Suhagrat me pati ke jija ne choda – मेरा नाम अनामिका है। मैं एक छोटे से गांव की रहने वाली हूँ, जहाँ की गलियों में धूल और सपनों की कमी दोनों ही बराबर उड़ती हैं। मैं एक साधारण सी लड़की हूँ, उम्र अभी 21 साल की है, गोरा रंग, पतली कमर, और चेहरा ऐसा कि लोग कहते हैं, “लगती तो कच्ची कली सी है।” पर मेरी जिंदगी में कच्चापन सिर्फ़ चेहरे तक ही रहा। मेरा बचपन मेरी सौतेली माँ के साये में बीता, जिसने मुझे कभी माँ का प्यार नहीं दिया, सिर्फ़ ताने और थप्पड़ ही नसीब हुए। मेरी जवानी भी पूरी होने से पहले ही मेरे सिर पर शादी का बोझ लाद दिया गया। मेरी चूचियाँ अभी नींबू जितनी ही थीं, और बदन में वो भरा-भरा सा अंदाज़ भी नहीं आया था, फिर भी मेरे बाप और सौतेली माँ ने मेरी शादी तय कर दी।
शादी की बात चली तो मुझे लड़के से मिलने का मौका तक नहीं दिया गया। ना मैंने उसे देखा, ना उसने मुझे। बस, लड़के का जीजा आया था मुझे देखने। उसका नाम रमेश था, उम्र करीब 35 साल, लंबा-चौड़ा, और चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान जो कुछ ज़्यादा ही चालाक लगती थी। उसने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, जैसे कोई सामान तौल रहा हो, और फिर हाँ कर दी। मेरी शादी तय हो गई एक ऐसे लड़के से, जिसे मैं जानती तक नहीं थी। बाद में पता चला कि मेरा होने वाला पति, राजू, पैरों से अपाहिज है, पोलियो का शिकार। सुनकर दिल बैठ गया, लेकिन मेरे पास मना करने का कोई रास्ता नहीं था। सौतेली माँ ने साफ़ कह दिया था, “जो नसीब में है, वही मिलेगा। चुपचाप शादी कर।”
पिछले महीने मेरी शादी हो गई। ससुराल एक छोटे से कस्बे में थी, जहाँ घर बड़ा तो था, लेकिन दिल छोटे-छोटे थे। मेरी ननद, रीना, जो शादीशुदा थी और रमेश की बीवी थी, उसने मेरी सुहागरात का बिस्तर सजाया। गुलाब की पंखुड़ियाँ, चमकती साड़ियाँ, और कमरे में एक हल्की-सी खुशबू। मैंने सोचा, शायद अब जिंदगी में कुछ अच्छा होगा। लेकिन मुझे क्या पता था कि ये सजावट मेरे पति के लिए नहीं, बल्कि रमेश के लिए थी। मेरी ननद ने अपने भाई के लिए नहीं, अपने पति के लिए वो बिस्तर सजाया था, ताकि वो मेरी चूत की सील तोड़ सके, मेरी कुंवारी जवानी को भोग सके।
रात के 11 बज चुके थे। मैं लाल जोड़े में सजी-धजी बिस्तर पर बैठी थी, दिल में घबराहट, लेकिन मन में एक उम्मीद कि शायद मेरा पति, जैसा भी है, मुझे प्यार देगा। मैंने सोचा, लंगड़ा ही सही, लेकिन अब जिंदगी उसी के साथ काटनी है। तभी अचानक लाइट चली गई। कमरे में घुप्प अंधेरा छा गया। ना मोमबत्ती, ना दीया, कुछ भी नहीं। मुझे लगा शायद बिजली गई है, लेकिन बाद में पता चला कि लाइट जानबूझकर काटी गई थी। तभी दरवाज़ा खुला। मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। मैंने सोचा, मेरा पति आया होगा। लेकिन अंधेरे में मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
वो शख्स शेरवानी में था, ऐसा मुझे लगा, क्योंकि कपड़ों की खड़खड़ाहट और उसकी खुशबू से दूल्हे जैसा अहसास हो रहा था। मैंने टटोलकर टेबल पर रखा दूध का गिलास उठाया और उसे दिया। उसने चुपचाप गिलास लिया, दूध पिया, और फिर मेरे पास बिस्तर पर बैठ गया। अंधेरे में सब कुछ धीरे-धीरे हो रहा था। मेरे हाथ काँप रहे थे। उसने धीरे से मेरा हाथ छुआ, मेरी उंगलियाँ थरथराने लगीं। फिर उसने मेरे चेहरे को छुआ, मेरे होंठों पर उंगलियाँ फेरीं। मेरे होंठ काँप रहे थे, डर और घबराहट से। ये मेरी पहली रात थी, पहली बार किसी मर्द का स्पर्श मेरे बदन को छू रहा था।
