मेरी सेक्सी माँ को मेरे टीचर ने चोदा

मेरे सभी पाठकों को मेरा नमस्ते। मेरा नाम मनीष है, और मैं आज आपको एक सच्ची घटना सुनाने जा रहा हूँ, जो करीब तीन साल पहले की है। तब मैं 18 साल का था, बारहवीं कक्षा में पढ़ता था, और अब मैं बीए कर रहा हूँ। मेरी माँ, रीता, उस समय 35 साल की थीं। उनकी खूबसूरती और सेक्सी फिगर की वजह से मोहल्ले में हर कोई उनकी तारीफ करता था। उनका फिगर 36-28-38 था, गोरी चमकती त्वचा, लंबे काले बाल, और आँखें जो किसी को भी दीवाना बना दें। वो साड़ी में ऐसी लगती थीं जैसे कोई अप्सरा, और उनकी चाल में एक अजीब सी मादकता थी। मेरे पापा, रमेश, एक सरकारी कर्मचारी थे, जो अक्सर काम के सिलसिले में बाहर रहते थे, और शायद इसीलिए माँ की जवानी अधूरी सी रह जाती थी। मेरे स्कूल के टीचर, शर्मा सर, 40 साल के थे, लंबे-चौड़े, गठीले बदन वाले, और उनकी आवाज़ में एक रौब था, जो बच्चों को डराता था, पर माँ जैसी औरतों को शायद लुभाता था।

बात उस दिन की है जब मेरी बारहवीं की बोर्ड परीक्षा नजदीक थी। मैं पढ़ाई में थोड़ा कमजोर था, और मेरे गणित के नंबर हमेशा कम आते थे। एक दिन शाम को माँ के मोबाइल पर शर्मा सर का फोन आया। माँ ने फोन उठाया और दूसरी तरफ से सर की भारी आवाज़ गूँजी, “रीता जी, मनीष की पढ़ाई के बारे में बात करनी है। आज रात 7:30 बजे आप उसे लेकर मेरे घर आ जाइए।” माँ ने थोड़ा झिझकते हुए पूछा, “सर, बात क्या है? कुछ गंभीर तो नहीं?” सर ने जवाब दिया, “बस, मनीष की पढ़ाई में कुछ कमियाँ हैं। आप आइए, फिर देखते हैं क्या हो सकता है।” माँ ने तुरंत कहा, “सर, प्लीज़, इस बार मेरे बेटे को पास करवा दीजिए। आपकी बड़ी मेहरबानी होगी।” उनकी आवाज़ में एक अजीब सी विनती थी, जो शायद कुछ और भी कह रही थी।

सर ने हल्के से हँसते हुए कहा, “आप आइए, रीता जी। सही व्यवहार से बहुत कुछ हो सकता है।” माँ ने तपाक से जवाब दिया, “हाँ सर, मैं सब कुछ दिखाने को तैयार हूँ।” उनकी बात में एक नशीली सी धमकी थी, जो सर को तुरंत समझ आ गई। सर ने कहा, “ठीक है, फिर मिलते हैं।” माँ ने फोन रखा, और मैंने देखा कि उनकी साँसें थोड़ी तेज हो रही थीं। उनके चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी, जैसे वो किसी रोमांच के लिए तैयार हो रही हों।

उसके बाद माँ और सर की फोन पर बात लंबी खिंच गई। मैं पास ही बैठा था और उनकी बातें सुन रहा था। माँ की आवाज़ धीरे-धीरे नरम और कामुक होती जा रही थी। वो कह रही थीं, “सर, आप तो जानते हैं, मनीष के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ।” सर ने हँसते हुए कहा, “रीता जी, आपकी बातों से तो लगता है आप बहुत कुछ कर सकती हैं।” माँ ने जवाब दिया, “हाँ सर, आप चाहें तो मैं आपको सब कुछ दिखा सकती हूँ।” उनकी बातें अब सेक्स चैट में बदल चुकी थीं। माँ ने अपनी साड़ी का पल्लू ठीक करते हुए फोन पर कहा, “सर, आप तो मर्द हैं, समझ ही गए होंगे।” सर ने जवाब में कुछ ऐसा कहा कि माँ की हँसी छूट गई। मैं समझ गया कि माँ और सर के बीच कुछ और चल रहा है।

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शाम को माँ तैयार होने लगीं। उन्होंने लाल रंग की साड़ी पहनी, जो उनकी गोरी त्वचा पर आग की तरह चमक रही थी। साड़ी इतनी पतली थी कि उनके कर्व्स साफ दिख रहे थे। ब्लाउज टाइट था, और उनकी 36D की चूचियाँ उसमें कैद होने को तड़प रही थीं। माँ ने हल्का मेकअप किया, लाल लिपस्टिक लगाई, और बाल खुले छोड़ दिए। वो इतनी सेक्सी लग रही थीं कि मैं खुद उन्हें देखकर थोड़ा झेंप गया। हम ठीक 7:30 बजे सर के घर पहुँचे। सर का घर एक छोटा सा बंगला था, बाहर से साधारण, लेकिन अंदर से आलीशान। सर ने हमें अंदर बुलाया। वो कुर्ता-पायजामा पहने हुए थे, और उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।

