मेरा नाम विद्या है। मेरी उम्र 29 साल है। मैं कुशीनगर में रहती हूँ। मैं देखने में बहुत ही जबरदस्त माल दिखती हूँ। मेरा रंग खूब गोरा है। मेरी खूबसूरती पर सारे लोग फिदा हैं। मेरा अंग-अंग रस भरा है। मेरे चुच्चे बहुत ही सॉलिड लगते हैं। मेरा फिगर 36-30-36 है। जितना ही पीछे मेरी गांड निकली है, उतनी ही आगे मेरी चूंचियाँ निकली हुई हैं।
36 इंच के इस मम्मे को पीने को बहुत लोग परेशान हैं। मुझे भी चुदवाने में बहुत मजा आता है। बड़े-बड़े लंड मुझे बहुत ही पसंद हैं। उनसे खेलकर चूसना मुझे बहुत अच्छा लगता है। मैं चुदाई वाला खेल बहुत दिन से खेलती आ रही हूँ। मुझे अपनी चूत चटवाने में बहुत ही मजा आता है।
दोस्तों, मैं अब अपनी कहानी पर आती हूँ। किस तरह से मेरी चूत का भोग लगाया मेरे पति और सुभाष ने। मैं एक शादीशुदा औरत हूँ। घरवालों ने मेरी शादी पड़ोस के ही एक गाँव में कर दी थी, जिसका नाम हाटा है। मुझे एक हट्टा-कट्टा शरीर वाला पति मिला था।
जिंदगी खूब मजे में कट रही थी। मेरे पति का नाम राकेश है। वो सिर्फ दो भाई हैं। राकेश जी बड़े हैं। दूसरे भाई साहब उनसे सिर्फ 2 साल छोटे हैं। उसका नाम सुभाष है। वो भी उनसे ज्यादा खूबसूरत और गजब पर्सनालिटी का मालिक है।
दोनों लोगों का अंग बहुत ही गठीला है। दोनों में बहुत ही प्यार है। वो हमेशा मुझे भाभी-भाभी कहता रहता है। पूरा मजा लेता है। जब भी उसे मौका मिलता है, मजा लेने में कोई कसर नहीं छोड़ता। जब भी मैं चलती हूँ, तो वो मेरी मटकती गांड पर ही नजर गड़ाए रहता है।
ये बात एक दिन रात में थी। मैं लेटी हुई थी, तो सारा हाल अपने पति को सुनाने लगी। उन्होंने कुछ न कहकर टाल दिया। मेरी रातभर चुदाई करते रहते थे। वो अपना 8 इंच का लंड मेरी चूत में डाले रातभर बिस्तर पर पड़े रहते थे। मैं भी उस लंड से चुदा-चुदाकर बोर हो चुकी थी।
मुझे भी किसी नए लंड की जरूरत लगने लगी। मैं कुछ दिनों से अपनी ब्रा पर कुछ लगा हुआ पाती थी। मैंने उसे सूँघा, हाथ से छूकर देखा, तो वो लंड का माल निकला। मुझे तुरंत पता चल गया ये काम कौन करता है। घर में राकेश और सुभाष के अलावा और कोई भी नहीं रहता।
वो तो मेरी रातभर चुदाई करते रहते हैं, तो वो ऐसा क्यों करेंगे। बचा था अब सुभाष, उसकी ही ये सारी करतूतें हैं। मैं उसे अपनी ब्रा में मुठ मारते हुए पकड़ना चाहती थी। अब पति राकेश के काम पर जाते ही मैं सुभाष के पीछे लग जाती थी। वो भी अपने काम पर लग गया।
मैंने अपनी ब्रा और पैंटी को उसके ही आगे टाँग दिया। सुभाष ने जैसे ही देखा, उसे उठाकर अपने रूम में ले गया। मैंने घर का काम करने का नाटक करने लगी। उसे लगा कि मैं बाहर का बरामदा साफ कर रही हूँ। लेकिन मैं चुपचाप खिड़की पर खड़ी थी। सारा नजारा देखने लगी।
