कच्ची उम्र की साली की चूत एकदम टाइट थी

सृष्टि, मेरी साली, ने पिछले साल ही ब्रा पहनना शुरू किया था। उसके बूब्स छोटे-छोटे, शायद 28 इंच के आसपास, मगर उसकी गांड का उभार गजब का था, मानो हर कदम पर लचक रही हो। वो मेरी पत्नी की छोटी बहन थी, अब 18 साल की हो चुकी थी। उसकी उम्र ऐसी थी कि मासिक शुरू हो चुका था और उसे सेक्स की अच्छी-बुरी समझ आ गई थी। मैं आमतौर पर उसके प्रति आकर्षित नहीं था, मगर उसकी जवानी की चमक को नजरअंदाज करना भी मुश्किल था।

एक दोपहर, जब मैं अपनी बीवी के साथ बेडरूम में चुदाई के मजे ले रहा था, तभी मुझे खिड़की के छोटे-से छेद से दो नीली आंखें झांकती दिखीं। सृष्टि थी, अपनी दीदी और जीजा को चोदते हुए चुपके-चुपके देख रही थी। मैंने उसे देखा, मगर अनदेखा कर दिया। उस दिन मैंने अपनी बीवी को ऐसे चोदा कि उसकी सिसकियां पूरे कमरे में गूंज रही थीं—अह्ह्ह… अह्ह्ह… उफ्फ! सृष्टि ने शुरू से आखिर तक सब देखा। जब मेरा लंड छूटा और मैंने बीवी को कसकर पकड़ लिया, तब वो चुपके से खिसक गई।

पहले सृष्टि मुझसे खूब हंसी-मजाक करती थी, मगर उस दिन के बाद वो बदल सी गई। मुझे देखकर या तो शरमा जाती या डरती-सी लगती। मैं समझ गया कि उसकी उम्र ऐसी है, जब जिस्म में उबाल आता है, और शायद वो मेरे और अपनी दीदी के उस पल को भूल नहीं पा रही थी। मैंने सोचा, क्यों ना इसे थोड़ा और उकसाया जाए? मैंने उसे छोटे-मोटे गिफ्ट देने शुरू किए। जब भी बीवी घर पर न होती, मैं हल्का-फुल्का सेड्यूस करने की कोशिश करता। मगर सृष्टि चालाक थी, वो अकेले में मेरे साथ ज्यादा देर रुकती ही नहीं।

हां, मैं बताना भूल गया—सृष्टि हमारे साथ रहती थी, क्योंकि वो शहर में पढ़ाई कर रही थी। उसके मां-बाप, यानी मेरे सास-ससुर, गांव में रहते थे। उन्होंने कहा था, “तू अपनी दीदी-जीजा के पास रह, शहर में पढ़ाई अच्छी होगी।” मेरे ससुर हर महीने उसकी खर्ची भेजते थे, तो मैं भी उसका ख्याल रखता था।

एक दिन, मेरी बीवी शॉपिंग के लिए निकली। घर पर सिर्फ मैं और सृष्टि थे। वो सोफे पर बैठी टीवी देख रही थी। मैं उसके बगल में जा बैठा। उसने मुझे देखा और उठकर जाने लगी। मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, “कहां भाग रही हो, सृष्टि?”

वो बोली, “जीजू, बस कुछ काम याद आ गया।”

मैंने हंसते हुए कहा, “अरे, काम बाद में कर लेना। बैठ ना!”

वो वापस बैठ गई, मगर उसका बदन कांप रहा था। मैंने अपनी जांघ को उसकी जांघ से सटा दिया। उसकी सांसें तेज हो गईं। टीवी पर जो चल रहा था, ना उसका ध्यान था, ना मेरा। मेरा लंड पैंट में तन गया, मानो अब फट जाएगा। सृष्टि की सांसें जोर-जोर से चल रही थीं। अचानक वो उठी और भाग गई। मेरा लंड तड़पता रह गया। मैंने सोचा, इसकी चूत में आग लगानी पड़ेगी, तभी बात बनेगी।

उसी शाम मैं रेलवे स्टेशन गया। वहां एक बुक स्टॉल पर गया और बोला, “भाई, कोई गरमा-गरम कहानियों की किताब दे।” उसने मुझे मस्तराम की एक किताब दिखाई, जिसमें ‘शर्मीली भाभी’ नाम की कहानियां थीं। उसमें एक चैप्टर था जीजा-साली का। मैंने किताब खरीदी और घर आकर उस चैप्टर में सृष्टि का नाम लिख दिया—’सृष्टि, I love you’, ‘Srishti is very sexy’ वगैरह। कहानियां पढ़ीं तो मेरा लंड खड़ा हो गया। मैं जानता था, सृष्टि इसे पढ़ेगी तो उसकी चूत में भी आग लगेगी।

