माधवी ने पैसे के बदले चूत दी

tmkoc xxx माधवी अपने छोटे से घर के कोने में बैठी थी, मेज पर ढेर सारे अचार और पापड़ के पैकेट बिखरे हुए थे। उसका चेहरा थोड़ा उदास था, लेकिन हाथ तेजी से काम कर रहे थे। उसकी उम्र करीब 35 साल थी, गोरा रंग, भरा हुआ बदन, और नीली साड़ी में उसकी गोरी बाहें और गहरी नाभि साफ दिख रही थी। उसका ब्लाउज थोड़ा तंग था, जिससे उसके भारी चूचे उभर कर सामने आ रहे थे। माधवी की जिंदगी में पैसे की तंगी हमेशा साये की तरह रही थी। भिड़े, उसका पति, एक स्कूल टीचर था, जो दिन-रात ट्यूशन में व्यस्त रहता था, लेकिन कमाई इतनी नहीं थी कि माधवी अपनी छोटी-छोटी ख्वाहिशें पूरी कर पाए।

उसने मेज पर रखा अखबार उठाया और उसमें एक विज्ञापन पर नजर पड़ी। साड़ियों की बड़ी सेल थी, जिसमें एक से बढ़कर एक साड़ियाँ सस्ते दामों पर मिल रही थीं। माधवी की आँखें चमक उठीं, लेकिन तुरंत ही उसका चेहरा लटक गया। उसने मन ही मन सोचा, “काश मेरे पास 8-10 हजार रुपये होते, तो मैं भी दो साड़ियाँ खरीद लेती। सोसाइटी की औरतें मुझे देखकर जलतीं।” उसने एक गहरी सांस ली और खुद से बड़बड़ाने लगी, “ये भिड़े तो कंजूस नंबर एक है। कभी मेरी जरूरतों का ख्याल ही नहीं करता। और जो मैं अचार बेचकर कमाती हूँ, उससे तो बस घर का खर्चा निकलता है। साड़ी का सपना तो सपना ही रह जाएगा।”

वो उदास मन से फिर अपने काम में लग गई। तभी दरवाजे पर जोर से खट-खट की आवाज हुई। माधवी ने साड़ी का पल्लू ठीक किया और दरवाजे की ओर बढ़ी। बाहर चंपक लाल, जेठालाल के पिता, खड़े थे। चंपक चाचा की उम्र 60 के आसपास थी, लेकिन उनका जोश और चाल-ढाल अभी भी जवान थी। उनकी धोती और कुर्ता साफ-सुथरा था, और चेहरे पर एक शरारती मुस्कान थी। वो आज सुबह घर से बिना किसी खास मकसद के निकले थे। रास्ते में भिड़े को कहीं जाते देखा और सोनू को स्कूल की बस में चढ़ते हुए। चंपक चाचा ने सोचा, “क्यों न आज माधवी से अकेले में मिल लिया जाए?” और बस, वो सीधे उसके घर पहुँच गए।

माधवी ने दरवाजा खोला और चंपक चाचा को देखकर हल्की सी मुस्कान दी। “अरे चाचा जी, आप? आइए न, अंदर आइए!” उसकी आवाज में मिठास थी, लेकिन चंपक की नजरें माधवी के गदराए बदन पर टिक गईं। उसकी नीली साड़ी में उसका गोरा रंग और भरे हुए चूचे मानो चंपक को ललकार रहे थे। वो मदहोश सा हो गया और माधवी के पीछे-पीछे चल पड़ा। अंदर आकर वो सोफे पर बैठ गया।

“माधवी बेटी, भिड़े घर पर है क्या?” चंपक ने जानबूझकर पूछा, जबकि उसे पता था कि भिड़े बाहर गया है।

“नहीं चाचा जी, वो तो बाहर गए हैं। क्यों, कोई काम था?” माधवी ने जवाब दिया, और अपने हाथ से साड़ी का पल्लू थोड़ा और ठीक किया।

“हाँ, थोड़ा सा काम था, पर कोई बात नहीं। मैं बाद में मिल लूँगा। वैसे तुम क्या कर रही हो?” चंपक ने बात को घुमाते हुए पूछा और हल्के से माधवी की गोरी बांह को छू लिया।

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माधवी ने हल्का सा झटका देकर अपना हाथ पीछे खींच लिया और कहा, “कुछ नहीं चाचा जी, बस अचार के पैकेट बना रही थी।”

चंपक ने बात को आगे बढ़ाया, “तो माधवी, अचार बेचकर कितना कमा लेती हो?”

