Gaon ke khet me Didi ki gangbang chudai मैं राज हूँ। ये कहानी मेरे दिल के किसी कोने में दबी थी, लेकिन एक दोस्त ने मुझे सुझाव दिया कि इसे दुनिया के सामने लाना चाहिए। उसने मुझे प्रेरित किया कि मेरी ये दास्तान लोग सुनें, और शायद इसमें कुछ ऐसा हो जो दूसरों को भी छू जाए। तो, चलिए, मैं आपको बताता हूँ कि ये सब कैसे शुरू हुआ।
बात छह महीने पुरानी है। हम गुजरात के राजकोट शहर में रहते हैं। मेरी फैमिली में मैं, मेरे पापा, मम्मी और मेरी बड़ी बहन भरती हैं। भरती दीदी की शादी को बारह साल हो चुके हैं। उनके पति, यानी मेरे जीजू, आर्मी में हैं। दीदी की उम्र होगी कोई बत्तीस साल, और वो एक हाउसवाइफ हैं। उनके दो बच्चे हैं, एक लड़का और एक लड़की। दीदी का फिगर, अगर मैं कहूँ, तो कुछ 32-34-38 होगा। उनकी हाइट करीब 5 फुट 6 इंच है, और रंग ऐसा गोरा कि मोहल्ले में लोग उनकी खूबसूरती की तारीफ करते नहीं थकते। वो सचमुच एकदम कमाल की दिखती हैं। जब वो साड़ी पहनती हैं, तो उनकी कमर का उभार और ब्लाउज में छुपी उनकी छातियाँ हर किसी का ध्यान खींच लेती हैं। मोहल्ले वाले कहते थे कि दीदी जैसी औरत दूसरी नहीं। खैर, अब सीधे कहानी पर आता हूँ।
हमारे गाँव में हर साल पूजा का आयोजन होता है, और इस बार भी पापा ने खेतों में हवन का इंतजाम किया था। दीदी भी इस बार गाँव आई थीं, क्योंकि जीजू ड्यूटी पर थे। मैं भी काफी खुश था, क्योंकि दीदी से मिले हुए काफी वक्त हो गया था। सुबह से ही पूजा और हवन का माहौल था। दीदी ने उस दिन काली साड़ी पहनी थी, जो उनके गोरे रंग पर गजब ढा रही थी। उनकी साड़ी का पल्लू बार-बार सरक रहा था, और उनकी कमर का वो हल्का सा उभार दिख रहा था। वो हर बार पल्लू ठीक करतीं, लेकिन उनकी हर अदा में एक अलग ही रौनक थी।
दिनभर पूजा और हवन में सब व्यस्त रहे। रात को सत्संग का प्रोग्राम था। खाना खाने के बाद सब लोग सत्संग में बैठ गए। मैं और दीदी भी वहाँ थे। करीब दो घंटे बाद दीदी उठीं और मम्मी के पास गईं। उन्हें टॉयलेट जाना था। गाँव में टॉयलेट का मतलब खेतों में जाना होता है। दीदी ने मम्मी से कहा कि वो उनके साथ चलें, लेकिन मम्मी ने कहा, “राज को ले जा।” मैं उस वक्त वहाँ था ही नहीं, कहीं और चला गया था। दीदी ने इंतजार नहीं किया और अकेले ही खेतों की तरफ निकल गईं। जब मैं लौटा, तो मम्मी ने बताया कि दीदी मुझे ढूँढ रही थी। मैंने चारों तरफ नजर दौड़ाई, तो दीदी थोड़ी दूर दिखीं, अंधेरे में साड़ी का काला रंग हल्का सा चमक रहा था। मैं उनके पीछे-पीछे चल दिया।
दीदी को नहीं पता था कि मैं पीछे आ रहा हूँ। वो बस अंधेरे की तरफ बढ़ती जा रही थीं। हम काफी दूर निकल गए। फिर दीदी एक झाड़ियों के पास रुकीं। उन्होंने अपनी साड़ी ऊपर उठाई और नीचे बैठ गईं। मैंने शर्मिंदगी में मुँह फेर लिया। तभी अचानक पास से एक आवाज आई, “कौन है?” और एक टॉर्च की रौशनी सीधे दीदी की तरफ पड़ी। मैं चौंक गया। हमें नहीं पता था कि वहाँ गाँव के कुछ किसान शराब पी रहे थे। दीदी डर के मारे वैसे ही साड़ी उठाए बैठी रह गईं। टॉर्च की रौशनी उनकी गोरी जाँघों पर पड़ी, और उनकी चूत साफ दिख रही थी।
टॉर्च बंद हुई, और मैंने देखा कि वहाँ पाँच किसान थे, जिनकी उम्र कोई तीस से पैंतालीस साल के बीच होगी। वो सब शराब के नशे में धुत्त थे। दीदी ने डरते-डरते कहा, “मैं हूँ, भरती।” एक किसान, जो सबसे ज्यादा नशे में था, दीदी के पास गया और बोला, “यहाँ क्या कर रही हो?”
