खुजली मैं दूर कर दूंगा !

Padosan Aunty ki chudai – दोस्तो, मेरी पिछली कहानी बस में दो आंटी के साथ मज़ा को आप सभी का बहुत-बहुत प्यार मिला।

आज मैं आपको अपनी पड़ोसन आंटी की चुदाई की कहानी सुनाने जा रहा हूँ कि कैसे मुझे 37 साल की माल आंटी को चोदने का मौका मिला। आंटी का नाम रंजना है, गोरी-चिट्टी, भरे हुए बदन वाली, और उनकी आँखों में एक शरारती चमक हमेशा रहती है। उनकी उम्र 37 साल है, लेकिन बदन ऐसा कि 30 की भी न लगे। अंकल, जिनका नाम सुरेश है, बीएसएनएल में जॉब करते हैं, 45 के आसपास हैं, और रात को थककर चूर होकर आते हैं। उनका बड़ा बेटा, राहुल, 24 साल का है, दिल्ली में नौकरी करता है, और छोटा बेटा, अजय, 18 साल का, कॉलेज में फर्स्ट ईयर में है।

तो अपने लंड को थाम लो, और अगर पास में चूत है तो उसमें उंगली डालकर तैयार हो जाओ एक गजब की दास्ताँ सुनने के लिए! मैं वादा करता हूँ कि कहानी खत्म होने से पहले तुम्हारा लंड माल छोड़ देगा और चूत पानी-पानी हो जाएगी।

मेरे पड़ोस में रंजना आंटी का परिवार रहता है। हमारे घर इतने पास-पास हैं कि छत से छत पर कूदकर जाया जा सकता है। दोनों घरों की छतें एक-दूसरे से सटी हुई हैं, और शाम को आंटी अक्सर कपड़े सुखाने आती थीं। उनकी साड़ी या सूट में झलकती कमर और भारी चूचियों को देखकर मेरा मन हमेशा मचल जाता था। मैं, रवि, 22 साल का हूँ, कॉलेज में पढ़ता हूँ, और थोड़ा-बहुत इलेक्ट्रिकल का काम जानता हूँ। मेरा बदन फिट है, और लंड साढ़े सात इंच का, मोटा, जो लड़कियों को दीवाना बना देता है।

बात गर्मियों की दोपहर की है। बाहर तेज गर्मी थी, हवा में धूल उड़ रही थी, और आसमान में बादल घुमड़ रहे थे, जैसे बारिश की तैयारी हो। रंजना आंटी हड़बड़ी में छत पर आईं, अपने सूखे हुए कपड़े समेटने लगीं ताकि हवा में उड़ न जाएँ। उनकी साड़ी पसीने से भीगकर बदन से चिपक गई थी, और कमर की एक झलक दिख रही थी, जो चिकनी और गोरी थी। मैं नीचे अपने कमरे में था, जब मम्मी ने बताया कि आंटी छत से आवाज दे रही हैं।

मम्मी उस वक्त रसोई में खाना बना रही थीं, तो उन्होंने मुझे कहा, “जा, देख तो रंजना क्या बोल रही है!” मैंने मौका देखा और मन में शरारत जागी। मैं छत पर गया, और वहाँ देखा कि आंटी की गुलाबी लेस वाली पैंटी हवा में उड़कर हमारी छत पर गिर गई थी। मैंने जानबूझकर उस पर पैर रख दिया और आंटी से मासूम बनकर पूछा, “आंटी, क्या बात है? आपने आवाज क्यों लगाई?”

आंटी फंस गई थीं। उनका चेहरा शर्म से लाल हो गया, लेकिन वो बोलीं, “बेटा, मेरा एक कपड़ा तुम्हारी छत पर गिर गया है। जरा लौटा दो!” उनकी आवाज में हल्की सी झिझक थी।

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मैंने अनजान बनते हुए कहा, “कौन सा कपड़ा, आंटी जी?” मैंने पैर को और दबाया, जैसे कुछ समझा ही न हो।

वो थोड़ा झुंझलाकर बोलीं, “वो… जो तुम्हारे पैर के नीचे है!” मैंने नाटक किया, पैर हटाया और बोला, “अरे, सॉरी आंटी जी! मुझे तो दिखा ही नहीं कि आपकी पैंटी यहाँ गिरी है!” मैंने पैंटी उठाई, उसे फैलाकर देखा, और हल्का सा सूंघने का नाटक किया।

आंटी ने गुस्से में कहा, “ये क्या कर रहा है? बस दे दे जल्दी!” लेकिन उनकी आँखों में शरारत थी, जैसे वो मजे ले रही हों।

मैंने कहा, “अरे, आंटी जी, गलती हो गई। मैं तो बस ठीक कर रहा था।” मैंने पैंटी को हिलाकर साफ करने का दिखावा किया।

आंटी ने मेरी नीयत भाँप ली। वो बोलीं, “इतना ही शौक है कपड़े ठीक करने का, तो मेरे घर आ जा। ढेर सारे कपड़े पड़े हैं, मन भरके साफ कर ले!” उनकी बात में इशारा था, और मेरा लंड पैंट में हलचल करने लगा।

मैंने कहा, “आंटी, मुझे तो बड़े कपड़े धोने नहीं आते। मैं तो बस छोटे-छोटे कपड़े, जैसे पैंटी, ब्रा वगैरह ही संभालता हूँ!” मैंने डबल मीनिंग में कहा, और वो हल्का सा मुस्कुरा दीं।

वो बोलीं, “तो छोटे कपड़े ही साफ कर दे, मेरी बहुत मदद हो जाएगी!” उनकी आवाज नरम थी, और आँखों में न्योता।

मैंने पूछा, “सचमुच आ जाऊँ?” वो बोलीं, “हाँ, अभी आ जा!”

