Hospital sex story – Meri garma garm chudai – मेरा नाम जैनब है। मैं 25 साल की हूँ, और मेरी खूबसूरती ऐसी है कि लोग मुझे देखकर बस पागल हो जाते हैं। मेरी गोरी चमड़ी, भरी-भरी चूचियाँ, पतली कमर और गोल-मटोल नितंब किसी का भी दिल चुरा लेते हैं। मेरी हाइट 5 फीट 6 इंच है, और मैं हमेशा फिट रहने के लिए योग करती हूँ, जिससे मेरी फिगर 34-26-36 की है। मैंने एमबीबीएस किया है और असम के एक छोटे से कस्बे के हॉस्पिटल में ऑर्थोपेडिक वॉर्ड में काम करती हूँ। पिछले एक साल से मैं यहाँ पोस्टेड हूँ। कॉलेज के दिनों से ही मेरे पीछे लड़कों की लाइन लगी रहती थी। यहाँ हॉस्पिटल में भी कई डॉक्टर्स मेरे दीवाने हैं, लेकिन मेरा दिल किसी पर नहीं आता। मेरी पसंद कुछ अलग है। मैं उन लड़कों पर वक्त बर्बाद नहीं करती, जो बस मौज-मस्ती के लिए मेरे पीछे पड़ते हैं। मुझे ऐसा शख्स चाहिए, जो मेरे दिल को छू ले, मेरी आत्मा से जुड़े।
मेरे घरवाले मेरी शादी के लिए परेशान रहते थे। मम्मी-पापा ने कई लड़कों की तस्वीरें भेजीं, लेकिन मैंने हर बार मना कर दिया। मैं चाहती थी कि मेरा दिल पहले किसी के लिए धड़के, फिर शादी की बात हो। एक बार हॉस्पिटल की अंधेरी गैलरी में एक सीनियर डॉक्टर ने मुझे पकड़ लिया। उसने मेरी चूचियों को कसकर मसला और जबरदस्ती करने की कोशिश की। मैंने गुस्से में उसे धक्का दिया और ऐसी ठुकाई की कि उसने मेरी तरफ दोबारा देखना तक छोड़ दिया। मैं थी ही ऐसी—मगरूर, बिंदास और अपने नियमों की पक्की। लेकिन फिर भी, एक दिन मेरा दिल किसी के लिए धड़क उठा। मैंने उस पर अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।
बात उस दिन की है, जब मैं शाम के 6 बजे अपने राउंड पर थी। हॉस्पिटल का बड़ा हॉल था, कोने में हल्का अंधेरा। मेरे साथ एक नर्स थी, लेकिन वो किसी काम से वापस चली गई। मैं अकेली थी। आखिरी पेशेंट का बेड कोने में था। उसका नाम अमर था, उम्र करीब 30-32 साल। वो तंदुरुस्त, लंबा-चौड़ा और आकर्षक था। उसकी काली आँखें और हल्की दाढ़ी उसे और भी रफ-टफ लुक देती थी। उसका पैर डिसलोकेट हुआ था, और वो बिस्तर पर पीठ के बल लेटा था, चादर सीने तक ओढ़े हुए। मैंने उसका चार्ट उठाया और मुआयना शुरू किया।
चार्ट देखते-देखते मेरी नजर उसकी कमर पर गई। चादर टेंट की तरह उठी हुई थी। मैंने गौर से देखा—उसका हाथ चादर के नीचे हिल रहा था। उसका लंड खड़ा था, और वो धीरे-धीरे उसे सहला रहा था। मेरी नजर उस पर टिक गई। वो मेरी आँखों में देख रहा था, और उसकी उंगलियाँ बिना रुके उसके लंड पर चल रही थीं। मेरे बदन में सिहरन दौड़ गई। “ये क्या कर रहा है?” मैंने सोचा, लेकिन मेरी आँखें उससे हट नहीं रही थीं। उसका लंड चादर के नीचे इतना साफ दिख रहा था कि मेरे गले में कुछ अटक सा गया। मैं घबरा गई और तेजी से कमरे से भाग निकली।