वो मेरी ब्रा पर अपना 12 इंच का लंड निकालकर फेटने लगा। उसका इतना बड़ा लंड देखकर मेरे मुँह में पानी आने लगा। मैं उसे खाने को बेकरार होने लगी। कुछ ही दिनों बाद मेरे घर के पास में भंडारा था। मेरे पति राकेश के वो खास मित्र के यहाँ रहते थे, तो रात को वो देर तक वहाँ रहते थे।
सुभाष सिर्फ एक दिन ही गया हुआ था। अभी तक वो कुंवारा ही था। ये बात एक साल पहले की है। जब भंडारा चल रहा था, वो एक दिन मेरी ब्रा हाथ में लेकर बैठा अपने रूम में मुठ मार रहा था। मुझसे रहा नहीं गया। मैंने पीछे से उसे जाकर पकड़ लिया।
वो भी अपना लंड पकड़े हुए था। उसका लंड बहुत ही मोटा लग रहा था। वो चौंककर अपना लंड ढकने लगा। मैंने बताया कि मैंने सब कुछ देख लिया है। वो शर्माने लगा। उसे डर था कि मैं उसके बड़े भाई साहब से न बता दूँ।
लेकिन मुझे तो सुभाष का लंड खाना था। उसके लंड की तरफ मैं बार-बार देख रही थी। वो डर के मारे बहुत ही माफी माँगने लगा। ढंग से बोल ही नहीं पा रहा था। मैं उसके पास बैठ गई। उससे चिपककर कहने लगी- “घबराओ नहीं, मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी। मुझे पता है इस उम्र में हर कोई अकेला कैसे रहता है।”
वो नीचे सर झुकाए बोला- “भाभी!! किसी से कहना मत। आज के बाद ऐसा नहीं करूँगा।”
मैं- “मुझे पहले नहीं पता था। नहीं तो तुम्हें ये सब करने की नौबत ही न आती।”
सुभाष- “आपका मतलब नहीं समझ में आया भाभी जी।”
मैं- “सुभाष जी, मुझे पता होता तो तुम्हारे लिए भी कहीं जुगाड़ कर देती।”
सुभाष- “किस चीज का जुगाड़ कर देती।”
सुभाष जी बहुत ही भोले बनने लगे।
मैं- “ज्यादा भोला बनने का नाटक न करो। मुझे सब पता है। तुम कितने भोले हो।”
सुभाष- “सही भाभी, कहीं कर दो उसका जुगाड़। अब रहा नहीं जाता उसके बिना।”
मैं- “मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ। लेकिन किसी से कहना मत।”
सुभाष- “नहीं कहूँगा।”
मैं- “जब तक मैं जुगाड़ करती हूँ, तब तक तुम मुझसे ही काम चला लो।”
सुभाष हक्का-बक्का रह गया। वो समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या बोलूँ। इतना कहकर मैं उससे और भी अच्छे से चिपक गई। सुभाष कहने लगा- “सच में भाभी, तुम मुझसे चुदोगी।”
मैं- “हाँ, लेकिन ये किसी को पता नहीं चलना चाहिए।”
मेरे इतना कहते ही वो जोर-जोर से मेरे होंठों पर किस करने लगा। उसके बाद धीरे-धीरे मेरे मम्मों को दबाने लगा। मम्मों को दबाते ही मैं गर्म होने लगी। मैं बार-बार उसका खड़ा लंड छूकर मजा ले रही थी। मेरे पति राकेश को इस बात का पता नहीं था।
उस दिन तो मैंने अपने देवर सुभाष को खूब दूध पिलाया अपना। उन्होंने मेरी चूत चाटी। मैंने भी उनका लंड चूसा। उसके बाद उन्होंने मुझे चोदकर अपनी प्यास बुझाई। मेरी बुर को उनके बड़े मोटे लंड ने अच्छे से फाड़ डाला था। रात को जब राकेश घर आया, तो उसने फिर से मुझे एक बार चुदने के लिए जगाया।
