मौसी की चूत की आग बुझाई

Mausi ki chut aur gand chudai हेलो दोस्तों, मेरा नाम विक्की है और मैं मुंबई में रहता हूँ। मेरी उम्र 19 साल है, और मैं एक कॉलेज स्टूडेंट हूँ। मुझे देसी सेक्स स्टोरीज पढ़ने का बहुत शौक है, खासकर माँ, दीदी और मौसी की चुदाई वाली कहानियाँ। इन कहानियों को पढ़ते हुए मेरा मन भी अपने घर की औरतों को चोदने का करता है। आज मैं आपको अपनी जिंदगी की एक सच्ची और गर्म कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जो मेरी मौसी ललिता के साथ हुई। पहले मैं आपको अपनी फैमिली से मिलवाता हूँ। हमारे घर में चार लोग हैं—मैं यानी विक्की, 19 साल का; मेरी माँ रेखा, 38 साल की; मेरी मौसी ललिता, 40 साल की; और मेरी छोटी बहन पदमा, 18 साल की।

मेरी माँ रेखा का फिगर 36-38-36 है। 38 साल की उम्र में भी उन्होंने अपने बदन को इतना मेंटेन किया है कि वो 30-32 साल से ज्यादा की नहीं लगतीं। उनकी चाल में एक अजीब सा नशा है; जब वो चलती हैं, तो उनके भारी-भारी कुल्हे उछलते हैं, और सड़क पर लड़कों की आँखें उनकी गांड पर टिक जाती हैं। उनके बूब्स इतने भरे हुए हैं कि साड़ी में भी उनकी गोलाई साफ दिखती है। मेरी मौसी ललिता उनसे थोड़ी ज्यादा मोटी हैं, उनका फिगर 38-40-38 होगा। उनकी शादी को 15 साल हो चुके हैं, लेकिन उनकी कोई औलाद नहीं है। वो भी साड़ी पहनती हैं, और उनकी गांड और बूब्स इतने भारी हैं कि साड़ी में वो किसी माल से कम नहीं लगतीं। मेरी बहन पदमा अभी 18 साल की है, और वो कॉलेज में फर्स्ट ईयर में है। वो पतली-दुबली है, लेकिन उसकी जवानी अब उभरने लगी है।

ये कहानी 4 साल पहले की है, जब मेरे पापा और मौसी के पति एक शादी में शामिल होने पूना जा रहे थे। रास्ते में उनकी बस का एक्सीडेंट हो गया, और दोनों की मौत हो गई। मौसी के ससुराल में कोई नहीं था, तो माँ ने उन्हें हमारे घर बुला लिया। तब से मौसी हमारे साथ ही रहती हैं। माँ ने कपड़े सिलने का काम शुरू किया, जिससे हमारी पढ़ाई चलती रही, और मौसी एक ऑफिस में जॉब करती हैं। हमारा घर छोटा सा है, एक फ्लैट में एक हॉल, एक बेडरूम, किचन और टॉयलेट। हम सब हॉल में सोते हैं—पहले माँ, फिर पदमा, फिर मौसी, और सबसे आखिर में मैं।

ये बात आज से एक साल पहले की है, जब मैं बारहवीं क्लास में था। उस वक्त मुझे सेक्स के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था, बस इतना जानता था कि औरतों को देखकर मेरा लंड खड़ा हो जाता है। कॉलेज में मेरे दोस्त खुल्लम-खुल्ला सेक्स की बातें करते थे। मेरा दोस्त राकेश तो एक विधवा आंटी को पटा रखा था। वो हमें बताता था कि उसने आंटी की चूत कैसे मारी, कैसे उसने उसकी गांड में लंड डाला, और औरतों को चोदने का मजा कितना अलग है। वो कहता था, “जिस औरत ने एक बार लंड का स्वाद चख लिया, वो बिना चुदाई के ज्यादा दिन नहीं रह सकती।” उसकी बातें सुनकर मैं सोचता था कि मेरी माँ और मौसी, जो इतने सालों से बिना मर्द के हैं, उनकी चूत में भी आग तो लगी होगी।

