भाभी की गांड से टट्टी निकाली

मैं, सत्यप्रकाश यादव, फिर से हाजिर हूँ एक नई कहानी के साथ, जो मेरे और मेरी पड़ोसन नेहा भाभी के बीच की जबरदस्त चुदाई की है। ये कहानी इतनी गर्म है कि इसे पढ़कर आपका लंड पानी छोड़ देगा और चूत गीली हो जाएगी। तो चलिए, बिना वक्त गंवाए, सीधे कहानी पर आते हैं।

पिछले महीने की बात है, हमारी सिटी में बारिश का कहर बरप रहा था। सात दिन से लगातार बारिश हो रही थी, सड़कें पानी से लबालब थीं, और आसमान में काले बादल छाए हुए थे। एक सुबह, बारिश रुकी और हल्की-सी धूप निकली। मौका पाकर, मेरी पड़ोस की नेहा भाभी ने अपनी छत पर कपड़े सुखाने के लिए डाल दिए। मैं आपको नेहा भाभी के बारे में बता दूँ – उनकी उम्र 34 साल की होगी, रंग एकदम गोरा, लंबे काले बाल, और फिगर 34-30-36 का, ऐसा माल कि मोहल्ले का हर मर्द उनकी चूत और गांड मारने के सपने देखता है। उनकी गांड इतनी मस्त है कि चलते वक्त लचकती है, और बूब्स ऐसे कि बस दबाने को मन करे। भाभी के पति पुलिस में हैं, तो कोई उनके सामने हिम्मत नहीं जुटा पाता, बस सपनों में ही उनकी चुदाई करता है।

खैर, उस सुबह भाभी ने कपड़े सुखाए और नीचे चली गईं। मैं अपनी छत पर एक्सरसाइज करने में बिजी था, सिर्फ शॉर्ट्स में, ऊपर कुछ नहीं पहना था। तभी अचानक बारिश फिर शुरू हो गई, तेज हवा के साथ पानी बरसने लगा। भाभी जल्दी-जल्दी छत पर आईं और कपड़े उतारने लगीं। जल्दबाजी में उनकी लाल रंग की ब्रा और काली पैंटी, जो हमारी छत की साइड में टंगी थीं, वो ले जाना भूल गईं। मैंने मौका देखा और उनकी ब्रा-पैंटी उठा ली। मैंने उन्हें सूंघा, उसमें से भाभी की चूत की मादक खुशबू आ रही थी। मेरा 7 इंच का लंड तुरंत खड़ा हो गया, और मैं सोचने लगा कि ये ब्रा उनके मम्मों को कैसे सहलाती होगी, और पैंटी उनकी चूत और गांड को कैसे चूमती होगी।

मैंने मौके का फायदा उठाया और उनकी ब्रा-पैंटी लेकर, उसी हाफ-न्यूड हालत में उनके घर की तरफ चल पड़ा। छत के रास्ते से उनके घर में दाखिल हुआ। भाभी अपने कमरे में झुककर कुछ ढूंढ रही थीं। उनका गाउन ऊपर उठा हुआ था, और उनकी गोरी, गोल गांड मेरी तरफ चमक रही थी। उस नजारे को देखकर मेरा लंड शॉर्ट्स में तंबू बन गया। मैं उस मंजर में इतना खो गया कि मुझे पता ही नहीं चला कि भाभी कब से मुझे घूर रही थीं। उनकी आवाज से मेरा ध्यान टूटा।

“क्या काम था, सत्यप्रकाश?” भाभी ने थोड़ा शरारती लहजे में पूछा।

मैं हड़बड़ा गया, “अरे, भाभी, वो… आपके कपड़े… छत पर रह गए थे।” इतना बोलते-बोलते मुझे अपने खड़े लंड का ध्यान आया, और मैंने उनके सामने ही शॉर्ट्स के ऊपर से लंड को ठीक किया।

“क्या?” भाभी ने भौंहें चढ़ाईं, लेकिन उनकी आँखों में शरारत थी।

मैंने उनकी ब्रा और पैंटी उनके सामने कर दी, “ये… आप छत पर भूल गई थीं, मैं ले आया।”

भाभी ने नजरें झुकाईं, और हल्के से मुस्कुराते हुए बोलीं, “ओह्ह… तभी मैं कब से ढूंढ रही थी। थैंक यू, तूने मेरी टेंशन कम कर दी। सोच रही थी, अब क्या पहनूँगी?”

