मालिक और बाई के चुदाई

मैं सरला, 24 साल की, दिल्ली की कामवाली बाई। मेरा रंग सांवला, 5 फुट 2 इंच की हाइट, और जिस्म ऐसा कि मर्दों की नजर ठहर जाए—40 इंच की चूचियाँ, 36 की कमर, और गोल, भरी हुई गाँड। मेरी काली आँखें, लंबे काले बाल, और चेहरा ऐसा कि लोग मुड़कर देखें। मैं दिल्ली के पॉश इलाकों में घर-घर झाड़ू-पोछा, बर्तन, और खाना बनाती हूँ। काम के बीच जब वक्त नहीं कटता, मैं अपने पुराने नोकिया मोबाइल पर चुदाई की कहानियाँ पढ़ती हूँ, जिससे मेरी चूत की गर्मी थोड़ी शांत हो जाए। ये कहानी मेरे जिस्म की भूख और मेरी जिंदगी की सच्चाई की है, जो मैंने अपने मोबाइल पर टाइप की है।

मेरा पति उपेंद्र, 30 साल का, 5 फुट 8 इंच, दुबला-पतला। उसकी छोटी-छोटी आँखें, साधारण चेहरा, लेकिन बातें ऐसी कि औरतें फिसल जाएँ। वो भी नौकर है, बड़े-बड़े बंगलों में काम करता है। उसका 7 इंच का लंड, मोटा और सख्त, पहले मेरी चूत को रात-रात भर ठोकता था। मेरी माँ राधा, 50 साल की, झुर्रियों भरा चेहरा, लेकिन बदन अभी भी ताकतवर। वो भी कामवाली थी, और हमारा खानदान पीढ़ियों से यही काम करता आया है। मेरा मालिक मिस्टर श्रीवास्तव, 50 साल के रिटायर्ड फौजी, 6 फुट लंबे, गोरा रंग, चौड़ी छाती, और मूंछें जो उनकी मर्दानगी को और बढ़ाती हैं। उनकी बीवी 10 साल पहले गुजर चुकी थी, वो अकेले रहते हैं। मिसेज सक्सेना, उपेंद्र की मालकिन, 35 साल की, गोरी, भरे जिस्म वाली, जो अपनी शादीशुदा जिंदगी से बोर होकर नए लंड ढूँढती है।

दस साल पहले मेरी शादी उपेंद्र से हुई थी। वो मुझे बहुत प्यार करता था। हर रात मेरी चूत को अपने लंड से चोदता, कभी कुतिया बनाकर, कभी गोद में बिठाकर। “सरला, तेरी चूत तो रसीली है, इसे रोज ठोकूँगा,” वो हाँफते हुए कहता। हर संडे वो मुझे जुहू चौपाटी ले जाता। हम गोलगप्पे, भेलपुरी खाते, समंदर किनारे टहलते, हँसते-बोलते। कभी-कभी वो मुझे सस्ती पिक्चर दिखाने ले जाता, और हर 30 तारीख को अपनी 12 हजार की तनख्वाह मेरे हाथ में थमा देता। मैं सोचती, जिंदगी ऐसी ही मस्त चलेगी—प्यार, चुदाई, और थोड़ी मस्ती।

लेकिन कुछ महीनों बाद उपेंद्र बदल गया। उसने तनख्वाह देना बंद कर दिया। मैंने गुस्से में पूछा, “उपेंद्र!! तूने इस महीने पगार मुझे क्यूँ नही दी??” वो बोला, “सब खर्च हो गई, सरला।” मैंने आँखें तरेरते हुए कहा, “क्या….12 हजार रुपए तूने किस काम में खर्च कर दिए???” वो टालमटोल करने लगा—बीमा की किश्त, राशन, शराब, बच्चों की फीस। पाँच महीने तक उसने मुझे एक रुपया नहीं दिया। मैं परेशान थी, घर का खर्चा, बच्चों का स्कूल, किराया—सब मेरी कमाई से चल रहा था।

