पति के सामने दर्जी ने चोदा-5

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे मैं, शालू, ने उदय सिंह को रात अपने साथ बिताने का न्योता दिया, ताकि विनोद को एक और लाइव चुदाई का तमाशा दिखा सकूँ। लेकिन उस रात मैं और विनोद दर्जी की दुकान गए, जहाँ दोनों ने मुझे तीन-तीन बार चोदा। अब कहानी आगे बढ़ती है।

कहानी का पिछला भाग: पति के सामने दर्जी ने चोदा-4

मैं शालू। पहले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे मेरे पति विनोद के सामने एक अनजान दर्जी ने मुझे चोदा। बाद में विनोद ने मुझे अपने बॉस से चुदवाने को कहा। सोसाइटी के गार्ड उदय ने मुझे कार में नंगा देखा, तो उसने भी मुझे चोदने की बात की। इधर, मेरी नौकरानी पारो के पति बलदेव ने बताया कि पारो मेरे पति से शादी से पहले से चुदवा रही है। पहली चुदाई के तीसरे दिन, जब मैं ट्रायल के लिए दर्जी की दुकान गई, तो मैंने विनोद से शुरू करके दर्जी से भी तीन-तीन बार चुदवाया। वापसी में गार्ड उदय के साथ थोड़ी मस्ती की और उसे अगली रात घर पर अपने साथ बिताने बुलाया।

विनोद और दर्जी, दोनों ने मुझे लगातार तीन-तीन बार चोदा। हर बार उन्होंने मेरी चूत के अंदर ही अपना माल छोड़ा। मैं इतनी थक गई थी कि मेरा बदन टूट रहा था, फिर भी नींद नहीं आई। मेरी चूत अभी भी गीली थी, और उसमें हल्का सा दर्द था। पिछली रात की चुदाई की यादें मेरे दिमाग में तैर रही थीं। पहली चुदाई से पहले विनोद ने मेरी चूत चाटी थी, और मैंने उसका लौड़ा चूसा था। लेकिन उसके बाद किसी ने ओरल नहीं किया। सच कहूँ, भले ही विनोद के धक्कों में दर्जी जैसी ताकत नहीं थी, उस रात विनोद की चुदाई मुझे पहली बार सचमुच अच्छी लगी। उसने मेरी चूत को 25 मिनट तक रगड़ा, और हर धक्के में उसका लौड़ा मेरी चूत की गहराइयों को छू रहा था।

अब मुझे घर में और बाहर भी नंगा रहना अच्छा लगने लगा था। विनोद घर आकर सो गया। मैं नंगी ही सोफे पर बैठी कॉफी पी रही थी और म्यूजिक चैनल देख रही थी। कमरे में सिर्फ टीवी की नीली रोशनी थी, और मेरी गोरी चूचियाँ उसमें चमक रही थीं। दरवाजे पर खटखट हुई। मैंने नंगी ही दरवाजा खोला। पारो ने मुझे नंगा देखा, लेकिन बिना कुछ बोले किचन में चली गई।

मैंने पुकारा- पारो, बढ़िया कड़क चाय लेकर जल्दी मेरे पास आ।

थोड़ी देर बाद पारो दो कप चाय लेकर आई। उसने कप टेबल पर रखे और मेरे पैर पकड़कर जोर-जोर से रोने लगी। मैं घबरा गई। बहुत मनाने के बाद वो शांत हुई। मैंने बार-बार पूछा, तब उसने नजर झुकाकर जवाब दिया- दीदी, मैं जिंदगी भर आपकी मुफ्त नौकरी करूँगी, लेकिन मुझे अपने पति, विनोद मालिक, से अलग मत कीजिए। मैं अपनी जान से ज्यादा उनसे प्यार करती हूँ।

