नमस्कार दोस्तों। आज मैं अपनी कहानी लिखने जा रही हूँ। ये कहानी आज से दो साल पहले की है, जब मैं अठारह साल की थी। मेरे परिवार में पापा, मम्मी और दो छोटी बहनें, रिंकी और पिंकी, हैं। मम्मी पिंकी के जन्म के बाद से ही बीमार रहने लगी थीं और एक दिन उनका देहांत हो गया। हमारी रिश्तेदारी में सिर्फ़ एक बुआ हैं, जो दूसरे शहर में रहती हैं।
जब मम्मी का देहांत हुआ, तब मैं अठारह साल की थी। मम्मी के जाने के बाद बुआ अपने बच्चों के साथ कुछ दिन हमारे घर आ गईं। मम्मी की मौत के बाद मेरा स्कूल जाना बंद हो गया था, क्योंकि घर की सारी ज़िम्मेदारी मुझ पर आ गई थी। मेरा सारा दिन घर संभालने और रिंकी-पिंकी की देखभाल में बीत जाता था।
पापा भी उदास रहने लगे थे। वो अक्सर दारू पीने लगे थे और उनके चेहरे पर हर वक्त एक उदासी छाई रहती थी। पापा को ऐसे उदास देखकर मैं और बुआ अंदर ही अंदर बहुत दुखी थे, पर कोई क्या कर सकता था? मम्मी की मौत का ग़म ऐसा था, जिसे इतनी जल्दी भुलाया नहीं जा सकता था।
इसी तरह दिन बीत रहे थे। एक दिन मैं और बुआ पापा के कमरे में उनका बिस्तर ठीक कर रहे थे। तभी मुझे लगा कि बिस्तर पर कुछ गिरा हुआ है। जब मैंने उसे छूकर देखा, तो मेरा हाथ चिपचिपा हो गया। चादर पर कुछ सफ़ेद, गाढ़ा-सा पदार्थ पड़ा था। मैं सोचने लगी कि शायद पापा से कुछ गिर गया हो। मैंने उसे साफ करने से पहले बुआ को दिखाया और पूछा, “बुआ, ये क्या है और ये यहाँ कैसे गिरा?” बुआ, जो शादीशुदा थीं, उस गाढ़े सफ़ेद पानी को देखते ही समझ गईं, पर उन्होंने मुझसे कुछ नहीं कहा और सिर्फ़ साफ करने को कहा।
मैंने बिना सवाल-जवाब किए उस गाढ़े सफ़ेद पानी को साफ कर दिया, पर मेरे मन में अब इसके बारे में जानने की उत्सुकता जाग गई थी। उस दिन बुआ का मूड भी कुछ उखड़ा-उखड़ा था और उन्होंने मुझसे ज़्यादा बात नहीं की। अगले दिन रात को बुआ ने मुझे अपने पास बुलाया और कहा, “बेटी, मैं तुमसे एक बात कहना चाहती हूँ, अगर तुम ठंडे दिमाग से सोचो तो।”
मैंने सिर हिलाकर कहा, “बुआ, आप जैसा कहेंगी, वैसा ही होगा।” बुआ बोलीं, “मैं दो-तीन दिन बाद अपने घर चली जाऊँगी। उसके बाद तुम्हें ही इस घर को संभालना है। तुम्हें अपनी छोटी बहनों की माँ की तरह देखभाल करनी है। अब तुम ही इनकी माँ हो। और एक बात, घर मर्दों से नहीं, औरत से चलता है।”
बुआ ने कहा, “अब तुम्हें इस घर को एक लड़की की तरह नहीं, एक औरत की तरह संभालना है। पापा तो नौकरी और बाहर का काम देख सकते हैं।” फिर बुआ ने दोनों बहनों को बुलाया और कहा, “आज से तुम इसे दीदी नहीं, मम्मी बुलाओगी।” दोनों बहनों ने हाँ में सिर हिला दिया।
बुआ ने मेरी ओर देखकर कहा, “अब इन्हें बड़ी बहन की नहीं, माँ की ज़रूरत है।” जब बुआ ने ये बात कही, तो मुझे थोड़ा अटपटा लगा। अंदर ही अंदर एक अजीब-सी फीलिंग होने लगी। बुआ ने कहा, “खाने की तैयारी कर लो।” वो अपने काम में लग गईं और मैं भी खाना बनाने लगी।
रात को जब सब खाना खाने बैठे, तो रिंकी बोली, “मम्मी, मुझे सब्ज़ी देना।” जब उसने मुझे मम्मी कहा, तो मैं शरमा गई, क्योंकि मेरे पास ही पापा बैठे थे। उन्हें भी थोड़ा अजीब लगा, पर बुआ ने पापा को समझाया, “बड़ी बहन माँ समान होती है।” मैं नज़रें नहीं उठा पा रही थी, और दोनों बहनें मुझे मम्मी कह रही थीं।
आज पापा के चेहरे पर उदासी की जगह एक अलग-सी मुस्कान थी। मैं उनसे नज़र नहीं मिला पा रही थी। खाना ख़त्म होने के बाद सब अपने-अपने बिस्तर पर चले गए। मैं बर्तन धोने रसोई चली गई। आज मुझे कुछ अजीब-सा लग रहा था। सचमुच, एक अजीब-सी स्थिति थी।
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बर्तन धोकर मैं अपने बिस्तर पर चली गई। मेरी दोनों बहनें मेरे साथ ही सो रही थीं। उस रात मैं सारी रात अजीब-सी कल्पनाओं में खोई रही। अगले दिन मैंने दोनों बच्चों को तैयार करके स्कूल भेज दिया। बच्चों के जाने के बाद पापा बोले, “निशी, मेरा नाश्ता तैयार कर दो, मुझे ड्यूटी पर जाना है।”