एक दिन पड़ोस की शांति ने बताया कि उसने उपेंद्र को मिसेज शर्मा के साथ घूमते देखा। मुझे शक हुआ। मैंने उसकी जासूसी शुरू की। पता चला वो मिस्टर सक्सेना के बंगले पर काम करता था, और उनकी बीवी मिसेज सक्सेना के साथ उसका चक्कर था। वो उसकी चूत मारता, और अपनी तनख्वाह उस पर उड़ाता—साड़ियाँ, गहने, गिफ्ट्स। मैंने ठान लिया कि उसे रंगे हाथों पकड़ूँगी।

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एक दोपहर, ठीक 2 बजे, मैं सक्सेना जी के बंगले पहुँची। गेट खुला था, मैं चुपके से अंदर घुसी। एक कमरे से गर्म-गर्म सिसकारियाँ आ रही थीं—“आह… उपेंद्र… और जोर से चोद… मेरी चूत फाड़ दे…”। दरवाजा खुला था। मैंने झांका। उपेंद्र, बिलकुल नंगा, मिसेज सक्सेना को गोद में बिठाकर ठोक रहा था। उसका मोटा लंड उनकी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था, और वो “हाँ… मेरी चूत का भोसड़ा बना दे… और तेज…” चिल्ला रही थी। दोनों पसीने से तर, एक-दूसरे में डूबे थे।

“उपेंद्र????” मैंने काली माई की तरह चीखा। वो चौंककर अलग हुआ, उसका लंड अभी भी टनटनाया हुआ था। मिसेज सक्सेना ने साड़ी लपेटी और भागने लगी। मैंने उपेंद्र को वहीं थप्पड़ मारा। घर पहुँचकर हमारा बड़ा झगड़ा हुआ। “उपेंद्र! अगर तुमने मिसेज सक्सेना से नाजायज चुदाई का रिश्ता रखा तो मैं तुमको छोड़ दूँगी और बच्चों को लेकर गाँव चली जाऊँगी!!” मैंने आखिरी चेतावनी दी। वो माफी माँगने लगा, वादा किया कि अब मिसेज सक्सेना से कोई रिश्ता नहीं रखेगा। मैंने सोचा, शायद सुधर जाए।

लेकिन वो नहीं सुधरा। चुपके-चुपके मिसेज सक्सेना की चुदाई करता रहा। अपनी तनख्वाह उनके लिए गिफ्ट्स पर उड़ाता। एक दिन उसकी शर्ट पर लिपस्टिक के कई निशान देखे। मैंने पूछा, तो वही बहाने। मेरी धमकियों का असर नहीं हुआ। आखिर उसने सारी हदें पार कर दीं। “सरला !! मुझे छोड़ना चाहती है तो छोड़ दे, पर मैं मिसेज सक्सेना से इश्क लड़ाता रहूँगा और उसकी मस्त लाल चूत में लंड डालता रहूँगा!” वो गुर्राया। ये सुनकर मैं फूट-फूटकर रोई।

मैंने अपनी माँ को सब बताया। वो बोली, “बेटी, मायके आएगी तो लोग तरह-तरह की बातें करेंगे। उपेंद्र चाहे जैसा हो, तुझे रोटी तो देता है ना।” मैंने सोचा, मायके जाऊँगी तो माँ-बापू पर बोझ बनूँगी। कई दिन रोने के बाद, मैंने उसी कमीने के साथ रहने का फैसला किया, जो अपनी बीवी को छोड़ पराई चूत में मस्त था। लेकिन मेरी चूत की भूख बढ़ती गई। उपेंद्र अब मेरे साथ सोता भी नहीं था। वो मिसेज सक्सेना के साथ रातें बिताता, और मैं अकेली, अपने बिस्तर पर, उसके लंड के लिए तरसती। जब मिस्टर सक्सेना विदेश जाते, उपेंद्र उनकी बीवी को रात-रात भर चोदता। मैं यहाँ उंगलियाँ डालकर अपनी चूत की आग बुझाने की कोशिश करती।

