मौसा का वो काला भुसण्ड लौड़ा

Mausa ke Kale lund se chudai इन दिनों मेरे मौसा जी हमारे घर आए हुए थे। उनका नाम शमशेर था, उम्र 42 साल, कद 5 फुट 10 इंच, और बदन ऐसा कि गाँव का कोई पहलवान भी देखकर दाँतों तले उँगली दबा ले। चौड़ा सीना, पत्थर जैसे कंधे, और चेहरा ऐसा कि जाटों की ठसक झलकती थी। उनकी आँखों में एक शरारती चमक थी, जो हर बार मुझे बेचैन कर देती थी। वो छत वाले कमरे में ठहरे थे, जो मेरा फेवरेट ठिकाना था। मैं, बानो, 24 साल की, गेहुँआ रंग, लंबे काले बाल, और फिगर 34-28-36, जो मेरी टाइट शमीज और पैंटी में कातिलाना लगता था। मेरी हाइट 5 फुट 4 इंच थी, और मेरे चूतड़ों की गोलाई हर मर्द की नजरें ठहरा देती थी। छत पर तारों भरी रात में हवा के झोंके मुझे बेकरार कर देते थे, और मैं घंटों वहाँ बिताती थी।

मौसा जी की नजरें मुझ पर कुछ ऐसी टिकती थीं, जैसे वो मेरे कपड़ों के पार मेरे बदन को नाप रहे हों। उनकी आँखों में वो वासना थी, जो मैंने कई मर्दों में देखी थी, लेकिन मौसा की नजर में कुछ अलग ही ठसक थी। मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता था। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? मुझे चोद देगा? अरे, मुझे तो कोई ऐतराज नहीं था। बस वो शुरू तो करे। मैंने कई बार सोचा कि उनकी छेड़खानी को हवा दूँ, लेकिन शराफत आड़े आ जाती थी।

एक रात नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी। रात के एक बज रहे थे। मन में अजीब सी बैचेनी थी, जैसे चूत में आग सुलग रही हो। कई दिनों से मैंने कोई लौड़ा नहीं लिया था। मेरा पुराना यार अब्दुल कहीं बाहर चला गया था। उसकी याद में मेरी चूत लपलप कर रही थी। बिस्तर पर करवटें बदलते-बदलते मैं तंग आ गई। आखिर उठी और धीरे-धीरे छत की ओर चल पड़ी। सीढ़ियाँ चढ़ते वक्त मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, जैसे कोई चोर चुपके से कहीं जा रहा हो। मौसा के कमरे के पास पहुंची तो देखा लाइट जल रही थी। मैंने दरवाजे की झिरी से झाँका, और मेरा दिल धक से रह गया।

मौसा जी पूरी तरह नंगे थे। उनका मोटा, काला, भुसण्ड जैसा लौड़ा उनके हाथ में था, कम से कम 8 इंच लंबा और इतना मोटा कि मेरी चूत में सिहरन दौड़ गई। वो उसे कभी ऊपर-नीचे, कभी आगे-पीछे रगड़ रहे थे। उनका बदन पसीने से चमक रहा था, और वो सिसकारी भर रहे थे, “उह्ह… बानो…” मेरे नाम की सिसकारी सुनकर मेरी चूत में जैसे करंट दौड़ गया। मैं चुपके से देखती रही, मेरी साँसें तेज हो गईं। 42 की उम्र में भी वो अपनी जवानी का रंग जमा रहे थे। मन में आया कि अभी अंदर घुस जाऊँ और जी भरकर चुदवा लूँ। लेकिन शराफत ने रोक लिया। मैं अपनी चूत को दबाते हुए वापस अपने कमरे में आ गई। पैंटी में हाथ डाला, चूत गीली थी। उंगलियाँ अंदर-बाहर की, लेकिन वो आग बुझी नहीं। थककर सो गई।

अगली सुबह नींद देर से खुली। आँखें खोलते ही देखा मौसा जी मेरे कमरे में खड़े थे, मुझे घूर रहे थे। मेरी शमीज ऊपर चढ़ी थी, और मेरी पैंटी, जो बस एक डोरे जैसी थी, मेरे चूतड़ों में फँसी थी। मेरे गोल चूतड़ उनकी नजरों के सामने थे। मैंने जल्दी से शमीज नीचे खींची, लेकिन उनकी आँखें मेरे बदन पर चिपकी रहीं। वो झेंप गए और बिना कुछ बोले बाहर चले गए। मैंने मन ही मन हँसते हुए सोचा, “लौड़ा हिलाने में मस्त है, और अब मेरे चूतड़ देखकर मुठ मारने जाएगा।”

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नाश्ते के बाद मैंने मौसा को टोका, “मुझे सोते हुए घूरते हो?”

