सासु माँ ने सौंपा साले की बीवी को माँ बनाने का जिम्मा

दोस्तों, मेरा नाम राकेश है। मैं 32 साल का हूँ, मुंबई में सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करता हूँ। मेरी शादी को सात साल हो चुके हैं, और मेरे दो बच्चे हैं। हम लोग लखनऊ के रहने वाले हैं, लेकिन मेरा ससुराल इलाहाबाद में है। मेरी बीवी की एक छोटी बहन थी, जो अब इस दुनिया में नहीं है। उसका इकलौता भाई, मेरा साला, जिसका नाम संजय है, पोलियो से ग्रस्त है। शादी को चार साल हो गए, लेकिन उसकी बीवी ज्योति अभी तक माँ नहीं बन पाई। शायद संजय की यही कमजोरी है कि वो ज्योति को वो सुख नहीं दे पाता, जिसकी वजह से उनके घर में बच्चे की किलकारी नहीं गूँजी। संजय अपनी माँ का इकलौता बेटा है, और मेरी बीवी उनकी इकलौती बहन। ससुर जी का देहांत हो चुका है, तो घर में सिर्फ सासु माँ, संजय और ज्योति रहते हैं।

ज्योति का मायका भी कोई खास नहीं। वो सौतेली माँ के साथ पली-बढ़ी, जहाँ उसे कभी प्यार नहीं मिला। शायद यही वजह थी कि वो चुपचाप अपनी शादीशुदा जिंदगी में सब कुछ सह रही थी। लेकिन इंसान की मजबूरी उसे कुछ भी करने पर मजबूर कर देती है। ज्योति के मन में एक ही ख्वाहिश थी—किसी तरह माँ बन जाए, ताकि उसकी जिंदगी को एक मकसद मिले। संजय भी यही चाहता था। उसे डर था कि अगर ज्योति उसे छोड़कर चली गई, तो उसका क्या होगा। बड़ी मुश्किल से उसकी शादी हुई थी, और वो अपनी शादी को बचाना चाहता था। इसके लिए वो किसी भी हद तक जाने को तैयार था—यहाँ तक कि अपनी बीवी को मेरे हवाले करने को भी।

जब बात खानदान की आई, सासु माँ का दिमाग सबसे तेज चला। वो ऐसी औरत हैं, जिन्हें हर मुश्किल का हल निकालना आता है। उन्हें पता था कि संजय अपनी बीवी को संतान का सुख नहीं दे सकता। फिर एक दिन उनका फोन आया। मैं उस वक्त मुंबई में था, अपने ऑफिस के काम में उलझा हुआ। सासु माँ ने कहा, “बेटा, तुमसे एक जरूरी काम है। दस दिन के लिए इलाहाबाद आ जाओ।” मेरी बीवी ने भी हामी भरी। बोली, “जाओ, मम्मी को कोई परेशानी होगी। तुम देख लो। मैं यहाँ बच्चों को संभाल लूँगी। वैसे भी तुम तो घर से ही काम कर रहे हो।” मैंने ज्यादा सोचा नहीं और अगले दिन इलाहाबाद के लिए ट्रेन पकड़ ली।

जब मैं ससुराल पहुँचा, तो संजय घर पर नहीं था। वो अपने किसी दोस्त के पास दिल्ली चला गया था। उसे सब पता था—क्या होने वाला है। घर में सिर्फ सासु माँ और ज्योति थीं। मैं दोपहर तीन बजे पहुँचा। शाम को खाना खाने के बाद, रात आठ बजे सासु माँ ने मुझे बुलाया और खुलकर सारी बात रख दी। बोलीं, “राकेश, तुम्हें तो पता है, संजय ज्योति को माँ नहीं बना सकता। अगर ज्योति के गोद न भरी, तो हमारा खानदान आगे नहीं बढ़ेगा। संजय कमजोर है, लेकिन तुम तो मर्द हो। तुम हमारी मदद करो। ज्योति तैयार है, और संजय ने भी हामी भरी है।”

