पूरा दिन चूत गांड में खीरा घुसा रहा

फ्रेंड्स, मेरा नाम जया शर्मा है और मैं पंजाब के लुधियाना शहर से हूँ। मेरी उम्र 20 साल है। मैं दिखने में बिल्कुल श्रद्धा कपूर जैसी हूँ, गोरी-चिट्टी, भरी-पूरी चूचियां जो रसीले आमों की तरह हैं, और मेरी ठुमकती चाल देखकर किसी का भी लंड खड़ा हो जाए। मेरी गांड इतनी मस्त है कि लोग बस उसे घूरते रह जाते हैं। मैंने अब तक खूब चुदाई की है, चूत और गांड दोनों में लंड लेने में मैं उस्ताद हो चुकी हूँ। मेरे घर में मम्मी, पापा, मेरा भाई और मैं रहते हैं। ये कहानी उस दिन की है जब मेरी चुदास इतनी बढ़ गई थी कि मैंने कुछ ऐसा कर डाला, जो शायद ही कोई सोच सकता है।

ये बात दो महीने पुरानी है। उस दिन मैं अपने कमरे में अकेली थी। मेरी चूत में आग लगी थी, मन कर रहा था कि अभी कोई मोटा-तगड़ा लंड आए और मेरी चूत को फाड़ दे। लेकिन मेरा कोई बॉयफ्रेंड नहीं था, जो मेरी इस आग को बुझा सके। मैंने पहले तो अपनी उंगलियों से चूत को सहलाया, लेकिन वो मस्ती और सुकून नहीं मिला, जो मुझे चाहिए था। आखिरकार, जब चुदास बर्दाश्त से बाहर हो गई, मैं किचन में गई और वहाँ से दो बड़े-बड़े, मोटे-मोटे खीरे उठा लाई। दोनों खीरे लंबे और मोटे थे, बिल्कुल किसी अफ्रीकन लंड जैसे। मैंने सोचा, अगर लंड नहीं है तो क्या, ये खीरे तो मेरी प्यास बुझा ही देंगे।

मैं अपने कमरे में लौटी, दरवाजा लॉक किया और बेड पर नंगी होकर लेट गई। मैंने एक खीरे को उठाया, उस पर ढेर सारी कोल्ड क्रीम लगाई ताकि वो चिकना हो जाए। फिर धीरे-धीरे उसे अपनी चूत में घुसाने लगी। जैसे ही खीरा मेरी चूत में गया, मेरी सिसकारी निकल गई, “आह्ह… स्स्स्स…” वो ठंडा-ठंडा खीरा मेरी गर्म चूत को चीरता हुआ अंदर गया। मैंने उसे धीरे-धीरे अंदर-बाहर करना शुरू किया। हर धक्के के साथ मेरी चूत और गीली होती जा रही थी। मैंने दूसरा खीरा लिया, उस पर भी ढेर सारी क्रीम लगाई और अपनी गांड के छेद पर रखकर धीरे से दबाया। पहले तो थोड़ा दर्द हुआ, लेकिन जैसे ही वो अंदर गया, मुझे ऐसा मजा आया कि मैंने पूरा खीरा अपनी गांड में ठूंस लिया।

अब मेरी चूत और गांड, दोनों में खीरे थे। मैं बेड पर लेटी थी, एक हाथ से चूत वाला खीरा अंदर-बाहर कर रही थी और दूसरे हाथ से गांड वाला खीरा। मेरी आँखें बंद थीं, और मैं ख्यालों में किसी मोटे लंड वाले मर्द के साथ चुदाई का मजा ले रही थी। मैं सोच रही थी कि कोई अफ्रीकन नीग्रो मुझे अपनी बाहों में जकड़ कर मेरी चूत और गांड को एक साथ पेल रहा है। मेरी चूत से पानी टपक रहा था, और गांड में खीरे की रगड़ से अलग ही मजा आ रहा था। मैंने अपनी चूचियों को जोर-जोर से दबाना शुरू किया, निप्पल्स को मसलते हुए अपनी चुदास को और बढ़ा लिया। कुछ ही देर में मैं इतनी गर्म हो गई कि मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया। मैं जोर-जोर से सिसकारियां ले रही थी, “आह्ह… उह्ह… चोदो मुझे… और जोर से…”