अंदर जाते ही माँ और सर ने एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराया। माँ की साड़ी का पल्लू हल्का सा सरक गया था, और सर की नजरें उनकी गहरी क्लीवेज पर टिक गई थीं। माँ ने जानबूझकर पल्लू ठीक नहीं किया। कुछ देर तक वो दोनों आँखों ही आँखों में बातें करते रहे। माहौल गर्म होने लगा था। सर ने बाकी बच्चों को, जो वहाँ ट्यूशन के लिए आए थे, जाने को कहा। फिर मुझसे बोले, “मनीष, तुम दूसरे कमरे में जाकर बैठो। मुझे तुम्हारी माँ से कुछ जरूरी बात करनी है।” मैं समझ गया कि कुछ और होने वाला है, लेकिन चुपचाप दूसरे कमरे में चला गया।

कमरे में बैठे-बैठे मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी। मैंने सोचा, जरा देखूँ तो सही कि माँ और सर क्या कर रहे हैं। मैं चुपके से उस कमरे की खिड़की के पास गया, जहाँ माँ और सर थे। खिड़की का पर्दा हल्का सा खुला था, और मैंने अंदर झाँका। सर माँ के करीब खड़े थे, और माँ की साड़ी का पल्लू अब पूरी तरह नीचे गिर चुका था। सर ने धीरे से माँ की कमर पर हाथ रखा और उन्हें अपनी तरफ खींच लिया। माँ ने कोई विरोध नहीं किया। सर ने उनके गाल पर एक हल्का सा चुम्बन लिया, और माँ ने अपनी आँखें बंद कर लीं। “आह…” माँ के मुँह से एक हल्की सी सिसकारी निकली। सर ने अब माँ के ब्लाउज के बटन खोलने शुरू किए। एक-एक करके बटन खुलते गए, और माँ की काली ब्रा में कैद उनकी भारी-भरकम चूचियाँ बाहर झाँकने लगीं।

माँ ने सर की शर्ट उतार दी और उनकी छाती पर हाथ फेरने लगीं। सर की साँसें तेज हो रही थीं। उन्होंने माँ की ब्रा का हुक खोल दिया, और उनकी चूचियाँ आजाद हो गईं। सर ने एक चूची को अपने हाथ में लिया और धीरे-धीरे मसलने लगे। “उम्म… शर्मा जी, धीरे… आह…” माँ की आवाज़ में मस्ती थी। सर ने माँ के निप्पल को अपने मुँह में लिया और चूसने लगे, जैसे कोई बच्चा दूध पी रहा हो। माँ की सिसकारियाँ अब और तेज हो गई थीं, “स्स्स… आह… और जोर से… आह…” माँ ने सर के बालों में उंगलियाँ फँसाईं और उन्हें अपनी चूची की ओर दबाया।

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कुछ देर बाद सर ने माँ को गोद में उठाया और ऊपर के कमरे में ले गए। मैं भी चुपके से पीछे-पीछे गया और ऊपर की खिड़की से झाँकने लगा। कमरे में एक बड़ा सा बिस्तर था, और माँ अब सिर्फ पेटीकोट में थीं। उनकी साड़ी और ब्लाउज फर्श पर बिखरे पड़े थे। सर ने माँ को बिस्तर पर लिटाया और उनके पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया। माँ की काली पैंटी अब साफ दिख रही थी। सर ने धीरे-धीरे माँ के पैरों को चूमना शुरू किया। वो उनके पंजों से शुरू हुए, फिर टखनों, फिर जाँघों तक आए। माँ की साँसें तेज हो रही थीं, और वो बिस्तर पर मचल रही थीं। “आह… शर्मा जी… ये क्या कर रहे हो… उफ्फ…” माँ की आवाज़ में वासना थी।

सर ने माँ की पैंटी उतार दी, और उनकी चूत अब उनके सामने थी। माँ की चूत गुलाबी और गीली थी, जैसे वो पहले से ही गरम हो चुकी थीं। सर ने अपनी उंगली से माँ की चूत को सहलाया, और माँ तड़प उठीं, “उम्म… स्स्स… शर्मा जी… प्लीज़… अब और मत तड़पाओ…” सर ने अपनी जीभ माँ की नाभि पर फेरी, फिर धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़े। उन्होंने माँ की चूत पर अपनी जीभ रखी और धीरे-धीरे चाटना शुरू किया। माँ की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं, “आह… उफ्फ… हाय… शर्मा जी… आह…” वो अपने कूल्हे हिलाने लगीं, जैसे सर की जीभ को और गहराई में लेना चाहती हों।