मैं नीचे गया, मम्मी से बोला कि आंटी का केबल खराब है, और मैं देखने जा रहा हूँ। मम्मी ने हामी भर दी। मैं आंटी के घर पहुँचा। आंटी ने गुलाबी सूट पहना था, बिना दुपट्टे के, जो उनके भारी बदन से चिपका हुआ था। उनकी गांड के दो टुकड़े साफ दिख रहे थे, जैसे दो बड़े-बड़े आम, चलते वक्त हिलते हुए। उनकी चूचियां ब्रा में कैद थीं, लेकिन निप्पल्स का निशान साफ था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि उनकी गांड को घूरूँ या चूचियों को, जो ब्रा फाड़कर बाहर आने को बेताब थीं।

आंटी पानी लेकर आईं और मेरे बगल में बैठ गईं। उनकी जांघ मेरी जांघ से सट गई, और गर्मी सी दौड़ गई। वो मेरी पढ़ाई का हाल पूछने लगीं, लेकिन मैंने टालते हुए कहा, “आंटी, कपड़े दिखाओ। मुझे और भी काम हैं!” मैं सीधा मुद्दे पर आया।

आंटी ने शरारती अंदाज में कहा, “ऊपर के या नीचे के?” उनकी आँखें चमक रही थीं।

मैंने कहा, “मैं तो दोनों संभाल लूँगा!” वो हंस पड़ीं और उसी वक्त अपना सूट ऊपर उठाने लगीं। मैंने उन्हें रोका और कहा, “आंटी, धीरे-धीरे… मजा आएगा!” वो रुक गईं, और मैंने खुद उनका सूट उतारा। उनकी काली लेस वाली ब्रा में चूचियां छलक रही थीं। मैंने ब्रा का हुक खोला, और चूचियां आजाद हो गईं। बड़ी, भारी, हल्की लटकी हुई, लेकिन निप्पल्स सख्त और गुलाबी। मेरा लंड पैंट में तन गया।

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मैंने उनका हाथ पकड़ा और अपनी जांघ पर रखा, जहाँ मेरा लंड उभार बना रहा था। वो बोलीं, “बेटा, ये क्या है?” मैंने कहा, “आंटी, आपकी चूचियों का आकार तो बताओ पहले!”

वो हँसीं और बोलीं, “तुझे कितना लगता है?”

मैंने अनुमान लगाया, “चालीस?”

वो बोलीं, “वाह, कॉलेज में लड़कियाँ चोद-चोदकर साइज का अंदाजा हो गया है! बिल्कुल सही!” मैं शरमा गया।

फिर मैंने सच बोला, “आंटी, कई बार रात को जब आप कपड़े सुखाकर सोने जाती थीं, मैं चुपके से छत पर जाता था। आपकी ब्रा और पैंटी का नंबर देखता था और पैंटी में मुठ मारता था।”

आंटी ने हल्का सा थप्पड़ मारा और बोलीं, “साले, कुत्ते! तेरी वजह से मेरी चूत में खुजली होती थी। मैं साफ पैंटी सुखाती थी, और सुबह उस पर दाग! फिर वही पहननी पड़ती थी।” उनका गुस्सा नकली था, और वो मुस्कुरा रही थीं।

मैंने कहा, “आंटी, आज आपकी चूत की सारी खुजली मिटा दूँगा!” मैंने उन्हें बाहों में लिया और किस करना शुरू किया। उनके होंठ नरम थे, थोड़े गीले। मैंने जीभ डाली, और वो भी जीभ से खेलने लगीं। उनकी साँसें तेज थीं। मैंने उनके गले पर, कंधों पर किस किया, फिर ब्रा के ऊपर से चूचियों को दबाया। वो सिसकारी- आह… धीरे, बेटा…

मैंने ब्रा उतारी, और एक निप्पल मुंह में लिया। चूसने लगा, दूसरी चूची को मसल रहा था। वो कराह रही थीं- उफ्फ… कितना जोर से चूसता है… हां… ऐसे… मैंने हल्के से काटा, और वो चिहुंकी- आह… साले… मजा आ रहा है…