मैंने जल्दी से खाना तैयार किया और पापा चले गए। उनके सामने आज भी मेरी नज़रें नहीं मिलीं, पर उनकी आँखों में आज कुछ अलग-सी चमक दिख रही थी, जैसे उन्हें कुछ मिल गया हो। पापा के जाने के बाद बुआ ने कहा, “निशी, अब तुमने घर को अच्छी तरह संभाल लिया है। एक बात और, तुम्हारे पापा यहाँ से पोस्टिंग करवा रहे हैं। अगले एक-दो हफ़्ते में उनकी पोस्टिंग हमारे शहर में हो जाएगी और एक घर भी देख लिया गया है।”
बुआ ने पूछा, “तुम नाराज़ तो नहीं हो ना कि मम्मी के देहांत के बाद तुम्हारी पढ़ाई बंद हो गई और तुम्हें इतनी ज़िम्मेदारी दे दी गई?” मैंने कहा, “बुआ, ऐसी बात नहीं है। मैं खुश हूँ कि मैंने घर संभाल लिया।” बुआ बोलीं, “ये तो ठीक है, बेटी। और एक बात, जो तुम जानना चाहती थी, मैं भूल गई थी। तुमने पूछा था कि पापा के बिस्तर पर वो सफ़ेद-सफ़ेद क्या था।”
बुआ ने कहा, “बेटी, वो उनका वीर्य था। तुम्हारे पापा को अब तुम्हारी मम्मी की कमी बहुत खल रही है। इसलिए वो शराब और रात को ऐसी हरकतों से अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर रहे हैं। तुम जानती हो, मर्द जब अपने हाथ से करते हैं, तो उनकी सेहत पर कितना बुरा असर पड़ता है। मैं उनकी बहन हूँ, मैं नहीं चाहूँगी कि वो अपनी ज़िंदगी बर्बाद करें।”
मुझे बुआ की बात समझ आ रही थी। मैंने कहा, “बुआ जी, तो आप पापा को समझाएँ कि वो ऐसा न करें।” बुआ बोलीं, “निशी, वो मेरे कहने से नहीं रुक सकते। मैं जानती हूँ, रात को एक मर्द का औरत के बिना रहना कितना मुश्किल है। तुम्हारे पापा पिछले पाँच साल से, बीवी के होते हुए भी, तुम लोगों के लिए अकेले जी रहे थे। अब अगर कोई उन्हें समझा सकता है, तो वो एक औरत ही है।”
बुआ ने कहा, “देखो, मेरी बात का बुरा मत मानना। जब तक तुम्हारी मम्मी थीं, मैंने पापा से दूसरी शादी की बात नहीं की। अब जब मम्मी नहीं हैं, मैं जानती हूँ कि वो औरत के बिना नहीं रह सकते। पर तुम तीनों बहनों की ख़ातिर वो अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर लेंगे, जो मैं नहीं होने दूँगी। इसलिए मैं सोचती हूँ कि अब उनकी दूसरी शादी करवानी पड़ेगी।”
बुआ बोलीं, “मुझे चिंता है कि तुम्हारी सौतेली माँ तुम्हारे और बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करेगी। तुमने अच्छा किया जो इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी उठा ली। निशी, एक बात और कहना चाहूँगी, अगर तुम मेरी बात सोच-समझकर मानोगी तो।” मैंने कहा, “बुआ, आप जो कहेंगी, मैं मानूँगी।”
बुआ बोलीं, “देखो, बेटी, तुम्हारी मम्मी की मौत का सबसे ज़्यादा असर तुम्हारे पापा पर पड़ा है। इस उम्र में वो बिल्कुल अकेले पड़ गए हैं।” मैंने कहा, “बुआ, मुझे समझ आता है।” बुआ बोलीं, “तुम अब जवान हो गई हो। देखने में भी अपनी मम्मी की तरह ख़ूबसूरत हो। अगर तुम…”
बुआ ख़ामोश हो गईं। मेरे जवान होने पर ज़ोर देने से मुझे कुछ अजीब-सा महसूस हुआ। मैंने पूछा, “बुआ, अगर मैं क्या?” बुआ चुप रहीं, पर मैंने ज़ोर दिया, तो बोलीं, “जो मैं कहना चाहती हूँ, शायद तुम्हें बुरा लगे।” मैंने कहा, “बुआ, मैं बुरा नहीं मानूँगी।”
बुआ बोलीं, “तुम्हारे पापा अभी सिर्फ़ छत्तीस साल के हैं। देखने में 28 के लगते हैं। फिट और तंदुरुस्त हैं। तुम्हारी मम्मी की मौत के बाद उनकी ज़िंदगी में एक खालीपन आ गया है। मैं चाहती हूँ कि उनका वो खालीपन भर जाए।” मैंने पूछा, “कैसे?” बुआ बोलीं, “जैसे तुम अपनी बहनों की मम्मी बन सकती हो, वैसे अपने पापा की पत्नी भी बन सकती हो।”
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ये सुनकर मेरे होश उड़ गए। मैं सिर्फ़ अठारह साल की थी। अपने पापा के बारे में ऐसा सोच भी नहीं सकती थी कि मैं उनसे शादी करके उनकी पत्नी बनूँगी और उनकी बच्चों की मम्मी बनूँगी। बुआ ने ये क्या कह दिया? काफी देर तक ख़ामोशी रही। फिर बुआ ने कहा, “क्या हुआ, निशी?” मैंने कहा, “बुआ, ये आप क्या बोल रही हैं? ऐसा नहीं हो सकता, वो मेरे पापा हैं।”
बुआ बोलीं, “मुझे पता था, तुम ऐसा ही कहोगी। इसलिए मैं तुम्हें बताना नहीं चाहती थी। तुम लोगों को सिर्फ़ अपनी फ़िक्र है, दूसरे की नहीं। तुम दो-तीन साल बाद शादी करके अपने घर चली जाओगी। फिर तुम्हारी बहनें भी चली जाएँगी। तुमने सोचा, अकेले जीना कितना मुश्किल है?”
