पूजा भाभी को मेंढक बनाकर कुर्सी पर किया चुदाई

Mendhak Banakar chudai sex story – Frog position sex story – chair sex with bhabhi sex story: मेरा नाम रोहन है, उम्र 24 साल की, और मैं घर में अकेला हूँ भैया की दुकान की वजह से, जो किराने की सबसे बड़ी दुकान है मोहल्ले में, जहाँ भैया सुबह 8 बजे से रात 11 बजे तक ग्राहकों के साथ व्यस्त रहते हैं, पसीने से तरबतर होकर पैसे गिनते और सामान बेचते हुए, जबकि घर में सिर्फ़ मैं और पूजा भाभी रहते हैं, भाभी 29 साल की गोरी-चिट्टी औरत, जिनका बदन 36-30-38 का कातिलाना फिगर है, भरे हुए बूब्स जो साड़ी के ब्लाउज़ में दबकर भी उभरते रहते हैं, पतली कमर जो छूने पर गर्माहट से भरी लगती है, और मटकती हुई गाण्ड जो चलते वक़्त हवा में लहराती है, जैसे मोहल्ले के लड़कों को ललचाती हो, उनकी खुशबू घर में फैली रहती है, हल्की सी गुलाब जैसी महक मिली हुई पसीने की नमकीन सुगंध के साथ।

शुरू से ही भाभी के साथ मेरा रिश्ता अच्छा था, लेकिन सेक्सुअल नहीं, वो मुझे छोटा देवर समझती थीं, मैं भी डरता था, लेकिन पिछले कुछ समय से भैया की दुकान में बहुत काम था, भाभी अकेली घर पर रहती थीं, मैं कॉलेज से जल्दी आ जाता था, धीरे-धीरे बातें बढ़ने लगीं, पहले चाय बनाकर देती थीं, फिर साथ बैठकर टीवी देखते, कभी-कभी मैं उनके पैर दबा देता, भाभी हँसकर कहतीं, “रोहन तू तो मालिश बहुत अच्छी करता है”, मैंने सोचा कि यही मौका है, धीरे-धीरे भाभी को छूने के बहाने ढूंढने लगा, कभी किचन में पीछे से गुजरते हुए कमर पर हाथ लग जाता, जो गर्म और मुलायम लगती थी, कभी सोफे पर बैठे-बैठे जाँघ पर हाथ रख देता, भाभी पहले हटाती थीं, उनकी साँसें तेज़ हो जातीं, फिर सिर्फ मुस्कुराने लगीं, एक दिन मैंने कहा, “भाभी, आपकी साड़ी बहुत अच्छी लग रही है”, वो शरमाईं और बोलीं, “तेरी भाभी बूढ़ी हो गई है”, मैंने कहा, “नहीं भाभी, आप तो हीरोइन लगती हैं”, उनकी आँखों में चमक आ गई, जैसे मेरी बात सुनकर अंदर कुछ हलचल हुई हो।

फिर मैंने फोन पर सेक्सी वॉलपेपर लगा लिया, एक दिन भाभी ने मेरा फोन माँगा, मैंने जानबूझकर दे दिया, वो वॉलपेपर देखकर चौंकीं और बोलीं, “ये सब क्या-क्या देखता है तू?”, मैंने कहा, “भाभी, लड़के तो देखते ही हैं, आप भी तो बहुत सुंदर हैं, कोई देखे तो?”, वो शरमा गईं, लेकिन आँखों में कुछ और था, जैसे उत्सुकता, रात को भैया दुकान पर थे, बिजली चली गई, भाभी ने कहा, “रोहन, मोमबत्ती जला दे”, मैं मोमबत्ती लेकर उनके कमरे में गया तो भाभी नहाकर आई थीं, साड़ी बदल रही थीं, दरवाजा हल्का खुला था, मैंने झाँका तो भाभी सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में थीं, गीले बाल, बूब्स का आधा हिस्सा दिख रहा था, उनकी त्वचा गीली और चमकदार, पसीने और साबुन की मिली हुई महक कमरे में फैली हुई, मेरा लंड तुरंत खड़ा हो गया, भाभी ने मुझे देख लिया, शरमाकर दरवाजा बंद कर लिया, अगले दिन सुबह भाभी कुछ अजीब थीं, बात कम कर रही थीं, मैंने हिम्मत करके कहा, “भाभी, कल गलती से हो गया, सॉरी”, वो मुस्कुराईं और बोलीं, “बस तू बड़ा हो गया है, अब ऐसी गलतियाँ नहीं करनी चाहिए”, लेकिन उनकी आवाज़ में नरमी थी, जैसे मन से माफ़ कर दिया हो।

