ये कहानी मेरी जिंदगी की एक सच्ची घटना पर आधारित है। मेरा नाम रमेश है, मैं 32 साल का हूँ, कन्नौज के पास एक छोटे से गाँव में रहता हूँ। मेरा कद 5 फुट 10 इंच है, गठीला बदन, गेहुंआ रंग, और चेहरा ऐसा कि गाँव की औरतें मुझे घूरती हैं। मैं खेती-बाड़ी करता हूँ और अपनी साइकिल पर अपनी भतीजी को स्कूल ले जाता हूँ। मेरी भतीजी का नाम कल्पना है, वो 18 साल की है, 12वीं में पढ़ती है। उसका कद 5 फुट 2 इंच, गोरा रंग, भरा हुआ जिस्म, 36 इंच की गोल-गोल चूचियां, पतली कमर, और रसीले गुलाबी होंठ जो किसी को भी पागल कर दें। उसकी बड़ी-बड़ी काली आँखों में एक मासूमियत थी, लेकिन उसका जिस्म अब पूरी तरह चोदने लायक माल बन चुका था। मेरे बड़े भैया, सुरेश, 45 साल के हैं, गाँव में किराने की दुकान चलाते हैं और हमेशा व्यस्त रहते हैं। उनकी इकलौती बेटी कल्पना की सारी जिम्मेदारी मुझ पर है, क्योंकि गाँव में स्कूल नहीं है, और मैं उसे रोज 10 किलोमीटर दूर साइकिल पर बिठाकर स्कूल ले जाता हूँ।
कल्पना की खूबसूरती दिन-ब-दिन बढ़ रही थी। उसका गोरा चेहरा, लंबे काले बाल, और तनी हुई चूचियां देखकर मेरा 8 इंच का लंड हर बार तन जाता था। वो अब वो मासूम बच्ची नहीं थी जो पहले खेला करती थी। उसका जिस्म भरा हुआ था, और उसकी कमीज से झांकते मम्मे किसी का भी ध्यान खींच लेते थे। मैं रात-दिन बस यही सोचता था कि कैसे उसकी रसीली चूत को चोदूं। लेकिन वो मेरी भतीजी थी, और मेरे मन में ग्लानि भी थी। फिर भी, उसकी जवानी मेरे होश उड़ा रही थी।
एक दोपहर मैं कल्पना को स्कूल से साइकिल पर वापस ला रहा था। वो अपनी स्कूल ड्रेस में थी—नीली कमीज, सलवार, और दुपट्टा कंधे पर लटक रहा था। रास्ता कच्चा था, गड्ढों से भरा, और साइकिल के हर झटके में उसका जिस्म मेरी पीठ से टकराता था। उसकी चूचियां मेरी पीठ पर बार-बार लग रही थीं, और मेरा लंड पैंट में तंबू बना रहा था। कुछ देर बाद उसने धीरे से कहा, “चाचा, मुझे प्यास लग रही है।” उसकी आवाज में एक मासूमियत थी, लेकिन उसका जिस्म मुझे उकसा रहा था।
मैंने एक बड़े पीपल के पेड़ के पास साइकिल रोकी, जहाँ एक सरकारी नल था। मैंने नल चालू किया, और वो पानी पीने लगी। पानी पीते वक्त उसकी कमीज पर कुछ बूंदें गिरीं, जिससे उसकी 36 इंच की चूचियां और उभरकर दिखने लगीं। उसने दुपट्टे से चेहरा पोंछा, और मैं उसकी हरकतें देखता रहा। तभी पास की झाड़ियों से अजीब सी आवाजें आईं— “अई… अई… स्स्सी… उह्ह्ह… और जोर से…” कोई चिल्ला रहा था।
कल्पना ने आवाज सुनी और डरते-डरते बोली, “चाचा, ये क्या आवाज है?” मैंने कहा, “रुक, देखता हूँ।” मैं उसे साथ लेकर पेड़ के पीछे गया। वहाँ एक लड़का और लड़की, दोनों नंगे, घास पर लेटकर चुदाई कर रहे थे। लड़की सिसकार रही थी, “अह्ह्ह… स्स्सी… और तेज… उह्ह्ह…” और लड़का उसे पेलते हुए बोल रहा था, “ले मेरी जान… तेरी चूत तो मस्त है…” कल्पना ये देखकर सन्न रह गई। उसका चेहरा लाल हो गया, और वो पीछे हट गई।