बुआ ने कहा, “अगर पापा ने किसी और लड़की से शादी कर ली, तो वो तुम्हारी बहनों और तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव करेगी, ये तुम देख लो। तुम्हारी मम्मी के ज़िंदा होने पर पापा कितने ख़ुश थे, और अब देखो। उन्हें एक औरत के प्यार की ज़रूरत है। अगर किसी दूसरी लड़की से शादी की, तो पता नहीं वो कैसी निकलेगी। वैसे भी, वो अभी जवान हैं, स्मार्ट हैं।”
बुआ बोलीं, “तुम भी ख़ूबसूरत हो। मर्द को ख़ुश रखने के काबिल हो चुकी हो। तुम्हारे हारमोंस बदलकर तुम्हें नारी का रूप दे रहे हैं। पिछले महीने तुम्हारी मम्मी ने बताया था कि तुम्हारी माहवारी शुरू हो गई है। अठारह साल की उम्र में तुम्हारी छातियाँ भी बड़ी हो गई हैं। तुम पर नई-नई जवानी आ रही है। तुम बहुत ख़ुशक़िस्मत हो कि तुम्हें अठारह साल की उम्र में पापा जैसा मर्द मिल रहा है।”
बुआ ने कहा, “जवान लड़की को इस उम्र में प्यार की बहुत चाहत होती है। वो तुम्हें हर तरह से ख़ुश रख सकते हैं। पापा से शादी करके तुम उनका जीवन, अपनी बहनों का भविष्य और ख़ुद की ज़िंदगी बेहतर कर सकती हो।” बुआ की बात से मेरा दिल थोड़ा पिघलने लगा। मैं पापा के बारे में सोचने लगी।
बुआ ने पूछा, “क्या ख़याल है?” उन्हें लगा कि मैं पिघल रही हूँ। बुआ बोलीं, “निशी, ये मत सोचो कि वो तुम्हारे पापा हैं। बस एक बार सोचो कि वो एक मर्द हैं और तुम उनकी बेटी नहीं, एक औरत हो। तुम्हारे पापा में क्या कमी है? अभी भी सुंदर, जवान हैं। मैं कहती हूँ, अगर वो तुम्हारी जैसी किसी लड़की को प्रपोज़ करें, तो शायद ही कोई मना करे।”
बुआ बोलीं, “तो फिर तुम क्यों नहीं? वो तुम्हें हर तरह से ख़ुश रखेंगे। तुम दोनों एक-दूसरे को अच्छे से जानते हो। मान लो, अगर तुमने हाँ कर दी, तो तुम्हें इस फैसले पर कभी पछताना नहीं पड़ेगा। इतनी ख़ुशी मिलेगी। बोलो, तुम क्या कहती हो?” मैंने कहा, “बुआ, वो मेरे पापा हैं। मैं उनकी बेटी हूँ। उन्होंने मुझे पैदा किया है। मैं अभी सिर्फ़ अठारह साल की हूँ। अभी हाई स्कूल भी पास नहीं किया। वो कभी नहीं मानेंगे। मुझे सोचने के लिए समय चाहिए।”
बुआ बोलीं, “दो घंटे बाद तुम्हारे पापा घर आएँगे और मुझे बस स्टैंड छोड़ने जाएँगे। तब तक तुम सोच लो।” मैंने कहा, “ये तो बहुत कम समय है।” बुआ बोलीं, “सिर्फ़ दो घंटे हैं तुम्हारे पास। तुम्हें फैसला करना है कि तुम मेरी भाभी बनोगी या मैं तुम्हारी बुआ ही रहूँगी।”
उसके बाद बुआ दूसरे कमरे में पैकिंग करने चली गईं। मैं अपने कमरे में पापा के बारे में सोचने लगी। पापा की हाइट 5 फुट 11 इंच है। उनका बदन गठीला, मजबूत है। 52 इंच की चौड़ी छाती, जिस पर काले-घने बाल हैं। वो दिखने में बिल्कुल संजय दत्त जैसे हैं। उम्र में 28 के लगते हैं।
पता नहीं क्यों, उनके बारे में सोचते हुए मुझे एक औरत होने का एहसास होने लगा। जब से बहनों ने मुझे मम्मी कहना शुरू किया, तभी से मैं पापा की ओर खिंच रही थी। आज बुआ ने ये कहकर मुझे और उनके करीब ढकेल दिया। पापा वाक़ई बहुत हैंडसम और गोरे हैं।
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वो इतनी उम्र होने के बावजूद बड़े नहीं लगते। उन्हें देखकर कोई नहीं कहेगा कि वो शादीशुदा हैं और तीन लड़कियों के पिता हैं। जब मैं उनके साथ कहीं जाती, तो लोग सोचते कि वो मेरे पति या बॉयफ्रेंड हैं। मेरी सहेलियाँ कहतीं, “देख, निशी, हमारे जीजा जी आ गए। जीजू को अपनी जलेबी खिलाई कि नहीं?” मैं “धत्” कहकर शरमा जाती। कोई भी लड़की उनकी ओर आकर्षित हो सकती थी। एक लड़की अपने होने वाले पति में जो चाहती है, वो सब गुण पापा में थे।
बुआ ने कहा था कि पापा मुझे हर तरह से ख़ुश रखेंगे। उनका मतलब था कि पापा मेरी तसल्ली से चुदाई करेंगे। मैं शरमाने लगी। मैं ड्रेसिंग टेबल के पास पहुँची। मैंने लाल रंग का सलवार-कुर्ता पहना था। शीशे में ख़ुद को देखकर शरमा गई। मैं सोचने लगी, “क्या मैं सचमुच शादी के लायक हो गई हूँ? क्या मेरा बदन किसी मर्द को आकर्षित करने के काबिल है?”
