Padosan ke sath sex – Hot desi fuck: मैं अखिलेश, गोरखपुर का रहने वाला हूँ, उम्र 30 साल, शादीशुदा, और एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता हूँ। मेरी बीवी डिंपल, 28 साल की, गृहिणी है, और उसका चेहरा ऐसा कि मोहल्ले की औरतें जल-भुन जाती हैं। हमारा बेटा आशु, पांच साल का, शरारती लेकिन इतना प्यारा कि हर कोई उसकी हरकतों पर हँस देता है। हमारा घर मोहल्ले की तंग गलियों में है, जहाँ हर घर की खिड़की से पड़ोसी की जिंदगी झाँकती है। मेरी पड़ोसन अंकिता, 24 साल की, तीन साल पहले दिल्ली में बड़े धूमधाम से शादी हुई थी। वो गोरी, लंबी, और इतनी खूबसूरत कि उसकी एक झलक दिल में आग लगा दे। उसकी आँखों में मासूमियत और चेहरे पर उदासी का मिश्रण था, जो उसकी कहानी बयान करता था।
अंकिता की शादी में कोई कमी नहीं थी—पैसा, रुतबा, ससुराल का बड़ा घर। बस एक कमी थी, उसका पति, एक नंबर का बेवड़ा। दारू पीकर वो अंकिता को मारता-पीटता, गालियाँ देता। तीन साल में अंकिता एक बार भी माँ नहीं बन पाई। ससुराल वालों ने उसे कई डॉक्टरों को दिखाया, हर बार उसकी रिपोर्ट नॉर्मल। एक दिन अंकिता ने हिम्मत करके अपने पति से कहा, “क्यों न तुम अपना चेकअप करवाओ? शायद कमी तुममें हो।” बस, ये बात उस बेवड़े को अपनी मर्दानगी पर चोट लगी। उसने अंकिता को गंदी गालियाँ दीं, लात-घूँसे मारे, और आखिरकार घर से निकाल दिया। ससुराल वालों ने साफ बोल दिया, “जब तक औलाद नहीं होगी, तू यहाँ नहीं रहेगी।” बेचारी अंकिता, टूटे दिल और बिखरे सपनों के साथ मायके लौट आई।
मायके में अंकिता अपने माँ-बाप की लाड़ली थी। मोहल्ले में सब उसकी कहानी जानते थे, और लोग उसकी मजबूरी पर तरस खाते थे। उसने जीविका चलाने के लिए पड़ोस के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। उसका घर हमारे घर से बस दो मकान छोड़कर था। हर सुबह बच्चे उसके आँगन में किताबें लिए बैठे दिखते। एक दिन उसकी माँ उसे फिर किसी जानकार डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने वही बात दोहराई—अंकिता बिल्कुल नॉर्मल है, पति का चेकअप करवाओ। लेकिन ये बात ससुराल में कौन कहे? आखिर, इसी बात पर तो उसे घर से निकाला गया था। अंकिता बेकसूर थी, फिर भी सजा भुगत रही थी।
एक दिन बाजार में अंकिता की मुलाकात डिंपल से हुई। दोनों की अच्छी जान-पहचान थी, पड़ोस जो ठहरा। ऑटो में साथ लौटते हुए अंकिता ने डिंपल को अपनी आपबीती सुनाई। रात को डिंपल ने मुझे बताया, “अखिलेश, अंकिता की सारी रिपोर्ट्स नॉर्मल हैं। बेचारी खामखा ससुराल की जुदाई झेल रही है। उसका पति इलाज करवाने को तैयार ही नहीं।” मैंने सुना, लेकिन चुप रहा। मुझे सब पहले से पता था, पर मैंने जाहिर नहीं किया। अंकिता की हालत देखकर मन में दुख था, लेकिन कहीं न कहीं एक अजीब सा ख्याल भी आ रहा था।
एक दिन मैं आशु को ट्यूशन छोड़ने अंकिता के घर गया। उस वक्त कोई दूसरा बच्चा नहीं आया था। अंकिता ने कहा, “अखिलेश जी, थोड़ा रुक जाइए। आशु शरारती है, अकेला नहीं रुकेगा। जब दो-चार बच्चे आ जाएँ, तब चले जाना।” उसकी बात जच गई। मैं पास की कुर्सी पर बैठ गया। उसने नीली सलवार-कमीज पहनी थी, जो उसकी गोरी त्वचा पर चमक रही थी। बातों-बातों में ससुराल का जिक्र छिड़ गया। मैंने हल्के से पूछा, “तो अंकिता, ससुराल कब जा रही हो?” मेरी बात सुनकर उसका चेहरा उदास हो गया। “अखिलेश जी, अब शायद ही जा पाऊँ। उनकी डिमांड पूरी नहीं हो सकती।”
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मैंने बनावटी हैरानी दिखाते हुए पूछा, “कैसी डिमांड?” वो बोली, “आपको नहीं पता? जब तक मैं माँ नहीं बनूँगी, ससुराल वाले मुझे रखेंगे नहीं। और मेरा पति तो इलाज करवाने को तैयार ही नहीं। मेरी सारी रिपोर्ट्स नॉर्मल हैं। अब आप बताइए, मैं माँ कैसे बनूँ?”
