Daya blowjob story गोकुलधाम सोसाइटी की सुबह की चहल-पहल में, सूरज की किरणें खिड़कियों से छनकर घरों में दाखिल हो रही थीं। जेठालाल का घर, हमेशा की तरह, हल्की-फुल्की हलचल से भरा था। जेठालाल, 45 साल का एक हट्टा-कट्टा व्यापारी, जिसकी गदा इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान पूरे मुंबई में मशहूर थी, अभी बिस्तर पर पड़ा था। उसकी पत्नी दया, 38 साल की, लंबे काले बाल, गोरी रंगत, और भारी-भरकम कूल्हों वाली औरत, जिसकी साड़ी हमेशा उसकी कमर को और उभारती थी, रसोई में चाय बना रही थी। उनका बेटा टप्पू, 21 साल का कॉलेज स्टूडेंट, जिसे मोबाइल पर नई-नई चीजें देखने का शौक था, अपने कमरे में था। और चंपकलाल, 70 साल के, जेठालाल के पिता, जो अपनी उम्र के बावजूद चुस्त-दुरुस्त और थोड़े शरारती थे, ड्राइंग रूम में अखबार के पन्ने पलट रहे थे।
सुबह के 8 बजे थे। जेठालाल अभी भी बिस्तर पर करवटें बदल रहा था। रात की थकान उसकी आँखों में साफ दिख रही थी। रात भर उसने दया के साथ बिस्तर पर जो तूफान मचाया था, उसकी गर्मी अभी भी उसके शरीर में बाकी थी। दया की चुदाई करते वक्त उसने सारी ताकत झोंक दी थी। उसकी आँखें नींद से भारी थीं, लेकिन दया का रसीला बदन अभी भी उसके दिमाग में घूम रहा था। दूसरी तरफ, टप्पू अपने मोबाइल पर इन्सेस्ट स्टोरीज पढ़ने में मशगूल था, उसकी उंगलियाँ स्क्रीन पर तेजी से स्क्रॉल कर रही थीं। चंपकलाल ने अखबार में कुछ पढ़ा और हल्का सा मुस्कुराया, लेकिन उसकी नजरें बार-बार रसोई की तरफ जा रही थीं, जहाँ दया अपनी साड़ी में काम कर रही थी।
चंपकलाल ने अखबार नीचे रखा और जोर से आवाज लगाई, “दया! जेठा को जगा दे, कितना सोएगा ये आदमी? दुकान का टाइम हो गया है!”
दया ने रसोई से जवाब दिया, “हाँ बाबूजी, अभी देखती हूँ!” उसकी आवाज में हल्की सी झिझक थी, क्योंकि उसे पता था कि जेठालाल रात की थकान से अभी भी उबर नहीं पाया है। फिर भी, वह अपनी गांड को हल्के से सहलाते हुए, साड़ी के पल्लू को ठीक करती हुई बेडरूम की ओर चली। उसकी चाल में एक अजीब सी लय थी, जो चंपकलाल की नजरों से छुपी नहीं। चंपकलाल ने एक पल के लिए उसकी मटकती गांड को देखा, और उसका मन हल्का सा डोला। लेकिन जल्दी ही उसने खुद को संभाला और फिर से अखबार में डूब गया।
बेडरूम में दया ने जेठालाल को हल्के से कंधे पर थपथपाया, “टप्पू के पापा, अब तो उठ जाओ। सुबह हो गई है।” उसकी आवाज में प्यार भरा ताना था। जेठालाल ने आँखें बंद रखते हुए बुदबुदाया, “अरे दया, थोड़ा और सोने दे ना। तू तो जानती है, रात को कितना मेहनत की मैंने।” उसकी आवाज में शरारत थी, और उसने हल्का सा मुस्कुराते हुए दया की तरफ देखा।
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दया ने हल्का सा शरमाते हुए कहा, “हाँ-हाँ, मुझे सब पता है। लेकिन बाबूजी बुला रहे हैं, अब उठ जाओ।” उसने जेठालाल की चादर खींचने की कोशिश की, लेकिन जेठालाल ने चादर पकड़ ली और उसे अपनी तरफ खींच लिया। “आज सुबह-सुबह तुझे फिर से चखने का मन कर रहा है,” उसने दया की कमर में हाथ डालते हुए कहा। दया ने हल्का सा धक्का देकर खुद को छुड़ाया और हँसते हुए बोली, “बस करो, टप्पू के पापा। अभी बाबूजी बाहर हैं, और टप्पू भी घर पर है।”
