यह कहानी 1964 की गर्मियों की है, जब राजस्थान के एक छोटे से गांव में धूल भरी हवाएं और खेतों की खुशबू हवा में तैरती थी। हमारे परिवार के सभी सदस्य—मैं, मेरी छोटी बहन माला, छोटा भाई, माँ मीना और बाबूजी—एक चचेरी बहन की शादी में शामिल होने गांव आए थे। शादी की धूमधाम में कई दिन बीत गए, और अब मेहमानों की भीड़ छंट चुकी थी। गांव की आधी से ज्यादा जमीन हमारे परिवार की थी, और पांच भाइयों में सिर्फ बाबूजी ही शहर में नौकरी करते थे। बाकी चारों चाचा खेती-बाड़ी संभालते थे। बाबूजी की छुट्टियां खत्म होने को थीं, और हमारा भी एक दिन बाद शहर लौटने का इरादा था।
मैं 19 साल का था, 12वीं की बोर्ड परीक्षा देकर रिजल्ट का इंतजार कर रहा था। लंबा, तगड़ा, और बाबूजी की तरह कद-काठी में मजबूत होने के बावजूद, मुझे लड़कियों से बात करने में शर्मिंदगी महसूस होती थी। मेरी छोटी बहन माला, जो 17 साल की थी, और मैं मुश्किल से ही खुलकर बात करते थे। मेरे दोस्तों के साथ चूची और चूत की बातें आम थीं, लेकिन मैं अब तक किसी औरत या लड़की के करीब नहीं पहुंच पाया था। बस रात के अंधेरे में लंड हिलाकर अपनी प्यास बुझाता था। गांव में शादी के दौरान कई लड़कियों और औरतों को देखकर मन मचला, लेकिन मेरा लंड चूत के लिए तरसता ही रह गया।
माँ मीना 34-35 साल की थी, एकदम भरपूर जवानी से लबालब। उसकी गोरी त्वचा, भारी चूचियां, और गोल-मटोल गांड किसी भी मर्द का दिल धड़का सकती थी। बाबूजी 40 साल के थे, मजबूत और ताकतवर, जो किसी भी औरत की आग बुझाने में सक्षम थे। लेकिन गांव में बिताए 17-18 दिनों में मैंने देखा कि माँ और बाबूजी के बीच ज्यादा बातचीत नहीं हो रही थी। शायद बाबूजी खेतों और परिवार की जिम्मेदारियों में व्यस्त थे, और माँ की जवानी अनछुई सी रह गई थी।
उस दिन सुबह के 11 बज रहे थे। गांव का पुराना हवेलीनुमा घर गुलजार था। औरतें रसोई में व्यस्त थीं, बच्चे आंगन में दौड़ रहे थे, और कुछ नौकर अनाज साफ कर रहे थे। बाबूजी अपने भाइयों के साथ खेतों पर गए थे। मैं आंगन की चौकी पर लेटा हुआ धूप का मजा ले रहा था, जब माँ मेरे पास आई। उसने हल्की नीली साड़ी पहनी थी, जिसके पल्लू से उसकी भारी चूचियां झांक रही थीं। वो मेरे बगल में बैठ गई और मेरा हाथ पकड़कर बोली, “बेटा, वो लड़का कौन है?” उसने आंखों से इशारा किया।
मैंने देखा, एक दुबला-पतला लड़का, जिसने सिर्फ हाफ-पैंट पहनी थी, अनाज को बोरे में भर रहा था। “हाँ माँ, वो गोपाल है, कंटीर का भाई,” मैंने जवाब दिया। कंटीर हमारा पुराना नौकर था, जो सालों से हमारे यहाँ काम करता था। माँ उसे अच्छे से जानती थी। मैंने पूछा, “क्यों, क्या काम है उससे?”
माँ ने इधर-उधर देखा, फिर उठकर बगल के कमरे में चली गई। उसने मुझे इशारे से अंदर बुलाया। मैं अंदर गया, और माँ ने मेरा हाथ पकड़कर कहा, “बेटा, मेरा एक काम कर दे।” मैंने पूछा, “कौन सा काम, माँ?” उसने जो कहा, वो सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। “बेटा, मुझे गोपाल से चुदवाना है। उसे बोल कि मुझे चोदे!”