मैंने तपाक से पूछ लिया, “मतलब, अभी आपने ब्रा-पैंटी नहीं पहनी?”

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भाभी ने मुझे घूरा, फिर हँसते हुए बोलीं, “बड़ा इंटरेस्ट है तुझे मेरी चूत और मम्मों में?”

मैंने भी हिम्मत जुटाई, “हाँ, भाभी, क्यों न हो? वैसे, बता तो दो, पहना है या नहीं?”

भाभी मेरे करीब आईं, उनकी साँसें मेरे चेहरे पर टकरा रही थीं। “बताऊँ या दिखाऊँ?” उनकी आवाज में मादकता थी।

मैंने मौका नहीं छोड़ा। उनकी कमर में हाथ डाला, उन्हें अपनी तरफ खींचा, और उनके रसीले होंठों पर अपने होंठ रख दिए। मैं उनके होंठ चूसने लगा, उनकी जीभ मेरी जीभ से टकरा रही थी। वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थीं, जैसे वो भी यही चाहती थीं। मैंने उनकी जीभ को चूसा, और वो “उम्म्म… आह्ह…” करके सिसकारियाँ लेने लगीं।

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“भाभी, तुम्हारे होंठ तो लाजवाब हैं,” मैंने पागलों की तरह उनके होंठ चूसते हुए कहा।

“हाय, तू तो बड़ा तेज निकला,” भाभी ने हँसते हुए कहा, “सीधा ‘तुम’ पर आ गया।”

“अरे, भाभी, अभी तो ‘तुम’ हुआ है, थोड़ी देर में बहुत कुछ होगा,” मैंने शरारत से कहा।

भाभी ने मेरी आँखों में देखा, “बड़ी आग लगी है ना तेरे लंड में? दिखा जरा, कितनी गर्मी है तुझमें?”

मैंने कहा, “गर्मी भी दिखाऊँगा, और बारिश भी करवाऊँगा। पहले मुझे तेरी चूत और मम्मों का मजा लेने दे।”

मैंने उनके गाउन के ऊपर से ही उनके 34 इंच के बड़े-बड़े मम्मों को पकड़ लिया। उनके मम्मे इतने मुलायम थे, जैसे रुई के गोले। मैं उन्हें जोर-जोर से मसलने लगा। भाभी की सिसकारियाँ शुरू हो गईं, “आआह्ह… ऊऊह्ह… आराम से, सत्यप्रकाश… दुखता है…”

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मैंने उनकी बात अनसुनी की और उनके गाउन को खींचकर उतार दिया। अब भाभी सिर्फ एक पतली सी स्लिप में थीं, जिसमें से उनके बूब्स साफ दिख रहे थे। मैंने उनकी स्लिप भी उतार दी, और वो मेरे सामने पूरी नंगी थीं। उनकी गोरी चमड़ी, पतली कमर, और 36 इंच की भारी-भरकम गांड देखकर मेरा लंड और सख्त हो गया। भाभी ने भी एक झटके में मेरे शॉर्ट्स उतार दिए, और मेरा 7 इंच का लंड देखकर उनकी आँखें चमक उठीं।

“हाय, सत्यप्रकाश, तेरा लंड तो बिल्कुल सख्त और मोटा है। इससे तो मेरी चूत की खैर नहीं,” भाभी ने लंड को हाथ में पकड़ते हुए कहा।

“चुदाई भी होगी, और तेरी चूत की भराई भी होगी,” मैंने हँसते हुए जवाब दिया।

“क्या मतलब?” भाभी ने पूछा, लेकिन मैंने जवाब देने की बजाय कहा, “पहले इसे अपने मुँह में ले, फिर बताता हूँ।”

भाभी ने मेरे लंड को अपने रसीले होंठों से चूमा, फिर उसे मुँह में ले लिया। वो मेरे लंड को ऐसे चूस रही थीं जैसे कोई लॉलीपॉप हो। उनकी जीभ मेरे लंड के टोपे पर घूम रही थी, और वो उसे गले तक ले जा रही थीं। “उम्म्म… उम्ह्ह…” उनकी चूसने की आवाजें कमरे में गूंज रही थीं। मैं तो सातवें आसमान पर था। भाभी के चूसने की रफ्तार इतनी तेज थी कि मैं 5 मिनट में ही उनके मुँह में झड़ गया। मेरे लंड से गर्म-गर्म वीर्य की पिचकारी निकली, और भाभी ने सारा पानी निगल लिया।

