हेलो दोस्तो, मेरी कहानी में आपका स्वागत है। मेरा नाम निकिता है। मुझे इतिहास की किताबें बहुत पसंद हैं—वो पेज जहाँ सत्ता के लिए खून-खराबा होता है और नंगे जिस्म वासना में तड़पते हैं। एक रात मैं 1320 के मालवा की एक पुरानी किताब पढ़ रही थी। उसमें लिखी बातें—हरम की गुलामी, चूत की वासना, और नाजायज इच्छाओं की आग—मेरे दिमाग में घूमने लगीं।
मेरी साँसें तेज़ हो गईं, जैसे मेरे सीने में कोई आग सुलग रही हो। किताब के वो गंदे शब्द मेरे जिस्म में उतरते चले गए। मेरा शरीर गर्म होने लगा, मेरी चूत में सनसनाहट शुरू हो गई—ऐसा लग रहा था जैसे वो बातें मुझे अंदर तक छू रही थीं, मेरे होश उड़ा रही थीं।
थकान से मेरी आँखें भारी होने लगीं। वो उत्तेजना, वो गर्मी, और किताब की वो गहरी दुनिया मुझे नींद की ओर खींच ले गई। मैं सो गई, लेकिन मेरे दिमाग में वो सारी गंदी तस्वीरें अब भी नाच रही थीं।
फिर एक सपना आया—ऐसा सपना कि मैं मालवा की राजकुमारी बन गई। मैं जवान थी, मस्त माल थी, हूरों को भी मात देने वाली। मेरी गोरी स्किन धूप में चमक रही थी, मानो सूरज भी मेरे आगे शरमा जाए। मैंने रेशमी लहंगा-चोली पहनी थी—चोली इतनी टाइट कि मेरे गोल, भरे हुए बूब्स उसमें कैद होकर बाहर निकलने को तड़प रहे थे। मेरी 26 इंच की पतली कमर चोली के नीचे नंगी झलक रही थी, हर साँस के साथ हल्की-हल्की काँपती हुई।
मेरा लहंगा मेरे 34 इंच के गोल कूल्हों पर चिपक गया था—चलते वक़्त वो मस्ती से हिलते, मर्दों की नज़रें चुराते। मैं 5 फीट 6 इंच की लंबाई के साथ खड़ी थी, मेरे रस भरे होंठ और गहरी आँखें मुझे किसी शाही सपने की मालकिन बना रही थीं। मेरे जिस्म से चंदन की मादक खुशबू उड़ रही थी, मेर साँसें गर्म थीं—ऐसा लग रहा था जैसे मेरे अंदर कोई भूख धीरे-धीरे जाग रही हो, मुझे बेकाबू कर रही हो।
मैं मालवा के राजमहल में थी। चारों तरफ सोने-चाँदी की दीवारें थीं, पुरानी तलवारें और ढालें टँगी थीं—मालवा की शान की निशानी। हवा ठंडी थी, मेरे चेहरे को छू रही थी। फर्श संगमरमर का था, पैरों को ठंडक दे रहा था। लेकिन मेरे अंदर कुछ गर्म था—शायद वो किताब की वासना जो मेरे सपने में मेरे साथ चली आई थी।
मेरे पापा, रणसिंहदेव, इस महल के राजा थे। वो एकदम शेर जैसे थे—छाती चौड़ी, पसीने से चमकती हुई, आँखें तेज़, जैसे दुश्मन का लंड काटकर उसकी गांड में घुसा दें। उनकी मूंछें इतनी घनी थीं कि उनकी शान देखकर मर्दों का लंड ढीला पड़ जाए। उनकी आवाज़ सुनकर दुश्मन की गांड फट जाती थी, पेशाब निकल जाता था। वो मुझे तलवार चलाना सिखाते थे, मेरे हाथ पकड़कर गर्जते थे, “निकिता, तू हमारी इज़्ज़त है, कभी किसी साले के आगे मत झुकना।”
मेरी मम्मी, रानी देवकी, एकदम मस्त औरत थीं—उनकी खूबसूरती और हिम्मत की बातें हर जगह गूँजती थीं। उनका जिस्म ऐसा था कि देखने वाले की साँसें थम जाएँ—बूब्स काफी बड़े और भरे हुए थे, जिन पर उन्हें गर्व था, कमर पतली सी, कूल्हे गोल और मोटे—इसी जिस्म की वजह से वो दासी से रानी बनीं।
वो रोज़ मुझे नहलाती थीं, मेरे जिस्म की मालिश करती थीं, कहती थीं, “तेरे जिस्म की ताकत मर्दों को घुटनों पर लाएगी, इसे अपनी ढाल बना।” उनकी बातें मेरे सीने में आग लगा देती थीं, मेरे खून में हिम्मत भर देती थीं।
खून और हवस का ढोल
आचानक सब कुछ बदल गया। बाहर से युद्ध के ढोल बजने लगे—धम-धम की आवाज़ कानों में चाकू की तरह चुभ रही थी। सैनिकों की चीखें, तलवारों की टक्कर, और मरते हुए मर्दों की सिसकियाँ दीवारों से टकरा रही थीं। मैं भागकर खिड़की के पास गई। बाहर का नज़ारा गंदा और डरावना था—हमारी सेना टूट रही थी। मलिक नासिरुद्दीन की फौज किले के दरवाजे तोड़ रही थी।
मलिक नासिरुद्दीन मुगल सल्तनत का एक गंदा सिपहसालार था—लंबा, काला, मोटा, चेहरा ऐसा जैसे किसी रंडी की गांड से निकला हो। उसकी आँखें वासना से लाल थीं, होंठों पर गंदी हँसी थी। वो हर राजा को हरा रहा था—उनकी रानियों को चोदता था, उनकी चूत और गांड को अपने मोटे लंड से फाड़ता था, उनकी बेटियों को नंगी करके अपने सैनिकों से चुदवाता था। उसके काले कपड़े खून और पसीने से सने थे, उसकी तलवार हवा में लहर रही थी, जैसे किसी की चूत चीरने को तैयार हो।