वो डरते हुए बोली, “चाचा, ये… ये क्या कर रहे हैं?” मैंने धीरे से कहा, “कल्पना, ये चुदाई कर रहे हैं। मजे ले रहे हैं।” वो और शरमा गई, उसने नजरें नीचे कर लीं और बोली, “चाचा… चलो, यहाँ से…” हम साइकिल पर वापस चल दिए। पूरे रास्ते वो चुप रही, लेकिन उसकी सांसें तेज थीं। मुझे लग रहा था कि वो चुदाई का सीन देखकर उत्तेजित हो गई थी, पर उसकी मासूमियत उसे खुलने नहीं दे रही थी।
कुछ दिन बाद, एक और दिन स्कूल से लौटते वक्त मैंने उसे साइकिल के डंडे पर बिठाया। उसकी सलवार और कमीज में उसका जिस्म और उभरकर दिख रहा था। साइकिल चलाते वक्त मेरा हाथ गलती से उसके मम्मों पर लग गया। उफ्फ, वो 36 इंच के मुलायम गोले जैसे थे। मेरा लंड तुरंत तन गया। कल्पना ने हल्का सा चौंककर मुझे देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं। उसके चेहरे पर शर्म थी, पर उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी। मैंने उसे बिठाया और साइकिल चलाने लगा, लेकिन मेरा मन अब स्कूल ले जाने का नहीं था। मेरा लंड पैंट में दर्द कर रहा था।
रास्ते में सन्नाटा था। मैंने हिम्मत करके बात शुरू की, “कल्पना, उस दिन जो तूने देखा, वो चुदाई के बारे में क्या सोचती है?”
वो शरमाते हुए बोली, “चाचा… मुझे नहीं पता… वो सब गलत लगता है…” उसकी आवाज में हिचक थी, लेकिन वो झूठ बोल रही थी। मैं समझ गया कि वो उत्तेजित थी, पर खुलने में डर रही थी।
मैंने कहा, “कल्पना, इसमें गलत कुछ नहीं। लड़के-लड़कियां ऐसा करते हैं, मजे लेने के लिए। तूने कभी सोचा है, कैसा लगता होगा?”
वो चुप रही, बस सिर झुकाए साइकिल के डंडे पर बैठी रही। मैंने फिर कहा, “बता न, तुझे लंड खाने का मन करे, चुदाई का मजा लेना हो, तो मुझे बता।”
वो हड़बड़ाकर बोली, “चाचा! ये क्या बोल रहे हो? मैं आपकी भतीजी हूँ…” लेकिन उसकी आवाज में गुस्सा कम और शर्म ज्यादा थी। मैंने देखा कि उसकी सांसें तेज हो रही थीं।
मैंने हंसते हुए कहा, “अरी पगली, तू भतीजी है, पर जवान भी तो है। अगर मन करे तो मैं तेरी चूत की प्यास बुझा सकता हूँ।”
वो बोली, “चाचा… ये गलत है… अगर किसी को पता चल गया तो?” उसका चेहरा लाल था, और वो बार-बार अपनी सलवार ठीक कर रही थी। मैं समझ गया कि वो मन ही मन चुदाई के बारे में सोच रही थी, पर डर और शर्म उसे रोक रहे थे।
मैंने साइकिल की स्पीड बढ़ा दी और एक आम के बगीचे में पहुंच गया। बगीचे में आम के पेड़ों पर ढेर सारे आम लटक रहे थे, और चारों तरफ सन्नाटा था। ठंडी हवा चल रही थी, और पेड़ों की छांव में माहौल मस्त था। मैंने साइकिल एक बड़े आम के पेड़ के नीचे रोकी और कहा, “कल्पना, थोड़ा रुकते हैं।”
वो हिचकिचाते हुए उतरी और बोली, “चाचा, यहाँ क्यों रुके?” मैंने कहा, “बस, थोड़ा सुस्ता लें।” मैंने अपनी शर्ट और पैंट उतारी, सिर्फ अंडरवियर में रह गया। वो मुझे देखकर और शरमा गई, “चाचा… ये क्या कर रहे हो?”