“मस्त टेस्ट है, सत्यप्रकाश। अब मेरी बारी,” भाभी ने आँख मारते हुए कहा।

मैंने भाभी को बिस्तर पर लिटाया और उनके पैर चौड़े किए। उनकी चूत गुलाबी थी, हल्के-हल्के बालों से सजी, और उसमें से मादक खुशबू आ रही थी। मैंने अपना मुँह उनकी चूत पर रखा और जीभ से चाटना शुरू किया। जैसे ही मेरी जीभ उनकी चूत की दरार में गई, भाभी छटपटा उठीं। “आआह्ह… ऊऊह्ह… हाय… सत्यप्रकाश… चाट… और चाट…” वो मेरे सिर को अपनी चूत में दबाने लगीं। मैंने उनकी चूत को चूसा, उनकी क्लिट को जीभ से सहलाया, और उनकी चूत के दाने को हल्के से काटा। भाभी की सिसकारियाँ तेज हो गईं, “आआह्ह… ऊईई… मम्मम… मजा आ रहा है… और चूस… आआह्ह…”

थोड़ी देर बाद भाभी की चूत से फव्वारा निकल गया। उनका गर्म-गर्म पानी मेरे मुँह में था, नमकीन और मादक। मैंने सारा पानी चाट-चाटकर साफ कर दिया। भाभी हाँफ रही थीं, “हाय… सत्यप्रकाश… अब मत तड़पा… डाल दे अपना लंड मेरी चूत में…”

मैंने हँसते हुए कहा, “एक शर्त पर।”

“बोल, सब मंजूर है। तेरे लंड के लिए तो पैसे भी दे दूँगी, बस मेरी चूत फाड़ दे,” भाभी ने बेताबी से कहा।

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“पैसे नहीं, मुझे तेरी गांड चाहिए,” मैंने शरारत से कहा।

भाभी थोड़ा सोच में पड़ गईं, फिर शर्माते हुए बोलीं, “ठीक है, लेकिन मेरी गांड पहली बार चुदेगी, तो आराम से करना।”

मैंने पूछा, “तेरा पति तेरी गांड नहीं मारता?”

भाभी ने हँसते हुए कहा, “उनके लंड से मेरी चूत ही शांत नहीं होती, गांड का नंबर कहाँ से आए? चल, अब बातें छोड़, लंड डाल ना।”

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मैंने भाभी की टाँगें चौड़ी कीं और अपने लंड को उनकी चूत पर रगड़ना शुरू किया। भाभी की चूत पहले से गीली थी, और मेरे लंड के टोपे को रगड़ते ही वो सिसकारने लगीं, “आआह्ह… ऊऊह्ह… सत्यप्रकाश… डाल दे… मेरी चूत तेरी रंडी है… फाड़ दे इसे…”

मैंने अपने लंड का टोपा उनकी चूत में डाला। भाभी को कोई दिक्कत नहीं हुई, लेकिन जैसे ही मैंने पूरा लंड एक झटके में उनकी चूत में उतारा, भाभी चिल्ला उठीं, “ऊई… माँ… मर गई… सत्यप्रकाश… बाहर निकाल… आआह्ह… मार डाला तूने…”

मैंने उनकी कमर को मजबूती से पकड़ा और थोड़ा रुक गया। जब भाभी थोड़ा नॉर्मल हुईं, मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए। अब भाभी को भी मजा आने लगा, और वो अपनी गांड उछाल-उछालकर मेरा लंड लेने लगीं। “आआह्ह… ऊऊह्ह… हाय… और तेज… फाड़ दे मेरी चूत… आआह्ह…”

बाहर बारिश का शोर था, और अंदर भाभी की चुदाई का आलम। उनकी सिसकारियाँ, “आआह्ह… ऊईई… चोद… और चोद…”, मेरे धक्कों के साथ ताल मिला रही थीं। मैंने भाभी को तीन बार चोदा उस दिन। तीसरी बार जब मैं झड़ने वाला था, मैंने धक्कों की रफ्तार बढ़ा दी। भाभी चिल्ला रही थीं, “आआह्ह… हाय… मेरी चूत… और तेज… फाड़ दे…” मैंने बिना कुछ बोले अपने लंड से गर्म-गर्म वीर्य की पिचकारी उनकी चूत में छोड़ दी।

