मेरी प्यासी माँ को अपना लण्ड दे दिया

मेरा नाम विशाल है। मैं 21 साल का हूँ और कॉलेज में पढ़ाई करता हूँ। मेरे पापा दुबई में एक कंपनी में काम करते हैं और साल-दो साल में ही घर आते हैं। ज़्यादातर समय घर में बस मैं और मेरी माँ, सुप्रिया, होते हैं।

हमारा एक पुराना घर है जिसमें मेरे पापा और माँ रहते हैं, जबकि मैं नए फ्लैट में अकेला रहता हूँ।

एक दिन मैं अपने कमरे में बैठा था, काफी बेचैनी महसूस कर रहा था। इस उम्र में, जब घर में कोई न हो, तो अक्सर मैं अपने लंड को मुठ मारकर शांत कर लेता हूँ। उस दिन भी कुछ ऐसा ही कर रहा था। मैं पूरी तरह नग्न था, और आँखें बंद कर अपने ख्यालों में खोया हुआ था।

अचानक किसी की आवाज़ सुनाई दी—”विशाल, ये क्या कर रहे हो?”

आँखें खोलते ही देखा कि मेरी माँ सामने खड़ी हैं। मैं एकदम से घबरा गया और जल्दी से एक तौलिया लपेट लिया। मेरे लंड की हालत देख कर भी माँ के चेहरे पर कोई गुस्सा नहीं था, लेकिन उन्होंने थोड़ा सख्त लहजे में पूछा, “ये क्या कर रहे थे?”

मैंने शर्मिंदा होकर सिर झुका लिया। “सॉरी मॉम, अब ऐसा गलती नहीं करूंगा,” मैंने बमुश्किल कहा।

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माँ ने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा ठीक है… ये लो, पुराने घर में रिपेयरिंग का काम चल रहा है, कुछ सामान की ज़रूरत है। ये लिस्ट है, जाकर ले आओ।”

मैं फौरन कपड़े पहने और बाजार चला गया।

लेकिन जब मैं बाइक चला रहा था, दिमाग में बस वही लम्हा घूम रहा था। माँ की आँखों में कुछ और ही था—न गुस्सा, न शर्म, बल्कि एक अलग सी चमक। उनके चेहरे के भाव मेरे लंड को और खड़ा कर रहे थे।

मुझे नहीं पता था कि ये मेरा भ्रम है या सच में माँ कुछ सोच रही थीं।

जब मैं सामान लेकर लौटा तो माँ सोफे पर लेटी हुई थीं। उनका पल्लू ढीला था और उनकी साड़ी उनकी जांघों तक उठी हुई थी। उनके ब्लाउज का एक बटन खुला हुआ था, जिससे उनके मम्मे का थोड़ा सा हिस्सा दिख रहा था।

मेरी नजरें उसपर टिकी रहीं। मेरा लंड फिर से खड़ा होने लगा।

मैंने खुद को संभालने की कोशिश की और कहा, “मॉम, सामान ले आया हूँ।”

माँ ने अंगड़ाई ली और पल्लू वैसे ही पड़ा रहने दिया।

रात के समय माँ ने कहा कि वो पुराने घर नहीं जा रही हैं क्योंकि वहाँ मरम्मत का काम चल रहा है। वो मेरे फ्लैट में रुकेंगी।

रात के दस बजे, माँ मेरे फ्लैट पहुंचीं, लेकिन पूरी तरह भीगी हुई थीं। साड़ी और ब्लाउज उनके शरीर से चिपक गए थे, जिससे उनकी सेक्सी काया पूरी तरह उभर कर सामने आ रही थी।

दरवाज़ा खोलते ही मैंने कहा, “मॉम, आप भीग गईं?”

माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, “हां, रास्ते में बारिश हो गई। तुम्हारे पास कुछ कपड़े हैं तो दो, मैं चेंज कर लूं।”

मैंने थोड़ा झिझकते हुए कहा, “मॉम, मैंने अभी सारे कपड़े धो दिए हैं। बस एक बनियान और तौलिया है।”

माँ ने बिना कुछ कहे साड़ी खोल दी और मेरे सामने ही ब्लाउज भी उतार दिया। अब वो सिर्फ ब्रा और पेटीकोट में थीं। मैं अपनी नज़रें हटा नहीं पा रहा था।

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इसके बाद माँ ने पेटीकोट भी खोल दिया, अब वो बस ब्रा और पैंटी में थीं।

मेरा लंड एक बार फिर खड़ा हो गया।

माँ ने तौलिया लपेट लिया और झुक कर अपनी पैंटी भी निकाल दी। इसके बाद उन्होंने ब्रा भी उतार दी। अब वो केवल तौलिया लपेटे खड़ी थीं, और उनके मम्मे पूरी तरह से मेरी आँखों के सामने थे।

माँ के नंगे मम्मे मेरे सामने थे। तौलिए की पकड़ ढीली थी, लेकिन उन्होंने इसे संभाले रखा। मैं बस देखता ही रह गया।

माँ ने मेरी बनियान पहनी, जो उनके बड़े मम्मों के लिए काफी छोटी थी। उनके मम्मों का आधा हिस्सा बाहर झांक रहा था।

मुझे घूरते हुए उन्होंने हल्के से मुस्कुरा कर कहा, “क्या देख रहे हो विशाल? कभी औरत को नहीं देखा क्या?”

मैंने झेंपते हुए जवाब दिया, “नहीं मॉम… बस, आपने इतने करीब से कभी देखा नहीं है। आप बहुत खूबसूरत लग रही हैं।”

माँ ने हल्का सा हंसते हुए कहा, “चुप कर, अब तारीफ करना बंद कर और खाना खा लो।”

हम दोनों टेबल के पास जाकर बैठे। माँ का हर अंदाज़, हर हरकत मेरे लंड को और खड़ा कर रही थी। वो जब भी झुकतीं, उनकी बनियान से उनके मम्मों की दरार और गहरी नजर आती। मैंने कई बार खुद को संभालने की कोशिश की, लेकिन नज़र बार-बार उनके मम्मों पर ही टिक जाती थी।

खाने के बाद माँ ने कहा, “विशाल, सोना कहाँ है?”

मैंने जवाब दिया, “मॉम, मेरा बेड ही है, यहीं सो जाइए।”

माँ ने हाँ में सिर हिलाया और लेट गईं। मैं भी उनके बगल में लेट गया। कमरे में हल्की रोशनी थी, जिससे माँ का नंगा शरीर हल्का-हल्का चमक रहा था।

जैसे ही मैं लेटा, माँ का तौलिया थोड़ा खिसक गया और उनकी चूत मेरी आंखों के सामने आ गई।

माँ ने शायद ध्यान नहीं दिया या फिर जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया। मैं अपनी जगह पर जम कर लेटा रहा, लेकिन मेरा लंड तने हुए लोहा बन चुका था।

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थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया कि माँ सो रही हैं, लेकिन उनका तौलिया धीरे-धीरे और खुलता जा रहा था।

मैंने हिम्मत करके हल्के से हाथ उनकी चूची पर रखा।
माँ ने धीरे से करवट बदली, लेकिन मना नहीं किया।

मैंने हाथ से उनके मम्मे को दबाना शुरू किया। उनके मम्मे नरम और बड़े थे। जैसे ही मैंने दबाया, माँ ने आंखें खोलीं और हल्की आवाज़ में बोलीं, “विशाल… ये क्या कर रहे हो?”

मैंने कांपते हुए कहा, “मॉम… मुझे रोकना मत। मैं अब खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ।”

माँ मुस्कुराईं और बोलीं, “क्या तेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है जिससे तू ये सब कर सके?”

