ये सच्ची घटना थी, अखबार में भी छपी थी। एक पति-पत्नी कार में बैठकर संबलपुर से भद्रक जा रहे थे। रेडाखोल के बाद बमुर के पास पहुंचे, तभी पति को पेशाब करने की जरूरत पड़ी। उसने कार रोकी और उतरकर जंगल की तरफ चला गया। पीछे-पीछे आंटी भी उतरीं, पर पति को लगा कि आंटी कार में ही बैठी हैं। पेशाब करके वो वापस आया, कार स्टार्ट की और चल दिया। आंटी जब पेशाब करके खड़ी हुईं, तब तक पति जा चुका था। आंटी अकेली रह गईं, जंगल के बीचों-बीच। डर लग रहा था। मोबाइल भी कार में छूट गया था। नेटवर्क तो वैसे भी नहीं था। वो सोच में पड़ गईं कि अब क्या करें? कुछ दूर पैदल चलने के बाद, दूर से एक हल्की रोशनी दिखाई दी।
मैं भुवनेश्वर से अपने गांव गया था। दशहरा की छुट्टी थी, और मेढ़ पूजा का जिम्मा मेरा था। रात भर चंडी पूजा की व्यवस्था करनी थी। हम सात लोग थे, लेकिन बियर खत्म हो गई। मैं और मेरा दोस्त टेंट में रुक गए, बाकी सब खाना और बियर लाने चले गए। तभी आंटी हमारे टेंट में घुस आईं। गोरी, बड़े-बड़े दूध, शायद 36 साइज के, और भारी-भरकम गांड। पेट और दूध का कुछ हिस्सा साड़ी से बाहर झांक रहा था। एकदम मस्त माल थी।
वो घबराई हुई थीं। मोबाइल कार में छूट गया था, और जंगल में नेटवर्क भी नहीं था। उन्होंने अपनी सारी मुसीबत बताई। फोन मांगा, पर नेटवर्क नहीं था। वो परेशान थीं कि पति को कैसे खबर दें, कैसे जाएं? हमारा टेंट सड़क से करीब दो किलोमीटर दूर जंगल में था, गांव के बाहर पूजा पंडाल में। वहां से आधा किलोमीटर दूर मेरी खेती की जमीन पर एक छोटा सा घर बनाया था। उसमें फैन, लाइट, और आराम करने के लिए एक खटिया भी थी।
मैं और मेरा दोस्त एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। हम दोनों की उम्र 30-32 के आसपास थी, और मन में एक ही ख्याल था—ऐसी मस्त आंटी को कैसे चोदा जाए? मैंने भद्रता से कहा, “आंटी, सुबह तक बस मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। हमारा काम खत्म हो गया है, अब हम घर जा रहे हैं।” ये सुनकर आंटी डर गईं। बोलीं, “अगर आप लोग चले गए, तो मैं कहां रहूंगी? ये जंगल है, मुझे डर लग रहा है।” वो बहुत परेशान हो गईं। मैंने कहा, “एक मदद कर सकता हूं। मेरी जमीन के पास जो घर है, वहां रात गुजार लीजिए।” वो मान गईं। मैंने उन्हें वो घर दिखाया, दरवाजा खोला, और खटिया पर बिठाया। फिर कहा, “हम जा रहे हैं। सुबह सात बजे के आसपास आपको सड़क तक छोड़ देंगे।”
आंटी घबरा गईं। बोलीं, “जंगल में अकेले कैसे रहूंगी? सुबह कैसे जाऊंगी?” उनका दिमाग घूम रहा था। वो हारकर गुहार करने लगीं, पर कोई रास्ता नहीं था। मैंने अपने दोस्त को बाहर जाने को कहा और आंटी से बोला, “देखिए, हमने आपको हर सुविधा दे दी। अगर आप कहें, तो हम रात भर जागकर आपकी रखवाली करेंगे और सुबह बस में बिठा देंगे। लेकिन हमें क्या मिलेगा?”
आंटी की उम्र शायद 35 के आसपास थी। खटिया पर बैठे-बैठे उनके मन में चुदाई का ख्याल आ रहा था। वो मेरी बात समझ गईं, पर बोलीं, “अब मेरे पास कुछ नहीं है। जो मांगोगे, बाद में भेज दूंगी।” मैंने कहा, “आंटी, हमें पैसे की जरूरत नहीं है।” वो बोलीं, “तो फिर क्या चाहिए?”