बलदेव मुझे पहले ही बता चुका था कि पारो शादी से पहले से विनोद से चुदवा रही है। मैंने पारो को उठाकर अपने बगल में बिठाया और उसके हाथ में चाय का कप थमाया। हम दोनों ने चाय का घूँट लिया। मैंने कहा- पारो बहन, तू ये बात मुझे आज बता रही है, लेकिन मुझे उस दिन से पता था, जिस दिन मैं इस घर में पहली बार आई थी। तू देख ही रही है कि मैं कितने खुले दिमाग की हूँ। औरत का जन्म ही हुआ है मर्दों को खुश करने के लिए। मुझे भी कोई मर्द पसंद आएगा, तो मैं अपने पति के सामने उससे चुदवा लूँगी। ना मैं तुझसे नाराज हूँ, ना विनोद से। तुम दोनों जब चाहो, मेरे सामने भी खुलकर प्यार कर सकते हो। लेकिन एक बात का ध्यान रखना।

पारो ने पूछा- कौन सी बात, दीदी?

मैंने कहा- यही कि वो कभी भी तुझे अपने सामने दूसरों से चुदवाने को कह सकता है। तुझे दूसरों से चुदते देखना चाहेगा।

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चाय पीते हुए हम दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। फिर पारो ने अपने बाएँ हाथ से मेरी झांटों को सहलाना शुरू किया। किसी औरत ने पहली बार मेरी चूत को छुआ था, और मुझे अच्छा लग रहा था। उसकी उंगलियाँ मेरी चूत की पंखुड़ियों पर फिसल रही थीं। पारो बोली- मुझे भी ऐसी झांटें बढ़ाकर रखना पसंद है, लेकिन विनोद को मेरी चिकनी चूत बहुत पसंद है। और दीदी, डरने की जरूरत मुझे नहीं, आपको है।

मैंने हैरानी से कहा- मैं उसकी पत्नी हूँ, मैं क्यों डरूँ?

पारो ने जवाब दिया- क्योंकि विनोद ने आप जैसी खूबसूरत औरत से सिर्फ इसलिए शादी की, ताकि वो आपको दूसरों से चुदवा सके। मैं विनोद की पहली औरत हूँ। हम दोनों कुँवारे थे, और ना जाने क्यों विनोद मुझे बहुत पसंद आया। मैं गरीब घर की लड़की हूँ। ना चाहते हुए भी मुझे कुछ और लोगों से चुदवाना पड़ता है। कुछ मर्दों का लौड़ा 9 इंच लंबा और मोटा होता है, लेकिन जितनी खुशी मुझे आपके पति से चुदवाकर मिलती है, वैसी खुशी किसी और ने नहीं दी। आपके ससुर ने भी कई बार मुझे अपना मूसल दिखाया, लेकिन मैंने उन्हें अपना बदन छूने तक नहीं दिया। बहुत बढ़िया लौड़ा है आपके ससुर का, और उनकी पर्सनैलिटी भी विनोद से बेहतर है। अगर विनोद से प्यार ना हुआ होता, तो मैं आपके ससुर की रखैल बन गई होती।

मैंने पूछा- इतने दिन तक मुझे नहीं बताया, फिर आज क्यों सब बता रही है?

पारो ने कहा- क्योंकि रात में बलदेव ने मुझे हाथ तक नहीं लगाया, लेकिन ये बोला कि उसने आपको बता दिया कि मैं आपके घरवाले की रखैल हूँ।

मैं कुछ देर चुप रही, फिर उसे गले लगाकर चूम लिया। मैंने कहा- नहीं, दीदी, तुम विनोद की रखैल नहीं, मेरी बड़ी सौतन हो। जो कसम ले लो, मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं। तू जब चाहे इस घर में रात गुजार सकती है। तुम्हारे रहते वो मुझे भी चोदेगा, तो ठीक, वरना मैं कोई दूसरा यार ढूँढ लूँगी। और कोई ना मिला, तो बलदेव को ही चूत में ले लूँगी।