उसकी आँखों में दर्द साफ दिख रहा था। मैंने हिम्मत जुटाकर कहा, “अंकिता, मेरे पास तुम्हारी परेशानी का हल है। दो रास्ते हैं। अगर बुरा न मानो तो बता दूँ।” वो उत्सुक होकर बोली, “बताइए न, आज्ञा क्यों माँग रहे हैं? मैं तो आपके मोहल्ले में पली-बढ़ी हूँ।”
मैंने थोड़ा रुककर कहा, “देख, मुझसे तेरा दुख देखा नहीं जाता। मेरा सुझाव गलत मत समझना। पहला रास्ता, तुम बच्चा गोद ले लो। या फिर…” मैं रुक गया। वो बोली, “या फिर क्या? साफ-साफ बोलिए।” मैंने गहरी साँस ली और कहा, “या फिर किसी भरोसेमंद इंसान से गर्भ ठहरा लो।”
मेरी बात सुनकर अंकिता को झटका लगा। मैंने फौरन माफी माँगी, “सॉरी, मेरा मतलब फ्लर्ट करना नहीं था। बस एक दोस्त की तरह राय दी।” वो चुप रही, फिर धीरे से बोली, “ये ख्याल मेरे मन में भी आया था। लेकिन ऐसा भरोसेमंद इंसान मिलेगा कहाँ, जो मेरी इज्जत पर आँच न आने दे?”
तभी दो और बच्चे ट्यूशन के लिए आ गए। हमने बात बदल दी, और मैं घर लौट आया। दो दिन बाद, फिर आशु को छोड़ने गया तो अंकिता ने मेरा नंबर लिया। उसी शाम, बाजार में एक अनजान नंबर से कॉल आई। मैंने उठाया तो अंकिता की आवाज आई, “हैलो, अखिलेश जी?”
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मैंने कहा, “हाँ, बोलो। कौन?” वो हँसी, “अरे, इतनी जल्दी भूल गए? मैं अंकिता, आशु की मैडम।” मैंने हँसकर कहा, “अच्छा, तुम! बोलो, क्या बात है?” वो बोली, “मैंने आपकी बात पर बहुत सोचा। आप मुझे ऐसा इंसान ढूँढकर दीजिए, जिस पर भरोसा हो। जो मुझे प्यार दे, इज्जत दे, और मेरी सूनी गोद भर दे। सच कहूँ तो मुझे आप जैसा ही चाहिए। सीधे-सीधे कहूँ, क्या आप मेरी मदद करेंगे?”
उसका खुला न्योता सुनकर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई। मैंने कहा, “मुझे सोचने का वक्त दो।” अगले दिन ट्यूशन के वक्त, मैंने आँखों के इशारे से हाँ कह दी। अब सवाल था जगह का। कहाँ और कैसे?
एक दिन मैं ऑफिस से लौटा तो डिंपल रिश्तेदारी में जाने की तैयारी कर रही थी। तभी अंकिता मेरे घर आई। उसने गुलाबी सलवार-कमीज पहनी थी, जो उसकी गोरी त्वचा पर चमक रही थी। उसने डिंपल को गले लगाया और चाय बनने तक बातें कीं। डिंपल ने जल्दी में कहा, “अखिलेश, मैं ट्रेन पकड़ने जा रही हूँ। कल तक लौटूँगी। अंकिता, तुम शाम को आकर इनके लिए खाना बना देना। सब्जी फ्रिज में है।”
अंकिता ने तपाक से कहा, “ठीक है, दीदी। आप बेफिक्र जाइए।” डिंपल ने मुझे स्टेशन छोड़ने से मना किया और आशु के साथ निकल गई। अब घर में सिर्फ मैं और अंकिता थे। मैंने इशारे से पूछा, “तो, क्या सोचा?” वो हँसी, “अरे, आप भी न! इतने बुद्धू हैं? मैं यहाँ हूँ, इसका मतलब नहीं समझे?” मैंने कहा, “मुँह से बोलो, साफ-साफ।” वो शरमाते हुए बोली, “मुझे अपने बच्चे की माँ बना दो, अखिलेश जी। ये एहसान मेरी जिंदगी बदल देगा। इसके लिए मैं कुछ भी करूँगी। बस मेरी कोख में बीज डाल दो।”
मैंने कहा, “शाम को आ जाना। दिन में कोई आ सकता है।” वो वादा करके चली गई। मैंने मेडिकल से लंबा चलने वाली गोली ली और एक बियर की बोतल खरीदी। अंकिता ने अपने घर पर बहाना बनाया कि डिंपल अकेली है, वो उसी के पास सोने जा रही है। घरवालों ने इजाजत दे दी।