अब इंतजार था मौके का। एक महीने बाद वो दिन आया। मेरी बीवी को ऑफिस के काम से दो दिन के लिए बाहर जाना था। मैंने ऑफिस में मीटिंग का बहाना बनाकर छुट्टी ले ली। बीवी के जाते ही मैंने वो किताब सृष्टि के कमरे में चुपके से रख दी, ताकि उसकी नजर तुरंत पड़े। मैं ऑफिस से जल्दी लौट आया, सृष्टि के कॉलेज से आने से पहले। घर आकर मैंने सिर्फ बरमूडा पहना, अंदर कुछ नहीं।

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सृष्टि आई और अपने कमरे में गई। मैंने खिड़की से चुपके से देखा। उसVitality उसने किताब उठाई, पन्ने पलटे, और ‘सृष्टि, I love you’ वाला हिस्सा पढ़कर मुस्कुराने लगी। वो पूरा चैप्टर पढ़ गई। शायद उसकी चूत गीली हो गई थी, क्योंकि उसने एक बार अपनी चूत को सहलाया और फिर नहाने चली गई।

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वो नहाकर लौटी, तो मैं जानबूझकर बिना तौलिया लिए बाथरूम में घुस गया। सृष्टि की पैंटी वहां पड़ी थी। मैंने उसे सूंघा—उफ्फ, उस नाजुक चूत की खुशबू ने मेरे लंड में तूफान ला दिया। मैंने शॉवर ऑन किया, नहाने लगा। फिर अपने लंड पर साबुन लगाकर हल्की-सी मुठ मारी, ताकि वो एकदम कड़क हो जाए। पांच मिनट बाद मैंने आवाज लगाई, “सृष्टि, प्लीज तौलिया दे दे!”

वो शायद अपने बाल सुखा रही थी। मेरी आवाज सुनकर तौलिया लेकर आई। उसने हल्के से दरवाजा खटखटाया और बोली, “जीजू!” मैंने दरवाजा खोला, ताकि वो मेरा नंगा बदन और तना हुआ लंड देख ले। उसकी नजर मेरे लंड पर पड़ी, और वो शरमाकर मुंह फेरने लगी। उसने हाथ बढ़ाकर तौलिया देने की कोशिश की। मैंने हिम्मत करके उसका हाथ पकड़ लिया। वो मुझे देखने लगी। उसकी आंखों में शरम थी, मगर वासना भी झलक रही थी।

मैंने और हिम्मत की और उसे बाथरूम में खींच लिया। वो बोली, “जीजू, मैं भीग जाऊंगी!” मैंने कुछ नहीं कहा, बस उसे अपने बदन से चिपकाकर उसके होंठ चूसने लगा। वो छटपटाई, मगर मैंने उसे कसकर पकड़ रखा था। वो अपने भीगे बूब्स को देख रही थी, और मैं उसके होंठों को जोर-जोर से चूस रहा था—चप… चप… की आवाज गूंज रही थी।

एक मिनट तक वो छटपटाती रही, फिर उसके हाथ मेरी कमर पर आ गए। वो मुझे अपनी ओर खींचने लगी। मैंने उसे दीवार से सटा दिया, उसके पतले गाउन के ऊपर से उसकी जवान चूचियां मसलने लगा। मेरा लंड एकदम तना हुआ था, उसकी छाती के नीचे टच हो रहा था, क्योंकि मैं उससे कहीं लंबा था। मैंने उसकी गांड पर हाथ रखा, उसके चिकने चूतड़ों को दबाया, और उन्हें प्यार से मसला।

सृष्टि की सिसकियां मेरे होंठों पर महसूस हो रही थीं—अह्ह्ह… अह्ह्ह…। मैंने अपने होंठ उसके होंठों से हटाकर उसकी छाती पर रखे। उसके बूब्स के ऊपरी हिस्से को चूसते हुए मैंने उसकी कमर को सहलाया। वो सिहर उठी, “अह्ह्ह… जीजू… उफ्फ!” उसकी आवाज में चुदास भरी थी।

मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया। वो उसे ऐसे दबा रही थी, मानो कोई कीमती चीज मिल गई हो। फिर मैंने उसका गाउन फाड़ दिया। उसने ब्रा नहीं पहनी थी। उसकी छोटी-छोटी चूचियां मेरे सामने थीं, गुलाबी निप्पल तने हुए। मैंने उसकी स्कर्ट और पैंटी भी फाड़ दी। अब वो पूरी नंगी थी, दीवार से सटी खड़ी।

शॉवर का पानी हमारे ऊपर गिर रहा था। पानी की बूंदें उसकी चिकनी त्वचा पर मोतियों की तरह चमक रही थीं। मैंने शॉवर को हल्का कर दिया, ताकि मेरी आंखें खुली रहें। सृष्टि का मुंह दीवार की ओर था। मैं नीचे बैठा और उसकी जांघों के पीछे अपने गर्म होंठ रखे। वो सिहर उठी, “अह्ह्ह… जीजू, ये क्या!” मैंने उसकी दोनों जांघों को पकड़कर हिलाया, और वो चुदास में सिसकने लगी—अह्ह्ह… उफ्फ…।

मेरे हाथ उसकी गांड के नीचे गए। मैंने उसके चूतड़ों को दबाया, और वो मस्ती में सिहर उठी। मैंने उसके चिकने चूतड़ों को खोला। उसका हल्का ब्राउन रंग का छेद मेरे सामने था। मैंने साबुन लिया, उसकी गांड पर लगाया। शॉवर का पानी उसे धो रहा था। सृष्टि थिरक रही थी, मानो उसकी पहली चुदाई का सपना सच हो रहा हो।

मेरे लंड में आग लगी थी। मैंने उसकी गांड के छेद को अपनी जीभ से छुआ। वो जोर से सिसकी, “अह्ह्ह… जीजू… उफ्फ, ये क्या कर रहे हो!” उसकी मुट्ठियां बंद हो गईं। मैंने और जोर से अपनी जीभ रगड़ी, और साथ में उसकी चूत को सहलाने लगा। उसकी सिसकियां तेज हो गईं—अह्ह्ह… अह्ह्ह…।

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मैंने उसकी चूत पर हाथ रखा। वो गर्म थी, मानो आग जल रही हो। मैंने उसे अपनी ओर घुमाया। उसकी चूत एकदम टाइट थी, जैसे आम को चाकू से काटा हो, मगर फांकें अलग न की हों। मैंने उंगली से उसकी दरार को सहलाया। वो गीली थी, पानी और उसकी चूत के रस से। मैंने उंगली चाटी—उसका स्वाद नमकीन और नशीला था।

सृष्टि ने आंखें बंद कर लीं, शायद शरम से। मैंने उसकी चूत की फांकें खोलीं। मेरे सामने एक हसीन, टाइट चूत थी, जिसे चोदने का ख्याल मेरे लंड में तूफान ला रहा था। मैंने उसकी एक टांग उठाकर अपने कंधे पर रखी और अपना मुंह उसकी चूत पर लगा दिया। जैसे ही मेरी जीभ उसकी चूत को छुई, वो चिल्ला उठी, “अह्ह्ह… जीजू… उफ्फ… ये क्या… अह्ह्ह!”

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मैंने उसकी चूत को आइसक्रीम की तरह चाटा। वो मेरे बाल पकड़कर मुझे अपनी ओर खींच रही थी, “अह्ह्ह… जीजू… और… उफ्फ… मजा आ रहा है!” मेरी जीभ जब उसके छेद में घुसी, तो उसकी चूत से रस बहने लगा। वो झटके खा रही थी, “अह्ह्ह… जीजू… बस… अह्ह्ह!” उसका बदन कांप रहा था, जैसे बिजली का झटका लगा हो।

मैंने उसकी दूसरी टांग भी अपने कंधे पर ले ली। अब उसका पूरा वजन मेरे ऊपर था। वो दीवार के सहारे थी, और मैं उसकी चूत को और जोर-जोर से चूस रहा था—चप… चप… की आवाज गूंज रही थी। एक मिनट और चूसने के बाद वो थककर नीचे उतर गई। मैं नहीं चाहता था कि उसका पहला सेक्स ज्यादा भारी हो, इसलिए मैंने उसे ब्लोजॉब के लिए नहीं कहा।

