Public me chudai – Public Bus Sex मैं, राहुल, 26 साल का हूँ, दिल्ली में रहता हूँ। मेरा कद 5 फीट 10 इंच, गोरा रंग, और जिम की वजह से बदन फिट है। चेहरा साफ, हल्की दाढ़ी। ये कहानी पिछले साल की है, जब दिल्ली की एक भीड़भाड़ वाली बस में मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ, जो मेरे दिमाग में हमेशा के लिए बस गया। उस दिन सर्दी का मौसम था, शाम के सात बज रहे थे, और दिल्ली की सड़कों पर अंधेरा पसर चुका था। ठंड इतनी थी कि मैंने नीली जींस, सफेद फुल स्लीव शर्ट, और ऊपर से ग्रे स्वेटर पहना था। मेरे कंधे पर एक काला लैपटॉप बैग लटक रहा था, और मेरे दाएँ हाथ में मेरी छोटी सी डायरी थी, जिसमें मैं अपने ऑफिस के नोट्स लिखता हूँ। डायरी छोटी थी, हथेली जितनी। मैं साउथ एक्सटेंशन बस स्टॉप पर खड़ा था, आजादपुर जाने वाली बस का इंतजार कर रहा था, क्योंकि मुझे पंजाबी बाग जाना था।
बस आई तो देखा, वो लगभग खाली थी। मैंने बस के आखिरी कोने की सीट पर जगह ली, जहाँ बस की दीवार मेरे बाएँ तरफ थी। अगले स्टॉप, नेहरू प्लेस, पर बस में एक औरत चढ़ी। उसकी उम्र करीब 30-32 साल होगी, शादीशुदा, क्योंकि उसकी मांग में सिंदूर चमक रहा था। उसने गहरे नीले रंग का सलवार सूट पहना था, जिसका कुर्ता टाइट था और दुपट्टा उसके कंधों पर लटक रहा था। ऊपर से उसने काली शॉल लपेटी थी। उसका फिगर गजब का था – शायद 36-28-36, छातियाँ कुर्ते से बाहर उभरी हुई थीं, और सलवार ढीली होने की वजह से उसकी जांघों की शेप हल्के से झलक रही थी। उसकी त्वचा गोरी थी, होंठ गुलाबी, जो ठंड की वजह से हल्के से कांप रहे थे। वो मेरे दाएँ तरफ वाली सीट पर बैठ गई। उसके ठीक बाद, एक आदमी चढ़ा, जिसके गोद में एक छोटा बच्चा था। वो उसके दाएँ तरफ वाली सीट पर बैठ गया। उसकी उम्र करीब 35 साल थी, मध्यम कद, और साधारण सा दिखने वाला। उसने ग्रे शर्ट और काली पैंट पहनी थी, और चेहरा ऐसा था जैसे वो ऑफिस से थककर लौट रहा हो। मैंने शुरू में नहीं समझा कि वो उसका पति है।
अगले स्टॉप, कालकाजी, पर बस अचानक खचाखच भर गई। लोग धक्का-मुक्की करते हुए चढ़े, और हमारा कोना भी तंग हो गया। बस का वो कोना थोड़ा अंधेरा था, और दिल्ली की DTC बसों की लाइटें अक्सर कोनों तक ठीक से नहीं पहुँचतीं। मैंने डायरी को अपने लैपटॉप बैग में डाल दिया, जो मेरे कंधे पर टंगा था। भीड़ इतनी थी कि लोग एक-दूसरे से चिपके हुए थे। मैंने हमेशा से ऐसी भीड़ में औरतों के साथ नजदीकी का ख्वाब देखा था, लेकिन दिल्ली की बसों में रिस्क भी कम नहीं। एक गलत हरकत और सीधे थप्पड़ पड़ सकता था, या कोई चिल्लाकर भीड़ को इकट्ठा कर सकता था। दिल्ली में लोग छोटी-छोटी बातों पर बवाल मचा देते हैं।
भीड़ की वजह से वो औरत मेरे और करीब आ रही थी। उसकी जांघें मेरे दाएँ हाथ को छू रही थीं, जो अब डायरी से मुक्त था। उसकी गर्माहट मुझे सर्दी में भी पसीना ला रही थी। मैंने अपने अंगूठे को हल्के से हिलाया, जैसे टेस्ट करना चाहता हूँ कि वो क्या करती है। उसने कोई रिएक्शन नहीं दिया, बस शांत बैठी रही, और उसकी आँखें हल्के से मेरी तरफ देखीं। इससे मेरी हिम्मत बढ़ी, लेकिन दिल में डर था कि कोई देख न ले। मैंने धीरे-धीरे अपने अंगूठे को उसकी सलवार के ऊपर से उसकी जांघों के बीच रगड़ना शुरू किया। सलवार का कपड़ा पतला था, और मुझे उसकी चूत की गर्मी साफ महसूस हो रही थी। मैं बहुत सावधानी से कर रहा था, क्योंकि रिस्क बहुत था।
