मम्मी को चोदने के लिए पंडित का सहारा लिया 2

कहानी का पिछला भाग: मम्मी को चोदने के लिए पंडित की मदद ली 1

गंगा किनारे की उस सुहानी सुबह में, मैं अपनी मम्मी के पीछे-पीछे चुपके से चल रहा था। हम दोनों एक अजीब सी मस्ती में डूबे थे, मानो कोई नशा हमें घेरे हुए था। गंगा में उतरने के बाद मैंने मम्मी की मदद की, उनके गीले कपड़ों को संभाला, लेकिन जानबूझकर ज्यादा छुआ नहीं। आसपास भीड़ बढ़ रही थी, लोग नहाने आ रहे थे। मम्मी ने जल्दी से नहा लिया और तैयार होकर बाहर निकल आईं। उनकी गीली साड़ी उनके बदन से चिपकी थी, जिससे उनकी गोरी चमकती त्वचा और सुडौल शरीर की आकृति साफ झलक रही थी। मैं मन ही मन उनकी खूबसूरती में खोया हुआ था।

थोड़ी देर बाद पंडित जी आ गए। मैंने उन्हें आँखों से इशारा किया कि जो हुआ, वो ठीक था। मम्मी थोड़ी दूर चली गईं, तो मैंने पंडित से साफ-साफ कहा, “आपका आइडिया तो अच्छा था, लेकिन अब इसे और आगे बढ़ाओ।” पंडित ने शांत स्वर में कहा, “थोड़ा सब्र करो, अभी सही वक्त नहीं है।” फिर उन्होंने मम्मी को पूजा स्थल पर बिठाया और एक पुरानी किताब खोलकर मंत्र जाप शुरू कर दिया। करीब आधा घंटा मंत्र पढ़ने के बाद उन्होंने मम्मी से कहा, “जिस निष्ठा से तुम ये पूजा कर रही हो, उससे लगता है कि हमारी यात्रा खत्म होने से पहले ही तुम्हारा संकल्प पूरा हो जाएगा।” मम्मी ये सुनकर बहुत खुश हुईं और बोलीं, “पंडित जी, जो भी विधि हो, वो करवा दीजिए। अगर परिधि की शादी हो जाए, तो हम समझेंगे कि भगवान हम पर मेहरबान हो गए।”

मैं मन ही मन हँस रहा था, क्योंकि मैं जानता था कि पंडित ने पहले से ही परिधि दीदी के लिए रिश्ता तय कर लिया था। मम्मी का भोलापन मुझे हमेशा गुस्सा दिलाता था, लेकिन आज उनकी मासूमियत मुझे बहुत सेक्सी लग रही थी। उनकी वो सादी साड़ी, गीले बाल, और चेहरे पर वो भोली मुस्कान—मानो कोई अप्सरा सामने खड़ी हो। पंडित ने हमें आश्रम जाने को कहा, जहां बाकी की विधियां होनी थीं। उन्होंने बताया कि एक खास कमरा पूजा के लिए तैयार किया गया है। मेरे दिमाग में बस एक ही बात थी—अब मेरा मौका आने वाला है। मैं मम्मी के खूबसूरत बदन के सपने देखने लगा।

आश्रम पहुँचते ही मैंने देखा कि दीदी अपने कमरे में सो रही थीं। हम दोनों, मैं और मम्मी, पूजा वाले कमरे में गए। पंडित ने कमरे का दरवाजा बंद किया और हमें एक आसन पर बिठाया। उन्होंने मुझे मम्मी का हाथ पकड़कर ध्यान करने को कहा। मम्मी का मुलायम, गर्म हाथ मेरे हाथ में था, और मेरे शरीर में एक अजीब सी उत्तेजना दौड़ रही थी। उनकी उंगलियों को छूते ही मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई। पंडित मंत्र जाप में व्यस्त थे, लेकिन मेरी नजरें बार-बार मम्मी के चेहरे पर जा रही थीं। उनकी आँखें बंद थीं, चेहरा शांत, लेकिन उनके होंठ हल्के से काँप रहे थे, जैसे वो भी कुछ महसूस कर रही हों।