“आह…” मेरी साँसें तेज़ हो गईं। उसने धीरे से मुझे बिस्तर पर लिटाया। मेरी साड़ी का पल्लू उसने मेरी छाती से हटाया। मेरे ब्लाउज़ के हुक एक-एक करके खुलने लगे। मैंने आँखें बंद कर लीं, वैसे भी अंधेरा था, कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। उसने मेरी साड़ी को धीरे-धीरे खींचकर अलग किया। मेरा पेटीकोट का नाड़ा खोला, और उसे नीचे खींचकर मेरे पैरों से अलग कर दिया। अब मैं सिर्फ़ ब्रा और पैंटी में थी। मेरी साँसें और तेज़ हो गईं। उसने मेरी ब्रा का हुक खोलने के लिए मुझे साइड करने को कहा। मैंने घबराते हुए करवट ली, और उसने मेरी ब्रा खोल दी। मेरी छोटी-छोटी चूचियाँ, जो अभी नींबू जितनी थीं, अब पूरी तरह नंगी थीं।
मैं इतनी घबराई हुई थी कि तकिए को अपने चेहरे पर रख लिया। उसने मेरी चूचियों को अपने हाथों में लिया और धीरे-धीरे दबाने लगा। “उफ्फ…” मेरे मुँह से हल्की सी सिसकारी निकली। उसने मेरी एक चूची को अपने मुँह में लिया और चूसना शुरू कर दिया। उसकी जीभ मेरे निप्पल पर गोल-गोल घूम रही थी, और मैं काँप रही थी। उसका दूसरा हाथ मेरे पेट पर फिसलता हुआ मेरी चूत की तरफ बढ़ा। मेरी छोटी सी, कुंवारी चूत पर उसने अपनी उंगलियाँ फिराईं। “आह… हल्के से…” मैंने धीरे से कहा, डर के मारे मेरी आवाज़ काँप रही थी।
उसने मेरी पैंटी को धीरे से नीचे खींचा। अब मेरा पूरा बदन नंगा था। उसकी उंगलियाँ मेरी चूत के होंठों पर रगड़ रही थीं, और मुझे गुदगुदी सी हो रही थी। “उफ्फ… ये क्या हो रहा है…” मैंने सोचा। उसने मेरी चूत को और सहलाया, और फिर धीरे से एक उंगली अंदर डालने की कोशिश की। मेरी चूत इतनी टाइट थी कि उसकी उंगली भी मुश्किल से गई। मैंने अपने पैर सिकोड़ लिए, लेकिन उसने मेरे पैरों को धीरे से अलग किया और मेरी चूत को चाटना शुरू कर दिया।
“आआह… ओह्ह…” मेरी सिसकारियाँ तेज़ हो गईं। उसकी जीभ मेरी चूत के दाने को चाट रही थी, और मेरे पूरे बदन में करंट सा दौड़ रहा था। मेरी चूत से गर्म-गर्म पानी निकलने लगा। मैं पूरी तरह गीली हो चुकी थी। उसने मेरी चूत को और चाटा, और मैं तड़पने लगी। “उफ्फ… बस… और नहीं…” मैंने कहा, लेकिन मेरी आवाज़ में अब डर कम और मज़ा ज़्यादा था। उसने मेरी चूचियों को फिर से दबाया, मेरे निप्पल्स को उंगलियों से रगड़ा, और फिर मेरी कमर के नीचे एक तकिया लगाया।
उसने अपनी शेरवानी उतारी, और फिर मैंने उसके लंड को अपनी चूत के मुँह पर महसूस किया। “नहीं… धीरे…” मैंने कहा, डर के मारे मेरी आवाज़ टूट रही थी। उसने मेरी चूत पर अपना लंड रगड़ा, जो गर्म और सख्त था। उसका लंड करीब 6 इंच का था, और मेरी टाइट चूत के लिए वो बहुत बड़ा लग रहा था। उसने धीरे से धक्का मारा, लेकिन मेरी चूत का छेद इतना छोटा था कि लंड अंदर नहीं गया। “आह… दर्द हो रहा है…” मैंने कहा, मेरी आँखों में आँसू आ गए।
उसने मेरी चूचियों को फिर से सहलाया, मेरे होंठों को चूमा, और मेरे निप्पल्स को चूसकर मुझे शांत करने की कोशिश की। फिर उसने एक और ज़ोरदार धक्का मारा। “आआआह्ह…” मैं चीख पड़ी। उसका लंड मेरी चूत की सील तोड़ते हुए अंदर घुस गया। दर्द इतना तेज़ था कि मैं तड़प उठी। “छोड़ दो… प्लीज़… बहुत दर्द हो रहा है…” मैंने कहा, लेकिन उसने मुझे सहलाते हुए धीरे-धीरे लंड को और अंदर डाला। मेरी चूत से खून निकलने लगा, और मैं दर्द से कराह रही थी। “आह… उफ्फ… धीरे करो…” मैंने फिर कहा।