उसी वक्त मेरी नजर उसके बगल में बैठे उस आदमी पर पड़ी, जो उसके बगल में था। उसके गोद में उनका छोटा बच्चा था, जो हल्के-हल्के रो रहा था। वो उस औरत से बात कर रहा था, और उनकी बातों से पता चला कि वो उसका पति था। उसका नाम संजय था। ये सुनकर मेरे होश उड़ गए। मैंने सोचा, “राहुल, अब तो गया। अगर इसके पति ने देख लिया तो बस में ही पिटाई हो जाएगी।” मेरे दिमाग में सीन चलने लगा – वो गुस्से में मुझे धक्का देता, लोग मुझे घूरते, और शायद कोई पुलिस को फोन कर देता। मैंने अपने दाएँ हाथ को थोड़ा पीछे खींचने की कोशिश की, लेकिन भीड़ इतनी थी कि हिलने की जगह ही नहीं थी। मैंने मन में सोचा, “राहुल, रुक जा, ये गलत हो सकता है।”
कुछ मिनट बाद, मुझे अहसास हुआ कि वो औरत खुद अपनी जांघें मेरे दाएँ हाथ पर रगड़ रही थी। उसका चेहरा शांत था, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। उसने अपनी शॉल को और फैलाया, और अपने दुपट्टे को इस तरह एडजस्ट किया कि वो मेरे हाथ के ऊपर एक दीवार बन जाए, और कोई मेरा हाथ न देख पाए, खासकर उसका पति। उसने अपने बैग को, जो उसके कंधे पर था, थोड़ा आगे खिसकाया, और उसे अपने पेट के पास पकड़ लिया। साथ ही, उसने अपनी शॉल को इस तरह लपेटा कि वो उसके कूल्हों तक लटक रही थी, मेरे हाथ को पूरी तरह छुपाते हुए। ये कवर इतना चालाकी भरा था कि कोई दिल्लीवाला भी, जो बसों की भीड़ में हर छोटी हरकत पर नजर रखता है, कुछ भांप नहीं सकता था। उसने मुझे एक हल्की सी नजर दी, जैसे इशारा कर रही हो। ये देखकर मेरा डर कम हुआ, लेकिन दिल की धड़कन तेज थी। मैंने अपने दाएँ हाथ को उसकी सलवार के ऊपर से उसकी चूत की दरार पर हल्के से दबाया।
उसने बड़ी चालाकी से, अपनी शॉल की आड़ में, अपनी सलवार की डोरी को ढीला किया। उसने ये इतने नजाकत से किया कि किसी को शक भी नहीं हुआ। सलवार का लेस अब इतना ढीला था कि मैं अपनी उंगली को आसानी से उसके कमरबंद के अंदर सरका सका। उसकी पैंटी को छूते ही मुझे उसकी गीली चूत की गर्मी महसूस हुई। मैंने अपनी उंगली को उसकी पैंटी के किनारे से साइड में खिसकाया। अब मेरी उंगली उसकी नंगी, गीली चूत को छू रही थी। उसकी चूत पूरी तरह शेव्ड थी, जैसे उसने सुबह ही वैक्स किया हो। मैंने अपनी उंगली को धीरे-धीरे उसकी चूत के अंदर डाला। उसकी सांसें तेज हो रही थीं, और उसका चेहरा लाल हो रहा था। उसने अपनी टांगों को हल्के से और चौड़ा किया, जिससे मेरी उंगलियों को और जगह मिली। मैं बहुत सावधानी से कर रहा था।
उसने अपने कूल्हों को हल्के-हल्के हिलाया, जैसे मुझे और आगे बढ़ने का इशारा दे रही हो। मैंने अपनी दूसरी उंगली भी डाली और उन्हें धीरे-धीरे अंदर-बाहर करने लगा। उसकी चूत इतनी गीली थी कि मेरी उंगलियाँ आसानी से फिसल रही थीं। मेरा लंड अब पूरी तरह खड़ा हो चुका था। मेरा 6.5 इंच का लंड मेरी जींस में उभार बना रहा था, और वो उस उभार को अपनी जांघों से महसूस कर रही थी। उसने अपनी टांगों को और थोड़ा फैलाया, जिससे उसकी सलवार और ढीली हो गई।