कुछ देर बाद पंडित ने कहा कि अब एक कठिन विधि करनी होगी। उन्होंने मम्मी से कहा, “मैं ये विधि तुम्हारे बेटे को समझा दूँगा। मेरी मौजूदगी में तुम्हें ये करना ठीक नहीं लगेगा। तुम्हें जैसा बताया जाए, वैसा ही करना है, वरना पूजा का फल नहीं मिलेगा।” फिर वो मुझे बाहर ले गए। बाहर निकलते ही उन्होंने मुझे चंदन का लेप, एक चोला, और एक धोती दी। बोले, “अब सब तुम्हारे हाथ में है। मैंने कमरे का इंतजाम कर दिया है। यहाँ तुम दोनों के सिवा कोई नहीं आएगा। मैदान खाली है, अब जाकर अच्छी बैटिंग करो।” ये कहकर वो वहाँ से चले गए।

मैं कमरे में वापस गया और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। मम्मी से कहा, “आपको ये चोला पहनना है।” मम्मी ने चिंतित स्वर में पूछा, “बेटा, अब क्या करना है?” मैंने जवाब दिया, “पंडित जी ने ये लेप दिया है, इसे आपके शरीर पर लगाना है।” मम्मी थोड़ा संकोच में पड़ गईं और बोलीं, “ऐसे ही तो लगा सकते हैं न?” मैंने कहा, “नहीं मम्मी, पंडित जी ने बताया कि ये खास वस्त्र पहनकर ही विधि करनी है। ये पूजा के लिए शुद्ध किए गए हैं।” मम्मी ने पूछा, “कैसी विधि?” मैंने कहा, “वो गुप्त है, बस मुझे जैसा बताया गया, वैसा ही करना है।”

मम्मी बाथरूम में चोला पहनने चली गईं। मैंने भी अपनी पैंट-शर्ट उतारकर धोती पहन ली। जब मम्मी बाहर आईं, तो मैं देखता रह गया। वो चोला इतना छोटा था कि उनकी गोरी, चिकनी जांघें पूरी तरह नजर आ रही थीं। नीचे का हिस्सा एक ढीली स्कर्ट जैसा था, जो मुश्किल से उनके घुटनों तक पहुँच रहा था। ऊपर का ब्लाउज इतना तंग और छोटा था कि उनकी भारी-भरकम चुचियाँ उसमें समा नहीं रही थीं। ब्लाउज का गला इतना बड़ा था कि उनकी साफ-सुथरी, सेक्सी बगलें साफ दिख रही थीं। उनकी चुचियों का 80% हिस्सा उभरकर बाहर आ रहा था, मानो वो नंगी ही हों। मैंने देखा कि उनके निप्पल्स हल्के से उभरे हुए थे, शायद वो भी उत्तेजित थीं। मेरा लंड धोती में तंबू बनाकर खड़ा हो गया। मैंने जल्दी से उसे दूसरी तरफ एडजस्ट किया।

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मम्मी ने मुझे देखकर पूछा, “तूने अपने कपड़े क्यों उतार दिए?” मैंने कहा, “मम्मी, ये धोती पूजा के लिए पहननी है।” वो चुपचाप खड़ी रहीं, लेकिन उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। मैंने उन्हें मेरे सामने बिठाया और चंदन का लेप उनके चेहरे पर लगाने लगा। पहले उनके माथे पर, फिर उनकी लंबी, सुडौल गर्दन पर, और फिर उनके मक्खन जैसे गालों पर। उनके गाल इतने मुलायम थे कि मैं जन्नत में था। मैंने हल्के से कहा, “मम्मी, आपके गाल बहुत सॉफ्ट हैं, और आपकी स्किन इतनी स्मूथ है।” मम्मी शरमाकर लाल हो गईं और बोलीं, “धत, ऐसे नहीं कहते।” लेकिन उनकी मुस्कान बता रही थी कि उन्हें मेरी बात अच्छी लगी।