मैंने देखा—पापा बाहर लड़ रहे थे, अपनी तलवार से दुश्मनों को काट रहे थे, उनका खून दुश्मनों के मुँह पर छींट रहा था। लेकिन हमारे ही एक गद्दार सैनिक ने उनकी ढाल से उनके लंड वाली जगह बहुत जोर से हमला किया, जिससे वो ज़मीन पर गिर पड़े, उनकी तलवार छीन ली, और जंजीरों में बाँधकर मलिक के सैनिक उन्हें घसीटते हुए ले गए।
मेरे दिल में डर का ठंडा कंपन दौड़ गया। मैं इस कदर काँप रही थी कि मेरे बूब्स थरथरा रहे थे, मेरे पैरों में जैसे जान ही नहीं बची थी। उसकी आँखों में हम औरतों के लिए गंदी, पाशविक भूख नंगी चमक रही थी—हमारी चूत को फाड़ने की हवस, हमारी गांड को नोचने की लालसा, हमारे बूब्स को चूसने की प्यास। मैं समझ गई थी कि उन्हें हमारा महल या सत्ता की परवाह नहीं थी—उनका असली निशाना हम संस्कारी और सुंदर औरतों के कोमल जिस्म थे।
सैनिक महल में घुस आए। आग की भयंकर लपटें आसमान को चूम रही थीं, गलियारों में धुआँ इस कदर घुस गया था कि आँखें चुभ रही थीं, साँसें जैसे गले में अटक रही थीं। मैं अपने कमरे से बाहर निकली। छोटे-छोटे मासूम बच्चों को उनकी माँओं से बेरहमी से छीन लिया गया, उनकी नन्ही कलाइयों को जंजीरों में जकड़ दिया गया। माँएँ दहाड़ मारकर रो रही थीं, अपने बच्चों के कोमल हाथों को थामने के लिए तड़प रही थीं, पर सैनिकों ने उनके बाल क्रूरता से खींचने शुरू किए। फिर तो हद ही पार हो गई—वो उनके कपड़े खींचने और फाड़ने लगे, और उन्हें ज़मीन पर पटक दिया।
फिर उनकी गंदी, लालची नज़रें हम औरतों पर ठहर गईं।
चूत नंगी, गांड लाल
मुझे, मेरी मम्मी को, और महल की तमाम सेविकाओं को सैनिकों ने चारों ओर से घेर लिया। मम्मी मेरे ठीक बगल में खड़ी थीं, उनकी साँसें तेज़-तेज़ चल रही थीं, चेहरा पसीने से चिपचिपा और लाल हो चुका था। मेरी दासी रेशमी मेरे दूसरी तरफ थी—वो मेरी सबसे प्यारी और मासूम दासी थी, अभी हाल ही में 18 साल की हुई थी। उसकी बड़ी, भोली आँखें आँसुओं से भीगी थीं, उसकी पतली, लंबी देह डर से थर-थर काँप रही थी।
एक सैनिक हमारे पास आया—उसके हाथ खून से सने और चिपचिपे थे, उसकी साँसों से शराब और सड़ांध की गंध इस कदर तेज़ थी कि मुँह घूम जाए। उसने रेशमी की चोली पर हाथ डाला और एक क्रूर झटके में उसे फाड़ डाला, पर रेशमी अपनी चोली बचाने की बेकार जंग में उलझी और उसका लहंगा भी खो बैठी। पलभर में वो पूरी नंगी हो गई—उसके छोटे, सख्त बूब्स और पतली, कोमल गांड सबके सामने बेपर्दा हो गए। वो अपनी इज़्ज़त बचाने को छटपटा रही थी, एक हाथ से अपनी चूत को ढक रही थी, दूसरे से बूब्स को छुपाने की कोशिश कर रही थी, मगर सैनिक ने उसकी नंगी गांड पर जोर-जोर से थप्पड़ बरसाए, उसकी नाज़ुक चमड़ी को लाल और जलता हुआ छोड़ दिया।
फिर उसने उसकी टाँगें पकड़कर बेरहमी से फैला दीं, उसकी चूत पर अपनी गंदी उँगलियाँ फेरीं, और एक घिनौनी, वहशी हँसी हँसा। रेशमी की चीखें हवा में गूँज रही थीं, वो दर्द और शर्मिंदगी से चिल्ला रही थी, और उसकी हर चीख मेरे कानों में चाकू की नोक की तरह चुभ रही थी।
मैं चीखना चाहती थी, मेरा गला फटने को था, पर मेरी आवाज़ गले में ही दम तोड़ रही थी। मैंने उस साले को धक्का मारने की कोशिश की, अपने नाखून उसकी कलाई में गहरे गड़ा दिए, पर वो मुझ पर गंदा ठहाका मारकर हँसा और मेरे और रेशमी के बाल अपनी मोटी, सख्त मुट्ठी में कसकर जकड़ लिए। उसने हमें आंगन की ओर घसीटना शुरू कर दिया—मेरे घुटने संगमरमर के ठंडे फर्श पर रगड़ते चले गए, खून की धार बहने लगी, मेरे जिस्म में ऐसा दर्द चीखा जैसे कोई चाकू से मुझे चीर रहा हो।
आंगन में ढेर सारी औरतें थीं, एक-दूसरे से सटी हुई, बेबस और टूटी। कुछ की चोलियाँ फटकर लटक रही थीं, उनके नंगे बूब्स हवा में झूल रहे थे। कुछ पूरी नंगी थीं—उनकी जाँघों पर खून और गंदगी के काले-लाल धब्बे चिपके थे, उनकी आँखों में खौफ और शर्मिंदगी का सैलाब उमड़ रहा था। उनकी टूटी सिसकियाँ हवा में तैर रही थीं, और सैनिकों की गंदी, क्रूर हँसी उसमें मिलकर एक डरावना शोर पैदा कर रही थी। मेरे पैर काँप रहे थे, मेरा दिल इस कदर धड़क रहा था जैसे सीना फाड़कर बाहर निकल जाएगा। उस साले की घिनौनी हरकतों को देखकर मेरे जिस्म में डर और गुस्सा एक साथ उफान मार रहा था। मैं समझ गई—ये हरामी हमारी चुदाई करने वाले हैं, हमें रौंद डालने वाले हैं।
