लाडो रानी का उदघाटन समारोह

Kuwari ldki ki pehli chudai kahani जब से मेरी दीदी गीता मेहरा ने मुझे उस साइट के बारे में बताया, मैंने उत्सुकता में उसे खोल लिया। जैसे ही मैंने वहाँ की कहानियाँ पढ़ीं, लोगों की बिस्तर की गर्मागर्म बातें पढ़कर मेरी चूत में तो जैसे आग सी लग गई। हर कहानी पढ़ते-पढ़ते मेरी पैंटी गीली होने लगी थी। मेरे मन में भी ख्याल आया कि क्यों न मैं भी अपनी जिंदगी का पहला सेक्स आप सबके सामने लाऊँ। उम्मीद तो दुनिया की बुनियाद है, और मुझे पूरा यकीन है कि मेरी ये चुदाई की कहानी जल्द ही आपकी स्क्रीन पर होगी।

मेरा नाम वैशाली है। उम्र 18 साल, कद 5 फुट 5 इंच, गोरा-चिट्टा रंग, मखमली बदन, और सीना ऐसा कि हर नजर ठहर जाए। मेरी छातियाँ 34C की हैं, जो मेरी सलवार-कमीज में भी उभरकर सबका ध्यान खींच लेती हैं। मैं बारहवीं कक्षा की छात्रा हूँ। पहले हम गाँव में एक संयुक्त परिवार में रहते थे। चाचा-चाची, बुआ, ताया-ताई, सब एक साथ। घर छोटा था, जगह कम, सो अलगाव क्या होता है, ये मैंने कभी जाना ही नहीं। रात को बिस्तर पर लेटे-लेटे चुदाई के लाइव सीन देख-देखकर ही मैं बड़ी हुई।

एक बार की बात है, मैं स्कूल से जल्दी घर आ गई थी। तबीयत कुछ ठीक नहीं थी। घर में सन्नाटा था, सिवाय चाचा के कमरे से आती सिसकियों के। मैं चुपके से पिछली खिड़की की ओर गई। अंदर का नजारा देख मेरी साँसें थम सी गईं। चाचा बिस्तर के किनारे नंगे बैठे थे, और चाची घुटनों के बल फर्श पर थीं, चाचा के मोटे लौड़े को मुँह में लेकर चूस रही थीं। चाची की जीभ लौड़े के सुपाड़े पर घूम रही थी, और चाचा सिसकारियाँ भर रहे थे, “हाय रे, और चूस मेरी जान!” फिर चाची बिस्तर पर लेट गईं। चाचा ने उनका पेटीकोट ऊपर उठाया और अपना लौड़ा चाची की चूत में पेल दिया। “आह्ह… उफ्फ…” चाची की सिसकियाँ कमरे में गूंज रही थीं। ये सब देख मेरी पैंटी में नमी सी फैल गई। मैंने पहले भी मम्मी-पापा को रात में चुदाई करते देखा था, पर इतने करीब से कभी नहीं। उस दिन के बाद मेरी जवानी में एक अजीब सी हलचल शुरू हो गई।

फिर पापा ने शहर में एक बड़ा सा मकान बनवाया, और हम गाँव छोड़कर यहाँ आ बसे। गाँव में मैंने पंजाबी मीडियम स्कूल में सातवीं तक पढ़ाई की थी, वो लड़कियों का स्कूल था। शहर में मैंने एक को-एड प्राइवेट स्कूल में आठवीं में दाखिला लिया। यहाँ मेरी सहेलियाँ बनीं—श्वेता, मरियम और नूरी। हम चारों का ग्रुप स्कूल में मशहूर था। मेरी सहेलियों का ध्यान लड़कों पर था। नूरी का तो एक लड़के के साथ अफेयर भी चल रहा था। हमारा ग्रुप स्कूल की लड़कियों में चर्चा का विषय था। मेरी जवानी अब पूरी तरह खिलने लगी थी। मेरे गोल-मटोल मम्मे, पतली कमर और उभरी हुई गांड की वजह से लड़कों की नजरें मुझ पर टिकने लगीं। जब मैं स्कूल यूनिफॉर्म में सड़क पर चलती, तो लड़कों की आँखें मेरे सीने पर अटक जातीं। पहले तो मुझे अजीब लगता, पर धीरे-धीरे मजा आने लगा।