एक दिन मैं कॉलेज से घर लौटा। दोपहर के करीब 3 बजे थे। मैंने डोरबेल बजाई, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। मुझे लगा शायद सब सो रहे होंगे। मेरे पास घर की दूसरी चाबी थी, तो मैंने दरवाजा खोला। हॉल में कोई नहीं था। तभी मुझे बेडरूम से कुछ आवाजें सुनाई दीं—जैसे कोई सिसक रहा हो। मैं चुपके से बेडरूम के दरवाजे की तरफ बढ़ा। दरवाजा हल्का सा खुला था। मैंने झाँका तो मेरा दिमाग सुन्न हो गया। मौसी बेड पर पूरी नंगी लेटी थीं। उनके दोनों पैर फैले हुए थे, और वो एक मोटी मोमबत्ती अपनी चूत में डाल रही थीं। उनकी आँखें बंद थीं, और वो धीरे-धीरे मोमबत्ती को अंदर-बाहर कर रही थीं। उनकी चूत गीली थी, और मोमबत्ती पर चमक साफ दिख रही थी। उनके मुँह से हल्की-हल्की सिसकारियाँ निकल रही थीं—उफ्फ… आह्ह…। मैं तो जैसे जम गया। तभी उनकी नजर मुझ पर पड़ी। वो चौंक गईं और जल्दी से चादर से खुद को ढक लिया। मैं फटाफट वहाँ से भागा और बाहर हॉल में बैठ गया। मेरा लंड पैंट में तंबू बना रहा था। उस दिन के बाद से मौसी मुझसे नजरें नहीं मिलाती थीं।

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उस रात मैं सो नहीं पाया। मौसी की नंगी चूत और उनकी सिसकारियाँ मेरे दिमाग में घूम रही थीं। रात के करीब 12:30 बजे मैं पेशाब करने उठा। जब वापस आया, तो देखा कि मौसी की साड़ी उनके घुटनों से ऊपर उठी हुई थी। उनकी गोरी, मोटी जाँघें साफ दिख रही थीं। मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया। मैंने हिम्मत करके उनकी जाँघों को छुआ। उनकी त्वचा इतनी मुलायम थी कि मेरा लंड और सख्त हो गया। मैंने धीरे-धीरे उनकी जाँघों को सहलाया, लेकिन तभी वो हल्की सी हिलीं। मैं डर गया और हाथ हटा लिया। थोड़ी देर बाद मैंने फिर से हिम्मत की और उनकी जाँघों को छूकर मुठ मारने लगा। मेरा पानी निकला, और कुछ बूँदें उनकी साड़ी पर गिर गईं। मैंने जल्दी से साफ किया और सो गया।

अगले दिन सुबह मौसी मुझे गुस्से से घूर रही थीं। वो माँ से कुछ फुसफुसा रही थीं। मेरी तो गांड फट गई। मुझे लगा शायद उन्हें मेरी हरकत का पता चल गया। मैं जल्दी से तैयार हुआ और कॉलेज चला गया। दिनभर मेरा दिमाग उसी सीन में अटका रहा। रात को खाना खाकर हम सब सो गए। रात के करीब 1 बजे मेरा दिमाग फिर गरम हो गया। मैंने मौसी को देखा, जो मेरे पास लेटी थीं। उनकी साड़ी फिर से जाँघों से ऊपर थी। मैंने सोचा, आज चाहे कुछ हो जाए, मैं मौसी की चूत को छूकर रहूँगा। मैंने धीरे-धीरे उनकी साड़ी को कमर तक उठाया। अंदर उन्होंने पैंटी नहीं पहनी थी। उनकी चूत साफ दिख रही थी—हल्के-हल्के बाल, गुलाबी रंग, और थोड़ी सी गीलापन। मेरा 9 इंच का लंड सलामी देने लगा। मैंने धीरे से उनकी चूत को छुआ। कोई हलचल नहीं हुई। मेरी हिम्मत बढ़ी, और मैंने उनकी चूत को सहलाना शुरू किया। उनकी चूत गर्म और गीली थी।

मैंने अपने कपड़े उतारे और नंगा होकर उनके पास लेट गया। मैंने धीरे-धीरे उनके बूब्स को साड़ी के ऊपर से दबाया। उनके बूब्स इतने मुलायम थे कि मेरा लंड और जोश में आ गया। मौसी पीठ करके लेटी थीं। मैंने अपना लंड उनकी गांड पर रगड़ना शुरू किया। उनकी साड़ी अभी भी कमर तक थी। तभी उन्होंने अपने पैर सिकोड़ लिए। मैं डर गया और रुक गया। थोड़ी देर बाद मैंने फिर हिम्मत की। मैंने अपने लंड का सुपाड़ा उनकी चूत पर रखा और धीरे से दबाया। मेरा लंड आधा अंदर चला गया। मौसी ने अपनी गांड मेरी तरफ धकेली, और मेरा पूरा लंड उनकी चूत में समा गया। उनके मुँह से हल्की सी सिसकारी निकली—उफ्फ… आह्ह…। मैं डर गया और लंड बाहर निकाल लिया।