मैं हक्का-बक्का माँ को देखता रह गया। मेरी माँ, जो गांव में सबके लिए इज्जतदार और सुंदर मालकिन थी, अपने बेटे से इतनी बेशर्मी से एक नौकर लड़के से चुदाई की बात कर रही थी। “क्या कह रही हो, माँ? ऐसा कैसे हो सकता है?” मैंने हकलाते हुए कहा।
माँ ने अपनी चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से मसला और बोली, “मैं तीन दिन से अपनी आग रोक रही हूँ। उस लड़के को देखते ही मेरी चूत में आग लग जाती है। मेरा मन करता है कि नंगी होकर सबके सामने उसका लौड़ा अपनी चूत में ले लूं। बेटा, कुछ भी कर, मुझे गोपाल का लौड़ा अभी चाहिए!” उसकी आंखों में वासना और बेचैनी साफ दिख रही थी।
मेरा दिमाग घूम गया। मैंने कभी नहीं सोचा था कि माँ इतनी चुदासी हो सकती है। मैं 19 साल का था, और अब तक किसी चूत को छू भी नहीं पाया था, और ये गोपाल, जो मुझसे छोटा था, मेरी माँ जैसी औरत को चोदने वाला था? “माँ, गोपाल तो अभी छोटा है। वो तुम्हें नहीं चोद पाएगा,” मैंने कहा, और हिम्मत करके उसकी चूची पर हाथ रख दिया। “अगर इतना मन है, तो मैं तुम्हें चोद दूंगा।”
माँ ने मेरा हाथ नहीं हटाया। उसकी चूचियां मुलायम और भारी थीं, जैसे रस से भरे खरबूजे। “बेटा, तू भी चोद लेना, लेकिन पहले गोपाल से मुझे चुदवा दे। बदले में मैं तुझे जो चाहे वो दूंगी। कोई लड़की, कोई औरत, मैं सबका इंतजाम कर दूंगी। बस अभी गोपाल का लौड़ा मेरी चूत में डलवा दे। मेरी चूत गीली हो चुकी है।” उसने साड़ी के ऊपर से अपनी चूत को सहलाया, और मैं देखता रह गया।
मैंने उसकी चूचियों को जोर से दबाया और कहा, “ठीक है, माँ। तू थोड़ा इंतजार कर, मैं कुछ करता हूँ।” मैंने उसे बांहों में लिया, उसके गालों को चूसा, और बाहर निकल आया। दिन का समय था, और घर में सब जाग रहे थे। कोई सुनसान जगह ढूंढना आसान नहीं था। फिर मुझे याद आया कि आंगन से थोड़ी दूर, सड़क के उस पार, हमारा कैटल-फार्म है। वहाँ एक छोटा सा कमरा था, जहां नौकर कभी-कभी रुकते थे। उस समय वहां कोई नहीं था। कमरे में एक पुरानी चौकी और उस पर मैला सा बिछौना था। मैंने सोचा, यही जगह सही रहेगी।
मैं आंगन लौटा। माँ अभी भी गोपाल को घूर रही थी। मैं उसके पास बैठा और धीरे से बोला, “माँ, दस मिनट बाद उस नौकर वाले कमरे में चली आना।” फिर मैं गोपाल के पास गया, उसकी पीठ थपथपाई, और मेरे साथ चलने को कहा। वो चुपचाप मेरे पीछे आ गया। माँ के चेहरे पर हल्की मुस्कान तैर गई।
मैं गोपाल को लेकर कमरे में पहुंचा और दरवाजा खुला छोड़ दिया। मैं बिछौने पर लेट गया और बोला, “गोपाल, मेरा पैर दर्द कर रहा है, जरा दबा दे।” मैंने अपना पजामा उतार दिया, नीचे सिर्फ जांघिया था। गोपाल मेरे पैर दबाने लगा, और मैं उससे उसके घर की बातें करने लगा। गोपाल के परिवारवाले सालों से हमारे यहाँ काम करते थे। उसने बताया कि उसकी एक बहन है, जिसकी शादी की बात चल रही है, और उसकी भाभी उसे बहुत प्यार करती है।
