घर का अंधेरा

Ghar mein sex – dark night sex story – papa ne beti ko choda sex story: रात के ग्यारह बज चुके थे। शहर अचानक अंधेरे में डूब गया था—लाइट चली गई थी, और बाहर तेज़ बारिश की झमाझम आवाज़ घर को घेर रही थी। बिजली की कड़कड़ाहट से कभी-कभी कमरा चमक उठता, फिर वापस घने अंधेरे में समा जाता। राजेश अपने बिस्तर पर अकेले लेटे थे। पत्नी की मौत को दो साल हो चुके थे। बेटी नेहा अब 21 साल की हो चुकी थी—कॉलेज हॉस्टल से गर्मियों की छुट्टियों में घर लौटी थी।

नेहा अपने कमरे में थी, लेकिन अंधेरा और बारिश की वजह से नींद नहीं आ रही थी। बचपन से ही उसे अंधेरे से डर लगता था। आज भी वही पुराना डर सता रहा था। उसने हिम्मत जुटाई और पापा के कमरे की ओर बढ़ी। दरवाज़ा हल्का सा खुला था।

“पापा…?” उसने धीमी, काँपती आवाज़ में पुकारा।

राजेश ने मोबाइल की टॉर्च जलाई। नीली रोशनी में नेहा का चेहरा दिखा—वो सिर्फ़ एक पतली सी सफ़ेद नाइटी पहने थी। गर्मी और बारिश की ठंडक ने उसके बदन पर रोंगटे खड़े कर दिए थे। नाइटी उसके गोरे बदन से चिपक रही थी, कर्व्स साफ़ नज़र आ रहे थे।

“क्या हुआ मेरी जान? डर लग रहा है?” राजेश की आवाज़ में चिंता थी, लेकिन दो साल की अकेलापन भी छुपा था।

नेहा ने सिर हिलाया और बिस्तर के पास आकर खड़ी हो गई। “सो जा मेरे पास आज… जैसे बचपन में सोती थी,” राजेश ने बिस्तर का किनारा खींचा।

नेहा बिना कुछ बोले लेट गई। अंधेरा इतना घना था कि कुछ दिख नहीं रहा था। सिर्फ़ बारिश की आवाज़, बिजली की गड़गड़ाहट और दोनों की तेज़ होती साँसें। राजेश ने टॉर्च बंद कर दी।

कुछ देर तक ख़ामोशी रही। फिर नेहा करवट बदली। उसका बदन अनजाने में पापा के बदन से टकराया। राजेश का सीना गर्म था, दिल की धड़कन तेज़। नेहा ने अपना हाथ पापा की छाती पर रख दिया—जैसे बचपन में करती थी। लेकिन अब वो बचपन नहीं था।

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राजेश का दिल ज़ोर से धड़का। उसका हाथ काँपते हुए नेहा की पतली कमर पर सरक गया। नेहा का बदन झनझना उठा, जैसे बिजली दौड़ गई हो। उसकी साँसें रुक-रुक कर आने लगीं। वो हटी नहीं। अंधेरा सब कुछ छुपा रहा था—उनके पाप को, उनकी हवस को।

राजेश की उँगलियाँ अब नेहा की नाइटी के ऊपर से उसकी मुलायम जाँघों पर फिसलने लगीं—धीरे-धीरे ऊपर की तरफ़, जहाँ गर्मी बढ़ रही थी। नेहा की चूत में हल्की सी खुजली होने लगी। वो भीगने लगी थी, अनजाने में।

“पापा… ये क्या कर रहे हो…?” नेहा ने फुसफुसाया, लेकिन आवाज़ में डर नहीं था—कुछ और था, कुछ गीला, कुछ भूखा।

“शशश… चुप कर मेरी रानी…” राजेश की आवाज़ भारी थी, हवस से लबालब। “सिर्फ़ तू और मैं… ये अंधेरा हमारी हवस छुपा लेगा। तेरी ये गर्म जाँघें… पापा को पागल कर रही हैं…”

राजेश ने नेहा को अपनी तरफ़ खींच लिया। अंधेरे में उनके होंठ मिल गए। नेहा ने पहले हल्का सा विरोध किया, लेकिन फिर खुद पापा के गले लग गई। राजेश का हाथ नेहा की नाइटी के अंदर सरक गया। उसके निप्पल्स पहले से ही कड़े हो चुके थे—उँगलियों से छूते ही नेहा सिहर उठी।

“आह… पापा…” छोटी सी सिसकारी निकल गई।

राजेश ने नेहा की नाइटी को सूंघा—उसकी जवान बदन की मादक खुशबू, मीठी और मस्की, उसकी हवस को और भड़का रही थी। उसने नाइटी ऊपर उठा दी। नेहा ने अंदर कुछ नहीं पहना था। उसकी चिकनी, गीली चूत पर उँगलियाँ फिसलने लगीं। नेहा की साँसें हाँफने लगीं।