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शाम ढलते ही अंकिता मेरे घर आ गई। उसने लाल सलवार-कमीज पहनी थी, जो उसकी गोरी त्वचा पर आग की तरह चमक रही थी। बाल खुले थे, और उसकी चाल में एक अजीब सा आत्मविश्वास था। मैंने कहा, “खाना बना लें?” उसने जल्दी-जल्दी रोटियाँ सेंकीं, फ्रिज से सब्जी गर्म की, और हमने साथ खाना खाया। मैंने उसे बियर ऑफर की। उसने पहले मना किया, लेकिन फिर दो घूँट पी लिए। बोली, “पहली बार पी रही हूँ। शायद इससे शर्म कम हो।”
खाना खत्म होते ही मैंने उसे बेडरूम में बुलाया। कमरे की मद्धम रोशनी और बियर का हल्का नशा माहौल को और गर्म कर रहा था। अंकिता की आँखों में डर और उत्तेजना का मिश्रण था। मैंने उसे बेड पर लिटाया और उसके होंठों को चूमना शुरू किया। पहले वो थोड़ा झिझकी, लेकिन फिर मेरे होंठों का जवाब देने लगी। उसकी साँसें तेज हो रही थीं। “आह्ह… अखिलेश जी, ये… क्या हो रहा है?” उसने धीरे से कहा।
मैंने उसके माथे को चूमा और कहा, “बस, तुझे मजा दे रहा हूँ।” मैंने उसकी कमीज के बटन खोलने शुरू किए। उसने मेरी आँखों में देखा और शरमाते हुए बोली, “धीरे… मुझे डर लग रहा है।” मैंने उसकी कमीज उतारी। उसने सफेद ब्रा पहनी थी, जो उसके 34C के मम्मों को और उभार रही थी। मैंने धीरे से ब्रा के हुक खोले। उसके मम्मे आजाद हो गए, गोल, मुलायम, और निप्पल्स गुलाबी। मैंने उन्हें हल्के से दबाया, और अंकिता सिसकारी, “उफ्फ… आह्ह…”
मैंने उसके निप्पल्स को उंगलियों से सहलाया, फिर मुँह में लिया। वो सिहर उठी, “हाय… ये क्या… इतना अच्छा… आह्ह…” मैंने एक निप्पल चूसा और दूसरे को उंगलियों से मसला। अंकिता की साँसें और तेज हो गईं। मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खींचा, और वो बिना विरोध सरक गई। उसकी पैंटी गीली थी, जो उसकी उत्तेजना बयान कर रही थी। मैंने पैंटी भी उतार दी। उसकी चूत, हल्के बालों से सजी, रस से चमक रही थी।
मैंने उसकी जाँघों को सहलाया, और वो मचलने लगी, “प्लीज… अब और मत तड़पाओ… आह्ह…” मैंने कहा, “अभी तो खेल शुरू हुआ है, अंकिता।” मैंने उसकी चूत पर उंगलियाँ फिराईं। उसका रस मेरी उंगलियों पर लग गया। मैंने धीरे से उसकी चूत चाटना शुरू किया। उसका स्वाद नमकीन और नशीला था। “उफ्फ… हाय… ये… आह्ह…” अंकिता मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाने लगी। मैंने उसकी चूत की फाँकों को जीभ से चाटा, फिर उसके दाने को हल्के से काटा। वो चीखी, “आह्ह… अखिलेश जी… मेरी चूत… उफ्फ…”
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मैंने उसे बेड पर सीधा लिटाया और अपनी शर्ट-पैंट उतार दी। मेरा 7 इंच का लंड, जो अब पूरी तरह तन चुका था, देखकर अंकिता की आँखें चौड़ी हो गईं। “ये… इतना बड़ा?” उसने झिझकते हुए कहा। मैंने हँसकर कहा, “डर मत, तुझे दर्द नहीं होगा।” उसने मेरे लंड को हाथ में लिया और सहलाने लगी। उसका नरम हाथ जादू कर रहा था। फिर उसने झिझकते हुए उसे मुँह में लिया। उसकी गर्म जीभ मेरे सुपारे पर फिरने लगी। “उम्म… आह्ह…” मैं सिसकार उठा।
अंकिता ने धीरे-धीरे चूसना शुरू किया, कभी सुपारे को चाटती, कभी पूरा मुँह में लेती। उसका अनुभवहीन तरीका और उत्तेजक था। मैंने कहा, “बस कर, अंकिता… अब मेरा निकल जाएगा।” लेकिन वो नहीं रुकी। उसने और तेजी से चूसा, और मैं उसके मुँह में झड़ गया। उसने सारा वीर्य पी लिया और होंठ चाटते हुए बोली, “अब मेरी बारी, अखिलेश जी।”