मैं उनके पीछे बैठ गया। उनका स्कर्ट थोड़ा नीचे खिसक गया था, और उनकी गोल, चिकनी गाँड की दरार साफ दिख रही थी। मेरा लंड अब बेकाबू हो रहा था। मैंने धोती में उसे ठीक किया और उनके ब्लाउज को हल्का सा ऊपर उठाया। मम्मी ने काँपती आवाज में पूछा, “ये क्या कर रहा है?” मैंने कहा, “मम्मी, पंडित जी ने कहा है कि आपकी पीठ पर शुभ चिन्ह बनाना है।” वो थोड़ा झल्लाईं, “ऐसी विधि मैंने कभी नहीं सुनी।” लेकिन वो चुप हो गईं। मैं समझ गया कि वो भी शायद मेरे स्पर्श का मजा ले रही थीं। उनकी पीठ इतनी चिकनी और गोरी थी कि मेरे शरीर में बिजली दौड़ गई। मैंने हिम्मत करके कहा, “मम्मी, आपकी पीठ तो फिसलपट्टी जैसी है, हाथ रुकता ही नहीं।” वो हँस पड़ीं और बोलीं, “बस, अब बहुत तारीफ कर ली।”

मैंने कहा, “सचमुच मम्मी, इस आश्रम के माहौल में, इन कपड़ों में, आप कोई अप्सरा लग रही हो।” मम्मी फिर हँसीं और बोलीं, “मैं जानती हूँ मैं क्या हूँ। न पूरी जवान, न पूरी बूढ़ी।” मैंने तुरंत कहा, “मम्मी, आप क्या बात करती हो? जब आप और दीदी साथ चलती हो, लोग आपको बहनें समझते हैं।” मम्मी ने मेरी तरफ देखा और बोलीं, “सचमुच तुझे ऐसा लगता है?” मैंने कहा, “हाँ मम्मी, आपकी उम्र ज्यादा नहीं लगती।” मम्मी का चेहरा शर्म से लाल हो गया, और मैं उनकी पीठ को मसलता रहा।

फिर मैंने उन्हें लेटने को कहा। वो लेट गईं, और मैं उनकी जांघों के पास बैठ गया। मैंने चंदन का लेप लिया और उनकी जांघों पर लगाने लगा। मेरा हाथ काँप रहा था। उनकी जांघें इतनी मुलायम और गर्म थीं कि मैं पागल हो रहा था। मम्मी की आँखें बंद थीं, और वो धीरे-धीरे आहें भर रही थीं। उनकी साँसें तेज हो रही थीं। मैंने पूछा, “मम्मी, आप अपनी जांघों पर क्या लगाती हो? इतनी सॉफ्ट स्किन तो मैंने कभी नहीं देखी।” वो हँसकर बोलीं, “पागल, मैं हमेशा तेल मालिश करती हूँ। लेकिन आज मेरे लाडले ने मसाज की, शायद इसलिए और नरम हो गई।” तभी दरवाजे पर खटखट हुई। मैं गुस्से में बड़बड़ाया, “साला, कौन आ गया इस वक्त?” मम्मी भी नाराज दिखीं और जल्दी से बाथरूम में चली गईं।

मैंने दरवाजा खोला तो पंडित था। मैंने गुस्से में फुसफुसाया, “क्या है?” वो बोला, “परिधि दीदी जाग गई हैं। अगर वो यहाँ आ जातीं, तो सब गड़बड़ हो जाता।” मम्मी नहाकर बाहर आईं, और हम अपने कमरे में चले गए। जाते-जाते मैंने पंडित को धमकाया, “दो दिन बचे हैं। अगर मेरा काम नहीं हुआ, तो मैं तुम्हारा वादा भूल जाऊँगा।” वो डर गया और बोला, “आज रात मैं तुम्हारा काम पक्का करवाऊँगा।”

शाम को मम्मी थककर सो गईं। दीदी जाग रही थीं और मुझे शहर घुमाने की जिद कर रही थीं, लेकिन मेरा ध्यान रात के प्लान पर था। मैं नहीं चाहता था कि दीदी रात को जागे। रात 8 बजे पंडित आए और बोले, “परिधि का रिश्ता पक्का होने वाला है।” मम्मी ये सुनकर बहुत खुश हुईं। पंडित ने कहा, “रात 10 बजे की विधि में सिर्फ तुम और तुम्हारा बेटा होगा। परिधि नहीं आ सकती।” मम्मी ने दीदी को समझाया कि वो सो जाए।

