ट्रिप के लिए सामान पैक करते वक्त मेरे हाथ काँप रहे थे, दिल में एक अजीब सी घबराहट और उत्साह दोनों थे, जैसे कोई नई जिम्मेदारी मिलने वाली हो। मैंने साड़ियाँ चुनीं जो आरामदायक थीं, सादे रंग की, ब्लाउज ढीले, और सोचा कि बिजनेस ट्रिप है तो प्रोफेशनल ही रहना चाहिए।
कहानी का पिछला भाग: संस्कारी से रंडी बनने की यात्रा – 2
मैं खुद को बार बार समझाती रही कि ये सिर्फ काम की यात्रा है, मीटिंग्स हैं, क्लाइंट्स से मिलना है, कुछ और नहीं। रात को अजय सो गया, और मैं बिस्तर पर लेटी ऑफिस की यादें ताजा करती रही—यूसुफ की नजरें, उसकी मुस्कान, उसकी खुशबू। मेरी चूत में हल्की सी गर्मी थी, लेकिन मैंने हाथ नहीं डाला, खुद को रोका, सोचा कि संस्कारी लड़कियाँ ऐसा नहीं सोचतीं। मैंने प्रार्थना की, “भगवान जी, मुझे सही रास्ते पर रखना,” और नींद आ गई।
ट्रिप से तीन दिन पहले की शाम थी। ऑफिस में यूसुफ ने मुझे केबिन में बुलाया, दरवाजा बंद किया, और पास बैठने को कहा। उसकी खुशबू फिर फैल गई, लेकिन मैंने खुद को संभाला। वो ट्रिप की डिटेल्स बता रहा था—कहाँ रहना है, कौन से क्लाइंट्स मिलने हैं, क्या क्या तैयार करना है। उसका हाथ फाइल दिखाते वक्त मेरे हाथ से टकराया, लेकिन मैंने झटके से हटा लिया, शर्मा गई। “निशिता जी, आप थोड़ी नर्वस लग रही हैं,” उसने मुस्कुराकर कहा। मैंने कहा, “जी सर, पहली ट्रिप है ना।” वो हँसा, “चिंता मत करो, मैं हूँ ना आपके साथ।” मेरी साँसें तेज हो गईं, लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा, सिर्फ सिर झुकाया। उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा, हल्के से दबाया, “आराम से, सब अच्छा होगा।” उस स्पर्श से मेरी त्वचा में सिहरन दौड़ गई, लेकिन मैंने खुद को समझाया कि ये सिर्फ बॉस का हौसला है।
अगले दो दिन ऑफिस में व्यस्त बीते। यूसुफ अब भी पास बैठता था, लेकिन मैं दूरी बनाए रखती थी। सलीम और फैजान मजाक करते, “भाभी जी, ट्रिप पर मजा करना,” लेकिन मैं हँसकर टाल देती। घर पर अजय के साथ रातें सामान्य थीं—वो मुझे गले लगाता, हल्का किस करता, और जल्दी सो जाता। मैं कोशिश करती कि ज्यादा देर चले, लेकिन वो थक जाता। हर रात मैं बाथरूम में जाकर खुद को देखती, सोचती कि मेरी बॉडी में ये गर्मी क्यों है, लेकिन हाथ नहीं डालती थी, अपराधबोध से डरती थी।
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ट्रिप से एक रात पहले यूसुफ ने मुझे देर रात केबिन में बुलाया। बाहर बारिश हो रही थी, बिजली कड़क रही थी, और केबिन में सिर्फ टेबल लैंप की रोशनी थी। मैं अंदर गई, दरवाजा बंद हुआ। यूसुफ ने ट्रिप की आखिरी फाइलें दिखाईं, और कहा, “कल सुबह जल्दी निकलना है।” वो मेरे करीब आया, मेरे हाथ पकड़े, और कहा, “निशिता, तुम बहुत अच्छा काम कर रही हो, मुझे तुम पर गर्व है।” उसकी आँखें गहरी थीं, लेकिन मैंने कुछ गलत नहीं समझा। उसने मेरे गाल पर हल्के से हाथ फेरा, जैसे बड़ा भाई हो, “सो जाओ, कल लंबा दिन है।” मैं शर्मा गई, लेकिन भीतर से एक अजीब सुकून था। घर लौटकर मैंने अजय को गले लगाया, और सोचा कि ट्रिप अच्छी रहेगी, करियर के लिए जरूरी है। पूरी रात मैंने सपने में मीटिंग्स देखीं, क्लाइंट्स से बातें कीं, और यूसुफ को बॉस की तरह देखा।
सुबह ट्रिप के लिए निकलते वक्त मैंने सादी नीली साड़ी पहनी, ब्लाउज ढीला, और मन में सिर्फ एक विचार था—ये ट्रिप मेरे करियर के लिए अच्छी साबित होगी, कुछ और नहीं।
कहानी का अगला भाग: संस्कारी से रंडी बनने की यात्रा – 4
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