पारो ने एक और बात बताई- मैं जब भी किसी और से चुदवाती हूँ, तो हर बार विनोद के लिए कोई नया माल इंतजाम करती हूँ।

मैं हैरान रह गई। पारो ने कहा- विनोद इस कॉलोनी की 7 औरतों को चोद रहे हैं। 3 कुंवारी कॉलेज की लड़कियों को भी चोदा है। सब विनोद से बहुत खुश हैं, तभी तो बार-बार उनसे चुदवाती हैं।

ये मेरे लिए विश्वास ना करने वाली बात थी। लेकिन पिछली रात विनोद ने जिस तरह मुझे चोदा, उससे कोई भी औरत खुश हो सकती थी। सच कहूँ, उस रात मुझे दर्जी से ज्यादा मजा विनोद की चुदाई में आया था। मैंने कहा- इसका मतलब तू विनोद के अलावा 10 और मर्दों से चुदवा चुकी है!

पारो ने सिर हिलाकर हामी भरी और बोली- तैयार रहिए, साहब दीवाली की रात आपके लिए कोई दूसरा मर्द लाएँगे और खुद मुझे रात भर चोदेंगे।

मैं स्तब्ध रह गई। पारो खाली कप लेकर किचन चली गई। उसकी बातों का मतलब साफ था—विनोद प्यार पारो से करता है, और मुझ जैसी खूबसूरत लड़की से शादी सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिए की है। मुझे कोई दिक्कत नहीं थी। पारो की बातों ने मुझे दूसरों से चुदवाने की खुली छूट दे दी थी। लेकिन मैंने एक और फैसला लिया—घर में मैं जिस किसी से भी चुदवाऊँगी, उससे विनोद और मेरे सामने पारो को भी चुदवाऊँगी।

मैंने पुकारा- पारो, तेरे यार की बात मैं तभी मानूँगी, जब तू भी मेरे साथ रहेगी। वरना मैं ना दूसरों से चुदवाऊँगी, ना तेरे घरवाले विनोद से। हाँ, तेरा बलदेव जब भी आएगा, तुम दोनों के सामने उससे चुदवाऊँगी।

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पारो किचन से चिल्लाई- तुम एक नंबर की घटिया औरत हो!

खैर, समय बीता। विनोद के पास वक्त नहीं था। वो समय पर ऑफिस चला गया। उस दिन धनतेरस था, और मैं चाँदी के बर्तन खरीदना चाहती थी। मैंने पारो से कहा- अपने पति को लेकर आ, हम बाजार जाएँगे।

पारो बोली- दीदी, आज धनतेरस है, हमें बर्तन खरीदने हैं।

मैंने हँसकर कहा- रंडी, मैं भी बाजार जाने की बात कर रही हूँ। बलदेव को चुदवाने के लिए नहीं बुला रही।

पारो भुनभुनाते हुए घर गई और एक घंटे बाद बलदेव को लेकर आई। कार विनोद ले गया था। हम तीनों एक रिक्शा में बैठे। मैं बीच में थी, और पारो और बलदेव मेरे अगल-बगल। रिक्शा की तंग सीट पर मेरी चूचियाँ बलदेव के बाजू से सट रही थीं। मैंने जान-बूझकर अपनी चूचियों को उसके बाजू पर रगड़ा। मेरी मेहनत रंग लाई। दुकान पहुँचने से दो मिनट पहले बलदेव ने मेरे आँचल के नीचे हाथ घुसाकर मेरी दोनों चूचियों को दो-दो बार जोर से दबाया। पारो के पति पर मेरा जादू चल गया था।

बर्तनों की दुकान पर बहुत भीड़ थी। बलदेव ने कहा- मालकिन, इतनी भीड़ में आपको और पारो को बहुत तकलीफ होगी। जो चाहिए, मुझे बता दीजिए, मैं खरीद लाऊँगा।