मैंने उसे पास बुलाया और कहा, “आ, यहाँ बैठ।” वो घास पर बैठ गई, उसकी सलवार और कमीज अभी भी बदन पर थी। मैं उसके पास बैठा और उसका हाथ पकड़ लिया। वो कांप रही थी, लेकिन उसने हाथ नहीं छुड़ाया। मैंने धीरे से उसके गाल पर हाथ रखा और कहा, “कल्पना, तू कितनी खूबसूरत है।”
वो शरमाकर बोली, “चाचा… प्लीज… ये ठीक नहीं है…” लेकिन उसकी आवाज में कमजोरी थी। मैंने उसके गुलाबी होंठों को चूमना शुरू किया। वो पहले तो पीछे हटी, “चाचा… नहीं…” लेकिन मैंने उसे अपनी बाहों में कस लिया। उसके होंठ इतने रसीले थे कि मैं रुक नहीं सका। वो हल्का सा विरोध कर रही थी, लेकिन धीरे-धीरे उसने भी मेरे होंठ चूसने शुरू किए।
मैंने उसकी कमीज के ऊपर से उसके 36 इंच के मम्मों को सहलाना शुरू किया। वो सिसकारी, “अह्ह्ह… चाचा… स्स्सी… ये गलत है…” लेकिन उसका जिस्म मेरे स्पर्श से कांप रहा था। मैंने उसका दुपट्टा हटाया और कमीज के बटन खोलने लगा। वो बोली, “चाचा… कोई देख लेगा…” मैंने कहा, “यहाँ कोई नहीं है, मेरी जान।”
मैंने उसकी कमीज उतार दी। उसकी काली ब्रा में उसके मम्मे उभरकर दिख रहे थे। मैंने ब्रा का हुक खोला, और उसके 36 इंच के कबूतर मेरी आँखों के सामने उछल पड़े। वो अपने हाथों से मम्मे छुपाने की कोशिश करने लगी, “चाचा… प्लीज… मुझे शर्म आ रही है…” लेकिन मैंने उसके हाथ हटाए और उसके नंगे मम्मों को पकड़ लिया। वो “अह्ह्ह… स्स्सी…” सिसकार उठी।
मैंने उसके मम्मों को मसलना शुरू किया। वो चीखी, “चाचा… धीरे… दर्द हो रहा है… अह्ह्ह…” मैंने उसके निप्पल्स को मुँह में लिया और चूसने लगा। उसके निप्पल्स के चारों ओर काले घेरे उसे और सेक्सी बना रहे थे। मैं एक मम्मे को चूस रहा था और दूसरे को मसल रहा था। वो “आई… आई… अह्ह्ह… स्स्सी…” की सिसकारियां ले रही थी। उसका चेहरा लाल था, और वो बार-बार अपनी टांगें सिकोड़ रही थी।
मैंने उसकी सलवार का नाड़ा खोला और उसे नीचे सरकाया। उसकी काली चड्डी उसकी गोरी जांघों पर मस्त लग रही थी। वो बोली, “चाचा… प्लीज… ये गलत है…” लेकिन उसकी सांसें तेज थीं, और उसकी चूत की गर्मी उसकी चड्डी से महसूस हो रही थी। मैंने उसकी चड्डी भी उतार दी। अब वो पूरी तरह नंगी थी। उसकी चूत पर हल्की-हल्की काली झांटें थीं, जो बता रही थीं कि उसकी चूत चुदने को तैयार है।
मैंने भी अपना अंडरवियर उतारा, और मेरा 8 इंच का लौड़ा बाहर आ गया। वो डर गई, “चाचा… ये तो बहुत बड़ा है… प्लीज… मुझे डर लग रहा है…” मैंने कहा, “डर मत, मेरी जान। मैं धीरे-धीरे करूंगा।”
मैं उसके ऊपर लेट गया और फिर से उसके मम्मों को चूसने लगा। वो “अह्ह्ह… स्स्सी… चाचा…” सिसकार रही थी। मैंने उसकी चिकनी जांघों को सहलाना शुरू किया। उसकी टांगें इतनी चिकनी थीं कि मेरा लंड और सख्त हो गया। मैंने उसकी जांघों को चूमा, चाटा, और धीरे-धीरे उसकी चूत के पास पहुंचा। उसकी चूत गर्म थी, जैसे भट्टी सुलग रही हो।
मैंने अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटना शुरू किया। वो मचलने लगी, “चाचा… ये क्या… अह्ह्ह… स्स्सी… प्लीज… रुक जाओ…” लेकिन मैं नहीं रुका। मैंने उसकी चूत के दाने को जीभ से चाटा, और वो “आई… आई… उह्ह्ह…” चिल्लाने लगी। मैंने 25 मिनट तक उसकी चूत चाटी, उसका रस पिया, और वो बार-बार अपनी गांड हवा में उठा रही थी। वो बोली, “चाचा… प्लीज… अब बस… मेरी चूत जल रही है…”