मेरा पूरा शरीर पसीने से भीग गया था। मैं पास के स्टाफ क्वार्टर में रहती थी। घर पहुँचकर मैंने ठंडे पानी से नहाया। पानी मेरे बदन पर गिर रहा था, लेकिन मेरे दिमाग में वही दृश्य घूम रहा था—उसका खड़ा लंड, उसकी आँखें, और वो शरारती मुस्कान। मेरे मन में गुदगुदी सी होने लगी। मैंने अपने जज्बातों को काबू करने की कोशिश की, लेकिन जैसे-जैसे रात गहरी होती गई, मेरा कंट्रोल जवाब देने लगा। मेरी पैंटी गीली हो चुकी थी। मैंने खुद को शांत करने की कोशिश की, लेकिन बार-बार वही टेंट मेरी आँखों के सामने आ रहा था।
रात के 10:30 बजे मैं तड़पकर हॉस्पिटल की ओर चल पड़ी। हॉस्पिटल में चहल-पहल कम थी। ज्यादातर पेशेंट सो चुके थे। मैं स्टाफ की नजरों से बचती हुई ऑर्थोपेडिक वॉर्ड में घुसी। अमर का बेड कोने में था। मैं धीरे-धीरे उसके पास सरकने लगी। उसका मेडिकल कार्ड उठाकर देखने लगी, लेकिन मेरी आँखें बार-बार उसकी कमर पर जा रही थीं। वो उसी हालत में था—लंड खड़ा, चादर में टेंट बना हुआ। मैंने धीरे से चादर हटाई। उसका लंड मेरे सामने था, मोटा और लंबा, कम से कम 10 इंच। मैं एकटक उसे देख रही थी।
अचानक उसका हाथ चादर से बाहर निकला और मेरी कलाई को लोहे की तरह जकड़ लिया। “अरे!” मैंने हल्की सी चीख मारी, लेकिन उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि मैं छुड़ा नहीं पाई। आसपास सब सो रहे थे। किसी को खबर नहीं थी कि कोने में क्या हो रहा था। उसने मेरे हाथ को चादर के अंदर खींच लिया। मेरा हाथ उसके तने हुए लंड से टकराया। मेरे पूरे शरीर में बिजली सी दौड़ गई। “ये क्या कर रहे हो?” मैंने फुसफुसाते हुए कहा, लेकिन मेरी आवाज में उत्तेजना थी। उसने मेरे हाथ को अपने लंड पर रख दिया। मैंने हिचकते हुए उसे अपनी मुट्ठी में लिया। उसका लंड गर्म और कड़ा था, जैसे कोई लोहे का रॉड।
वो मेरे हाथ को ऊपर-नीचे करने लगा। “आह्ह… जैनब, कितनी गर्मी है तुझमें,” उसने धीमी आवाज में कहा। मैं कुछ नहीं बोली, बस उसका लंड मसलती रही। उसका लंड इतना मोटा था कि मेरी मुट्ठी में पूरा नहीं आ रहा था। कुछ देर बाद उसने मेरा हाथ छोड़ दिया, लेकिन मैं रुकी नहीं। मैंने और जोर से उसका लंड मुठ मारना शुरू किया। “उउउ… कितना मोटा है ये,” मैंने सिसकारी। कुछ मिनट बाद उसका शरीर तन गया, और मेरे हाथ पर गर्म, चिपचिपा वीर्य उड़ेल दिया।
मैंने उसका लंड छोड़ा और हाथ बाहर निकाला। मेरा पूरा हाथ उसके गाढ़े, सफेद वीर्य से सना था। उसने मेरी कलाई पकड़कर चादर से मेरा हाथ पोंछ दिया। “जाओ, कोई देख लेगा,” उसने फुसफुसाया। मैं भागकर घर पहुँची। मेरी पैंटी पूरी तरह गीली थी। मैंने अपना हाथ नाक के पास ले जाकर सूंघा। उसकी गंध मेरे हाथों में बसी थी। मैंने एक उंगली चाटी—नमकीन, उत्तेजक स्वाद। फिर मैंने सारी उंगलियाँ चाट डालीं। रात भर मैं करवटें बदलती रही। जब भी नींद आई, उसका चेहरा और उसका लंड मेरे सामने आ गया। मैं बिना कुछ किए कई बार गीली हो गई।