लेकिन मैं पहले ही चुदवाकर थक चुकी थी। मैंने अपना सारा कपड़ा तो उतार दिया। लेकिन उनके साथ सेक्स न कर सकी। वही कुछ देर तक चूंचियों को दबाकर, चूत में लंड डालकर चुदाई करके झड़ गए। आज उन्हें भी कुछ ज्यादा मजा नहीं आया।
दूसरे दिन फिर से वो चले गए। मुझे लगा आज भी वो देर से आएँगे। मेरे पति राकेश के वीर्य में पता नहीं किस चीज की कमी थी, जिससे मुझे आज तक बच्चा ही नहीं हो पा रहा था। वो भी अपनी मर्दानगी पर शर्मिंदा हो रहे थे। उस दिन वो जल्दी चले आए।
घर आते ही उन्होंने मुझे देवर सुभाष की बाहों में पड़ी देखकर गुस्से से लाल-पीला होने लगे। मैं देखते ही वहाँ से उठ गई। सुभाष भी डर से चुपचाप वही बैठा था। वो मुझे पकड़कर अपने रूम में ले गए। मुठ मारकर अपना लंड खड़ा करके मेरी जोर-जोर से चुदाई करने लगे।
गुस्से में मेरी चूत को वो अपने लंड से फाड़े ही जा रहे थे। मैं जोर-जोर से “ओह्ह माँ… ओह्ह माँ… उ उ उ उ उ… अ अ अ अ अ आ आ आ आ…” चिल्ला रही थी। उसके बाद वो थककर लेट गए। वो मुझे गाल पर चाँटे मारने लगे। “कुतिया!! हरामजादी!! छिनाल, अपने देवर से फँसी हुई है। अपनी माँ चुदाले रंडी,” कहने लगे और मुझे गालियाँ देने लगे।
मैंने भी उनकी मर्दानगी के बारे में बता दिया कि तुम बाप बनने लायक नहीं हो। वो कुछ न बोल सके। बाहर तुम्हें क्या कहते होंगे सब। फिर मैंने बच्चे का लालच देकर उन्हें मना लिया। उन्होंने दूसरे दिन सुभाष जी को बुलाया। वो रात को मेरे कमरे में डरते-डरते आया।
उन्होंने कमरे का दरवाजा बंद किया। कहने लगे- “चलो भाई, आज हम मिल-बाँट कर खाते हैं इसको।”
वो फिर से भौचक्का रह गया। मैंने अपना सारा प्लान पहले ही उसे समझा दिया था। दोनों मुझे सहलाने लगे। मैं गर्म होने लगी। दोनों मुझे आगे-पीछे होकर छू-छूकर गर्म कर रहे थे। धीरे-धीरे पति और देवर दोनों ने मेरी साड़ी उतार दी। फिर मेरा ब्लाउज, पेटीकोट, ब्रा और पैंटी सब कुछ एक-एक करके उतार दी।
सुभाष आगे मेरी चूत में उँगली कर रहा था। मैं जोश में आकर गर्म-गर्म साँसें छोड़ने लगी। पहले सुभाष ने मेरा काम लगाने के लिए अपना पैंट निकाला। उसका लंड मैं हाथ में लेकर चूसने लगी। मुझे उसका लंड चूसने में मजा आ रहा था।
पति राकेश भी अपना लंड निकालने के लिए पैंट खोलने लगे। मैंने उनका भी लंड पकड़कर दोनों का साथ में ही चूसने लगी। दोनों के लंड को एक साथ पाकर मुझे जन्नत मिल गई। दोनों के साथ में फेट रही थी। मैं बहुत खुश हो रही थी।
दोनों के लंड की गोलियाँ मैं रसगुल्ले की तरह चूस रही थी। दोनों अपना-अपना मेरे मुँह में डाल रहे थे। चूत-गांड की तो बात ही छोड़ो। दोनों जोश में आकर मेरे मुँह को फाड़ रहे थे। आपको तो पता ही होगा कि मुँह में एक साथ कितना लंड डाला जा सकता है।
