दीदी की सास को चोदा

हाय दोस्तों, मेरा नाम दिनेश है, जैसा कि आप सब जानते हैं। मैं 28 साल का हूँ, गठीला बदन, 6 फीट का कद, और गाँव का रहने वाला हूँ। मेरी दीदी, रीना, जो 32 साल की हैं, उनकी हाल ही में शादी हुई है। उनकी सास, तारा, 48 साल की हैं, लेकिन उनकी उम्र का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। उनका रंग गोरा, भरा हुआ बदन, गहरी नाभि, और बड़ी-बड़ी चूचियाँ जो साड़ी के ब्लाउज से आधा बाहर झाँकती थीं। उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो शायद लंबे समय से प्यासी थी। उनकी कमर मोटी थी, गोल चूतड़, और लंबी झांटों वाली बुर जो उनकी उम्र के हिसाब से और भी आकर्षक थी। मैं अपनी एक और कहानी लेकर आया हूँ, जो मेरी दीदी की सास, तारा, की चुदाई की है। ये कहानी बिल्कुल सच्ची है, और मैं इसे इतना विस्तार से लिख रहा हूँ कि आप हर पल को महसूस करें।

हाल ही में मेरी दीदी की शादी हुई थी। शादी के बाद वो अपने पति के साथ हनीमून के लिए गोवा चली गई थीं। दीदी ने मुझे फोन किया और कहा, “दिनेश, तू हमारे घर आ जा। तारा आंटी अकेली हैं, और घर बड़ा है। कुछ दिन वहाँ रहकर उनकी देखभाल कर दे।” मैंने सोचा, चलो, गाँव से शहर की सैर भी हो जाएगी। मैंने अपनी बाइक उठाई और 300 किलोमीटर का सफर तय करके दीदी के ससुराल पहुँच गया। रास्ते में धूल, पसीना, और थकान ने मुझे तोड़ दिया था। जब मैं तारा आंटी के घर पहुँचा, तो उन्होंने दरवाजा खोला। लाल साड़ी में वो कमाल की लग रही थीं। उनकी चूचियाँ ब्लाउज में कसी हुई थीं, और उनकी गहरी नाभि साड़ी के नीचे से साफ दिख रही थी। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “आ जा बेटा, कितनी दूर से आया है।”

घर वाकई बड़ा था, दो मंजिल का, और चारों तरफ सन्नाटा। तारा आंटी ने मुझे खाना खिलाया, और हम इधर-उधर की बातें करने लगे। रात के 10 बज चुके थे, और थकान की वजह से मेरी आँखें भारी हो रही थीं। तारा आंटी ने कहा, “बेटा, तू थक गया होगा। चल, मैं तेरे बदन की मालिश कर देती हूँ।” मैंने मना किया, “नहीं आंटी, रहने दीजिए। मैं ठीक हूँ।” लेकिन वो नहीं मानीं। वो उठीं और एक बोतल सरसों का तेल ले आईं। मैं बिस्तर पर लेट गया, सिर्फ कच्छी पहने हुए। तारा आंटी मेरे पास बैठ गईं और मेरे सिर की मालिश शुरू की। उनके नरम हाथ मेरे सिर पर फिसल रहे थे, और मैं उनकी चूचियों को ताक रहा था, जो ब्लाउज से आधा बाहर झाँक रही थीं। उनकी चूचियाँ गोल, भारी, और इतनी रसीली थीं कि मेरा लंड कच्छी में तनने लगा।

फिर वो मेरे हाथों की मालिश करने लगीं। उनके हाथ मेरे कंधों से होते हुए मेरी छाती तक गए। मैंने देखा कि उनकी नजर मेरी कच्छी पर थी, जहाँ मेरा लंड अब साफ उभर रहा था। वो जानबूझकर अपने हाथों को मेरी जांघों के पास ले जा रही थीं। अचानक, उनके हाथ मेरे लंड को छू गए। मैं चौंक गया, लेकिन कुछ बोला नहीं। तारा आंटी ने मेरी कच्छी को नीचे सरकाया और मेरा 7 इंच का लंड बाहर निकाल लिया। वो बोलीं, “बेटा, इसकी भी मालिश कर दूँ?” मैं चुप रहा, लेकिन मेरा लंड उनके नरम हाथों में और सख्त हो गया। उन्होंने तेल लिया और मेरे लंड को धीरे-धीरे सहलाने लगीं। उनकी उंगलियाँ मेरे लंड के सुपाड़े पर फिसल रही थीं, और वो उसे ऊपर-नीचे कर रही थीं। मैं सिसकारियाँ ले रहा था, “आह… आंटी…”