वो रुका, मेरे माथे को चूमा, और फिर धीरे-धीरे लंड को अंदर-बाहर करने लगा। “चटाक… चटाक…” लंड के हर धक्के के साथ मेरी चूत से गीली आवाज़ें आने लगीं। अब दर्द कम हो रहा था, और मज़ा बढ़ने लगा। मैंने अपनी कमर को हल्का-हल्का उठाना शुरू किया। “आह… और करो…” मैंने धीरे से कहा। उसने मेरी चूचियों को मसलते हुए धक्के तेज़ कर दिए। “फच… फच… फच…” मेरी चूत अब पूरी तरह गीली थी, और लंड आसानी से अंदर-बाहर हो रहा था।
“उफ्फ… कितना मज़ा आ रहा है…” मैंने सोचा। उसने मुझे उल्टा किया, मेरी गांड के नीचे तकिया लगाया, और पीछे से मेरी चूत में लंड डाल दिया। “आआह… ओह्ह…” मैं फिर से सिसकारी। उसने मेरी गांड पर हल्के-हल्के थप्पड़ मारते हुए मुझे चोदा। “चट… चट…” उसकी जांघें मेरी गांड से टकरा रही थीं। मैं अब पूरी तरह मज़े में थी। “हाँ… और ज़ोर से…” मैंने कहा, और वो और तेज़ी से धक्के मारने लगा।
करीब 15 मिनट तक उसने मुझे ऐसे ही चोदा। फिर उसने मुझे सीधा किया, मेरी टाँगें अपने कंधों पर रखीं, और फिर से लंड मेरी चूत में डाल दिया। “फचाक… फचाक…” अब मेरी चूत पूरी तरह खुल चुकी थी। मैं अपनी गांड उठा-उठाकर उसका साथ दे रही थी। “आह… ओह… हाँ… चोदो मुझे…” मैं बोल रही थी, और वो और तेज़ी से धक्के मार रहा था।
करीब 25 मिनट तक चुदाई चलती रही। आखिर में उसने ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारे। “आह… उफ्फ… मैं झड़ने वाला हूँ…” उसने कहा, और उसका गर्म-गर्म माल मेरी चूत में भर गया। “आआआह्ह…” मैं भी सिसकारी, और मेरे बदन में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई। वो मेरे ऊपर ही लेट गया, और हम दोनों की साँसें तेज़-तेज़ चल रही थीं।
तभी उसने कहा, “आह… कितना मज़ा आया, अनामिका…” मैं चौंक गई। ये आवाज़ मेरे पति की नहीं थी। ये रमेश की आवाज़ थी, मेरे पति के जीजा की। मैंने तुरंत अपनी कमर पीछे खींची और बिस्तर पर बैठ गई। “आप…?” मैंने काँपती आवाज़ में पूछा। “हाँ, मैं,” उसने कहा। “ये मेरी और तुम्हारे पति की डील थी। मैं ही तुम्हारी चूत की सील तोड़ने वाला था।”
मैं फूट-फूटकर रोने लगी। “ये क्या कर दिया आपने?” मैंने कहा। रमेश ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोला, “रो मत, अनामिका। जो हो गया, सो हो गया। तुम्हारा पति तो लंड खड़ा भी नहीं कर सकता। वो बगल के कमरे में दारू पीकर सो रहा है। मैं ही तुम्हें वो सब दूँगा जो एक पति देता है। मेरी बीवी को भी कोई ऐतराज़ नहीं है। उसने ही ये बिस्तर सजाया है, ताकि मैं तुम्हारी जवानी का मज़ा ले सकूँ।”
मैं चुप थी, मेरे आँसू रुक नहीं रहे थे। उसने कहा, “तुम बहुत हॉट हो, अनामिका। तुमने मुझे आज ऐसा मज़ा दिया, जो मुझे कभी नहीं मिला। अब तुम मुझे ही अपना पति मानो। मैं तुम्हें हर सुख दूँगा।” मैं कुछ नहीं बोली। मेरे मन में गुस्सा, दुख, और शर्मिंदगी का तूफान चल रहा था। सुहागरात, जो मेरे लिए प्यार और विश्वास की शुरुआत होनी चाहिए थी, वो धोखे और हवस की रात बन गई।
दोस्तों, ये मेरी सुहागरात की कहानी है। जहाँ हर लड़की अपने पति के साथ अपनी जवानी बाँटती है, मुझे अंधेरे में मेरे पति के जीजा ने चोद दिया। आपकी इस कहानी को लेकर क्या राय है? क्या आपको लगता है कि अनामिका को रमेश को अपना पति मान लेना चाहिए, या उसे इस धोखे के खिलाफ़ आवाज़ उठानी चाहिए? अपनी राय ज़रूर बताएँ।