मलिक नासिरुद्दीन एक ऊँची चबूतरे पर खड़ा था, जहाँ से वो सारी तबाही को अपनी वहशी नज़रों से पी रहा था। उसका जिस्म मोटा और काला था, छाती चौड़ी और पसीने से लथपथ, जैसे कोई गंदा सांड हवस की आग में तप रहा हो। उसका चेहरा सख्त और भयानक था, आँखें ऐसी चमक रही थीं मानो वासना की भट्टी में जल रही हों, हर कोने में किसी को नोचने की भूख लिए। उसकी तंग पतलून में उसका मोटा, भारी लंड साफ़ उभर रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे कपड़ा चीरकर अभी बाहर फट पड़ेगा। उसने अपने सैनिकों को एक ठंडी, गहरी, और डरावनी नज़र डाली, फिर भारी आवाज़ में हुक्म फरमाया, “जो जवान और सुंदर हैं, जिनके चूचे भरे और रसीले हैं, उन्हें हरम में ले चलो। बाकियों को तुम यही चोद सकते हो।”
सैनिकों ने औरतों को छाँटना शुरू कर दिया। मेरी दासी रेशमी मेरे बगल में खड़ी थी, उसका नंगा जिस्म ठंड से सिकुड़कर थरथरा रहा था। उसकी नाज़ुक पीठ पर सैनिक के नाखूनों के लाल, चटक निशान ऐसे जल रहे थे जैसे आग की लकीरें खिंच गई हों। पास ही एक दूसरी जवान सेविका थी—लंबी, भरे जिस्म वाली, उसका नाम था मधु। उसकी साँसें डर से उखड़ रही थीं, उसका चेहरा पीला पड़ चुका था।तभी एक सैनिक उसके पास आया। उसने अपनी चमचमाती तलवार खींची और उसकी धारदार नोक मेरे गले पर सटा दी। उसकी साँसों से शराब और सड़ांध की घिनौनी बदबू मेरे चेहरे पर टकरा रही थी, उसके गंदे थूक के छींटे मेरी त्वचा पर गिर रहे थे। वो गुर्राया, “इसकी चोली और लहंगा फाड़, इसे नंगी कर, वरना तेरी गर्दन से खून की फुहार छुड़ा दूँगा।”मेरे हाथ बुरी तरह काँप रहे थे, मेरी साँस गले में अटककर मर रही थी। मधु मेरी ओर देखकर गिड़गिड़ाने लगी, “निकिता, मुझे बचा लो, ये मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे,” उसकी टूटी आवाज़ में दर्द और डर घुला था। पर मजबूरी में मैंने धीरे-धीरे उसकी चोली पकड़ी और काँपते हाथों से फाड़ना शुरू किया—उसके मोटे, गोल बूब्स धीरे-धीरे बाहर झाँके, फिर एकदम से नंगे होकर हवा में उछल पड़े।फिर मैंने उसका लहंगा पकड़ा, उसे धीरे-धीरे नीचे खींचा, और वो पलभर में पूरी नंगी हो गई। वो अपनी चूत को हाथों से ढकने की कोशिश में छटपटा रही थी, आँसुओं से भीगा चेहरा लिए सिसक रही थी। पर सैनिक ने उसके मुँह पर एक ज़ोरदार चाँटा जड़ दिया। चटाक की तेज़, कड़क आवाज़ हवा में गूँजी, उसका मुँह एक तरफ झटके से मुड़ गया।उसी पल डर और दर्द से उसका मूत छूट गया—उसकी नंगी जाँघों से पीली धार बहती हुई ज़मीन पर एक गंदा, बदबूदार गड्ढा बना गई। सैनिक उस पर गंदी, वहशी हँसी हँसा, अपने भारी, कीचड़ सने जूते से उसकी पीठ पर क्रूर ठोकर मारी, और उसे बालों से पकड़कर घसीटते हुए ले गया।मैं कितनी नीच और बुरी हूँ, मुझे खुद से घिन होने लगी थी। मधु की वो आँखें मेरी ओर ताक रही थीं, उनमें ऐसा दर्द और इल्ज़ाम था जैसे चीख-चीखकर कह रही हों, “राजकुमारी, आप ऐसा कैसे कर सकती हैं?”
रानी की चूत का रंडापा
मेरी मम्मी, रानी देवकी, से अब रहा नहीं गया। मधु को बचाने के लिए वो भीड़ से आगे बढ़ीं। उनकी चोली पसीने से तर-बतर थी, उनके मोटे कूल्हे हर कदम पर मचलते हुए हिल रहे थे, उनकी भरी हुई जाँघें आपस में रगड़ खा रही थीं। उनकी आँखों में वही आग धधक रही थी, जो बचपन से मुझे हौसला देती आई थी। उनकी गोरी चमड़ी पसीने से चमक रही थी, उनकी साँसें तेज़ और गर्म थीं। उन्होंने उस सैनिक की तलवार छीन ली, जिसने मेरे गले पर नोक रखी थी, और तेज़ी से आगे बढ़ीं।
पर बीच में ही मलिक नासिरुद्दीन आ गया। उसकी गंदी, भूखी नज़र उनकी जाँघों के बीच ठहर गई। वो अपने होंठ चाटते हुए बोला, “रानी, तेरे ये मस्त बूब्स और गीली चूत मेरे लंड के लिए बने हैं। मेरी बेगम बन जा, हर रात तुझे चोदूँगा।” उसकी आवाज़ से हवस टपक रही थी। उसकी पतलून में उसका लंड सख्त होकर फड़फड़ा रहा था, और उसकी टाइट पतलून में एक गीला धब्बा साफ़ उभर आया था।
मम्मी ने उसके मुँह पर जोर से थूक दिया। थूक उसके गंदे गाल पर लगा और धीरे-धीरे नीचे टपकने लगा। उनकी आँखें तलवार की धार की तरह चमक उठीं। वो गरजकर बोलीं, “मालवा की औरतें तेरे जैसे साले का खिलौना नहीं बनतीं। मेरी चूत मेरी इज़्ज़त की है, तेरे गंदे लंड की नहीं।” उनकी आवाज़ मेरे सीने में चाकू की तरह चुभ गई।