मैंने कहा- नहीं, बल्लू, आज धनतेरस है। खरीदूँगी, तो खुद ही।

मैंने तीन बार जोर से ताली बजाई। सबकी नजरें हमारी ओर घूमीं। मैंने दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया और बोली- मुझे पता है, आप सबको जल्दी है। लेकिन हम सिर्फ 10 मिनट लेंगे। एक मिनट भी ज्यादा नहीं। भैया, हमारे लिए चाँदी का मीडियम साइज का 2 सेट प्लेट, कटोरा, और चम्मच निकाल दीजिए।

देखते ही देखते लोगों ने रास्ता बना दिया। लोग फुसफुसा रहे थे- ये कौन है? पहली बार देख रहा हूँ। कितनी सुंदर है। किस किस्मतवाले की घरवाली है? दुकानदार ने दो सेट दिखाए। उसने जितना कहा, उतना पैसा देकर हम 7 मिनट में बाहर आ गए। मैंने घूमकर फिर से प्रणाम किया और बोली- आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। हमारी तरफ से आपको दीवाली की शुभकामनाएँ। मेरा नाम शालू वर्मा है, ये मेरी दीदी पार्वती है, और ये उनके पति बलदेव। मैं सी-टाइप क्वार्टर में रहती हूँ।

इतना बोलकर हम तीनों फिर एक रिक्शा में बैठे। वापसी में भी मैं दोनों के बीच बैठी। पैकेट मेरी गोद में था। रिक्शा भीड़भाड़ वाले इलाके से गुजर रहा था। आने-जाने वालों की नजर एक बार मेरी ओर जरूर उठती थी। मैंने दोनों हाथों से पैकेट पकड़ा था। बलदेव ने इसका पूरा फायदा उठाया। पिछले दिन उस बहनचोद ने कहा था कि वो मुझे कभी नहीं चोदेगा। 24 घंटे भी नहीं बीते, और मादरचोद मेरी चूचियाँ दबा चुका था। अब उसका एक हाथ पैकेट के नीचे, मेरे कपड़ों के ऊपर से मेरी चूत को मसल रहा था। मेरी जांघें अपने आप अलग हो गईं। बल्लू को चूत से खेलने के लिए अब ज्यादा जगह मिल गई।

मैं और पारो बातें कर रहे थे। मुझे पता ही नहीं चला कि उसने कब मेरी साड़ी और पेटीकोट उठाकर हाथ अंदर घुसा दिया। जब उसकी उंगलियाँ मेरी क्लिट और चूत की पंखुड़ियों को मसलने लगीं, तब जाकर मुझे अहसास हुआ कि ये हरामी मेरी नंगी चूत से खेल रहा है। मैंने सीट पर अपने चूतड़ और आगे खिसकाए। बल्लू समझ गया। अगले 13-14 मिनट तक उसने मेरी चूत में दो उंगलियाँ घुसाकर मुझे चोदा। जब रिक्शा सोसाइटी गेट के अंदर घुसा, तब उसने अपनी उंगलियाँ बाहर खींचीं और मुझे दिखाते हुए उन्हें चूसने लगा।

मैंने उसे घूरकर देखा, लेकिन मुस्कुराई नहीं। मैंने रिक्शा का भाड़ा दिया। हम तीनों घर के अंदर घुसे। मैंने एक पैकेट पारो को थमाया और कहा- पारो और बल्लू, एक बहन से दूसरी बहन को छोटा सा भेंट। तुम दोनों को दीवाली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। परसों, दीवाली की रात, तुम दोनों हमारे साथ ही रहोगे।

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दोनों को हैरान छोड़ मैं बेडरूम में चली गई। थोड़ी देर बाद फ्रेश होकर, कपड़े बदलकर वापस आई। पारो बोली- दीदी, हम इतना महँगा गिफ्ट नहीं ले सकते!