सुनकर मुझे थोड़ा अजीब लगा। एक तरफ तो ये बात गले नहीं उतर रही थी कि सासु माँ खुद अपनी बहू को मेरे सामने पेश कर रही हैं। लेकिन दूसरी तरफ, एक मर्द के लिए इससे बड़ी बात क्या हो सकती थी? एक खूबसूरत औरत, जो खुद चुदवाने को तैयार है, उसका पति और सास भी राजी हैं। मैंने सासु माँ से पूछा, “माँ जी, बाद में कोई दिक्कत तो नहीं होगी?” वो बोलीं, “नहीं बेटा, कोई दिक्कत नहीं होगी। बस तुम ज्योति को माँ बना दो। संजय को बाप का सुख दे दो। दुनिया को क्या पता कौन बाप है?”

तभी ज्योति कमरे में आई। सासु माँ ने उसके सामने ही कहा, “ज्योति को कोई ऐतराज नहीं। मैंने उससे बात कर ली है।” मैंने भी ज्योति की तरफ देखा और पूछा, “ज्योति, तुम्हें सचमुच कोई दिक्कत नहीं?” उसने नजरें झुकाकर कहा, “नहीं, मुझे कोई दिक्कत नहीं। न मेरे पति को, न सासु माँ को।” सासु माँ ने तुरंत बात आगे बढ़ाई, “राकेश, मैं आज रात दस बजे की ट्रेन से अपनी बहन के पास जा रही हूँ। संजय भी दस दिन बाद आएगा। तुम और ज्योति यहाँ दस दिन साथ रहो। मैं भी दस दिन बाद लौटूँगी।”

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ये सुनकर मुझे हैरानी हुई कि मेरी बीवी को भी ये सब पता था। मतलब, सब कुछ सेट था। सासु माँ का बैग तैयार था। वो ऑटो में बैठीं और स्टेशन चली गईं। रास्ता अब साफ था। ज्योति ने कहा, “आप आराम कर लीजिए, मैं भी आती हूँ।” मैं बेडरूम में चला गया। टीवी ऑन करके चैनल बदलने लगा, लेकिन दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी—कैसा नसीब है मेरा! एक खूबसूरत औरत मेरे सामने सौंप दी गई है, और सबकी रजामंदी है।

करीब आधे घंटे बाद ज्योति कमरे में आई। उसने दरवाजा बंद किया और मेरे सामने खड़ी हो गई। ज्योति को देखकर दिल धक-धक करने लगा। वो पतली-दुबली थी, लेकिन उसकी खूबसूरती कमाल की थी। गोरा रंग, लंबा चेहरा, हमेशा हल्की मुस्कान, बड़ी-बड़ी गोल चूचियाँ, गुलाबी होंठ, लंबी गर्दन, और काले घने बाल। उसकी गांड का उभार ऐसा कि कोई भी मर्द पागल हो जाए। वो साड़ी में थी, और उसकी कमर का एक हिस्सा दिख रहा था। मैंने उससे पहला सवाल पूछा, “ज्योति, क्या संजय ने तुम्हें कभी खुश किया? मतलब, तुमने कभी सेक्स किया?”

उसने नजरें झुकाकर कहा, “नहीं। मैं आज तक नहीं जानती कि सेक्स क्या होता है। संजय ने बस मेरी चूचियों को चूसा है। मेरे निप्पल बड़े-बड़े हो गए, दांतों के निशान पड़ गए। लेकिन मेरी चूत या गांड को उसने कभी छुआ तक नहीं।” ये सुनकर मैं हैरान रह गया। एक औरत, जो चार साल से शादीशुदा है, उसे सेक्स का सुख ही नहीं मिला! शायद उसका मायका गरीब था, और सौतेली माँ ने उसे कभी प्यार नहीं दिया, इसीलिए वो चुपचाप सब सह रही थी। मैंने मन में सासु माँ को धन्यवाद दिया, जिन्होंने अपनी बहू की इस कमी को समझा।