हम खाना खाने नीचे गए। पंडित ने मुझे सारी योजना समझा दी। खाना खाकर हम कमरे में आए। 10 बजे पंडित हमें पूजा वाले कमरे में ले गए। वहाँ कुछ देर मंत्र जाप हुआ, फिर मैंने पंडित को इशारा किया कि अब बहुत हो गया। उन्होंने मम्मी से कहा, “बाकी की विधि मैं आपके बेटे को समझाकर जाता हूँ। सुबह 5 बजे आऊँगा।” बाहर निकलकर उन्होंने मुझे एक और सेट कपड़े दिए और बोले, “5 बजे तक का समय है। उसके बाद लोग जाग जाएँगे।”

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मैं कमरे में गया। मम्मी पूजा स्थल पर बैठी थीं। मैंने कहा, “मम्मी, पहले बाथरूम जाकर ये शुद्ध वस्त्र पहन लो।” वो बाथरूम में गईं और जब बाहर आईं, तो मैं देखता रह गया। वो सिर्फ एक पतली, सफेद साड़ी में थीं—ना ब्लाउज, ना पेटीकोट, ना कुछ और। उनकी भारी चुचियाँ साड़ी से बाहर झाँक रही थीं, उनके निप्पल्स का भूरा हिस्सा साफ दिख रहा था। उनकी गहरी नाभी और सुडौल जांघें साड़ी के पारदर्शी कपड़े से चमक रही थीं। वो शर्म से लाल हो रही थीं, लेकिन पंडित की बात मानने के लिए तैयार थीं।

मैंने कहा, “मम्मी, पंडित जी ने कहा है कि आपको तेल लगाकर नहाना है। ये मंत्र-सिद्ध तेल है।” वो एक आसन पर बैठ गईं। मैं उनके पीछे गया और उनकी पीठ पर तेल रगड़ने लगा। उनकी चिकनी पीठ को छूते ही मेरे शरीर में करंट दौड़ गया। मैंने उनकी जांघों, कंधों, और बगलों पर तेल लगाया। उनकी बगलों में तेल लगाते वक्त वो गुदगुदी से हँस रही थीं। मैंने उनके नितंबों और चुचियों को छोड़कर बाकी हर हिस्से पर तेल लगाया। फिर मैंने उन्हें नहाने भेजा।

जब वो नहाकर लौटीं, तो गीली साड़ी उनके बदन से चिपक गई थी। उनके गीले बाल और साफ बगलें देखकर मैं पागल हो गया। मैंने उन्हें चद्दर पर लेटने को कहा। वो लेट गईं, और मैंने एक किताब उठाकर मंत्र जाप का नाटक किया। मैंने उनकी पैरों की उंगलियाँ सहलाईं और चूम लिया। मम्मी चौंक गईं, “बेटा, ये क्या कर रहा है?” मैंने कहा, “पंडित जी ने यही विधि बताई है।” मैंने उनकी उंगलियाँ एक-एक करके चूसीं। वो गुदगुदी से हँस रही थीं। फिर मैंने उनके घुटनों को सहलाया, चूमा, और हल्के से काटा। मम्मी की आँखें बंद थीं, और उनकी साँसें तेज हो रही थीं।

मैंने उनकी साड़ी जांघों से ऊपर उठाई। उनकी गोरी, चिकनी जांघें देखकर मैं बेकाबू हो गया। मैंने उनकी जांघों पर ताबड़तोड़ चुम्मे जड़ दिए। मम्मी ने अपनी जांघें सिकोड़ लीं, और उनके पैर मेरे खड़े लंड से टकरा गए। वो चौंकीं, लेकिन कुछ बोलीं नहीं। मैंने कहा, “मम्मी, ये विधि का हिस्सा है।” वो चुप रही। मैंने उनकी जांघों को फैलाया और अंदर की नरम त्वचा को चूमने लगा। उनकी चूत से एक मादक खुशबू आ रही थी। मैंने तेल लिया और उनकी जांघों पर मलना शुरू किया। मम्मी दीवार से सटकर खड़ी थीं। मैंने उनकी गाँड पर तेल मला, हल्के से दाँत गड़ाए। वो सिसकारियाँ भर रही थीं, “आह्ह… बेटा… ये क्या कर रहा है?”

