बुआ की चूत का भोसड़ा बना

Bua ki chudai 2 lund se: हाय, मेरा नाम सन्नी है, मैं वडोदरा से हूँ, उम्र 20 साल, और अभी कॉलेज में पढ़ता हूँ। मैं 5 फीट 10 इंच का हूँ, गोरा, पतला लेकिन फिट। मुझे पोर्न देखने और देसी कहानियाँ पढ़ने का बड़ा शौक है, खासकर इन्सेस्ट और ग्रुप सेक्स वाली स्टोरीज़ मुझे बहुत पसंद हैं। मेरी ज़िंदगी में मस्ती थी, लेकिन एक बार जो हुआ, उसने मेरी सोच को हमेशा के लिए बदल दिया। ये कहानी मेरी बुआ, भारती, की है, जिनकी मेरे सामने चुदाई हुई। बुआ 43 साल की हैं, सांवली, मध्यम कद, और उनका फिगर 36-30-38 का है। न ज्यादा मोटी, न पतली। उनकी सलवार-कमीज़ में उनके बड़े-बड़े चूचे और बाहर निकली हुई गांड हर किसी का ध्यान खींचती थी। उनकी कमर पतली है, जो उनकी गांड को और उभरता दिखाती थी। बुआ अक्सर टाइट सलवार-कमीज़ पहनती थीं, जिससे उनके चूचे ब्रा से बाहर निकलने को बेताब रहते। जब वो झुकतीं, तो उनकी गहरी गलियाँ साफ दिख जातीं, जो किसी का भी लंड खड़ा कर दे। उनकी एक बेटी है, मेरी उम्र की, और एक बेटा, जो मुझसे दो साल छोटा है। दोनों उस वक्त अपने अंकल के साथ टूर पर गए थे।

बात तब की है जब मैं 18 साल का था। गर्मियों की छुट्टियाँ थीं, और मैं बुआ के घर वापी गया था। बुआ ने कोई मन्नत मांगी थी, जिसे चढ़ाने के लिए चोटीला जाना था। उनके बच्चे टूर पर थे, तो वो अकेले जाने वाली थीं। बुआ ने मुझसे कहा, “बेटा, मेरे साथ चल, अकेले बोर हो जाऊँगी।” मैंने सोचा, घर पर अकेले क्या करूँगा, और हाँ बोल दिया। बस रात 8 बजे की थी। हमने जल्दी डिनर निपटाया और बस स्टॉप पहुँच गए। बुआ ने पीले रंग की टाइट सलवार-कमीज़ पहनी थी, जिसमें उनके चूचे बाहर निकलने को तड़प रहे थे। उनकी गहरी गलियाँ साफ दिख रही थीं, और उनकी गांड का उभार हर कदम पर हिलता था। बस स्लीपर कोच थी, और हमारी सीट ड्राइवर के ठीक पीछे थी।

मैं और बुआ नीचे वाले स्लीपर में बैठ गए। बस शुरू होने से पहले को-ड्राइवर, भारत, जो 45 साल का मोटा, काला, और पेट निकला हुआ आदमी था, स्लीपर चेक करने आया। उसकी हाइट बुआ जितनी थी, चेहरा खुरदुरा, लेकिन आँखों में चालाकी थी। उसने बुआ को देखा, जो लंबे पाँव करके बैठी थीं, और उनके चूचों की गहरी लकीर साफ दिख रही थी। बुआ ने उसे देखकर हल्की सी स्माइल दी। उसने पूछा, “सब ठीक है ना?” बुआ बोलीं, “हाँ जी, सब ठीक है।” बस चल पड़ी। मैं खिड़की की तरफ था, बुआ मेरे बगल में। भारत बार-बार पीछे मुड़कर बुआ को देख रहा था, और बुआ भी उसे चोरी-छिपे निहार रही थीं। मुझे ये सब देखकर अजीब सा लगा, लेकिन मैं चुप रहा।

तीन घंटे बाद, रात 11 बजे बस एक ढाबे पर रुकी। सब फ्रेश होने उतरे। मैं वॉशरूम गया, जहाँ भीड़ थी, तो देर लगी। जब लौटा, तो देखा बुआ भारत के साथ ढाबे के काउंटर पर बातें कर रही थीं। बुआ ने मुझसे कहा, “बेटा, ये भारत अंकल हैं, कोई दिक्कत हो तो इन्हें बता देना।” मैंने हाँ में सिर हिलाया। हम बस में वापस बैठे, और बस चल पड़ी। मुझे नींद नहीं आ रही थी, लेकिन बुआ मेरे बगल में सो गई थीं। बस के हिलने से उनकी गांड और चूचे हिल रहे थे। उनकी गांड पूरी बाहर निकली हुई थी, और वो हिल रही थी। भारत बार-बार पीछे मुड़कर देखे जा रहा था। मुझे अंदर ही अंदर मजा आ रहा था, लेकिन मैं कुछ बोला नहीं।