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तभी मौसी ने मेरा लंड पकड़ लिया और धीरे से बोलीं, “जब अंदर डाल ही दिया, तो बाहर क्यों निकाला, हरामी?” मैं तो जैसे सातवें आसमान पर था। मैंने कहा, “मौसी, सीधे लेट जाओ।” वो सीधी लेट गईं। मैंने लाइट बंद की और उनके ऊपर चढ़ गया। मैंने उनके होंठों पर एक गहरा किस किया। उनकी साँसें गर्म थीं। मैंने उनका पल्लू हटाया और उनके ब्लाउज के बटन खोलने लगा। उनके बूब्स बाहर निकल आए—बड़े, गोल, और भारी। मैंने उनके निप्पल्स को मुँह में लिया और चूसने लगा। वो सिसकारियाँ लेने लगीं—आह्ह… उफ्फ…। मैंने उनकी साड़ी पूरी तरह उतार दी। अब वो सिर्फ पेटीकोट में थीं। मैंने पेटीकोट का नाड़ा खोला, और वो पूरी नंगी हो गईं।

मैंने अपना लंड उनकी चूत पर सेट करने की कोशिश की, लेकिन छेद नहीं मिल रहा था। मौसी ने हँसते हुए मेरा लंड पकड़ा और अपनी चूत पर सेट किया। मैंने एक जोरदार धक्का मारा। मेरा पूरा 9 इंच का लंड उनकी चूत में समा गया। उनके मुँह से चीख निकली—आहह… माँ… मर गई! शायद मेरा लंड उनकी चूत के लिए थोड़ा बड़ा था। तभी माँ की नींद खुल गई। वो बोलीं, “क्या हुआ?” मौसी ने जल्दी से कहा, “कुछ नहीं, अंधेरे में मेरा हाथ कहीं लग गया।” माँ ने कहा, “ठीक है, सो जाओ।” मैं रुक गया। मौसी ने धीरे से कहा, “हरामी, धीरे कर, फाड़ देगा क्या?” मैंने सॉरी कहा और धीरे-धीरे धक्के मारने लगा। उनकी चूत इतनी गीली थी कि मेरा लंड आसानी से अंदर-बाहर हो रहा था। पच-पच की आवाजें कमरे में गूँज रही थीं। मौसी भी अपनी गांड उछाल-उछाल कर मेरा साथ दे रही थीं। वो सिसकारियाँ ले रही थीं—आह्ह… उफ्फ… ओह्ह…।

मैंने उनके बूब्स को जोर-जोर से दबाया। उनके निप्पल्स सख्त हो चुके थे। मैंने एक निप्पल को मुँह में लिया और चूसने लगा। मौसी बोलीं, “चूस ले बेटा, आज तूने मेरी चूत की आग बुझा दी।” हमारी चुदाई करीब 20 मिनट तक चली। मैंने उनकी चूत में ही झड़ गया। हम दोनों पसीने से तर हो चुके थे। मौसी की साँसें तेज-तेज चल रही थीं। हम चुपके से सो गए।

अगले दिन सुबह मैं देर से उठा। माँ और मौसी आपस में कुछ बातें कर रही थीं। माँ थोड़ी गुस्से में लग रही थीं। मुझे डर लगा कि कहीं माँ को कुछ पता तो नहीं चल गया। मैं जल्दी से बाहर निकल गया। रात को मैंने फिर मौसी को 12:45 बजे जगाया। मैंने कहा, “मौसी, चलो फिर से चुदाई करते हैं।” वो बोलीं, “नहीं, माँ जाग जाएगी।” लेकिन मैं नहीं माना। मैंने कहा, “मौसी, मैं आपकी चूत चाटना चाहता हूँ।” वो हँसते हुए बोलीं, “ठीक है, लेकिन मैं भी तेरा लंड चूसूँगी।”

