Jija sali sex story – ganne ke khet mein chudai: मेरा नाम मुकेश है, मैं भोपाल के पास एक गाँव में रहता हूँ, शादीशुदा हूँ और पूरा किसान हूँ, उम्र अभी तीस की हो चुकी है। रोज रात मैं अपनी बीबी को नंगा करके उसकी चूत में अपना दस इंच का लौड़ा पेलता हूँ, पर आज तुम लोगों को अपनी साली गुड़िया की चुदाई की पूरी दास्तान सुनाने जा रहा हूँ, वो कड़क सेक्सी माल जो देखते ही लंड खड़ा कर देती है।
पिछले महीने की बात है, मेरे खेतों में गन्ने की फसल पूरी पक चुकी थी, हर गन्ना छह-सात फुट का मोटा-तगड़ा खड़ा था, काटने का वक्त आ गया था। बीबी ने अपने भाई धर्मेश और छोटी बहन गुड़िया को घर बुला लिया ताकि सब मिलकर काम निपटाएँ। सुबह-सुबह पूरा परिवार खेत पर पहुँच जाता, बीबी, बाप, अम्मा, मेरे दो छोटे भाई मनीष और कनक, साला धर्मेश, साली गुड़िया और मैं खुद, सब हँसिया उठाकर गन्ना काटने लगते।
दोस्तों, मेरी साली गुड़िया इक्कीस साल की जवान पंजाबन जैसी मालकिन है, गोरा रंग, भरा हुआ चेहरा, चौंतीस इंच के तने हुए मम्मे, अट्ठाईस की कमर और बत्तीस की गोल-गोल गांड, फिगर ३४-२८-३२ का परफेक्ट देसी सामान। पिछले साल मैंने इसे घर पर ही पटाकर चोद डाला था, शुरू में नखरे दिखाती थी, पर अब आराम से चुदवा लेती है, कोई शिकायत नहीं। खेत में जब वो हँसिया चलाती तो उसके मोटे-मोटे दूध सलवार में उछलते, मेरी नजर बार-बार उसकी गांड पर अटक जाती, सर्दी में और भी ताज़ी-मोटी लग रही थी।
मेरे पास पचास बीघा खेत है, गन्ना काटने में पूरा महीना लग जाता, बाहर के मजदूर भी बुलाने पड़ते। दोपहर में बीबी टिफिन लेकर आती, खटियाएँ बिछाकर सब साथ बैठकर खाते, थोड़ी देर सुस्ताते। दस दिन में पंद्रह बीघा साफ हो गया, बोझे बाँध दिए। अचानक मौसम और ठंडा हो गया, साले धर्मेश को गाँव में कोई जरूरी काम पड़ गया, वो चार दिन के लिए चला गया।
अगले दिन खेत पर सिर्फ मैं, गुड़िया और मेरे भाई मनीष-कनक ही आए। खटिया-बिस्तर वैसे ही पड़े थे, मौका परफेक्ट था। काम शुरू हुआ, दोपहर दो बजे तक सब थक चुके थे। मैंने भाइयों से पूछा, “क्या तुम लोग सुस्ताना चाहते हो???”
दोनों चुप रहे, मेरा लिहाज करते थे।
“जाओ, घर जाकर खाना खा लो, आराम करो, पैसे आलू टिकिया खा लेना। लौटते वक्त मेरा और गुड़िया का खाना ले आना, चाची को मत भेजना, खुद आना।” मैंने बीस का नोट थमाया, वो हँसते हुए चले गए।
अब खेत में सिर्फ मैं और गुड़िया। बीबी की तबीयत खराब थी, खेत नहीं आ रही थी, बाप को बुखार, अम्मा भी बीमार। चारों तरफ ऊँचे गन्ने, कोई दिखाई नहीं देता। मैंने गुड़िया की कमर पकड़कर खींचा।
“क्या कर रहे हो जीजा जी???” वो सहमकर बोली।
“तुझे नहीं पता क्या? आज तेरी चूत लूँगा। इतने दिन हो गए तुझे आए, एक चुम्मा भी नहीं दिया।” मैंने शिकायत की।
पीछे से कमर कसकर पकड़ा, गालों पर किस करने लगा। वो पहले तो हिचकी, फिर मान गई, बिना नखरे किस लेने लगी। मैंने खड़े-खड़े घुमाया, सीने से चिपकाया। गुड़िया की बॉडी मजबूत थी, नीला सलवार सूट पहने, दुपट्टा हटाकर खटिया पर फेंका। बिना दुपट्टे उसके चौंतीस इंच के सख्त मम्मे सलवार में उभर आए।
मैंने दोनों हाथों से मम्मे दबाने शुरू किए, वो “ओह्ह माँ… ओह्ह माँ… उ उ उ उ उ… अअअअअ… आआआआ…” करने लगी। मेरा दिमाग घूम गया, लंड पैंट में खड़ा हो गया। सिर पकड़कर होंठ चूसने लगा, वो भी खुलकर मेरे होंठ चूसने लगी, जीभ अंदर डालकर लपलपाई। पंद्रह मिनट तक खड़े-खड़े रोमांस चलता रहा।
फिर हाथ नीचे ले जाकर सलवार का नाड़ा ढूँढा, खींचकर गिरा दिया। सफेद चड्डी पर हाथ रखा तो गर्मी महसूस हुई। “आह गुड़िया! तेरी चूत कितनी गर्म है रे! अंडा रखूँ तो उबल जाए।”
चड्डी पर से चूत रगड़ने लगा, वो “ओह्ह्ह… ओह्ह्ह… अह्हह्ह… अई… अई… अई… उ उ उ उ उ… आह जीजा जी आह आह…” चिल्लाने लगी। ठंड में उसकी गर्म चूत सुकून दे रही थी। दस मिनट तक चड्डी पर रगड़ा, फिर चड्डी नीचे सरकाई।
“गुड़िया पैर खोलो!”