अचानक मैंने पूछा, “गोपाल, तूने अपनी भाभी को चोदा है?” वो शरमा गया। मैंने दोबारा पूछा, तो उसने कहा कि उसने अब तक किसी को नहीं चोदा। “चोदने का मन करता है?” मैंने पूछा। उसने शरमाते हुए कहा, “हाँ, जब मैं रात को अपनी माँ को बाप से चुदवाते देखता हूँ, तो मेरा लौड़ा टाइट हो जाता है।” तभी माँ कमरे में दाखिल हुई और उसने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया।
गोपाल उठकर जाने लगा, लेकिन मैंने उसे रोक लिया। “क्या हुआ, माँ?” मैंने पूछा। माँ मेरे बगल में लेट गई और बोली, “बेटा, मेरा पैर भी दर्द कर रहा है, जरा दबा दे।” मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। मैंने माँ को बिछौने के बीच में लेटने को कहा और उसका एक पैर दबाने लगा। गोपाल चुपचाप खड़ा था। “अरे गोपाल, तू दूसरा पैर दबा,” मैंने कहा। वो हिचकिचाया, लेकिन मेरे बार-बार कहने पर उसने माँ का दूसरा पैर दबाना शुरू किया।
माँ ने मेरी तरफ देखकर आंख मारी, और मैं समझ गया। “माँ, कहाँ दर्द है?” मैंने पूछा। “बेटा, पूरा पैर और छाती दर्द कर रही है। जोर से दबाओ,” उसने कहा। मैं उसकी टांगों से लेकर कमर तक मसलने लगा, जबकि गोपाल सिर्फ घुटनों तक ही दबा रहा था। मैंने गोपाल का हाथ पकड़ा, माँ की जांघों पर रखा, और बोला, “तू भी नीचे से ऊपर तक दबा।” वो हिचका, लेकिन मेरे कहने पर उसने माँ की जांघों को सहलाना शुरू किया।
कुछ देर बाद मैंने कहा, “माँ, साड़ी उतार दो, ज्यादा मजा आएगा।” माँ बोली, “हाँ, उतार दो।” मैंने गोपाल से कहा, “साड़ी खोल दे।” उसने शरमाते हुए माँ की साड़ी की गांठ खोली, और मैंने साड़ी को उसके बदन से अलग कर दिया। काले ब्लाउज और साये में माँ किसी अप्सरा सी लग रही थी। उसकी भारी चूचियां ब्लाउज में कैद थीं, और गोपाल की नजरें उन पर टिकी थीं। “मालकिन, आप बहुत सुंदर हो,” गोपाल ने अचानक कहा। माँ ने जवाब दिया, “तू भी बहुत प्यारा है,” और साये को अपनी जांघों तक खींच लिया।
मैंने माँ की जांघों में हाथ डाला और पहली बार उसकी चूत को छुआ। साया अभी भी बीच में था, लेकिन चूत की गर्मी और गीलापन साफ महसूस हो रहा था। मैंने कई बार चूत को मसला, और माँ ने कोई विरोध नहीं किया। “माँ, साया बहुत कसकर बंधा है, ढीला कर लो,” मैंने कहा। मैंने गोपाल से नाड़ा खोलने को कहा, लेकिन जब वो नहीं माना, तो मैंने खुद नाड़ा खींच दिया। साया ढीला हो गया, और मैंने उसे नीचे सरकाना शुरू किया।
माँ का चिकना पेट और गहरी नाभि दिखाई दी। मैंने नाभि को सहलाया, फिर साये को और नीचे खींचा। अब उसकी चूत के ऊपर का हिस्सा दिखने लगा था। “बेटा, छाती बहुत दर्द कर रही है,” माँ ने धीरे से कहा। मैंने उसके ब्लाउज पर हाथ रखा और जोर से चूचियों को दबाया। “माँ, ब्लाउज खोल दो,” मैंने कहा। उसने कहा, “खोल दे।” मैंने झट से ब्लाउज के बटन खोले और उसे हटा दिया। माँ की गोल, भारी, और मांसल चूचियां मेरे सामने थीं। मैंने उन्हें जोर-जोर से मसला, और गोपाल की आंखें फटी रह गईं।