तभी ज्योति की आँखों में आँसू आ गए। मैं बेड से उठा और उसे गले लगा लिया। मैंने कहा, “ज्योति, आज के बाद तुम्हें कोई कमी नहीं होगी। जो सुख तुम्हें अपने पति से नहीं मिला, वो मैं तुम्हें दूँगा। तुम यहाँ की मालकिन हो। मेरे ससुर की सारी जायदाद तुम्हारे नाम है। बस एक बच्चा हो जाए, तो तुम्हारी जिंदगी और सेट हो जाएगी।” मेरी बात सुनकर वो थोड़ी शांत हुई, लेकिन उसकी आँखें अभी भी नम थीं। मैंने उसे अपनी बाँहों में कस लिया। उसके गाल पर एक हल्का सा चुम्बन दिया। उसने नजरें झुका लीं, जैसे कह रही हो—मैं तुम्हारी हूँ।

वो साड़ी में थी, और उसकी खूबसूरती देखकर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उसकी साड़ी का पल्लू खींच दिया। वो अब ब्लाउज और पेटीकोट में थी। उसकी चूचियाँ ब्लाउज में कैद थीं, और कमर का उभार ऐसा कि मेरा लंड तन गया। मैंने उसे गोद में उठा लिया और बेड पर पटक दिया। उसके ब्लाउज के हुक खोलने लगा, लेकिन जल्दबाजी में उंगलियाँ काँप रही थीं। मैंने उसे उल्टा किया, ताकि ब्रा का हुक खोल सकूँ। लेकिन मेरी उंगलियाँ लड़खड़ा रही थीं। ज्योति ने खुद ही ब्रा का हुक खोला और अपनी चूचियों को आजाद कर दिया। जैसा उसने कहा था, वैसा ही था—उसकी चूचियों पर दांतों के निशान थे, निप्पल बड़े और सख्त हो चुके थे। ऐसा लग रहा था जैसे संजय ने सारी मर्दानगी इन्हीं पर उतार दी हो।

मैंने उसका पेटीकोट खींचकर उतार दिया। उसने नीचे लाल रंग की पैंटी पहनी थी। मैंने पैंटी भी खींच दी। उसकी चूत पर हल्के-हल्के बाल थे। मैंने उसकी टाँगें फैलाईं, और देखा—उसकी चूत की सील अभी तक नहीं टूटी थी। मेरा लंड अब बेकाबू हो रहा था। मैंने उसे बेड पर लिटाया और उसकी चूत को देखकर पागल हो गया। उसकी चूत गुलाब की पंखुड़ियों जैसी थी, हल्की गीली, जैसे किसी मर्द के स्पर्श की बेकरारी हो। मैंने उसकी टाँगें और चौड़ी कीं और अपनी जीभ उसकी चूत पर रख दी। जैसे ही मेरी जीभ ने उसकी चूत को छुआ, ज्योति के मुँह से एक मादक सिसकारी निकली— “आह्ह… ये क्या…!”

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मैंने उसकी चूत को चाटना शुरू किया। मेरी जीभ उसकी चूत की पंखुड़ियों को सहलाने लगी, और वो सिसकारियाँ लेने लगी। उसका शरीर काँप रहा था, जैसे उसे पहली बार इतना सुख मिल रहा हो। मैंने उसकी चूत के दाने को जीभ से चूसा, और वो जोर से चीख पड़ी, “आह्ह… राकेश… ये क्या कर रहे हो…!” मैंने उसकी चूत को और गहराई से चाटा, मेरा मुँह उसकी चूत के रस से गीला हो गया। वो अपने हाथों से मेरे सिर को अपनी चूत में दबाने लगी। मैंने अपनी जीभ को उसकी चूत के अंदर तक डाला, और वो पागल हो गई। उसकी सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गईं— “आह्ह… और… और करो… मैं मर जाऊँगी…!”

