Shadishuda bhabhi chudai sex story – Survey wali ko ghodi banaya sex story: हैलो दोस्तों, शादीशुदा औरत को गैर मर्द के साथ कभी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि मर्द का दिमाग बस एक ही बात पर अटक जाता है कि इसकी चूत में लंड कैसे घुसेगा, कैसे इसे चोदकर इसका पूरा रस निकाला जाए। मेरे साथ भी ठीक वैसा ही हुआ था।
उस दिन मैं घर पर पूरी तरह अकेला था, बीवी मायके गई हुई थी, बच्चे स्कूल चले गए थे और मैंने कुछ जरूरी काम के लिए ऑफिस से छुट्टी ले रखी थी। करीब ग्यारह बजे डोरबेल बजी। दरवाज़ा खोला तो सामने एक गज़ब की सांवली-सुंदर औरत खड़ी थी, उम्र अट्ठाईस-उनतीस के आसपास, साड़ी में लिपटी हुई, हाथ में कागज़-कलम, कोयल-सी मीठी आवाज़ में बोली, “माफ़ कीजिएगा, बहनजी घर पर हैं?”
मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं जी, अभी तो सिर्फ़ मैं ही हूँ, आप बताइए।” उसका माथा पसीने से चमक रहा था, उसने शरमाते हुए पूछा, “जरा एक गिलास पानी मिलेगा?” मैंने उसे अंदर आने दिया, पानी का गिलास थमाया तो उसने बताया कि वो कंज्यूमर सर्वे कर रही है। मैंने सोफे की तरफ़ इशारा किया और कहा, “बैठिए ना, आराम से पूछिए।” वो सोफे पर बैठ गई, मैं उसके ठीक सामने।
बड़ी खिड़की से तेज़ हवा आ रही थी, दरवाज़ा बार-बार हिल रहा था, उसकी साड़ी का पल्लू हवा में उड़ रहा था, ब्लाउज़ इतना टाइट कि चुचियाँ एकदम उभरी हुईं दिख रही थीं। वो सवाल पर सवाल पूछती जा रही थी और मैं जवाब देते-देते उसकी सांवलापन, उसकी पतली कमर, उसके होंठ, सब कुछ निहार रहा था। लंड में खुजली-सी होने लगी थी।
फिर मेरी नज़र उसके माथे के सिंदूर पर पड़ी। मैंने पूछ ही लिया, “शादीशुदा होकर भी जॉब करती हो?” वो हल्की-सी मुस्कान के साथ बोली, “क्यों, शादीशुदा औरतें जॉब नहीं कर सकतीं?” मैंने कहा, “बात वो नहीं है, घर-घर जाना, कोई गलत आदमी मिल जाए तो?” वो शरारती अंदाज़ में बोली, “दिन में तो ज्यादातर बहनें ही मिलती हैं, कभी-कभी कोई शरीफ़ मर्द मिल जाए तो डर किस बात का।”
शरीफ़ सुनकर मेरे लंड ने ज़ोर का झटका मारा। वो उठने लगी तो मैंने रोका, “अरे नाम तो बता दो।” उसने कोयल-सी आवाज़ में कहा, “प्रतिमा… प्रतिमा श्रीवास्तव।” मैंने हिम्मत जुटाई, “प्रतिमा जी, तुम इतनी हसीन हो, अकेले घूमना खतरे का काम है।” वो शर्मा कर बोली, “हसीन और मैं?” मैंने कहा, “चाय पीकर जाना, मैं बनाता हूँ।” वो हँस दी, “ठीक है, बना दीजिए।”
मैंने हल्के से दरवाज़ा बंद किया, किचन में चाय बनाने लगा, पर मेरा लंड एकदम खड़ा हो चुका था। तभी वो पीछे से आई, “मदद करूँ?” उसकी खुशबू मेरे नाक में घुस रही थी। मैंने पलटकर कहा, “प्रतिमा, तुम सच में बहुत सुंदर हो, तुम्हारे पति बहुत लकी हैं।” वो बोली, “बार-बार मत कहिए, और मुझे प्रतिमा जी क्यों बुला रहे हो, मैं तुमसे छोटी हूँ।”
ये हिंट काफ़ी था। मैंने गैस बंद की, उसका हाथ पकड़ा और धीरे से कहा, “एक बार आँखें बंद करो।” वो शरमाते हुए बंद कर दीं। मैंने उसके कंधों से पकड़कर बेडरूम की तरफ़ ले गया, फिर उसके गुलाबी-नरम होंठों पर अपने होंठ रख दिए। आह्ह्ह… जैसे बिजली-सी कौंध गई पूरे बदन में, मेरा लंड पत्थर हो गया। वो चौंकी, आँखें खोलीं, फिर शरमाकर मेरी बाहों में समा गई।
मैंने उसे कसकर भींच लिया, उसकी चुचियाँ मेरे सीने से दब रही थीं, उसकी गर्म साँसें मेरे गले पर लग रही थीं। मैंने उसे गोद में उठाया, वो बिल्कुल हल्की थी, बेडरूम में ले जाकर बिस्तर पर लिटाया। वो आँखें बंद किए लेटी थी, साड़ी में शरमाती हुई, उसकी साँसें तेज़, चुचियाँ ऊपर-नीचे हो रही थीं। मैंने उसका पल्लू हटाया, दाहिनी चूची ऊपर से दबाई तो उसके मुँह से निकला, “आह्ह्ह विजय साहब… जल्दी करो, कोई आ ना जाए।”