इसी बीच स्कूल के एक लड़के, अमृत ने मुझे प्रपोज किया। वो ठीक-ठाक था, पर मेरा दिल उस पर नहीं आया। मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन तभी मेरी जिंदगी में एक नया मोड़ आया। एक लड़का, जो हर सुबह और स्कूल छूटने के बाद अपनी होंडा सिटी कार में मेरे पीछे-पीछे आने लगा। वो इतना हैंडसम था कि क्या बताऊँ! लंबा, गोरा, और स्टाइल ऐसा कि लड़कियाँ बस देखती रह जाएँ। एक दिन उसने कार मेरे पास लाकर रुकाई और अपना मोबाइल नंबर मुझे थमा दिया। मेरे साथ नूरी थी, उसने नंबर ले लिया और मुझे उकसाने लगी, “पटा ले मेरी जान! ऐसा मौका फिर कहाँ मिलेगा?”

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मैंने कहा, “अरे, अमृत ने जो प्रपोज किया, उसका क्या?”

नूरी बोली, “उसे स्कूल तक सीमित रख। ये वाला तो बड़े घर का लगता है!”

मैंने नूरी से नंबर लिया और हम दोनों पास की एसटीडी बूथ पर गए। मैंने कॉल किया। उसने अपना नाम करण बताया और बोला, “वैशाली, मैं तुम पर फिदा हूँ। प्लीज, मेरे साथ डेट पर चलो!” उसकी आवाज में एक अजीब सी गर्मी थी, जो मेरे दिल को छू गई। मैंने हाँ कर दी।

वो बोला, “मैं अभी मार्केट में ही हूँ। चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ। प्लीज मना मत करना!”

मैंने केबिन से बाहर देखा, उसने कार के पास खड़े होकर हाथ हिलाया। नूरी का घर पास था, वो पैदल चली गई। मैं करण की कार में बैठ गई। कार में हल्का सा म्यूजिक बज रहा था, और वो मुझे बार-बार देखकर मुस्कुरा रहा था। उसने मेरा हाथ पकड़ा और बोला, “वैशाली, तुम बहुत सेक्सी हो। इतनी खूबसूरत लड़की मैंने पहले कभी नहीं देखी।”

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उसने मेरे हाथ पर किस किया और कहा, “आई लव यू सो मच!”

मैंने शरमाते हुए कहा, “आई लव यू टू!”

अचानक उसने मुझे अपनी ओर खींचा और मेरे होंठों पर किस कर दी। मुझे जैसे करंट सा लगा। उसने कार साइड में लगाई और मेरे होंठ चूसने शुरू कर दिए। “उम्म… आह…” मेरी साँसें तेज होने लगीं। मैंने कहा, “प्लीज, छोड़ो न!”

वो बोला, “कितने दिन से तुम्हारे इन रसीले होंठों को चूमने का मन था। और तुम कह रही हो छोड़ो?”

मुझे भी अंदर से कुछ होने लगा। मैंने उसका साथ देना शुरू किया। हम दोनों लिप-किस में डूब गए। पता ही नहीं चला कब उसका हाथ मेरी शर्ट के अंदर घुस गया और मेरे मम्मों को दबाने लगा। उसने ड्राइवर सीट को पीछे किया और मेरे ऊपर आ गया। उसका एक हाथ मेरी स्कर्ट में घुसा और मेरी जांघों को सहलाने लगा। “आह्ह… करण…” मैं इतनी गर्म हो गई थी कि सब कुछ भूल गई। उसने मेरी शर्ट के बटन खोले और मेरी ब्रा से एक मम्मा बाहर निकाल लिया। वो उसे मसलने लगा, और मेरे निप्पल को मुँह में लेकर चूसने लगा। “उफ्फ… हाय…” मेरी सिसकियाँ निकलने लगीं। तभी मुझे एहसास हुआ कि उसका हाथ मेरी पैंटी पर था। मैं एकदम से हट गई और हांफते हुए बोली, “करण, प्लीज! हम सड़क पर हैं। कोई देख लेगा तो मुसीबत हो जाएगी!”

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वो हँसा, “अरे, इस गर्मी में कौन आएगा? और वैसे भी, तुमने तो मेरा लौड़ा पकड़ रखा है!”