“पापा… वहाँ मत छुओ… लेकिन… रुको मत…” नेहा की आवाज़ काँप रही थी। उसका हाथ पापा की पैंट के ऊपर से लंड पर पहुँच चुका था। वो पहले से ही लोहे जैसा सख्त हो चुका था।

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“बेटी… तू इतनी बड़ी हो गई है… इतनी गर्म…” राजेश ने काँपते हाथों से पैंट नीचे सरका दी। उसका मोटा, नसों से फूला लंड बाहर उछल पड़ा। टोपी पर प्री-कम की चिपचिपी बूँदें चमक रही थीं। नेहा ने अंधेरे में टटोलकर उसे पकड़ लिया। उँगलियाँ उसके चारों तरफ़ लपेटते हुए सहलाने लगीं। लंड की मर्दाना, मस्की गंध नेहा के नथुनों में भर गई।

“ओह पापा… कितना बड़ा है… कितना गर्म…” नेहा मन ही मन सोच रही थी, चूत से पानी टपक रहा था।

राजेश ने नेहा की टांगें और चौड़ी कर दीं। अपना लंड उसकी गीली चूत की दरार पर रगड़ने लगा—ऊपर-नीचे, क्लिट को छूते हुए। नेहा की कराहटें तेज़ हो गईं। बदन पसीने से चिपचिपा हो चुका था। बारिश की कड़कड़ाहट हर रगड़ के साथ ताल मिला रही थी, जैसे प्रकृति उनकी चुदाई को approve कर रही हो।

“डालूँ बेटी…?” राजेश ने हाँफते हुए पूछा।

“हाँ पापा… घुसा दो अपना मोटा लंड… मेरी चूत में…” नेहा ने कराहते हुए कहा। “मैं आपकी हूँ… सिर्फ़ आपकी…”

राजेश ने धीरे से टोपी अंदर सरकाई। नेहा की चूत की दीवारें कसकर लिपट गईं—टाइट, गर्म, गीली। नेहा चीखी, “आह… पापा… दर्द… लेकिन मत रोकना… जोर से पेलो…”

राजेश ने पूरा धक्का मारा। पूरा लंड अंदर समा गया। नेहा की आँखों में आँसू आ गए, लेकिन दर्द में मज़ा था। उसकी चूत लंड को निचोड़ रही थी। राजेश धीरे-धीरे चोदने लगा। चप-चप की गीली आवाज़ अंधेरे में गूँज रही थी।

“आह… पापा… चोदो मुझे जोर से…” नेहा ने कमर उछालते हुए कहा। “मैं तुम्हारी छोटी सी रंडी हूँ… तेरी बेटी की चूत सिर्फ़ तेरे लंड के लिए बनी है…”

“उफ्फ… बेटी… तेरी ये टाइट चूत… पापा का मोटा लंड निचोड़ रही है…” राजेश ने धक्के तेज़ कर दिए। वो नेहा के बूब्स चूस रहा था, पसीना टपक रहा था। “और तेज़ हिल… ले मेरी जान… चुदाई का पूरा मज़ा ले…”

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नेहा झड़ने वाली थी। “पापा… आ रहा है… आह… चोदो जोर से…!”

राजेश ने स्पीड और बढ़ा दी। नेहा झड़ गई—उसकी चूत ने लंड को बुरी तरह कस लिया। राजेश भी नहीं रुक पाया। “ले बेटी… पापा का गरम माल… तेरी चूत में भर रहा हूँ…!”

गर्म वीर्य नेहा की चूत में उड़ल पड़ा। दोनों पसीने से तर, एक-दूसरे से चिपके लेटे रहे। नेहा के मन में अपराध बोध उमड़ा—ये गलत था, बहुत गलत। लेकिन पापा के लंड की गर्मी अभी भी उसकी चूत में महसूस हो रही थी। वो जानती थी, अब रुकना नामुमकिन था।

कुछ देर बाद नेहा ने फुसफुसाया, “पापा… फिर…?”

राजेश ने मुस्कुराकर नेहा को अपने ऊपर खींच लिया। दूसरी बार नेहा ऊपर थी—धीरे-धीरे लंड पर बैठकर हिल रही थी। तीसरी बार राजेश ने उसे पीछे से लिया, जाँघें पकड़कर जोर-जोर से पेलते हुए।

सुबह लाइट आई। बारिश रुक चुकी थी। लेकिन उनके बीच का अंधेरा हमेशा के लिए गहरा हो चुका था—वो हवस भरा, गंदा अंधेरा, जो सिर्फ़ उन्हें जोड़ता था।

नेहा ने पापा को आखिरी किस करते हुए कहा, “पापा… अगली बार फिर लाइट जाएगी ना…?”

राजेश ने हँसकर कहा, “हाँ मेरी रानी… और अगर नहीं भी गई, तो हम खुद अंधेरा कर लेंगे।”

समाप्त।

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