मलिक का चेहरा गुस्से से लाल हो गया, उसकी आँखें भट्टी की तरह सुलग उठीं। वो मेरी तरफ मुड़ा और एक सैनिक को इशारा किया। सैनिक तेज़ी से मेरे पास आया, उसने मेरी चोली को बेरहमी से पकड़ लिया—उसकी मुठ्ठी में मेरा कपड़ा चरमराकर फटने की कगार पर था। वो दहाड़ा, “चालाकी की तो इसे अभी फाड़ दूँगा, तेरी बेटी को नंगी करके यहीं तेरे सामने चोद डालूँगा।”
फिर उसने मम्मी की तरफ देखा और बोला, “अपनी बेटी की इज़्ज़त बचानी है तो चुपचाप खड़ी रह, कुछ मत कर।” मम्मी की आँखों में आग काँप उठी, उनकी साँसें तेज़ और भारी हो गईं, पर वो रुक गईं , उनके साथ से तलवार नीचे गिर गई—मेरे लिए उनकी हिम्मत टूट रही थी। तभी मलिक आगे बढ़ा और मम्मी को अपनी मोटी बाँहों में जकड़ लिया, उनके जिस्म को अपने पसीने से भरे सीने से चिपका लिया।
मलिक ने मम्मी के होंठों पर एक गहरा, हवस भरा चुंबन दिया—उसके होंठ उनके होंठों को चूस रहे थे, उसकी जीभ उनके मुँह में घुस गई, उसकी गंदी लार उनके चेहरे पर फैल रही थी। साथ ही उसने मम्मी की चोली में हाथ डाला, उनके बूब्स को पकड़कर मसलने लगा। उसके मोटे हाथ उनके भरे हुए बूब्स को दबा रहे थे, निप्पल को उँगलियों से रगड़ रहे थे। बूब्स दबते ही मम्मी के मुँह से सिसकी निकली—हल्की “आह… उफ्फ” की आवाज़ हवा में गूँज रही थी। मलिक की आँखों में वासना जल रही थी, मम्मी की आँखों में मजबूरी और डर साफ दिख रहा था।
थोड़ी देर बाद मलिक ने मम्मी की चोली को एक झटके में फाड़ दिया—उनके दोनों बूब्स नंगे हो गए, गोल, भरे हुए, निप्पल सख्त और लाल, पसीने से चमक रहे थे। मलिक उनके बूब्स पर टूट पड़ा—एक निप्पल को अपने मुँह में लिया, ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगा, उसकी जीभ उनके निप्पल को चाट रही थी। दूसरा बूब्स उसके हाथ में था, वो उसे मसल रहा था, अपनी उँगलियों से निप्पल को कसके दबा रहा था। फिर उसने मम्मी का लहंगा पकड़ा, उसे नीचे खींच दिया—लहंगा ज़मीन पर गिर गया, उनकी गोरी जाँघें नंगी हो गईं। उनकी चूत दिख रही थी—झाँटों से भरी, काली और घनी, डर और गर्मी से गीली हो चुकी थी।
मलिक ने अपना लंड निकाला—उसने अपनी पतलून खोली, उसका मोटा, काला लंड बाहर आ गया, करीब आठ इंच लंबा, नसें फूली हुई, टिप से गंदा पानी टपक रहा था। उसने मम्मी के बूब्स के बीच अपना लंड रखा, उन्हें चोदने लगा—उसका लंड उनके बूब्स को रगड़ रहा था, निप्पल उसके लंड की टिप से टकरा रहे थे। फिर उसने मम्मी को ज़मीन पर लिटाया, 69 की पोज़िशन में आ गया—उसने अपना लंड मम्मी के मुँह में घुसा दिया, उनकी जीभ उसके लंड को चाटने लगी, और वो उनकी झाँटों वाली चूत में अपनी जीभ डालने लगा। उसकी जीभ उनकी चूत के अंदर-बाहर हो रही थी, झाँटों को चाट रही थी। चूत में जीभ जाते ही मम्मी सिहर उठीं, उनका जिस्म काँपने लगा, पर मुँह में लंड होने से वो सिर्फ “उम्म… उम्म” की आवाज़ निकाल पाईं। मलिक ने उनकी चूत को और चाटा, फिर उनके पूरे जिस्म पर अपनी जीभ फिराई—उनके निप्पल, पेट, जाँघें, सब कुछ उसकी गंदी लार से भीग गया।
फिर मलिक उठा, उसने मम्मी को अपनी बाँहों में उठाया, उनके कूल्हों को पकड़ा, और उन्हें अपनी जाँघों पर बैठा लिया। उसने अपने लंड पर इशारा किया। मम्मी की साँसें रुक गईं, पर मजबूरी में उन्होंने अपनी चूत को हाथ से फैलाया, उसकी टिप को एडजस्ट किया, और एक झटके में उसका आठ इंच लंबा लंड अंदर ले लिया। वो धीरे-धीरे आगे-पीछे होने लगीं—उनकी चूत उसके लंड को निगल रही थी, हर हरकत के साथ एक गीली “छप-छप” की आवाज़ गूँज रही थी। लंड की मोटाई से मम्मी को दर्द होने लगा, वो चिल्लाईं, “उई… उफ्फ… हाय मेरी चूत… आह आह!” उनकी सिसकियाँ हवा में फैल रही थीं।
इसके बाद मलिक ने मम्मी को कुतिया बनाया—उन्हें घुटनों पर झुकाया, उनकी गांड ऊपर उठाई, और पीछे से अपना लंड उनकी चूत में घुसा दिया। वो जोर-जोर से चोदने लगा—हर धक्के के साथ मम्मी की गांड हिल रही थी, उनके बूब्स लटककर झूल रहे थे। उनकी चूत से पानी की बूँदें टपक रही थीं, उनकी झाँटें गीली होकर चिपक गई थीं। मलिक का लंड उनकी चूत को रगड़ रहा था, उसकी गर्मी उनके जिस्म में फैल रही थी।
फिर मलिक खड़ा हो गया, मम्मी को अपनी बाँहों में उठाया, उनके जिस्म को अपने सीने से चिपकाया, और खड़े-खड़े चोदने लगा। उनके होंठ फिर से मिल गए—मलिक उनके होंठों को चूस रहा था, उसकी जीभ उनके मुँह में घूम रही थी। मम्मी की टाँगें हवा में लटक रही थीं, उनका जिस्म हर धक्के के साथ उछल रहा था। मलिक ने अपना लंड निकाला, उसे उनकी गांड पर रखा, पर मम्मी हाँफते हुए बोलीं, “नहीं, मेरी चूत फाड़ दो, गांड मत मारो… बहुत दर्द होता है।” मलिक हँसा, फिर उसने अपना लंड उनकी झाँटों वाली चूत में डाल दिया।
