दोस्तों, मैं कमल, आपको एक सच्ची घटना सुनाने जा रहा हूँ। मेरे मोहल्ले में एक लड़की थी, आरुषि। वो मुझे बहुत पसंद थी। मैं हमेशा सोचता था कि काश वो मुझसे पट जाए, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था। सबसे बड़ी दिक्कत थी मेरा स्कूल और फिर ट्यूशन। सुबह स्कूल के लिए निकल जाता, वहाँ से लौटता तो ट्यूशन की भागदौड़। इस चक्कर में आरुषि को पटाने का टाइम ही नहीं मिलता था। आरुषि गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी, तो उससे मिलना भी मुश्किल था।
इसी बीच मेरे एक दोस्त ने बताया कि 18 साल की जवान, मस्त कड़क माल आरुषि को कोई आदमी सेट कर रहा है। सुनकर मेरी तो गाँड फट गई। मेरे मोहल्ले की सबसे मालदार लड़की को कोई और लाइन मार रहा है? मैं हैरान रह गया। इसकी सच्चाई जानने के लिए मैंने कुछ दिन स्कूल और ट्यूशन से छुट्टी ले ली और आरुषि की जासूसी शुरू कर दी। मैं ये देखकर दंग था। एक दिन, जब उसके स्कूल की छुट्टी थी, मैं स्कूल के बाहर छिपकर खड़ा हो गया कि देखूँ आखिर कौन है वो हरामी जो मेरे मोहल्ले की माल को सेट कर रहा है।
स्कूल छूटते ही आरुषि सड़क पर आकर खड़ी हो गई। उसने स्कूल का सिलेटी रंग का सूट और सफेद सलवार पहना था। मुँह पर स्टॉल अच्छे से बाँध लिया था, मानो कोई फूलन देवी डाकू बन गई हो। अब उसे कोई पहचान ही नहीं सकता था। कुछ देर बाद एक 30-35 साल का आदमी मोटरसाइकिल पर आया। आरुषि उसकी बाइक पर बैठी और चली गई। मेरे सीने में जलन की आग भड़क उठी। जिस लड़की को मैं पटाना चाहता था, वो किसी और के साथ सेट थी। शायद चुदवाती भी हो!
उस रात मैं सो नहीं सका। बार-बार यही ख्याल आ रहा था कि क्या वो उस अजनबी से चुदवाती होगी? ये सोच मुझे पागल कर रही थी। मैंने ठान लिया कि सच जानकर रहूँगा। फिर कुछ दिन बाद रविवार आया। उस दिन मेरी छुट्टी थी। मैं आरुषि पर नजर रखे हुए था। थोड़ी देर बाद वो मंदिर जाने के लिए घर से निकली। उसने पीले रंग का सलवार-सूट पहना था। उसने रिक्शा लिया और मैं अपनी मोटरसाइकिल से उसके पीछे-पीछे चल पड़ा।
आरुषि मंदिर के अंदर गई। मैं एक किनारे छिप गया। कुछ देर बाद वो बाहर आई, मोबाइल पर किसी से बात की। फिर उसने अपनी पॉलिथीन से वही गुंडी वाला स्टॉल निकाला और मुँह पर बाँध लिया। तभी वो मोटरसाइकिल वाला फिर आ गया। आरुषि उसकी बाइक पर बैठी। उसने माला, नारियल, फूल, प्रसाद अपनी पिन्नी में रख लिया। मैं उनका पीछा करने लगा। कुछ दूर जाकर मोटरसाइकिल रुक गई। मैं भी रुक गया। वहाँ बेर और बबूल की झाड़ियाँ थीं। मैंने अपनी आँखों से साफ-साफ देखा। आरुषि बाइक से उतरी, वो आदमी भी उतरा।
दोनों कच्ची सड़क के किनारे 15-20 मिनट तक राम जाने क्या बातें करते रहे। दोनों बड़े खुश लग रहे थे, एक-दूसरे की आँखों में आँखें डालकर बात कर रहे थे। सड़क से इक्का-दुक्का लोग गुजर रहे थे। वो आदमी बीच-बीच में आरुषि का हाथ पकड़ लेता था। “फस गई रंडी!” मेरे मुँह से गुस्से और जलन में निकल पड़ा। मुझे बहुत पछतावा हो रहा था। मैं एक पेड़ के पीछे छिपकर ये सब देख रहा था। गुस्सा तो आ रहा था, पर दिल में कहीं उत्सुकता भी थी।