मैंने उसे फिर लिटाया। उसकी चूत अब और गीली थी। मैंने उसकी टाँगें उठाकर अपने कंधों पर रखीं और अपने लंड को उसकी चूत के मुँह पर रगड़ा। वो मचल उठी, “प्लीज… अब डाल दो… मैं तड़प रही हूँ।” मैंने धीरे से एक झटका मारा, और मेरा सुपारा उसकी चूत में घुस गया। वो चीखी, “आह्ह… धीरे…” उसकी चूत टाइट थी, शायद लंबे समय बाद सेक्स की वजह से। मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए। हर धक्के के साथ उसकी सिसकारियाँ बढ़ती गईं, “उफ्फ… आह्ह… हाय… और तेज…”
मैंने उसकी कमर पकड़ी और जोर-जोर से धक्के मारने शुरू किए। कमरे में चुदाई की आवाजें गूँज रही थीं—थप-थप-थप। अंकिता की चूत गर्म थी, जैसे कोई भट्टी। वो नीचे से गांड उठाकर मेरे धक्कों का जवाब दे रही थी। “हाय… अखिलेश जी… चोदो मुझे… और जोर से… मेरी चूत फाड़ दो…” उसकी गंदी बातें मुझे और उत्तेजित कर रही थीं। मैंने उसकी टाँगें और चौड़ी कीं और गहराई तक लंड पेल दिया। वो चीखी, “उफ्फ… मेरी चूत… फट जाएगी… आह्ह…”
आधे घंटे की चुदाई में अंकिता तीन बार झड़ी। उसका रस मेरे लंड को और चिकना कर रहा था। मैंने भी आखिरकार उसकी चूत में अपना गर्म वीर्य छोड़ दिया। हम दोनों हाँफ रहे थे। मैंने उसे गले लगाया और उसके माथे को चूमा। वो बोली, “अखिलेश जी, ये… इतना मजा… मैंने कभी नहीं लिया।”
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थोड़ी देर आराम करने के बाद, आधी रात को हम फिर तैयार हो गए। इस बार मैंने उसे घोड़ी बनाया। उसकी गोल-मटोल गांड देखकर मेरा लंड फिर तन गया। मैंने उसकी चूत में पीछे से लंड डाला और धक्के मारने शुरू किए। “थप-थप-थप…” कमरे में फिर से चुदाई की आवाजें गूँजने लगीं। अंकिता जोर-जोर से सिसकार रही थी, “आह्ह… ओह्ह… मेरी चूत… और जोर से… फाड़ दो…” मैंने उसकी गांड पर हल्का सा थप्पड़ मारा, और वो और उत्तेजित हो गई। “हाय… मारो और… मेरी गांड लाल कर दो…”
मैंने बीच-बीच में रुककर उसके मम्मों को दबाया, उसकी चूत को सहलाया, और फिर धक्के मारे। इस बार मैंने उसे और देर तक चोदा। आखिरकार, मैं फिर उसकी चूत में झड़ा। हम दोनों थककर बेड पर गिर गए। सुबह तीन बजे, एक और राउंड चला। इस बार अंकिता ऊपर थी। वो मेरे लंड पर उछल रही थी, उसके मम्मे हिल रहे थे, और वो चीख रही थी, “आह्ह… हाय… ये… इतना गहरा… उफ्फ…”
सुबह जब बियर का नशा उतरा, अंकिता शरमाने लगी। वो जल्दी से कपड़े पहनने लगी और मुझे भी इशारा किया। उसने किचन में चाय बनाई, और हमने साथ पी। वो बार-बार थैंक्स बोल रही थी। मैंने उसे गले लगाकर कहा, “सब ठीक हो जाएगा।” वो बर्तन सँभालकर अपने घर चली गई।
हफ्ते बाद अंकिता का फोन आया। वो खुशी से चीख रही थी, “अखिलेश जी, मैं प्रेग्नेंट हूँ!” बाद में पता चला कि उसका पति उसे लेने आया और अब वो एक बेटी की माँ है। वो अपनी जिंदगी में खुश है और जब भी मिलती है, उसकी आँखों में एक खास चमक होती है।
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Bahut achi kahani, aise hi karna chahiye , ak dusre ki madad se hi duniya chalti rahti hai, good story
Aapki bahan ko aisi help ki jarurat ho to jarur bataye .. mei help karunga
Badiya he, pati ne ye nhi kaha ki bina pati ke pregnant kese ho gyi mayke me 😂😂😂
Kahaniyonme esa nahi hota hai
Tabhi to ye kahani hai