15 मिनट तक मलिक ने मम्मी की चूत को जमकर रगड़ा—हर धक्का गहरा और तेज़ था, उनकी चूत लाल और गीली हो गई थी। उनकी झाँटें खून और पानी से सन गई थीं। आखिर में मलिक झड़ गया—उसका गर्म, गाढ़ा वीर्य मम्मी की चूत में भर गया, बाहर टपकने लगा, उनकी जाँघों पर फैल गया। मम्मी की चूत से भी पानी बह रहा था, दोनों का माल मिलकर ज़मीन पर गंदा गड्ढा बना रहा था। मलिक ने अपना लंड बाहर खींचा, उस पर खून और वीर्य लगा था, वो हाँफ रहा था, उसकी गंदी हँसी हवा में गूँज रही थी। मम्मी की साँसें तेज़ थीं, उनकी आँखों में आग आँसुओं से बुझ चुकी थी, उनका चेहरा पसीने और दर्द से सन गया था।
मैं वहीँ खड़ी थी, मेरे बाल उस साले सैनिक की पकड़ में जकड़े थे, मेरी चोली उसकी मुठ्ठी में चरमरा रही थी। रेशमी मेरे बगल में थी, उसकी साँसें रुक-रुककर चल रही थीं। मैं कुछ करना चाहती थी, मेरे हाथ काँप रहे थे, पर मेरे जिस्म में जैसे जान ही नहीं बची थी। मेरा सीना भारी हो गया था, जैसे कोई मेरे दिल को मसल रहा हो। मेरे निप्पल चोली में सख्त हो गए थे—दुख और गुस्से का तूफान मेरे अंदर उफान मार रहा था। मलिक ने मम्मी को चोदने के बाद मेरी तरफ देखा, उसकी गंदी हँसी मेरे कानों में गूँजी, और मैं समझ गई—अब ये हरामी मेरे जिस्म को नोचने वाला था।
माँ की चुदाई के बाद मेरे जिस्म में एक जलता दर्द था, मेरी चूत में चिपचिपा गीलापन था—शर्मिंदगी की आग और उत्तेजना की ठंडक का अजीब मेल। मलिक ने माँ को ज़मीन से खींचकर उठाया, उनके नंगे, टूटे जिस्म को अपनी बाँहों में कस लिया। उनकी जाँघें और चूत खून और वीर्य से लथपथ थीं, उनकी गोरी चमड़ी पर लाल और नीले निशान उभर आए थे। उनके बूब्स पसीने से भीगे थे, निप्पल सख्त और काले पड़ गए थे। मलिक ने उनकी जाँघों पर अपने गंदे हाथ रगड़े, उनके बूब्स को ज़ोर से मसला—उनके मुँह से एक कमज़ोर सिसकी निकली। उसने सैनिकों को हुक्म दिया, “इसे मेरे तंबू में ले चलो। ये अब मेरी रखैल है—हर रात मेरे लंड की भूख मिटाएगी।” माँ की साँसें रुक-रुककर चल रही थीं, उनकी आँखों में आँसुओं की धुंध थी, उनका चेहरा पसीने, गंदगी, और दर्द से सन गया था। एक सैनिक ने उनके बालों को मुठ्ठी में जकड़ा, उन्हें अपने कंधे पर लाद लिया—उनका नंगा जिस्म हवा में लटक रहा था, उनकी जाँघें धूल से सन रही थीं, उनके बूब्स हर कदम के साथ हिल रहे थे। मलिक ने उनकी गांड पर एक ज़ोरदार थप्पड़ मारा, उनकी चमड़ी लाल हो गई, और वो उनके पीछे चल पड़ा—उसकी हवस भरी नज़रें उनके जिस्म को चाट रही थीं।
हरम का सफर
फिर मलिक की भेड़िए जैसी आँखें मुझ पर टिक गईं। दो सैनिक मेरी तरफ बढ़े—उनके हाथ पसीने और खून से चिपचिपे थे, उनकी साँसों से शराब और सड़ांध की बदबू मेरे मुँह में घुस रही थी। उन्होंने मेरे हाथ पकड़े और मुझे मलिक के सामने घसीट लाया। एक सैनिक ने मेरा लहंगा पकड़ा और एक झटके में खींचा—कपड़ा चरमराता हुआ जाँघों तक फट गया, मेरी चूत नंगी हो गई। उसकी काली, घनी झाँटें हवा में चमक रही थीं, डर और गर्मी से गीली थीं। मेरी चोली अभी बची थी, मेरे बूब्स उसमें कसकर दबे थे, पसीने से चिपचिपे हो गए थे, पर मेरी नंगी जाँघें और चूत सबकी हवस भरी नज़रों के सामने थीं। मेरे निप्पल चोली को चीरते हुए सख्त हो गए थे, मेरी जाँघें काँप रही थीं, मेरे जिस्म में ठंडी सिहरन दौड़ रही थी। मलिक ने मुझे ऊपर से नीचे तक नापा, उसकी आँखें मेरी नंगी चूत पर अटक गईं। उसने अपनी पतलून के ऊपर से अपने फड़फड़ाते लंड को सहलाया और बोला, “इसकी टाइट चूत और मोटी गांड सुल्तान के लंड को मज़ा देगी। इसे तैयार करो।” उसकी आवाज़ में हवस की गर्मी थी।
मैंने उसकी आँखों में देखा, मेरा गुस्सा मेरे सीने में लावा बनकर उबल रहा था। मैं चीखकर बोली, “मैं किसी सुल्तान की गुलाम नहीं बनूँगी। अपनी गंदी हवस अपने पास रख, साले!” मेरी आवाज़ काँप रही थी, पर मेरे शब्द आग की तरह थे। मलिक ठहाका मारकर हँसा, उसकी हँसी मेरे कानों में ज़हर की तरह घुसी। उसने सैनिकों की तरफ देखा और दहाड़ा, “इस नखरे वाली को हरम में भेज दो। सुल्तान इसे तोड़कर अपनी गुलाम बनाएगा, या वहाँ के सैनिक इसके हर छेद को नोच लेंगे।” फिर वो माँ को कंधे पर लादे सैनिक के पीछे चल पड़ा—उनके नंगे जिस्म पर एक आखिरी गंदी नज़र डालते हुए, उसकी हँसी हवा में छूट रही थी।
