अम्मी की प्यास बुझाने को मजबूर हुआ बेटा – 1

हाय दोस्तों, मेरा नाम शाहिद है। यह कहानी नहीं, मेरी आपबीती है, एक मजबूर बेटे की सच्ची दास्तान। मैं चाहता तो इसे छिपा सकता था, लेकिन शायद इसे बताने से मेरे गुनाह का बोझ कुछ कम हो जाए।

उस वक्त मैं अठारह साल का था, बारहवीं के एग्जाम दे चुका था। घर में सिर्फ तीन लोग थे, मैं, मेरी अम्मी सजदा और छोटी बहन रेहाना। रेहाना उस समय दसवीं क्लास में थी, घर की लाड़ली। अगर मैं कभी गुस्से में उसे डाँट भी देता तो अम्मी मुझे ही डाँटतीं। पर सच कहूँ तो अम्मी मुझसे सबसे ज्यादा प्यार करती थीं।

अब्बू जी पाँच साल पहले गुजर चुके थे। बड़ा भाई महमूद दुबई में नौकरी करता था, पैसे भेजता था, पर घर की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर थी। मैं नया-नया छोटा-मोटा काम शुरू कर रहा था, इसलिए दिन-रात बस यही सोचता रहता कि सारे दोस्तों की गर्लफ्रेंड हैं, सिर्फ मैं ही पीछे रह गया। घर से कम निकलता था, दोस्त भी ज्यादा नहीं थे।

मैं बहुत आज्ञाकारी बेटा नहीं था। अम्मी की बात अक्सर टाल देता। वो दुखी होकर कहतीं, “तुम्हारे अब्बू भी नहीं हैं, कभी तो मेरी सुन लिया करो।” मैं मूड में होता तो मान लेता, वरना नहीं।

एक दिन किचन से अम्मी ने आवाज दी, “शाहिद, जरा इधर आना।” उस वक्त मेरा लंड खड़ा था, मैं जाने से कतरा रहा था, पर जब उन्होंने गुस्से से बुलाया तो जाना पड़ा। मैंने दोनों हाथ आगे बाँध लिए ताकि पैंट में उभरा हुआ लंड नजर न आए। किचन में गया तो अम्मी ने नीचे देखा, फिर मेरी आँखों में देखकर मुस्कुराईं। मुझे लगा उन्हें शक हो गया। उन्होंने कहा, “फ्रिज से पानी की बोतल निकाल दो।” मैंने जल्दी से बोतल दी और भाग निकला। शर्म से पानी-पानी हो रहा था।

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फिर एक दिन टीवी देखते वक्त फिर वही हुआ। मैंने ट्राउजर पहना था, लंड साफ दिख रहा था। मैंने हाथ से छिपाने की कोशिश की, पर अम्मी की नजर पड़ गई। उन्होंने बिना कुछ कहे टीवी बंद किया और कमरे में चली गईं। मुझे समझते देर न लगी कि उन्होंने देख लिया।

एक दिन रेहाना मेरे साथ शरारत कर रही थी, उसका पेट मेरे हाथ से टच हुआ। पहली बार कुछ अजीब सा लगा, पर मैंने खुद को समझाया कि वो मेरी बहन है, ऐसा सोचना भी पाप है।

गर्मियाँ जोरों पर थीं। एक दोपहर अम्मी किचन में खाना बना रही थीं। मैं पानी पीने गया तो देखा, पसीने से उनकी सलवार-कमीज पूरी तरह भीग कर शरीर से चिपक गई थी। ब्रा और पैंटी की लाइन साफ दिख रही थी, उभरे हुए स्तन, गोल-गोल चूतड़। मैं एक पल को ठिठक गया, फिर शर्म से बाहर भाग आया। दिमाग में कोई गंदा ख्याल नहीं आया था, पर शरीर में कुछ हलचल जरूर हुई।

एक दिन दोपहर में बिजली चली गई, भयंकर गर्मी थी। अम्मी बार-बार कह रही थीं, “उफ्फ, ये गर्मी तो जान ले लेगी।” फिर बोलीं, “शाहिद, तुम तो शर्ट उतार दो।” मैंने शर्ट उतार दी। वो नहाने चली गईं। थोड़ी देर बाद बाथरूम से आवाज आई, “शाहिद, टॉवल तो दे जाना, भूल गई हूँ।” मैं टॉवल लेकर गया। दरवाजा हल्का सा खुला था, उन्होंने साबुन लगे हाथ बाहर निकाले और टॉवल ले लिया।