दीदी ने काँपते हुए जवाब दिया, “जी, मूतने आई थी।”
किसान ने टॉर्च फिर से जलाई और दीदी की चूत पर रौशनी डालते हुए बोला, “कहाँ मूत रही हो? दिखा तो!”
दीदी ने शर्मिंदगी और डर के मारे कहा, “जी, आप लोग हैं ना, इसलिए…”
किसान ने हँसते हुए कहा, “तो क्या हुआ? हम भी तो मूतते हैं। चल, मूत!” उसने जोर से चिल्लाया। दीदी डर के मारे काँप रही थीं, और उनकी चूत से मूत की एक तेज धार निकलने लगी। किसान ने हँसते हुए कहा, “शरमाती क्यों हो? क्या हम नहीं मूतते?” और ये कहते हुए उसने अपना लंड बाहर निकाला। उसका लंड खड़ा था, कोई साढ़े छह इंच लंबा और साढ़े तीन इंच मोटा। वो दीदी के सामने उसे हिलाने लगा।
बाकी किसानों को उसने इशारा किया, “चलो भाई, तुम भी मूत लो!” और सबने अपने-अपने लंड निकाल लिए। वो सब दीदी के चारों तरफ खड़े हो गए। मैं कुछ करने जा रहा था, लेकिन तभी मैंने दीदी की आँखों में एक अजीब सी चमक देखी। वो डर के साथ-साथ कुछ और भी था, शायद उत्सुकता। मैं चुपके से झाड़ियों में छुप गया।
किसान ने दीदी से कहा, “इसे पकड़!” दीदी ने मना किया, “नहीं, ये ठीक नहीं।” किसान गुस्से में बोला, “हम कह रहे हैं, वरना जबरदस्ती भी आती है!” दीदी डर गईं और हिचकते हुए उसका लंड हाथ में ले लिया। वो धीरे-धीरे उसे हिलाने लगीं। उनकी साड़ी अभी भी कमर तक उठी थी, और उनकी गोरी जाँघें चाँदनी में चमक रही थीं। दीदी की उंगलियाँ उस मोटे लंड पर कस रही थीं, और वो धीरे-धीरे उसे आगे-पीछे कर रही थीं।
किसान ने दीदी को देखते हुए कहा, “हाथ से क्या, मुँह में ले!” दीदी ने एक बार फिर मना किया, लेकिन किसान ने उनकी साड़ी का पल्लू खींच लिया। दीदी का ब्लाउज सामने आ गया, जिसमें उनकी छातियाँ साफ दिख रही थीं। दीदी ने हार मान ली और धीरे से उसका लंड मुँह में लिया। “आह्ह…” किसान के मुँह से सिसकारी निकली। दीदी ने पहले हल्के से चूसा, फिर धीरे-धीरे उनकी जीभ उस लंड के सुपारे पर घूमने लगी। वो उसे पूरा मुँह में ले रही थीं, और उनकी साँसें तेज हो रही थीं। “उम्म… आह…” दीदी के मुँह से हल्की सिसकारियाँ निकल रही थीं।
बाकी किसान भी अब बेकाबू हो रहे थे। एक ने दीदी का ब्लाउज खींचकर उतार दिया। उनकी ब्रा में कैद छातियाँ बाहर आने को बेताब थीं। दूसरा किसान दीदी की ब्रा के हुक खोलने लगा। दीदी ने विरोध नहीं किया। उनकी ब्रा उतरते ही उनकी गोरी, भरी हुई छातियाँ आजाद हो गईं। एक किसान ने उनकी छातियों को जोर से दबाया, “उफ्फ… कितनी मुलायम हैं!” दीदी के मुँह से एक तेज “आह्ह…” निकला। उसने उनके निप्पल को मुँह में लिया और चूसने लगा। “उम्म… ओह…” दीदी की सिसकारियाँ तेज हो गईं।
एक दूसरा किसान नीचे बैठ गया और दीदी की चूत में उंगली डाल दी। “आह्ह… धीरे…” दीदी ने सिसकारी भरी, लेकिन उनकी आवाज में अब डर कम और हवस ज्यादा थी। वो किसान तेजी से उंगली अंदर-बाहर करने लगा। दीदी की चूत गीली हो चुकी थी, और उसकी उंगली हर बार “चप… चप…” की आवाज के साथ अंदर-बाहर हो रही थी। दीदी की साँसें तेज हो रही थीं, और वो अब पूरी तरह हवस में डूब चुकी थीं।
करीब आधे घंटे तक यही चलता रहा। दीदी अब पूरी तरह नंगी थीं। उनकी साड़ी, ब्लाउज, ब्रा और पैंटी खेत में बिखरे पड़े थे। एक किसान, जिसका लंड सबसे बड़ा था, कोई सात इंच लंबा और चार इंच मोटा, दीदी के ऊपर चढ़ गया। उसने अपना लंड दीदी की चूत पर टिकाया और धीरे से सुपारा अंदर डाला। “आह्ह… उफ्फ…” दीदी की सिसकारी निकली। उसने धीरे-धीरे लंड अंदर पेला, और दीदी की चूत उसे पूरा निगल गई। “फच… फच…” की आवाज गूँजने लगी, जैसे ही वो तेजी से धक्के मारने लगा। दीदी की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं, “आह्ह… ओह… धीरे… उफ्फ…”