तभी चंपकलाल की आवाज फिर से गूँजी, “जेठा! अभी तक नहीं उठा? मैं अंदर आ जाऊँ क्या?” उसकी आवाज में नकली गुस्सा था, लेकिन जेठालाल जानता था कि बापूजी मजाक नहीं कर रहे। वह झटके से बिस्तर से उठा और दया की गांड पर हल्का सा चपट मारते हुए बाथरूम की ओर चला गया। “तू तो मेरी जान ले लेगी,” उसने हँसते हुए कहा। दया ने शरमाते हुए साड़ी ठीक की और बाहर चली गई।
आधे घंटे बाद, टप्पू कॉलेज के लिए निकल गया। चंपकलाल भी अपने दोस्तों से मिलने के लिए बाहर चले गए। घर में अब सिर्फ जेठालाल और दया थे। जेठालाल डाइनिंग टेबल पर बैठा चाय की चुस्कियाँ ले रहा था। उसने दया को आवाज दी, “दया, इधर आ ना, जरा बात करें।” दया रसोई से बाहर आई, उसकी साड़ी का पल्लू हल्का सा सरक गया था, जिससे उसका गोरा पेट और गहरी नाभि साफ दिख रही थी। जेठालाल की नजरें उस पर टिक गईं।
वह उठा और दया के पास गया। उसने दया की गांड को जोर से दबाया और धीमी आवाज में बोला, “कैसी लग रही है मेरी जान?” दया ने हल्का सा शरमाते हुए कहा, “टप्पू के पापा, बस करो ना। अभी तो सुबह है।” लेकिन उसकी आँखों में वही शरारत थी जो जेठालाल को पागल कर देती थी। जेठालाल ने उसे अपनी बाहों में खींच लिया और उसके गले पर एक गहरा चुम्बन दे दिया। “कल रात का मजा अभी भी मेरे दिमाग में घूम रहा है,” उसने कहा, उसकी उंगलियाँ दया की साड़ी के ऊपर से उसकी जाँघों पर फिसल रही थीं।
दया ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ, मेरे प्यारे पति, मुझे भी बहुत मजा आया। लेकिन अब तुम दुकान के लिए तैयार हो जाओ।” जेठालाल ने उसकी बात को अनसुना करते हुए उसके होंठों को चूम लिया। उसकी जीभ दया की जीभ से टकराई, और दोनों एक गहरे, गर्म चुम्बन में खो गए। दया ने भी जवाब में उतनी ही गर्मजोशी दिखाई, उसकी उंगलियाँ जेठालाल की पीठ पर फिसल रही थीं। “आह्ह… टप्पू के पापा, ये क्या कर रहे हो?” दया ने हल्का सा धक्का देते हुए कहा, लेकिन उसकी आवाज में मजा लेने की झलक थी।
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जेठालाल ने हँसते हुए कहा, “बस थोड़ा सा मजा, मेरी जान। तुझे तो पता है, तू मेरी कमजोरी है।” उसने दया की गांड पर फिर से हाथ फेरा और इस बार हल्का सा उसकी साड़ी को ऊपर उठाने की कोशिश की। दया ने शरमाते हुए उसे रोका, “अरे, कोई देख लेगा!” लेकिन जेठालाल ने उसकी बात अनसुनी कर दी और उसकी गांड में हल्के से उंगली फेर दी। दया ने एक हल्की सी सिसकारी भरी, “उफ्फ… तुम तो सुबह-सुबह भी नहीं मानते।”
तभी जेठालाल का फोन बजा। उसने नाराजगी से फोन की स्क्रीन देखी। नटू काका का नंबर था। उसने फोन उठाया, “हाँ काका, बोलो, क्या हुआ?”
नटू काका की आवाज में हड़बड़ी थी, “सेठजी, आप कहाँ हैं? दुकान पर शर्माजी आए हैं, वो मीटिंग के लिए इंतजार कर रहे हैं।”
जेठालाल ने भौंहें चढ़ाईं, “कौन शर्माजी?”
