Devar bhabhi sex story – Risky sex story: हेलो दोस्तों, मेरा नाम ऋषि है, उम्र अभी पच्चीस साल, रंग गोरा और मैं पुणे की एक मल्टीनेशनल कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ। ये मेरी सबसे गरम और सच्ची कहानी है, मेरी उस सेक्सी भाभी की जिसका फिगर 36-28-38 का कातिलाना है, दो बच्चों की माँ होने के बावजूद जिस्म ऐसा टाइट और रसीला कि देखते ही लंड खड़ा हो जाए, और अब वो मेरे लंड की पूरी गुलाम बन चुकी है। मेरे बड़े भाई की शादी 2006 में हुई थी, यानी भाभी की उम्र आज करीब अड़तीस-उन्नतालीस होगी, पर लगती हैं तीस से भी कम, क्योंकि उनकी चूत और बूब्स की आग आज भी उतनी ही तेज़ जलती है जितनी पहले दिन थी।
बात उस वक़्त की है जब मैं कॉलेज के सेकंड ईयर में था, उम्र उन्नीस-बीस की, और अपनी गर्लफ्रेंड के साथ इतना मशगूल रहता था कि भाभी की तरफ़ कभी ध्यान ही नहीं गया। भाई-भाभी अलग फ्लैट में रहते थे, पर भाभी हर दूसरे-तीसरे दिन कोई न कोई बहाना बनाकर मुझे फोन करतीं, कभी दूध ले आना, कभी कोई सामान, कभी कुछ और, बस इसलिए कि मैं उनके घर पहुँच जाऊँ। मैंने कभी गौर नहीं किया कि जब भी मैं जाता हूँ घर पर भाई नहीं होते, सिर्फ़ हवा में हल्की इत्र की महक और भाभी की गर्म साँसें होती हैं।
एक दिन दोस्त के साथ मूवी देख रहा था, तभी भाभी का फोन आया, उनकी आवाज़ में कुछ अजीब सी तड़प थी, “देवर जी, जल्दी घर आ जाओ ना, बहुत ज़रूरी है।” मैंने कहा अभी मूवी चल रही है, तो वो हल्के से हँस कर बोलीं, “कोई बात नहीं, जैसे ही ख़त्म हो आ जाना, मैं इंतज़ार कर रही हूँ।” मूवी ख़त्म होते ही मैं उनके फ्लैट पर पहुँचा, दरवाज़ा खोलते ही गर्म हवा का झोंका लगा और हल्की सी चूत की मीठी-तीखी बू ने नाक में चढ़ गई। भाभी किचन में थीं, मैंने आवाज़ दी तो वो बाहर आईं और बोलीं, “जब बुलाया था तब क्यों नहीं आए?” मैंने मूवी का बहाना दिया, तो वो थोड़ा नाराज़ होते हुए बोलीं, “अभी भैया घर पर हैं, बाद में आना, तब बताऊँगी।” मैं चुपचाप लौट आया, पर मन में कुछ अजीब सा खटका हुआ था।
ठीक दो दिन बाद शाम छह बजे फिर फोन आया, मैं कॉलेज से लौटते हुए बस में खड़ा था, भाभी की साँसें फोन में ही भारी लग रही थीं, “ऋषि, आज घर पर कोई नहीं है, जल्दी आ जा, तेरी भाभी तुझसे बहुत कुछ कहना चाहती है।” मैं बाइक घुमाकर सीधे उनके घर पहुँचा। दरवाज़ा खुला तो सामने का नज़ारा देखकर मेरी साँस रुक गई। भाभी ने पतली लाल सिल्क की नाइटी पहनी थी जो उनके गोरे बदन से चिपक कर हर उभार को उघाड़ रही थी, अन्दर लाल लेस की ब्रा साफ़ नज़र आ रही थी और नीचे कुछ भी नहीं, जाँघों के बीच गहरा गीला धब्बा चमक रहा था, जैसे घंटों से रस बह रहा हो। हवा में उनकी चूत की तेज़, मीठी गन्ध फैली थी, पसीने की हल्की नमकीन महक मिली हुई।