मेरी नज़र अपनी 32 साइज़ की चुचियों पर गई, जो एकदम टाइट थीं। पापा के बारे में सोचते हुए मेरी साँसें तेज़ चल रही थीं। मेरी चुचियाँ ऊपर-नीचे हो रही थीं। मेरे गुलाबी निपल्स समोसे की नोक जैसे खड़े हो गए थे। उन्हें देखकर कोई भी मर्द दीवाना हो सकता था। मेरी चूत में भी हल्का-हल्का पानी बहने लगा था। मैं हैरान थी कि मुझे ये क्या हो रहा है।
पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। पापा के बारे में सोचते हुए मैं मुस्कुराने लगी। ख़ुद से बोली, “क्या मैं इतनी बड़ी हो गई हूँ कि किसी मर्द के काबिल हो गई हूँ? क्या मैं पापा जैसे मर्द को संभाल लूँगी?” ये सोचते ही मेरी चूत में खुशी-सी होने लगी। बुआ ठीक कह रही थीं। मैं अपने बाल ठीक करते हुए ख़ुद से बोली, “मैं भी पापा जैसे हैंडसम, जवान और तंदुरुस्त जीवनसाथी की कल्पना करती थी। तो पापा क्यों नहीं?”
मेरी तमन्ना पूरी होगी और बहनों का भविष्य भी सुरक्षित होगा। कोई अनजान मेरे साथ कैसा बर्ताव करेगा, ये नहीं पता। पर पापा मुझे बहुत प्यार करेंगे। लेकिन डर भी लग रहा था कि क्या मैं उन्हें झेल पाऊँगी? उनकी मर्दानगी तो देखते ही बनती है। तभी मेरा ध्यान उस गाढ़े सफ़ेद पानी पर गया। मैं ख़ुद से बोली, “पापा का लंड कितना लंबा होगा? अगर इतना मेरे अंदर डालेंगे, तो…” मैं शरमा उठी।
मैं थोड़ा-बहुत सेक्स के बारे में जानती थी, पर ज़्यादा कभी नहीं सोचा। मैं ख़ुद को बच्ची ही समझती थी। लेकिन सोलहवाँ साल लगते ही लड़की की जवानी चढ़ने लगती है। मर्दों की नज़र उसके अंगों पर गड़ने लगती है। उसकी चूत में खुजली होने लगती है। पानी बहने लगता है। उसके अंदर किसी मर्द की बाँहों में समाने की इच्छा जागती है। उसकी चूत का दाना फड़फड़ाने लगता है। ये प्रकृति का नियम है।
मेरी चुचियाँ नींबू से बड़े होकर मौसम्मी का रूप ले चुकी थीं। उनमें इतना रस भरा था कि कोई भी मर्द देखकर बता सकता था। मेरी चूत पर रेशमी बाल आने शुरू हो चुके थे। पता नहीं कैसे मेरे दोनों हाथ कभी चुचियों पर, कभी सलवार के ऊपर चूत पर चले गए। मुझे चूत से कुछ गीला-सा महसूस हुआ। मैंने देखा, तो मेरा काम-रस बह रहा था। मैं शरमा गई।
पता नहीं क्यों, मैंने सलवार का नाड़ा खोल दिया। अपनी टाँगें खोलकर चूत को सहलाने लगी। मस्ती में मेरी आँखें बंद हो गईं। कब मैंने एक उंगली चूत में डाल दी, पता ही नहीं चला। मैं शीशे में ख़ुद को देखकर सोच रही थी, “क्या मैं जवान हो गई हूँ? क्या मेरी चूत को अब लंड की ज़रूरत है?” मेरी चूत किसी लंबे, मोटे लंड की चाहत रखने लगी थी।
पता नहीं कब दो घंटे बीत गए। पापा भी जल्दी आ गए। मुझे एहसास हुआ कि मेरे हाथ कहाँ हैं। शीशे में देखा, तो मेरी चुचियों के गुलाबी निपल्स कड़े होकर खड़े थे। मेरी सलवार गीली थी। कोई भी बता सकता था कि मेरी हालत क्या थी।
मैं आपको अपने बारे में बता दूँ। उस समय मैंने अठारहवें साल में कदम रखा था। मुझ पर जवानी ऐसी चढ़ी थी कि कोई भी मर्द मेरे हुस्न को लूटने के लिए पागल हो सकता था। मेरी लंबाई 5 फुट 5 इंच थी। मैं मम्मी-पापा की तरह दूध-सी गोरी थी। भगवान ने मुझे तीखे नैन-नक्श और हुस्न फुर्सत से दिया था। जब मैं शरमाती, तो मेरा गोरा रंग लाल हो जाता, जैसे बिजली गिर जाए।
