मेरी प्यारी रागिनी

Teacher ki biwi दोस्तों, ये कहानी बिल्कुल अजीबोगरीब तरीके से शुरू हुई थी। इसके सारे किरदार असली हैं, बस नाम थोड़े बदल दिए गए हैं ताकि कोई पहचान न सके। मेरी पत्नी एक स्कूल टीचर है, और मैं खुद एक इंजीनियर हूं। मेरी उम्र चालीस साल के आसपास है। हमारा एक ही बेटा है, नाम आकाश। दिखने में मैं भी ज्यादा खराब नहीं हूं – औसत कदकाठी, साफ-सुथरा चेहरा, और काम की वजह से थोड़ा फिट रहता हूं। पत्नी हर सुबह ठीक छह बजे स्कूल के लिए निकल जाती है, तो मैं ही आकाश को स्कूल बस में बिठाकर ऑफिस जाता हूं। वो एरिया जहां हम रहते हैं, वहां के सारे बच्चे उसी बस से जाते हैं। उसी बीच एक औरत भी आती है अपने बेटे को छोड़ने। उसके बेटे की क्लास आकाश के साथ ही है, तो धीरे-धीरे हमारी उनसे बातचीत शुरू हो गई।

अब उस महिला के बारे में थोड़ा बताता हूं। उनका नाम मिसेज रागिनी कामथ है। उम्र लगभग बत्तीस-तैंतीस साल, कद पांच फुट का, गोल-मटोल बदन, थोड़ा गदराया हुआ लेकिन आकर्षक। लंबे काले बाल, गोल चेहरा, गेहुंआ रंग – कुल मिलाकर वो मुझे हमेशा से बहुत सेक्सी लगती थी। उनकी आंखों में एक नरमी थी, और चलने का अंदाज ऐसा कि दूर से ही नजर पड़े। रागिनी के पति दुबई में नौकरी करते हैं, तो वो अपने दस साल के बेटे राहुल के साथ हमारी ही कॉलोनी में रहती थीं। वजह ये कि उनकी नौकरी भी इसी एरिया में थी। वैसे तो वो मूल रूप से किसी दूसरे शहर की रहने वाली हैं, लेकिन यहां शिफ्ट हो गईं।

मेरा आकाश और उनका राहुल दोनों एक ही क्लास में पढ़ते थे। हमारी मुलाकातें सुबह बस स्टॉप पर ही होतीं, जब हम दोनों अपने बेटों को बस में चढ़ाते। रागिनी का घर हमारे घर से पैदल दस मिनट की दूरी पर था। हमारा मिलना-जुलना बस उतने तक ही सीमित रहता – न ज्यादा, न कम। मेरी पत्नी से उनकी कभी मुलाकात नहीं हुई, क्योंकि पत्नी कभी बेटे को छोड़ने नहीं आती थी। वो अपना रूटीन स्ट्रिक्ट रखती है।

फिर आया हाफ-ईयरली एग्जाम का रिजल्ट। राहुल के मार्क्स देखकर रागिनी बहुत परेशान हो गईं। आकाश ने अच्छे नंबर लाए थे, क्योंकि मैं खुद घर पर उसे पढ़ाता हूं। शाम को वक्त निकालकर होमवर्क चेक करता, कॉन्सेप्ट्स क्लियर करता। रागिनी ने बातों-बातों में मुझसे कहा कि मैं किसी अच्छे टीचर का नाम बताऊं राहुल के लिए। मैंने सोचा, क्यों न खुद ही मदद कर लूं। बोला, इस रविवार को मैं उनके घर आकर राहुल से बात कर लूंगा, देखूंगा कि प्रॉब्लम क्या है। आखिर मैं तो आकाश को खुद पढ़ाता ही हूं, और शाम को फ्री भी रहता हूं।