मैं शरमा गई। सचमुच, मेरा हाथ उसकी पैंट के ऊपर से उसके लौड़े पर था। वो करीब 6 इंच का, मोटा और सख्त था। मैंने उसे छोड़ दिया और बोली, “प्लीज, मुझे घर छोड़ दो।”

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उसने मुझे घर छोड़ दिया। बाथरूम में जाकर मैंने अपनी पैंटी देखी, जो पूरी गीली थी। मेरे मम्मों पर उसके दांतों के हल्के निशान थे, जिन्हें देखकर मेरे बदन में फिर से सिहरन दौड़ गई। इसके बाद कई दिन तक हम ऐसे ही मिलते रहे। कार में घूमते, चूमा-चाटी करते। हर बार मेरी चूत गीली हो जाती, और मैं रात को बिस्तर पर लेटकर करण के बारे में सोचते हुए अपनी चूत में उंगली करती।

एक दिन शाम को मैंने करण को कॉल किया। उसने कहा, “आज ट्यूशन मिस कर दो। हम एयरपोर्ट रोड की तरफ घूमने जाएँगे। वहाँ एक सुनसान सड़क है, कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा।”

मेरे दिल में हल्की सी घबराहट हुई, पर जवानी का जोश हावी था। मैंने कहा, “ठीक है, मुझे पिक कर लो।”

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वो अपनी फोर्ड एंडेवर लेकर आया, जो किसी फाइव स्टार होटल से कम नहीं थी। हम एयरपोर्ट रोड की ओर निकल पड़े। वहाँ एक रेस्तराँ था, जो एयरपोर्ट के कोने पर था। कई लोग अपनी-अपनी कारों में बैठे थे। करण ने पार्किंग में रुकने की बजाय कार को रेस्तराँ के पीछे वाली सुनसान सड़क पर ले गया। वेटर आया, करण ने चिल्ड बियर मंगवाई, और मैंने कोल्ड कॉफी।

वेटर के जाते ही करण ने मुझे अपनी बाहों में खींच लिया। अब हम दोनों एक-दूसरे में पूरी तरह घुल चुके थे। उसने कार की सीट फ्लैट कर दी, और हमारा बिस्तर तैयार था। मैंने खुद ही उसके होंठ चूसने शुरू किए। “उम्म… करण…” वो मेरे मम्मों को बेरहमी से मसल रहा था, पर इतने प्यार से कि मजा दोगुना हो रहा था। मैं पूरी गर्म हो चुकी थी। उसने मेरा टॉप उतार दिया, और मैंने अपनी ब्रा की स्ट्रैप खोल दी। मेरे 34C के मम्मे आजाद हो गए। करण ने मेरे निप्पल को मुँह में लिया और चूसने लगा। “आह्ह… हाय… और चूसो…” मैं सिसकारियाँ ले रही थी। उसका एक हाथ मेरी जींस में घुस गया और मेरी चूत को पैंटी के ऊपर से सहलाने लगा। मेरी चूत पहले ही गीली थी, और अब तो जैसे रस टपक रहा था।

मैंने भी उसकी स्पोर्ट्स पैंट को नीचे सरकाया और उसके लौड़े को हाथ में लिया। पहली बार इतने खुलकर पकड़ा था। उसका 6 इंच का लौड़ा मेरे हाथ में फनफना रहा था। मैंने उसे सहलाना शुरू किया, और वो सिसकियाँ लेने लगा, “वैशाली, हाय… तू तो कमाल है!” तभी वेटर वापस आया। करण ने उसे बियर और बिल ले जाने को कहा। वेटर ने हल्का सा मुस्कुराया और चला गया।

करण ने कार का एसी ऑन किया, शीशे फिल्मी थे, कोई बाहर से नहीं देख सकता था। उसने सीट को पूरी तरह फ्लैट कर दिया, और अब कार सचमुच बिस्तर बन चुकी थी। उसने मेरी जींस खोलकर घुटनों तक सरका दी और अपना लौड़ा मेरे होंठों पर रगड़ने लगा। मैंने झट से उसे मुँह में ले लिया और चूसने लगी। “उम्म… आह…” उसका लौड़ा मेरे मुँह में गर्म और सख्त था। मैंने जीभ से उसके सुपाड़े को चाटा, और वो सिसकारियाँ लेने लगा, “हाय वैशाली, तू तो मेरी जान ले लेगी!”