“जी, ज्यादा नहीं। बस गुजारा हो जाता है,” माधवी ने थोड़ा उदास लहजे में कहा।

“अरे, मंदी का जमाना है, सबका यही हाल है,” चंपक ने सहानुभूति दिखाते हुए कहा। फिर उसने मुस्कुराकर पूछा, “कुछ चाय-पानी पिलाओगी चाचा को?”

माधवी हँस पड़ी, “जी चाचा जी, आप बैठिए, मैं अभी चाय लाती हूँ।” वो किचन की ओर चली गई, और उसकी गांड मटकती हुई चंपक की आँखों में बस गई। वो सोफे पर बैठा-बैठा उसके ख्यालों में डूब गया।

थोड़ी देर बाद माधवी चाय का कप लेकर आई। जब वो कप देने के लिए झुकी, तो उसका पल्लू थोड़ा सरक गया। चंपक की नजरें सीधे उसके गोरे चूचों की गहरी लाइन पर पड़ीं। माधवी ने फट से उसकी नजर पकड़ ली और पल्लू से अपने चूचे ढक लिए। वो सामने सोफे पर बैठ गई, लेकिन चंपक की आँखें अब भी उसके बदन को घूर रही थीं। चाय पीते हुए वो बोला, “माधवी बेटी, तुम कुछ परेशान सी लग रही हो। कोई बात है?”

“नहीं चाचा जी, ऐसी कोई बात नहीं,” माधवी ने हल्के से जवाब दिया, लेकिन उसकी आवाज में हल्की सी बेचैनी थी। चंपक की घूरती नजरें उसे असहज कर रही थीं।

“अरे, अगर कुछ है तो बता दो। शायद चाचा तुम्हारी मदद कर दे,” चंपक ने कहा, और उसकी आवाज में एक अजीब सी गर्मी थी।

माधवी चुप रही। वो सोच में पड़ गई कि चंपक की नजरें तो कुछ और ही कह रही हैं, लेकिन फिर उसे साड़ी का ख्याल आया। उसने हिम्मत जुटाई और बोली, “चाचा जी, क्या आप मुझे कुछ पैसे उधार दे सकते हैं?”

“पैसे? किस लिए चाहिए, बेटी?” चंपक ने भोलेपन से पूछा।

“वो… बस कुछ काम है। मैं लौटा दूँगी। 8 हजार चाहिए,” माधवी ने हिचकिचाते हुए कहा।

चंपक ने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे माधवी, पैसे लौटाने की क्या जरूरत? मेरे पास तो ढेर सारे पैसे हैं।”

“नहीं चाचा जी, मैं आपके पैसे मुफ्त में नहीं ले सकती,” माधवी ने साफ कहा।

चंपक ने अपनी आवाज को और गहरा किया, “माधवी, पैसे तो हैं, लेकिन… मैं थोड़ा अकेला महसूस कर रहा हूँ।”

“मतलब?” माधवी ने भौंहें चढ़ाईं।

चंपक ने सीधे-सीधे कह दिया, “अगर तू मेरे साथ एक बार सोने को तैयार हो जाए, तो मैं तुझे 8 क्या, 10 हजार दे दूँगा।”

माधवी के चेहरे पर गुस्सा और हैरानी दोनों उभरे। “ये क्या कह रहे हैं आप, चाचा जी?” उसने तेज आवाज में कहा।