मैंने घबराते हुए पूछा, “भाभी, क्या हुआ, मुझे क्यों बुलाया?” वो मुस्कुराईं, धीरे-धीरे मेरे पास आईं, मेन दरवाज़ा भीतर से बन्द किया और एक झटके में नाइटी को कंधों से सरका कर उतार दी। अब सिर्फ़ लाल ब्रा में, बूब्स इतने भरे हुए कि ब्रा फटने को थीं, निप्पल्स पत्थर जैसे खड़े, और नीचे एकदम नंगी, चूत के होंठ फूले हुए, चमकदार, हल्के काले बालों पर रस की बूंदें लटक रही थीं। उनकी गर्म साँसें मेरे चेहरे पर लग रही थीं, बदन से उठती पसीने और चूत की मिली-जुली गन्ध मेरे लंड को पागल कर रही थी। वो मेरे पास आईं, मेरा हाथ उठाया और अपने भारी, गर्म, मुलायम बूब्स पर रख दिया, निप्पल्स मेरी हथेली में चुभ रहे थे, धीरे से कान में फुसफुसाईं, “बता ना देवर, तेरी भाभी कैसी लग रही है? ये बूब्स, ये चूत, सालों से सिर्फ़ तेरे लिए तरस रहे हैं।”
बस फिर क्या था, मेरे अन्दर का जानवर जाग गया, मैंने उन्हें गोद में उठा लिया, उनकी गर्म, पसीने से भीगी कमर को कसकर पकड़ा और बेडरूम में ले जाकर बिस्तर पर पटक दिया। वो गिरते ही टाँगें चौड़ी कर के लेट गईं, खुद ही ब्रा ऊपर सरका दी और अपने गुलाबी निप्पल्स को उँगलियों से मसलने लगीं, आँखों में पानी और हवस दोनों भरे थे, “आ ना ऋषि, आज फाड़ दे अपनी भाभी को, तेरे भाई का लौड़ा तो बस दिखावा है, तू जो करेगा वही असली चुदाई होगी।” मैं उनके ऊपर झुका, गले पर गर्म किस किया, पसीने की नमकीन गन्ध नाक में चढ़ी, धीरे-धीरे नीचे आता हुआ उनके बूब्स तक पहुँचा, निप्पल मुँह में लेकर खींचा तो वो कमर उछाल कर सिसक उठीं, “आह्ह्ह्ह… स्स्स्स… हाँ ऐसे ही काट… आह्ह्ह ऊईईई माँ… कितना मज़ा दे रहा है…”
फिर वो खुद मेरी जीन्स की ज़िप खींच कर लंड बाहर निकालीं, देखते ही आँखें फैल गईं, “अरे बाप रे… ये तो राक्षस है… इतना मोटा, नसें फूली हुईं, सुपारा लाल-गुलाबी और चमकदार… तेरी भाभी आज मर जाएगी।” और बिना एक पल गँवाए मुँह में ले लिया, ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग… ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग… गीईईई… गों गों गोग… पूरा गले तक उतार रही थीं, लार की चिपचिपी लड़ी गालों पर लटक रही थी, मुँह से चूँ-चूँ-चपचप की गन्दी आवाज़ें आ रही थीं, मेरे अंडों को मसलते हुए वो पागल हो रही थीं। मैंने उनके बाल खींच कर मुँह चोदना शुरू किया, वो गला घोंटते हुए भी आँखों से और माँग रही थीं।
फिर मैं नीचे झुका, उनकी जाँघें कंधों पर रखीं और चूत पर मुँह लगाया। जैसे ही जीभ अन्दर गई, गर्म, चिकना, मीठा-नमकीन रस मुँह में भर गया, मैंने क्लिट को दाँतों से पकड़ कर खींचा और तीन उँगलियाँ एक साथ अन्दर ठूँस दीं। वो तड़प कर चीखीं, “ओह्ह्ह्ह फक्क्क… ऋषि… मर गई… आह्ह्ह ह ह ह ह्हीईईई… और तेज़ चूस… मेरी चूत पी ले पूरी… ऊउइइइइ…” उनकी जाँघें मेरे सिर को कुचल रही थीं, पूरा बदन काँप रहा था, पसीना और रस मिलकर बिस्तर की चादर को भिगो रहे थे, सिर्फ़ मेरी जीभ और उँगलियों से ही वो तीन बार झड़ीं, हर बार चूत से गर्म फुहार मेरे मुँह पर।
अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था, मैंने अपना मोटा लंड उनके चूतड़ों पर रगड़ा, सुपारा पहले ही रस से चिपचिपा और चमकदार हो चुका था। वो खुद टाँगें और चौड़ी कर के बोलीं, “डाल ना मादरचोद… आज अपनी भाभी को अपनी रंडी बना दे… फाड़ दे चूत को…” मैंने एक ज़ोरदार झटका मारा, पूरा लंड एक ही बार में अन्दर चला गया, वो चीख पड़ीं, “आअह्ह्ह्ह्ह्ह भोसड़ीके… धीरे… फट गई रे… आह्ह्ह…” पर उनकी आँखों में आँसू के साथ हवस की चमक थी। मैंने स्पीड पकड़ ली, थप्प्प्प… थप्प्प्प… चपचपचप… कमरा गूँज रहा था, उनके भारी बूब्स उछल-उछल कर मेरे सीने से टकरा रहे थे, पसीना हमारे बदनों से उड़ रहा था, चूत से गाढ़ा सफ़ेद रस लंड पर लिपट रहा था। वो नाखून मेरी पीठ पर गड़ा कर चीख रही थीं, “हाँ… ऐसे ही… चोद मुझे… ज़ोर से… तेरा भाई तो हिजड़ा है… तू ही असली मर्द है… आह्ह्ह… फिर आ रही हूँ… ऊईईई माँ…”