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तभी अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई। मैं चौंक गई। बाहर से भाई की आवाज आई, “जया, दरवाजा खोल!” मैं घबरा गई। दोनों खीरे अभी भी मेरी चूत और गांड में थे। मैंने जल्दी से आवाज दी, “एक मिनट, भाई! कपड़े चेंज कर रही हूँ!” मैंने दोनों खीरों को और अंदर ठूंस लिया, ताकि वो बाहर न निकलें। फिर जल्दी से पैंटी पहनी, ऊपर से टाइट जींस और टी-शर्ट डाल ली। कपड़े पहनते वक्त खीरे मेरी चूत और गांड में रगड़ रहे थे, जिससे मेरी चुदास फिर से जागने लगी। मैंने किसी तरह खुद को संभाला और दरवाजा खोला।

भाई अंदर आया और बोला, “जया, जल्दी तैयार हो, हमें अभी चंडीगढ़ जाना है। बुआ की तबीयत ठीक नहीं है।” मैंने हैरानी से पूछा, “अचानक?” भाई ने कहा, “हाँ, मम्मी-पापा ने कहा है कि अभी निकलना है।” मैंने सोचा, ये क्या मुसीबत आ गई! मेरी चूत और गांड में खीरे फंसे थे, और अब मुझे बाहर जाना था। लेकिन मेरी चुदास इतनी थी कि मैंने सोचा, क्यों न इसे और मजेदार बनाया जाए। मैंने कहा, “ठीक है, चलो।”

बाहर मम्मी-पापा तैयार खड़े थे। पापा ने स्टेशन के लिए ऑटो बुला लिया था। हम सब ऑटो में बैठ गए। ऑटो की सीट पर बैठते ही खीरे मेरी चूत और गांड में और गहराई तक धंस गए। ऑटो की हर उछलकूद के साथ खीरे मेरे दोनों छेदों में रगड़ रहे थे। मैंने अपनी टांगें जोर से भींच लीं, ताकि खीरे बाहर न निकलें, लेकिन उस रगड़ से मेरी चूत फिर से गीली होने लगी। मैं चुपके से अपनी चूचियों को दबा रही थी, और मन ही मन सोच रही थी कि काश कोई मर्द अभी मुझे पकड़ कर चोद दे। ऑटो में बैठे-बैठे मेरी चूत ने फिर से पानी छोड़ दिया। मैंने किसी तरह खुद को शांत रखा, ताकि मम्मी-पापा या भाई को कुछ शक न हो।

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स्टेशन पहुंचने पर भाई टिकट लेने गया। मैं धीरे-धीरे चल रही थी, क्योंकि खीरे मेरी चूत और गांड में हर कदम पर रगड़ रहे थे। मेरी चाल थोड़ी अजीब हो गई थी। भाई ने टिकट लेकर आते ही पूछा, “जया, तू ऐसे क्यों चल रही है?” मैंने बहाना बनाया, “अरे, मुझे ट्रेन का प्लेटफॉर्म नहीं पता, इसलिए मम्मी-पापा के पीछे चल रही हूँ।” भाई ने कुछ नहीं कहा, और हम सब ट्रेन में चढ़ गए।

ट्रेन में बैठते ही मुझे गांड में जलन होने लगी। खीरे अब तक एक घंटे से ज्यादा मेरे अंदर थे। मैंने सोचा, बाथरूम में जाकर चेक कर लेती हूँ। मैं ट्रेन के बाथरूम में गई, अपनी पैंट और पैंटी उतारी, और चूत वाला खीरा बाहर निकाला। वो मेरे चूत के रस से पूरा गीला और चिकना हो चुका था। मैंने उसे चाटा, अपने चूत के रस का स्वाद लिया, और फिर उसे वापस चूत में डाल लिया। मैंने खीरे को अंदर-बाहर करना शुरू किया। हर धक्के के साथ मेरी चूत और गर्म हो रही थी। मैंने अपनी चूचियों को जोर-जोर से दबाया, निप्पल्स को मसला, और कुछ ही देर में मैं फिर से झड़ गई। मेरी सिसकारियां बाथरूम में गूंज रही थीं, “आह्ह… स्स्स्स… और जोर से…”