भाभी हाँफते हुए बोलीं, “कोई बात नहीं, मैं गोली खा लूँगी। तू जब भी चोदे, मेरी चूत में ही पानी निकाला कर। अब मैं तेरी ही हूँ। जब मन करे, आ जाना अपनी रंडी को चोदने।”

हम दोनों कुछ देर नंगे ही बिस्तर पर पड़े रहे। मेरा लंड फिर से खड़ा होने लगा, तो मैंने भाभी की गांड को सहलाना शुरू किया। उनकी गांड इतनी मुलायम थी कि मेरा मन उसे चोदने को करने लगा।

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भाभी ने हँसते हुए कहा, “अरे, अभी नहीं… गांड की चुदाई कल करेंगे। शुरुआत ही गांड से करेंगे।”

मैंने अपना शॉर्ट्स पहना और छत के रास्ते से अपने घर वापस आ गया। खाना खाकर अपने कमरे में चला गया, और कब नींद लगी, पता ही नहीं चला। सुबह माँ ने मुझे उठाया, “उठ जा, सत्यप्रकाश, सुबह हो गई।”

मैं बाथरूम में फ्रेश होने गया। वहाँ माँ की पैंटी और ब्रा पड़ी थी। मैंने माँ की पैंटी उठाई और सूंघी। उसमें से मादक खुशबू आ रही थी, और मेरा लंड फिर खड़ा हो गया। मेरे दिमाग में माँ की चुदाई के ख्याल आने लगे। मैं फ्रेश होकर बाहर आया। माँ मेरे लिए चाय लेकर आईं। जब वो चाय देकर मुड़ीं, मेरा ध्यान उनकी गांड पर गया। माँ की गांड बहुत बड़ी थी, और चलते वक्त लचक रही थी। आज पहली बार मैंने माँ की गांड को गौर से देखा, और मुझे भाभी की गांड की याद आ गई। आज तो भाभी की टाइट गांड मारनी थी।

चाय पीकर मैं छत पर गया। आसमान में बादल छाए थे, मौसम सुहावना था। मैं भाभी की छत पर चला गया और सीढ़ियों से नीचे उनके पास पहुँचा। भाभी मुझे देखकर बोलीं, “क्या बात, सत्यप्रकाश, सुबह-सुबह आ गया?”

मैंने कहा, “भाभी, तुम्हारी टाइट गांड मुझे खींच लाई।”

भाभी मुस्कुराईं और मैंने उन्हें कसकर पकड़ लिया। भाभी बोलीं, “अरे, अभी-अभी मेरे पति घर से निकले हैं। अगर तू उनके सामने आ जाता, तो पता नहीं क्या होता।”

मैंने कहा, “अब छोड़ो, कुछ हुआ तो नहीं।” मैंने भाभी को बाहों में उठाया और उनके बिस्तर पर ले गया। मैंने उन्हें चूमना शुरू किया, और भाभी भी मस्त होने लगीं। मैंने धीरे-धीरे उनके कपड़े उतारे, और उन्हें नंगा कर दिया। भाभी को उल्टा लिटाकर मैं उनकी गांड को चूमने लगा। भाभी समझ गईं कि आज उनकी गांड का छेद खुलेगा।

मैंने अपने कपड़े उतारे और नंगा होकर भाभी को चूमने लगा। सुबह से ही माँ की पैंटी और गांड देखकर मैं उत्तेजित था। मैंने भाभी को घोड़ी बनने को कहा। भाभी घोड़ी बन गईं। मैंने अपने लंड और उनकी गांड पर थूक लगाया और लंड को उनकी गांड के छेद पर रखा। धीरे-धीरे लंड डालना शुरू किया। भाभी चिल्लाईं, “आआह्ह… ऊऊह्ह… हाय… मेरी माँ… मत डाल… मेरी गांड फट जाएगी… बाहर निकाल… आआह्ह…”