मैं मिस्टर श्रीवास्तव के बंगले पर काम करती थी। वो अकेले रहते थे, उनकी बीवी की मौत को 10 साल हो चुके थे। वो मुझे इज्जत से देखते थे। मैं जानबूझकर गहरा ब्लाउस पहनती, मेरी चूचियाँ उनके सामने हिलतीं, लेकिन उन्होंने कभी गलत इशारा नहीं किया। दीपावली पर उन्होंने मुझे नई बनारसी साड़ी दी। धीरे-धीरे मुझे उनसे प्यार होने लगा। उनकी मर्दानगी, शांत स्वभाव, और इज्जत मुझे खींच रहे थे।

एक दिन मैं उनके बाथरूम में कपड़े धो रही थी। फर्श गीला था, मैं फिसल गई। कमर में चोट लगी, मैं “आह” करके चिल्लाई। श्रीवास्तव जी दौड़कर आए, मुझे अपनी मजबूत बाहों में उठाया। “ओ सरला !! तुम्हे चोट तो नही आई???” उनकी आवाज में फिक्र थी। मैंने शरमाते हुए कहा, “कमर में चोट लगी है…..थोड़ा आयोडेक्स आप लगा दीजिए!!” वो चुपचाप अलमारी से आयोडेक्स लाए, मेरी कमर पर मलने लगे। उनकी उंगलियाँ मेरी कमर पर फिसल रही थीं, मेरा जिस्म सिहर रहा था। मैंने मौका देखा, उनके करीब हो गई। मेरी चूचियाँ उनके सीने से टकराईं। “मालिक, मैं आपसे प्यार करने लगी हूँ…..मैं आपके बिना नही रह सकती!!” मैंने कहा।

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वो एक पल रुके। “ये क्या सरला ????” वो चौंककर बोले। मैंने उनकी कमीज पकड़ी, चिपक गई। “मालिक, मेरा मर्द पराई चूत मारता है। क्या मैं अपनी चूत की भूख नहीं बुझा सकती?” मैंने कहा। वो और नहीं रुके। मुझे अपनी बाहों में कस लिया, मेरे होंठ चूसने लगे। उनकी जीभ मेरे मुँह में थी, मैं उनकी गर्मी महसूस कर रही थी।

वो मुझे बेडरूम में ले गए। “जान…..पहले हम दोनों के लिए ड्रिंक बनाओ!…. तब मजा आए,” श्रीवास्तव जी बोले। मैं बार से व्हिस्की, सोडा, बर्फ लाई। हमने तीन-तीन पेग मारे। शराब ने मेरी शरम को धो डाला। श्रीवास्तव जी ने मेरी साड़ी खींची, ब्लाउस उतारा। मेरी 40 इंच की चूचियाँ उनके सामने थीं। मैंने ब्रा, पैंटी उतारी। मेरा नंगा जिस्म देखकर वो बोले, “सरला, तू तो मस्त माल है। तेरी चूत और गाँड मारने का मजा लूँगा।”

“मालिक!!….क्या आप मुझे चोदोगे???” मैंने शरमाते हुए पूछा। “हाँ सरला !!…..एक अरसा हो गया। मैंने भी किसी हसीन औरत की चूत नही मारी। पर जब आज तुमने खुद तुम्हे चोदने का ऑफर दे दिया है तो मैं मस्ती से तुम्हारी रसीली चूत में लंड दूंगा और हम दोनों ऐश करेंगे,” वो जोश में बोले।

मैंने उनकी पैंट उतारी। उनका 10 इंच का लंड, मोटा, गुलाबी, सख्त। मैंने उसे हाथ में लिया, सहलाया, चूसने लगी। “आह, सरला, तू तो रंडी से बड़ी चुदक्कड़ है। मेरा लंड चूस, पूरा गले में ले,” वो सिसकारे। मैंने उनका लंड गले तक लिया, गोलियाँ चूसीं। “मालिक सच सच बताइये …..की मैं आपके यहाँ 7 साल से काम कर रही थी। रोज सुबह शाम मैं झुक झुककर पोछा मारती थी और अपने मस्त मस्त दूध मैं आपको दिखाकर रोज ललचाती थी….क्या आपका कभी मुझे चोदने का दिल नही किया???” मैंने हँसकर पूछा।