सुबह मेरी आँखें नींद और खुमारी से भारी थीं। मैं हॉस्पिटल गई, लेकिन अमर के बेड तक जाने की हिम्मत नहीं हुई। मैंने स्टाफ से पूछा। पता चला कि वो गरीब है, और उससे मिलने कोई नहीं आता। मैंने उसे डीलक्स वॉर्ड में शिफ्ट करने का ऑर्डर दिया और खर्चा अपनी जेब से भरा। दिनभर मैं उससे मिलने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। मैंने तबीयत खराब का बहाना बनाकर घर चली गई। शाम को मैं चुपके से उसके वॉर्ड में पहुँची। वहाँ मौजूद नर्स को मैंने कहा, “तुम खाना खाकर आओ, मैं यहीं हूँ।” वो खुशी-खुशी चली गई।
अमर मुझे देखकर मुस्कुराया। “क्या हाल है, डॉक्टर साहिबा?” उसने शरारत से कहा। मैं शरमाते हुए उसके पास गई। “तू ठीक है ना?” मैंने पूछा। “तुझे देख लिया, बस तबीयत ठीक हो गई,” उसने कहा। मेरा चेहरा लाल हो गया। उसने मेरा हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचा। मैं जानबूझकर उसके सीने से लग गई। उसने मेरे होंठों को अपने होंठों से छुआ। मेरा बदन कांप रहा था। “आह्ह… अमर,” मैंने सिसकारी। मैंने अपने होंठ उसके होंठों से सटा दिए और उन्हें चूसने लगी। उसकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मैं उसकी जीभ को चूस रही थी।
उसके हाथ मेरी चूचियों पर आ गए। “कितनी मुलायम हैं ये,” उसने कहा और मेरी चूचियों को कसकर दबाया। मैंने उसके हाथों पर अपने हाथ रखे और और जोर से दबवाया। “आह्ह… और जोर से… मसल दे इन्हें,” मैंने सिसकारी। वो मेरी चूचियों को मसलने लगा, मेरे निप्पल्स को उंगलियों से सहलाने लगा। मेरे हाथ चादर के अंदर उसके पैंट की जिप तक पहुँचे। मैंने जिप खोली और उसका लंड बाहर निकाला। वो पहले से भी ज्यादा कड़ा था। मैंने उसे सहलाना शुरू किया। “उउउ… कितना गर्म है,” मैंने कहा।
मैंने उसके लंड को मुठ मारकर उसका वीर्य निकाल दिया। मेरा हाथ फिर गीला हो गया। मैंने उसके सामने ही अपनी जीभ से अपने हाथ को चाटना शुरू किया। “तुझे इसका टेस्ट अच्छा लगता है ना?” उसने हँसते हुए कहा। मैंने सारा वीर्य चाटकर साफ कर दिया। आधा घंटा हो चुका था। मैंने जल्दी से अपने कपड़े ठीक किए और नर्स के आने से पहले घर भाग आई।
अगले दिन मैंने नर्स को खाने के लिए भेजा और वॉर्ड की कुंडी बंद कर दी। जैसे ही मैं अमर के पास पहुंची, उसने मेरे चेहरे को चूम-चूमकर लाल कर दिया। “आज तू मुझ पर रहम नहीं करेगा,” मैंने शरारत से कहा। मैंने उसका लंड बाहर निकाला। उसने मेरे सिर को पकड़कर अपने लंड की ओर झुका दिया। मैंने होंठ भींच लिए, लेकिन वो अपने लंड को मेरे होंठों पर रगड़ने लगा। मेरे होंठ गीले हो गए। मैंने होंठ खोलकर उसका लंड अपने मुँह में ले लिया। पहले धीरे-धीरे, फिर जोर-जोर से चूसने लगी। “आह्ह… जैनब, तू तो कमाल है,” उसने सिसकारी।
काफी देर तक चूसने के बाद उसने मेरे सिर को अपने लंड पर दबाया। उसका लंड मेरे गले तक चला गया। मैं साँस लेने के लिए छटपटाई। तभी उसके लंड से गर्म वीर्य मेरे गले में उतर गया। मेरा मुँह उसके वीर्य से भर गया। मैंने प्यार से उसकी ओर देखते हुए सारा वीर्य गटक लिया। “तू तो मुझे पागल कर देगी,” उसने कहा। मैंने बाथरूम में मुँह धोया और कपड़े ठीक किए। “मुझे तो लगता है तू मुझे मार डालेगा,” मैंने हँसते हुए कहा और उससे लिपटकर उसके होंठ चूम लिए।