रविवार को मैं पत्नी और आकाश को लेकर शाम को रागिनी के घर पहुंचा। उन्होंने बहुत गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया – चाय-नाश्ता, बातें। पत्नी और रागिनी पहली बार मिलीं, लेकिन जल्दी ही दोनों खुल गईं। हंसी-मजाक होने लगा। मैंने राहुल से बात की, होमवर्क देखा। पाया कि बच्चे को बस थोड़ी गाइडेंस की जरूरत है – कॉन्सेप्ट्स क्लियर न होने से कन्फ्यूजन था। वो स्मार्ट था, बस फोकस की कमी। पत्नी ने सुझाव दिया कि क्यों न मैं शाम को एक घंटा राहुल को पढ़ा दूं। मैं ऑफिस से छह बजे लौटता हूं, फिर सात से आकाश को पढ़ाता। ज्यादा उत्साहित तो नहीं था, लेकिन रागिनी ने कहा कि वो रोजाना उसे पढ़ाती हैं, लेकिन शनिवार-रविवार को अगर मैं थोड़ा टाइम निकाल लूं, खासकर मैथ्स और साइंस में, तो बहुत मदद हो जाएगी। मैं मान गया। ये अरेंजमेंट अप्रैल तक का था, यानी सालाना एग्जाम तक। बात पक्की होते ही हम घर लौट आए।

अगले शनिवार शाम छह बजे मैं रागिनी के घर राहुल को पढ़ाने पहुंचा। उन्होंने मेरे लिए चाय और फ्रेश नाश्ता रखा – सैंडविच और गरमागरम चाय। पीने के बाद तरोताजा महसूस हुआ। राहुल तेज दिमाग का था, ग्रहण शक्ति अच्छी। दो घंटे पढ़ाया, होमवर्क दिया, और रविवार को फिर आने को कहा।

ये सिलसिला चलता रहा – हर शनिवार-रविवार। पढ़ाते-पढ़ाते जनवरी-फरवरी निकल गई। बच्चे की प्रोग्रेस अच्छी हो रही थी, रागिनी खुश रहने लगीं। कभी-कभी वो थैंक्स कहतीं, कभी छोटा-मोटा गिफ्ट दे देतीं।

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मार्च का महीना आया। एक शनिवार शाम को मैं राहुल को पढ़ाने पहुंचा। उस दिन पत्नी आकाश को लेकर अपने भाई के घर दो दिनों के लिए चली गई थी – फैमिली गेट-टुगेदर। रागिनी ने मुझे ड्रॉइंग रूम में बिठाया, पानी लाने अंदर चली गईं। पांच मिनट बाद लौटीं, ग्लास और बिस्किट लेकर। मैंने पूछा, राहुल कहां है? तो पता चला कि वो दो दिनों के लिए अपनी मौसी के पास शहर चला गया है। आज मौसी के बेटे का बर्थडे था, कल पिकनिक प्लान था।

मैं खड़ा हो गया, चलने को तैयार। रागिनी ने कॉफी पीने को कहा, तो रुक गया। उस दिन उन्होंने गुलाबी गाउन पहना था – हल्का फैब्रिक, बॉडी को लूजली कवर करता हुआ। पांच फुट की हाइट में उनका पूरा बदन गदराया हुआ लग रहा था, जैसे हर कर्व पर फोकस हो। बाल ढीले जूड़े में बंधे, कंधे पर लहराते। आज रागिनी कुछ ज्यादा ही आकर्षक लग रही थीं। शायद पहली बार अकेले में देख रहा था उन्हें, और घर पर बीवी भी नहीं थी। उनकी सेक्स अपील तो पहले से ही मुझे दीवाना बनाती थी, लेकिन आज का गाउन उनके गोल-गदराए बदन को इस तरह हाईलाइट कर रहा था कि मन में गंदे ख्याल घूमने लगे। वो पीछे मुड़कर किचन की तरफ गईं तो नितंबों की लचक, गोलाई – उफ, जैसे न्योता दे रही हो। फिर वो मुस्कुराहट, उभरे हुए स्तन जो गाउन के नीचे से झांक रहे थे। मैं शादीशुदा था, एक बेटे का बाप, लेकिन आज वो पुरुष जाग गया जो कभी शांत नहीं होता। वो जो हमेशा गरम चूत की तलाश में रहता है। मन में रागिनी को लेकर कामुक विचार उमड़ने लगे – उसे नंगा करके छूना, चूमना। मेरा लंड कठोर हो गया, मैं उसे दबाते हुए बैठा रहा। अंदर-बाहर खींचतान चल रही थी, लेकिन वो शैतान सुनने को तैयार नहीं।