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मेरी 32 साइज़ की गांड और 34 साइज़ की टाइट, गद्देदार चुचियाँ थोड़ी बाहर निकली हुई थीं। मेरी लचकती गांड के साथ जब मैं चलती, तो मेरे चूतड़ आपस में रगड़कर ऊपर-नीचे होते। इस नज़ारे को देखकर ना जाने कितने मर्दों का पानी पैंट में निकल जाता होगा। मैंने अपनी जवानी को संभालकर रखा था। मम्मी-पापा के संस्कारों की वजह से मैंने इसे अपने पति के लिए बचाकर रखा था।
शीशे के सामने अपनी जवानी निहारते हुए मैं पापा के बारे में सोच रही थी। “क्या सचमुच मेरी जवानी को लूटने का हक़ पापा को है? क्या वो मेरे सपनों के राजकुमार हैं?” तभी मेरी नज़र पापा की तस्वीर पर पड़ी। मैंने तस्वीर उठाई और गौर से देखने लगी। मेरे हाथ तस्वीर पर फिरने लगे। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं पापा को छू रही हूँ।
पापा का आकर्षण ऐसा था कि कोई भी लड़की उनकी ओर खिंच सकती थी। एक लड़की अपने पति में जो चाहती है, वो सब पापा में था। मैंने बुआ की बात मानकर उन्हें अपना साजन मान लिया। पता नहीं क्या हुआ, मैंने पापा की तस्वीर को चूम लिया। मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया। मैं तस्वीर देखकर शरमाने लगी, जैसे वो मुझे निहार रहे हों।
मैं सोचने लगी कि बुआ ठीक कह रही थीं। वो मेरे पापा नहीं, मेरे होने वाले बच्चों के पापा हैं। ये सब सोचते हुए दो घंटे बीत गए। पापा जल्दी आ गए, क्योंकि उन्हें बुआ को बस स्टैंड छोड़ने जाना था। पापा को देखकर मुझे आज कुछ ज़्यादा अच्छा लग रहा था।
मैं अब पापा को अपने पति की तरह देखने लगी। मेरे मुँह से अचानक निकल गया, “लगता है ये आ गए।” ये कहते ही मैं शरमा गई और बोली, “हाय राम, अभी से ये क्या सोच रही हूँ?” बुआ मेरे कमरे में आईं और पूछा, “निशी, तुमने क्या फैसला किया? तुम मेरी क्या बनना पसंद करोगी?”
मुझे बड़ी शर्म आ रही थी। बुआ ने फिर कहा, “बताओ, निशी, तुम मेरी क्या बनना पसंद करोगी?” मैंने शरमाते हुए मुँह नीचे करके धीरे-धीरे मुस्कुराने लगी। मेरे गाल शर्म से लाल हो गए। मेरी ज़ुबान साथ नहीं दे रही थी। मेरी मुस्कुराहट देखकर बुआ समझ गईं, पर वो मेरे मुँह से सुनना चाहती थीं।
बुआ बोलीं, “बोलो ना, निशी, क्या बनोगी? मेरी भाभी या मैं तुम्हारी बुआ ही रहूँगी?” मैंने बहुत धीमे से कहा, “वो… मैं आपकी भाभी…” और चेहरा छुपा लिया। बुआ मेरे पास आईं, मुझे गले लगाया और बोलीं, “सच? बनोगी तुम मेरी भाभी?” मैंने शरमाते हुए आँखें नीचे करके हाँ में सिर हिलाया।
बुआ ने मुझे कसकर गले लगाया और ख़ुशी से चिल्लाते हुए बोलीं, “ओह्ह, भाभी, मेरी भाभी! तुमने बहुत अच्छा फैसला लिया है। आज से मैं तुम्हें भाभी कहूँगी और तुम मुझे बुआ नहीं, दीदी कहोगी।” मैंने हाँ में सिर हिलाया। बुआ अब मुझे तुम नहीं, आप कह रही थीं। मुझे अच्छा लग रहा था, पर थोड़ा अटपटा भी।
मैंने धीरे से कहा, “दीदी, आप मुझे आप नहीं, तुम कहो।” बुआ बोलीं, “नहीं, भाभी, अब तुम मुझसे छोटी नहीं हो। भैया मुझसे बड़े हैं और तुम उनकी होने वाली बीवी हो। तुम्हारा पद बड़ा है। मेरा तुम्हारी इज़्ज़त करना फ़र्ज़ है।”
मैं बुआ की बात समझ गई। बुआ ने फिर गले लगाकर कहा, “भाभी, अब तुम इस घर की लक्ष्मी हो, इस घर की इज़्ज़त, इस घर की मालकिन। और सबसे बड़ी बात, तुम अब भैया के दिल की मालकिन हो।” बुआ ने शरारत से मेरी चुचियों को दबा दिया। मैं बुरी तरह शरमा गई।
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बुआ बोलीं, “भाभी, मुझे यक़ीन है, जिस तरह तुमने घर संभाला, उसी तरह भैया को भी संभाल लोगी।” मैंने धीरे से कहा, “दीदी, मैं कोशिश करूँगी।” बुआ बोलीं, “भाभी, अब बुआ नहीं, दीदी कहो। भैया से रिश्ता बदलेगा, तो मुझसे भी बदलेगा। भैया तुम्हारे साथ होंगे, तो उनकी बहन तुम्हारी ननद होगी। सही ना? तुम्हारी मम्मी और मेरा रिश्ता ननद-भाभी से बढ़कर सहेली जैसा था।”
