दोस्तो, आप सब कैसे हो? मेरा नाम आशा पाटीदार है, उम्र 23 साल, और मैं झालावाड़, राजस्थान की रहने वाली हूँ। अभी मैं उदयपुर में बीएएमएस की पढ़ाई कर रही हूँ और पढ़ने में काफ़ी अच्छी हूँ। हॉस्टल में मेरी रूममेट और बेस्ट फ्रेंड दीया है, जिसके साथ मेरी गहरी दोस्ती है। मैं दिखने में काफ़ी सुंदर हूँ, मेरा फिगर 32-26-34 का है, जिसकी वजह से कॉलेज के लड़के मेरे पीछे पड़े रहते हैं। मगर मैंने किसी को भाव नहीं दिया। अभी तक मैं वर्जिन थी, किसी लड़के को अपनी चूत तक नहीं पहुँचने दिया। हाँ, ऊपरी मज़े जैसे किस, चूमा-चाटी, और स्कूल में अपने टीचर के साथ कुछ हल्का-फुल्का मज़ा मैंने लिया था।
अब मैं अपनी कहानी पर आती हूँ, जो एक साल पहले की है। उस वक्त मैं बीएएमएस के दूसरे साल में थी। दीया मेरी सबसे पक्की सहेली थी, उसका एक बॉयफ्रेंड भी था, जिसके साथ वो काफ़ी मज़े करती थी। एक बार दीया की तबीयत बहुत ख़राब हो गई, वो अकेले कहीं जा नहीं सकती थी। उसे अपने गाँव जाना था। दीया की माँ ने मुझसे बात की और कहा कि मैं दीया को गाँव ले जाऊँ। दीया मेरी बेस्ट फ्रेंड थी, और उसकी माँ की बात को मैं मना नहीं कर सकती थी। इंसानियत के नाते भी मेरा फ़र्ज़ था कि मैं उसकी मदद करूँ।
मैं दीया को लेकर उसके गाँव पहुँची। वहाँ उसकी माँ ने मेरा बहुत स्वागत किया और मुझसे कुछ दिन उनके साथ रुकने को कहा। उनकी विनती को मैं टाल नहीं पाई और रुकने का फैसला कर लिया। उनके घर में दीया की माँ, उसके दादाजी, और उसका बड़ा भाई विजय थे। दीया के पापा कुछ दिनों के लिए काम से बाहर गए थे। गाँव का माहौल बहुत हरा-भरा था, खेतों से घिरा हुआ, प्रकृति के इतने करीब कि मन को सुकून मिलता था।
गर्मियों का मौसम था, और रातें काफ़ी गर्म थीं। दीया का भाई विजय और दादाजी छत पर सोते थे, जबकि हम नीचे कूलर के पास। मगर मुझे खुले आसमान के नीचे सोने का मन था। मैंने दीया से कहा कि मैं छत पर सोना चाहती हूँ। उसने कहा, “जो मन करे, कर लो।” उस रात मैं छत पर सोने चली गई। विजय को मैंने शुरू से ही नोटिस किया था। वो 23-24 साल का था, तगड़ा शरीर, ठीक-ठाक दिखने वाला। उसकी नज़रें अक्सर मुझ पर टिकी रहती थीं, कई बार घूरता था, लेकिन मैं उसे इग्नोर करती थी।
रात को छत पर मैं एक तरफ़ लेटी थी, बीच में दादाजी, और दूसरी तरफ़ विजय। आधी रात को मुझे अहसास हुआ कि कोई मुझे छू रहा है। मेरी नींद खुल गई, मगर मैंने आँखें बंद रखीं और सोने का नाटक किया। मैं जानना चाहती थी कि ये हरकत कौन कर रहा है। फिर मैंने महसूस किया कि एक हाथ मेरे बूब्स पर है और दूसरा मेरी कमर पर। ये दादाजी के हाथ थे। मेरे दिमाग़ में गुस्सा उबलने लगा। इतनी उम्र में भी वो ऐसी हरकत कर रहे थे? दादाजी 55-60 साल के थे, मगर उनके हाथों में वो हवस थी जो मुझे हैरान कर रही थी।
पहले तो मुझे बहुत बुरा लगा, लेकिन धीरे-धीरे उनके स्पर्श से मेरे बदन में एक अजीब-सी गर्मी उठने लगी। गाँव का माहौल, खुली हवा, और वो रात का सन्नाटा—सब कुछ मेरे मन को भटका रहा था। मैंने सोचा, गाँव का सेक्स कैसा होता होगा? मगर मैं रिस्क नहीं लेना चाहती थी। मैंने आँखें खोल दीं और उनका हाथ हटाने की कोशिश की। लेकिन दादाजी तो जैसे हवस के पक्के पुजारी थे। उन्होंने मेरे बूब्स को और ज़ोर से दबाया, सहलाने लगे। जब उनका मन नहीं भरा, तो वो मेरे ऊपर चढ़ गए।
उन्होंने मेरे दोनों हाथ पकड़कर मेरे सिर के पीछे बाँध दिए। फिर एक हाथ से मेरी कुर्ती ऊपर की और मेरी नाभि को चूसने लगे। उनकी गर्म जीभ मेरी नाभि में साँप की तरह लहरा रही थी। मेरे बदन में आग लग गई। उनकी कोहनी मेरे बूब्स को दबा रही थी, और मैं पागल-सी होने लगी। अब मेरा मन भी मर्द के स्पर्श का मज़ा लेने को तड़पने लगा। मैंने एक हाथ छुड़ाकर उनकी पीठ पर सहलाते हुए उन्हें कसकर पकड़ लिया।
इससे दादाजी को मेरी रज़ामंदी का इशारा मिल गया। उन्होंने मेरा दूसरा हाथ भी छोड़ दिया। मैंने उन्हें अपनी बाँहों में जकड़ लिया, और वो मेरे होंठों को चूसने लगे। मैंने भी उनका साथ देना शुरू कर दिया। वो ज़ोर-ज़ोर से मुझे किस करने लगे, मेरे गालों, गर्दन को चूमने लगे। ऐसा लग रहा था जैसे सालों से उन्हें औरत का बदन नहीं मिला हो। थोड़ी देर बाद उन्होंने मेरी कुर्ती उतार दी, फिर अपना कुर्ता भी। मेरी ब्रा के ऊपर से मेरे बूब्स को मसलने लगे। उनकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं।