मैंने उसे बाथरूम के फर्श पर लिटाया। उसके पूरे बदन पर साबुन लगाया, उसके बूब्स, कमर, जांघों को रगड़ा। फिर शॉवर फुल करके उसे नहलाया। अब बारी थी असली खेल की। मैंने अपने लंड को उसकी चूत पर रखा। उसकी टांगें खोलीं। मेरा सुपाड़ा उसकी गीली चूत को छू रहा था। मैंने उसे किस किया और एक जोरदार झटका मारा।

सृष्टि चीख पड़ी, “अह्ह्ह… जीजू… मर गई… निकालो… प्लीज!” उसने अपना पेट पकड़ लिया। मैंने उसे चुप कराने के लिए उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। वो उह्ह… उह्ह… कर रही थी, मगर आवाज दब गई। मेरा आधा लंड उसकी टाइट चूत में था। मैंने उसके बूब्स मसले, उसे किस करता रहा।

एक मिनट बाद वो थोड़ा शांत हुई। मैंने एक और झटका मारा, और अपने साढ़े पांच इंच के लंड में से पांच इंच अंदर घुसा दिए। वो दर्द से तड़प उठी, “अह्ह्ह… जीजू… दर्द हो रहा है!” मगर उसे भी पता था कि थोड़ी देर में सब ठीक हो जाएगा। वो मेरे सीने से लिपट गई, अपने नाखूनों से मेरी पीठ खुरचने लगी।

जल्दी ही उसे शांति मिली। उसकी कमर हिलने लगी। वो बोली, “जीजू… it pains a lot!” मैंने कहा, “जानू, you will enjoy it, trust me!” वो मेरे गले लग गई। मैंने अपने लंड को उसकी चूत में चलाना शुरू किया—फच… फच… की आवाज गूंज रही थी। उसकी कमर भी मेरे साथ ताल मिला रही थी। वो मजे से चुदवा रही थी, “अह्ह्ह… जीजू… और… उफ्फ!”

उसकी गांड ऊपर-नीचे हो रही थी। मेरे लंड और उसकी चूत का मेल एकदम टाइट था। शॉवर की वजह से उसकी चूत से बहता खून दिखाई नहीं दिया, जो मेरे लिए अच्छा था, वरना वो डर जाती। मेरे झटके तेज होते गए, और सृष्टि की सिसकियां भी—अह्ह्ह… उह्ह्ह… जीजू… और जोर से! उसे अब लंड लेने में मजा आ रहा था।

मैंने उसे मिशनरी पोज में चोदा, क्योंकि पहली बार में ज्यादा उलट-पुलट ठीक नहीं। वो भी मुझे खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी। दस मिनट की चुदाई के बाद उसकी चूत फिर से गीली हो गई। मेरे लंड पर चिपचिपाहट महसूस हुई। दो मिनट बाद मेरा लंड भी झड़ गया, और मैंने उसकी चूत को अपने वीर्य से भर दिया।

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जब मैंने लंड निकाला, तो उस पर उसकी चूत का रस और मेरा वीर्य लगा था। सृष्टि थककर वही लेटी रही। उसने मुझे गले लगाकर बताया कि उसे मजा आया। मैंने उसे साबुन से रगड़कर साफ किया। अच्छा हुआ कि खून बह गया था, वरना वो डर जाती। मैंने उसकी चूत में शॉवर की पिचकारी मारी, ताकि कोई खतरा न रहे।

फिर मैं कपड़े पहनकर मेडिकल स्टोर गया। कंडोम का पैकेट और अनवांटेड टैबलेट ले आया। सृष्टि को और चोदने का मौका था, तो मैंने अगले दिन की छुट्टी भी ले ली।

अगले दिन सुबह सृष्टि जल्दी उठ गई। मैंने देखा वो किचन में चाय बना रही थी, एक पतली-सी नाइटी पहने हुए, जिसके नीचे उसकी पैंटी की हल्की-सी आउटलाइन दिख रही थी। मैं चुपके से उसके पीछे गया और उसकी कमर पर हाथ रख दिया। वो चौंक गई, “जीजू! सुबह-सुबह?” उसकी आवाज में शरम थी, मगर आंखों में चमक थी।

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मैंने उसे अपनी ओर घुमाया और कहा, “कल का मजा भूल गई?” वो शरमाकर हंस दी, “जीजू, आप भी ना… रुकिए, चाय तो बनने दीजिए!” मैंने चाय का गैस बंद कर दिया और उसे गोद में उठाकर बेडरूम में ले गया। उसकी नाइटी भीगने से चिपक गई थी, उसके छोटे-छोटे बूब्स साफ दिख रहे थे। मैंने नाइटी उतार दी। उसने आज हल्की गुलाबी पैंटी पहनी थी, जो उसकी गोरी जांघों पर गजब लग रही थी।

मैंने उसे बेड पर लिटाया और उसकी पैंटी उतार दी। उसकी चूत अभी भी टाइट थी, मगर कल की चुदाई से थोड़ा खुल गई थी। मैंने कंडोम का पैकेट खोला और एक कंडोम अपने लंड पर चढ़ाया। सृष्टि ने शरमाते हुए कहा, “जीजू, आज फिर?” मैंने हंसकर कहा, “जानू, अभी तो शुरुआत है!”