मैंने उनकी साड़ी उतारी। लाइट में उनका बदन देखकर मैं पागल हो गया। उनकी चूत गुलाब की पंखुड़ियों जैसी थी, और उनके बूब्स बड़े-बड़े आमों जैसे। हम 69 की पोजीशन में आ गए। मैंने उनकी चूत पर मुँह रखा। उनकी चूत से हल्का सा सफेद पानी निकल रहा था। मैंने जीभ से उनकी चूत चाटनी शुरू की। वो उछल पड़ीं—आह्ह… उफ्फ…। उन्होंने मेरा लंड मुँह में लिया और चूसने लगीं। उनका मुँह इतना गर्म था कि मुझे लगा मैं अभी झड़ जाऊँगा। 5 मिनट बाद मैं उनके ऊपर आ गया। मैंने उनके बूब्स को जोर-जोर से दबाया। वो सिसकारियाँ लेने लगीं—आह्ह… ओह्ह…।

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मैंने उनका पेटीकोट उतारा और उनकी चूत पर लंड सेट किया। एक जोरदार धक्के में मेरा लंड उनकी चूत में समा गया। वो चीख पड़ीं—आआहह… मर गई! शायद माँ फिर जाग गईं, लेकिन कुछ बोलीं नहीं। मैंने धक्के मारने शुरू किए। मौसी तरह-तरह की आवाजें निकाल रही थीं—ईईई… ऊऊ… उफ्फ…। मेरा लंड उनकी चूत को चीरता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था। पच-पच की आवाजें कमरे में गूँज रही थीं। मौसी बोलीं, “हरामी, धीरे कर, मेरी चूत फट जाएगी।” मैंने रफ्तार थोड़ी कम की, लेकिन जोश में फिर बढ़ा दी। करीब 30 मिनट बाद मैं झड़ गया। मौसी इस बीच तीन बार झड़ चुकी थीं।

मौसी ने हाँफते हुए कहा, “तू तो बड़ा जालिम है, विक्की।” मैंने सॉरी कहा। 10 मिनट बाद मैं फिर उनके बदन पर हाथ फेरने लगा। मैंने कहा, “मौसी, मुझे आपकी गांड मारनी है।” वो चौंकीं और बोलीं, “क्या? नहीं, तेरे लंड से मेरी चूत का बुरा हाल है, गांड तो फट जाएगी।” मैंने कहा, “मैं धीरे-धीरे करूँगा।” वो मान गईं। मैंने कहा, “मैं टॉयलेट जाकर आता हूँ, तुम तब तक घोड़ी बन जाओ।” मैं टॉयलेट गया, और तभी लाइट चली गई। मैंने कहा, “अरे, बुरा हुआ।” जब वापस आया, तो मौसी उल्टी लेटी थीं। मैंने उनकी पीठ पर हाथ फेरा और कहा, “डॉगी स्टाइल में झुको।” वो घुटनों के बल झुक गईं। अंधेरे में कुछ दिख नहीं रहा था। मैंने अपने लंड पर थूक लगाया और उनकी गांड के छेद पर सेट किया। एक जोरदार धक्का मारा। मेरा लंड आधा अंदर घुस गया। मौसी चीख पड़ीं—आह्ह… उफ्फ…। मैंने एक और धक्का मारा, और पूरा लंड उनकी गांड में समा गया। वो रोने लगीं। मैंने कहा, “प्लीज, रोना बंद करो, माँ जाग जाएगी।”

मौसी बोलीं, “बस कर, हरामी, मेरी गांड फट गई। चूत चोद ले, लेकिन गांड मत मार।” मैंने देखा, उनकी गांड से थोड़ा खून निकल रहा था। मैंने लंड बाहर निकाला और उनकी चूत पर सेट किया। 2-3 धक्कों में मेरा लंड पूरा अंदर चला गया। मौसी को अभी भी दर्द हो रहा था, लेकिन मैंने धीरे-धीरे चोदना शुरू किया। थोड़ी देर बाद वो नॉर्मल हो गईं। मैंने रफ्तार बढ़ाई। उनकी सिसकारियाँ फिर शुरू हो गईं—आह्ह… उफ्फ…। मैंने करीब 25 मिनट तक उनकी चूत चोदी। फिर मैंने एक बार उनकी गांड भी मारी, और दो-तीन बार उनकी चूत को और चोदा। हम दोनों थककर शांत हो गए और सो गए।

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