फिर उन्होंने मुझे पलटकर मेरी ब्रा खोल दी और मेरे नंगे बूब्स को अपने मुँह में ले लिया। मेरे निप्पल्स को वो बच्चे की तरह चूस रहे थे, जैसे दूध निकालना चाहते हों। उनकी गर्म जीभ से मेरे निप्पल्स कड़े हो गए। वो मेरे बूब्स को ज़ोर-ज़ोर से चूसते, सहलाते, और मैं मस्ती में डूबती चली गई। अब मेरा मन लंड का स्पर्श चाह रहा था। मैं चाहती थी कि दादाजी मेरा हाथ उनके लंड पर रखें।
मैं उनके सिर को अपनी छाती में दबा रही थी, और वो पागलों की तरह मेरे बूब्स चूस रहे थे। मेरी सिसकारियाँ इतनी तेज़ हो गईं कि मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि पास में विजय भी सो रहा है। मेरी आवाज़ों से विजय की नींद खुल गई। जब मैंने उसकी तरफ़ देखा, तो वो अपने पजामे के ऊपर से अपने लंड को सहला रहा था। उसका मोटा लंड पजामे में साफ़ दिख रहा था। उससे रहा नहीं गया, और उसने भी मेरे ऊपर हमला बोल दिया।
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विजय ने दादाजी का हाथ मेरे बूब्स से हटाया और ख़ुद दबाने लगा। दादाजी मेरी दूसरी चूची चूस रहे थे। थोड़ी देर बाद विजय नीचे गया और मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया। उसने मेरी सलवार को मेरे चूतड़ों से खींचकर नीचे किया और मेरी टाँगों से निकाल फेंका। अब मैं सिर्फ़ पैंटी में थी। विजय ने मेरी पैंटी के ऊपर से मेरी चूत पर हाथ रखा। उसका सख्त हाथ मेरी चूत पर लगा, तो मैंने दादाजी को चूमना शुरू कर दिया। मैं उनके होंठों को चूसने लगी, और नीचे विजय मेरी चूत को सहलाता रहा।
फिर विजय ने मेरी पैंटी को खींचकर फाड़ दिया। पैंटी फेंककर उसने अपने होंठ मेरी चूत पर रख दिए। वो मेरी चूत को चूमने, चाटने लगा। मैं पागल-सी हो गई। मेरी सिसकारियाँ और तेज़ हो गईं, और मैं दादाजी को नोचने लगी। मेरी आवाज़ें रोकने के लिए दादाजी बोले, “आराम से साली, कोई सुन लेगा।”
तभी विजय बोला, “दादाजी, ये तो साली सील-पैक चूत है। बड़ी टाइट है इसकी।” दादाजी ने कहा, “अच्छा? फिर तो मज़ा आएगा। आज सालों बाद कुंवारी चूत चोदूंगा।”
ये सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैं दो मर्दों के बीच फँस गई थी। मगर चुदाई का रोमांच मेरे बदन में बिजली-सी दौड़ रहा था। मैं जानना चाहती थी कि लंड जब चूत में जाता है। दादाजी बोले, “आज इसे चोद-चोदकर रंडी बना देंगे।”
मैं भी लंड के लिए तड़प रही थी। जोश में मैंने कहा, “हाँ, दादाजी, मुझे चोद दो. मैं आपकी रंडी हूँ।”
विजय बोला, “देखा दादाजी, साली कितनी तड़प रही है लंड के लिए? इसे पीछे बाड़े में ले चलते हैं। आपके दोस्तों को भी बुला लो। इसकी चूत बड़ी प्यासी है। चार-पाँच लौड़ों से चुदेगी, तब जाकर शांत होगी।”
दादाजी ने कहा, “हाँ, बेटा, तू ठीक कहता है। मेरे दोस्त भी सालों से चूत के लिए तड़प रहे हैं। वो इसकी चूत पाकर खुश हो जाएँगे।”
मैं भी बोली, “जिसे बुलाना है, बुला लो, बस जल्दी चोदो मुझे।”
वजय ने मुझे गोद में उठाया और सीढ़ियों से उतरकर घर के पीछे बा में ले गया। दादाजी भी पीछे आ गए, फोन पर किसी से बोलते हुए। “जल्दी आ, माल गर्म है, ठंडा हो जाएगा।”
वजय मेरी चूत को छेड़ रहा था। दादाजी ने मारा हाथ पकड़कर उनकी धोती के ऊपर रखवा दिया। उनका लंड धोती में कड़ा होकर तपटप रहा था। मैंनेन लंड पकड़ा और दबाने लगी। दादाजी ने धोती हटाकर नंगा लंड मेरे हाथ में दे दिया। लंड के स्पर्श से मेरी चूत में पानी बहने लगा। मैं उसे अपनी चूत में लेने को तड़प उठी।
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इतने में दादाजी का फोन बजा। वो गेट की ओर गए गए।। दो मिनट बाद लौटे, उनके साथ उनके दो दोस्ती भी थे। विजय मेरी चूचियों को मसल रहा था, और मैं उसके लंड को सहला रही थी। दादाजी के दोस्त मुझे देखकर बोले, “वाह, ये माल कहाँ से मिला?”
