भाई बहन बन गए पति पत्नी

मेरा नाम सूरज है और मेरी बहन का नाम श्रद्धा है। हम दोनों उत्तराखंड के छोटे से गाँव के रहने वाले हैं, जहाँ हरी-भरी वादियाँ और बर्फीली चोटियाँ हमारा घर थीं। लेकिन एक भयानक भूस्खलन ने हमारी जिंदगी उजाड़ दी। मेरे मम्मी-पापा उस हादसे में चल बसे। उस दुख से उबरना आसान नहीं था, लेकिन मेरे और श्रद्धा के पास एक-दूसरे का सहारा था। हमने गाँव छोड़ दिया और दिल्ली आ गए। जामिया नगर में हमने एक छोटा सा किराए का कमरा लिया और नई जिंदगी शुरू की।

शुरुआत में हमें कोई कमरा देने को तैयार नहीं था। लोग भाई-बहन को शक की नजर से देखते थे। थक-हारकर हमने खुद को पति-पत्नी बताया, तभी जाकर एक मकान मालिक ने हमें कमरा दिया। ये झूठ बोलना पड़ा, लेकिन हमारे पास कोई चारा नहीं था। हमने एक-दूसरे को देखा और बिना कुछ कहे समझ गए कि ये सिर्फ दुनिया के लिए है।

दिल्ली में हमने मेहनत शुरू की। मैंने एक मार्केटिंग कंपनी में जॉब पकड़ ली, और श्रद्धा ने एक कॉल सेंटर में काम शुरू किया। तनख्वाह अच्छी थी, और धीरे-धीरे हमारी जिंदगी पटरी पर आने लगी। हमारा कमरा छोटा था, लेकिन हमने उसे प्यार से सजाया। एक छोटा सा किचन, दो कुर्सियों वाली मेज, और एक बिस्तर, जिसमें हम दोनों सोते थे। रात को हम पुरानी बातें करते, हँसते, और कभी-कभी मम्मी-पापा को याद करके चुपके से आँसू बहाते।

श्रद्धा मुझसे दो साल छोटी है, 22 साल की, और मैं 24 का। वो हमेशा से थोड़ी जिद्दी और बिंदास रही है। दिल्ली की चमक-दमक उसे लुभाने लगी थी। एक दिन मुझे पता चला कि वो एक लड़के, राहुल, से मिलने लगी है। वो लड़का उसकी कंपनी का था, स्मार्ट और चिकना-सा। लेकिन मुझे उस पर भरोसा नहीं था। मैंने टीवी और सोशल मीडिया पर ऐसी कहानियाँ देखी थीं, जहाँ लड़के लड़कियों का फायदा उठाकर उन्हें छोड़ देते हैं। मुझे डर था कि श्रद्धा कहीं गलत रास्ते पर न चली जाए।

एक रात मैंने उससे बात की। “श्रद्धा, सुन। ये शहर हमारा नहीं है। यहाँ लोग बस अपना मतलब निकालते हैं। तू उस राहुल के चक्कर में मत पड़। हम दोनों ने कितनी मुश्किल से ये जिंदगी बनाई है। कहीं सब बर्बाद न हो जाए।”

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वो चुप रही, फिर बोली, “भैया, मैं कुछ गलत नहीं कर रही। लेकिन मुझे भी तो जिंदगी जीने का हक है ना?”

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“है ना,” मैंने कहा, “लेकिन मैं तुझे वो सारी खुशियाँ दूँगा जो तू चाहती है। बस तू बाहर मत भटक। हम उत्तराखंड वापस जाएँगे, अपना घर बनाएँगे, और फिर तेरी शादी करवाऊँगा।”

उसने मेरी आँखों में देखा और कसम खाई कि वो ऐसा कुछ नहीं करेगी जिससे हमारी जिंदगी बर्बाद हो। उस रात के बाद हम और करीब आ गए। हम साथ खाना बनाते, फिल्में देखते, और गली के लोग हमें पति-पत्नी समझकर ताने मारते। “क्या बात है, भाभी, कब खुशखबरी सुनाओगी?” वो हँसते, और हम दोनों मुस्कुराकर टाल देते।