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रात के 3 बजे बस फिर एक छोटे से ढाबे पर रुकी। मैंने बुआ को जगाया, और हम दोनों उतरे। मैं वॉशरूम गया। बुआ ने कहा, “मैं खाना ले आती हूँ, तू बस में जाकर बैठ।” मैंने हाँ बोला। वॉशरूम छोटा था, तो लोग बाहर ही मूत रहे थे। मैं भी बाहर मूतने लगा। जब बस की तरफ लौट रहा था, तो देखा बुआ ढाबे के अंदर जा रही थीं, और भारत उनके पीछे। मुझे कुछ गड़बड़ लगी, तो मैं चुपके से उनके पीछे गया। ढाबा छोटा था, और पीछे की तरफ मिट्टी के ढेर थे। एक टेरेस की लाइट से हल्का उजाला था। मैं एक ढेर के पीछे छिप गया।

वहाँ मैंने देखा कि भारत ने बुआ को जल्दी से नीचे बिठाया और अपना लंड निकालने लगा। बुआ ने विरोध किया, खड़े होने की कोशिश की, लेकिन भारत ने उन्हें धक्का देकर फिर बिठा दिया। उसने अपना 7 इंच का काला, मोटा लंड निकाला, जो पाइप जैसा लग रहा था, और बुआ के होंठों पर रगड़ने लगा। बुआ ने मुँह दूसरी तरफ कर लिया। भारत ने उनका सिर पकड़ा और लंड उनके मुँह में डालने की कोशिश की। बुआ ने मुँह नहीं खोला, तो भारत ने उनके हाथ पर पाँव रख दिया। दर्द के मारे बुआ की चीख निकल गई, और उनका मुँह खुल गया। भारत ने फटाक से अपना लंड उनके गले तक उतार दिया। बुआ की आँखों से पानी निकलने लगा, और उनके मुँह से “ऊँह… ऊँह…” की आवाज़ें आने लगीं। भारत ने उनके बाल पकड़कर उनके सिर को ज़ोर-ज़ोर से हिलाना शुरू किया, जैसे उनके मुँह को चोद रहा हो। मैं ये सब देख रहा था, मेरा लंड खड़ा हो गया, लेकिन किसी के आने के डर से मैंने कुछ किया नहीं।

करीब 5-6 मिनट तक भारत उनके मुँह को चोदता रहा। फिर उसकी सिसकारियाँ तेज़ हुईं, “आह्ह… ऊह्ह…” और उसने अपना सारा वीर्य बुआ के गले में उतार दिया। लंड इतना अंदर था कि पिचकारी सीधे उनके गले में गई। भारत ने थोड़ी देर तक उनका मुँह पकड़े रखा, फिर धीरे से लंड निकाला। बुआ खड़ी हुईं, तो भारत ने उनके होंठों पर अपने होंठ रखकर चूमना शुरू किया। बुआ ने पहले विरोध किया, लेकिन भारत ने उन्हें कसकर पकड़ लिया। एक मिनट बाद बुआ भी उसे चूमने लगीं। दोनों एक-दूसरे के होंठ चूस रहे थे, जैसे कोई भूखा शिकारी। मुझे ये देखकर बड़ा मजा आ रहा था, लेकिन डर के मारे मैंने मुठ नहीं मारी। चार मिनट तक उनका चुम्मा-चाटी चला, फिर दोनों बस की ओर चल पड़े। मैं भागकर बस में अपनी सीट पर जा बैठा। बुआ मेरे लिए चिप्स और पानी की बोतल लाईं। बस फिर चल पड़ी, और मुझे नींद आ गई।

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सुबह 6:30 बजे मेरी नींद खुली। बस रुकी हुई थी, क्योंकि टायर पंक्चर हो गया था। सब लोग नीचे उतर रहे थे। बुआ भी जाग गईं। नीचे उतरकर पता चला कि जैक नहीं लग रहा था, और दूसरी बस आने तक इंतज़ार करना था। भारत बुआ के पास आकर खड़ा हो गया। लोग हाइवे पर मूतने की जगह ढूँढने लगे। मैं भी हाइवे से थोड़ा आगे गया। जब लौटा, तो देखा बुआ जंगल की तरफ जा रही थीं, और भारत उनके पीछे। मुझे फिर शक हुआ, और मैं चुपके से उनके पीछे गया।

वहाँ एक पेड़ के नीचे बुआ अपनी सलवार उतार रही थीं। भारत ने भी अपनी पैंट खोलकर अपना लंड निकाला। उसने बुआ को पेड़ के सहारे खड़ा किया, उनकी सलवार उतारी, और एक टांग को अपने हाथ पर उठा लिया। दूसरा पैर ज़मीन पर था। भारत ने अपना लंड उनकी चूत पर रगड़ा और डालने की कोशिश की। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मेरी बुआ इतनी आसानी से चुदने को तैयार थी। बुआ ने खुद अपने हाथ से भारत का लंड अपनी चूत पर सेट किया। भारत ने एक ज़ोरदार धक्का मारा, और आधा लंड उनकी चूत में घुस गया। बुआ ने सिसकारी भरी, “आह्ह… ऊह्ह…” भारत ने धीरे-धीरे कमर हिलानी शुरू की। उसका मोटा पेट बीच में आ रहा था, जिससे लंड पूरा अंदर नहीं जा रहा था। बुआ का भी पेट थोड़ा फूला हुआ था, जिससे दिक्कत हो रही थी। लेकिन भारत ने ज़ोर लगाकर पूरा लंड ठूंस दिया। बुआ की चीख निकली, “आह्ह्ह… मम्मी…” भारत ने उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और चूमने लगा।