करीब दस मिनट तक मैंने उसकी चूत को चाटा। उसका शरीर अकड़ने लगा, और अचानक वो जोर से झड़ गई। उसकी चूत से गर्म रस निकला, और मैंने उसे पूरा चाट लिया। ज्योति हाँफ रही थी, उसकी आँखें बंद थीं, और चेहरा सुकून से चमक रहा था। मैंने अपने कपड़े उतारे। मेरा लंड अब पूरी तरह तन चुका था—मोटा, सख्त, और तैयार। मैंने ज्योति की टाँगें फिर से फैलाईं और अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ने लगा। वो फिर से सिसकारने लगी, “राकेश… डाल दो… अब और मत तड़पाओ…”

मैंने उसकी चूत पर लंड का सुपारा रखा और हल्का सा धक्का मारा। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि लंड बस आधा इंच ही घुस पाया। ज्योति के मुँह से चीख निकली, “आह्ह… दर्द हो रहा है…!” मैं रुक गया। मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रखे और उसे चूमने लगा। मेरी जीभ उसके मुँह में थी, और वो मेरा साथ देने लगी। मैंने धीरे से फिर धक्का मारा। इस बार मेरा लंड थोड़ा और अंदर गया। ज्योति की आँखों में आँसू थे, लेकिन वो बोली, “रुकना मत… करो… मैं बरदाश्त कर लूँगी…”

मैंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। उसकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड हर धक्के में उसकी दीवारों को रगड़ रहा था। ज्योति दर्द से कराह रही थी, लेकिन उसकी सिसकारियों में अब मजे की आवाज भी मिल रही थी। मैंने उसकी चूचियों को अपने हाथों में लिया और उन्हें मसलने लगा। उसके निप्पल सख्त थे, और मैंने उन्हें अपनी उंगलियों से दबाया। ज्योति की सिसकारियाँ अब और तेज हो गईं, “आह्ह… राकेश… और जोर से…!”

मैंने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी। मेरा लंड अब उसकी चूत में जड़ तक घुस रहा था। हर धक्के के साथ उसकी चूत और गीली होती जा रही थी। मैंने उसकी एक टाँग उठाई और अपने कंधे पर रख ली, ताकि मेरा लंड और गहराई तक जाए। ज्योति अब पूरी तरह मेरे साथ थी। वो अपनी गांड उठा-उठाकर मेरा साथ दे रही थी। उसकी चूत मेरे लंड को जकड़ रही थी, जैसे वो उसे कभी छोड़ना न चाहती हो। मैंने उसकी चूचियों को मुँह में लिया और उन्हें चूसने लगा। उसके निप्पल मेरे दांतों के बीच थे, और मैंने उन्हें हल्के से काटा। ज्योति चीख पड़ी, “आह्ह… मर गई… और करो…!”

मैंने उसे घोड़ी बनाया। उसकी गांड मेरे सामने थी, गोल और मुलायम। मैंने उसकी गांड पर हल्का सा थप्पड़ मारा, और वो सिसकारी, “उफ्फ… राकेश… तुम तो पागल कर दोगे…” मैंने उसकी चूत में फिर से लंड डाला और पीछे से धक्के मारने लगा। हर धक्के के साथ उसकी गांड मेरे लंड से टकरा रही थी, और कमरे में “थप-थप” की आवाज गूँज रही थी। मैंने उसके बाल पकड़े और उसे और जोर से चोदा। ज्योति अब चिल्ला रही थी, “आह्ह… चोद दो… मेरी चूत फाड़ दो…!”

मैंने उसे फिर से सीधा लिटाया और उसकी टाँगें हवा में उठा दीं। मैंने उसकी चूत में लंड डाला और पूरी ताकत से धक्के मारने लगा। उसकी चूत अब इतनी गीली थी कि मेरा लंड आसानी से अंदर-बाहर हो रहा था। मैंने उसकी चूचियों को फिर से चूसा, और वो मेरे सिर को अपनी छाती में दबाने लगी। हम दोनों पसीने से तर-बतर थे, लेकिन रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। ज्योति बार-बार झड़ रही थी, और उसकी चूत मेरे लंड को और जकड़ रही थी। मैंने उससे पूछा, “ज्योति, मेरा होने वाला है… कहाँ निकालूँ?” वो बोली, “अंदर ही… मुझे माँ बनाओ…!”