वो बेशर्मी से मुस्कुराए, “बानो, तू तो मस्त लगती है।”

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“तेरी बेटी नहीं है क्या? जा उसकी गाण्ड देखकर लौड़ा हिला!” मैंने छेड़ते हुए कहा।

“ऐ बानो, तू तो खुद उघाड़े पड़ी थी। वो डोरे जैसी चड्डी पहनती है, देख लिया तो क्या बिगड़ गया?” वो हँसते हुए बोले।

“मुझे बेवकूफ समझा है? रात को लौड़ा हिलाते देखा मैंने। तेरा वो काला भुसण्ड लौड़ा, कोई देखे तो बस चुदवाने का मन करे!” मैंने उनकी आँखों में देखकर कहा।

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“बड़ी शातिर है तू। छुप-छुपकर देखती है, कभी मौका दे तो तेरी चूत में मजा दे दूँ!” उनकी आँखों में वासना चमक उठी।

“क्यों, अभी मौका नहीं है क्या?” मैंने चुलबुले अंदाज में कहा।

मौसा ने मुझे कमर से पकड़ लिया और दीवार से सटा दिया। उनके खुरदरे हाथ मेरे बड़े-बड़े बोबों पर पड़े और जोर से दबाए। “आह्ह…” मेरी सिसकारी निकल गई। मेरी चूचियाँ उनकी हथेलियों में मसली जा रही थीं।

“अपनी माँ को चोदा है कभी?” मैंने छेड़ते हुए कहा।

“ऐ बानो, ज्यादा मत बोल…” वो बोले, लेकिन उनके हाथ मेरे बोबों को और जोर से मसल रहे थे।

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“अच्छा, तो अपनी बहन की गाण्ड मारी है क्या?” मैंने हँसते हुए कहा।

“बस! अब तो तेरी चूत में मजा दूँगा!” वो गुर्राए।

“तो बेटी को तो जरूर चोदा होगा, शकीला भी तो मस्त है!” मैंने और चढ़ाया।

“बहुत बोलती है! तेरी माँ को चोदूँगा, तब मजा आएगा!” वो चिल्लाए।

“मेरी माँ को तो कब का चोद चुका होगा! अब मुझे चोद दे, मौसा!” मैंने आँख मारते हुए कहा।

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“रात को ऊपर आ जा, तुझे मस्त कर दूँगा!” वो बोले और मुझे छोड़कर चले गए।

मैंने हँसते हुए कहा, “अम्मी, देखो ना, मौसा मुझे तंग कर रहा है!” तभी अम्मी, जिनकी उम्र 45 के आसपास थी, बड़बड़ाती हुई आ गईं। उनका बदन अभी भी कसा हुआ था, और गुस्से में उनकी आँखें लाल थीं।

“मेरी बेटी को छेड़ेगा? अभी सबक सिखा दूँगी!” अम्मी चिल्लाईं।

मौसा घबरा गए और छत की ओर भागे। मैं हँसते हुए अपने कमरे में चली गई।

रात बारह बजे, जब घर सन्नाटे में डूबा था, मैं दबे पाँव छत पर गई। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। चूत में आग लगी थी, और मैं जानती थी कि आज वो बुझेगी। मौसा के कमरे के पास पहुंची तो उन्होंने दरवाजा खोला और मुझे अंदर खींच लिया।

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“लगी ना चूत में आग? चुदवाने चली आई?” वो बेशर्मी से बोले।

“जा रे! तेरे जैसे कई देखे हैं। तू क्या सोचता है, लौड़ा सिर्फ तेरे पास है?” मैंने बनावटी गुस्सा दिखाया।

“तो फिर तेरी चूत में इतनी आग क्यों लगी है? ये ले मेरा काला लौड़ा!” मौसा ने अपनी लुंगी उतार दी। उनका मोटा, काला लौड़ा मेरे सामने झूल रहा था। मैंने अपनी शमीज ऊपर उठाई। पैंटी मैंने जानबूझकर नहीं पहनी थी। मेरी चिकनी, रस भरी चूत देखकर मौसा की आँखें चमक उठीं। उनका लौड़ा और सख्त हो गया, जैसे कोई घोड़े का लौड़ा हो।

“हाय रे मौसा, तेरा लौड़ा तो सच में घोड़े जैसा है! ये तो मेरी छोटी सी मुनिया को फाड़ डालेगा!” मैंने डरते हुए कहा, लेकिन मेरी चूत गीली थी।