मैंने धीरे से उनके मम्मे को दबाते हुए कहा, “मॉम, आपकी जैसी कोई नहीं है।”

माँ ने मेरी बात सुनकर आह भरी और हल्के से मेरे बालों में हाथ फिराया। “अगर मैं रोकती भी, तो तुम मानते नहीं।”

अब माँ की सांसें तेज हो रही थीं। मैं धीरे-धीरे उनके मम्मे चूसने लगा। माँ की चूची मेरे मुंह में थी और मैं उसे बच्चे की तरह चूस रहा था। माँ के हाथ मेरे सिर पर थे।

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फिर मैंने उनके पेट तक किस किया और उनके पैरों के बीच पहुंच गया। माँ की चूत गीली थी।

“विशाल… अब और मत रोको,” माँ ने कहा।

मैंने अपना लंड निकाला और धीरे-धीरे माँ की चूत पर रखा। उन्होंने खुद अपने हाथों से मेरे लंड को पकड़कर अपनी चूत के अंदर डालने में मदद की।

माँ के अंदर घुसते ही उन्होंने तेज़ सांस ली।
“आह… विशाल… तेरा लंड बहुत बड़ा है बेटा…”

मैं धीरे-धीरे धक्के मारने लगा।
माँ की चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड बुरी तरह फंसा हुआ था।

“आह… बेटा… धीरे कर… आह…”

मैंने माँ के मम्मे पकड़ कर जोर-जोर से धक्के मारने शुरू किए।
माँ की आहें कमरे में गूंज रही थीं।

“आह… बेटा… हां… ऐसे ही… और जोर से चोद… आह… मैं पागल हो रही हूँ।”

माँ की चूत अब पूरी तरह मेरे लंड के हिसाब से ढल चुकी थी। मैं और तेज़ी से चोदने लगा।

माँ की आवाज़ें अब और तेज हो रही थीं।
“विशाल… आह… आज अपनी माँ को पूरी तरह से चोद दे।”

मैंने माँ को और तेज़ चोदा और कुछ ही देर में माँ ने चिल्लाते हुए झड़ना शुरू कर दिया।

रातभर चुदाई के बाद माँ मेरे सीने पर लेटी हुई थीं। उनकी चूत मेरे लंड के रस से भरी हुई थी।

माँ ने हल्के से कहा, “अब जब तक पापा घर नहीं आते, तू ही मेरी चुदाई करेगा।”

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “ठीक है माँ… अब कोई और नहीं, सिर्फ मैं।”

सुबह की हल्की धूप खिड़की से अंदर आ रही थी। मैं अभी भी बिस्तर पर लेटा था, और माँ मेरे सीने पर सिर रखकर सो रही थीं। उनकी सांसें धीरे-धीरे चल रही थीं, और उनका गर्म नग्न शरीर मेरे लंड को फिर से खड़ा कर रहा था।

माँ के मम्मे मेरे सीने से चिपके हुए थे, और उनके नंगे बदन की गर्माहट मुझे मदहोश कर रही थी। मेरी नजरें उनके खुले तौलिये के नीचे फिसलती गईं, जहाँ से उनकी चूत के बाल हल्के-हल्के दिख रहे थे।

मैंने हल्के हाथ से उनकी चूची पर हाथ फेरा।
माँ ने आंखें खोले बिना करवट ली और मुझसे और करीब आ गईं। उनका नितंब मेरे लंड से सटा हुआ था। मेरे लंड ने माँ की गांड के दरारों में खुद को सेट कर लिया।

माँ ने धीरे से अपनी पीठ मुझसे सटा ली और आंखें बंद किए ही हल्के से कहा, “विशाल… क्या कर रहे हो?”

मैंने उनके कान में फुसफुसाते हुए कहा, “मॉम, फिर से चुदाई का मन कर रहा है।”

माँ मुस्कुराईं और मेरी जांघ पर हाथ रखकर धीरे से कहा, “रात भर तो चोदा था… अभी भी मन नहीं भरा?”