बुआ भी उसका साथ दे रही थीं। भारत ज़ोर-ज़ोर से धक्के मार रहा था, और उनकी चूत से “पच… पच…” की आवाज़ें आ रही थीं। थोड़ी देर बाद भारत ने लंड निकाला और बुआ को पेड़ पकड़कर झुकने को कहा। उसने उनकी कमीज़ ऊपर की और उनकी गांड पर दो-तीन चमाट मारे। बुआ की गांड लाल हो गई। फिर उसने पीछे से लंड उनकी चूत में डाला और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगा। बुआ चिल्ला रही थीं, “आह्ह… मर गई… धीरे करो… प्लीज़… धीरे…” उनकी गांड के साथ भारत की जाँघें टकरा रही थीं, जिससे “थप… थप… थप…” की आवाज़ गूँज रही थी। मैं ये सब देख रहा था, और मेरा लंड इतना टाइट हो गया कि मैंने उसे निकालकर मुठ मारनी शुरू कर दी।

करीब 7 मिनट बाद, अचानक बस का ड्राइवर, रमेश, जो 50 साल का हट्टा-कट्टा, काला आदमी था, वहाँ आ गया। उसका चेहरा सख्त और शरीर भारी-भरकम था। उसने भारत के कंधे पर हाथ रखा। भारत चौंक गया और धक्के मारना बंद कर दिया। ड्राइवर ने उसे चुप रहने का इशारा किया। बुआ अभी भी झुकी हुई थीं, और उन्हें नहीं पता था कि पीछे ड्राइवर है। ड्राइवर ने अपना 8 इंच का मोटा, काला लंड निकाला, जिसका टोपा बड़ा और चमकदार था। भारत ने चुपचाप अपना लंड निकाला और बुआ की गांड पकड़कर साइड में खड़ा हो गया। ड्राइवर ने अपना लंड बुआ की चूत पर रखा और एक ज़ोरदार धक्का मारा। बुआ चीख पड़ी, “आह्ह्ह… माँ…” ड्राइवर ने उनकी कमर पकड़कर ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने शुरू किए। बुआ को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो चिल्ला रही थीं, “प्लीज़… निकालो… आह्ह… धीरे…” लेकिन ड्राइवर रुका नहीं। उसका लंड इतना बड़ा था कि बुआ की चूत का भोसड़ा बन गया।

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भारत ने मौका देखकर आगे जाकर अपना लंड फिर से बुआ के मुँह में डाल दिया। उनका मुँह चीखने की वजह से खुला था, और भारत ने गले तक लंड ठूंस दिया। अब ड्राइवर पीछे से उनकी चूत चोद रहा था, और भारत उनके मुँह को। बुआ की आँखें बंद थीं, और वो बस सिसकारियाँ ले रही थीं, “ऊँह… आह्ह… मम्मी…” दोनों मर्द “आह्ह… ऊह्ह…” की आवाज़ें निकाल रहे थे। करीब 7 मिनट बाद भारत फिर से उनके मुँह में झड़ गया, और सारा वीर्य उनके गले में उतर गया। ड्राइवर अभी भी ज़ोर-ज़ोर से धक्के मार रहा था। उसका लंड इतना अंदर जा रहा था कि बुआ को लग रहा था कि वो उनकी नाभि तक पहुँच रहा है।

थोड़ी देर बाद ड्राइवर ने भी ज़ोर से सिसकारी भरी, “आह्ह्ह…” और उसने अपना सारा वीर्य बुआ की चूत में डाल दिया। बुआ की चूत से वीर्य टपकने लगा। ड्राइवर थोड़ी देर वैसे ही खड़ा रहा, फिर उसने लंड निकाला। बुआ ने सीधे होकर पीछे मुड़कर देखा, तो ड्राइवर को देखकर दंग रह गईं। दोनों मर्दों ने अपनी पैंट ठीक की और चले गए। बुआ ने जल्दी से अपनी सलवार पहनी, लेकिन उनकी चूत और गांड में इतना दर्द था कि वो लंगड़ाकर चल रही थीं। मैं चुपके से बस में लौट गया।

भारत और ड्राइवर ने दूसरी बस से जैक माँगा और टायर बदलवाया। बस फिर चल पड़ी। बुआ स्लीपर में आकर सीधे सो गईं। मैं भी थक गया था, और मुझे नींद आ गई। सुबह 11 बजे हम चोटीला पहुँचे। मन्नत चढ़ाने के बाद हम एक होटल में रुके और नहाने गए। वापसी की यात्रा में भी कुछ ऐसा ही हुआ, लेकिन वो कहानी फिर कभी।

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