एक दूसरा किसान दीदी के मुँह में अपना लंड डाल रहा था। दीदी उसे चूस रही थीं, और उनकी जीभ उस लंड के हर हिस्से को चाट रही थी। “उम्म… आह…” उनकी सिसकारियाँ मुँह में लंड होने की वजह से दबी-दबी सी थीं। तीसरा किसान दीदी की छातियों को दबा रहा था, उनके निप्पल्स को चूस रहा था। “उफ्फ… कितनी रसीली हैं ये!” वो बार-बार कह रहा था।
पंद्रह मिनट तक यही चलता रहा। फिर एक किसान ने सबको रोका और बोला, “बस, अब मुझसे रुका नहीं जाता!” उसने दीदी को उल्टा किया और उनकी गाँड को ऊपर उठाया। दीदी ने मना करने की कोशिश की, “नहीं… वहाँ नहीं…” लेकिन शराब और हवस के नशे में वो कहाँ सुनने वाले थे। उसने अपना लंड दीदी की गाँड पर टिकाया और धीरे से सुपारा अंदर डाला। “आह्ह… उफ्फ… दर्द हो रहा है!” दीदी चीखीं। लेकिन उसने एक जोरदार झटके में पूरा लंड पेल दिया। “आआह्ह…” दीदी की चीख खेतों में गूँजी। वो दर्द से तड़प रही थीं, लेकिन किसानों ने उन्हें कसकर पकड़ रखा था।
एक ने फिर से दीदी की चूत में लंड डाला, और अब वो दोनों तरफ से चुद रही थीं। “फच… फच…” और “थप… थप…” की आवाजें खेतों में गूँज रही थीं। दीदी की सिसकारियाँ अब मिश्रित थीं, दर्द और मजे का अजीब सा मेल। “आह्ह… ओह… धीरे… उफ्फ…” वो बार-बार सिसक रही थीं। ढाई घंटे तक ये सब चलता रहा। हर किसान ने दीदी को कम से कम दो-दो बार चोदा। उनकी चूत और गाँड खून और वीर्य से लथपथ थी।
अचानक एक किसान को कुछ सूझा। वो खेत से दो भुट्टे तोड़ लाया। उसने उन्हें साफ किया और दीदी की चूत और गाँड में डाल दिए। भुट्टे कम से कम साढ़े चार इंच मोटे थे। “आह्ह… नहीं… ये बहुत बड़ा है!” दीदी चीखीं, लेकिन वो तेजी से भुट्टे को अंदर-बाहर करने लगा। “चप… चप…” की आवाज के साथ दीदी की चूत और गाँड फटने की कगार पर थी। “उफ्फ… आह्ह…” दीदी की सिसकारियाँ अब दर्द और मजे के बीच झूल रही थीं।
आखिर में, जब किसानों का मन भर गया, उन्होंने दीदी की चूत में अपना वीर्य डाला। एक-एक करके पाँचों ने ऐसा किया। “उम्म… आह…” दीदी की सिसकारियाँ अब धीमी हो चुकी थीं। वो थककर जमीन पर पड़ी थीं। किसान हँसते हुए चले गए।
दीदी उठ नहीं पा रही थीं। मैं उनके पास गया, उन्हें उठाया और पास के पानी के पाइप तक ले गया। मैंने उनकी चूत और गाँड को साफ किया। उनकी साड़ी फटी हुई थी, लेकिन मैंने उसे ठीक करके उन्हें पहनाया। मैंने पानी पिलाया और कहा, “दीदी, मैंने सब देख लिया।”
दीदी ने थकी हुई आवाज में कहा, “राज, किसी को मत बताना। ये हमारा राज रहे।”
लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि दीदी को उस रात की चुदाई की आदत सी हो गई है। वो कई बार गाँव आईं, और रात को खेतों में जाती हैं। दो बार तो मैं खुद उन्हें ले गया। वो लोग मेरे सामने दीदी को चोदते हैं। आखिरी बार तो उन्होंने मुझे भी शामिल होने को कहा, और मैंने भी… खैर, वो फिर कभी बताऊँगा।
दोस्तों, मेरी बहन कोई रंडी नहीं है। लेकिन उसे उस रात अपनी जिंदगी का वो मजा मिला, जो शायद पहले कभी नहीं मिला। तो मैं उसकी मदद क्यों न करूँ? आप बताइए, क्या मैं सही हूँ या गलत?