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धीरे-धीरे मैं भाभी को छूने के और मौके बनाने लगा, जैसे शाम को चाय बनाते वक़्त पीछे से चिपककर मदद करने का बहाना, मेरा लंड उनकी गाण्ड से दब जाता, जो मुलायम और गर्म लगती थी, भाभी सिहर जातीं, लेकिन पीछे नहीं हटतीं, एक रात भैया दुकान पर देर से आने वाले थे, मैंने भाभी से कहा, “भाभी, आज मालिश कर दूँ?”, वो पहले मना कीं, फिर बोलीं, “चल ठीक है, पैर दबा दे”, मैंने पैर दबाते-दबाते धीरे-धीरे जाँघ तक हाथ ले गया, साड़ी ऊपर तक सरक गई, पैंटी दिखने लगी, जो हल्की गीली लग रही थी, मैंने हिम्मत करके जाँघ के अंदर हाथ फेरा, भाभी ने पैर बंद कर लिया और बोलीं, “रोहन, ये गलत है”, लेकिन आवाज़ में गुस्सा नहीं था, मैंने कहा, “भाभी, भैया तो आपको टाइम ही नहीं देते, आप भी तो औरत हैं, आपको भी तो चाहिए होता है”, वो चुप हो गईं, उनकी साँसें तेज़ हो गईं, मैंने फिर हाथ बढ़ाया, इस बार भाभी ने नहीं रोका, मैंने पैंटी के ऊपर से चूत सहलाने लगा, जो गर्म और चिपचिपी हो चुकी थी, भाभी की साँसें तेज हो गईं, “रोहन… नहीं… कोई देख लेगा…”, मैंने कहा, “कोई नहीं है भाभी, बस एक बार”, धीरे-धीरे मैंने पैंटी अंदर कर उंगली डाल दी, भाभी की चूत गीली हो चुकी थी, हल्की महक आ रही थी, वो सिहर उठीं, “आह्ह… रोहन… बस… निकाल…”, लेकिन टाँगें और फैला दीं, मैंने दो उंगलियाँ अंदर-बाहर करने लगा, ग्च… ग्च… की चिपचिपी आवाज़ें, भाभी की आँखें बंद हो गईं, “ह्ह्ह… आह्ह… कितने दिन हो गए…”, उनकी चूत की दीवारें मेरी उंगलियों को जकड़ रही थीं, रस बह रहा था।

उसी रात मैंने भाभी को पहली बार चूमा, वो पहले रोकीं, लेकिन फिर खुद मेरे होंठ चूसने लगीं, उनकी जीभ मेरी जीभ से खेल रही थी, मीठी लार का स्वाद, लेकिन चुदाई नहीं की, मैंने कहा, “भाभी, पूरा मजा लेंगे, लेकिन सही टाइम पर”, इसके बाद मैंने सिर्फ छेड़खानी बढ़ाई, चूमना, बूब्स दबाना, चूत में उंगली, लेकिन लंड नहीं डाला, भाभी अब खुद बेचैन रहने लगी थीं, एक दिन भैया दुकान पर थे, बारिश हो रही थी, बाहर बूँदों की आवाज़ें गूँज रही थीं, भाभी ने मुझे किचन में बुलाया, बोलीं, “रोहन, अब और नहीं सहन होता, आज कर ले”, मैंने मुस्कुराकर कहा, “भाभी, आज कुर्सी पर मेंढक बनकर करवाओगी तो ही करूँगा”, भाभी शरमा गईं, लेकिन हाँ कर दीं, उनकी आँखें वासना से चमक रही थीं।