सैनिकों ने हम सब लड़कियों को इकट्ठा किया—उनकी चीखें हवा को चीर रही थीं। एक सैनिक ने मेरे बूब्स को चोली के ऊपर से ज़ोर से दबाया, उसकी गंदी उँगलियाँ मेरे निप्पल को चुटकी से कुचल रही थीं। मैं चीखी, मेरी आवाज़ आसमान तक गई, पर उसने मेरी जाँघें फैलाईं और अपनी दो मोटी उँगलियाँ मेरी नंगी चूत में घुसा दीं। मेरी चूत गीली थी, उसकी उँगलियाँ मेरे अंदर रगड़ रही थीं, एक जलन और गर्मी मेरे जिस्म में फैल रही थी। दूसरा सैनिक मेरी गांड पर थप्पड़ मार रहा था—उसकी हथेलियाँ मेरे कूल्हों पर जलते निशान छोड़ रही थीं, हर चोट के साथ मेरी चूत और गीली हो रही थी। मैं रो रही थी, मेरे आँसू मेरे गालों को भिगो रहे थे, पर मेरा शरीर मुझे धोखा दे रहा था—मेरी साँसें तेज़ थीं, मेरी चूत में सनसनाहट थी। बाकी लड़कियों की चोलियाँ फाड़ दी गईं—उनके नंगे बूब्स हवा में लटक रहे थे, उनकी जाँघें जबरदस्ती फैलाई जा रही थीं। एक लड़की की चूत से खून टपक रहा था, सैनिक उस पर चढ़ा हुआ था, उसकी चीखें टूट-टूटकर निकल रही थीं। कुछ औरतों ने अपने दुपट्टों से गला घोंट लिया—उनके नंगे जिस्म धूल में पड़े थे, कौवे उनकी जाँघों को नोच रहे थे।
सैनिकों ने हमें जंजीरों में जकड़ा—लोहे की ठंडी ज़ंजीरें मेरे हाथों और पैरों में कस गईं, मेरी चमड़ी रगड़ से छिल गई, खून की पतली धार बहने लगी। फिर हमें हरम की तरफ घसीटना शुरू किया। मेरी चूत अभी भी नंगी थी, मेरे कूल्हे हर कदम के साथ हिल रहे थे, मेरी जाँघों पर पसीना और धूल जम रही थी। मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था, मेरे सीने में डर और गुस्सा उबल रहा था, पर मेरी चूत में वो चिपचिपा गीलापन बढ़ता जा रहा था। रास्ता लंबा और बेरहम था—धूप मेरी नंगी जाँघों को जला रही थी, मेरे पैर काँप रहे थे। मैं जानती थी—हरम में मेरी यातना का अगला दरवाज़ा खुलने वाला था।
हमें हरम की तरफ घसीटा जा रहा था। रास्ता लंबा और बेरहम था—धूप मेरी नंगी जाँघों को झुलसा रही थी, हर किरण मेरी चमड़ी को चाकू की तरह चीर रही थी। मेरा फटा लहंगा हवा में लहरा रहा था, मेरी चूत पर पसीना और धूल की मोटी परत जम गई थी—उसकी काली झाँटें गंदगी से चिपक रही थीं। मेरी चोली अभी बरकरार थी, पर मेरे बूब्स उसमें कसकर दबे थे, पसीने से तर और चिपचिपे हो गए थे, मेरे निप्पल कपड़े को चुभ रहे थे। हर कदम पर मेरी चूत में जलन थी, जैसे कोई उसे अंदर से जलाता जा रहा हो। मेरे पैर काँप रहे थे, मेरी जाँघें रगड़ से लाल हो गई थीं। रास्ते में कई लड़कियाँ टूट गईं—उनकी लाशें धूल में पड़ी थीं, उनकी नंगी जाँघें हवा में खुली थीं, कौवे उनके मांस को नोच रहे थे, उनकी चूतों से सूखा खून बह रहा था। उनकी खाली आँखें मुझे घूर रही थीं, मेरे सीने में डर और गुस्सा उबल रहा था।
दिल्ली के हरम में पहुँचते ही हमें एक विशाल हॉल में ठूँस दिया गया। हरम एक शाही जेल था—सोने की दीवारें चमक रही थीं, रेशमी पर्दों से ढके कमरे हवा में लहरा रहे थे, और हवा में मादक इत्र की गंध थी, जो मेरे गले को जकड़ रही थी। लेकिन यहाँ की हर साँस गुलामी की थी—हवा में चीखों और हवस की सड़ांध घुली थी। चारों ओर नंगी औरतें थीं—कुछ की चूतें दागदार और फटी हुई थीं, कुछ की गांड पर सुल्तान के नाम के काले निशान खुदे थे। मेरे साथ रेशमी और मीना थीं—महल की जवान सेविकाएँ, दोनों पहले से नंगी थीं। रेशमी की चूत पर लाल निशान थे, मीना की गांड पर खून के धब्बे सूखे पड़े थे। सैनिकों ने मेरे फटे लहंगे को एक झटके में छीन लिया, मेरी चोली को दोनों हाथों से फाड़ दिया—कपड़ा चरमराता हुआ टूट गया। अब मैं पूरी नंगी थी—मेरे बूब्स हवा में तने हुए थे, गोल और भरे हुए, मेरे निप्पल सख्त और काले हो गए थे, मेरी चूत सबके सामने खुली थी, उसकी झाँटें पसीने से चिपकी थीं। मेरी शर्मिंदगी मेरे चेहरे पर आग की तरह जल रही थी, मेरी आँखें नीची थीं, पर मेरे जिस्म में एक अजीब गर्मी सुलग रही थी—मेरी चूत में सनसनाहट थी, मेरे बूब्स भारी हो गए थे।