मैंने उनकी साड़ी और ऊपर उठाई और उनकी नंगी पीठ पर चुम्बन शुरू किए। मेरा लंड उनकी गाँड की दरार में रगड़ रहा था। मैंने उनके कंधों पर दाँत गड़ाए और उनकी चुचियों को हल्के से छुआ। मम्मी की साँसें तेज हो रही थीं। मैंने उन्हें मेरी ओर घुमाया। उनकी चुचियाँ मेरे सीने से टकरा रही थीं। मैंने उनके पेट को सहलाया, उनकी नाभी में उंगली डाली। वो बस “हम्म्म…” की आवाज निकाल रही थीं। मैंने उनके माथे, आँखों, और नाक पर चूमा, फिर उनके रसीले होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

उनके होंठ इतने मुलायम थे कि मैं स्वर्ग में था। मैंने धीरे-धीरे उनके होंठ चूसे। मम्मी ने मेरे कंधों पर हाथ रखे और मेरे साथ चुम्बन में खो गईं। उनकी साड़ी का पल्लू सरक गया, और उनकी चुचियाँ मेरे सीने से रगड़ रही थीं। मैंने उनकी एक चुची पकड़ ली। वो इतनी सख्त और गोल थी कि मैं हैरान रह गया। मैंने उनके निप्पल को उंगलियों से सहलाया, और वो “स्स्स्स…” की आवाज निकालने लगीं। मैंने उनका एक निप्पल मुँह में लिया और चूसना शुरू किया। “आह्ह… बेटा… उफ्फ्फ…” उनकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं। मैंने उनकी दूसरी चुची को मसला, और वो मेरी पीठ पर नाखून गड़ाने लगीं।

मैंने उनकी साड़ी पूरी खींच दी। अब वो पूरी नंगी थीं। उनकी गोल, कसी हुई गाँड, फूला हुआ पेट, और गहरी नाभी देखकर मैं पागल हो गया। मैंने उन्हें पीछे से पकड़ा और उनकी गाँड पर चुम्बन शुरू किए। मेरा लंड उनकी गाँड की दरार में रगड़ रहा था। मैंने उनकी चुचियों को मसला, उनके निप्पल्स को कुरेदा। मम्मी सिसकारियाँ भर रही थीं, “उफ्फ… बेटा… ये क्या कर रहा है… आह्ह…” वो चद्दर पर घुटनों के बल बैठ गईं और अपने बाल खोल दिए। उनकी वो अदा देखकर मैं बेकाबू हो गया।

मैंने उन्हें चित लिटाया और उनके ऊपर लेट गया। उनकी बगलों को चूमा, उनकी चुचियों को मसला, और फिर उनके पेट पर आया। उनकी नाभी में जीभ घुमाई, और वो हँसने लगीं। फिर मैं नीचे सरका और उनकी चूत के पास पहुँचा। उनकी चूत का ऊपरी हिस्सा फूला हुआ था, और उसमें से रस टपक रहा था। मैंने एक उंगली अंदर डाली। मम्मी उछल पड़ीं, “आआआह्ह… उफ्फ्फ…” मैंने दो उंगलियाँ डालीं और उनकी चूत की खुशबू सूँघी। फिर मैंने उनकी चूत पर मुँह लगाया और चूसना शुरू किया। मम्मी की कमर उछल रही थी, “आह्ह… बेटा… ये क्या… स्स्स्स… और… और करो…” मैंने उनकी चूत में जीभ डाल दी, और वो जोर-जोर से सिसकारियाँ भरने लगीं।

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मैंने उनकी चुचियों को मसला, और उनकी चूत से रस की फुहार निकल पड़ी। वो झड़ गईं और निढाल होकर लेट गईं। मैं उनके पास लेट गया और उनके होंठों को चूमा। मम्मी ने कहा, “ये क्या कर दिया हमने… ये पाप है…” लेकिन मैंने उनकी बात अनसुनी कर दी और उनकी चूत में फिर से उंगली डाली। वो तिलमिला उठीं। मैं उनके ऊपर चढ़ गया और अपना लंड उनकी चूत पर सेट किया। पहली बार होने की वजह से थोड़ी दिक्कत हुई, लेकिन फिर मेरा लंड उनकी चूत में घुस गया। “आआआह्ह…” मम्मी की सिसकारी निकली। मैंने धक्के मारने शुरू किए, “थप… थप… थप…” उनकी चुचियाँ उछल रही थीं। मैंने उन्हें चूमा, उनकी चुचियों को मसला। मम्मी भी अपनी कमर उछालकर मेरा साथ दे रही थीं, “आह्ह… बेटा… और जोर से… स्स्स्स… हाय… चोदो मुझे…”