वो आदमी बीच-बीच में आरुषि के कंधे पर दोस्तों की तरह हाथ रख देता था। आरुषि का स्टॉल बँधा था, तो कोई उसे पहचान नहीं सकता था। फिर उस अजनबी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर झाड़ी में जाने का इशारा किया। आरुषि ने इधर-उधर नजर दौड़ाई। जब उसे यकीन हो गया कि कोई नहीं देख रहा, तो वो बेर की झाड़ी में चली गई। वो आदमी भी इधर-उधर देखकर झाड़ी में घुस गया। मैं समझ गया कि ये छिनार मंदिर पूजा करने नहीं आई थी। इसका असली मकसद तो उस आदमी से चुदवाना था।
मैं भी चुपके से वहाँ गया कि देखूँ आखिर हो क्या रहा है। मेरी तो गाँड फट गई। आरुषि सूखी घास पर लेटी थी। उस आदमी ने उसके पीले सूट को सिर्फ ऊपर उठा दिया था, निकाला नहीं। वो आरुषि के मस्त, गोल-गोल मम्मों को चूस रहा था। “घोर कलयुग आ गया! रंडी मंदिर के बहाने निकली और यहाँ झाड़ी में चुदवा रही है,” मैंने मन में कहा। उसने स्टॉल नहीं उतारा था, शायद कोई उसे पहचान न सके। स्टॉल में वो और रहस्यमयी लग रही थी। शायद उस आदमी को उसे चोदने में ज्यादा मजा आ रहा था।
वो बड़ी लगन से आरुषि के मम्मों को चूस रहा था। ये देखकर मुझे हार्ट अटैक सा आने को हुआ। आरुषि ने आँखें मूँद ली थीं। वो कितनी भोली-सी लगती थी, लेकिन यहाँ सड़क किनारे झाड़ी में चुदवा रही थी। वो आदमी उसके मम्मों को सहलाता, फिर दबाता। मैं आँखें फाड़कर देख रहा था। फिर उसने आरुषि का पीला सलवार का नाड़ा खोला और सलवार उतार दी।
उस आदमी ने अपनी पैंट उतारी और घास पर रख दी, जहाँ आरुषि का सलवार पड़ा था। उसने अपने लंड को हाथ से मला, ताव दिया और खड़ा किया। आरुषि की चूत में डालने की कोशिश की, पर शायद निशाना नहीं लगा। फिर उसने सूखी घास पर ही आरुषि के पैर उठाए, निशाना साधा और लंड अंदर घुस गया। वो उसे चोदने लगा। बड़े कामुक धक्के मार रहा था। “आह्ह… उह्ह…” आरुषि के मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थीं। उसका दुबला-पतला, लचीला बदन हर धक्के के साथ हिल रहा था। उसकी नाजुक पसलियाँ हल्के-हल्के ऊपर-नीचे हो रही थीं।
“क्या मस्त चुदाई कर रहा है, साला!” मैंने मन में सोचा। मुझे गुस्सा भी आ रहा था कि मेरे मोहल्ले की लड़की किसी अजनबी से चुद रही है, पर दूसरी तरफ ये देखकर मजा भी आ रहा था। मैंने फटाक से फोन निकाला और रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। वो आदमी गचागच आरुषि को चोदे जा रहा था। “कितनी चालाक है, स्टॉल बाँधकर चुदवा रही है,” मैं सोच रहा था। चुदाई हर लड़की को होशियार बना देती है। आरुषि ने सिर एक तरफ कर लिया और अपने आशिक से हचाहच चुदवाने लगी। लंड जैसे ही उसकी चूत में जाता, उसके बदन में एक लहर सी दौड़ती, जो सिर तक जाती थी।
“क्या गजब की माल है ये छिनार!” मैं मन ही मन सोच रहा था। ये दृश्य मेरे जीवन का सबसे यादगार दृश्य था। आरुषि की हल्की-हल्की काली झाँटें भी दिख रही थीं। मैंने फोन को जूम किया। लंड जब उसकी चूत में जाता, उसके चुच्चे ऊपर उछल पड़ते। फिर उस आशिक ने अपना सिर आरुषि के मुँह पर रखा, स्टॉल के ऊपर से ही उसके होंठ चूसने लगा। होंठ चूसते-चूसते गचागच चोदने लगा। “आह्ह… और जोर से… चोद मुझे…” आरुषि सिसक रही थी। ये देखकर मेरा लंड खड़ा हो गया।
मन किया कि मैं भी कूद पड़ूँ और उसे गचागच चोद दूँ। मैं ये भी सोच रहा था कि कितना बड़ा कलेजा है इस छिनार का। सड़क किनारे लोग आ-जा रहे हैं, फिर भी नहीं डर रही कि कोई देख लेगा। मैं तो इसे झाड़ी में नहीं चोदता, कम से कम होटल ले जाता। तभी उस आशिक ने जोर-जोर से धक्के मारने शुरू किए। लंड की फट-फट आवाज आने लगी। उसकी गोलियाँ आरुषि की गाँड से टकरा रही थीं। “आह्ह… उह्ह… और तेज…” आरुषि मजे ले रही थी।