दोनों ने मिलकर मेरी साड़ी उतारी। ब्लाउज के ऊपर से ही चूंचियों को मसलकर उसे भी निकाल दिया। मुझे ब्रा में देखकर दोनों पागलों की तरह उस पर झपटकर निकाल दिया। पेटीकोट का नाड़ा खोलकर उसे भी निकाल दिया। सुभाष ने मेरी चूंचियों को हाथों में लेकर खेलने लगा।
वो उसे उछाल-उछालकर मजा ले रहा था। उसे ऐसा करते देखकर राकेश से भी रहा नहीं गया। उन्होंने मुझे बिस्तर पर लिटाकर मेरी एक चूँची को मुँह में भरकर पीने लगे। दोनों मुझपर कुत्ते की तरह टूटकर मजा ले रहे थे। दोनों का लंड खड़ा हो गया।
सुभाष भी मेरी चूत की तरफ बढ़कर मेरी पैंटी को निकाल दिया। उन्होंने मेरी चूत पर अपना मुँह लगाकर पीने लगे। चूत की दोनों पंखुड़ियों को होंठों से पकड़कर खींच-खींचकर पीने लगे। मैं “अई… अई… अई… अहह्ह्ह्ह… सी सी सी सी… हा हा हा…” की सिसकारी भरने लगी।
राकेश ने वो भी बंद करवा दिया। उसने अपना होठ मेरे होंठों से लगाकर पीने लगा। मेरी नाजुक नर्म होंठों को वो बहुत कम ही चूसता था। लेकिन आज वो ये भी कर रहा था। दोनों मुझे दुगनी स्पीड से गर्म कर रहे थे। मुझे नहीं पता था कि दोनों को सहने में बहुत ही मुश्किल होगी।
एक-एक करके मेरा काम लगाना शुरू किया। राकेश ने मेरी चूत में अंदर तक जीभ डालकर चाट रहा था। वो मेरी चूत के दाने को काट-काटकर मुझे तड़पा रहा था। मैं “अई… अई… अई… अई… इस्स्स्स्स्स… उहह्ह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह…” की सिसकारी भर रही थी।
फिर सुभाष जी ने मेरी दोनों टाँगों को खोलकर मेरी चूत के दर्शन किए। उसके बाद उन्होंने मेरी चूत पर लंड रगड़कर मुझे चुदने को बेकरार करने लगे। धीरे-धीरे रगड़कर चूत के छेद पर निशाना साधने लगे। छेद का मुँह लंड पर लगते ही उन्होंने धक्का मार दिया। आधा लंड मेरी चूत में घुसा दिया।
मैं जोर-जोर से “आआआअहह्ह्ह… ईईईईई… ओह्ह्ह… अई… अई… अई… मम्मी…” की आवाज निकालने लगी। आज तो वो कुछ ज्यादा ही जोश में लग रहा था। उसने तुरंत ही फिर से जोर का झटका मारकर पूरा लंड घुसा दिया।
पति राकेश आज पत्नी की चुदाई देख रहे थे। वो मुँह बनाए बैठे थे। मैं उनका लंड पकड़कर मुठ मारने लगी। वो भी जोश में आने लगे। उधर मेरा देवर सुभाष 12 इंच का लंड डाले मेरी चूत की फड़ाई कर रहा था। मेरी चूत को फाड़कर उसका भरता बना रहा था।
इधर पति मेरे मुँह में ही अपना लंड डालकर मुँह को ही चूत की तरह चोदने लगे। मेरा तो दम घुटने लगा। मैंने उनका लंड अपने मुँह से निकालकर चैन की साँस ली। उधर सुभाष भी अपना लंड निकालकर मुझे चुसवाने लगा। मौका मिलते ही राकेश मेरी चूत चोदने में मर्दानगी दिखा रहे थे।