मैंने उसे मिशनरी पोज में चोदा। उसकी सिसकियां फिर शुरू हो गईं—अह्ह्ह… जीजू… उफ्फ… धीरे! मैंने धीरे-धीरे अपने लंड को उसकी चूत में डाला—फच… फच… की आवाज कमरे में गूंज रही थी। उसकी चूत गीली थी, मगर टाइटनेस वैसी ही थी। मैंने उसके बूब्स दबाए, उसके गुलाबी निप्पल चूसे। वो सिहर रही थी, “अह्ह्ह… जीजू… और जोर से!”

कुछ देर बाद मैंने उसे घोड़ी बनने को कहा। वो शरमाई, “जीजू, ये क्या?” मैंने कहा, “बस देखती जा, मजा आएगा!” उसने घुटनों और हाथों के बल पोज बनाया। उसकी चिकनी गांड मेरे सामने थी। मैंने पीछे से उसकी चूत में लंड डाला। वो चिल्ला उठी, “अह्ह्ह… जीजू… ये तो… उफ्फ!” मैंने उसकी कमर पकड़कर जोर-जोर से धक्के मारे—फच… फच… फच! उसकी सिसकियां तेज हो गईं—अह्ह्ह… उह्ह्ह… जीजू… मजा आ रहा है!

मैंने उसकी गांड पर हल्के-हल्के थप्पड़ मारे, जिससे वो और उत्तेजित हो गई। उसकी चूत से रस बह रहा था, मेरे लंड पर चिपचिपाहट महसूस हो रही थी। मैंने पोज बदला और उसे अपनी गोद में बिठाया। वो मेरे ऊपर बैठ गई, मेरा लंड उसकी चूत में पूरा घुस गया। वो उछल रही थी—अह्ह्ह… जीजू… उफ्फ… और! मैंने उसके बूब्स दबाए, उसके होंठ चूसे।

उसकी सांसें तेज थीं, “जीजू… बस… अह्ह्ह… मर जाऊंगी!” मैंने कहा, “जानू, अभी तो पूरा दिन बाकी है!” वो हंस दी, मगर उसकी सिसकियां रुक नहीं रही थीं—अह्ह्ह… उह्ह्ह…। मैंने उसे बेड पर लिटाया और उसकी टांगें अपने कंधों पर रखीं। इस पोज में मेरा लंड उसकी चूत की गहराई तक जा रहा था। वो चिल्ला रही थी, “अह्ह्ह… जीजू… और जोर से… उफ्फ!”

पंद्रह मिनट की ताबड़तोड़ चुदाई के बाद उसकी चूत फिर से झड़ गई। मेरे लंड पर उसका गर्म रस महसूस हुआ। दो मिनट बाद मेरा लंड भी झड़ गया। कंडोम में मेरा वीर्य भर गया। सृष्टि थककर बेड पर लेट गई, उसकी सांसें तेज चल रही थीं। उसने मुझे गले लगाया और कहा, “जीजू, ये तो… उफ्फ… कमाल था!”

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मैंने उसे बांहों में लिया और कहा, “जानू, अभी और मजा बाकी है।” मैंने उसे अनवांटेड टैबलेट दी, ताकि कोई रिस्क न रहे। दिन भर हमने अलग-अलग पोज में चुदाई की—कभी स्टैंडिंग, कभी बेड के किनारे, कभी दीवार के सहारे। सृष्टि हर बार शरमाती, मगर उसकी वासना जाग चुकी थी। वो हर पोज में मजे ले रही थी, “अह्ह्ह… जीजू… आप तो… उफ्फ… कमाल हो!”

शाम को वो थक गई थी। मैंने उसे बांहों में लिया और कहा, “सृष्टि, कैसा लगा?” वो शरमाकर बोली, “जीजू, बस… अब और नहीं!” मगर उसकी आंखों में चमक बता रही थी कि वो और चाहती थी।

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