माँ अब पूरी तरह बेकाबू हो चुकी थीं। उन्होंने सर को खींचकर अपने ऊपर लिया और उनकी पैंट उतार दी। सर का लंड अब उनके सामने था, करीब 8 इंच लंबा और मोटा, जैसे कोई घोड़े का लंड हो। माँ ने उसे देखकर एक पल को झिझकी, लेकिन फिर उनकी आँखों में चमक आ गई। वो घुटनों के बल बैठ गईं और सर के लंड को अपने मुँह में ले लिया। “उम्म… रीता जी… तुम तो कमाल हो…” सर ने सिसकारी ली। माँ ने लंड को चूसना शुरू किया, पहले धीरे-धीरे, फिर तेज। उनकी जीभ लंड के टोपे पर घूम रही थी, और सर की साँसें तेज हो रही थीं।

कुछ देर बाद माँ ने सर को बिस्तर पर धकेला और उनके ऊपर चढ़ गईं। उन्होंने सर के लंड को अपनी चूत पर सेट किया और धीरे-धीरे नीचे बैठने लगीं। “आह… स्स्स… शर्मा जी… ये तो बहुत बड़ा है…” माँ की आवाज़ में दर्द और मस्ती दोनों थे। सर का लंड धीरे-धीरे माँ की चूत में समाता गया। माँ की चूत टाइट थी, शायद पापा का लंड छोटा होने की वजह से। “उफ्फ… रीता जी… तुम्हारी चूत तो जन्नत है…” सर ने कहा। माँ ने अब तेजी से ऊपर-नीचे होना शुरू किया। कमरे में चुदाई की आवाज़ें गूँजने लगीं, “थप… थप… थप…” माँ की चूचियाँ उछल रही थीं, और सर उन्हें पकड़कर मसल रहे थे।

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“आह… शर्मा जी… और जोर से… चोदो मुझे…” माँ चीख रही थीं। सर ने माँ को अब डॉगी स्टाइल में कर दिया। वो उनके पीछे आए और एक ही झटके में अपना लंड माँ की चूत में पेल दिया। “हाय… मर गई…” माँ की चीख निकली, लेकिन जल्द ही वो मस्ती में डूब गईं। सर ने उनकी गांड पर हल्के से चपत लगाई और तेज-तेज धक्के मारने लगे। “थप… थप… थप…” चुदाई की आवाज़ के साथ माँ की सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, “आह… उफ्फ… हाँ… और जोर से…” माँ की चूत अब रस से लबालब थी, और सर का लंड उसमें आसानी से अंदर-बाहर हो रहा था।

करीब 20 मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद सर ने माँ की चूत में ही अपना वीर्य छोड़ दिया। माँ की साँसें तेज थीं, और वो बिस्तर पर निढाल हो गईं। लेकिन उनकी जवानी की भूख अभी खत्म नहीं हुई थी। कुछ देर बाद माँ ने फिर से सर के लंड को अपने मुँह में लिया और उसे चूस-चूसकर खड़ा कर दिया। “रीता जी, तुम तो आग हो…” सर ने कहा। इस बार माँ ने सर को नीचे लिटाया और उनके ऊपर सवार हो गईं। वो अपनी चूत को सर के लंड पर रगड़ने लगीं, और फिर उसे अंदर ले लिया। “आह… स्स्स… शर्मा जी… ये लंड तो मेरी जान ले लेगा…” माँ ने मस्ती में कहा। इस बार चुदाई और लंबी चली, और माँ ने दो बार और अपनी चूत की आग बुझवाई।

करीब डेढ़ घंटे बाद दोनों थककर एक-दूसरे से लिपट गए। कमरे में चुदाई की मादक आवाज़ें अब शांत हो चुकी थीं। माँ ने अपनी साड़ी और बाकी कपड़े पहने, और बाहर आईं। उनकी चाल में एक अलग सी मस्ती थी, जैसे उनकी जवानी को कोई नया रंग मिल गया हो। सर ने मुझसे कहा, “मनीष, आज की पढ़ाई खत्म। कल फिर आना।” मैं मन ही मन मुस्कुराया, सोच रहा था कि सर को शायद कहना था, “आज की चुदाई खत्म, कल अपनी माँ को फिर लेकर आना।”

क्या आपको लगता है कि माँ ने मेरे लिए ऐसा क्यों किया? क्या ये सिर्फ मेरी पढ़ाई के लिए था, या उनकी अपनी भूख भी थी? अपनी राय कमेंट में बताइए।

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