मैंने देखा कि घुमा-फिराकर बात करने से कुछ नहीं होगा। सीधे-सीधे बोलना पड़ेगा। मैंने कहा, “आंटी, हम दोनों आपको चोदना चाहते हैं।” आंटी हैरान होकर मुझे देखने लगीं। गुस्सा तो करना चाहती थीं, पर कर नहीं पाईं। मैंने कहा, “आंटी, हम आपको आज ऐसी चुदाई देंगे कि आप जिंदगी भर याद रखेंगी। किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। इसे दशहरा का मजा समझ लीजिए। अगर आप राजी नहीं हैं, तो कोई जबरदस्ती नहीं है।”
आंटी ने धीरे से कहा, “आज तक सिर्फ मेरे पति ने मुझे चोदा है। किसी और के साथ कभी नहीं किया। लेकिन अब मेरे पास कोई और रास्ता नहीं है। जैसी तुम्हारी मर्जी।” मैंने कहा, “ऐसे नहीं, आंटी। आप मन से चुदवाओ, तभी मजा आएगा। हां, एक बात और। मैं तुम्हारी इस बड़ी गांड में भी चुदाई करूंगा।”
आंटी थोड़ा हिचकिचाईं, पर फिर चुप रही। मैंने अपने दोस्त को अंदर बुलाया। रात का सन्नाटा था, और चांदनी की हल्की रोशनी उस छोटे से घर में आ रही थी। आंटी की साड़ी का पल्लू थोड़ा सरक गया था, और उनके बड़े-बड़े दूध बाहर झांक रहे थे। मैंने धीरे से उनकी साड़ी खींची। वो बिना कुछ बोले खटिया पर लेट गईं। मैंने उनकी ब्लाउज के बटन खोले। उनके दूध बाहर निकल आए—गोरे, भारी, और निप्पल सख्त हो चुके थे। मैंने एक दूध को मुंह में लिया और चूसने लगा। आंटी की सांसें तेज हो गईं। वो हल्के-हल्के सिसकारी ले रही थीं। मेरा दोस्त उनकी साड़ी को पूरी तरह खोल चुका था। उनकी चिकनी जांघें और भारी गांड देखकर उसका लंड पैंट में तन गया।
मैंने आंटी की पैंटी उतारी। उनकी चूत पूरी तरह गीली थी। मैंने उंगली डाली, तो वो सिहर उठीं। “आह्ह… धीरे…,” वो बोलीं, पर उनकी आवाज में मजा साफ झलक रहा था। मैंने अपनी जीभ उनकी चूत पर रखी और चाटने लगा। आंटी की सिसकारियां तेज हो गईं। “उफ्फ… और जोर से… चाटो…” वो बेकाबू हो रही थीं। मेरा दोस्त उनके दूध दबा रहा था, और उसका लंड अब बाहर था—मोटा, लंबा, और पूरी तरह तना हुआ। आंटी ने उसे देखा और बोली, “इतना बड़ा लंड… मेरी चूत फट जाएगी।”
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मैंने कहा, “आंटी, फटने का डर छोड़ो, आज चुदाई का पूरा मजा लो।” मैंने अपना लंड बाहर निकाला। आंटी ने उसे पकड़ा और धीरे-धीरे मुठ मारने लगी। फिर उसने मेरे लंड को मुंह में लिया और चूसने लगी। उसकी जीभ मेरे लंड के टोपे पर घूम रही थी, और मैं सातवें आसमान पर था। मेरा दोस्त पीछे से उनकी गांड पर हाथ फेर रहा था। उसने उनकी गांड के छेद पर उंगली लगाई, तो आंटी थोड़ा चौंकी, पर कुछ बोली नहीं।
मैंने आंटी को खटिया पर लिटाया और उनकी टांगें फैलाईं। उनकी चूत चमक रही थी। मैंने अपना लंड उनकी चूत पर रगड़ा, तो वो तड़प उठीं। “डाल दो… अब और मत तड़पाओ…,” वो चिल्लाई। मैंने एक ही झटके में अपना लंड उनकी चूत में डाल दिया। आंटी की चीख निकल गई, “आह्ह… मर गई…!” पर जल्दी ही वो कमर हिलाने लगी। मैं जोर-जोर से धक्के मारने लगा। उनकी चूत इतनी टाइट थी कि मेरा लंड हर धक्के में मजा ले रहा था। आंटी चिल्ला रही थीं, “चोदो… और जोर से… मेरी चूत फाड़ दो…!”
मेरा दोस्त अब उनकी गांड की बारी का इंतजार कर रहा था। मैंने आंटी को घोड़ी बनाया। उनकी बड़ी गांड हवा में थी। मैंने थोड़ा तेल लिया और उनकी गांड के छेद पर लगाया। आंटी बोली, “वहां नहीं… दर्द होगा…” मैंने कहा, “आंटी, आज सब कुछ ट्राई करो।” मैंने धीरे-धीरे अपने लंड का टोपा उनकी गांड में डाला। वो चीखीं, “उफ्फ… निकालो…!” पर मैंने धीरे-धीरे पूरा लंड अंदर डाल दिया। कुछ देर बाद आंटी को भी मजा आने लगा। वो बोली, “हां… अब चोदो… मेरी गांड मारो…”
मेरा दोस्त अब उनकी चूत में अपना लंड डाल चुका था। हम दोनों एक साथ आंटी को चोद रहे थे—मैं उनकी गांड में, और मेरा दोस्त उनकी चूत में। आंटी पागल हो रही थीं। “हाय… मर गई… दोनों लंड… उफ्फ… और जोर से…!” वो चिल्ला रही थीं। कमरे में सिर्फ उनकी सिसकारियां और हमारी चुदाई की आवाज गूंज रही थी।
करीब आधे घंटे की चुदाई के बाद मैंने अपना माल आंटी की गांड में छोड़ दिया। मेरा दोस्त उनकी चूत में झड़ गया। आंटी हांफ रही थीं, पर उनके चेहरे पर संतुष्टि थी। वो बोली, “पति ने कभी इतना मजा नहीं दिया। तुम दोनों ने तो मेरी चूत और गांड दोनों को तृप्त कर दिया।”
सुबह हमने आंटी को सड़क तक छोड़ा। वो बस में बैठीं, पर जाने से पहले मुस्कुराकर बोली, “दशहरा का ये मजा मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगी।” हमने कहा, “आंटी, फिर कभी रास्ता भूल जाओ, तो हमारा टेंट याद रखना।”
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