इसके बाद जब भी मौका मिलता, मैं उससे मिलने चली जाती। हम एक-दूसरे को चूमते, सहलाते। वो मेरी चूचियों को मसलता, मेरे निप्पल्स को चूसता। मैं रोज उसके लंड को चूसकर उसका वीर्य निकाल देती। उसका वीर्य मुझे बहुत अच्छा लगता था। लेकिन हम ज्यादा कुछ नहीं कर पाते थे, क्योंकि पकड़े जाने का डर था। एक हफ्ते बाद मैं वॉर्ड में पहुँची तो उसका बेड खाली था। पता चला कि उसे डिसचार्ज कर दिया गया। मैंने उसका पता ढूंढने की कोशिश की, लेकिन कुछ नहीं मिला। मेरी हालत पागलों जैसी हो गई। मैंने पहली बार किसी लड़के के लिए आँसू बहाए।
मेरी सहेली रोशनी, जो मेरे साथ क्वार्टर में रहती थी, ने भी उसे ढूंढने की कोशिश की, लेकिन मैंने किसी को कुछ नहीं बताया। मैंने पहली बार किसी से प्यार किया था। वो गरीब था, लेकिन उसमें कुछ खास था। मेरे मॉडर्न माता-पिता ने कहा था कि मैं अपनी पसंद से शादी कर लूँ। मैं सोचती थी कि क्या वो भी मुझे उतना ही चाहता होगा? छह महीने बीत गए। फिर एक दिन हॉस्पिटल के सामने बगीचे में मुझे एक जाना-पहचाना चेहरा दिखा। वो अमर था, माली का काम कर रहा था। “सुनो, माली!” मैंने पुकारा। वो मुड़ा तो मैं स्तब्ध रह गई। “तू?” मैं उसे एकटक देख रही थी।
“मैडम, मैं यहाँ माली का काम करता हूँ। अपने आपको संभालो, कोई गलत मतलब निकाल सकता है,” उसने कहा। मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। “आज शाम 6 बजे मेरे घर आना। मेरी कसम, आओगे ना?” मैंने कहा और तेजी से हॉस्पिटल चली गई। मन नहीं लगा तो मैं तबीयत खराब का बहाना बनाकर घर भाग आई। शाम को अमर आने वाला था। मैंने बाजार से एक पारदर्शी रेशमी गाउन, खाने-पीने का सामान और एक बियर की बोतल खरीदी।
शाम 4 बजे से मैं तैयार होने लगी। हल्का मेकअप, परफ्यूम और पारदर्शी ब्रा-पैंटी के ऊपर गुलाबी रेशमी गाउन पहना। गाउन इतना पतला था कि मेरी चूचियाँ और निप्पल्स साफ दिख रहे थे। बिस्तर पर साफ सफेद रेशमी चादर बिछाई। रूम स्प्रे किया और रजनीगंधा की स्टिक्स सजाईं। 6 बजे तक मैं बेताब हो उठी। 6:10 पर डोरबेल बजी। मैंने की-होल से देखा, वो अमर था। मैंने दरवाजा खोलकर उसे अंदर खींच लिया और लिपट गई। “कहाँ चले गए थे? मेरी याद नहीं आई?” मैंने उसका मुँह चूमते हुए पूछा।
“मैं यहीं था, लेकिन जानबूझकर तुझसे नहीं मिला। तू और मैं, चाँद और सियार की जोड़ी अच्छी नहीं लगती,” उसने कहा। मैंने उसके मुँह पर हाथ रख दिया। “खबरदार जो मुझसे दूर जाने की सोची। अगर जाना ही था तो आए क्यों?” मैंने उसे सोफे पर धक्का देकर बिठाया। मैंने फ्रिज से बियर की बोतल निकाली और ग्लास में डाला। ग्लास उसके होंठों से लगाया। उसने एक घूँट पिया। मैं खड़ी हुई और बोली, “तुझे मेरी चूचियाँ बहुत अच्छी लगती थीं ना? खोलकर नहीं देखेगा?”