एक सैनिक मेरे पास आया—उसके हाथों से खून और गंदगी टपक रही थी। उसने एक गर्म लोहे की सलाई उठाई, उसकी टिप लाल और जलती हुई थी। उसने मेरी गांड को पकड़ा, मेरे कूल्हों को मुठ्ठी में जकड़ा, और सलाई को मेरी चमड़ी पर दबा दिया—उर्दू में “गुलाम” लिखा गया। दर्द ऐसा था कि मेरी चीख हॉल की दीवारों से टकराकर गूँज उठी, मेरे जिस्म में आग दौड़ गई। मेरी चूत से पसीना टपक रहा था, मेरी जाँघें काँप रही थीं, मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। मैं बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ी। जब होश आया, मैं नंगी पड़ी थी—मेरे गले में एक काला पट्टा कस गया था, मेरी गांड पर जलन थी, “गुलाम” का दाग मेरी चमड़ी में हमेशा के लिए जल चुका था। दर्द मेरे जिस्म को चीर रहा था, मेरी साँसें टूट रही थीं। मेरे चारों ओर और लड़कियाँ थीं—कुछ रो रही थीं, उनकी आँखें सूजी हुई थीं, कुछ अपनी गांड को सहला रही थीं, उनकी चूतों से पसीना और खून की बूँदें टपक रही थीं। हवा में उनकी सिसकियाँ गूँज रही थीं।
चूत बनी चूत की गुलाम
तभी एक औरत आई—लायला। वो सुल्तान के सेनापति की पत्नी थी। उसकी त्वचा गोरी और चमकदार थी, उसके होंठ लाल और गीले थे, उसका शरीर भरा हुआ और मादक था। उसकी चोली तंग थी, उसके बूब्स बाहर झाँक रहे थे, उनके बीच की गहरी खाई साफ दिख रही थी। उसकी कमर हर कदम पर लचक रही थी, उसकी जाँघें लहंगे से बाहर चमक रही थीं। उसने मुझे देखा, उसकी आँखें मेरी नंगी चूत पर ठहर गईं—उसकी नज़रें मेरी झाँटों को चाट रही थीं। उसने अपनी जीभ होंठों पर फेरी और बोली, “तेरे ये टाइट बूब्स और गीली चूत मेरे लिए बने हैं। मैंने तुझे चुन लिया, वरना ये सैनिक तेरे हर छेद को चोदकर फाड़ डालते। अब तू मेरी गुलाम है।” उसकी आवाज़ में हवस और सत्ता का मिश्रण था। मेरे गले में डर अटक गया, मेरी आँखों में माँ की चुदाई और टूटन की यादें तैर रही थीं। मेरा मन चीखना चाहता था, पर मेरे पास कोई रास्ता नहीं था। मैंने मजबूरी में हाँ में सिर हिलाया। उसने मुझे उठने का इशारा किया। मेरी गांड दर्द से चीख रही थी, हर कदम पर जलन मेरे जिस्म को काट रही थी। मेरा नंगा शरीर काँप रहा था, पर मैं लंगड़ाते हुए उसके पीछे चली। मेरी चूत में सनसनाहट तेज़ हो गई थी, मेरे बूब्स हर कदम पर हिल रहे थे, मेरी जाँघें पसीने से चिपक रही थीं।
लायला मुझे अपने कक्ष में ले गई। कमरा शाही और भारी था—रेशमी पर्दे हवा में लटक रहे थे, दीवारों पर सजावट मद्धम चमक रही थी, और हवा में चंदन की गंध मेरे गले को जकड़ रही थी। उसने मुझे कोई कपड़ा नहीं दिया—बस सस्ते, भारी गहने फेंके। लोहे का मोटा हार, कलाइयों में काले धातु की चूड़ियाँ, और टखनों में घुँघरू—हर कदम पर उनकी खनक मेरे कानों में गूँज रही थी। हार मेरे बूब्स के बीच लटक रहा था, उसकी ठंडी धातु मेरे निप्पल को चुभ रही थी। मेरे बूब्स हवा में तने हुए थे, मेरे निप्पल सख्त और काले, मेरी गांड और चूत पूरी नंगी थीं—हर नज़र के लिए खुली। मैं हिलती, तो घुँघरू बजते, मेरी चूत की गीली रेखा हवा में चमकती। मेरे शरीर पर पसीना था, मेरी साँसें भारी थीं, मेरी गांड पर “गुलाम” का दाग अभी भी जल रहा था—हर साँस के साथ उसकी आग मेरे जिस्म को चीर रही थी।
लायला मेरे पास आई—उसकी चमड़ी गर्म और चिकनी थी। उसने मेरे बूब्स को पकड़ा, अपनी उँगलियाँ मेरे निप्पल पर रगड़ीं—उसकी ठंडी धातु मेरी चमड़ी में घुस रही थी। मेरे मुँह से सिसकी निकल गई—“उई…”—मेरी आवाज़ कमरे में गूँजी। उसकी उँगलियाँ मेरी गांड पर फिसलीं, “गुलाम” के दाग को सहलाया—उसने ज़ोर से दबाया, मेरे जिस्म में दर्द की लहर दौड़ गई, मेरे मुँह से एक दबी चीख निकली। उसने कहा, “तू मेरे कमरे में रहेगी—मेरी नंगी दासी।” उसकी आवाज़ में हवस और सत्ता टपक रही थी। रात को उसने मुझे गुलामों के कमरे में भेजा। वहाँ रेशमी और मीना थीं—दोनों नंगी, उनके जिस्म पर सैनिकों के नाखूनों और दाँतों के गहरे निशान थे। रेशमी की जाँघें खून से सनी थीं, उसकी चूत सूजी हुई और फटी थी, उसकी आँखें खाली थीं। उसने मुझे देखा और बोली, “लायला ने तुझे बचा लिया। यहाँ मर्द हमारे छेद हर रात फाड़ते हैं। मेरी चूत को देख—खून और वीर्य से भरी है, सड़ रही है।” उसकी जाँघों पर लाल धब्बे चमक रहे थे, उसकी चूत से गंदी सड़ांध आ रही थी। मीना ने ठंडी हँसी हँसकर कहा, “वह अपनी कुंवारी दासियों को अपनी शान बनाती है। तेरी टाइट चूत उसकी ट्रॉफी है।” उसकी आवाज़ में कड़वाहट थी, उसकी आँखें जल रही थीं।