उसने चिकने गोरे पैर फैलाए, चूत रसीली हो चुकी थी, रस चमक रहा था। मैंने मुँह लगाकर चाटना शुरू किया, जीभ से फाँक खोल-खोलकर अंदर तक चाटा। वो “आआआअह्हह्ह… ईईईईई… ओह्ह्ह्… अई… अई… अई… मम्मी…” तड़पने लगी। लाल होंठ चूसते, दाने को दाँत से खींचता। “जीजा जी! आराम से चाटो, दर्द होता है!”
पर मैं रुका नहीं, दो उँगलियाँ अंदर डालकर गोल-गोल घुमाई, वो थरथराने लगी, “अम्मा… अम्मा… सी सी सी सी… हा हा हा… ऊऊऊ… ऊँ… ऊँ… उनहूँ उनहूँ…”। तीन उँगलियाँ की, फिर पूरी मुट्ठी धीरे-धीरे अंदर की। उसकी चूत फैल गई, मैं बार-बार मुट्ठी डालता-निकालता, वो झड़ गई, पानी छोड़ दिया।
“चलो कपड़े उतार दो गुड़िया!”
वो उठी, कमीज उतारी, ब्रा खोली, पूरी नंगी। मैंने भी शर्ट-पैंट उतारकर नंगा हो गया, खटिया पर लेटकर उसे बाहों में भरा। होंठ चूसते, मम्मे मसलते, निप्पल दाँत से खींचते। वो नाक से गर्म साँसें छोड़ती, “उई… उई… उई… माँ… ओह्ह्ह माँ… अहह्ह्ह…”।
बीस मिनट तक मम्मे चूसे, पेट चूमा, फिर लंड उसकी चूत पर रगड़ा। दस इंच का मोटा लौड़ा अंदर घुसाने में थोड़ी मशक्कत लगी, पर घुस गया। धक्के शुरू किए, “पट-पट-पट” की आवाज़ें आने लगी। वो कमर पकड़कर खींचती, “हूँउउउ… हूँउउउ… हूँउउउ… ऊँ… ऊँ… ऊँ… फाड़ो जीजा! आज फाड़ दो मेरी चुद्दी को… सी सी सी सी… हा हा हा… ओ हो हो…”।
मैंने लंबे-गहरे धक्के मारे, पैर कंधे पर रखवाए, पैर चूमते हुए पेलता रहा। चट-चट-चट की आवाज़ पूरे खेत में गूँज रही थी। दस मिनट बाद लंड निकाला, सुपारा लाल चमक रहा था।
“चल रंडी! चूस इसे!”
“जीजा नहीं! लंड मत चुसवाओ प्लीज!”
“रंडी! तुझे भी चुसवाऊँगा और तेरी माँ के मुँह में भी डाल दूँगा। नाटक मत कर!” गला पकड़कर मुँह में ठूँसा। वो मजबूरन चूसने लगी, सिर ऊपर-नीचे करके, लार टपकाती। “बेटा! जल्दी-जल्दी फेट!” वो तेज़ी से फेटती-चूसती रही, मुझे स्वर्ग सा लग रहा था।
फिर बोला, “गुड़िया! आज मेरे लंड की सवारी कर ले।”
वो ऊपर चढ़ी, लंड चूत में लिया, उछलने लगी। “उ उ उ उ उ… अअअअअ… आआआआ… सी सी सी सी… ऊँ… ऊँ… ऊँ…”। दस मिनट उछली, थक गई। मैंने कमर पकड़कर नीचे से धक्के मारे, मम्मे मसलते, निप्पल मरोड़े। वो झुककर लेट गई, मैंने चूतड़ दबाकर कस-कसकर पेला।
गुड़िया की खासियत थी कि वो चुदाई में अपनी गांड खुद पीछे धकेलती, हर धक्के पर “हूँ… हूँ… हूँ…” की छोटी सिसकियाँ लेती, जो मुझे और जोश देती। मैंने उसे घोड़ी बनाया, पीछे से गांड पर थप्पड़ मारते हुए लंड अंदर-बाहर किया, फिर वापस लिटाकर पैर फैलवाए, मिशनरी में गहरे धक्के मारे। आखिर चूत में ही झड़ गया, गर्म वीर्य भर दिया।
पसीना छूटा, सर्दी में उसका गर्म जिस्म सुकून दे रहा था। लंड अभी भी अंदर, उसे सीने पर लिटाए रखा। थोड़ी देर बाद लंड फिर खड़ा हुआ, इस बार गांड मारने की बारी थी। गुड़िया ने खुद घोड़ी बनकर गांड ऊँची की, मैंने थूक लगाकर धीरे-धीरे गांड में घुसाया, वो “आआआह… जीजा धीरे… फट जाएगी…” कहती रही, पर मैंने पूरा दस इंच अंदर ठूँसा। गांड की टाइटनेस में पंद्रह मिनट तक ठोका, फिर गांड में ही झड़ गया।
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