लेकिन एक रात सब बदल गया। उस दिन मम्मी-पापा की बरसी थी। हम दोनों उदास थे, पुरानी तस्वीरें देख रहे थे। श्रद्धा की आँखें भरी थीं। मैंने उसे गले लगाया, उसकी पीठ सहलाई। “रो मत, श्रद्धा। मैं हूँ ना,” मैंने कहा। वो मेरे सीने से लिपटकर रोने लगी। उसकी साँसें मेरे गले को छू रही थीं। पता नहीं क्या हुआ, उसने मेरी आँखों में देखा, और हम दोनों थम गए।

अचानक उसने मेरे होंठों को चूम लिया। मैं स्तब्ध रह गया। “श्रद्धा, ये क्या…” मैंने उसे रोकना चाहा, लेकिन मेरी आवाज में दम नहीं था। “भैया, मुझे तुम्हारी जरूरत है,” उसने फुसफुसाया। उसकी आँखों में प्यार था, और कुछ और भी—वासना।

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हम दोनों बहक गए। मैंने उसे फिर से चूमा, इस बार जोर से। उसका बदन मेरे हाथों में काँप रहा था। “आह्ह… भैया,” वो सिसकारी। मेरे हाथ उसके ब्लाउज पर गए, और मैंने उसके बूब्स दबाए। “उफ्फ… कितने सॉफ्ट हैं,” मैंने बड़बड़ाया। उसने मेरी शर्ट उतारी, और मैंने उसका ब्लाउज। उसकी चूचियाँ आजाद हो गईं, गोल और भरी-भरी। मैंने उन्हें मुँह में लिया, चूसा। “आआह्ह… सूरज, और जोर से… उफ्फ,” वो कराह रही थी।

उसने मेरी जींस खोली और मेरा लंड पकड़ लिया। “कितना मोटा है, भैया… उफ्फ,” उसने कहा और उसे मुँह में ले लिया। “आह्ह… श्रद्धा, तू ये क्या कर रही है… उह्ह,” मैं सिसकार उठा। उसकी जीभ मेरे लंड पर नाच रही थी। मैंने उसके बाल पकड़े और उसे और गहराई तक धकेला। “चूस… और चूस… आह्ह,” मैं बड़बड़ा रहा था।

मैंने उसे बिस्तर पर लिटाया, उसकी सलवार उतारी। उसकी चूत गीली थी, गर्म पानी टपक रहा था। मैंने अपनी जीभ उसकी चूत पर रखी। “आआह्ह… भैया, ये क्या… उफ्फ… कितना मजा आ रहा है,” वो चिल्लाई। मैंने उसकी चूत चाटी, उसका रस पिया। “पच… पच…” की आवाजें कमरे में गूंज रही थीं। “सूरज, चोद दो मुझे… प्लीज… अब नहीं रहा जाता,” वो गिड़गिड़ाई।

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मैंने अपना 9 इंच का लंड उसकी चूत पर रखा। “श्रद्धा, पक्का?” मैंने पूछा। “हाँ, भैया… डाल दो… मुझे तुम्हारा लंड चाहिए,” उसने कहा। मैंने धक्का मारा, और मेरा लंड उसकी चूत में समा गया। “आआह्ह… धीरे… उफ्फ… कितना बड़ा है,” वो चीखी। मैंने धक्के शुरू किए। “पच… पच… पच…” की आवाज के साथ उसकी सिसकारियाँ गूंज रही थीं। “आह्ह… सूरज, चोदो… और जोर से… उह्ह… कितना मजा है,” वो चिल्ला रही थी।

मैंने उसकी चूचियाँ मसलीं, उसके निप्पल चूसे। “तेरी चूत कितनी टाइट है, श्रद्धा… उफ्फ,” मैंने कहा। वो मेरे कंधों को नाखूनों से नोच रही थी। “भैया, और गहरा… आह्ह… मुझे पूरा भर दो,” वो बड़बड़ा रही थी। फिर मैं नीचे लेट गया, और वो मेरे ऊपर आ गई। उसने मेरा लंड अपनी चूत पर सेट किया और बैठ गई। “आआह्ह… पूरा अंदर गया… उफ्फ,” उसने सिसकारी।