“नहीं मॉम… जब तक तुम मेरे पास हो, मेरा लंड तुम्हारी चूत के बिना नहीं रह सकता,” मैंने हल्के से उनके मम्मे दबाते हुए कहा।

माँ ने मेरी तरफ मुंह कर लिया और उनकी आंखों में वही चाहत थी जो मैंने रात को देखी थी। उन्होंने अपना तौलिया पूरी तरह से गिरा दिया और मेरी छाती पर चढ़ गईं।

“आज मैं तुझे खुद चोदूंगी, विशाल,” माँ ने कहा।

उन्होंने मेरा लंड हाथ में लिया और धीरे-धीरे अपनी चूत पर रखा। उनके हाथ कांप रहे थे, लेकिन उनकी आंखों में बस प्यास थी।

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माँ ने मेरी आंखों में देखा और धीरे-धीरे अपने नितंब को नीचे गिराना शुरू किया। मेरा लंड उनकी गर्म चूत के अंदर समा गया।

“आह… मॉम…”

माँ ने धीरे-धीरे धक्के मारना शुरू किया। उनके मम्मे हवा में उछल रहे थे, और मैं उनके मम्मों को पकड़कर जोर से मसलने लगा।

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“आह… बेटा… तेरा लंड कितना बड़ा है…” माँ ने सिर पीछे झुकाकर कहा।

मैंने उनके नितंबों को पकड़कर उन्हें और तेजी से नीचे धकेला।

माँ की चूत मेरे लंड के चारों तरफ कसकर जकड़ रही थी।

माँ की चूत में मेरा लंड पूरी तरह से समा चुका था। अब वो अपनी गति से ऊपर-नीचे हो रही थीं।

“विशाल… आह… बहुत मजा आ रहा है… तू सच में मर्द बन गया है,” माँ ने तेज़ी से हिलते हुए कहा।

मैंने अपनी पकड़ और मजबूत की और माँ की चूत को जोर-जोर से चोदने लगा।

“आह… बेटा… और तेज़… आह…” माँ अब पूरी तरह से बेकाबू हो चुकी थीं।

हम दोनों के शरीर पसीने से भीग चुके थे। मेरी चुदाई की रफ्तार अब चरम पर थी। माँ के मम्मे मेरे मुंह में थे और मैं उन्हें चूसते हुए उनकी चूत को धक्के मारता जा रहा था।

माँ ने अचानक तेज़ी से कराहना शुरू किया, “विशाल… मैं झड़ने वाली हूँ… आह…”

मैंने अपनी रफ्तार और बढ़ा दी और दोनों ने एक साथ चिल्लाते हुए झड़ना शुरू कर दिया।

उस दिन के बाद माँ और मैं जब भी अकेले होते, एक-दूसरे को चोदने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। माँ अब हर रात मेरे फ्लैट पर रुकने लगी थीं, और हर रात हमारी चुदाई होती थी।

माँ की चूत अब मेरे लंड की आदी हो चुकी थी। हम दोनों ने एक-दूसरे की हर प्यास को पूरा किया।

एक रात माँ मेरे ऊपर बैठी हुई थीं और मुझे चोद रही थीं। कमरे में सिर्फ हमारे शरीरों के टकराने की आवाज़ें गूंज रही थीं।

माँ ने मेरी आंखों में देखा और कहा, “विशाल, अब तुझे मेरे बिना नहीं रहना चाहिए। जब तक तेरे पापा नहीं आते, तू ही मुझे हर रात चोदना।”

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मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “मॉम, अब तो मैं पापा के आने के बाद भी तुम्हें चोदूंगा।”

माँ हंसते हुए मेरे सीने पर झुक गईं और कहा, “तू मेरा बेटा है… लेकिन अब तू मेरा मर्द भी है।”

उस रात हमने फिर से चार बार चुदाई की।

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