थोड़ी देर चूसने के बाद उसने मुझे पीछे लिटाया और मेरी चूत पर अपना लौड़ा रगड़ने लगा। मेरी चूत सील बंद थी, और मन में डर था कि ये इतना मोटा लौड़ा अंदर कैसे जाएगा। मैंने सोचा, “चल वैशाली, आज तेरी लाडो रानी का उदघाटन समारोह है!”

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करण ने मेरी पैंटी उतार दी और मेरी चूत को चूमना शुरू किया। उसकी जीभ मेरी चूत के दाने को छू रही थी, और मैं पागल सी हो रही थी। “आह्ह… उफ्फ… करण, ये क्या कर रहे हो…” मैं सिसकारियाँ ले रही थी। उसने मेरी चूत को चाट-चाटकर और गीली कर दिया। फिर उसने अपना लौड़ा मेरी चूत पर रखा और हल्का सा धक्का दिया। लौड़े का सुपाड़ा अंदर फंस गया। मुझे दर्द हुआ, और मैंने सीट का कपड़ा कसकर पकड़ लिया। “आह… करण, धीरे…”

उसने कहा, “बस थोड़ा सा दर्द होगा, मेरी जान।” उसने दूसरा झटका मारा, और आधा लौड़ा अंदर चला गया। मेरी चीख निकल गई, “हाय… निकालो, प्लीज!” खून टपकने लगा था, और मेरी आँखों में आँसू आ गए। उसने मेरे होंठ अपने होंठों में ले लिए ताकि मेरी चीख बाहर न जाए। तीसरे झटके में उसका पूरा लौड़ा मेरी चूत में समा गया। “आह्ह… उफ्फ…” दर्द इतना था कि मेरी जान निकल गई।

उसने धीरे-धीरे लौड़ा बाहर निकाला और फिर अंदर डाला। “चप… चप…” चुदाई की आवाजें कार में गूंज रही थीं। तीन-चार बार ऐसा करने के बाद दर्द की जगह मजा लेने लगा। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और सिसकारियाँ लेने लगी, “हाय… और करो… आह्ह… और जोर से…” करण ने स्पीड बढ़ा दी। वो मेरे मम्मों को मसल रहा था, और मैं उसकी पीठ को नाखूनों से खरोंच रही थी। “वैशाली, तेरी चूत तो जन्नत है!” वो बार-बार कह रहा था।

उसने मुझे घोड़ी बनाया और पीछे से मेरी चूत में लौड़ा डाल दिया। “पच… पच…” उसकी जांघें मेरी गांड से टकरा रही थीं। मैं सिसकारियाँ ले रही थी, “आह्ह… उफ्फ… करण, और पेलो…” वो मेरी कमर पकड़कर धक्के मार रहा था। फिर उसने मुझे गोद में बिठाया और मैं उसके लौड़े पर उछलने लगी। मेरे मम्मे हवा में उछल रहे थे, और वो उन्हें चूस रहा था। “उम्म… आह…” मैं पूरी तरह जवानी के जोश में डूब चुकी थी।

अचानक मुझे अपनी चूत में गर्म-गर्म पानी सा महसूस हुआ। मैं झड़ गई। मेरी चूत की गर्मी में करण भी तीन-चार मिनट बाद झड़ गया। “आह्ह… वैशाली…” वो हांफते हुए मेरे ऊपर ढेर हो गया। हम दोनों पसीने से तर थे। उसने कार में पड़ा एक कपड़ा मुझे दिया, जिससे मैंने अपनी चूत और खून साफ किया।

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हमने कपड़े पहने और एक-दूसरे की बाहों में लिपट गए। उसने मेरे होंठ चूमते हुए पूछा, “कैसा लगा, मेरी जान?”

मैंने शरमाते हुए कहा, “बहुत अच्छा लगा।”

सुबह उठने पर मेरी चूत में हल्की सी सूजन थी, और चलने में अजीब सा लग रहा था। नूरी को सब पता था, उसने मुझसे सारी बातें बकवा लीं। मैंने उससे कहा, “करण के साथ तो बस शुरुआत हुई है। आगे देखो, और कितने लौड़ों पर बैठूँगी!”

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