मौसा का अनोखा अंदाज यह था कि वो चुदाई को एक खेल की तरह खेलते थे। उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में खींचा और मेरे कान में फुसफुसाए, “आज तुझे ऐसा चोदूँगा कि हर रात मेरा लौड़ा याद आएगा।” उनकी बातों में एक जादू था, जो मेरे बदन में सिहरन पैदा कर रहा था। उन्होंने मेरे होंठों पर अपने होंठ रखे, लेकिन जल्दी नहीं की। उनकी जीभ धीरे-धीरे मेरे होंठों को चाटने लगी, जैसे कोई मिठाई चख रहा हो। “उम्म…” मेरी सिसकारी निकली। वो मेरे होंठों को चूसते हुए मेरी गर्दन पर आए, और वहाँ हल्के-हल्के काटने लगे। मेरे बदन में करंट सा दौड़ गया। “आह्ह… मौसा… ये क्या कर रहे हो…” मैं कराह उठी।

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उनके खुरदरे हाथ मेरी शमीज के अंदर गए। उन्होंने मेरी चूचियों को धीरे-धीरे सहलाया, जैसे कोई नाजुक चीज छू रहे हों। मेरी निप्पल्स सख्त हो चुकी थीं। “बानो, तेरी चूचियाँ तो रसभरी जैसे हैं…” वो बोले और मेरी शमीज उतार दी। मेरे नंगे बोबे उनके सामने थे। मौसा ने अपने अनोखे अंदाज में मेरी एक चूची को मुँह में लिया और दूसरी को उंगलियों से मसलने लगे। उनकी जीभ मेरी निप्पल्स पर गोल-गोल घूम रही थी। “आह्ह… हाय… मौसा… और चूसो…” मैं सिसकार रही थी। वो कभी मेरी चूचियों को चूसते, कभी हल्के से काटते, और मैं मस्ती में डूब रही थी।

उनका एक हाथ मेरे चूतड़ों पर गया। मेरी पैंटी न होने की वजह से उनके खुरदरे हाथ मेरे नंगे चूतड़ों को सहला रहे थे। वो मेरे चूतड़ों को दबाते, थपथपाते, और मेरी चूत के पास अपनी उंगलियाँ ले गए। “उह्ह… मौसा… वहाँ…” मैं कराह उठी। उनकी उंगलियाँ मेरी चूत के होंठों पर हल्के-हल्के फिर रही थीं। “तेरी चूत तो रस से लबालब है, बानो…” वो बोले और एक उंगली मेरी चूत में डाल दी। “आह्ह…” मेरी चीख निकल गई। वो धीरे-धीरे उंगली अंदर-बाहर करने लगे, और मैं टाँगें चौड़ी करके उनकी उंगलियों का मजा ले रही थी।

मौसा ने मुझे खाट पर लिटाया और मेरे ऊपर झुक गए। उनका अनोखा अंदाज फिर दिखा। वो मेरे पेट पर चूमते हुए नीचे गए और मेरी चूत के पास रुक गए। “मौसा… ये क्या…” मैंने शरमाते हुए कहा। वो हँसे, “चुप, आज तुझे जन्नत दिखाऊँगा।” उनकी जीभ मेरी चूत के होंठों पर लगी, और मैं जैसे सातवें आसमान पर पहुँच गई। “आह्ह… उह्ह… मौसा… हाय…” उनकी जीभ मेरी चूत के दाने को चाट रही थी, और मैं मस्ती में पागल हो रही थी। वो कभी मेरी चूत को चूसते, कभी जीभ अंदर डालते, और मैं सिसकारियाँ भर रही थी। “आह्ह… मौसा… और… और चाटो…” मेरी चूत रस छोड़ने लगी थी।

मेरा हाथ उनके लौड़े पर गया। मैंने उसे पकड़ा तो लगा जैसे गर्म लोहे का डंडा हो। मैंने उसे सहलाना शुरू किया। “आह्ह… बानो… और जोर से…” वो सिसकारे। मैंने उनके लौड़े को मुँह में लिया और उनकी टोपे को जीभ से चाटने लगी। उनका लौड़ा मेरे मुँह में और सख्त हो गया। “उह्ह… क्या चूसती है…” वो कराह रहे थे। मैं उनके लौड़े को गले तक ले रही थी, और वो मेरे बालों को सहला रहे थे।

“बानो… अब बर्दाश्त नहीं होता…” वो गुर्राए और मुझे खाट पर लिटा दिया। मैंने टाँगें चौड़ी कीं। मेरी चूत रस से लबालब थी। मौसा ने अपना लौड़ा मेरी चूत के मुँह पर रगड़ा। “आह्ह… मौसा… घुसा ना… और मत तड़पा…” मैंने सिसकारी भरी।

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“तैयार है ना?” वो बोले और उनका लौड़ा मेरी चूत में धीरे-धीरे घुसने लगा। “आह्ह… धीरे… बहुत मोटा है…” मैं चीख पड़ी। उनका लौड़ा मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर जा रहा था। “उह्ह… ये तो फाड़ देगा…” मैंने कराहा।