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मैंने भाभी की साड़ी-ब्लाउज सब उतार दिया, सिर्फ पैंटी रही, जो गीली हो चुकी थी, रस से चिपचिपी, फिर कुर्सी लाकर हॉल में रखी, जो भैया की पसंदीदा थी, लकड़ी की और हल्की स्क्रीच करती, भाभी को कहा, “अब कुर्सी पर चढ़ो, घुटने मोड़ो, गाण्ड ऊपर करो, बिल्कुल मेंढक की तरह”, भाभी ने वही किया, कुर्सी पर हाथ टिकाए, घुटने मोड़े, भारी गाण्ड पूरी तरह ऊपर, जैसे कोई जानवर बनकर इंतज़ार कर रही हों, उनकी पीठ पसीने से चमक रही थी, जाँघें काँप रही थीं, मैंने पहले उनके पीछे खड़े होकर उनकी गाण्ड को सहलाया, दोनों गालों को मसला, जो मुलायम और गर्म थे, उंगलियाँ धँस रही थीं, भाभी सिहर उठीं, “रोहन… जल्दी कर…”, मैंने पैंटी नीचे सरकाई, भाभी की गुलाबी चूत पानी मार रही थी, रस जाँघों पर चू रहा था, जो चिपचिपा और महकदार था, हल्की मछली जैसी सुगंध कमरे में फैल गई, मैंने अपनी पैंट उतारी, लंड बाहर निकाला, जो पहले से कड़क और मोटा हो चुका था, नसें फूली हुईं, सुपारा लाल, मैंने लंड पर थूक लगाया, जो गर्म और चिपचिपा था, फिर भाभी की चूत पर मला, ऊपर-नीचे रगड़ा, क्लिट को छेड़ा, जो सूजी हुई थी, भाभी की साँसें तेज़ हो गईं, “आह्ह… रोहन… डाल ना…”, मैंने सुपारा चूत के मुँह पर रखा, धीरे से दबाव डाला, सुपारा अंदर सरका, भाभी की चूत ने इसे जकड़ लिया, “ओह्ह्ह… धीरे… बहुत मोटा है तेरा…”, मैंने आधा लंड अंदर धकेला, चूत की गर्म दीवारें मेरे लंड को घेर रही थीं, रस से चिपचिपी, फिर बाहर निकाला, फिर आधा अंदर, teasing करते हुए, भाभी की गांड उछल रही थी, “आअह्ह्ह… पूरा डाल… मत तड़पा…”, मैंने कमर पकड़ी, एक जोरदार झटके में पूरा लंड चूत को चीरते हुए अंदर घुसेड़ दिया, भाभी की मुँह से ज़ोर की चीख निकली, “आअह्ह्ह्ह… रोहन… मर गयी… आह्हीईईई… बहुत दिन बाद… ओह्ह्ह्ह…”, चूत की दीवारें काँप रही थीं, पूरा लंड अंदर-बाहर होने लगा, पट-पट-पट-पट की तेज आवाजें, ग्च्छ… ग्च्छ… की गीली ध्वनियाँ, कुर्सी हिल रही थी, स्क्रीच कर रही थी, मैंने भाभी की कमर पकड़ी और जोर-जोर से ठोकना शुरू किया, हर झटके में भाभी की गाण्ड ऊपर-नीचे हो रही थी, पसीना उनकी जाँघों से टपक रहा था, मैंने बाल पकड़े और पीछे खींचे, गाण्ड और ऊपर उठ गई, अब लंड और गहराई तक जा रहा था, भाभी चिल्ला रही थीं, “आह… ह्ह्ह… और तेज रोहन… फाड़ दो आज… ओह्ह्ह्ह… कुर्सी हिल रही है… आह्ह्हीईई…”, मैंने एक हाथ से भाभी का बूब्स बाहर निकालकर मसलना शुरू किया, निप्पल्स कड़क हो चुके थे, जीभ से चाटा, नमकीन स्वाद, फिर मैंने भाभी को कुर्सी पर ही रखते हुए गाण्ड में उंगली डालकर खेलने लगा, थूक लगाकर उंगली अंदर-बाहर करने लगा, भाभी सिहर उठीं, “ओह्ह्ह… वहाँ नहीं… आह्ह्ह… गंदा है…”, लेकिन उनकी गांड खुद उंगली निगल रही थी, मैंने लंड चूत से निकाला, जो रस से चिपचिपा हो चुका था, फिर गाण्ड पर रखा और धीरे-धीरे दबाव डाला, भाभी बोलीं, “नहीं रोहन… बहुत दर्द होगा…”, मैंने कहा, “बस थोड़ा सा, मज़ा आएगा भाभी”, थोड़ी देर मसलने और थूक लगाने के बाद लंड का सुपारा गाण्ड में घुस गया, भाभी की चीख निकली, “आअह्ह्ह्ह्ह… मर गयी… ओह्ह्ह्ह्हीईईई…”, धीरे-धीरे पूरा लंड गाण्ड में चला गया, गाण्ड की टाइट दीवारें मेरे लंड को जकड़ रही थीं, गर्म और चिपचिपी, मैंने फिर से ठोकना शुरू किया, अब कुर्सी और तेज़ हिल रही थी, पट-पट की आवाजें, भाभी रो भी रही थीं और मज़ा भी ले रही थीं, “आह… ह्ह्ह… रोहन… आज तो तूने दोनों छेद फाड़ दिए… ओह्ह्ह्ह…”, पन्द्रह मिनट तक इसी पोजीशन में चोदने के बाद मैंने भाभी की गाण्ड में ही सारा माल छोड़ दिया, गर्म पिचकारी मारते हुए, भाभी कुर्सी पर ही ढेर हो गईं, साँसें तेज़ चल रही थीं, रस और वीर्य मिलकर टपक रहा था, मैंने भाभी को गोद में उठाया और बेडरूम में ले गया।

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शाम तक हमने चार बार और चुदाई की, हर बार भाभी ने कुर्सी पर मेंढक बनकर ही चुदवाया, अब जब भी भैया बाहर जाते हैं, भाभी खुद कुर्सी ले आती हैं और बोलती हैं, “चल रोहन, आज फिर मेंढक बन जाऊं?”।

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