रागिनी की सेक्स अपील ने जैसे जादू कर दिया। अंदर का शैतान जाग उठा, लेकिन मैं बलात्कार जैसा कुछ नहीं करना चाहता था। फैसला किया कि उन्हें मानसिक रूप से तैयार करूंगा, ताकि वो अपनी मर्जी से मेरे साथ चुदाई का मजा लें। जबरदस्ती का रिस्क नहीं लेना था – बीवी को पता चल गया तो घर टूट सकता था, सोसाइटी में बदनामी। हां, रागिनी को छोड़ना चाहता था, उसके गदराए बदन को नंगा करके मसलना, चाटना, चूमना। लेकिन सिर्फ उनकी रजामंदी से। मकसद सिर्फ मजा लेना था, उन्हें पूरी तरह संतुष्ट करना। कोई लंबी रिलेशनशिप नहीं, बस रागिनी जैसी रसीली औरत के साथ गरमागरम चुदाई का असली स्वाद चखना। उनकी आहें सुनना, कराहें सुनना, मेरा मूसल जैसा लंड उनकी फूली हुई चूत में घुसाकर जोरदार ठुकाई मारना – ये सब कल्पना में घूम रहा था, और वो सच होने वाली थी।

बातों-बातों में मैंने बता दिया कि आज घर पर अकेला हूं। रागिनी डिनर करके जाने को बोलीं। थोड़ी ना-नुकुर की, लेकिन रुक गया। असल में मैं भी ज्यादा से ज्यादा वक्त उनके पास बिताना चाहता था, उनके बदन को करीब से देखना, हुस्न का मजा लेना। पिछले दो महीनों में हम काफी खुल गए थे। कभी मजाक हो जाता, मैं उनकी ड्रेस या मेकअप पर कॉम्प्लिमेंट दे देता। वो हंसकर ले लेतीं।

उस शाम उसी का फायदा उठाया। किचन में उनके पीछे जाकर खड़ा हो गया। वो डिनर बना रही थीं – सब्जी काट रही, मसाले डाल रही। बात शुरू की। एक नॉन-वेज जोक सुनाया, जोर से हंस पड़ीं। थोड़ी देर बाद दूसरा जोक। फिर हंसी, और बोलीं, “आप तो बहुत मजाकिया आदमी हैं।” मैं पीछे से उनके भारी नितंबों को देख रहा था – गदराई गांड, गाउन के नीचे लचक रही। बातचीत को धीरे से सेक्स की तरफ मोड़ा। पूछा, सेक्स एजुकेशन पर उनके क्या विचार हैं? प्री-मैरिटल सेक्स, फ्री सेक्स सोसाइटी जैसी चीजों पर। मकसद उनका टेंपरामेंट जानना था। वो फ्रैंक थीं, बोलीं कि पति दो साल से दुबई में हैं, तो जरूरत तो महसूस होती है, लेकिन खुलकर नहीं कहा। बस इशारा किया कि अकेलापन कठिन है।

रात नौ बज गए। डिनर हो गया – सिंपल घर का खाना, लेकिन स्वादिष्ट। बातें फिल्मों पर थीं, फिर जोक्स की बौछार। डिनर के बाद घर लौटने को तैयार हुआ। मन में उम्मीद थी कि शायद आज रात कुछ हो जाए, लेकिन कुछ संकेत न दिखा। बाहर निकला, घर आ गया।