उसने, अपनी शॉल की आड़ में, बड़ी चतुराई से मेरी जींस की जिप खोली। उसने शॉल को इस तरह एडजस्ट किया कि मेरी जिप पूरी तरह ढक जाए। उसकी उंगलियाँ मेरे लंड को छूने लगीं, और वो उसे धीरे-धीरे सहलाने लगी। उसकी उंगलियाँ मेरे लंड के टोपे पर हल्के-हल्के घूम रही थीं, और मैं पागल हो रहा था। मैं हैरान था कि वो इतनी हिम्मत कैसे कर रही थी, वो भी अपने पति के सामने। तभी संजय की नजर मुझ पर पड़ी, और मेरे दिल की धड़कन रुक सी गई। लेकिन उसने सिर्फ एक हल्की सी मुस्कान दी और अपनी पत्नी की तरफ देखा। वो बच्चे को झुलाते हुए उसे और मेरी तरफ धकेल रहा था। उसने अपनी पत्नी के कान में कुछ कहा, जिससे उसका चेहरा और लाल हो गया। मैं समझ गया कि संजय को इस खेल में कोई ऐतराज नहीं था – बल्कि वो इसे एंजॉय कर रहा था। ये मेरे लिए किसी झटके से कम नहीं था। क्या वो जानबूझकर अपनी पत्नी को मेरे करीब ला रहा था? मेरा दिमाग सवालों से भर गया, लेकिन उसकी मुस्कान और उसकी पत्नी की नजरें मुझे आगे बढ़ने का इशारा दे रही थीं।
मैंने और हिम्मत की। मैंने उसकी सलवार के कमरबंद को थोड़ा और ढीला किया, ताकि मेरी उंगलियाँ उसकी नंगी चूत को और अच्छे से छू सकें। उसकी चूत इतनी गीली थी कि मेरी उंगलियाँ फिसल रही थीं। मैंने अब तीन उंगलियाँ डालीं और उन्हें तेजी से अंदर-बाहर करने लगा। उसने अपनी टांगों को और चौड़ा किया, जिससे मेरी उंगलियाँ और गहराई तक जा सकीं। उसकी चूत मेरी उंगलियों को चूस रही थी। उसने मेरे लंड को और जोर से पकड़ लिया और उसे तेजी से सहलाने लगी। उसकी उंगलियाँ मेरे लंड के टोपे पर तेजी से घूम रही थीं। मैंने उसकी चूत में अपनी उंगलियाँ और तेजी से चलाईं। उसकी चूत से रस टपक रहा था, और मेरी उंगलियाँ पूरी तरह गीली हो चुकी थीं। मैंने उसकी चूत के दाने को अपनी उंगली से रगड़ा, और उसका पूरा बदन कांपने लगा। उसकी चूत ने मेरी उंगलियों को जोर से दबाया, और उसका शरीर हल्के से झटके लेने लगा। उसकी चूत से ढेर सारा गर्म रस बह निकला, और मेरी उंगलियाँ पूरी तरह भीग गईं।
उसी वक्त उसकी उंगलियों की रगड़ से मेरा लंड भी बेकाबू हो गया। मेरा गर्म माल उसकी हथेली पर गिरा, और कुछ छींटे उसकी शॉल पर भी जा गिरे। उसने अपनी उंगली को अपने मुँह की तरफ ले जाकर चाट लिया। मैं हैरान था, लेकिन उसका पति अब भी मुस्कुरा रहा था, जैसे वो इस सब का हिस्सा हो। हम दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा और एक मुस्कान बांटी। हमने जल्दी से अपने कपड़े ठीक किए। उसने अपनी सलवार, शॉल, और बैग को संभाला, और मैंने अपनी जिप बंद की। तभी वो मेरे करीब आई और मेरे हाथ में एक छोटा सा कागज का टुकड़ा थमा दिया। मैंने उसे खोला तो उसमें एक फोन नंबर लिखा था। मेरे मन में एक अजीब सी खुशी थी, लेकिन साथ ही सवाल भी थे – ये कपल ऐसा क्यों कर रहा था? संजय की मुस्कान और उसकी पत्नी की हिम्मत मुझे सोच में डाल रही थी। मेरा स्टॉप, पंजाबी बाग, आ गया, और मैं बस से उतर गया। उतरते वक्त मैंने उसकी तरफ आखिरी बार देखा। वो शांत बैठी थी, लेकिन उसकी आँखों में चमक थी, जैसे वो इस पल को और जीना चाहती हो।
मैं साफ कर देना चाहता हूँ कि अगर वो मुझे इशारा न करती और सपोर्ट न करती, तो मैं ऐसा कभी नहीं करता। मैं औरतों की इज्जत करता हूँ और बिना उनकी मर्जी के ऐसा कुछ नहीं करता।
क्या आपको लगता है कि ऐसी हसीन मुलाकातें दोबारा हो सकती हैं? अपने अनुभव नीचे कमेंट में जरूर शेयर करें!
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