मैंने अपनी रफ्तार बढ़ा दी। उनकी चूत गीली और टाइट थी। “थप… थप… थप…” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। मम्मी की सिसकारियाँ तेज हो गईं, “आह्ह… बेटा… और… और तेज… उफ्फ्फ…” मैंने उनकी चुचियों को बेरहमी से मसला, उनके निप्पल्स को कुरेदा। फिर मुझे लगा कि मेरा वीर्य निकलने वाला है। मैंने और तेज धक्के मारे, और मेरे लंड से वीर्य की फुहार छूटी। मम्मी भी दूसरी बार झड़ गईं। हम दोनों निढाल होकर एक-दूसरे पर गिर पड़े।

कुछ देर बाद मैं उनके बगल में लेट गया। मम्मी ने कहा, “क्या देख रहा है?” मैंने कहा, “आप कितनी सेक्सी हो।” वो हँसकर बोलीं, “हट, शैतान।” हम बातें करते-करते सो गए। सुबह 4 बजे मेरी नींद टूटी। मम्मी बाथरूम से लौटी थीं। उनकी साड़ी बस लपेटी हुई थी। वो मेरे पास बैठीं और अपनी बाली ढूँढने लगीं। उनकी गाँड और चूत का हिस्सा उभर आया। मैंने उनकी गाँड पर हाथ रखा और चूमना शुरू किया। मम्मी बोलीं, “बस कर, रात में जो हुआ, वो काफी था।” लेकिन मैंने उनकी चूत और गाँड पर जीभ फेरी। वो सिसकारियाँ भरने लगीं, “उफ्फ… बेटा… ये क्या… आह्ह…”

मैंने उनकी चूत में उंगलियाँ डालीं और उनकी चुचियों को मसला। वो फिर से मस्त हो गईं। फिर वो मेरे ऊपर लेट गईं और बोलीं, “जल्दी कर… अब बर्दाश्त नहीं होता…” उन्होंने मेरा लंड अपनी चूत पर सेट किया और उस पर बैठ गईं। “आह्ह…” उनकी सिसकारी निकली। मैंने नीचे से धक्के मारे, और वो अपनी चुचियाँ मेरे मुँह में ठेल दीं। “थप… थप…” की आवाज फिर शुरू हुई। मम्मी की चूत से फिर रस निकला, और मैंने उन्हें पीठ के बल लिटाकर जोर-जोर से चोदा। “आह्ह… बेटा… और तेज… स्स्स्स…” वो चिल्ला रही थीं। मैंने तेज धक्के मारे, और फिर से वीर्य छोड़ दिया।

हम दोनों पसीने से तरबतर थे। मम्मी ने मुझे प्यार से गले लगाया। सुबह 5 बजे पंडित ने दरवाजा खटखटाया। हमने कपड़े पहने और साधारण माँ-बेटे की तरह बैठ गए। पंडित ने पूछा, “काम हुआ?” मैंने नाराजगी जताते हुए कहा, “वो नहीं मानी।” वो डर गया। मैंने कहा, “दीदी का रिश्ता पक्का हुआ?” उसने हामी भरी। मैंने उसे तसल्ली दी कि मैं उसका राज नहीं खोलूँगा।

कमरे में फिर से मैं और मम्मी अकेले थे। मैंने उन्हें गले लगाया। मम्मी ने कहा, “अब घर चलते हैं, बेटा। वहाँ हमें और मौके मिलेंगे।” मैं समझ गया कि वो मेरे साथ ये रिश्ता बनाए रखना चाहती हैं। मैंने उन्हें चूमा, और हम अपने कमरे की ओर चल पड़े।

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