बुआ ने शरारत से कहा, “भाभी, कोशिश क्या? भैया को तो तुम संभाल ही लोगी।” बुआ के इस तरह बोलने से मैं शरमा गई। वो कह रही थीं कि मैं पापा को रात में बिस्तर पर संभालूँगी। फिर बुआ मुझे मम्मी की अलमारी के पास ले गईं। अलमारी खोलकर मम्मी की कुछ साड़ियाँ और गहने दिए। एक हार देते हुए बोलीं, “भाभी, ये हार इस घर की बहू को दिया जाता है। अब तुम इस घर की बहू हो, तो इस पर तुम्हारा हक़ है।”
बुआ ने साड़ी और ब्लाउज़ मेरे नाप के बनवा रखे थे। शायद वो काफ़ी समय से इसकी तैयारी कर रही थीं। मैंने धीरे से कहा, “दीदी, पहले आप उनसे बात तो कर लें।” बुआ ने छेड़ते हुए कहा, “अभी से उनको?” फिर पायल देते हुए बोलीं, “अच्छा, आदत डाल लो। औरत अपने पति का नाम नहीं लेती।” बुआ बोलीं, “उनकी चिंता मत करो, मैं बात कर लूँगी।”
मेरा दिल कह रहा था कि पापा इस रिश्ते से मना कर देंगे। मुझे उम्मीद कम थी। लेकिन फिर सोचा, किसी मर्द को मेरे जैसी कुंवारी लड़की चोदने को मिले, तो वो कैसे मना करेगा? फिर बुआ बोलीं, “चलो, मैं चलती हूँ।” मैंने कहा, “दीदी…”
बुआ: “हाँ, भाभी, बोलो।”
मैं: “दीदी, अगर ये शादी हुई, तो बच्चे… मेरा मतलब, रिंकी और पिंकी… उनकी मम्मी मैं ही रहूँगी?”
बुआ: “ये भी कोई कहने की बात है? तुम ही उनकी माँ रहोगी। कोई उन्हें कुछ नहीं बताएगा। पर भाभी, मैं तो कहती हूँ, तुम उनकी माँ हो, और भैया के साथ शादी के बाद तुम एक बच्चा कर लो।”
बुआ के मुँह से पापा और अपने बच्चे की बात सुनकर मैं शर्म से पानी-पानी हो गई। चेहरा झुकाकर धीरे से बोली, “दीदी, मैं बच्चे के लिए मना थोड़े कर रही हूँ। मैं बस कह रही हूँ कि मुझे स्वस्थ बच्चे पैदा करने के लिए थोड़ा समय चाहिए। और बच्चे होने से भैया का प्यार रिंकी-पिंकी के लिए कम न हो।”
बुआ: “तुम क्या सोच रही हो? ऐसा कुछ नहीं होगा। बस तुम दोनों को प्यार होना चाहिए। मैं समझती हूँ, तुम अपने पापा के साथ जवानी के मज़े लूटना चाहती हो।”
मैंने कहा, “धत्, दीदी, कैसी बातें कर रही हैं?”
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दीदी बोलीं, “अपनी भाभी के साथ मज़ाक भी नहीं कर सकती? अब हम सहेलियाँ हैं, ननद-भाभी होने के साथ।” फिर उन्होंने मेरी चुचियाँ मसल दीं और मेरे कान में बोलीं, “इनको मेरे भैया को पिलाना, और ख़ूबसूरत हो जाएँगी।” मैं बुरी तरह शरमा गई।
वैसे, बच्चों के बहाने मैंने बुआ को बता दिया था कि मुझे पापा से कोई परेशानी नहीं है और उनके बच्चे की माँ बनने में कोई दिक्कत नहीं। पापा उनका सामान उठाकर गाड़ी की डिग्गी में रखने लगे। बुआ बोलीं, “भाभी, तुम भी बस स्टैंड चलो।” मैंने पापा की ओर देखा, तो उन्होंने बैठने का इशारा किया। मैं पीछे बैठने लगी, तो बुआ बोलीं, “निशी, तुम आगे बैठो।” मुझे आगे बैठा दिया।
आज आगे बैठने का अलग ही माहौल था। हम बस स्टैंड पहुँचे और बुआ को बैठाकर घर की ओर चल दिए। पापा गाड़ी में मुझे चोर नज़रों से देख रहे थे और हल्का-हल्का गुनगुना रहे थे। हम घर पहुँच गए। मैंने पापा से पूछा, “कुछ चाहिए?” उन्होंने चाय माँगी और अपने कमरे में चले गए।