“चूत में मजा नहीं आया तो लौड़ा कैसा?” वो हँसे और एक जोरदार धक्का मारा। “आह्ह… मर गई…” मेरी चीख निकल गई। उनका लौड़ा पूरा मेरी चूत में समा गया था। दर्द ऐसा था जैसे चाकू घुस गया हो। लेकिन मौसा ने धीरे-धीरे मेरी चूचियों को मसलना शुरू किया, मेरे होंठों को चूमा। “उम्म… आह्ह…” मेरी सिसकारियाँ शुरू हो गईं।

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वो धीरे-धीरे धक्के मारने लगे। “चप… चप…” उनकी जाँघें मेरी जाँघों से टकरा रही थीं। मेरी चूत उनके लौड़े को गपागप ले रही थी। “आह्ह… मौसा… और जोर से…” मैं चिल्लाई। वो और तेज हो गए। “फच… फच…” चुदाई की आवाज कमरे में गूँज रही थी। मौसा ने मुझे घोड़ी बनाया। “अब तेरी चूत को और गहराई से चोदूँगा…” वो बोले और पीछे से धक्के मारने लगे। “आह्ह… हाय… और जोर से…” मैं सिसकार रही थी। उनकी उंगलियाँ मेरे चूतड़ों को थपथपाती थीं, और मैं मस्ती में डूब रही थी।

फिर मौसा ने मुझे पलटकर अपनी गोद में बिठाया। “चल, अब तू मेरे लौड़े पर उछल…” वो बोले। मैं उनके लौड़े पर बैठ गई, और धीरे-धीरे उछलने लगी। “आह्ह… उह्ह… मौसा… ये तो बहुत गहरे जा रहा है…” मैं कराह रही थी। वो मेरे चूतड़ों को पकड़कर मुझे ऊपर-नीचे कर रहे थे। “फच… फच…” चुदाई की आवाज गूँज रही थी। मेरी चूत का दाना उनके लौड़े से रगड़ खा रहा था, और मैं दूसरी दुनिया में थी। “आह्ह… मौसा… मर गई… और जोर से…” मैं चिल्ला रही थी।

मौसा ने फिर मुझे पलट दिया और मेरी गाण्ड पर अपना लौड़ा रगड़ा। “नहीं… मौसा… वहाँ बहुत दर्द होगा…” मैंने मिन्नत की। “चुप, अब तुझे पूरा मजा दूँगा…” वो बोले और अपने लौड़े को मेरी चूत के रस से चिकना करके मेरी गाण्ड में धीरे-धीरे घुसाने लगे। “आह्ह… मर गई…” मेरी चीख निकल गई। दर्द ऐसा था कि आँखों से आँसू निकल पड़े। लेकिन मौसा ने धीरे-धीरे धक्के मारे, और दर्द मस्ती में बदलने लगा। “फट… फट…” उनकी चुदाई की आवाज गूँज रही थी। “आह्ह… मौसा… और जोर से…” मैं कराह रही थी।

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कई मिनट तक वो मुझे चोदते रहे। मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया। “आह्ह… मौसा… मैं झड़ गई…” मैं चिल्लाई। मेरी चूत लहराकर रस निकालने लगी। लेकिन मौसा रुके नहीं। उन्होंने मुझे फिर से पलटा और मेरी टाँगें अपने कंधों पर रखीं। “अबकी बार तेरी चूत को और चोदूँगा…” वो बोले और तेज धक्के मारने लगे। “फच… फच…” मैं फिर से मस्ती में खो गई। “आह्ह… मौसा… मर गई… और जोर से…” मैं चिल्ला रही थी।

आखिरकार मौसा का लौड़ा फट पड़ा। “आह्ह… ले मेरा माल…” वो चिल्लाए और उनका गरम वीर्य मेरे पेट, चूचियों और चेहरे पर बरसने लगा। मैं हाँफ रही थी। मेरी गाण्ड और चूत में हल्का दर्द था, लेकिन मस्ती इतनी थी कि सब भूल गई।

“मौसा… मेरी गाण्ड से खून तो नहीं निकला?” मैंने डरते हुए पूछा।

“अरे बानो, कुछ नहीं हुआ… तू तो बस कमाल है!” वो हँसते हुए बोले।

“मौसा, तुम बहुत शरारती हो! मेरी तो जान निकाल दी!” मैंने शरमाते हुए कहा।

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“कल फिर आ जाना… देखना, और मजे लेंगी!” वो बोले।

“हाय, तुम तो बेशरम हो!” मैं मुस्कुराई, सिर झुकाकर नीचे अपने कमरे में भाग गई।

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