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मैंने अपनी रफ्तार और बढ़ा दी। मेरा लंड उसकी चूत में जड़ तक जा रहा था। अचानक मेरा शरीर अकड़ गया, और मैं उसकी चूत में झड़ गया। मेरा गर्म वीर्य उसकी चूत को भर रहा था, और ज्योति भी उसी वक्त फिर से झड़ गई। हम दोनों हाँफते हुए एक-दूसरे के ऊपर गिर पड़े। मैंने उसे अपनी बाँहों में लिया, और वो मेरी छाती पर सिर रखकर लेट गई। उसकी साँसें अभी भी तेज थीं, लेकिन चेहरे पर सुकून था।

थोड़ी देर बाद, ज्योति फिर से गर्म हो गई। उसने मेरे लंड को अपने हाथ में लिया और उसे सहलाने लगी। मेरा लंड फिर से तन गया। इस बार उसने मुझे बेड पर लिटाया और मेरे ऊपर चढ़ गई। उसने मेरे लंड को अपनी चूत पर सेट किया और धीरे-धीरे उसे अंदर लिया। वो ऊपर-नीचे होने लगी, और उसकी चूचियाँ मेरे सामने उछल रही थीं। मैंने उसकी चूचियों को पकड़ा और उन्हें मसलने लगा। ज्योति की सिसकारियाँ फिर से कमरे में गूँज रही थीं, “आह्ह… राकेश… कितना मजा… और जोर से…!”

उसने अपनी रफ्तार बढ़ा दी। उसकी चूत मेरे लंड को चूस रही थी। मैंने उसकी गांड को पकड़ा और उसे और जोर से उछाला। वो चिल्ला रही थी, “आह्ह… फाड़ दो… मेरी चूत तुम्हारी है…!” करीब बीस मिनट तक वो मेरे ऊपर चुदवाती रही। फिर मैंने उसे फिर से नीचे लिटाया और उसकी चूत में लंड डालकर तेज-तेज धक्के मारने लगा। इस बार मैंने उसकी गांड में उंगली डाली, और वो पागल हो गई। उसकी चूत फिर से झड़ गई, और मैं भी उसके अंदर ही झड़ गया।

पूरी रात हमने अलग-अलग तरीकों से चुदाई की। कभी मैंने उसे दीवार के सहारे चोदा, कभी उसने मेरा लंड चूसा। उसकी चूत और गांड को मैंने पूरी तरह तृप्त कर दिया। सुबह चार बजे तक हमने चार-पाँच बार चुदाई की। ज्योति की आँखों में अब वो उदासी नहीं थी। वो मेरे सीने पर सिर रखकर सो गई, और मैं भी थककर सो गया।

सुबह आठ बजे सासु माँ का फोन आया। मैं अभी सोया ही था। वो बोलीं, “क्या बात है, दामाद जी? सारी रात जागे रहे?” मैंने हँसकर कहा, “माँ जी, आपने ही तो बुलाया था। अब रात को सोऊँ तो कैसे?” वो हँसीं और बोलीं, “नहीं-नहीं, सोना मत। तुम्हारे पास दस दिन हैं। ज्योति को माँ बना दो। संजय को बाप बना दो।” मैंने कहा, “चिंता मत करो, माँ जी। ज्योति खुश है। आप दादी बनने को तैयार रहो। आप एक बच्चे की बात कर रही हैं, मैं तो चाहता हूँ कि एक दर्जन पैदा करूँ।” सासु माँ हँस पड़ीं, “ठीक है, बेटा। जितने बन सकें, उतने बना दो।”

अगले दस दिन मैंने ज्योति को दिन-रात चोदा। कभी बेडरूम में, कभी बाथरूम में, कभी रसोई में। उसकी चूत अब मेरे लंड की आदी हो गई थी। वो हर बार नई-नई पोजीशन में चुदवाती थी। ग्यारहवें दिन मैं मुंबई लौट गया। उसी दिन सासु माँ और संजय भी इलाहाबाद पहुँच गए।

आपको यकीन नहीं होगा, लेकिन ज्योति प्रेगनेंट हो गई। संजय बाप बन गया। अब मैं फिर से इलाहाबाद जाने वाला हूँ, ताकि संजय एक बार फिर बाप बने। मेरे लिए ये सिर्फ एक काम नहीं था, बल्कि एक ऐसी रात थी, जो मैं जिंदगी भर नहीं भूल सकता। ज्योति की वो सिसकारियाँ, वो गर्म चूत, वो प्यार—सब कुछ मेरे दिल में बस्ता है।

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