मैंने कहा- पगली, मुझे दीदी भी बोलती है और मेरा गिफ्ट भी वापस करती है! चुपचाप रख ले और सबके लिए एक बढ़िया चाय बना।

पारो किचन में चली गई। मैंने बल्लू की ओर घूरकर देखा और बोली- हरामी, खुद तो मरेगा ही, मेरी भी जान लेगा। किसी ने तुझे मेरी चूत में उंगली करते देख लिया होता, तो सोच कितनी बदनामी होती।

बलदेव ने जवाब दिया- मालकिन, इतनी भीड़ थी। लोगों को आपका खूबसूरत चेहरा देखने से फुर्सत हो, तब ना कोई देखता कि मेरा हाथ साड़ी के नीचे है। कल दिन में 11 बजे आऊँगा। उंगली नहीं, अपना लौड़ा आपकी चूत में पेलूँगा। नखरे मत कीजिए। विनोद साहब से ज्यादा मजा दूँगा।

मैंने कहा- इतने दिन इंतजार किया, तो एक दिन और वेट कर। दीवाली की रात इसलिए तुम दोनों को यहाँ रहने बुलाया है। मालिक तो तेरी घरवाली की गांड मारते ही हैं। उनके सामने तू अपनी मालकिन को चोदना। मुझे बढ़िया लगा, तो उसके बाद जब आएगा, तब चुदवाऊँगी। रास्ते में तूने उंगली की, मुझे बहुत अच्छा लगा।

मेरी बात सुनकर बलदेव का चेहरा खिल गया। चाय पीने के बाद दोनों अपने घर चले गए। विनोद भी थोड़ी देर बाद आया। मैं उसकी गोद में बैठी, उसे चूमा, और उसकी ओर घूमकर अपनी चूचियों को उसके सीने पर रगड़ने लगी। मैंने कहा- दर्जी को हमने कल का समय दिया है, लेकिन चलो, आज ही चलते हैं। देखें, हरामी मेरे जैसी किसी और माल को भी बुलाता है क्या?

विनोद ने कहा- लेकिन तुमने तो गार्ड को घर बुलाया है! मैं तुम्हारी चूत में दूसरा लौड़ा अंदर-बाहर होता देखना चाहता हूँ।

मैंने जवाब दिया- उसे दूध पिलाकर खुश कर दूँगी और कोई बहाना बना दूँगी। दर्जी से चुदवाने का मन कर रहा है।

दरअसल, बलदेव की हरकतों ने मुझे बहुत चुदासा बना दिया था। विनोद भी दर्जी के साथ मेरी चुदाई देखने को तैयार हो गया। पति हो, तो ऐसा! रात 10 बजे मैंने उदय को बुलाया था, इसलिए हम उससे पहले ही घर से निकल गए। त्योहार का दिन था। गेट पर बहुत चहल-पहल थी। कई लोग आ-जा रहे थे। उदय को गेट पर देखकर मैं खुश हो गई। जैसा मैंने कहा था, उसने अपनी शिफ्ट किसी के साथ बदल ली थी।

लोगों के बीच मैं उदय से बात नहीं करना चाहती थी। लेकिन मेरे पति देव का बस चलता, तो वो मुझे वहीं, सबके बीच उदय से चुदवाते। विनोद ने गेट के बहुत पास कार रोक दी। उदय तुरंत मेरे बगल में आ गया। मैंने झूठ बोला- उदय, अभी थोड़ी देर पहले खबर आई कि मेरा एक रिश्तेदार बहुत बीमार है। तुम्हारे साथ रात बिताना चाहती थी, लेकिन क्या करूँ, जाना पड़ेगा। कल दिन भर घर पर ही रहूँगी।

कई लोग हमारी ओर देख रहे थे। उदय ने मुझे सल्यूट किया। मैंने मुस्कुराकर सिर हिलाया। हम वहाँ से निकल गए।

आगे क्या क्या होता है, पढ़िए अगले पार्ट में। दर्जी के साथ अंदर कौन था, या कौन थी? ये सब आपको अगले पार्ट में पता चलेगा।

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