“बस यही शर्त है, माधवी। पैसे चाहिए, तो ये करना पड़ेगा,” चंपक ने बेझिझक कहा।

माधवी सोच में डूब गई। एक तरफ साड़ी का सपना था, दूसरी तरफ चंपक की ये शर्त। भिड़े कभी उसकी ऐसी इच्छाएँ पूरी नहीं करता था, और पैसे की तंगी ने उसे मजबूर कर दिया। थोड़ी देर सोचने के बाद उसने हल्के से सिर हिलाया और बोली, “ठीक है, लेकिन यहाँ नहीं। बाथरूम में। यहाँ कोई देख लेगा।”

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चंपक की आँखों में चमक आ गई। “जहाँ तू कहे, माधवी!” वो उसके पीछे-पीछे बाथरूम की ओर चल पड़ा।

चुदाई की शुरुआत

माधवी ने बाथरूम का दरवाजा खोला और चंपक को अंदर ले लिया। उसने दरवाजा बंद किया और अपनी पीठ दरवाजे से सटा दी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। चंपक ने बिना वक्त गँवाए उसके भारी चूचों पर हाथ रख दिया। माधवी ने आँखें बंद कर लीं और चुपचाप उसे ऐसा करने दिया। चंपक का लौड़ा धोती में तन चुका था और साफ दिख रहा था। उसने माधवी को अपनी ओर खींचा और उसके चूचों को जोर-जोर से दबाने लगा। “आह… कितने रसीले हैं ये,” चंपक ने सिसकारी भरी।

माधवी की साँसें तेज हो गईं। चंपक का लौड़ा उसकी जाँघों पर रगड़ रहा था, कभी उसकी चूत की दरार को छूता हुआ। उसने धीरे से माधवी की साड़ी खींची और उसे उतार दिया। ब्लाउज के बटन एक-एक करके खोले, और फिर पेटीकोट का नाड़ा खींचकर नीचे गिरा दिया। माधवी ने ब्रा तो पहनी थी, लेकिन पैंटी नहीं। उसका नंगा बदन चंपक के सामने था। उसकी गोरी चूत पर हल्के-हल्के बाल थे, और चंपक की आँखें उस पर टिक गईं।

“बैठ, माधवी,” चंपक ने हुक्म दिया। “मेरा लौड़ा चूस।”

माधवी ने हिचकिचाते हुए कहा, “चाचा जी, मैंने कभी ऐसा नहीं किया। भिड़े तो बस… सीधा काम करता है।”

चंपक हँस पड़ा, “अरे, भिड़े तो पूरा चूतिया है। इतनी मस्त माल को चोदना भी नहीं आता। बस होंठ खोल और मेरे सुपारे पर रख दे। बाकी मैं देख लूँगा।”

माधवी ने डरते-डरते अपना मुँह खोला और चंपक के काले, मोटे लौड़े के सुपारे पर होंठ रखे। चंपक ने एक जोरदार धक्का मारा, और उसका पूरा लौड़ा माधवी के मुँह में घुस गया। “उम्म… आह!” माधवी को खाँसी आ गई, लेकिन उसने जल्दी ही लंड चूसना सीख लिया। उसकी जीभ चंपक के सुपारे पर गोल-गोल घूम रही थी, और चंपक की सिसकारियाँ बाथरूम में गूँज रही थीं। “हाँ… ऐसे ही, रंडी… चूस इसे!” चंपक ने कहा।

करीब 5 मिनट तक माधवी ने उसका लौड़ा चूसा। चंपक का लौड़ा अब और सख्त हो चुका था। उसने माधवी को घुटनों के बल बिठाया और बाथरूम में रखी तेल की बोतल उठाई। उसने अपने लौड़े पर खूब सारा तेल लगाया, फिर माधवी की चूत और चूतड़ों पर भी तेल मला। उसकी उंगलियाँ माधवी की चूत की दरार में फिसल रही थीं, और माधवी की साँसें और तेज हो गईं। “आह… चाचा जी, ये क्या कर रहे हैं?” उसने धीमी आवाज में कहा।

“चुप रह, रंडी,” चंपक ने कहा और अपना लौड़ा माधवी की चूत पर सटाया। उसने धीरे से सुपारा अंदर डाला, और माधवी की सिसकारी निकल पड़ी, “आह्ह… उह्ह!” चंपक ने और जोर से धक्का मारा, और उसका 7 इंच का लौड़ा माधवी की चूत में पूरा घुस गया। “आआ… चाचा जी, आराम से!” माधवी चीख पड़ी। “भिड़े का तो छोटा सा है… आपका इतना बड़ा… दर्द हो रहा है!”