मैंने कहा, “घबराओ मत डार्लिंग, आज तेरी चूत को जन्नत दिखाऊँगा।” मैं उसके ऊपर चढ़ गया, उसके होंठ चूसने लगा, चुचियों को खूब मसलने लगा। वो सिहर-सिहर कर रह गई थी, उसके मुँह से मीठी-मीठी आवाज़ें आने लगीं, “आह इह्ह ओह्ह्ह… विजय…” मैंने ब्लाउज़ के सारे बटन खोल दिए, ब्रा के हुक, फिर पीछे से हाथ डालकर दोनों गोल-गोल सख्त चुचियाँ पूरी तरह समेट लीं, निप्पल एकदम टाइट और गर्म। वो कराह रही थी, “आह्ह्ह ह्ह्ह विजय… और जोर से दबाओ ना…”
फिर मैंने साड़ी पूरी उतार दी, पेटीकोट का नाड़ा खींचा, अब सिर्फ़ गुलाबी पेंटी में वो पूरी नंगी लेटी थी। उसने शरम से चुचियाँ ढकने की कोशिश की, टाँगें क्रॉस कर लीं। मैंने अपने सारे कपड़े फेंके, लंड बाहर आते ही ऊपर की तरफ तनकर खड़ा हो गया। उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रखा तो वो बोली, “उफ़्फ़… कितना मोटा-लंबा है…” और खुद आगे-पीछे करने लगी।
मैंने पूछा, “कंडोम लगाऊँ?” वो हँस दी, “नहीं… सब ठीक है।” मैंने उसकी पेंटी उतारी। उसकी छोटी-सी साफ़-सुथरी चूत देखकर मैं पागल हो गया, हल्के-हल्के बाल, गुलाबी कट, एकदम फूली हुई और गीली। उंगली डाली तो मक्खन की तरह फिसल गई। वो चिल्लाई, “आअह्ह्ह विजय… अंदर तक जा रही है…” मैंने उसकी चूत चाटनी शुरू की, जीभ अंदर-बाहर, वो कमर उछाल रही थी, “ऊईईई माँ… आह्ह्ह्ह पूरी खाओ ना…”
फिर मैं बर्दाश्त न कर सका। बोला, “प्रतिमा अब चोदना पड़ेगा।” वो बेसरम हो चुकी थी, बोली, “हाँ चोद दो ना विजय साहब… अपनी प्रतिमा की चूत फाड़ दो।” मैंने लंड उसकी बुर पर रखा, वो खुद पकड़कर अंदर गाइड करने लगी। एक जोर का धक्का मारा तो आधा घुस गया, वो चीखी, “आह्ह्ह्ह्ह मार गई रे… धीरे…” पर उसकी कमर खुद ऊपर उठ रही थी।
फिर मैंने पूरा लंड एक झटके में अंदर ठोंक दिया। उसकी तंग चूत ने लंड को पूरी तरह जकड़ लिया, जैसे कोई गर्म-गर्म मखमली मुठ्ठी हो। मैंने धक्के शुरू किए, पहले धीरे-धीरे फिर तेज़-तेज़। वो चिल्ला रही थी, “आह ह ह ह ह्हीईईई विजय… और तेज़… और तेज़ चोदो ना…” उसकी चुचियाँ उछल रही थीं, मैं उन्हें मसलता रहा, होंठ चूसता रहा, कमरा थप-थप थप-थप की आवाज़ से गूँज रहा था।
मैंने उसे पलटा, घुटनों के बल किया, पीछे से लंड पेल दिया। उसकी गोल-गोल गांड हिल रही थी, मैंने गांड पर जोरदार चपतियाँ मारीं, वो बोली, “आह्ह्ह और मारो… और चोदो…” उसकी चूत से चिपचिपी आवाज़ें आ रही थीं। मैंने स्पीड और बढ़ाई और दस-पंद्रह मिनट की ज़ोरदार चुदाई के बाद उसके अंदर ही झड़ गया। वो भी मेरे साथ-साथ झड़ी, उसकी चूत ने मेरे लंड को दूध की तरह निचोड़ लिया।
हम दोनों पसीने से तर, एक-दूसरे से लिपटे लेटे रहे। उसकी चुचियाँ मेरे सीने से चिपकी हुई थीं, उसकी गर्म साँसें मेरे कंधे पर लग रही थीं। बीस मिनट बाद मेरा लंड फिर खड़ा हो गया। इस बार उसने खुद मेरे लंड को मुँह में लिया, ग्ग्ग्ग… ग्ग्ग्ग… गी-गी… गों-गों, पूरा गले तक उतार लिया। मैंने उसके बाल पकड़कर मुँह चोदा। फिर मैंने उसे ऊपर चढ़ाया, वो खुद उछल-उछलकर चुदवा रही थी, “आह्ह्ह ऊउइ… ऊईईई विजय मर गई रे…” उसकी चूत से फिर रस बहने लगा। हम दोनों एक साथ फिर झड़े।
कपड़े पहनते वक्त मैंने उसे पाँच सौ रुपये दिए, वो पहले शरमाई फिर मुस्कुराकर ले लिया। मैंने उसका नंबर लिया और कहा, “प्रतिमा, अब तो कई बार चोदूँगा तेरी इस छोटी-सी टेस्टी चूत को।” वो हँस दी, “होटल में मिलेंगे विजय… घर में भी जब मौका मिले।” उसके बाद जब भी मौका मिला, हम घर में या होटल में खूब चुदाई करते रहे, उसकी तंग बुर का रस बार-बार चखता रहा।