मैंने उसकी टांगें और खोलीं और अपने 8 इंच के लौड़े को उसकी चूत के दाने पर रगड़ना शुरू किया। वो हर बार सिसकारी, “अह्ह्ह… चाचा… ये क्या… उह्ह्ह…” मैंने 10 मिनट तक सिर्फ रगड़ा, और वो तड़प रही थी। वो बोली, “चाचा… प्लीज… अब डाल दो… मैं और नहीं सह सकती…”
मैंने उसकी चूत के दरवाजे पर लंड रखा और धीरे से एक झटका मारा। “चट्ट…” की आवाज के साथ मेरा लंड उसकी कुँवारी चूत में आधा घुस गया। वो जोर से चीखी, “आऊ… आऊ… चाचा… मर गई… उह्ह्ह… स्स्सी…” मैंने नीचे देखा, मेरा लंड उसकी चूत के खून से सन गया था। वो दर्द से रो रही थी, “चाचा… प्लीज… निकाल लो… मैं मर जाऊंगी…”
मैंने उसे चूमते हुए कहा, “बस थोड़ा सा दर्द है, मेरी जान। अब मजा आएगा।” मैंने धीरे-धीरे पेलना शुरू किया। “चट… चट… चट…” की आवाज गूंज रही थी। वो “आऊ… आऊ… हम्म्म… अह्ह्ह… स्स्सी…” चिल्ला रही थी। मैंने 15 मिनट तक धीरे-धीरे चोदा, फिर स्पीड बढ़ा दी। उसकी चूत मेरे लंड को पूरा निगल रही थी। वो अब दर्द के साथ मजे भी ले रही थी, “चाचा… अह्ह्ह… और जोर से… स्स्सी…”
मैंने उसकी चूचियों को मसलते हुए उसे और तेज चोदा। 30 मिनट तक मैंने उसे बिना रुके पेला, और फिर उसकी चूत में माल गिरा दिया। मेरा माल उसकी चूत से बहने लगा। वो दर्द से कराह रही थी, लेकिन मैंने उसके होंठ चूसकर उसे शांत किया। मैंने पूछा, “क्यों भतीजी, चाचा का लौड़ा कैसा लगा?”
वो शरमाते हुए बोली, “चाचा… बहुत दर्द हुआ… पर मजा भी आया…”
हम घास पर लेट गए। मैंने उसकी चिकनी पीठ सहलाई, और वो मेरे सीने पर सर रखकर लेट गई। कुछ देर बाद मैंने अपना 8 इंच का लौड़ा उसे चूसने के लिए दिया। वो हिचकिचाई, “चाचा… ये… मैं कैसे…” मैंने कहा, “बस, मेरी जान, इसे प्यार कर।”
वो मेरे लंड को हाथ में लेकर फेटने लगी। मैंने अपने हाथ सिर के नीचे रखे और मजे लेने लगा। वो बोली, “चाचा… ये तो बहुत मोटा है…” वो धीरे-धीरे लंड को ऊपर-नीचे करने लगी। मैंने उसके मम्मों को सहलाना शुरू किया, और वो “अह्ह्ह… स्स्सी…” सिसकारी। फिर वो झुकी और मेरा लंड मुँह में ले लिया। वो 40 मिनट तक मेरा लंड चूसती रही, और मैं “अह्ह्ह… और चूस… मेरी रानी…” कहकर मजे ले रहा था।
फिर मैंने उसकी गांड की तरफ ध्यान दिया। मैंने उसे उल्टा लिटाया और उसकी गोल, चिकनी गांड को सहलाने लगा। वो बोली, “चाचा… ये क्या… प्लीज… वहाँ नहीं…” लेकिन मैंने उसकी गांड पर थूक लगाया और धीरे-धीरे लंड डालने की कोशिश की। वो चीखी, “चाचा… नहीं… बहुत दर्द हो रहा है…” मैंने धीरे-धीरे पेलना शुरू किया। “चट… चट…” की आवाज के साथ मेरा लंड उसकी टाइट गांड में घुसा। वो “आऊ… आऊ… स्स्सी…” चिल्ला रही थी। मैंने 20 मिनट तक उसकी गांड मारी और फिर उसमें माल गिरा दिया।
हम दोनों थककर घास पर लेट गए। वो मेरे सीने पर लेटी थी, और मैं उसकी पीठ सहला रहा था। कुछ देर बाद हमने कपड़े पहने और साइकिल पर वापस चल दिए।
तो दोस्तों, आपको मेरी भतीजी की चुदाई की कहानी कैसी लगी?
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