सिर्फ़ सात-आठ मिनट में वो पाँच बार झड़ीं, हर बार चूत से पानी की नदी बहती, बिस्तर पूरा तरबतर। मैं भी अब झड़ने वाला था, बोलीं, “मुँह में डाल… तेरा गाढ़ा, गरम माल पीना है… एक बूंद भी बाहर नहीं…” मैंने लंड निकाला, वो घुटनों पर बैठ गईं, मुँह खोल कर जीभ बाहर निकाली और मैंने सारा माल उनके गले में उड़ेल दिया, ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग… ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग… वो आँखें बन्द कर के पीती रहीं, चेहरे पर सुकून और भूख दोनों। फिर लंड चाट-चाट कर साफ़ किया और बोलीं, “आज से मैं तेरी सस्ती रंडी हूँ ऋषि… जब जी चाहे चोद लेना, चूत हो या गाण्ड, दोनों तेरी मिल्कियत हैं।”
उस दिन के बाद जब भी मौका मिलता भाभी फोन करके बुला लेतीं और खूब चुदाई होती। कई बार भैया घर पर होने पर भी रिस्क लेकर चुदवातीं। एक बार दीवाली की रात थी, पूरा परिवार घर पर था, बाहर पटाखों की धूम-धड़ाम चल रही थी, भाभी ने अचानक पेट दर्द का नाटक किया और अपने कमरे में चली गईं। दो मिनट बाद मेरा फोन वाइब्रेट किया, मैं चुपके से उनके कमरे में घुसा तो भाभी ने दरवाज़ा बन्द किया और मुझे दीवार से सटा कर बेतहाशा किस करने लगीं, उनकी गर्म जीभ मेरे मुँह में, लार का आदान-प्रदान, चूत की तेज़ गन्ध कमरे में फैली हुई। फिर झटाक से मेरे सारे कपड़े उतार कर मेरा लंड मुँह में ले लिया, ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग… ग्ग्ग्ग्ग्ग्ग… गीईई… पूरा गले तक, आँखों में आँसू, पर रुकने का नाम नहीं। मैंने कहा, “भाभी बाहर सब हैं…” वो हँस कर बोलीं, “चुप रह, बस एक बार चोद दे, मेरी चूत जल रही है।”
वो मुझे बिस्तर पर धकेल कर मेरे ऊपर चढ़ गईं, खुद लंड पकड़ कर चूत में उतारा और उछलने लगीं, “आह्ह्ह… ह्ह्ह… कितना मोटा है तेरा… पूरा पेट भर गया… ऊईईई…” मैंने उनके बूब्स मसलते हुए नीचे से ठोके मारने शुरू किए, बाहर पटाखों की आवाज़ें धड़ाधड़, अन्दर चुदाई की थपथप और सिसकारियाँ। फिर हम 69 में लिपट गए, मैं उनकी चूत पी रहा था, वो मेरा लंड निगल रही थीं, चूत का रस मेरे गालों पर बह रहा था। वो छटपटाने लगीं, “जल्दी डाल फिर… नहीं तो चीख़ पड़ूँगी…” मैंने उन्हें घोड़ी बनाया और पीछे से पेलना शुरू किया, उनकी गाण्ड लाल हो गई, हर ठोके पर थप्प्प्प… थप्प्प्प… वो तकिये में मुँह दबा कर चीख रही थीं, “हाँ… फाड़ दे… आह्ह्ह… आ गई… फिर आ गई…” छह बार झड़ीं, टाँगें काँपने लगीं। आख़िर में मैंने फिर चूत चाटी, क्लिट को दाँतों से काटा तो वो तड़प कर मेरे सिर को दबाते हुए बोलीं, “बस… मर गई… ऊउइइइइइ…” और सातवीं बार झड़ गईं। शान्त हुईं तो मेरे लंड को किस करके बोलीं, “जा बाहर, कोई शक न करे… पर याद रख, तेरी भाभी की चूत अब सिर्फ़ तेरे लिए खुलती है।”