“अरी सरला ! बस पूछ मत। तेरे 40” के दूध देखकर मैं बहुत बार मुठ मारी है। तुझे चोदने का मेरा दिल बहुत करता था, पर तू कोई कुवारी तो नही थी, शादीशुदा थी, इसलिए मैंने तुझे कभी ना हाथ लगाया!!” वो बोले।

उन्होंने मुझे लिटाया, मेरी चूत पर व्हिस्की डाली, चाटने लगे। मेरी चूत गीली थी, रस टपक रहा था। मैंने शरमाते हुए थोड़ा मूत दिया, वो चाट गए। “मालिक, ये क्या?” मैंने हँसकर कहा। “तेरी चूत का हर रस मेरे लिए मलाई है, सरला,” वो बोले। दो घंटे तक वो मेरी चूचियाँ, चूत पर व्हिस्की डालकर चाटते रहे। “आह… मालिक… मेरी चूत चूसो… इसका भोसड़ा बना दो… और जोर से…” मैं चिल्लाई।

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उन्होंने मेरे घुटने खोले, अपना लंड मेरी चूत में डाला। “सरला बाई!!….तुमको चोद तो रहा हूँ….पर ऐसे चूत देना की लगे की मैं अपनी औरत को चोद रहा है!!” वो बोले। मैंने उन्हें कसकर पकड़ा, वो पटर-पटर ठोकने लगे। पट-पट की आवाजें कमरे में गूँज रही थीं। “आआआआ …..मालिक…..औ…र तेज चोदो….आह आह …..फाड़ दे मेरा भोसड़ा….आज!!” मैं रंडी की तरह चिल्लाई। “हाँ, सरला, तेरी चूत तो रसीली है, इसे फाड़ दूँगा,” वो गुर्राए। वो मेरे कंधे पकड़कर मशीन की तरह चोदने लगे। “तेरी चूत का भोसड़ा बनाऊँगा, रंडी,” वो बोले।

30 मिनट तक वो मुझे ठोकते रहे। “आह… मालिक… मेरी चूत का सटर खोल दो… और जोर से… आह…” मैं सिसकारी। वो मेरे होंठ चूस रहे थे, चूचियाँ पी रहे थे। आखिर वो मेरी चूत में झड़ गए। “तेरी चूत में माल डालकर मजा आ गया, सरला,” वो बोले। मैं उनके ऊपर चिपक गई। “सरला बाई!!!……कैसी ठुकाई की मैंने…..क्या तुम्हारे मर्द से जादा अच्छी ठुकाई की???” वो हाँफते हुए बोले। “हाँ …मालिक! आपके लौड़े में तो अभी बहुत दम है। एक साथ आप 4 4 औरतों को चुदाई के खेल में हरा दोगे!!” मैंने हँसकर कहा।

फिर मैंने उनका लंड फिर चूसा। “मालिक, आपका लंड तो मस्त है, इसे चूसकर मजा आ रहा है,” मैंने कहा। वो मेरे सिर को पकड़कर लंड मुँह में धकेल रहे थे। “चूस, सरला, मेरे लंड को रंडी की तरह चूस,” वो बोले। फिर उन्होंने मुझे कुतिया बनाया। मेरी गाँड पर तेल लगाया, लंड मेरी गाँड में डाला। शुरू में दर्द हुआ, लेकिन 40 मिनट बाद मेरी गाँड खुल गई। “आह… मालिक… मेरी गाँड मारो… लंड पूरा डालो… आह…” मैं उछल-उछलकर सिसकारी। “तेरी गाँड तो टाइट है, सरला, इसे फाड़ दूँगा,” वो बोले। डेढ़ घंटे तक उन्होंने मेरी गाँड चोदी, फिर माल मेरी गाँड में छोड़ दिया। “तेरी गाँड मारकर मजा आ गया, रंडी,” वो हाँफते हुए बोले।

अब उपेंद्र मिसेज सक्सेना को चोदता है, और मैं हर रात श्रीवास्तव जी से चुदवाती हूँ। मेरी चूत और गाँड की भूख उनके लंड से पूरी होती है।

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