मैंने काँपते स्वर में पूछा, “क्या मैं मर्दों से बच गई?” रेशमी ने जवाब दिया, “हाँ, पर लायला की वासना से नहीं। वह तुझे अपने लिए रखेगी—तेरे जिस्म का हर कोना उसका है।” उसकी आवाज़ में दर्द था, उसकी टूटी साँसें हवा में गूँज रही थीं। मेरे दिल में डर की ठंडी सुई चुभ गई, पर मेरी चूत में सनसनाहट बढ़ रही थी—लायला की गुलामी मेरी रगों में समा रही थी।
एक दिन लायला के कक्ष में मेहमान आए। उसने मुझे अपने हाथों से सजाया—उसकी उँगलियाँ मेरे नंगे जिस्म पर रेंग रही थीं, मेरे बूब्स को सहला रही थीं, मेरी चूत पर ठहर रही थीं। उसने मुझे कोई कपड़ा नहीं दिया—बस भारी गहने पहनाए। लोहे का मोटा हार मेरे बूब्स के बीच लटक रहा था, उसकी ठंडी धातु मेरे निप्पल को चुभ रही थी। कानों में लंबे झुमके, कलाइयों में चूड़ियाँ, टखनों में घुँघरू, और कमर पर एक मोटी काली ज़ंजीर—हर कदम पर घुँघरू खनक रहे थे। मेरे बूब्स हवा में तने हुए थे, मेरे निप्पल सख्त और चमकते थे, मेरी गांड और चूत पूरी नंगी थीं—जैसे हवस का नंगा खिलौना सबके सामने खड़ा हो। मेरे बाल खुले थे, हवा में लहरा रहे थे, मेरे सिर पर काला मुकुट चमक रहा था। मेरा शरीर सेक्स की मूर्ति था—हर कदम पर मेरे बूब्स हिल रहे थे, घुँघरू मेरे टखनों पर बज रहे थे, मेरी चूत में गीलापन बढ़ रहा था। मेरी साँसें तेज़ थीं, मेरे जिस्म में शर्मिंदगी की आग और उत्तेजना का तूफान उमड़ रहा था—मेरा चेहरा जल रहा था, मेरी आँखें नीची थीं।
लायला ने मुझे मेहमानों की खातिरी के लिए भेजा। मैं नंगी उनके बीच गई—चाँदी की तश्तरी में शराब लिए, मेरे हाथ काँप रहे थे, मेरे बूब्स हर हरकत के साथ हिल रहे थे, घुँघरू हर कदम पर खनक रहे थे। औरतें मुझे जलन भरी नज़रों से घूर रही थीं—उनकी आँखों में ईर्ष्या की चिंगारी सुलग रही थी, उनकी साँसें तेज़ थीं। मर्द मेरी गांड को भूखी नज़रों से नोच रहे थे—उनकी हवस मेरे जिस्म को चाट रही थी। एक मोटा मर्द मेरे पास आया—उसके हाथ गंदे और पसीने से तर थे। उसने मेरे बूब्स को ज़ोर से दबाया—उसकी उँगलियाँ मेरे निप्पल को कुचल रही थीं, हार मेरी चमड़ी में घुस रहा था। मैं सिहर उठी, मेरे मुँह से सिसकी निकल गई—“आह…”—मेरी आवाज़ हवा में डूब गई। दूसरा मर्द मेरी जाँघों के बीच हाथ ले गया—उसकी मोटी उँगलियाँ मेरी चूत को रगड़ रही थीं, उसकी गर्मी मेरे जिस्म में आग लगा रही थी। मैं काँप रही थी, मेरी चूत गीली हो रही थी, मेरा जिस्म पसीने से चिपचिपा था। मेरे घुँघरू हर थरथराहट के साथ बज रहे थे, मेरी शर्मिंदगी सबके सामने नंगी हो रही थी। तभी लायला की गरज गूँजी, “बस करो! ये मेरी है।” उसकी आवाज़ में मालकिन की सत्ता और गुस्सा था—मर्द पीछे हट गए, उनकी आँखों में हवस अधूरी रह गई।
रात खत्म होने पर लायला ने मुझे फिर से नंगा छोड़ दिया—सिर्फ गहने मेरे जिस्म पर चमक रहे थे, घुँघरू मेरे टखनों पर खनक रहे थे। मेरे बूब्स हवा में तने थे, मेरे निप्पल सख्त थे, मेरी गांड और चूत खुली थीं। कमरे के कोने में रेशमी और मीना थीं—दोनों नंगी, उनके जिस्म पर सैनिकों के नाखूनों और दाँतों के गहरे निशान थे। एक सैनिक ने रेशमी की जाँघें फैलाईं—उसकी चमड़ी चरमराती हुई फट रही थी—और अपना मोटा, काला लंड उसकी चूत में घुसा दिया। वह चीख रही थी—“उई माँ… मार डाला”—उसकी चूत से खून टपक रहा था, उसकी आँखें आँसुओं से भरी थीं। दूसरा सैनिक मीना को ज़मीन पर पटककर उसकी गांड चोद रहा था—उसका लंड अंदर-बाहर हो रहा था, मीना की चीखें कमरे में गूँज रही थीं—“हाय… फट गई”—उसकी गांड से खून बह रहा था। उनकी चीखें मेरे कानों में चाकू की तरह चुभ रही थीं, मेरे दिल में डर और दुख की लहरें उठ रही थीं।
लायला मेरे पास आई—उसकी चमड़ी गर्म और नरम थी। उसने मेरे गाल पर हाथ फेरा, उसकी उँगलियाँ मेरे होंठों पर रुकीं, फिर मेरी चूत पर फिसल गईं। “तू मेरी शान है,” उसने कहा, उसकी आवाज़ में वासना की भूख टपक रही थी। उसकी उँगलियाँ मेरी चूत पर रगड़ रही थीं—उसकी गर्मी मेरे जिस्म में आग लगा रही थी। “ये मर्द तेरे छेद नहीं भर सकते, पर मैं भरूँगी।” उसकी आँखों में हवस की चमक थी, उसकी साँसें मेरे चेहरे पर गर्म थीं। मैं चुप थी, मेरी चूत में सनसनाहट तेज़ हो गई थी, मेरे घुँघरू हल्के से बज रहे थे—लायला की गुलामी मेरी हर साँस में बस गई थी।