फिर मैंने गांड वाला खीरा चेक किया। वो भी चिकना हो चुका था। मैंने उसे थोड़ा अंदर-बाहर किया, लेकिन जलन की वजह से ज्यादा नहीं कर पाई। मैंने दोनों खीरे वापस अपनी चूत और गांड में डाल लिए, कपड़े ठीक किए, और अपनी सीट पर लौट आई। मम्मी-पापा और भाई बातों में忙 थे, लेकिन मेरी चुदास फिर से जाग रही थी। मैंने चुपके से अपनी चूत को पैंट के ऊपर से दबाया, जिससे थोड़ी राहत मिली।

चार घंटे बाद हम चंडीगढ़ पहुंचे। वहाँ से ऑटो लेकर बुआ के घर गए। बुआ की तबीयत अब ठीक थी, लेकिन मुझे सबसे पहले बाथरूम जाना था। मैंने सोचा, अब खीरे निकाल लेती हूँ। बाथरूम में जाकर मैंने चूत वाला खीरा निकाला, लेकिन गांड वाला खीरा बाहर नहीं आ रहा था। मैं घबरा गई। मैंने चूत वाले खीरे पर तेल लगाया और उसे गांड में डालने की कोशिश की, ताकि छेद और ढीला हो जाए। बहुत मेहनत के बाद दूसरा खीरा भी गांड में चला गया। अब मेरी गांड में दो खीरे थे। मैंने उन्हें अंदर-बाहर करना शुरू किया। दर्द के साथ-साथ मजा भी आने लगा। कुछ देर बाद पहला खीरा भी बाहर आ गया। मैंने राहत की सांस ली, लेकिन मेरी चुदास फिर से जाग गई। मैंने दोनों खीरों को फिर से चूत और गांड में डाल लिया और बाथरूम से बाहर आ गई।

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बुआ के घर में सबके साथ बातें करने लगी, लेकिन मेरी चूत और गांड में खीरे अब भी थे। रात को खाना खाने के बाद मैं सोने गई। बिस्तर पर लेटते ही थकान की वजह से मुझे नींद आ गई। सुबह उठी तो चूत और गांड में जलन और दर्द हो रहा था। खीरे अब तक 16 घंटे से मेरे अंदर थे। मैं बुआ के घर की छत पर गई, सोचा खीरे निकालकर फेंक दूँ। लेकिन पड़ोस की छत पर कुछ लड़के मुझे घूर रहे थे। मैंने सोचा, अगर खीरे फेंकते वक्त किसी ने देख लिया तो बवाल हो जाएगा। मैं वापस नीचे आ गई।

मम्मी ने बताया कि हमारी ट्रेन दो घंटे बाद है। मैंने सोचा, बस अब घर पहुंचकर ही खीरे निकालूंगी। ट्रेन में फिर से बाथरूम जाकर मैंने चूत वाला खीरा निकाला और उससे मुठ मारी। इस बार मैंने दोनों खीरे एक साथ अपनी चूत में डाल लिए। दर्द तो हुआ, लेकिन मजा भी इतना आया कि मैंने जबरदस्ती दोनों को अंदर ठूंस लिया। ट्रेन की सीट पर बैठते वक्त एक खीरा बाहर आने लगा। मैंने जल्दी से उस पर बैठकर उसे वापस अंदर धकेल लिया। अब दोनों खीरे मेरी चूत में इतने गहरे थे कि मुझे अपने पेट में अजीब सा अहसास हो रहा था।

घर पहुंचते ही मैंने दोनों खीरे निकाले और बेड पर लेट गई। मेरी चूत और गांड में इतना दर्द था कि मैंने एक हफ्ते तक कुछ नहीं किया। मुझे बोरोलीन लगाकर अपनी चूत और गांड को आराम देना पड़ा।

दोस्तो, ये थी मेरी गंदी लड़की की गंदी बात। मैंने अपनी चुदास को खीरों से बुझाया, और वो 25 घंटे मेरे लिए जिंदगी का सबसे चुदक्कड़ अनुभव था। आपको मेरी कहानी कैसी लगी?

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