मैंने देखा कि गोपाल का एक हाथ माँ की जांघों के बीच साये के ऊपर घूम रहा था। मैंने उसका हाथ पकड़ा, माँ की चूत की तरफ धकेला, और बोला, “देख, कितनी चिकनी है।” मैंने माँ की एक चूची चूसनी शुरू की, और गोपाल ने साये के अंदर हाथ डालकर चूत मसलना शुरू कर दिया। माँ ने मेरे कान में फुसफुसाया, “बेटा, थोड़ी देर बाहर जा और देख कोई न आए।” मैंने गोपाल का हाथ चूत पर दबाया, अपना पजामा पहना, और बाहर निकल गया।
मैंने दरवाजे के पास वाली खिड़की से झांका। माँ ने गोपाल से कुछ कहा, और वो शरमाकर सिर हिलाने लगा। माँ ने उसकी पैंट के ऊपर से लौड़े को सहलाया, फिर बटन खोलकर उसे नंगा कर दिया। गोपाल का लौड़ा टनटना रहा था। माँ ने उसे दोनों हाथों से पकड़ा और हिलाने लगी। उसने मेरी तरफ देखा, मुस्कुराई, और लौड़े को और जोर से मसला। गोपाल ने साये को हटाया, और माँ की चूत मेरे सामने थी—हल्के बालों वाली, गीली, और गुलाबी।
माँ ने गोपाल को अपने ऊपर खींचा और उसे चूमने लगी। उसने गोपाल का लौड़ा अपनी चूत के छेद पर रखा और बोली, “दे धक्का।” गोपाल ने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। माँ की सिसकारियां कमरे में गूंज रही थीं। गोपाल, जो पहली बार चोद रहा था, माँ की चूत में लौड़ा डालकर जोर-जोर से धक्के मार रहा था। माँ ने अपनी टांगें फैलाईं और चूतड़ उछाल-उछालकर चुदाई का मजा ले रही थी। मैं बाहर खड़ा सब देख रहा था, मेरा लौड़ा पजामे में तंबू बना रहा था।
करीब 15 मिनट बाद गोपाल माँ के ऊपर ढीला पड़ गया। मैंने कुछ देर इंतजार किया और अंदर चला गया। गोपाल हड़बड़ाकर उठा और अपना लौड़ा छुपाने लगा, लेकिन माँ ने उसका हाथ हटाया और मेरे सामने लौड़े को सहलाने लगी। माँ पूरी नंगी थी, उसकी चूत का फांक साफ दिख रहा था, जो गोपाल के रस से चमक रहा था। “बेटा, गोपाल में बहुत दम है। मेरा सारा दर्द गायब हो गया,” माँ ने कहा। उसने गोपाल से पूछा, “कैसा लगा?” गोपाल शरमाकर मुस्कुराया।
मैं माँ की कमर के पास बैठा और उसकी चूत को सहलाने लगा। “बेटा, साये से साफ कर दे,” माँ ने कहा। मैंने साये से चूत को साफ किया, और माँ ने गोपाल को धमकाया कि अगर उसने किसी से कुछ कहा, तो बड़े काका को बता देगी। लेकिन अगर चुप रहा, तो वो हमेशा उससे चुदवाएगी। गोपाल ने कसम खाई और खुश होकर बाहर चला गया।
मैंने दरवाजा बंद किया और फटाफट नंगा हो गया। मेरा लौड़ा चोदने के लिए बेकरार था। माँ ने मुझे पास बुलाया और मेरा लौड़ा पकड़कर बोली, “हाय बेटा, तेरा लौड़ा तो बाप से भी मोटा और लंबा है। लेकिन अपनी माँ को मत चोद। मैं तुझे कोई और लड़की चुदवा दूंगी।” मैंने उसकी बात अनसुनी की, उसके ऊपर लेट गया, और लौड़े को चूत के छेद पर रखकर जोर का धक्का मारा।
“आह्ह!” माँ की सिसकारी निकली। मैंने उसके कंधे पकड़े और जोर-जोर से चोदने लगा। “साली, अगर मुझे पता होता कि तू इतनी चुदासी है, तो मैं तुझे सालों पहले चोद डालता। बेकार में लौड़ा हिलाकर वक्त बर्बाद किया,” मैंने कहा और एक गहरा धक्का मारा। माँ ने कमर उठाकर जवाबी धक्का मारा और बोली, “बेटा, मैं तो गोपाल के लालच में तेरे सामने नंगी हुई। वरना तुझे कभी हाथ लगाने देती?” मैंने उसकी चूचियों को मसला और गाल चूसते हुए पूछा, “सच बोल, गोपाल ने कैसा चोदा?”
