीरे से दरवाज़ा खोला, बाहर झाँका—कोई नहीं। दोनों कपड़े पहनकर चुपके से बाहर गए। मैं छज्जे से उतरा—दिमाग़ सुन्न, शरीर गर्म। बाद में अतुल को सब बताया—वो हैरान, पर उत्सुक। बोला, “और क्या हुआ?” मैंने कहा, “बस, इतना ही।” पर सच तो ये था—वो नज़ारा मेरे दिमाग़ में बरसों तक चक्कर काटता रहा। बाकी कहानी फिर कभी…

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