वो अपना लंड डाले खूब जोर की चुदाई करके मेरी चीखें निकलवा दी। मैं जोर से “हूँउउउ हूँउउउ हूँउउउ… ऊँ—ऊँ… ऊँ सी सी सी सी… हा हा हा… ओ हो हो…” से चिल्लाने लगी। आवाज के साथ मेरी चुदाई भी बड़ी तीव्र गति से होने लगी।
मैंने सुभाष के लंड पर लगा अपनी चूत का माल चाटकर उसे फिर से चुदने को तैयार कर दी। वो लंड को हिलाते हुए राकेश के पास पहुँचा। दोनों एक साथ मेरी चुदाई करना चाहते थे। पति राकेश ने जाकर सोफे पर अपना आसन जमा लिया।
मैं ब्लू फिल्म की पोर्न स्टारों की तरह उनके लंड पर जाकर बैठ गई। लंड के अंदर गांड में घुसते ही मैं धीरे-धीरे से “उई… उई… उई… माँ… ओह्ह्ह माँ… अहह्ह्ह्ह…” की आवाज निकालकर पूरा लंड अपनी चूत में घुसा ली। उसके बाद मैं उछल-उछलकर अपनी गांड चुदवाने लगी।
सुभाष भी मुठ मारते हुए आकर मेरी चूत में अपना लंड घुसाने लगा। एक लंड गांड को फाड़ ही रहा था, कि दूसरा भी आकर मेरी चूत को फाड़ने में लगा हुआ था। मेरी चूत में लंड घुसाकर वो भी आगे-पीछे होकर चोदने लगा। मुझे बहुत दर्द हो रहा था।
पता नहीं कैसे लड़कियाँ ब्लू फिल्मों में चुदाई करवा लेती हैं। मेरी चूत और गांड दोनों दर्द से दप-दपाने लगी। उसके लंड ने मेरी हालत खराब कर दी। दोनों चुदाई की धुन में मस्त थे। राकेश अपनी गांड उठा-उठाकर मेरी गांड चुदाई कर रहे थे।
सुभाष भी अपनी कमर मटका-मटकाकर चूत को फाड़ने में तुला हुआ था। दोनों को सेक्स करने में भरपूर मजा आ रहा था। मैं भी “आऊ… आऊ… हमममम अहह्ह्ह्ह… सी सी सी सी… हा हा हा…” की जोशीली आवाज निकालकर चुदवाने में मस्त थी।
पति और देवर ने करीब 15 मिनट तक इसी तरह से मुझे चोद डाला। दोनों थक-थककर खड़े हो गए। सुभाष मेरी टाँग को उठाकर चोदने लगा। राकेश ने मेरे मुँह में लंड डालकर मुठ मारने लगा। मैं उसके माल का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। सुभाष जी की चोदने की टाइमिंग भी ज्यादा थी। लेकिन पति राकेश तो मेरे मुँह में झड़ गए। मैंने उनका सारा माल पी लिया। वो थककर लेट गए। मेरी चूंचियों को ही सहला-सहलाकर मजा लेने लगे। मेरे देवर सुभाष का लंड अब भी मेरी चूत की चटनी बना रहा था। उसने मुझे उठाकर गोद में ले लिया।
मुझे झूला झुलाकर चोदने लगे। इतना मजा तो मुझे आज तक नहीं आया था। मैं “ही ही ही… अ अ अ अ… अहह्ह्ह्ह उहह्ह्ह्ह… उ उ उ…” की आवाज के साथ उछल-उछलकर चुदवा रही थी। वो भी ज्यादा देर तक अब नहीं रुक सकता था। उसने अपना माल निकालकर मेरी चूत में झड़ने को कहने लगा। सारा माल मेरी चूत में डालकर मुझे माँ बनाने की तैयारी करने लगा। मुझे नीचे उतारकर उसने बिस्तर पर मेरे साथ खूब मजा लिया। दोनों आगे-पीछे लेटकर रातभर मुझे परेशान करते रहते हैं। जब भी रात में किसी का लंड खड़ा होता है, मेरा काम लगा देता है।
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