रात को अम्मी ने मुझे अपने कमरे में बुलाया, “बेटा, जरा टांगें और हाथ दबा दो, बहुत थक गई हूँ।” मैंने कहा, “रेहाना से कहिए न।” वो बोलीं, “वो सो गई, सुबह स्कूल जाना है। आ जा, कामचोर।” मैं बेमन से गया। वो बेड पर लेटी थीं। मैंने उनकी टांगें दबानी शुरू कीं। वो बोलीं, “जरा जोर से, और सलवार थोड़ी ऊपर कर लो।” मैंने सलवार घुटनों तक ऊपर की, उनके मोटे-मुलायम जांघ दबाने लगा। फिर बाजू भी ऊपर किए, मांसल बाजू दबाए। उनकी साँसें थोड़ी भारी हो रही थीं, पर मैंने ध्यान नहीं दिया।

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दबाते-दबाते वो बोलीं, “बस करो, सो जाओ।” मैं उठने लगा तो बोलीं, “आज यहीं सो जाओ, मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।” मैं लेट गया।

अम्मी बोलीं, “शाहिद, तुम्हारी शादी कर दूँ?” मैं हँस पड़ा, “अम्मी, अचानक ये ख्याल कहाँ से आया?” “बस आ गया। तुम्हें शादी नहीं करनी?” “करनी तो है, पर अभी नहीं।” “अच्छा? अठारह साल के हो गए हो। मैंने कुछ दिनों से नोटिस किया है कि अब तुम्हारी शादी कर देनी चाहिए।”

मुझे शर्म आ गई, समझ गया वो मेरे खड़े लंड की बात कर रही हैं। मैंने टालते हुए कहा, “शादी के बाद आजादी खत्म हो जाती है।” अम्मी बोलीं, “कौन कहता है? मैं खुश नहीं हूँ क्या?” “हैं तो।” “नहीं बेटा, मैं खुश नहीं हूँ। और इसकी एक वजह तुम भी हो।” मैं चुप रहा। वो बोलीं, “थोड़ा माँ का भी ख्याल किया करो।” मैंने कहा, “अब लेक्चर बंद करो, नींद आ रही है,” और करवट बदल ली।

अगले दिन रेहाना स्कूल से जल्दी आई, बोली कल दो दिन की ट्रिप है। अम्मी ने साफ मना कर दिया। रेहाना मेरे पास आई, “भाई, आप मनाइए न।” मैं अम्मी के पास गया। बहुत मनाने पर अम्मी बोलीं, “तुमने कभी मेरी बात मानी है जो मैं मानूँ?” मैंने हँसकर कहा, “आज से मानूँगा।” वो मुस्कुराईं, “अच्छा, देखते हैं कितना मानते हो। ठीक है, जाने देती हूँ।” रेहाना खुश होकर मुझे गले लगा लिया।

अगली सुबह रेहाना चली गई। अब घर में सिर्फ मैं और अम्मी। अम्मी बोलीं, “दो दिन बाहर मत जाना, मैं अकेली हूँ।” मैंने मजाक में कहा, “अब मैं आपकी चौकीदारी करूँ?” वो गुस्सा हुईं, पर फिर मुस्कुरा दीं।

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उस दिन अम्मी ने मेरी पसंद का खाना बनाया। मैंने खाया, फिर वो मेरी ही जूठी प्लेट में खाने लगीं। शाम को चाय बनाते वक्त वो एक खाली कप लेकर बाथरूम गईं। थोड़ी देर बाद निकलीं तो कप में दूध था। मैंने पूछा, “ये बाथरूम से दूध?” वो शरमाईं, फिर वो दूध चाय में डाल दिया। जब मैं चाय पी रहा था तो बोलीं, “आज चाय का स्वाद कैसा लगा?” मैंने कहा, “कुछ खास है आज।” वो मेरी तरफ देखकर हल्के से मुस्कुराईं और बोलीं, “हाँ, यही समझ लो।”

रात को फिर वही बात शुरू हुई। “उस दिन शादी की बात की थी, याद है?” “हाँ अम्मी।” “तो तैयारी कर लो।” “अभी उम्र ही क्या है।” अम्मी चुप हो गईं, फिर धीरे से बोलीं, “चलो नहीं करती तुम्हारी शादी… मगर…” “मगर क्या अम्मी?” वो कुछ देर खामोश रहीं, फिर बोलीं, “बाद में बात करेंगे।”

और इसी तरह वो गर्मी भरी रातें शुरू हुईं… आगे की कहानी अगले भाग में।

कहानी का अगला भाग: अम्मी की प्यास बुझाने को मजबूर हुआ बेटा – 2

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