“चुप, कुतिया!” चंपक ने दाँत पीसते हुए कहा। “पैसे चाहिए न? तो चुपचाप चुद।” उसने माधवी की कमर पकड़ी और जोर-जोर से धक्के मारने लगा। फच-फच की आवाजें बाथरूम में गूँज रही थीं। माधवी की चूत तेल से चिकनी थी, लेकिन चंपक का लौड़ा इतना मोटा था कि उसे हर धक्के में दर्द और मजा दोनों हो रहे थे। “आआ… चाचा जी, धीरे… मेरी चूत फट जाएगी!” माधवी ने सिसकारी भरी।

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“तेरी चूत तो जन्नत है, माधवी,” चंपक ने हाँफते हुए कहा। “दया भाभी को भी ऐसा मजा नहीं दे पाता मैं।” वो और जोर से पेलने लगा। माधवी की चीखें और सिसकारियाँ मिलकर बाथरूम में एक अजीब सा संगीत बना रही थीं। “आह… उह्ह… चाचा जी, थोड़ा धीरे… आआ… मर गई मैं!” माधवी का बदन हर धक्के के साथ हिल रहा था।

चंपक ने अब माधवी को दीवार की ओर झुकाया और पीछे से उसकी चूत में लौड़ा डाला। उसने माधवी के चूतड़ों को थपथपाया और कहा, “क्या मस्त गाँड है तेरी, माधवी!” उसका लौड़ा अब और गहराई तक जा रहा था, और माधवी की चूत से रस टपकने लगा था। “आह… चाचा जी, आप तो रुकते ही नहीं!” माधवी ने हाँफते हुए कहा।

करीब 15 मिनट तक चंपक ने माधवी को अलग-अलग तरीके से चोदा। कभी उसे दीवार से सटाकर, कभी उसे नीचे बिठाकर। माधवी का बदन पसीने से तर था, और उसकी साँसें अब टूट रही थीं। चंपक का माल निकलने वाला था। उसने अपना लौड़ा माधवी की चूत से बाहर निकाला और बोला, “मुँह खोल, रंडी। मेरा माल चूस।”

माधवी ने दर्द में अपनी चूत को सहलाते हुए चंपक का लौड़ा फिर से मुँह में लिया। उसने जोर-जोर से चूसा, और चंपक की सिसकारियाँ तेज हो गईं। “आह… हाँ… ऐसे ही… चूस, माधवी!” तभी चंपक का माल निकल पड़ा, और माधवी के मुँह में गर्म-गर्म रस भर गया। उसने सारा माल निगल लिया और चंपक के लौड़े को चाट-चाटकर साफ कर दिया।

चुदाई खत्म होने के बाद दोनों ने अपने कपड़े पहने। माधवी की साड़ी अब थोड़ी गीली थी, और उसका चेहरा लाल हो चुका था। वो थकान और शर्मिंदगी के मिश्रण में थी। चंपक ने अपनी धोती ठीक की और बोला, “शाम को मेरे घर के बाहर मिल। पैसे ले लेना।”

माधवी ने हल्के से सिर हिलाया और बोली, “ठीक है, चाचा जी।” चंपक मुस्कुराते हुए अपने घर की ओर चला गया, और माधवी सोफे पर बैठकर गहरी साँसें लेने लगी। उसका मन उलझन में था। पैसे का लालच और चुदाई का दर्द दोनों उसके दिमाग में घूम रहे थे।

क्या माधवी चंपक से फिर मिलेगी? आप क्या सोचते हैं, नीचे कमेंट करें!

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