अचानक उसका आशिक ताबड़तोड़ धक्के मारने लगा। आरुषि के चुच्चे रबर की गेंद की तरह उछलने लगे। फट-फट, खट-खट की आवाज के साथ उसने आरुषि की चूत में ही झड़ दिया। फिर वो उस पर लेट गया, उसके होंठ चूसने लगा, मम्मों को दबाने लगा। ये देखकर मेरा लंड झड़ने को हुआ। फिर उसने लंड आरुषि की चूत से निकाला। कुछ सेकंड बाद जो माल उसने अंदर छोड़ा था, वो बाहर निकल आया। आरुषि ने सूखी घास तोड़ी और अपनी चूत पोंछकर साफ की। दोनों कुछ देर ऐसे ही लेटे रहे।
फिर मैं चुपके से वापस आ गया। एक दिन आरुषि मुझे मार्केट में मिली।
“हाय, आरुषि! कैसी हो?” मैंने पूछा।
“मैं थोड़ी जल्दी में हूँ!” उसने बड़ी बेरुखी से कहा और चल दी।
“इसकी माँ की!” मैंने फोन निकाला और रिकॉर्डिंग खोली।
“तुम्हें कुछ दिखाना है!” मैं लपककर उसके पास गया और रिकॉर्डिंग दिखाई। उसकी तो गाँड फट गई। वो भौंचक्की रह गई, मानो शॉक लग गया हो।
“अब भी जल्दी में हो? बोलो, तुम्हारे पापा को दिखा दूँ?” मैंने पूछा।
वो रोने लगी, अपने दुपट्टे से आँसू पोंछने लगी।
“बताओ, तुम्हें क्या चाहिए?” उसने रोते हुए पूछा।
“बस तेरी चूत मारना चाहता हूँ, जो तेरा आशिक मार-मारकर फैला गया है!” मैंने कहा।
“कब?” उसने पूछा।
“इस शनिवार, ठीक उसी जगह!” मैंने कहा।
शनिवार शाम 6 बजे मैंने उसे मोटरसाइकिल पर बिठाया और उसी झाड़ी में ले गया। वो बेर की झाड़ी मेरी फेवरेट जगह बन गई थी। आरुषि मुझसे प्यार नहीं करती थी, वो तो मेरे जाल में फँस गई थी। आज भी उसने वही स्टॉल बाँधा था। ठीक उसी जगह मैंने उसे लिटा दिया। हरामजादी रो रही थी, लेकिन अपने आशिक से तो बड़े मजे से कमर मटकाकर चुदवाती थी।
मैंने उसके सूट को ऊपर कर दिया। खूब उसके मम्मों को चूसा। उसकी काली, सुंदर निप्पल्स को चबाया, बीच-बीच में काट भी लिया। वो उछल पड़ती थी। ये वही मम्मे थे, जो उसके आशिक ने चूस-चूसकर बड़े किए थे। मैं जी भरकर उसके मम्मे चूसा। फिर उसका सलवार का नाड़ा खोला, सलवार और चड्डी उतार दी। अपने लंड पर थूक लगाया और उसकी चूत में उतर गया। आरुषि की चूत गंगा नदी थी, जिसमें उसका आशिक डुबकी लगा चुका था।
अब मैं डुबकी लगा रहा था। “साली, कितनी मस्त चूत है तेरी!” मैंने कहा और उसे चोदने लगा। मुझे उसकी पिछले चुदाई के दृश्य याद आ रहे थे। “चोद साली को, फाड़ दे इस रंडी की चूत!” मैं खुद से कह रहा था। धकाधक उसे पेलने लगा। “आह्ह… उह्ह…” वो सिसक रही थी। उसकी गदराई चूत में लंड जाता, तो उसे भी मजा आने लगा। कुछ देर बाद वो अपनी लचीली कमर उठाने लगी। “हाँ, चोद मुझे… और जोर से…” वो बोलने लगी। मुझे बड़ा सुख मिला। मैं उसे लयबद्ध चोदने लगा। पटा-पट, खटा-खट की ताल बजने लगी।
वो रबर की गुड़िया सी थी। मैं जिस ओर उसके पैर फैलाता, वो वैसा कर देती। मैंने उसे कई पोज में चोदा—लिटाकर, बैठाकर, घुटने मोड़कर, पीछे से कुतिया बनाकर। “ले साली, मेरा लंड!” मैंने कहा और धकाधक पेलता रहा। फिर मैंने अपना माल उसकी चूत में छोड़ दिया। कुछ सेकंड बाद मेरा माल भी उसकी चूत से बाहर निकला। आरुषि ने फिर सूखी घास तोड़ी और अपनी चूत साफ की। धीरे-धीरे वो मुझसे सेट हो गई। मैंने उसका पीछा करना बंद कर दिया। जब चूत चाहिए होती, मिल जाती। मैं उसे हर बार स्टॉल बाँधकर ही चोदता। उसमें मुझे अजीब सा सुख मिलता। हर बार लगता, जैसे कोई नई लौंडिया चोद रहा हूँ।
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