दया ने जेठालाल की बात सुनी और समझ गई कि अब वह दुकान के लिए निकलेगा। वह रसोई की ओर जाने लगी, लेकिन जेठालाल ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसने अपनी पैंट की तरफ इशारा किया, जहाँ उसका लंड पहले से ही सख्त होकर उभार बना रहा था। दया की नजरें वहाँ गईं, और उसने हल्का सा शरमाते हुए मुस्कुराया। “टप्पू के पापा, तुम्हें सुबह-सुबह भी चैन नहीं है,” उसने धीमी आवाज में कहा।
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वह नीचे झुकी और जेठालाल की पैंट की जिप खोलने लगी। उसकी उंगलियाँ जिप पर फिसलीं, और उसने धीरे से जेठालाल का 12 इंच का मोटा, सख्त लंड बाहर निकाला। जेठालाल की साँसें तेज हो गईं। दया ने उसके लंड को अपने नाजुक हाथों में लिया और हल्के से सहलाने लगी। उसकी उंगलियाँ लंड के सिरे से लेकर नीचे तक फिसल रही थीं, और वह धीरे-धीरे उसे रगड़ रही थी। “उफ्फ… दया, तू तो जादू करती है,” जेठालाल ने सिसकारी भरी।
दया ने शरमाते हुए उसकी तरफ देखा और फिर धीरे से अपने होंठ उसके लंड के सिरे पर रख दिए। उसने पहले हल्का सा चूमा, फिर अपनी जीभ को लंड के सिरे पर गोल-गोल घुमाया। जेठालाल की आँखें बंद हो गईं, और उसने एक गहरी सिसकारी भरी, “आह्ह… दया, तू तो मेरी जान ले लेगी।” दया ने धीरे-धीरे लंड को अपने मुँह में लिया, उसकी जीभ लंड के हर इंच को चाट रही थी। उसने पहले धीरे-धीरे चूसा, फिर धीरे-धीरे अपनी रफ्तार बढ़ाई। “उम्म… आह्ह…” दया की मुँह से हल्की-हल्की आवाजें निकल रही थीं, जो जेठालाल को और उत्तेजित कर रही थीं।
जेठालाल ने फोन काट दिया और टेबल पर रख दिया। उसने दया के बालों को पकड़ा और अपने लंड को उसके मुँह में और गहराई तक धकेलने लगा। “चूस मेरी जान, और जोर से चूस,” उसने धीमी, भारी आवाज में कहा। दया को थोड़ी मुश्किल हो रही थी, क्योंकि जेठालाल का लंड इतना बड़ा था कि वह उसे पूरा मुँह में नहीं ले पा रही थी। लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने अपने होंठों को और टाइट किया और लंड को गहराई तक चूसने लगी। “उम्म… ग्लक… ग्लक…” उसके मुँह से गीली आवाजें निकल रही थीं, जो कमरे में गूँज रही थीं।
जेठालाल की साँसें और तेज हो गईं। उसने दया के सिर को और जोर से पकड़ा और अपने लंड को उसके मुँह में तेजी से अंदर-बाहर करने लगा। “हाँ… बस ऐसे ही… आह्ह… दया, तू तो कमाल है,” वह बुदबुदा रहा था। दया की आँखें नम हो गई थीं, लेकिन वह रुकी नहीं। उसने अपने एक हाथ से जेठालाल के गोले को सहलाना शुरू किया, जिससे जेठालाल और पागल हो गया। “उफ्फ… दया, तू तो मुझे जन्नत दिखा रही है,” उसने सिसकारी भरी।
तभी जेठालाल का फोन फिर से बजा। इस बार शर्माजी का नंबर था। जेठालाल ने नाराजगी से फोन की तरफ देखा, लेकिन उसका शरीर अब उत्तेजना की चरम सीमा पर था। दया ने और जोर से चूसना शुरू किया, और जेठालाल के मुँह से एक जोरदार सिसकारी निकली, “आह्ह… दया… मैं… मैं…” और उसी पल वह दया के मुँह में झड़ गया। दया ने उसका सारा रस पी लिया, उसकी जीभ अभी भी लंड के सिरे को चाट रही थी।
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जेठालाल ने फोन उठाया और हाँफते हुए बोला, “हाँ… शर्माजी… मैं… मैं बस आ रहा हूँ।” उसने फोन रख दिया और दया की तरफ देखा। दया ने उसके लंड को आखिरी बार चाटा और उसे अंडरवियर में डाल दिया। वह जिप बंद करने वाली थी, तभी उसका फोन बजा। उसने सुना कि उसकी माँ का फोन था। “अरे, माँ का फोन है, मैं अभी आती हूँ,” उसने कहा और जल्दी से दूसरे कमरे में चली गई।
जेठालाल, जो अभी भी उत्तेजना की गर्मी में था, फोन पर बात करने में इतना खो गया कि वह अपनी पैंट की जिप बंद करना भूल गया। उसने जल्दी से शर्ट पहनी और दुकान के लिए निकल गया, बिना ये सोचे कि उसकी पैंट की जिप खुली हुई थी।
दोस्तों, अब देखना ये है कि जेठालाल की ये भूल उसका दिन कैसे बिगाड़ती है, या फिर शायद उसे और मजा देती है। क्या जेठालाल की खुली जिप उसे किसी नई चुदाई की सैर पर ले जाएगी? आप क्या सोचते हैं?
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