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रास्ते भर सोचता रहा कि रागिनी को कैसे चोदा जाए। अगला दिन संडे था, घर पर अकेला। फैसला किया कि बहाना बनाकर जाऊंगा, ओपन अप्रोच लूंगा, रिस्क लूंगा। तभी याद आया – छोटा बैग घर पर भूल आया। किस्मत ने साथ दिया। बैग में एक ब्लू फिल्म की सीडी थी, जो दोस्त से उधार ली थी। अकेले में देखने का प्लान था। दिमाग घूम गया, लेकिन रात ग्यारह बजे वापस जाना ठीक न लगा। वैसे भी गरम था – आंखों में रागिनी का बदन घूम रहा। कपड़े उतारे, नंगा हो गया। लंड खड़ा, रागिनी के नाम पर प्री-कम टपक रहा। आंखें बंद कीं, कल्पना में उसे नंगा करके मुठ मारने लगा। थोड़ी देर में झड़ गया, लेकिन बिना कपड़ों के ही सो गया। लंड रात भर सोया नहीं, बार-बार खड़ा हो जाता।

सुबह तैयार होकर ग्यारह बजे रागिनी के घर पहुंचा। मन में दो प्लान – सीडी लेना, और सीधे सेक्स के लिए मनाना। रिस्क लेने को तैयार, लेकिन किसी भी हाल में चोदना था।

दरवाजा खोला रागिनी ने, मुस्कुराते हुए अंदर ले आईं। क्रीम कलर की साड़ी, ब्लाउज। बाल अभी शैंपू किए थे, कंधों पर बिखरे। ब्लाउज के पीछे से सफेद ब्रा की स्ट्रैप्स झांक रही, सेक्सी लग रही। उरोज उभरे हुए, बड़े-गोले, साड़ी के ब्लाउज में कसे हुए।

“कहीं जा रही हो?” मैंने पूछा।

“नहीं, जानती थी तुम आओगे,” मुस्कुराईं। “कल बैग और सीडी छूट गई थी।”

बेबाक बोलीं। मैंने देखा उन्हें, फिर कहा, “हां, जल्दी में भूल गया। सीडी…तुम्हें कैसे पता कि उसमें सीडी है?”

मुस्कुराईं, कुछ न बोलीं। मुझे भनक हो गई। पासा फेंका, “कैसी लगी सीडी?”

नजरें झुकाईं, मुस्कुराईं। समझ गया – तीर सही लग गया। रागिनी ने रात को देख ली थी, गरम हो गई थीं। टाइम वेस्ट न किया, गरम लोहे पर हथौड़ा मारा।

आगे बढ़ा, बाहों में भर लिया। रसीले होंठों पर, गोल गालों पर चूम्बन की बौछार। चेहरा गीला हो गया। रागिनी का बदन अंगारे सा जल रहा था, वो भी चिपट गईं। सांसें गरम, तेज। पूरा बदन मेरी बाहों में कसमस रहा, आंखें बंद। चूम्बन गर्दन पर, कण्ठ पर, कान के नीचे, फिर होंठ – बुरी तरह चूसे। रागिनी के अंदर की प्यासी औरत जाग उठी। बिना विरोध के बदन सौंप दिया, तेज सांसें लेने लगीं। रास्ता साफ हो गया। मजबूत बाहों में उठाया, बेडरूम की तरफ चला। बेड पर लिटाया, फिर उनके जलते बदन के हर अंग को चूमने लगा। मेरे धधकते होंठ और गीली जीभ उनके सुलगते बदन में आग डाल रहे थे। मैं उनके ऊपर चढ़ गया। रागिनी के अंदर की प्यासी औरत मेरे पुरुष के सामने सरेंडर कर चुकी थी। आंखें बंद, सिर्फ तेज सांसें। अब वो भी जवाब देने लगीं – मेरी जीभ उनके मुंह में घुमाई, तो उन्होंने अपनी गरम जीभ मेरे मुंह में डाल दी। उफ्फ…चूसने लगा। तेज सांसों से उनकी भरी हुई छाती ऊपर-नीचे हो रही, मेरे उबलते लावे में और उबाल ला रही।