मैंने बच्चों के लिए खाना तैयार किया, जो स्कूल से आकर खाती थीं। शाम को मैं खाना बनाने और टीवी देखने लगी। आज पापा ने शराब नहीं पी थी और सारा दिन घर पर रहे। वैसे तो हम सब साथ खाना खाते थे, पर आज मैंने पापा और बच्चों को पहले खाना खिलाया। पापा ने मुझे साथ बैठकर खाने को कहा। मैंने कहा, “आप लोग खा लीजिए, मैं बाद में खा लूँगी।”
सब खाना खाकर अपने कमरे में चले गए। मैं पापा के झूठे बर्तन उठाने लगी, पर कुछ सोचकर उन्हें वहीँ छोड़ दिया। मैंने उनके झूठे बर्तनों में खाना खाया और झूठे गिलास से पानी पिया। आख़िर, पत्नी का धर्म होता है पति का झूठा खाना। मैंने पापा को अपना पति मान लिया था। पता नहीं, मैं ऐसा क्यों कर रही थी।
पापा के झूठे गिलास से पानी पीते हुए मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं उनके होठों को छू रही हूँ। मुझे अजीब और अच्छा लग रहा था। मुझे लगा, शायद बुआ ने मुझे इमोशनल करके इस रिश्ते के लिए राज़ी कर लिया। हो सकता है, पापा को इस बारे में पता ही न हो। मैं ये जानना चाहती थी कि क्या पापा को इस रिश्ते का पता है। मुझे उनसे बात करनी थी।
मैं पापा के रूम के पास पहुँची। अंदर जाने लगी, तो खिड़की खुली देखकर रुक गई। जो मैंने देखा, उससे मेरे सवाल का जवाब मिल गया। पापा बिस्तर पर एकदम नंगे, उलटे लेटे थे। उनकी कमर तेज़-तेज़ चल रही थी। सुबह जिस तरह वो मुझे देख रहे थे, वो पिता की नज़र नहीं थी। पापा तकिए पर मुझे समझकर धक्के लगा रहे थे।
मैं समझ गई कि बुआ ने पापा से सब पूछकर किया है। पापा ने मेरे साथ सुहागरात की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। जिस रफ़्तार से वो धक्के मार रहे थे, मैं मुस्कुराने लगी। सोचा, अगर इतने ज़ोरदार धक्के तकिए पर मार रहे हैं, तो मेरे ऊपर चढ़ेंगे, तो मेरी चूत पर बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से धक्के मारेंगे। शायद ये बिस्तर भी उनके तूफ़ानी धक्कों को न सह पाए।
पापा के चेहरे पर इतने दिनों बाद ख़ुशी देखकर मुझे समझ आ गया कि बुआ ने उनसे बात करके इस रिश्ते को आगे बढ़ाया है। मैं जल्दी से वहाँ से हट गई। पापा को मेरे और उनके नए रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं था। उनकी प्रैक्टिस देखकर मुझे अंदाज़ा हो गया कि मेरा मुक़ाबला कितने जोरदार खिलाड़ी से होने वाला है।
मैंने इस रिश्ते को दिल से स्वीकार कर लिया था। मैं अपने कमरे में आ गई, पर मेरी नींद कोसों दूर थी। मैं बिस्तर पर बैठकर सोचने लगी। बार-बार पापा की तस्वीर मेरी आँखों के सामने आ रही थी। उनके नंगे बदन और कमर चलाने का सीन घूम रहा था। मैं ख़ुद से बोली, “क्या मैं झेल पाऊँगी? इतने तूफ़ानी धक्के तकिए पर मार रहे हैं। मेरे ऊपर चढ़ेंगे, तो मेरी रेल बना देंगे।”
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पापा का लंड उनके जैसा ही दमदार होगा। उनके लंड के बारे में सोचते हुए मेरा चेहरा लाल होने लगा। मेरी सलवार के अंदर हलचल होने लगी। मैंने तकिए को अपनी टाँगों के बीच रखकर पापा की तरह कमर चलाने लगी। सोचने लगी कि मैं उनके साथ ताल से ताल मिला रही हूँ। मेरी चूत से रस बह गया, मुझे पता ही नहीं चला।
मैं एक टिपिकल हाउसवाइफ़ की तरह सोचने लगी, जिसके दो बच्चे और एक पति हैं। मैंने बुआ की दी हुई साड़ी और ब्लाउज़ उठाया। एक सेक्सी, स्लीवलेस ब्लाउज़ चुना। बाथरूम में जाकर साड़ी, ब्लाउज़ और पेटीकोट पहनकर ड्रेसिंग टेबल के सामने आई। ब्लाउज़ टाइट और सेक्सी था। मेरी आधी चुचियाँ दिख रही थीं। मैं शरमा गई, सोचा, “पापा मुझे ऐसे देखेंगे, तो क्या सोचेंगे?”