वजय बोला, “ये दीया की सहली है, गाँव देखने आई है।” दादाजी बोले, “अब गाँव के साथ लंड भी देखेगी।”
दादाजी के दोस्तों ने मेरे बदन पर हाथ फिराना शुरू कर दिया। चार मर्द मेरे जिस्म से खेल रहे थे।। मैं पागल-सी हो रही थी।। दादाजी ने अपना लंड मेरी चूत पर रगड़ना शुरू किया। मेरी सिस्कारियाँ निकलने लगीं। फिर उन्होंने लंड को चूत के छेेद पर रखा और एक जोरदार धक्का मारा। मेरी चीख निकल गई, आँखें बंद हो गईं, और मैं बेहोश हो गई।
जब होश आया, दादाजी धीरे-धीरे लंड अंदर-बाहर कर रहे थे। दर्द से मेरी जान निकल रही थी। मैं रोने लगी, “प्लीज, मुझे छोड़ दो, मैं नहीं सह पाऊँगी।”
वजय मेरे होंठ चूस रहा था, और बाकी लोग मेरे बूब्स।। दादाजी बोले, “अभी कहाँ छोड़ दूँ? अभी तो तुझे रंडी बनाना है।”
थोड़ी देर बाद दर्द कम हुआ, और मज़ा आने लगा। मैं चुदाई का आनंद लेने लगी। मैं उछल-उछलकर दादाजी का साथ देने लगी। मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं, “आह्ह, दादाजी, चोदो मुझे… मुझे रंडी बना दो…। मैं आपकी रंडी हूँ…।। जोर से चोदो…!”
वजय बोला, “साली रंडी, अब तू हमारी रखैल बनकर रहेगी।”
मैं ने जोश में बोली, “हाँ, मैं आप सबकी रखैल हूँ।”
सब हँसने लगे। दादाजी के एक दोस्त बोले, “ये तो पूरी प्यासी रंडी है। इसे दिन-रात चोदना चाहिए।”
फिर वो बारी-बारी से मेरे बदन को चूमने-काटने लगे। दादाजी का लंड मेरी चूत को फाड़ रहा था। चार मर्दों के बीच मैं जन्नत में थी। कभी किसी का लंड मेरे मुँह में, कभी किसी का मेरी चूत में। मेरी चूत दो बार झड़ चुकी थी। मेरी चूचियाँ दुखने लगीं, बदन पर लाल निशान बन गए, मगर मज़ा बहरा था।।
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पूरी रात उन्होंने मुझे चोदा। सुबह तक मेरा शरीर सुन्न हो गया। जब चुदाई खत्म हुई, मुझे होश नहीं था।। मेरा शरीर टूट रहा था।। विजय मुझे उठाकर छत पर ले गया। दादाजी के दोस्त जा चुके थे। कपड़े पहनाते वक्त विजय का लंड फिर तन गया, और उसने वहीं मुझे एक बार और चोदा।
सुब बुखार से तप रही थी। एक दिन बाद मैं ठीक हुई, और फिर गाँव का सेक्स रुटीन बन गया। रात को बा में में, सब मिलकर मुझे चोदते। मैं मज़े से चुदवाती, जैसे मैं उनकी रंडी हो। कोई मेरी चूत में लंड पेलता, कोई मुँह में, कोई गांड में उंगली करता। मेरा अंग-अंग खिल रहा था। दीया को कुछ नहीं पता था, मगर बाद में उसे खबर लग गई।
कई दिन तक मैं वहाँ रही, और गाँव का सेक्स चला।
आपको ये कहानी कैसी लगी? अपनी राय दें, ताकि मैं आगे की कहानी बता सकूँ।
Wow me bhi jhalawad se hu
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