मैंने पैंट, शर्ट, बनियन उतार दिया। आंखें खोलीं, मेरी बालों भरी छाती देखी। फिर साड़ी का आंचल हटाया सीने से, ब्लाउज के ऊपर से उभारों को सहलाया। अभी भी चूम्बन जारी – मुंह से सिसकारियां निकलीं, “आह्ह…इश्श…स्स्स…स्स्स…” साड़ी निकालने में मदद की। साड़ी उतारी, पेटीकोट और ब्लाउज में लेटी रहीं। नहाई हुई, भीगे बाल – बेहद सेक्सी। ब्लाउज के बटन चुचियों को सहलाते हुए खोले, ब्लाउज निकाला। ब्रा के कप्स में बड़े दूधिया स्तन जैसे सफेद कप में आइसक्रीम भरे हों। ब्रा के बॉर्डर पर जीभ फेरी, उभारों को चाटा। वो पैर सिकोड़ने लगीं, फैलाने लगीं। चेहरे पर नशे का नजारा – आंखें गुलाबी, आवाज नशीली। मेरा सिर अपनी चुचियों पर दबाने लगीं। ब्रा की कैद से आजाद किया, पागलों की तरह गोल चुचियों को चूमा। घूंघरू कड़े, गुलाबी। दो साल से कोई मर्द न छुआ था। एक-एक निप्पल मुंह में लेकर चूसा। रागिनी जोर-जोर से सिसकारियां मारने लगीं, “आह्ह…ऑफ्फ…हुश्श…स्स्स…उफ्फ…” लिपट गईं। सारी शर्म छोड़ दीं, अब सिर्फ औरत थीं, मैं मर्द – जो प्रकृति ने बनाया है। मैं भूल गया था खुद को, सिर्फ चोदने वाला पुरुष था।

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उन नायाब खरबूजों का रस चूसा, करीब पांच मिनट। फिर रसीले होंठों की आग फिर पी। जीभ मुंह में, वो लिपटीं, आंखें बंद, सिसकारियां, “उफ्फ…ओह्ह…हुश्श…श्श…स्स्स…” पूरी गरमी से साथ दे रही। पांच मिनट बाद पेट के खुले हिस्से को सहलाया, गुदगुदी हुई, मचलने लगीं। वहां चूमना शुरू, जीभ की नोक से नाभि में घुमाई। फिर पेटीकोट के ऊपर से जांघों पर, कूल्हों पर हाथ फेरा। लगा पैंटी नहीं पहनी। सोचा शायद स्ट्रिंग वाली। नाड़ा खोला, नितंब उठाकर पेटीकोट गांड के नीचे से निकाल दिया। लंड टन-टनाने लगा – सच में पैंटी नहीं। रागिनी नंगी लेटी, चुदाई का इंतजार। चूत पर बाल, बीच में लाइन – कुंवारी सी लग रही। झांटों में उंगली घुमाई, छेद पर लगाई। उफ्फ, कितनी गरम, गीली। पानी से झांटें भींगीं। हाथ रखते ही, “आह्ह्ह…उफ्फ्फ…ईईईई…” सिसकारियां। उंगली अंदर डाली, “स्स्स…स्स्स…उफ्फ…” गरमी भट्टी सी। दो साल से न चुदाई।