मैंने एक झटके में गाउन उतार दिया। मेरी पारदर्शी ब्रा में मेरी चूचियाँ साफ दिख रही थीं। वो एकटक मुझे देख रहा था। मैंने उसके गोद में पैर फैलाकर बैठ गई और उसका सिर अपनी चूची पर दबा दिया। “ब्रा खोल दे,” मैंने उसके कान में फुसफुसाया। उसने मेरी ब्रा खोली। मेरी चूचियाँ आजाद हो गईं। “आह्ह… कितनी मुलायम हैं,” उसने कहा और मेरे निप्पल को चूसने लगा। “उउउ… और जोर से… चूस ले इन्हें,” मैं सिसकारी।
वो मेरे निप्पल को जीभ से गुदगुदाने लगा। मैं उसके बालों में उंगलियाँ फिरा रही थी। “आह्ह… अमर, तू तो मुझे पागल कर देगा,” मैंने कहा। उसने मेरी पैंटी उतार दी। अब मैं पूरी तरह नंगी थी। “देख, ये चूत तेरे लिए तड़प रही है,” मैंने कहा। उसने मेरी चूत को चूमा। “उउउ… कितना मजा आ रहा है,” मैं चिल्लाई। उसने मेरी चूत पर जीभ फेरी। मैं तो उसकी जीभ से ही एक बार झड़ गई।
“अब तुझे और इंतजार नहीं करवाऊँगी,” मैंने कहा और उसे बेडरूम में खींच लिया। मैंने उसके कपड़े फाड़ डाले। उसका लंड मेरे सामने था, मोटा और कड़ा। मैंने उसे चूमा और मुँह में लिया। “आह्ह… जैनब, तू तो जादूगरनी है,” उसने सिसकारी। मैंने उसके लंड को चूस-चूसकर और कड़ा कर दिया। “ये तो मेरी चूत फाड़ देगा,” मैंने हँसते हुए कहा।
मैंने उसे बिस्तर पर लिटाया और कहा, “आज मैं तुझे अपना कौमार्य दूँगी। मुझे लड़की से औरत बना दे।” मैंने उसका लंड अपनी चूत पर सेट किया और जोर लगाया। मेरी चूत टाइट थी, लंड अंदर नहीं गया। मैंने फिर कोशिश की, लेकिन लंड फिसल गया। “क्या आदमी है तू? मैं कोशिश कर रही हूँ, और तू चुपचाप पड़ा है,” मैंने झुंझलाकर कहा।
उसने मुझे बिस्तर पर पटका। मेरी टांगें चौड़ी कीं और मेरी चूत को चूम लिया। “आह्ह… ये हुआ ना मेरा शेर! फाड़ दे मेरी चूत,” मैं चिल्लाई। उसने मेरी चूत पर जीभ फेरी। मैं दोबारा झड़ गई। उसने मेरी टांगें अपने कंधों पर रखीं और अपने लंड को मेरी चूत पर सेट किया। एक जोरदार धक्का मारा। “आआआ… मम्मी… मर गई,” मैं चीखी। उसका लंड मेरी कौमार्य झिल्ली को तोड़ता हुआ अंदर समा गया।
दर्द से मेरी आँखों में आँसू आ गए। वो रुका, फिर धीरे-धीरे लंड को अंदर-बाहर करने लगा। “आह्ह… कितना दर्द हो रहा है,” मैंने कहा। दर्द धीरे-धीरे मजे में बदल गया। “उउउ… और जोर से… चोद मुझे,” मैंने कहा। वो जोर-जोर से धक्के मारने लगा। “थप… थप… थप…” उसका लंड मेरी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। मैं नीचे से कमर उठाकर उसका साथ दे रही थी। “आह्ह… कितना मोटा है… फाड़ डालेगा मेरी चूत को,” मैं सिसकार रही थी।