माँ ने चूतड़ उछाले और बोली, “सच बोलूं, पहले तो मैं डर रही थी कि इतने छोटे लड़के के सामने रंडी की तरह नंगी हो गई। लेकिन गोपाल ने इतना जोर से चोदा कि लगा ही नहीं वो पहली बार चोद रहा है। मैं तो उससे फिर चुदवाऊंगी।” मैंने पूछा, “और मैं कैसा चोद रहा हूँ?” उसने मेरे गाल चूमे और बोली, “तेरा लौड़ा गोपाल से भी मस्त है। तुझमें दम भी ज्यादा है। मजा आ रहा है।”
मैंने माँ को अलग-अलग तरीकों से चोदा। पहले उसे बिछौने पर लिटाकर उसकी चूत में लौड़ा पेला, फिर उसे घोड़ी बनाकर गांड के पीछे से चोदा। उसकी चूत इतनी गीली थी कि हर धक्के के साथ छप-छप की आवाज आ रही थी। मैंने उसकी चूचियों को चूसा, उसकी नाभि को चाटा, और उसकी जांघों को सहलाया। माँ सिसकारियां ले रही थी, “हाय बेटा, तेरा लौड़ा मेरी चूत को फाड़ रहा है। और जोर से चोद!” करीब 20 मिनट की चुदाई के बाद मेरा लौड़ा माँ की चूत में झड़ गया। हम दोनों हांफते हुए बिछौने पर पड़े रहे।
कुछ देर बाद माँ ने कपड़े पहने और बोली, “बाप रे, सब पूछेंगे मैं इतनी देर कहाँ थी।” मैंने उसे बांहों में लिया और कहा, “रानी, तू फिकर मत कर। मैं हूँ ना। किसी को नहीं पता चलेगा कि तूने बेटे और नौकर से चुदवाया।” मैंने उससे कहा कि दो-ढाई घंटे बाद फिर इस कमरे में आए, ताकि मैं उसे दोबारा चोद सकूं। “एक बार में मन नहीं भरा?” उसने हंसकर पूछा। “नहीं साली, तुझ जैसी मस्त औरत को रात-दिन चोदूं, तब भी मन नहीं भरेगा। जरूर आना,” मैंने कहा।
माँ ने मेरी चूची पर हाथ रखा और बोली, “आऊंगी, लेकिन एक शर्त पर। गोपाल भी रहेगा।” मैंने हंसकर कहा, “साली, तू गोपाल की कुतिया बन गई है। ठीक है, इस बार मैं तुझे गोद में बिठाकर गोपाल से चुदवाऊंगा।” माँ मुस्कुराई और बोली, “ठीक है, मैं आऊंगी।”
आंगन के रास्ते में मैंने पूछा, “माँ, तूने अब तक कितने लौड़े खाए हैं?” उसने कहा, “बाद में बताऊंगी।” आंगन पहुंचते ही बड़ी काकी ने पूछा, “मीना को लेकर कहाँ गया था? सब खाने का इंतजार कर रहे हैं।” मैंने कहा, “माँ को गाछी दिखाने ले गया था।” किसी ने और सवाल नहीं किया। माँ ने मेरी तरफ देखा और आंख मारी। मैं समझ गया कि आज की चुदाई तो बस शुरुआत थी।