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तारा आंटी मेरे ऊपर चढ़ गईं। उनकी साड़ी ऊपर उठी हुई थी, और उनकी बुर की झांटें मेरे लंड को छू रही थीं। उनकी बुर गीली थी, और मैं उनकी गहरी नाभि को देख रहा था, जो मुझे पागल कर रही थी। वो मेरे सीने की मालिश करने लगीं, और उनका ब्लाउज और खुल गया। उनकी चूचियाँ अब पूरी तरह बाहर थीं। मैंने उनके निप्पल्स को छुआ, जो काले और सख्त थे। अचानक, तारा आंटी थोड़ा पीछे खिसकीं, और मेरा लंड उनकी बुर के मुँह पर टिक गया। एक हल्का सा धक्का, और मेरा लंड उनकी बुर में घुस गया। “आह्ह… दिनेश… कितना मोटा है तेरा…” तारा आंटी सिसकारी।

उनकी बुर गर्म और टाइट थी। मैंने उनके होठों को चूमना शुरू किया, और वो मेरे ऊपर झुककर मेरे होठों को चूसने लगीं। उनकी जीभ मेरे मुँह में थी, और मैं उनके मुँह का स्वाद ले रहा था। मैंने उनके ब्लाउज को पूरी तरह खोल दिया और उनकी चूचियों को जोर-जोर से दबाने लगा। “आह… दिनेश… और जोर से दबा… मेरी चूचियाँ प्यासी हैं…” वो बोल रही थीं। मैंने उनके निप्पल्स को मुँह में लिया और चूसने लगा। उनकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, “आह… ओह… हाय… चूस ले मेरे राजा…”

मैंने उनकी साड़ी और पेटीकोट को पूरी तरह उतार दिया। उनकी बुर पर लंबी-लंबी झांटें थीं, जो गीली हो चुकी थीं। मैंने उनकी बुर को सहलाया, और एक उंगली अंदर डाल दी। उनकी बुर इतनी टाइट थी कि मेरी उंगली को अंदर जाने में दिक्कत हो रही थी। “आह… दिनेश… तेरी उंगली… और अंदर डाल…” वो चिल्लाई। मैंने दो उंगलियाँ डालीं और उनकी बुर को जोर-जोर से रगड़ने लगा। वो कराह रही थीं, “आह… ऊह… ओह… और तेज… मेरी बुर फाड़ दे…”

मैंने अपना लंड उनकी बुर के मुँह पर रखा और रगड़ने लगा। उनकी बुर का रस मेरे लंड पर लग रहा था, और मैं धीरे-धीरे उसे अंदर डालने लगा। तारा आंटी चीखी, “आह… दिनेश… धीरे… मेरी बुर फट जाएगी…” लेकिन मैंने एक जोरदार धक्का मारा, और मेरा पूरा लंड उनकी बुर में समा गया। “फच… फच…” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। मैं उनके होठों को चूस रहा था, और मेरे धक्के तेज हो गए। तारा आंटी अपनी गांड उठा-उठाकर मेरे लंड को और अंदर ले रही थीं। “आह… दिनेश… चोद मेरी बुर… फाड़ दे इसे… आह… ऊह…”

लगभग 20 मिनट की चुदाई के बाद तारा आंटी दो बार झड़ चुकी थीं। उनकी बुर का रस मेरे लंड को भिगो रहा था। वो बोलीं, “दिनेश… अब मेरी गांड मार…” मैंने उनका इशारा समझा। मैंने अपना लंड उनकी बुर से निकाला और उनकी गांड के छेद पर रखा। उनकी गांड का छेद पहले से ही ढीला था, शायद उनके बेटे ने उसे पहले कई बार मारा था। मैंने तेल लिया और उनकी गांड में लगाया। फिर धीरे-धीरे अपना लंड उनकी गांड में डाला। “आह… दिनेश… कितना बड़ा है तेरा लंड… मेरी गांड फाड़ देगा…” वो सिसकारी।

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मैंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए। उनकी गांड गर्म और टाइट थी। “सट… सट…” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। तारा आंटी अपनी गांड को हिला-हिलाकर मेरे लंड को और अंदर ले रही थीं। “आह… दिनेश… और जोर से… मेरी गांड मार… फाड़ दे…” वो चिल्ला रही थीं। मैंने उनकी चूचियों को पकड़ लिया और जोर-जोर से दबाने लगा। मेरे धक्के और तेज हो गए। लगभग 30 मिनट की गांड मारने के बाद मैंने अपना सारा रस उनकी गांड में गिरा दिया। वो कराह रही थीं, “आह… दिनेश… कितना गर्म है तेरा माल…”

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हम दोनों नंगे ही एक-दूसरे से चिपककर सो गए। रात ज्यादा हो चुकी थी, और थकान ने हमें जकड़ लिया। सुबह देर से नींद खुली। दिन के उजाले में तारा आंटी की बुर की झांटें चमक रही थीं। मैंने अपना शेविंग किट निकाला और उनकी बुर की झांटें साफ करने लगा। मैंने क्रीम लगाई और रेजर से उनकी बुर और गांड के बाल साफ कर दिए। उनकी बुर अब चिकनी और चमकदार थी। वो चुपचाप देख रही थीं, और उनकी आँखों में फिर से वही प्यास थी।