फिर मैंने उन्हें मेज़ पर कुतिया की तरह झुकने को कहा। वो झुकीं, उनकी गांड ऊपर उठी, सलवार में कसी हुई। मैंने नाड़ा खोला, सलवार नीचे सरकाई, और पैंटी भी उतार दी। उनकी गांड चिकनी थी, गोरी, और चूत गीली, रस टपक रहा था। मैंने नाक गांड में लगाई, और जीभ चूत पर। स्वाद नमकीन था, थोड़ा खट्टा। मैंने जीभ अंदर डाली, क्लिट को चाटा। वो कराहने लगीं- आह… आह… क्या कर रहा है… चूत चाट रहा है… उफ्फ… और गहरा…

मैंने उंगली डाली, क्लिट को रगड़ा, और गांड के छेद को जीभ से छुआ। वो बोलीं- नहीं… वहाँ नहीं… लेकिन अच्छा लग रहा है… मैंने चूत में दो उंगलियाँ डालीं, और वो हिलने लगीं- ओह… साले… खुजली मिटा दे… आह…

मेरा लंड अब दर्द कर रहा था। मैंने पैंट उतारी, साढ़े सात इंच का लंड बाहर निकाला, जो लाल और मोटा था। मैंने उसे आंटी के मुंह में दिया। वो थोड़ा हिचकिचाईं, लेकिन फिर चूसने लगीं। जीभ से सिर चाटा, फिर पूरा मुंह में लिया। मैंने उनके बाल पकड़े- चूस साली… अच्छे से… वो ग्लक-ग्लक की आवाज निकाल रही थीं, लार टपक रही थी।

पाँच मिनट बाद मैंने लंड निकाला और उनकी गांड में डालने की कोशिश की। वो बोलीं- नहीं! चूत में डाल! गांड में नहीं! मैंने उनकी बात मानी। वो अंदर गईं और अंकल का कंडोम लाईं। बोलीं, “दो महीने से ये नामर्द तीन कंडोम का पैक लाया था, और सिर्फ एक यूज किया।”

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मैंने पूछा, “पानी पियोगी या चूत में लोगी?”

वो बोलीं, “कुत्ते, चूत में डाल! पानी बाद में!”

मैंने कहा, “साली, देख मर्द का लंड!” मैंने उन्हें बेड पर लिटाया, पैर फैलाए, कंडोम चढ़ाया। लंड का सिर चूत पर रगड़ा, धीरे-धीरे अंदर डाला। चूत टाइट थी, गीली। वो चीखीं- आह… धीरे… बड़ा है तेरा… मैंने आधा डाला, फिर पूरा। फच्च… फच्च… की आवाज शुरू हुई। वो कराह रही थीं- आह… चोद साले… जोर से… मैंने चूचियां दबाईं, होंठ चूसे। वो नाखून मेरी पीठ पर गड़ा रही थीं- ओह… क्या लंड है… नामर्द अंकल से बेहतर…

फिर मैंने पोजीशन बदली, उन्हें घोड़ी बनाया। पीछे से डाला, गांड पर थप्पड़ मारा- ले रंडी… चूत फाड़ दूँगा… वो बोलीं- हां… फाड़ दे… खुजली मिटा… फच्च… पिच… की आवाजें गूंज रही थीं। मैंने बाल पकड़े, जोर-जोर से धक्के दिए। वो हांफ रही थीं- आह… आने वाला है…

बारह मिनट बाद वो झड़ गईं, चूत सिकुड़ी, रस बहा। मैंने लंड निकाला, कंडोम उतारा, और सारा माल उनके मुंह में डाला। वो निगल गईं, बोलीं- साला… कितना माल है… हम दोनों थककर बेड पर लेट गए।

मैंने पूछा, “अंकल को क्या कहोगी, दूसरा कंडोम कहाँ गया?”

वो बोलीं, “कहूँगी, दोनों फेंक दिए!”

मैंने कहा, “दोनों?”

वो दूसरा कंडोम लेकर मेरा लंड सहलाने लगीं और बोलीं, “गांड मरवा भी लूँगी!” मैंने उन्हें फिर घोड़ी बनाया, थोड़ा तेल लगाया, और धीरे-धीरे लंड गांड में डाला। वो चीखीं- आह… दर्द हो रहा है… धीरे… मैंने धीरे-धीरे धक्के दिए। वो कराह रही थीं- उफ्फ… अच्छा भी लग रहा है… फच्च… पिच… की आवाजें फिर शुरू हुईं। मैंने स्पीड बढ़ाई, और वो सिसकारियाँ ले रही थीं- आह… आह… चोद दे…

पंद्रह मिनट की गांड चुदाई के बाद मैं फिर झड़ा, और माल उनके मुँह में डाला। वो थककर लेट गईं, और बोलीं, “साले, तू तो जानवर है!”

हम दोनों हाँफ रहे थे, पसीने से तर। फिर वो बोलीं, “अब ये रोज का प्रोग्राम बनाना पड़ेगा।” मैंने हँसकर कहा, “आंटी, जब तक अंकल नामर्द हैं, मैं तो हाजिर हूँ!”

कमेंट में बताओ दोस्तो, क्या तुम्हें भी ऐसी पड़ोसन आंटी मिली है जिसकी खुजली तुमने मिटाई?

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