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मैंने उनकी बात नहीं सुनी और धीरे-धीरे लंड को आगे-पीछे करने लगा। भाभी को दर्द हो रहा था, क्योंकि उनकी गांड बहुत टाइट थी। मैंने धीरे-धीरे अपनी रफ्तार बढ़ाई, और भाभी की सिसकारियाँ दर्द से मजे में बदलने लगीं, “आआह्ह… ऊईई… सत्यप्रकाश… धीरे… हाय… मजा भी आ रहा है… आआह्ह…”

थोड़ी देर बाद मैंने भाभी को सीधा लिटाया और उनके मम्मों को मुँह में लेकर चूसने लगा। साथ ही लंड उनकी गांड में डालने लगा। भाभी की गांड में लंड डालने का मजा ही अलग था। मैंने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी। भाभी चिल्ला रही थीं, “आआह्ह… ऊईई… उफ्फ… सत्यप्रकाश… मेरी गांड… आआह्ह…”

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अचानक, मैंने देखा कि मेरे लंड पर भाभी की टट्टी लग गई। वो हल्की लाल थी, शायद उनकी टाइट गांड की वजह से हल्का खून भी निकला था। भाभी ने अपने चूतड़ों को छुआ और टट्टी देखकर शरमा गईं। उनकी गाल लाल हो गए, और वो हड़बड़ाते हुए बोलीं, “हाय… ये क्या… सत्यप्रकाश… ये… मैं… मैं अभी साफ करती हूँ।” वो बिस्तर से उठीं, लेकिन उनकी शर्मिंदगी साफ दिख रही थी। उनकी आँखें नीची थीं, और चेहरा लज्जा से भरा हुआ था।

भाभी बाथरूम की तरफ भागीं और एक गीला तौलिया लिया। वो वापस आईं और मेरे सामने बैठकर मेरे लंड को अपने नाजुक हाथों से साफ करने लगीं। वो धीरे-धीरे मेरे लंड पर तौलिया रगड़ रही थीं, उनकी उंगलियाँ मेरे लंड के टोपे को छू रही थीं, और वो शर्म से आँखें नीचे किए हुए थीं। “सॉरी, सत्यप्रकाश… ये… पहली बार हुआ… मेरी गांड इतनी टाइट थी… शायद…” वो धीमी आवाज में बोलीं।

मैंने हँसते हुए कहा, “अरे, भाभी, इसमें शरमाने की क्या बात? ये तो चुदाई का हिस्सा है।”

भाभी ने मेरी तरफ देखा, उनकी आँखों में शरारत और शर्म का मिश्रण था। “तू तो बड़ा बेशरम है,” वो हँसते हुए बोलीं और मेरे लंड को और ध्यान से साफ करने लगीं। उन्होंने अपने हाथों से मेरे लंड को पकड़ा, उसे गीले तौलिए से रगड़ा, और फिर अपने नाजुक उंगलियों से मेरे लंड के हर हिस्से को साफ किया। वो मेरे लंड के टोपे को हल्के-हल्के सहला रही थीं, जिससे मेरा लंड फिर से खड़ा होने लगा।

“हाय, ये फिर से तैयार हो गया?” भाभी ने शरारती अंदाज में कहा, और मेरे लंड को हल्के से दबाया।

मैंने कहा, “भाभी, तुम्हारी गांड ने तो इसे और भूखा कर दिया। अब फिर से चुदाई शुरू करें?”

भाभी ने हँसते हुए कहा, “हाँ, लेकिन अब और आराम से। मेरी गांड को थोड़ा रेस्ट दे दे।” मैंने भाभी को फिर से घोड़ी बनाया और उनकी गांड में लंड डालना शुरू किया। इस बार मैंने और थूक लगाया, और धीरे-धीरे लंड अंदर सरकाया। भाभी फिर से सिसकारने लगीं, “आआह्ह… ऊईई… सत्यप्रकाश… धीरे… हाय… तेरे लंड ने मेरी गांड का छेद चौड़ा कर दिया… आआह्ह…”

मैंने 15-20 मिनट तक उनकी गांड की चुदाई की, और आखिर में अपने लंड से गर्म-गर्म वीर्य की पिचकारी उनकी गांड में छोड़ दी। भाभी के चूतड़ काँप रहे थे, और वो हाँफते हुए मेरे ऊपर गिर पड़ीं। “हाय… सत्यप्रकाश… तूने तो मेरी गांड की बैंड बजा दी…” वो हँसते हुए बोलीं।

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