फिर ख़ुद से बोली, “वो तो ख़ुश हो जाएँगे। अपनी बीवी की जवानी देखकर। आख़िर मुझे इन्हें दिखाना भी तो उनको है।” मैंने सोचा, उन्हें मेरी चुचियों से खेलना और चूसना है। मैं मुस्कुराने लगी। पहले बाल बनाए, फिर खुला छोड़ दिया। मम्मी के गहने पहने—पायल, हार, चूड़ियाँ, मांग का टीका। आख़िर में सिन्दूर और मंगलसूत्र पहना।
शीशे में देखा, तो मैं नई-नवेली दुल्हन लग रही थी। मैं शरमा रही थी। अगर पापा मुझे इस रूप में देख लेते, तो शायद उसी रात मेरी सुहागरात हो जाती। अगला दिन रविवार था। पापा बोले, “निशी, चलो, कहीं बाहर घूमने चलते हैं।” मैं सोचने लगी, “पापा आज इतने ख़ुश क्यों हैं? मुझे अलग नज़र से देख रहे हैं।”
मुझे उनका ऐसा देखना अच्छा लग रहा था, पर थोड़ा डर भी था। अगर पापा ने आज ही छोड़ दिया, तो क्या मैं संभाल पाऊँगी? उनके 85 किलो के शेर जैसे बदन के सामने मेरा 45 किलो का हिरनी जैसा शरीर। फिर सोचा, “जो होगा, देखा जाएगा। आख़िर मुझे संभालना ही है। वो मेरे पति बनने वाले हैं।”
पापा की बात सुनकर मैंने कामुक मुस्कान के साथ कहा, “जी, पापा।” मैं और बच्चे नहा-धोकर तैयार हो गए। पापा ने एक पैकेट दिया और बोले, “निशी, ये लो।” मैंने पूछा, “ये क्या है?” पापा बोले, “ये तुम्हारे लिए ड्रेस है। मैं चाहता हूँ कि तुम इसे पहनकर मेरे साथ चलो।”
मैंने पैकेट खोला, तो उसमें लाल रंग का सूट और चूड़ियाँ थीं। मैंने सलवार-कमीज़ और चूड़ियाँ पहन लीं। कमीज़ का गला बड़ा था, जिसमें मेरी चुचियों का ऊपरी हिस्सा दिख रहा था। मैं शरमा गई। इसका मतलब पापा भी मेरी चुचियाँ देखना चाहते हैं। मैंने चुन्नी अच्छे से लपेटी, ताकि चुचियाँ ज़्यादा न दिखें। फिर सोचा, “ये तो आज नहीं, तो कल दिखेंगी ही।”
मेरी जवानी पर अब पापा का हक़ था। मैं बाहर आई। पापा मुझे देखते रह गए। उनकी आँखें मेरी छाती पर टिकी थीं। मेरे निपल्स हर वक़्त कड़े रहने लगे थे। इस वक़्त वो साफ़ दिख रहे थे। पापा को अपनी चुचियों को घूरते देख मैंने अपनी ज़ुल्फ़ें ठीक कीं और मन में बोली, “अभी दूर से देखने पर ये हाल है। पास से देखोगे, खेलोगे, चूसोगे, तो क्या होगा?”
मैं शरमाई, तो पापा भी झेंप गए। मुझे लगा, पापा मुझे बाँहों में भरकर प्यार कर रहे हैं। मेरी कमीज़ का गला आगे-पीछे खुला था। पीछे मेरी चिकनी गोरी पीठ और सामने 25% क्लीवेज दिख रही थी। ये पापा के लंड में हलचल मचाने के लिए काफ़ी थी। मैंने कामुक अदा से मुस्कुराते हुए आँखें झुकाईं और बोली, “ऐसे क्या देख रहे हैं? अगर देखना हो गया, तो चलें?”
पापा संभले और हम गाड़ी की ओर चल दिए। रिंकी बोली, “मैं आगे बैठूँगी।” पापा बोले, “नहीं, बेटा, मम्मी को बैठने दो। मम्मी ही पापा के साथ बैठती है।” मैं आगे बैठ गई। चलते वक़्त मेरा हाथ गियर के पास था। पापा बार-बार मेरे हाथ को छू रहे थे। मुझे अच्छा लग रहा था।
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पापा बोले, “निशी, एक बात कहूँ, बुरा न मानो।” मैंने कहा, “जी, कहिए।” पापा बोले, “जब से बच्चे तुम्हें मम्मी कहने लगे हैं, तुम मुझे पापा मत कहो।” मैंने पूछा, “क्यों?” पापा बोले, “तुम भी पापा कहोगी और बच्चे भी। लेकिन तुम्हें बच्चे मम्मी कहते हैं। बच्चों की मम्मी का पापा तो नहीं हो सकता ना? मेरे बच्चों का पापा हूँ, तुम्हारा नहीं। बाहर कोई देखेगा, तो क्या कहेगा?”
मैंने कामुक मुस्कान के साथ उनकी आँखों में देखकर कहा, “अगर आपको पापा न कहूँ, तो क्या कहूँ?” पापा बोले, “तुम्हें नहीं पता?” मैंने शरमाते हुए कहा, “जी, मुझे कैसे पता? आप ही बता दीजिए।” पापा बोले, “जैसा रेखा (मम्मी का नाम) मुझे बुलाती थी, वैसे बुला सकती हो। मेरे नाम से।”
पापा बोले, “बोलो, निशी, तुम मुझे वैसे बुलाओगी ना?” मैंने अल्हड़-सी मुस्कुराहट के साथ शर्म से सिर हिलाया। पापा बोले, “क्यों नहीं होगा? इसका मतलब तुम मुझे स्वीकार नहीं कर रही हो।” मैंने कहा, “ऐसी बात नहीं है। मैं तो बड़ी होने पर आपके जैसा पति चाहती थी। कुदरत का खेल देखिए, उसने आपको ही मेरा जीवनसाथी बना दिया। मैं आपको बहुत प्यार करती हूँ।”
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कहानी का अगला भाग: बेटी बनी पापा की पत्नी – 2
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