45 मिनट तक वो मुझे चोदता रहा। मैं तीन बार झड़ चुकी थी। आखिरकार उसने मेरी चूत में ढेर सारा वीर्य उड़ेल दिया। वो मेरे ऊपर ढेर हो गया। “थैंक यू… आज मैं बहुत खुश हूँ,” मैंने कहा। “तू तो जन्नत की सैर करा देता है।”
हमने चादर पर खून के धब्बे देखे। “ये हमारे मिलन की गवाही है,” मैंने कहा। “मुझसे शादी करेगा?” उसने हँसते हुए कहा, “अगर मैं कहूँ कि मैं शादीशुदा हूँ?” मेरी आँखें नम हो गईं। “तो क्या, अब तू मेरा सब कुछ है।” उसने कहा, “जब सब सोच लिया, तो फेरे का इंतजाम कर ले।” मैं खुशी से चिल्ला उठी और उस पर टूट पड़ी।
इस बार मैंने उसे नीचे लिटाया और उसके लंड पर चढ़ गई। “अब तू मेरा होने वाला शोहर है, शर्म कैसी?” मैंने कमर हिलाते हुए कहा। उसका लंड मेरी चूत में गहरे तक जा रहा था। “आह्ह… उउउ… कितना गहरा जा रहा है,” मैं सिसकारी। फिर उसने मुझे चौपाया बनाया और पीछे से मेरी चूत में लंड डाल दिया। “थप… थप… थप…” उसका लंड मेरी चूत को चीर रहा था। मैंने शीशे में देखा। मेरी चूचियाँ उछल रही थीं। “आह्ह… और जोर से… मेरी चूत फाड़ दे,” मैं चिल्लाई।
वो पीछे से धक्के मार रहा था। मैं बार-बार झड़ रही थी। उसने फिर मेरी चूत में वीर्य उड़ेल दिया। हम दोनों पसीने से लथपथ थे। “तू खुश तो है ना?” मैंने पूछा। “तुझ जैसी परी पाकर कौन खुश नहीं होगा?” उसने कहा। हम साथ नहाए, खाना बनाया और एक-दूसरे को खिलाया। रात भर हमने कई राउंड किए। सुबह तक मेरी चूत लाल और सूज गई थी। “उउउ… कितना दुख रहा है,” मैंने कहा।
सुबह 6 बजे वो चला गया। “मत जाओ,” मैंने विनती की। “पागल लड़की, पहले शादी तो हो जाए,” उसने हँसते हुए कहा। सुबह रोशनी आई। मैंने उसे सब बताया। एक महीने बाद हमने मंदिर में सादी शादी कर ली। मेरे घरवालों ने समझाने की कोशिश की, लेकिन मेरे निश्चय को देखकर चुप हो गए। मैंने ट्रांसफर के लिए अप्लाई किया, जो मंजूर हो गया। नई जगह जॉइन करने के बाद मैंने शादी का ऐलान किया। तब तक मैं तीन महीने की प्रेग्नेंट थी। रोशनी ने भी मेरे साथ ट्रांसफर लिया। अमर ने एक छोटी नर्सरी खोल ली। अब हमारी जिंदगी खुशियों से भरी है।
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बहुत ही बढ़िया ये हवस नहीं प्यार है। जो दिल में उभरती है। प्रेम में समर्पण है। न कि हवस में स्वस्थ प्रेम की परिभाषा है। लेखक को लख लख बधाइयां