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वो उछलने लगी, और मैं नीचे से धक्के मार रहा था। “हाँ… हाँ… ऐसे ही… आह्ह,” वो चिल्ला रही थी। फिर वो कुत्तिया बन गई। मैंने उसकी गांड पकड़ी और पीछे से लंड डाला। “उफ्फ… भैया, गांड में भी… आह्ह,” उसने कहा। मैंने उसकी गांड भी चोदी। “पच… पच… पच…” की आवाजें कमरे में गूंज रही थीं।

उस रात हमने 6 बार चुदाई की। हर बार और जंगली, और प्यार भरी। “सूरज, मुझे अब किसी और की जरूरत नहीं… तू ही मेरा सब कुछ है,” उसने कहा। मैं समझ गया कि उसे सेक्स की भूख थी, और मैं उसे वो सुख दे सकता हूँ।

उसके बाद हम पति-पत्नी की तरह रहने लगे। रोज रात को चुदाई होती। “आह्ह… सूरज, तेरा लंड मेरी चूत का राजा है… उफ्फ,” वो कहती। हम प्रिकॉशन यूज करते, लेकिन एक रात हम बहक गए। “श्रद्धा, कंडोम नहीं है… छोड़ दूँ?” मैंने पूछा। “डाल दे, भैया… मुझे तेरा गर्म माल अंदर चाहिए,” उसने कहा। मैंने उसे चोदा और अंदर ही झड़ गया। “आआह्ह… कितना गर्म है… उह्ह,” वो सिसकारी।

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वही गलती। दो महीने बाद पता चला कि वो प्रेग्नेंट है। हम घबरा गए। “सूरज, अब क्या करेंगे?” उसने रोते हुए पूछ।। मैंने उसे गले लगाया। “चिंता मत कर, हम इसे ठीक करें।”। हम जामिया के एक हॉस्पीटट में गए और अबॉर्शन करवाया।

उसके बाद हमने सोचा कि ये गलत है। लेकिन हम एक-दूसरे से दूर नहीं रह सकते थे। हम साथ सोते, चूमते, चूछियाँ दबाते, लेकिन चुदाई नहीं की। पर एक रात फिर हम बहक गए। “सूरीज, मुझे तेरा लंड चाहिए… बस एक बार… आह्ह,” उसने कहा। मैंने उसे चोदा, और फिर से हमारी चुदाई शुरू हो गई। “पच… पच… आह्ह… उफ्फ,” कमरा हमारी वास्सना से गूँज उठा।

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समय बीता। हमने फैसला किया कि हमारी जिंदगी एक-दूसरे के बिना अधूरी है। “श्रद्‍धा, तू मेरी बहन है, लेकिन मेरा प्यार भी तू ही है। क्‍या तू मुझसे शादी करेगी?” मैंने पूछा। उसकी आँखें भर आईं। “हाँ, सूरज… मैं तुझसे शादी करूँगी।”

हमने एक छोटे से मंदिर में शादी कर ली। कोई रिश्तेदार नहीं, बस हम दोनों। उस रात हमने फिर चुदाई की, लेकिन इस बार प्यार और गहरा था। “आह्ह… सूरज, अब मैं तेरी बीवी हूँ… चोद मुझे… उफ्फ,” वो चिल्लाई। मैंने उसे पूरी रात चोदा। “पच… पच… आह्ह… तेरा माल मेरी चूत में डाल… उह्ह,” उसने कहा।

कुछ महीनों बाद श्रद्धा फिर प्रेग्नेंट हो गई। इस बार हमने बच्चे को रखने का फैसला लिया। “सूरज, ये हमारा प्यार है,” उसने कहा। हमने दिल्ली में एक छोटा घर लिया, और हमारी बेटी का जन्म हुआ। हम अब एक परिवार हैं, प्यार और वास्ना से भरा।

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