हम दोनों बाथरूम में गए। वहाँ मैंने उनकी बुर और गांड में खूब साबुन लगाया। उनकी बुर को मैंने अपने हाथों से फैलाया और जीभ से चाटने लगा। “आह… दिनेश… तेरी जीभ… मेरी बुर में… आह…” वो मेरे सिर को पकड़कर अपनी बुर पर रगड़ रही थीं। फिर मैंने उनकी गांड के छेद को चाटा। मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया। मैंने खड़े-खड़े ही उनका एक पैर उठाया और उनकी बुर में अपना लंड पेल दिया। “फच… फच…” की आवाज बाथरूम में गूँज रही थी। तारा आंटी मेरे कंधों को पकड़कर चिल्ला रही थीं, “आह… दिनेश… और जोर से… मेरी बुर फाड़ दे…”

कुछ देर बुर चोदने के बाद मैंने अपना लंड उनकी गांड में डाला। वो अपनी गांड से मेरे लंड को दबा रही थीं। “आह… ऊह… दिनेश… मेरी गांड मार… और जोर से…” मैंने उनकी गांड को कस-कसकर मारा। जब मेरा रस निकलने वाला था, मैंने लंड उनकी गांड से निकाला और उनके मुँह में डाल दिया। मेरा सारा रस उनके मुँह में गिर गया, और वो उसे चटकारे लेकर पी गईं। फिर मैंने उनकी बुर में उंगली डाली और तब तक रगड़ा जब तक वो झड़ नहीं गईं।

इसके बाद मैं गाँव घूमने निकल गया। पूरा दिन आसपास के गाँवों में घूमता रहा। शाम को जब मैं घर लौटा, तो तारा आंटी सज-धजकर तैयार थीं। लाल साड़ी, चूड़ियाँ, लिपस्टिक, और गले में मंगलसूत्र। वो विधवा थीं, लेकिन उस पल वो दुल्हन जैसी लग रही थीं। मैंने दरवाजा बंद किया और उनके पास गया। वो मेरे पैर छूने लगीं, लेकिन मैंने उन्हें उठाया और बिस्तर पर बिठाया। मैं दीदी के कमरे में गया और वहाँ से सिंदूर लाया। मैंने उनकी माँग में सिंदूर भरा। वो मेरे गले लग गईं और बोलीं, “दिनेश… तूने मुझे फिर से जवान कर दिया…”

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हम 69 की पोजीशन में लेट गए। मैं उनकी बुर को चूस रहा था, और वो मेरा लंड चूस रही थीं। उनकी बुर में चंदन की साबुन की खुशबू थी। मैंने अपनी जीभ उनकी बुर में डाल दी और उनके रस को चाटने लगा। वो मेरे लंड को जोर-जोर से चूस रही थीं। फिर मैंने उनकी गांड के छेद को चाटा। उनकी गांड का छेद उनके बेटे की चुदाई की वजह से ढीला था, और मेरी जीभ आसानी से अंदर जा रही थी। “आह… दिनेश… मेरी गांड चाट… और जोर से…” वो सिसकार रही थीं।

मैंने कहा, “तारा darling, लोग बुर चोदकर सुहागरात मनाते हैं, मैं तेरी गांड मारकर सुहागरात मनाऊँगा।” मैंने उन्हें डॉगी स्टाइल में झुकाया और उनकी साड़ी-पेटीकोट ऊपर उठा दिया। मेरा लंड उनकी गांड के छेद पर रगड़ रहा था। मैंने धीरे-धीरे लंड उनकी गांड में डाला। “आह… दिनेश… मेरी गांड फाड़ दे… और जोर से…” वो चिल्ला रही थीं। मैंने उनकी चूचियों को पकड़ लिया और जोर-जोर से उनकी गांड मारी। “सट… सट…” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। लगभग एक घंटे की गांड मारने के बाद मैंने अपना सारा रस उनकी गांड में गिरा दिया।

फिर मैंने उन्हें बिस्तर पर लिटाया और उनके होठ, गाल, और गले को चूमने लगा। वो मेरे लंड को सहला रही थीं। मैं उनकी चूचियों को चूसने लगा, फिर उनकी नाभि को जीभ से चाटने लगा। उनकी बुर फिर से गीली हो गई थी। मैंने उनकी बुर को चूमा, चाटा, और फिर अपनी जीभ अंदर डाल दी। “आह… ऊह… दिनेश… मेरी बुर चाट… और जोर से…” वो मेरे सिर को अपनी बुर पर दबा रही थीं। मैंने अपना लंड उनकी बुर में डाला और जोर-जोर से चोदने लगा। “फच… फच…” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। वो चिल्ला रही थीं, “आह… दिनेश… मेरी बुर दर्द कर रही है… धीरे कर… आह… ऊह…”

लगभग एक घंटे की चुदाई के बाद मेरा रस निकलने वाला था। मैंने लंड उनकी बुर से निकाला और उनके मुँह में डाल दिया। मेरा सारा रस उनके मुँह में गिर गया, और वो उसे पी गईं। फिर हम नंगे ही एक-दूसरे से चिपककर सो गए। तारा आंटी मेरा लंड पकड़े हुए थीं, और मैं उनकी गांड को सहला रहा था। फिर हमें नींद आ गई।

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