ज्यादा इंतजार न किया। जांघें फैलाईं, चूत पर होंठ रखे। तड़पीं, “आह्ह…उईई…मां…आह्ह…” दाने को जीभ से सहलाया, अंदर डाली। मादक सुगंध, पानी नमकीन लेकिन टेस्टी। चार-पांच मिनट चाटा, कमर उछालकर चूत मुंह पर रगड़ रही, पानी बहा रही। फिर बोलीं, “प्लीज…अब सहन नहीं हो रहा…” पहली बार बोलीं। मैं भी रुक न सका। पैर ऊपर उठाए, फैलाए, गांड के नीचे दो तकिए। मोटी गांड के नीचे तकिया, चूत ऊपर उठी, खुली। छेद छोटा, गुलाबी। फनफनाता लंड चूत पर रखा, घिसा। दाने पर दबाया, “ऑफ्फ…ऑफ्फ…अब मत तड़पाओ…” छेद पर सेट किया, दबाया। सुपाड़ा अंदर फंसा। “आह्ह्ह…उफ्फ…” चेहरे पर दर्द, लेकिन चुप। दूसरा धक्का जोर से, आधा लंड अंदर। रुका, पीछे खींचा, तीसरा धक्का – फक्…की आवाज के साथ पूरा अंदर। “आह्ह्ह…मर गई…ईईईईई…” पूछा, दर्द हुआ? “तुम्हारा कितना मोटा…इतना लंबा…दर्द तो होगा ही…निकाल लूं?” चिढ़ाया। “नहीं…ईईई…” पूरा लंड गहराई में। गरम भट्टी सी चूत। जोर से सिसकारियां, लंड उतार लिया। “प्लीज…जोर से…और जोर से…” गांड उठाकर ताल मिलाई। लंड गहराई तक।

थोड़ी देर बाद जबरदस्त धक्के। “आह्ह्ह…उफ्फ…और जोर से…आह्ह…हाय…हाय…” बदन कड़क, जकड़ लिया, चूत गीली, लंड कसा। झड़ गईं। शांत पड़ीं। प्यास बुझी। पसीने में नहाईं। मैं भी शांत, जोरदार ठुकाई – पत्नी को भी इतना न चोदा। लंड गहराई में, लावा डाला। पिचकारी का फोर्स। शांति मिली। थोड़ी देर लिपटे रहे।

रागिनी सो गईं। चुदाई से बुर की गरमी उतरी। वीर्य ने दीवारें नेहलाईं। उठा तो चूत से क्रीम बह रहा। पिछले पांच दिन बीवी की माहवारी, फिर भाई के घर – माल जमा। कल रात झाड़ा, लेकिन फिर भर गया। लंड निकाला, पक् की आवाज। चुदी चूत से न आनी चाहिए, लेकिन खून की बूंदें चादर पर, लंड पर। फिर चूमा। थोड़ी देर बाद उठीं, बाथरूम गईं – कदम लड़खड़ा रहे। सहारा दिया। साफ किया, फिर मैं। पूछा, “रागिनी…क्या ये गलत हुआ?” चुप। फिर करीब लिया। “प्लीज…आज नहीं…” समझ गया – दर्द, या सोच। कपड़े पहने। वो भी। निकलते वक्त, “पत्नी आ गई?” “नहीं।” “रात को डिनर के लिए आना न?” समझ गया…

“हां…मैं डिनर गया और उस रात रागिनी को रात भर अलग-अलग आसनों में चोदा…मेरी पत्नी के आने के बाद भी मैंने उसे चोदा…लेकिन उस रात की चुदाई कुछ अलग ही थी..रागिनी मेरे साथ से दो बार गर्भवती हुई ,क्युकी हम दोनों ही कोई सावधानी नही लेते थे… मै ही उसका पति बन कर गर्भपात करवा के लाया..क्या आप उस रात की वारदात सुनोगे?..अगर हाँ तो मुझे मेल कीजिये….दोस्तों..राहुल को तो मैंने सिर्फ़ उसके वार्षिक परीक्षा तक ही पढाया लेकिन रागिनी की क्लास अभी भी चल रही है..क्या आपको जानना है उस दिन डिनर मे किसने किसको क्या खिलाया?”

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